एडिटोरियल (03 Apr, 2020)



राष्ट्रीय राहत कोष: उपयोगिता व महत्त्व

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में राष्ट्रीय राहत कोष और उसकी उपयोगिता व महत्त्व से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

मानव सृष्टि के सृजन से लेकर वर्तमान तक विभिन्न आपदाओं का साक्षी रहा है। आपदाओं का रूप राष्ट्रीय रहा हो या अंतर्राष्ट्रीय, मानव जाति ने हमेशा इससे निपटने में सक्रिय भूमिका निभाई है। मानव इस समय भी कोरोनावायरस रूपी वैश्विक आपदा से निपटने में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है। मानव जाति अपना यह अमूल्य योगदान यथा: डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी, आवश्यक वस्तुओं को ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने वाले कर्मियों के रूप में अपनी सेवाएँ देकर कर रही है। इन लोगों में एक वर्ग ऐसा भी है जो इस युद्ध में प्रत्यक्ष योगदान न कर अप्रत्यक्ष रूप से अपने घरों में रहकर सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए इस वैश्विक आपदा से निपटने में राष्ट्रीय राहत कोष में अपनी क्षमतानुसार दान कर रहा है। 

विदित है कि कोरोना वायरस एक वैश्विक महामारी है। आज विश्व के अधिकांश देश इस महामारी से निपटने की जद्दोजहद कर रहे हैं, परिणामस्वरूप विभिन्न देशों ने इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये 

लॉकडाउन की व्यवस्था को अपनाया है। लॉकडाउन के कारण देश के भीतर होने वाले आर्थिक संव्यवहार और सरकार को प्राप्त होने वाला राजस्व दोनों में ही गिरावट हुई है। इस विकट परिस्थिति से निकलने के लिये प्रधानमंत्री ने PM CARES” नामक कोष की स्थापना की है और लोगों से अधिक से अधिक दान देने की अपील भी की है।

इस आलेख में आपदाओं से निपटने के संदर्भ में ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ की भूमिका व उसकी पृष्ठभूमि पर विमर्श करने के साथ ही ‘प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष’ (PM Citizens Assistance and Relief in Emergency Situations- PM CARES) के गठन की आवश्यकता पर भी समीक्षा करने का प्रयास किया जाएगा।

क्या है प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष?  

  • पाकिस्तान से आए विस्थापित लोगों की मदद करने के उद्देश्य से जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता द्वारा दिये गए अंशदान से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी।
  • प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अध्यक्ष हैं तथा अन्य अधिकारी/कर्मचारी अवैतनिक आधार पर इसके संचालन में उनकी सहायता करते हैं।
  • ध्यातव्य है कि यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन संसद द्वारा नहीं किया गया है। इस कोष की निधि को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट के रूप में माना जाता है और इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री अथवा नामित अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रयोजनों के लिये किया जाता है।
  • वर्ष 1985 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को प्रधानमंत्री कार्यालय के पूर्ण नियंत्रण में ले लिया गया।  
  • वर्ष 1985 से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से धन का आवंटन व लाभार्थी के चयन का अधिकार प्रधानमंत्री को प्राप्त है।     

कार्य 

  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का उपयोग प्रमुखत: बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है।
  • इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिये भी इस कोष से सहायता दी जाती है।
  • कोष में संचित समग्र निधि का निवेश अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों तथा अन्य संस्थाओं में विभिन्न रूपों में किया जाता है। कोष से धनराशि प्रधानमंत्री के अनुमोदन से ही वितरित की जाती है।
  • नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का अंकेक्षण नहीं किया जा सकता है।  
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को आयकर अधिनियम,1961 की धारा 10 और 139 के तहत आयकर रिटर्न भरने से छूट प्राप्त है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष ने गुजरात भूकंप, सुनामी, बुंदेलखंड सूखा, मुंबई आतंकवादी हमला, जम्मू-कश्मीर बाढ़, उत्तराखंड बाढ़, चेन्नई व केरल में आई बाढ़ में राज्यों को आर्थिक सहायता पहुँचाई है।  

स्वीकार किये जाने वाले अंशदान के प्रकार 

  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किसी व्यक्ति और संस्था द्वारा केवल स्वैच्छिक अंशदान ही स्वीकार किये जाते हैं।
  • सरकार के बजट स्रोतों से अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बैलेंस शीट्स से मिलने वाले अंशदान स्वीकार नहीं किये जाते हैं।
  • विनाशकारी स्तर की प्राकृतिक आपदा के समय प्रधानमंत्री इस कोष में अंशदान करने हेतु अपील करते हैं। ऐसे सशर्त अनुदान जिसमें दाता द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि अनुदान की राशि किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिये है, स्वीकार नहीं किये जाते हैं।
  • वर्ष 2019 के अंत तक प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 3800 करोड़ रुपये का फंड शेष था, जो कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से निपटने में पर्याप्त नहीं है। इसलिये इस महामारी से निपटने के लिये प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष की स्थापना की गई है।

प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष

  • भारत मे कोरोना वायरस व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के फैलने से पैदा होने वाली स्थितियों से निपटने के लिये प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष अर्थात PM CARES नामक एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया है। प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों और काॅरपोरेट घरानों से इस फंड में दान करने की अपील की और कहा कि इसमें जो पैसा आएगा, उससे कोरोना वायरस के खिलाफ चल रहे युद्ध को मज़बूती मिलेगी। 
  • प्रधानमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और इसके सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री को शामिल किया गया है। 
  • इस ट्रस्ट में विज्ञान, स्वास्थ्य, विधि और सार्वजनिक सेवा जैसे क्षेत्रों के विख्यात व्यक्तियों को बतौर मनोनीत सदस्य नियुक्त किया गया है। 
  • यह ट्रस्ट धन का आवंटन और लाभार्थियों के चयन का निर्णय ट्रस्ट के सदस्य व मनोनीत सदस्य के सामूहिक निर्णय के आधार पर करता है। 
  • इस ट्रस्ट में भी सरकार के बजट स्रोतों अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बैलेंस शीट्स से मिलने वाले अंशदान स्वीकार नहीं किये जाते हैं।
  • कंपनियों द्वारा किया गया दान कंपनी अधिनियम,2013 के अधीन कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत वर्गीकृत किये जाएँगे।
  • PM CARES ट्रस्ट में पदेन सदस्यों के साथ मनोनीत सदस्यों की उपस्थिति इसे एक विकेंदीकृत निकाय बनाकर जवाबदेह बनाती है।  
  • इस ट्रस्ट में संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS Fund) के द्वारा संसद सदस्य भी धन का योगदान कर सकते हैं। 

संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना

  • MPLADS 23 दिसंबर, 1993 को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू की गई थी। 
  • यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा फरवरी 1994 में पहली बार जारी किये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार संचालित की जाती है एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा इस योजना को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को हस्तांतरित करने के बाद दिसंबर 1994 में संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये गए।
  • इन दिशा-निर्देशों में फरवरी 1997, सितंबर 1999, अप्रैल 2002, नवंबर 2005, अगस्त 2012 और मई 2014 में पुनः संशोधन किये गए।
  • दिशा-निर्देशों को संशोधित करते समय संसद सदस्यों, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना से संबंधित राज्यसभा और लोकसभा की समितियों, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक तथा तत्कालीन योजना आयोग (अब नीति आयोग) के कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन, सभी हितधारकों के सुझावों और विगत वर्ष के कार्य अनुभवों को ध्यान में रखा गया है।

उद्देश्य 

  • इसका उद्देश्य संसद सदस्यों को ऐसा तंत्र उपलब्ध कराना है जिससे वे स्थानीय लोगों की ज़रूरतों के अनुसार स्थायी सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण और सामुदायिक बुनियादी ढाँचा सहित उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये विकास कार्यों की सिफारिश कर सकें।
  • योजना के अंतर्गत ऐसे कार्य शामिल किये जाते है जो विकासमूलक, स्थानीय ज़रूरतों पर आधारित, जनता के उपयोग के लिये हमेशा सुलभ हों। इस योजना के तहत राष्ट्रीय तौर पर प्राथमिक कार्यों को वरीयता दी जाती है, जैसे- पेयजल उपलब्ध कराना, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, सड़क इत्यादि।
  • इस योजना के अंतर्गत जारी की गई निधि अव्यपगत होती है अर्थात यदि कोई देय निधि किसी वर्ष विशेष में जारी नहीं होती, तो उसे आगे के वषों में पात्रता के अनुसार आवंटित राशियों में जोड़ दिया जाता है। इस समय, प्रति सांसद/निर्वाचन-क्षेत्र के लिये वार्षिक पात्रता 5 करोड़ रुपए है।
  • इस योजना के तहत संसद सदस्यों की भूमिका संस्तुतिपरक है। वे संबंधित ज़िला प्राधिकारियों को अपनी  पसंद के कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं जो संबंधित राज्य सरकार की स्थापित कार्यविधियों का पालन करते हुए इन कार्यों को कार्यान्वित करते है।

आलोचना के बिंदु  

  • भारत में ट्रस्ट, भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के तहत काम करते हैं किसी भी धर्मार्थ ट्रस्ट के लिये  यह आवश्यक होता है कि उसकी एक ट्रस्ट डीड (न्यास विलेख) बने जिसमें इस बात का स्पष्ट जिक्र होता है कि वह किन उद्देश्यों के लिये बना है, उसकी संरचना क्या होगी और वह कौन-कौन से काम किस ढंग से करेगा? फिर इसका पंजीकरण सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में कराना होता है
  • PM CARES ट्रस्ट के विलेख, उसके कानून व नियम तथा इसके पंजीकरण संबंधी  जानकारियाँ सार्वजनिक नहीं की गई हैं। 
  • आलोचकों के एक वर्ग का मानना है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की उपस्थिति के बावज़ूद PM CARES नामक नए ट्रस्ट की स्थापना का औचित्य अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है। 
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का क्रियान्वयन प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा किया जा रहा है, जबकि PM CARES ट्रस्ट का संचालन किस मंत्रालय व किन अधिकारियों द्वारा किया जाएगा इस बात की कोई जानकारी नहीं है। 
  • PM CARES ट्रस्ट में विपक्ष के नेता व सिविल सोसाइटी के सदस्यों को शामिल नहीं किया गया है। 
  • PM CARES ट्रस्ट को इस क्षेत्र में कार्य करने का कोई अनुभव नहीं है परिणामस्वरूप ज़मीनी स्तर पर कार्य करते समय इसे व्यवहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 

निष्कर्ष

इस वैश्विक संकट की घड़ी में सर्वप्रथम सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए आत्मीय एकजुटता प्रदर्शित करने की आवश्यकता है। नि:संदेह कोरोना वायरस के प्रसार से उपज़ी परिस्थितियों से निपटने के लिये स्थापित किये गए PM CARES ट्रस्ट में पारदर्शिता का अभाव है, परंतु इस समय सरकार को अपना पूरा ध्यान इस समस्या के निदान में लगे स्वास्थ्य कर्मियों के लिये आवश्यक चिकित्सीय उपकरणों की खरीद, अधिक से अधिक टेस्टिंग सुविधा उपलब्ध कराने व प्रभावी वैक्सीन के निर्माण की दिशा में लगाना चाहिये।

प्रश्न- प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष को स्पष्ट करते हुए बताएँ कि यह प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से किस प्रकार भिन्न है? विश्लेषण कीजिये