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  • 01 Apr, 2020
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

‘फिज़िकल डिस्टेंसिंग’: समय की आवश्यकता

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में ‘फिज़िकल डिस्टेंसिंग’ और उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

वैश्विक महामारी COVID-19 के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के आह्वान पर भारत में भी संपूर्ण लॉकडाउन की व्यवस्था को अपनाया गया है। लॉकडाउन की व्यवस्था के साथ ही ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की अवधारणा को अपनाया गया। पिछले कुछ दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द काफी प्रचलित हो रहा है। इस शब्द का प्रयोग लगातार प्रधानमंत्री जी द्वारा भी अपने भाषणों में किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी शब्द का इस्तेमाल अपने दस्तावेज़ों और निर्देशों में कर रहा है, परंतु यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर ध्यान दें तो यह पाते हैं कि इसके द्वारा लगातार सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिज़िकल डिस्टेंसिंग की अवधारणा पर ज़ोर दिया जा रहा है। प्रारंभ में इस शब्द के प्रयोग को लेकर असमंजस था, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा व्यापक रूप से इस शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। 

विशेषज्ञों का यह मानना है कि ये शारीरिक दूरी बनाए रखने का समय है, लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर एकजुट होने का समय है। नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेनियल एलड्रिच का तो यह मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है, बल्कि इसका अत्यधिक प्रयोग हानिकारक साबित होगा। एलड्रिच के अनुसार, यह समय अभी शारीरिक दूरी बनाए रखने और सामाजिक तौर पर एकजुटता प्रदर्शित करने का है।

इस आलेख में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ फिज़िकल डिस्टेंसिंग की अवधारणा को समझने का प्रयास किया जाएगा। इसके अतिरिक्त सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिज़िकल डिस्टेंसिंग शब्द के प्रयोग के कारणों पर भी विमर्श किया जाएगा।

क्या है सोशल डिस्टेंसिंग?

  • सोशल डिस्टेंसिंग से तात्पर्य समाजिक स्तर पर उचित दूरी बनाए जाने से है। 
  • सभाओं में शामिल होने से बचना, सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक कार्यक्रमों के आयोजन से बचना ही सोशल डिस्टेंसिंग है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिये।
  • किसी व्यक्ति से बात करते समय हमें किसी भी प्रकार से शारीरिक स्पर्श से बचना चाहिये।

सोशल डिस्टेंसिंग की आवश्यकता क्यों? 

  • कोरोना वायरस मानव से मानव में स्थानांतरित हो रहा है। मानव से मानव में स्थानांतरण का प्रमुख कारण लोगों की सामाजिक रूप से निकटता है।
  • इस वायरस से संक्रमित 1 व्यक्ति 5 दिनों के भीतर ही लगभग 2.5 व्यक्तियों तक इस वायरस का स्थानांतरण कर सकता है। इसकी भयावहता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 30 दिनों के भीतर ही इस वायरस का संक्रमण लगभग 406 व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है।
  • यदि इस वायरस से प्रभावित किसी व्यक्ति द्वारा 50% तक अपनी गतिविधियों को सीमित कर लिया जाता है तो अगले 5 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 1.5 व्यक्ति तक तथा अगले 30 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 15 व्यक्तियों तक सीमित हो जाएगी।
  • इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति द्वारा 75% तक अपनी गतिविधियों को सीमित कर लिया जाता है तो अगले 5 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या .625 व्यक्ति तक तथा अगले 30 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 2.5 व्यक्तियों तक सीमित हो जाएगी।
  • सोशल डिस्टेंसिंग के बेहतर क्रियान्वयन के लिये ही संपूर्ण लॉकडाउन की व्यवस्था की गई है।

क्या है लॉकडाउन?

  • लॉकडाउन एक प्रशासनिक आदेश होता है। लॉकडाउन को एपिडमिक डीज़ीज एक्ट, 1897 के तहत लागू किया जाता है। ये अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है।
  • इस अधिनियम का इस्तेमाल किसी विकराल समस्या के दौरान होता है।  जब केंद्र या राज्य सरकार को ये विश्वास हो जाए कि कोई गंभीर बीमारी देश या राज्य में आ चुकी है और सभी नागरिकों तक पहुँच रही है तो केंद्र व राज्य सरकार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक स्तर पर एक-दूसरे से दूरी बनाना) को क्रियान्वित करने के लिये इस अधिनियम को लागू कर सकते हैं।
  • इसे किसी आपदा के समय शासकीय रूप से लागू किया जाता है।  इसमें लोगों से घर में रहने का आह्वान और अनुरोध किया जाता है। इसमें ज़रूरी सेवाओं के अलावा सारी सेवाएँ बंद कर दी जाती हैं।  कार्यालय, दुकानें, फ़ैक्टरियाँ और परिवहन सुविधा सब बंद कर दी जाती है। जहाँ संभव हो वहाँ कर्मचारियों को घर से काम करने के लिये कहा जाता है
  • लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सेवाएँ निर्बाध रूप से चलती रहती हैं। अपने दिशा-निर्देश में सरकार ने शासकीय आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया है।

 सोशल डिस्टेंसिंग से संबंधित समस्याएँ 

  • ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में ग्रहण करता है, उसके पीछे की सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना जरूरी है।
  •  यह शब्द लम्बे समय से सामाजिक-सांस्कृतिक वर्चस्व बनाए रखने के लिये इस्तेमाल होता रहा है। ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ हमेशा शक्तिशाली समूह द्वारा कमजोर समूह पर थोपी जाती रही है।
  • भारत में भेदभाव और दूरी बनाए रखने और अस्पृश्यता को अमल में लाने के तरीके के तौर पर इसका इस्तेमाल होता रहा है।
  • प्रसिद्घ फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुई दुमों के अनुसार, विश्व के कई देशों की विभिन्न जातियों में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिये पूर्व से ही प्रचलित है। यहाँ विवाह, खान-पान से लेकर छूआछूत तक ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का क्रूरतम रूप सामने आता रहा है। ऐसे में यह डर है कि कोरोना वायरस की ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहीं जाति प्रथा की ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के पुनरुत्थान का कारण न बन जाए। 
  • भारत में अभी भी पानी भरने के स्थलों से लेकर सार्वजनिक स्थलों, मंदिरों या अन्य धार्मिक स्थलों पर दलितों के साथ ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का व्यवहार किया जाता है। किसका बनाया हुआ खाना कौन खा सकता है और कौन नहीं खा सकता? इसका पूरा विधान है और यह व्यवस्था भारत में खत्म नहीं हुई है। 
  • उच्च जातियों के लोग इस महामारी के दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के सूत्र से लोगों के सामने जाति-व्यवस्था के औचित्य का तर्क रखने लग गए हैं। इसके साथ ही यह तर्क बार-बार दिया जा रहा है कि न छूकर किया जाने वाला अभिवादन, यानी हाथ जोड़कर दूर से किया जाने वाले नमस्ते, भारतीय परंपरा की श्रेष्ठता को दर्शाता है।
  • पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में परिवार के अंदर भी स्त्री और पुरुष के बीच ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की दीवार बनाई गई है ताकि स्त्री को कमजोर होने का अहसास दिलाकर उसका शोषण किया जा सके। स्त्री के लिये ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ इस तरह से की गई है कि वह घर से बाहर ना निकल सके। 
  • प्रत्येक समाज में गरीब और अमीर के बीच भी सोशल डिस्टेंसिंग व्याप्त है। इस प्रकार यदि कोरोना वायरस की सोशल डिस्टेंसिंग का फायदा उठाकर शक्तिशाली समूह सोशल डिस्टेंसिंग की पुरातन रूढ़िवादी अवधारणा को मजबूत करने में जुट जाते हैं, तो इस पर न सिर्फ नज़र रखने बल्कि इस विचारधारा के प्रतिकार करने की भी आवश्यकता है।

समाधान 

  • फिज़िकल डिस्टेंसिंग
    • फिज़िकल डिस्टेंसिंग से तात्पर्य समाजिक दूरी के स्थान पर शारीरिक दूरी को बनाए रखने से है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक के अनुसार, इस वैश्विक महामारी से निपटने में फिज़िकल डिस्टेंसिंग नितांत आवश्यक है, परंतु इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम समाजिक स्तर अपने प्रियजन व परिवारीजनों से दूरी बना लें। 
    • तकनीकी के इस युग में हम फिज़िकल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए वीडियो चैट व वीडियो कॉलिंग के माध्यम से सामाजिक व आत्मीय निकटता को महसूस कर सकते हैं।
    • सोशल डिस्टेंसिंग से ऐसा प्रतीत होता है कि यह लोगों को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर रहा है, जबकि फिज़िकल डिस्टेंसिंग लोगों में शारीरिक दूरी को बनाए रखते हुए सामाजिक निकटता लाने पर फोकस करता है।
    • सोशल डिस्टेंसिंग लोगों के बीच सामाजिक दूरी को बढ़ाकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है, जबकि फिज़िकल डिस्टेंसिंग लोगों में शारीरिक दूरी को बढ़ाते हुए भी सामाजिक रूप से निकट ला रहा है।
    • फिज़िकल डिस्टेंसिंग को मीट्रिक मीटर या सेंटीमीटर में मापा जाता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की भौगोलिक दूरी की माप करता है, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग  सामाजिक संबंधों के बीच की दूरी का एक मापक है।
    • संकट की इस घड़ी में स्पष्ट रूप से फिज़िकल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए समाजिक निकटता को बनाए रखने की आवश्यकता है।

प्रश्न- फिज़िकल डिस्टेंसिंग की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव में यह सोशल डिस्टेंसिंग की अवधारणा से किस प्रकार बेहतर है? विश्लेषण कीजिये।


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