शासन व्यवस्था
पूर्वोत्तर भारत
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में पूर्वोत्तर भारत में विकास की चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
इस वित्त वर्ष के लिये केंद्र सरकार ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र के आठ राज्यों हेतु 50 हज़ार करोड़ रुपए के बजट का आवंटन किया है। यह राशि पिछले वर्ष की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक है। अपनी विभिन्न भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उत्तर-पूर्व क्षेत्र प्रायः विकास के मामले में भारत के अन्य भागों की अपेक्षा अधिक पिछड़ा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र के प्रति सरकार की नीतियों में बदलाव देखने को मिला है। इस क्षेत्र में अभी भी कई ऐसे स्थान हैं जहाँ किसी प्रकार की कनेक्टिविटी की सुविधा मौजूद नहीं है। कनेक्टिविटी एवं अवसंरचना की कमी के कारण यह क्षेत्र उदारीकरण के बाद के लाभों से वंचित रहा है। दो दशक पूर्व ही भारत सरकार द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास गतिविधियों को बल दिया गया। जिसके परिणाम अब दिखने लगे हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र- इतिहास एवं अवस्थिति
आज़ादी से पूर्व यह क्षेत्र मुख्य रूप से असम एवं बंगाल क्षेत्र में विभाजित था। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र में असम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों से अलग होकर धीरे-धीरे सात राज्यों का गठन हुआ। इन राज्यों के उद्भव ,में प्रमुख रूप से राजनीतिक एवं स्थानीय समुदायों ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय समुदाय जैसे- नगाओं की मांग पर नगालैंड राज्य का गठन किया गया। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में इन सात राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम को भी शामिल किया जाता है। यद्यपि सिक्किम मूल रूप से भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन वर्ष 1975 में सिक्किम की इच्छा के अनुरूप इसको भारत में शामिल कर लिया गया।
इसके उत्तर में चीन एवं भूटान, पूर्व की ओर म्याँमार तथा दक्षिण में बांग्लादेश अवस्थित है। इसकी अवस्थिति भू-सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अन्य हिस्सों से यह क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जिससे कनेक्टिविटी इस क्षेत्र के लिये प्रमुख समस्या है। साथ ही यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है तथा यहाँ विकास से जुड़ी गतिविधियाँ भी सीमित ही रही हैं। इसके अतिरिक्त भौगोलिक स्थिति तथा स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं अलगाववाद भी इसके विकास में बाधक बना रहा।
पूर्वोत्तर का महत्त्व
आर्थिक विकास का असमान दृष्टिकोण तथा किसी विशेष क्षेत्र की पिछड़ी स्थिति उस देश की आर्थिक संवृद्धि में बाधक बन सकती है। इसके अतिरिक्त भारत के पश्चिम में पाकिस्तान की उपस्थिति मध्य-पूर्व में भारतीय हितों के प्रसार को बाधित करती है। इसकी पूर्ति भारत पूर्व के देशों से कर सकता है। इसी संदर्भ में भारत ने 90 के दशक में ‘लुक ईस्ट’ नीति को बल दिया था जिसे बदल कर अब मौजूदा सरकार ने ‘एक्ट ईस्ट’ कर दिया है। भारत के लिये न सिर्फ यह पूर्व के देशों से जुड़ने का एक द्वार है बल्कि इसके माध्यम से इस क्षेत्र के विकास पर भी बल दिया जा सकता है। भारत ने बांग्लादेश, भूटान तथा म्याँमार के साथ कुछ समझौतों को अंजाम दिया है जिसके माध्यम से यह क्षेत्र आर्थिक संवृद्धि की ओर बढ़ सकता है।
प्रायः ऐसा माना जाता है कि कोई क्षेत्र यदि आर्थिक रूप से पिछड़ा है एवं उसका सीमित विकास ही हो सका है तो ऐसे स्थान पर उग्रवाद एवं अन्य समस्याओं को बल मिलता है। इसी कारण स्वायत्तता एवं विकासात्मक मुद्दों के चलते यह क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही से ही उग्रवाद एवं अलगाववाद से ग्रसित रहा है। विभिन्न सरकारी प्रयासों के चलते इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो सकी है। मणिपुर के कुछ क्षेत्र अब भी उग्रवादी गतिविधियों से ग्रस्त हैं। पूर्वोत्तर में कानून व्यवस्था सुधरने के पश्चात् इस क्षेत्र में अवसंरचनात्मक सुधार पर बल दिया जा रहा है, अवसंरचना निर्माण के बाद यह क्षेत्र भी आर्थिक विकास की दौड़ में शामिल हो सकेगा। पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से समृद्ध है। पेट्रोलियम एवं खनिज संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ इस क्षेत्र का पर्यावरण पर्यटन के लिये अनुकूल माहौल उपलब्ध करता है। यदि उपर्युक्त संसाधनों के दोहन हेतु अवसंरचना का विकास किया जाता है तो यह क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनने की भी क्षमता रखता है।
चुनौतियाँ
यद्यपि पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य (सिक्किम को छोड़कर) भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के साथ संबद्ध हैं फिर भी इस क्षेत्र में बहुत अधिक में विविधता मौजूद है। ब्रह्मपुत्र एवं बराक घाटी (जहाँ बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं) के अलावा अन्य क्षेत्रों में लोगों की आबादी बहुत कम है। अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में जनसंख्या घनत्व 13 है, तो असम में यह घनत्व 300 के करीब है। भारत में निवास करने वाले 635 जनजातीय समुदायों में से 200 इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। इन जनजातियों की भाषा एवं बोलियाँ तथा सांस्कृतिक विश्वास अलग अलग हैं। इसके अतिरिक्त ये समुदाय अपनी संस्कृति के प्रति तीव्र लगाव रखते हैं जिससे विभिन्न प्रकार की समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पर्याप्त अवसंरचना की कमी को माना जा सकता है। इस क्षेत्र में ऊर्जा, सड़क, रेल, नदी मार्गों एवं हवाई अड्डों का उचित विकास नही हो सकता है। बड़ी संख्या में नदियों एवं पहाड़ी क्षेत्र के कारण अवसंरचना निर्माण में न सिर्फ अधिक समय लगता है बल्कि अधिक खर्चीला भी है। इस क्षेत्र के किसानों को (न सिर्फ देश के बाहर बल्कि देश के भीतर भी) उपयुक्त बाज़ार उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण यहाँ कृषक गतिविधियाँ भी सीमित रूप से ही विकसित हो सकी हैं।
जिस प्रकार देश के अन्य भागों में शासन में सुधार की आवश्यकता है वैसे ही इस क्षेत्र में भी सुधार किया जाना ज़रूरी है। किसी भी योजना को लागू करने और उसकी सफलता के लिये आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर, जैसे कि पंचायत एवं ग्रामीण स्तर से राज्य स्तर तक अभिशासन में सुधार किया जाए।
उपाय
ज़मीनी स्तर पर नियोजन के माध्यम से लोगों को सशक्त करना, इसके लिये शासन और विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। इससे लोगों की ज़रूरतों को समझने में आसानी होगी तथा उनके लिये उपयोगी कार्यकम बनाना भी आसान होगा जिससे इस क्षेत्र में विकास का एक माहौल तैयार हो सकेगा।
कृषिगत उत्पादकता को सुधार कर तथा गैर-कृषिगत रोज़गार के अवसरों का निर्माण कर ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देना।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूद संसाधनों पर आधारित विकास को बढ़ावा देना। यह क्षेत्र नदी तंत्र से घिरा हुआ एवं पहाड़ी होने के कारण जलविद्युत की अत्यधिक क्षमता रखता है। इसके अतिरिक्त पर्यटन, कृषि से जुड़े प्रसंस्करण उद्योग, कीटपालन तथा इस क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों पर आधारित अवसंरचना में निवेश आदि पर भी बल देना आवश्यक है।
नवाचार एवं कौशल शिक्षा के माध्यम से उद्यमिता के लिये माहौल तैयार करना तथा योजना एवं कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिये क्षमता निर्माण करना।
सड़क, रेलवे, अंतर्देशीय जलमार्ग, वायु परिवहन सेवाओं, जल विद्युत, कोयला, जैव-ईंधन और संचार नेटवर्क के माध्यम से बुनियादी ढाँचे को संवर्द्धित करना। सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के मणिपुर को म्याँमार होते हुए थाईलैंड से जोड़ने की त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना पर पहले ही निर्माण कार्य किया जा रहा है। भारत के अन्य भागों एवं पूर्वोत्तर के मध्य बांग्लादेश उपस्थित है, इससे प्रत्यक्ष कनेक्टिविटी प्रदान करने में बाधा उत्पन्न होती है। भारत द्वारा बांग्लादेश से सड़क, रेलवे तथा अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से ट्रांज़िट की सुविधा प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। कालादान परियोजना के ज़रिये भी भारत, म्याँमार के सितवे बंदरगाह से पूर्वोत्तर को जोड़ने पर कार्य कर रहा है। इस प्रकार की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ न सिर्फ इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देंगी बल्कि पूर्वोत्तर के समग्र विकास में भी सहायक होंगी।
उपर्युक्त कार्यों को बल देने के लिये अत्यधिक निवेश की आवश्यकता होगी, इस निवेश की पूर्ति सरकार बजट के माध्यम से तथा निजी निवेश को आकर्षित करके कर सकती है। आरंभिक स्तर पर यह कोष केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा दिया जाना चाहिये। इस निवेश से जब इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार प्रदर्शित होने लगेगा तब निजी क्षेत्र भी इस ओर आकर्षित होगा।
पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी विकास
केंद्र सरकार ने पिछले चार वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पर विशेष ध्यान दिया है। इस क्षेत्र में रेल, सड़क, वायु और अंतर्देशीय जलमार्ग कनेक्टिविटी में सुधार पर ज़ोर दिया गया है। भारत सरकार की 'एक्ट ईस्ट' नीति (Act East Policy) पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने पर केंद्रित है और सड़क, रेल, वायु, टेलिकॉम, विद्युत और जलमार्ग आदि विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से इस कनेक्टिविटी को बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये प्रमुख सरकारी पहलों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है।
- एयरपोर्ट: सिक्किम में पाक्योंग एयरपोर्ट का उद्घाटन किया गया है। गंगटोक से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित (200 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में निर्मित) यह हवाई अड्डा समुद्र तल से 4,500 फीट की ऊँचाई पर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह देश के पाँच सबसे ऊँचे हवाई अड्डों में से एक है और इसके निर्माण में 650 करोड़ रुपए की लागत आई है। तेजू हवाई अड्डे का निर्माण कार्य पूरा होने वाला है और इसे चालू वित्त वर्ष में संचालित किये जाने की संभावना है। इससे लोअर दिबांग वैली, अंजाव, नामसाई और दिबांग वैली जैसे पड़ोसी ज़िलों से कनेक्टिविटी में सुधार होने की उम्मीद है। उम्रोई (शिलॉन्ग) हवाई अड्डे में NEC द्वारा रनवे विस्तार कार्यों को शामिल किया जाएगा, ताकि बड़े हवाई जहाज़ों को ज़मीन पर उतारा जा सके। इसी तरह गुवाहाटी में LGBI एयरपोर्ट पर विमानशाला (Hangar) आवंटित करने के लिये काम चल रहा है।
- सड़क परियोजनाएँ: NEC ने 10,500 किलोमीटर लंबी सड़कों के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें अंतर-राज्यीय और आर्थिक महत्त्व की सड़कें शामिल होंगी। नॉर्थ-ईस्ट रोड सेक्टर डेवलपमेंट स्कीम (North-East Road Sector Development Scheme) नामक एक नई योजना शुरू की गई है जो सड़कों और पुलों के लिये रणनीतिक परियोजनाओं को संचालित करेगी। देश का एक बड़ा राज्य होने के बावजूद अरुणाचल प्रदेश में सड़क घनत्व सबसे कम है। सरकार ट्रांस अरुणाचल राजमार्ग परियोजना (Trans Arunachal Highway Project) कार्य को तेज़ी से करने की योजना बना रही है।
- रेल परियोजनाएँ: पूर्वोत्तर राज्यों के लिये 20 प्रमुख रेलवे परियोजनाओं के माध्यम से एक रेलवे लिंक प्रदान करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। बैराबी और सरांग को जोड़ने वाली एक ब्रॉडगेज रेलवे लाइन का निर्माण प्रगति पर है जो वर्ष 2020 तक पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों को जोड़ेगी। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे एक एक्सप्रेस हाईवे परियोजना, जिसकी लागत 40,000 करोड़ रुपए है और यह 1,300 किलोमीटर तक फैली हुई है, से असम में कनेक्टिविटी संबंधित मुद्दों के हल होने की उम्मीद है। बेहतर सड़क, रेल और हवाई संपर्क से पूर्वोत्तर भारत को प्रगति की ओर एक बड़ी छलांग लगाने में मदद मिलेगी।
- संचार अवसंरचना: सरकार ने पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी, कम्युनिकेशन तथा कॉमर्स (Three-C) पर अधिक बल देने की बात कही है। डाकघरों का नेटवर्क, टेलीफोन एक्सचेंज और टेलीफोन कनेक्शन संचार के लिये प्रमुख बुनियादी ढाँचे हैं। सरकार ने पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों में दूरसंचार कनेक्टिविटी में सुधार के लिये 15,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की है। ‘पूर्वोत्तर क्षेत्रों में भारत नेट रणनीति’ के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के 4240 ग्राम पंचायतों को दिसंबर 2018 तक सैटेलाइट कनेक्टिविटी द्वारा ब्रॉडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
पूर्वोत्तर में औद्योगिक विकास
पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों में प्राकृतिक संसाधन, औद्योगीकरण के स्तर तथा ढाँचागत सुविधाओं के संबंध में काफी भिन्नता है। चार रिफाइनरीज और दो पेट्रोकेमिकल परिसरों को छोड़कर इस क्षेत्र में बड़े उद्योग नदारत हैं। औद्योगिक क्षेत्र मुख्य रूप से असम में चाय, पेट्रोलियम (कच्चे तेल), प्राकृतिक गैस आदि पर केंद्रित है तथा पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में खनन, लकड़ी चीरने का कारखाना तथा इस्पात निर्माण इकाइयाँ देखने को मिलती हैं। इस क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन होना बाकी है। औद्योगिक रूप से NER (North-Eastern Region) देश में सबसे पिछड़ा क्षेत्र बना हुआ है और असम को छोड़कर इस क्षेत्र के राज्यों में औद्योगिक विकास बहुत कम है। असम पारंपरिक चाय, तेल और लकड़ी आधारित उद्योगों के कारण थोड़ी बेहतर स्थिति में है। मेघालय में भी लघु और मध्यम उद्योगों की स्थापना के परिणामस्वरूप कुछ हद तक विकास हुआ है।
अन्य कार्य
- राष्ट्रीय बाँस मिशन के माध्यम से स्थानीय स्तर पर लोगों को रोज़गार एवं आर्थिक लाभ उपलब्ध करना।
- पूर्वोत्तर राज्य में खेलों के प्रति अधिक जागरूकता एवं उत्साह देखा जाता है। इसको ध्यान में रखते हुए मणिपुर में सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है।
- सरकार ने पूर्वोतर भारत में डिजिटल नार्थ-ईस्ट विज़न 2022 जारी किया है। इसके माध्यम से सरकार डिजिटल तकनीक का उपयोग पूर्वोत्तर के लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने तथा उनके जीवन को सुगम बनाने के लिये करना चाहती है, साथ ही इसके माध्यम से समावेशी तथा सतत् विकास को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
- सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये भी कोष आवंटन में वृद्धि की है। पूर्वोत्तर भारत का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटन के लिये अत्यधिक संभावनाएँ व्यक्त करता है।
निष्कर्ष
पूर्वोत्तर क्षेत्र विभिन्न कारणों से भारत के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा पिछड़ा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कई स्तरों पर ( अवसंरचना, विकास, शांति) सुधार देखा जा रहा है। इस क्षेत्र की कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ जितनी चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं उतनी ही नवीन संभावनाओं (प्राकृतिक संसाधन) को भी प्रकट करती हैं। यदि विभिन्न चुनौतियों को एक रोडमैप के ज़रिये दूर करने का प्रयास किया जाता है, तो न सिर्फ इससे पूर्वोत्तर के लोगों के जीवन में सुधार आएगा बल्कि भारत के आर्थिक विकास में भी यह क्षेत्र सहयोग दे सकेगा। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की सफलता भी इस क्षेत्र के विकास पर टिकी है। एक्ट ईस्ट नीति के साथ-साथ भारत बिम्सटेक तथा आसियान में भी अपनी भूमिका बढ़ाना चाहता है, इसके लिये भी इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इस क्षेत्र के माध्यम से ही भारत, पूर्वी एशिया में अपनी भौतिक पहुँच बढ़ा सकता है जिससे इस क्षेत्र के विकास के साथ-साथ भारत के दीर्घकालीन भू-राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की पूर्ति भी संभव हो सकेगी।
प्रश्न: आज़ादी के बाद से ही पूर्वोत्तर भारत के विकास की गति रुग्ण रही है लेकिन वर्तमान में पूर्वोत्तर में कुछ बदलाव दिखाई दे रहे हैं। इन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये तथा उन कारकों की भी चर्चा कीजिये जिसके कारण इस क्षेत्र का विकास बाधित रहा है।