बाँध सुरक्षा: संभावनाएँ और चुनौतियाँ
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में पुराने होते बाँधों की चुनौतियाँ व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (The United Nations University- UNU) द्वारा ‘पुरानी होती जल अवसंरचनाएँ: एक उभरता हुआ वैश्विक जोखिम’ नामक शीर्षक से प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक विश्व की अधिकांश आबादी 20वीं शताब्दी में बने हज़ारों बड़े बाँधों के अनुप्रवाह की दिशा में रह रही होगी। इनमें से बहुत से बाँध भारत में हैं और अपने निर्धारित जीवनकाल के अंतिम वर्षों या उससे भी पुराने होने के बावजूद उनका संचालन जरी है, जो जन-धन के लिये भारी जोखिम उत्पन्न करता है।
बाँधों के पुराने होने के प्रमुख संकेतों में बाँध की विफलता के मामलों में वृद्धि, बाँध की मरम्मत और रखरखाव की लागत में उत्तरोत्तर वृद्धि, जलाशय के अवसादन में वृद्धि और बाँध की कार्यक्षमता और प्रभावशीलता में कमी आदि शामिल हैं।
बड़े बाँधों के निर्माण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। देश में अब तक निर्मित कुल 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 वर्ष की आयु तक पहुँच चुके हैं, और कुछ 120 वर्षों से अधिक पुराने हैं।
इसके अतिरिक्त सैकड़ों मध्यम तथा छोटे बाँधों के संदर्भ में यह जोखिम और भी चिंताजनक है क्योंकि इन बाँधों की शेल्फ लाइफ (Self Life) बड़े बाँधों की अपेक्षा कम होती है।
भारत के पुराने हो रहे बाँधों से जल सुरक्षा और किसानों की आय के प्रभावित होने के साथ ही बाढ़ के मामलों में भी वृद्धि की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं। अतः इस संकट से निपटने हेतु तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
पुराने होते बाँधों की प्रमुख चुनौतियाँ और इससे संबंधित मुद्दे:
- जल संग्रहण क्षमता में गिरावट: बाँध जैसे-जैसे पुराने होते जाते हैं इनके जलाशयों में अवसादन के कारण अत्यधिक मिट्टी जमा होने लगती है। ऐसे में भारत के अधिकांश बाँधों की भंडारण क्षमता को वर्ष 1900 और 1950 के दशक के समान नहीं माना जा सकता है।
- हालाँकि भारतीय बाँधों के जलाशयों की भंडारण क्षमता में पूर्वानुमानित दर से अधिक तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है। अगले कुछ ही दशकों में इन जलाशयों के विलुप्त होने की संभावना है।
- वर्ष 2003 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के प्रतिष्ठित भाखड़ा बाँध में गाद जमा होने की दर पूर्व में अनुमानित दर की तुलना में 139.86% अधिक थी।
- इस दर के चलते वर्तमान में भाखड़ा बाँध के मात्र 47 वर्षों तक कार्य करने की उम्मीद है, जो वस्तुतः पूर्व के 88 वर्षों के मूल अनुमान का आधा है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बाढ़ और अन्य चरम पर्यावरणीय घटनाओं की आवृत्ति तथा गंभीरता में वृद्धि एक बाँध की अधिकतम क्षमता को प्रभावित कर सकती है एवं यह एक बाँध के पुराने होने की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है।
- अतः यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि बाढ़ के मामलों में वृद्धि के साथ ही जलवायु परिवर्तन बाँधों के पुराने होने की प्रक्रिया को बढ़ा सकता है।
- संरचनात्मक रूप से कमज़ोर बाँध: जलाशय अवसादन पर हुए लगभग सभी वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में अधिकांश जलाशयों के निर्माण में अवसादन विज्ञान का पूरी तरह पालन नहीं किया गया है।
- इसके साथ ही कोई भी भंडारण ढाँचा (कंक्रीट, ईंट या मिट्टी से बना) समय के साथ संरचनात्मक रूप से कमज़ोर हो सकता है। भारत में कई पुराने बाँधों के मामले में ऐसा ही हुआ है।
- सूचना का अभाव: समय के साथ बड़े बाँधों की भंडारण क्षमता का ह्रास बाँध की आयु के बढ़ने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
- हालाँकि भारतीय बाँधों के संदर्भ में इस जानकारी को बहुत ही सीमित स्तर पर प्रलेखित किया जाता है, जो देश में जल संकट की गंभीरता को सही ढंग से समझने के मामले में एक अंध बिंदु (Blindspot) के रूप में कार्य करता है।
पुराने होते बाँधों के दुष्परिणाम:
- खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: जलाशयों में जब मिट्टी जमा होने लगती है, तो उस स्थिति में जल की आपूर्ति ठप हो जाती है। ऐसे में समय बीतने के साथ-साथ फसल क्षेत्र को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा में कमी आनी शुरू हो सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप सकल सिंचित क्षेत्र का आकार सिकुड़ जाता है और यह क्षेत्र वर्षा अथवा भू-जल पर निर्भर हो जाता है जिसके कारण भू-जल के अनियंत्रित दोहन को बढ़ावा मिलता है।
- किसानों की आय पर प्रभाव: बाँधों की जल संग्रहण क्षमता में कमी के कारण सिंचाई की प्रक्रिया और फसल की पैदावार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है, ऐसे में पर्याप्त आवश्यक हस्तक्षेप के अभाव में किसानों की आय में भी भारी कमी आएगी।
- इसके अतिरिक्त फसल की उपज और ऋण, फसल बीमा और निवेश के लिये जल की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- बाढ़ के मामलों में वृद्धि: बाँधों के जलाशयों में गाद जमा होने की उच्च दर इस तर्क को पुष्ट करती है कि देश में कई नदी बेसिनों के जलाशयों के लिये डिज़ाइन की गई बाढ़ नियंत्रण प्रणालियाँ पहले ही काफी हद तक नष्ट हो चुकी हैं, जिसके कारण बाँधों के अनुप्रवाह में बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2020 में भरुच (गुजरात), वर्ष 2018 में केरल और वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ इसके कुछ उदाहरण हैं।
आगे की राह:
- वैश्विक सहयोग और जागरूकता: वर्तमान में पुरानी होती जल भंडारण अवसंरचनाओं के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित करने और इस उभरते जोखिम से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- सूचना में पारदर्शिता: भारत के जल संगठनों को बेकार और खराब हो रहे बड़े बाँधों के संदर्भ में अधिक पारदर्शी होना चाहिये।
- अतः बड़े बाँधों के जलाशयों की भंडारण क्षमता की वास्तविक समय में जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
- साथ ही इसके माध्यम से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर उपलब्ध जल के नियोजन और प्रबंधन के लिये देश की सिंचाई क्षमता का एक वास्तविक अनुमान तैयार किया जाना चाहिये।
- वैकल्पिक उपाय: जल के मुद्दे से जुड़े नीति निर्माताओं, योजनाकारों और जल प्रबंधकों को बड़ी भंडारण संरचनाओं की वैकल्पिक योजनाओं के बारे में विचार करना चाहिये। इसके संभावित विकल्पों में से कुछ निम्नलिखित हैं:
- विभिन्न क्षमताओं की जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के लिये साइटों का चयन करना।
- मध्यम या लघु सिंचाई आधारित छोटी भंडारण संरचनाओं का निर्माण।
- जलभृतों को रिचार्ज करने और भूमिगत जल को संरक्षित करने हेतु तंत्र की पहचान करना।
निष्कर्ष:
भारत को वर्ष 2050 तक अपनी बढ़ती आबादी के लिये पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन करने, संधारणीय शहरों के निर्माण और सतत् विकास को सुनिश्चित करने हेतु 21वीं शताब्दी में ही जल संकट का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में इस स्थिति को संबोधित करने के लिये सभी हितधारकों को साथ मिलकर आगे आना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत के पुराने हो रहे बाँध जल सुरक्षा और किसानों की आय को प्रभावित करने के साथ बाढ़ के मामलों में भी वृद्धि का कारण बन सकते हैं। चर्चा कीजिये।