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एडिटोरियल

  • 02 Feb, 2022
  • 13 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ई-कॉमर्स और एमएसएमई

यह एडिटोरियल 01/02/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Amplify E-Commerce and Help All MSMEs Reach Markets Online” लेख पर आधारित है। इसमें MSMEs के ई- कॉमर्स प्लेटफॉर्म की ओर आगे बढ़ने के महत्त्व और GST से उत्पन्न चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है

संदर्भ

कोविड-19 महामारी हमारे जीवन, अर्थव्यवस्था, मनोरंजन, शिक्षा, यात्रा आदि सभी क्षेत्रों में एक विवर्तनिक परिवर्तन का कारण बनी हुई है। कारोबार और सेवाएँ प्रौद्योगिकी पर ओर अधिक निर्भर हो गई हैं। इस संदर्भ में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) जिनका भारत की विकास यात्रा के महत्त्वपूर्ण योगदान है अभी भी उनमें धीमी गति बनी हुई है। ई-कॉमर्स मार्केट वर्तमान में न्यूनतम लागत, नवोन्मेष और निवेश पर डिजिटल रूपांतरण हेतु सर्वोत्तम संभव प्रवर्तक हैं। हालाँकि इस रूपांतरण में वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) ने MSMEs के समक्ष कई चुनोतियाँ उत्पन्न कर दी हैं। अब जब भारत आर्थिक पुनरुद्धार के लिये एक पोस्ट-कोविड रोडमैप तैयार कर रहा है तो ऐसे में एक ऐसी GST नीति विकसित करना महत्त्वपूर्ण होगा जो सेल-एवेन्यू एग्नोस्टिक (Sale-Avenue Agnostic) हो अर्थात् जो व्यवसायों के ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीकों को एकसमान आधार प्रदान करती हो।

MSMEs, ई-कॉमर्स और भारतीय अर्थव्यवस्था

  • MSMEs का योगदान:
    • सकल घरेलू उत्पाद और निर्यात में योगदान: देश के भौगोलिक विस्तार में लगभग 36.1 मिलियन इकाइयों के साथ MSMEs विनिर्माण संबंधी सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 6.11% और सेवा गतिविधियों संबंधी सकल घरेलू उत्पाद के 24.63% का योगदान करते हैं।
      • इनका भारत से कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान हैं। 
    • वृद्धि और विकास में योगदान: MSMEs ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों के लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान कर समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं।
    • ये नवोदित उद्यमियों को रचनात्मक उत्पादों के निर्माण के अवसर प्रदान करते हैं जिससे व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहन मिलता है और विकास को गति मिलती है। हालाँकि वर्तमान में 10% से भी कम MSMEs ऑनलाइन बिक्री से संलग्न हैं और 85% MSMEs अपंजीकृत हैं।

MSMEs के लिये ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्म की ओर बढ़ना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • स्व-निर्भरता: वोकल फॉर लोकल और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विज़न को पूरा करने में ई- कॉमर्स महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
  • कारोबारियों की पहुँच का विस्तार: यह उत्पादों को देश के आंतरिक क्षेत्रों से राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँचने प्रदान करता है तथा इस प्रकार टियर 2 टियर 3 कस्बों के कारीगरों और छोटे विक्रेताओं को अपने स्थानीय क्षेत्र से बाहर ऑनलाइन उत्पाद बेचने का अवसर प्रदान करता है।
  • स्टार्ट-अप के लिये महत्त्व: आपूर्ति शृंखलाओं में निवेश के माध्यम से ई-कॉमर्स क्षेत्र MSMEs को आपूर्ति और वितरण नेटवर्क में भागीदारी करने के अवसर प्रदान करता है। यहाँ स्टार्ट-अप और युवा ब्रांड को भी राष्ट्रीय ब्रांड का निर्माण करने और वैश्विक स्तर पर पहुँच प्रदान करता है।
  • रोज़गार सृजन: एक्सेंचर (Accenture) और ट्रस्ट फॉर रिटेलर्स एंड रिटेल एसोसिएट्स ऑफ इंडिया (TRRAIN) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 13 मिलियन जनरल स्टोर्स में से केवल 10% को डिजिटाइज़ करने से देश में लगभग 3.2 मिलियन नई रोज़गार उत्पन्न हो सकते हैं।

GST से संबद्ध समस्याएँ

  • वर्तमान ढाँचे के अंतर्गत कई छोटे कारोबार GST पंजीकरण संबंधी समस्याओं के कारण ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्म तक पहुँचने में सक्षम नहीं होंगे जिससे अग्रणी वैश्विक ई-कॉमर्स मंचों द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले लाभों का उपभोक्ता द्वारा पूर्ण प्रयोग कर पाना संभव नहीं होगा।
  • ई-कॉमर्स क्षेत्र ऑनलाइन माध्यम से ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के विषय में भी समस्याग्रस्त है। ई-कॉमर्स मार्केट पर विक्रेताओं को इंट्रा-स्टेट आपूर्ति हेतु GST सीमा छूट (40 लाख रुपये की छूट) का लाभ नहीं मिल पाता है क्योंकि ऑनलाइन विक्रेताओं को कम टर्नओवर के बावजूद ‘अनिवार्य पंजीकरण’ (Compulsorily Register) शर्त को पूरा करना होता है।
  • ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से संचालित MSMEs पंजीकरण और रिटर्न की मासिक फाइलिंग जैसी बोझिल और समय लेने वाली आवधिकअनुपालन प्रक्रियाएँ GST नेटवर्क पंजीकरण को हतोत्साहित करती हैं।
  • ऑनलाइन और ऑफलाइन विक्रेताओं के लिये पंजीकरण सीमा (Registration Thresholds) की विसंगति के साथ ही जटिल GST पंजीकरण प्रक्रिया छोटे व्यवसायियों को अपने व्यवसायों का विस्तार करने हेतु ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्म की ओर बढ़ने के मार्ग में एक प्रमुख बाधा साबित हो सकती है। इससे सरकार के अप्रत्यक्ष कर राजस्व संग्रह में नुकसान भी होता है।

अन्य चुनौतियाँ

  • फिज़िकल प्रिंसिपल प्लेस ऑफ बिजनेस (PpoB): ई-कॉमर्स में ऑनलाइन सेलर्स के लिये फिज़िकल PPoB का होना अधिक व्यावहारिक स्थिति नहीं है।
    • इससे MSMEs के समक्ष ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस में पंजीकरण कराने की जटिलताएँ और बढ़ जाती हैं।
  • उपयुक्त अवसंरचना और प्रौद्योगिकी तक पहुँच का अभाव: नवीनतम स्मार्ट डिवाइस की खरीद, सर्वोत्तम इंटरनेट सेवाओं तक पहुँच, डिजिटल सिस्टम का प्रबंधन करने हेतु कुशल कर्मचारियों को बनाए रखना और भौतिक एवं डिजिटल अवसंरचना का रख-रखाव भी छोटी या नई कंपनियों के लिये एक महँगा सौदा है।
  • जागरूकता की कमी: अभी भी कई छोटे और मध्यम स्तर के उद्यम मौजूद हैं जो डिजिटल रूपांतरण के लाभों से अपरिचित हैं और अन्य ई-व्यवसायों के रूप में ग्राहककों का विश्वास जीतने में विफल हैं।

आगे की राह: 

  • MSMEs के डिजिटलीकरण पर बल देना: चूँकि भारत का आर्थिक पुनरुद्धार कमज़ोर बना हुआ है, भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र को तेज़ी से आगे बढ़ाना और MSMEs को इससे संलग्न करना एक विवेकपूर्ण कदम होगा।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम निश्चित रूप से प्रौद्योगिकी और उनकी प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण, इन्वेंट्री प्रबंधन और बाज़ार के साथ इंटरफेस के साथ या तो प्रत्यक्ष रूप से या ई-कॉमर्स पारितंत्र के माध्यम से फल-फूल सकेंगे। 
      • हमें MSMEs और भारत में फैले कारीगरों तथा किसान-उत्पादक संगठनों को सक्रिय रूप से ऑनलाइन बिक्री के लिये सक्षम करना होगा इसके साथ ही उन्हें विपणन भी सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • एक सक्षमकारी GST पारितंत्र का निर्माण करना: छोटे खुदरा विक्रेताओं को सशक्त करने और ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म को भौतिक उपस्थिति वाले कारोबारों (brick-and- mortar businesses) के लिये नुकसानदेह नहीं बनने देने की भावना के साथ MSMEs को केवल थ्रेशोल्ड मूल्य पर GST हेतु उत्तरदायी बनाया जाना चाहिये भले वे उत्पादों की बिक्री ऑफलाइन करते हों या ऑनलाइन।
    • पंजीकरण के मामले में ऑफलाइन और ऑनलाइन विक्रेताओं के बीच GST समानता लाने से देश में छोटे कारोबार मालिकों को ई-कॉमर्स पारितंत्र के साथ एकीकृत करने में सहायता मिलेगी।
    •  इसके साथ ही GST पंजीकरण की आवश्यकता के बिना छोटे ऑफलाइन विक्रेताओं को ऑनलाइन बिक्री की अनुमति देने के लिये नियमों में संशोधन से सरकार के GST एवं आयकर संग्रह में वृद्धि होगी जिससे नियंत्रण एवं पारदर्शिता बढ़ेगी और कर संग्रह की दक्षता में सुधार होगा।
  • अग्रणी टेक कंपनियों की सहायता लेना: कई प्रौद्योगिकी आधारित कंपनियाँ छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों का समर्थन करने हेतु (उनकी व्यावसायिक दक्षता और लाभप्रदता को बढ़ाकर) विशेष उपकरणों का निर्माण कर रही हैं।
    • गूगल एडवांटेज (Google Advantage) गूगल इंडिया की एक ऐसी ही पहल है जो MSMEs को बढ़ते ऑनलाइन ग्राहक आधार का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करती है।
    • गूगल माई बिज़नेस (Google My Business) को विशेष रूप से स्टार्टअप्स और MSMEs को वर्चुअल रूप से सफल होने में मदद करने हेतु विकसित किया गया है।
  • PPoB आवश्यकता को सरल बनाना: सरकार MSMEs की पहुँच के विस्तार के लिये PPoB की आवश्यकता को सरलीकृत कर सकती है जहाँ PpoB को डिज़िटल कर दिया जाए और भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं हो।
    • राज्य विशिष्ट भौतिक PPoB आवश्यकताओं की ज़रूरत को समाप्त करने से विक्रेताओं को कारोबार के एक ही राष्ट्रीय स्थान के साथ राज्य-स्तरीय GST प्राप्त करने में सुविधा होगी।

निष्कर्ष

ई-कॉमर्स ने स्पष्ट रूप से चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं के उदय में एक अभूतपूर्व भूमिका निभाई है। भारत को भी अपनी घरेलू निर्यात क्षमता के साथ तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिये। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की पूर्ति के लिये भारत सरकार को डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना चाहिये। समावेशिता को इस तरह बढ़ावा दिया चाहिये जिससे MSMEs को बढ़ावा दिया जा सके। GST में समानता सुनिश्चित करनी चाहिये और छोटे व्यवसायों को ऑनलाइन पारितंत्र में उद्यम करने तथा अपने संचालन में विविधता लाने हेतु सशक्त करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: कारोबार के पारंपरिक ऑफलाइन तरीकों से ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्म की ओर MSMEs के आगे बढ़ने से संबद्ध समस्याओं पर चर्चा कीजिये।


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