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एडिटोरियल

  • 01 Oct, 2022
  • 13 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार

यह एडिटोरियल 28/09/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Permanent membership of the UNSC is another story” लेख पर आधारित है। इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संबंधित मुद्दों और इसमें सुधारों की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

विऔपनिवेशीकरण (Decolonisation) की प्रक्रिया—जिसमें संयुक्त राष्ट्र और उसकी सुरक्षा परिषद ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, ने विश्व के भू-राजनीतिक परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया। पिछली चौथाई सदी में वैश्विक व्यवस्था में अमेरिकी एकध्रुवीयता से लेकर बहुपक्षीय संस्थानों और बहुध्रुवीयता के उदय तक बड़े पैमाने पर बदलाव देखे गए हैं।

  • भारत सहित विभिन्न विकासशील देश अब अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों में ही बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन ये परिवर्तन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परिलक्षित नहीं होते हैं, जहाँ अभी भी वीटो शक्ति रखने वाले सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों द्वारा सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना में व्याप्त कालदोष और अप्रभाविता को रेखांकित किया।
  • इस प्रकार, P5 देशों के विशेषाधिकारों से परे जाना और एक अधिक लोकतांत्रिक एवं प्रतिनिधिक सुरक्षा परिषद की तलाश करना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी।
  • यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
  • UNSC में 15 सदस्य होते हैं: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 अस्थायी सदस्य जो 2 वर्ष के कार्यकाल के लिये चुने जाते हैं।
  • इसके 5 स्थायी सदस्य हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और यूनाइटेड किंगडम।
  • भारत पूर्व में वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, l984-85, 1991-92, 2011-12 के दौरान परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है और वर्ष 2021 में 8वीं बार पुनः अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया है।

UNSC सदस्यता में संशोधन की प्रक्रिया क्या है?

  • UNSC की सदस्यता में कोई परिवर्तन लाने के लिये यूएन चार्टर में संशोधन लाने की आवश्यकता है।
  • इसमें P5 की बहुमत सहमति के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्यता के दो-तिहाई की सहमति होना शामिल है।
  • P5 देशों में से प्रत्येक को वीटो शक्ति प्राप्त है।
  • 1960 के दशक में एक बार अतिरिक्त अस्थायी सीटों के साथ परिषद का विस्तार करने के लिये चार्टर में संशोधन किया गया था।

UNSC से संबंधित मुद्दे

  • पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव: कई वक्ताओं द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कम प्रभावी है क्योंकि यह कम प्रतिनिधिक है। 54 देशों के महाद्वीप अफ्रीका की अनुपस्थिति इसमें सर्वाधिक प्रासंगिक है।
    • वर्तमान वैश्विक मुद्दे जटिल और परस्पर संबद्ध हैं। भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण देशों के प्रतिनिधित्व की कमी वैश्विक राय के एक बड़े भाग को विश्व के सर्वोच्च सुरक्षा शिखर सम्मेलन में अभिव्यक्ति से वंचित कर रही है।
    • इसके अलावा, यह चिंता का विषय है कि भारत, जर्मनी, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण देशों को UNSC स्थायी सदस्यों की सूची में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है।
  • वीटो पावर का दुरुपयोग: कई विशेषज्ञों के साथ-साथ अधिकांश देशों द्वारा वीटो शक्ति की सदैव आलोचना की गई है जो इसे ‘विशेषाधिकार प्राप्त देशों के स्व-चयनित क्लब’ और गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में देखते हैं। P5 देशों में से किसी की भी असंतुष्टि की स्थिति में परिषद आवश्यक निर्णय ले सकने की अक्षमता रखता है।
    • यह वर्तमान वैश्विक सुरक्षा वातावरण के लिये उपयुक्त नहीं है कि यह निर्णय लेने वाली विशिष्ट या अभिजात संरचनाओं द्वारा निर्देशित हो।
  • P5 के भीतर भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: स्थायी सदस्यों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने UNSC को वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिये एक प्रभावी तंत्र का विकास करने से अवरुद्ध रखा है।
    • वर्तमान विश्व व्यवस्था को उदाहरण के रूप में लेते हुए देखें तो संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन विश्व की परिधि पर स्थित तीन अलग ध्रुव हैं, जिनके चारों ओर विभिन्न भू-राजनीतिक मुद्दे घूम रहे हैं (जैसे ताइवान मुद्दा और रूस-यूक्रेन युद्ध)।
  • राज्य की संप्रभुता के लिये खतरा: अंतर्राष्ट्रीय शांति व्यवस्था और संघर्ष समाधान के प्रमुख अंग के रूप में UNSC शांति बनाए रखने और संघर्ष के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है। इसके निर्णय (जिन्हें संकल्प/ resolutions कहा जाता है) महासभा के निर्णयों के विपरीत सभी सदस्य देशों पर बाध्यकारी होते हैं।
    • इसका अर्थ यह है कि किसी भी राज्य की संप्रभुता को, यदि आवश्यक हो तो कार्रवाई के माध्यम से (जैसे प्रतिबंध आरोपित कर) अतिक्रमित किया जा सकता है।

आगे की राह

  • विश्व भर की अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: यह अत्यंत अनुचित है कि एक संपूर्ण महाद्वीप (अफ्रीका) और क्षेत्रों को उनके भविष्य पर विचार-विमर्श करने वाले मंच में ही अभिव्यक्ति एवं प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जाए।
    • देशों पर सुरक्षा परिषद की शासी शक्ति और प्राधिकार को विकेंद्रीकृत करने के लिये यह आवश्यक है कि परिषद में सभी क्षेत्रों को एकसमान रूप से प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।
    • इस परिवर्तन के साथ सभी क्षेत्रों के राष्ट्रों को अपने देशों में शांति और लोकतंत्र को प्रभावित करने वाली चिंताओं को उठाने का अवसर मिल सकेगा।
    • इसके साथ ही, UNSC के निर्णय-निर्माण में विकेंद्रीकरण के आरंभ से यह अधिक प्रतिनिधिक, सहभागी और लोकतांत्रिक बन सकेगा।
  • वैश्विक शासन के लिये वैश्विक सहमति: UNSC को यह समझना होगा कि उसे महज P5 राष्ट्रों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के बजाय वैश्विक स्तर पर विद्यमान संकटकारी मुद्दों पर केंद्रित होने की आवश्यकता है।
    • P5 और शेष विश्व के बीच शक्ति असंतुलन में तत्काल सुधार लाने की आवश्यकता है।
    • UNSC का अपने शासन में अधिक लोकतांत्रिक और अधिक वैध होना आवश्यक है जहाँ वह अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और व्यवस्था के सार्वभौमिक अनुपालन को सुनिश्चित करे।
  • ‘री-एनर्जाइज़िंग इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएशन’ (IGN): ऐसे महत्त्वपूर्ण मामलों पर गंभीर वार्ता को गंभीरता से आगे बढ़ाना चाहिये। उन्हें प्रक्रियात्मक रणनीति से अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिये।
    • IGN प्रक्रिया (जो वह प्रमुख ढाँचा है जिसके माध्यम से UNSC सुधार पर चर्चा और बहस की जाती है) को संशोधित और पुन: सक्रिय करने की आवश्यकता है।
    • 76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष द्वारा IGN प्रक्रिया को धीरे-धीरे टेक्स्ट-बेस्ड आधारित वार्ता (text based negotiations) की ओर ले जाने की अनुशंसा एक स्वागतयोग्य कदम है।
  • बेहतर बहुपक्षवाद की ओर: सुरक्षा परिषद के सुधारों के साथ ही बेहतर बहुपक्षवाद के आह्वान को इसके मूल में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के बीच पर्याप्त समर्थन प्राप्त है।
    • संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों में, इसके चार्टर में और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी के रूप में सुधार किये गए बहुपक्षवाद पर भरोसे की रक्षा करने के लिये UNSC में मुख्य मुद्दों की गंभीर जाँच की जानी चाहिये और इसे वैश्विक सहयोग से संबोधित किया जाना चाहिये।
  • UNSC सुधारों के लेंस से भारत: UNSC में स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी वैध और उचित है क्योंकि वह स्थायी सदस्यता के सभी उद्देश्य मानदंडों को पूरा करता है।
    • भारत ने जीवाश्म ईंधन के दोहन को कम करने और सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की है और वह ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ में भी अग्रणी रहा है।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में सबसे बड़े व्यक्तिगत योगदानकर्ताओं में से एक होने के साथ भारत उच्चतम सुरक्षा सहयोग मंच पर अधिक से अधिक उत्तरदायित्वों के वहन के लिये तैयार है।
    • इसके साथ ही, भारत यह सुनिश्चित करने की इच्छा भी रखता है कि ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ हो रहे अन्याय को निर्णायक रूप से संबोधित किया जाए। भारत इन दोनों मोर्चों पर योगदान देने के लिये तैयार और सक्षम है।

अभ्यास प्रश्न: समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को संबोधित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।

   

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव की अवधि के लिये महासभा द्वारा किया जाता है- (वर्ष 2009)

(A) 1 वर्ष
 (B) 2 साल
 (C) 3 साल
 (D) 5 साल

 उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2015)


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