लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 01 Dec, 2018
  • 11 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता

युवाओं के बीच कौशल की कमी देश में बेरोज़गारी की उच्च दर के कारणों में से एक है और जब हम भविष्य के कार्यों के विषय में सोचते हैं कि भविष्य में भारत की बढ़ती युवा आबादी के लिये नौकरियाँ सृजित की जाएंगी, तो सब कुछ ध्यान में रखते हुए हमें एक विचार को प्राथमिकता देनी होगी कि ज्यादातर बच्चे जो वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं और साथ ही वे आजीविका के लिये विभिन्न ऐसे रोज़गार कार्यों में भी संलग्न हैं, जो अभी तक मौजूद नहीं है। यह पहली नज़र में एक कठिन अवधारणा प्रतीत हो सकती है। उदाहरण के तौर पर आज भारत 4 मिलियन एप डेवलपर्स का घर है यानी एक ऐसा कार्य क्षेत्र जो कुछ पहले या तीन दशक पूर्व अस्तित्व में नहीं था। इसी प्रकार बहुत कम समय में ही, दक्षिण अमेरिका में एक नदी के रूप में प्रचलित ‘अमेज़ॅन’ अब दुनिया के सबसे बड़े शक्तिशाली ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है। यह समाज में ये परिवर्तन तकनीकी प्रगति का परिणाम है।


सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • डिजिटल तकनीक दिन-प्रतिदिन हमारी आँखों के सामने काम के आकार और प्रकृति को बदल रही है।
  • ये प्रौद्योगिकियाँ कंपनियों को स्वचालित करने में सक्षम हैं और इनकी वज़ह से पुराने, आमतौर पर कम और मध्यम-कौशल वाले क्षेत्रों में रोज़गार कम हो जाएंगे, लेकिन वे उत्पादकता बढ़ाने, नवाचार करने और बाद में नए उत्पादों तथा क्षेत्रों के निर्माण के लिये अन्य फर्मों की सहायता करते हैं। अच्छी बात यह है कि भारत जैसे उभरते बाज़ार इसका लाभ उठाने के लिये खड़े हैं। लेकिन उन्हें इस कार्य के लिये तैयार होने हेतु सही कौशल की आवश्यकता है।
  • वर्तमान श्रम बाज़ारों में कौशल की मांग बढ़ रही है। इनमें जटिल समस्या-समाधान और विश्लेषण तथा सामाजिक कौशल जैसे टीमवर्क और रिलेशनशिप प्रबंधन वाले क्षेत्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त तार्किक और आत्म-प्रभावशीलता (self-efficacy ) भी बहुत महत्त्वपूर्ण है, खासकर जब वे अनुकूलन में सुधार करते हैं।
  • भारत में हाल ही में इंजीनियरों के नियोक्ताओं के एक सर्वेक्षण के मुताबिक रोज़गार के लिये सामाजिक-व्यवहार कौशल को प्रमाण-पत्र आधारित तकनीकी कौशल से अधिक महत्त्व दिया गया था। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन कौशलों के निर्माण के लिये मज़बूत मानव पूंजी की आवश्यकता होती है और जिसकी नींव रूप से बचपन में विकास के साथ-साथ ही पड़ जाती है।
  • वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट (World development report) 2019 के अनुसार, भारत को अपनी सबसे बड़ी संपत्ति यानी नागरिकों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर और भी दृढ़ता से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    किस तरह के सुधारों की आवश्यकता है?सबसे पहले तो भारत की शिक्षा प्रणाली को सामान्य और तकनीकी पटरियों के बीच अधिक लचीलापन अथवा सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।

किस तरह के सुधारों की आवश्यकता है?

  • सबसे पहले तो भारत की शिक्षा प्रणाली को सामान्य और तकनीकी पटरियों के बीच अधिक लचीलापन अथवा सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • दूसरा, इसे आत्म-प्रभावकारिता (self-efficacy) और टीमवर्क जैसे सामाजिक व्यवहार कौशल पर अधिक ध्यान देना चाहिये तथा तीसरा, यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भविष्य में विशिष्ट विश्वविद्यालय प्रभावी नवाचार के क्लस्टर बन सकें।
  • उदाहरण के लिये स्टार्टअप इंडिया पहल के एक भाग के रूप में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान परिसरों में विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच आपसी सहयोग के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने हेतु सात नए शोध पार्क स्थापित किये गए थे। इस तरह की पहल को और बढ़ावा देने की ज़रूरत है।

शिक्षा, रोज़गार और काम का भविष्य

  • भारत में प्रत्येक वर्ष 12 मिलियन युवा श्रम बाज़ार में प्रवेश करते हैं। वर्ष 2030 तक देश में 123 मिलियन लोग 25- 29 वर्षीय नागरिक होंगे।
  • सोशल मीडिया द्वारा उनकी आकांक्षाओं पर अधिक बल दिया जाएगा। इन युवा लोगों में से वे जो हाईस्कूल, डिप्लोमा या ग्रेजुएट नहीं हैं उनके लिये पर्याप्त कौशल विकास हेतु वयस्क शिक्षण कार्यक्रम और तृतीयक शिक्षा प्रोग्राम ही एकमात्र विकल्प होगा।
  • कुछ अनुमानों के मुताबिक, प्राथमिक स्तर की शिक्षा को पूरा करने से पूर्व स्कूल छोड़ने वाले 18 से 37 वर्ष के केवल 24% लोग ही हैं।
  • उलेखनीय है कि चीन के बाद भारत तृतीयक शिक्षा प्रणाली की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यह 35 मिलियन से अधिक छात्रों और 50,000 से अधिक संस्थानों का घर है।
  • इस प्रणाली के अंतर्गत कई प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थान हैं जो भारत को उच्च तकनीक क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बनाने के लिये ज़िम्मेदार हैं। लेकिन इस सफलता को अगले स्तर पर ले जाने के लिये भारत की तृतीयक शिक्षा प्रणाली में तत्काल सुधार की ज़रूरत है।
  • भारत को अपने अल्पकालिक स्किलिंग कार्यक्रमों में आमूलचूल परिवर्तन करने की भी आवश्यकता है।
  • भविष्य के कार्यों के लिये कौशल को समायोजित करने हेतु वयस्क शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है और इसकी संरचना पर पुनर्विचार करने से यह लाभान्वित होगा।
  • वयस्क मस्तिष्क को अनुकूलित करने वाले अध्यापन (Pedagogies) का प्रौढ़ जीवन शैली के साथ समायोजन वयस्क शिक्षण कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावी बना सकता है।

आगे की राह

  • संवेदनशील चरित्र और नागरिकता के साथ एक समाज का निर्माण करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि मूल्य आधारित शिक्षा (Value Education) को प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लागू किया जाए। चूँकि इनमें से अधिकतर गुण शिशुओं द्वारा 5-6 वर्ष की आयु तक सीखे जाते हैं, यदि बच्चे इस अवधि के दौरान इन गुणों को प्राप्त करने में चूक जाते हैं, तो इन्हें जीवन में दोबारा ग्रहण करना मुश्किल होता है।
  • इसको प्रभावी रूप से प्रारंभिक बचपन के विकास कार्यक्रमों और बुनियादी शिक्षा के माध्यम से आसानी से स्थापित किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि जीवन के शुरुआती हज़ार दिनों में पोषण, स्वास्थ्य और उत्साह में किया गया निवेश भी मज़बूत मस्तिष्क का निर्माण करता है।
  • इस क्षेत्र को जिसे आधारभूत मानव पूंजी कहा जाता है। निवेश के माध्यम से भारत अपने लोगों को नौकरियों, कौशल और बाज़ार संरचनाओं में आने वाले बदलावों के लिये तैयार कर सकता है।
  • निवेश की कमी भविष्य की पीढ़ियों, खासतौर से सबसे गरीब लोगों को गंभीर नुकसान पहुँचाएगी इससे असमानता में और वृद्धि होगी जो पहले से ही मौजूद है।
  • सबसे खराब स्थिति में तब यह सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता को पैदा कर सकता है जब बढ़ती आकांक्षाओं को अवसर के बजाय निराशा प्राप्त हो।
  • महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने मानव पूंजी में बहुत से निवेश करना प्रारंभ कर दिया है और आने वाले वर्षों में इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अधिक प्रतिस्पर्द्धी संघवाद और परिणाम-आधारित वित्त पोषण की दिशा में शिक्षा क्षेत्र में बदलाव से उत्तरदायित्व और सीखने के परिणामों में सुधार की उम्मीद है।
  • PISA में भाग लेने के लिये भारत का समझौता उसके नीतिगत परिदृश्य में एक बड़ा कदम है, जो शिक्षा परिणामों के आधार पर वैश्विक सहयोगियों के साथ भारत को रैंक हासिल करने में मदद करेगा। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय छात्र आकलन (PISA) प्रत्येक तीन वर्षों में आयोजित होने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण है, जो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा संचालित किया जाता है।
  • विश्व बैंक के नीति निर्माताओं और सरकारों को मानव पूंजी के बारे में गंभीर चिंतन की भी आवश्यकता है क्योंकि काम की बदलती प्रकृति ऐसा सोचने के लिये प्रेरित करती है।
  • मानव पूंजी में वर्तमान और दीर्घकालिक निवेश लोगों को भविष्य की समृद्धि और राष्ट्रीय आर्थिक विकास के लिये गहन रूप प्रभावी निवेश है।

स्रोत : लाइव मिंट


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2