महिला कार्यबल और महिलाओं के खिलाफ अपराध
यह एडिटोरियल 01/12/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Crimes Against Women Keep Them out of the Job Market” लेख पर आधारित है। इसमें महिलाओं के विरुद्ध अपराध में वृद्धि और महिला श्रम बल भागीदारी में गिरावट के बीच के संबंध की पड़ताल की गई है।
संदर्भ
पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि हुई है और प्रजनन दर में गिरावट आई है। इन दोनों स्थितियों ने विश्व भर में वैतनिक श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी की वृद्धि में योगदान किया है, लेकिन भारत में ऐसा संभव नहीं हो सका है।
भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate- FLFPR) वर्ष 2011-12 में 31.2% से गिरकर वर्ष 2018-19 में 24.5% रह गई है।
घरेलू उत्तरदायित्व, सामाजिक मानदंड, सीमित अवसर और सहायक अवसंरचना के अभाव जैसे विभिन्न कारकों के साथ ही यौन हिंसा का भय (महिला विरुद्ध अपराध का परिदृश्य) एक प्रमुख कारक है, जो श्रम बल से महिलाओं के बहिर्वेशन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
भारत में महिला श्रम बल भागीदारी की बदतर स्थिति
- FLFPR में गिरावट: भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) इसकी अर्थव्यवस्था की एक भ्रमकारी विशेषता है।
- जबकि पिछले दो दशकों में उत्पादन दोगुना से अधिक हो गया है और कामकाजी आयु की महिलाओं की संख्या में एक चौथाई की वृद्धि हुई है, नौकरियों में महिलाओं की संख्या में 10 मिलियन की गिरावट आई है।
- लैंगिक समानता सूचकांक द्वारा प्रस्तुत आँकड़ा: वैश्विक सूचकांक और लैंगिक सशक्तीकरण के मापक भी एक निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं।
- वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2021 के अनुसार भारत 156 देशों की सूची में 140वें स्थान पर है, जो वर्ष 2006 में इसके 98वें स्थान की तुलना में एक बड़ी गिरावट को दर्ज करता है।
- भारत के FLFPR (वर्ष 2018-19 में 24.5%) में भी गिरावट आ रही है और यह 45% के वैश्विक औसत से काफी नीचे है।
- वर्तमान शिक्षा और रोज़गार परिदृश्य: शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 लागू होने के लगभग एक दशक बाद भारत प्राथमिक स्तर पर लैंगिक समानता के निकट पहुँचने में सफल हुआ है। वर्ष 2011 और 2019 के बीच उच्च शिक्षा में महिलाओं के नामांकन दर में वृद्धि हुई।
- अधिकाधिक महिलाओं द्वारा उच्च शिक्षा ग्रहण करने के साथ महिलाओं की एक बड़ी संख्या का रोज़गार बाज़ार में प्रवेश करना भी अपेक्षित है। लेकिन वास्तविक स्थिति विरोधाभासी है।
- वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत से ही भारत का FLFPR गिरावट की ओर उन्मुख है; देश में महिलाओं की बेरोज़गारी दर में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
- अधिकाधिक महिलाओं के शिक्षित होने के बावजूद, कार्यबल में उनके शामिल होने की संभावना कम ही है।
- महिलाओं के श्रम बाज़ार विकल्पों में बाधा डालने वाले कारक: घटते FLFPR और महिलाओं के श्रम बाज़ार विकल्पों में बाधा डालने वाले कारकों के बीच मज़बूत सह-संबंध के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। इन बाधाओं में शामिल हैं:
- घरेलू उत्तरदायित्व और अवैतनिक देखभाल का बोझ
- व्यावसायिक अलगाव और गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में प्रवेश करने के सीमित अवसर
- पाइप के माध्यम से जलापूर्ति और खाना पकाने के ईंधन जैसे सहायक अवसंरचनाओं की अपर्याप्तता
- सुरक्षा और गतिशीलता विकल्पों की कमी
- सामाजिक मानदंडों और पहचानों की परस्पर क्रिया
- महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध अपराध (CaW&G), जो निस्संदेह महिलाओं की समान भागीदारी और समाज के लिये योगदान की राह में सबसे प्रकट बाधा है।
FLFPR को प्रभावित करने वाले महिला विरुद्ध अपराध
- NCRB रिपोर्ट आधारित अध्ययन: एक अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित भारत में अपराध के आँकड़ों के विश्लेषण से उन अपराधों का आकलन किया गया जो महिलाओं को कार्य पर जाने से रोकते हैं और सुरक्षा की कमी की धारणा को सुदृढ़ करते हैं।
- यह पाया गया कि वर्ष 2011-17 के बीच जहाँ अखिल भारतीय FLFPR में 8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, वहीं CaW&G की दर तीन गुना बढ़ती हुई 57.9% हो गई।
- व्यपहरण एवं अपहरण (Kidnapping and Abduction- K&A) और यौन उत्पीड़न में तीन गुना वृद्धि हुई, जबकि बलात्कार एवं छेड़छाड़ की दरों में दोगुना वृद्धि हुई।
- FLFPR व्युत्क्रमानुपाती है CaW&G में वृद्धि के: इसी अध्ययन में पाया गया कि FLFPR एवं CaW&G की दर और FLFPR एवं K&A दर के बीच नकारात्मक सह-संबंध है।
- ये दोनों ऐसे ठोस कारक माने जा सकते हैं जो महिलाओं की इच्छा और कार्य के लिये बाहर निकलने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
- ये महिलाओं को कार्यबल में भाग लेने से हतोत्साहित करते हैं।
- ये दोनों ऐसे ठोस कारक माने जा सकते हैं जो महिलाओं की इच्छा और कार्य के लिये बाहर निकलने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
- FLFPR और CaW&G पर राज्य संबंधी आँकड़े: हिमाचल प्रदेश, मेघालय, छत्तीसगढ़ और सिक्किम राज्य अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में अपराध की कम दर के मुकाबले उच्च FLFPR का प्रदर्शन करते हैं।
- बिहार, दिल्ली, असम और त्रिपुरा—जिन राज्यों में FLFPR सबसे कम था, उनमें ही अपराध दर सबसे अधिक थी।
- वर्ष 2011-17 की अवधि में बिहार के CaW&G दर में तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई, जबकि इसी अवधि में इसकी FLFPR घटकर लगभग आधी रह गई। बिहार का FLFPR भारत में सबसे न्यूनतम है।
- त्रिपुरा में भी FLFPR में भारी गिरावट (24% अंक) के साथ-साथ CaW&G में 51% की वृद्धि देखी गई (वर्ष 2017)।
- दिल्ली के CaW&G में चार गुना वृद्धि हुई और यह 31% से बढ़कर 133% हो गई, जबकि इसके FLFPR में मामूली गिरावट आई।
- असम के CaW&G में भी चार गुना वृद्धि हुई और FLFPR में गिरावट दर्ज की गई।
- बिहार, दिल्ली, असम और त्रिपुरा—जिन राज्यों में FLFPR सबसे कम था, उनमें ही अपराध दर सबसे अधिक थी।
आगे की राह
- सुरक्षात्मक दृष्टिकोण: जबकि महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा उन कई बाधाओं में से एक है जो उनकी गतिशीलता को प्रतिबंधित करती है और उनकी श्रम बल भागीदारी की संभावना को कम करती है, इस चुनौती से निपटने के लिये राज्य, संस्थानों, समुदायों और परिवारों को संलग्न करने वाले एक व्यापक तंत्र की आवश्यकता है।
- महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध अपराध को रोकने के लिये नीतियों और हस्तक्षेपों के निर्माण में सेवाओं, दृष्टिकोण, समुदाय-केंद्रीयता, महिलाओं के सशक्तीकरण, परिवहन एवं अवसंरचना और युवा हस्तक्षेप पर केंद्रित 'सुरक्षा' ढाँचे को अपनाना एक महत्त्वपूर्ण तत्व हो सकता है।
- महिलाओं को घर में ही बनाए रखने के प्रतिबंधात्मक सामाजिक मानदंडों को तोड़ना: बाह्य हिंसा पर सार्वजानिक ध्यान न केवल महिलाओं के रोज़गार के संदर्भ में भ्रामक है, बल्कि इसके बहाने महिलाओं को घर में ही बनाए रखना इस वस्तुस्थिति पर भी पर्दा डालता है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में बड़ा योगदान उन लोगों का भी है जो उनसे परिचित (जैसे पति, साथी, परिवारजन, मित्र) होते हैं।
- महिलाओं को घर के अंदर बंद रखना कई कारणों से बिल्कुल गलत दृष्टिकोण है; सबसे अधिक इसलिये कि यह अपने घोषित उद्देश्य (यानी उन्हें हिंसा से बचाना) में ही विफल रहता है।
- महिलाओं की आवश्यकता यह नहीं है कि सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर में अवरुद्ध रखा जाए, बल्कि एक बेहतर नीतिगत दृष्टिकोण और रोज़गार अवसरों तक पहुँच तथा आत्मनिर्भरता की आवश्यकता है, जो उन्हें घर के अंदर और बाहर दोनों जगह सुरक्षित बनाएगा।
- महिलाओं की भागीदारी के महत्त्व को समझना: लैंगिक समानता हासिल करना वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिवर्ष 770 बिलियन डॉलर का योगदान कर सकता है। यह अवसर मुख्य रूप से श्रम बल में महिलाओं की अधिकाधिक भागीदारी पर निर्भर करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का आकलन है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 27% अधिक होगा यदि आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भी पुरुषों के समान संख्या में भागीदारी होगी।
- लैंगिक असमानता को दूर करने का कोई त्वरित उपचार नहीं हैं; इसके लिये भारत में लैंगिक मानदंडों में उल्लेखनीय परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
उच्च शिक्षा में महिलाओं की संख्या में वृद्धि का स्वतः यह अर्थ नहीं है कि महिला श्रम बल की भागीदारी में भी वृद्धि हुई है। प्रतिबंधात्मक सामाजिक मानदंड, अवसरों की कमी और यौन अपराधों का शिकार होने का भय अभी भी महिलाओं के लिये देश की अर्थव्यवस्था में सक्रिय भागीदार बनने की राह में बड़ी बाधा उत्पन्न करते हैं। महिला सशक्तीकरण का एकमात्र समाधान शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता ही है।
अभ्यास प्रश्न: महिला श्रम बल भागीदारी दर को बाधित करने वाले कारकों की चर्चा कीजिये और उन आवश्यक उपायों के सुझाव दीजिये जिनसे इन बाधाओं को दूर किया जा सकता है।