सामाजिक न्याय
असमानता को समाप्त करना
यह एडिटोरियल 31/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Show Commitment to Equity in the Budget” लेख पर आधारित है। इसमें ‘ऑक्सफैम इनइक्वेलिटी रिपोर्ट’ के प्रमुख निष्कर्षों और भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता की समस्याओं के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International) ने ‘Inequality Kills’ नामक शीर्षक से वार्षिक वैश्विक असमानता रिपोर्ट (Global Inequality Report) जारी की है, जिससे कुछ लोगों की संपत्ति में तो भारी वृद्धि लेकिन लाखों कामकाजी लोगों में व्याप्त दरिद्रता की तस्वीर सामने आई है। रिपोर्ट के निष्कर्ष भारत के लिये निराशाजनक हैं। गरीबों और वंचितों की रक्षा के लिये भारत द्वारा अनुपालित एक अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से असमानता की समस्या को दूर किया जा सकता है। समानता के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने का एक प्रमुख माध्यम केंद्रीय बजट है और प्रत्येक केंद्रीय एवं राज्य बजट के प्रस्तुत किये जाने से पहले और उसके बाद असमानता पर विचार किया जाना चाहिये।
भारत में असमानता
- असमानता को दूर करने से संबंधित संवैधानिक प्रावधान: भारत में असमानता को कम करने के लिये संवैधानिक अधिदेश प्रदान किया गया है। राज्य की नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy- DPSP) के अनुच्छेद 38 और 39 इस दृष्टिकोण से एक नीति पथ प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 38(1): ‘‘राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा।’’
- अनुच्छेद 39 (c): राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया इस प्रकार संचालन करेगा कि आर्थिक व्यवस्था सुनिश्चित रूप से इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी संकेंद्रण न हो।
- ऑक्सफैम रिपोर्ट के भारत विशिष्ट निष्कर्ष:
- धन की असमानता: रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान विश्व के आधे से अधिक नई गरीबी का सृजन भारत में हुआ, 84% भारतीय परिवारों को आय का नुकसान हुआ और 4.6 करोड़ लोग चरम निर्धनता की चपेट में आ गए हैं।
- इसी अवधि में सर्वाधिक अमीर 142 लोगों की संपत्ति में दोगुनी वृद्धि हुई और यह 53 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
- सामाजिक सुरक्षा व्यय में गिरावट: भारत में जारी कोविड के कहर के बीच देश के स्वास्थ्य बजट में वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10% की गिरावट देखी गई।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये बजटीय आवंटन कुल केंद्रीय बजट के 1.5% से घटकर 0.6% रह गया।
- बढ़ता राजकोषीय घाटा: पिछले वर्ष (2020) निवेश आकर्षित करने के लिये कॉर्पोरेट करों को 30% से घटाकर 22% करने के परिणामस्वरूप 1.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, जिसने भारत के राजकोषीय घाटे में वृद्धि में योगदान किया।
- धन की असमानता: रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान विश्व के आधे से अधिक नई गरीबी का सृजन भारत में हुआ, 84% भारतीय परिवारों को आय का नुकसान हुआ और 4.6 करोड़ लोग चरम निर्धनता की चपेट में आ गए हैं।
- असमानता के कारक:
- बजटीय गिरावट: भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है, जहाँ कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य बजट में गिरावट आई। वर्ष 2021 में तो इसमें 10% की भारी गिरावट देखी गई।
- सामाजिक सुरक्षा व्यय वर्ष 2020-21 में 1.5%, जो पहले ही अत्यंत कम था, से घटकर वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का मात्र 0.6% रह गया।
- बजट आवंटन की इस स्थिति में आम लोग बेहद बुनियादी सेवाओं और अधिकारों से भी वंचित हुए हैं और जीवित रहने में असमर्थ हैं।
- महामारी के पहले चरण में आवंटन बढ़ाने के बाद भी इन्हें जारी नहीं किया गया और बजट 2021-22 में आवंटन में कटौती कर दी गई।
- सामाजिक सुरक्षा व्यय वर्ष 2020-21 में 1.5%, जो पहले ही अत्यंत कम था, से घटकर वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का मात्र 0.6% रह गया।
- वेतन और भत्तों में असमानता: वृद्धों, विकलांगों और विधवाओं के लिये सामाजिक सुरक्षा पेंशन लगभग 15 वर्षों से 200- 300 रुपए प्रति माह पर ही रुकी हुई है, जबकि इसके विपरीत नीति निर्माताओं के वेतन और पेंशन में वृद्धि की गई है।
- केंद्र सरकार के 1 करोड़ कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिये वृद्धि से सरकारी खजाने को 3.3 करोड़ लाभार्थियों के लिये कुल सामाजिक सुरक्षा पेंशन बजट की तुलना में अधिक बोझ का वहन करना पड़ा है।
- सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न की अनुपलब्धता: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) के तहत परिवारों की प्राथमिकता सूची को वर्ष 2011 की जनगणना से निर्धारित प्रतिशत के आधार पर एक नियत संख्या में रखा गया है।
- पिछले 11 वर्षों में लगभग 10 करोड़ पात्र लाभार्थियों की जनसंख्या वृद्धि को लाभ के दायरे से बाहर रखा गया है।
- इस प्रकार लगभग कानूनी रूप से हकदार 12%लोग (यहाँ तक कि मौजूदा ‘प्राथमिकता परिवार’ के बच्चों तक को) सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न प्राप्त कर सकने में असमर्थ हैं।
- शिक्षा तक असमान पहुँच: महामारी ने बच्चों की एक ऐसी पीढ़ी भी पैदा कर दी है जो औपचारिक शिक्षा को भूल चुके हैं। गरीब परिवारों के कई किशोर पहले ही शिक्षा छोड़ कार्यबल में शामिल होने को विवश हुए हैं।
- इस अवधि में शिक्षा बजट में 6% की कटौती की गई है। बजट में कटौती के साथ ही ऑनलाइन शिक्षण पर निर्भरता स्थानिक बहुआयामी गरीबी के संस्थानीकरण के समान है।
- बजटीय गिरावट: भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है, जहाँ कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य बजट में गिरावट आई। वर्ष 2021 में तो इसमें 10% की भारी गिरावट देखी गई।
आगे की राह
- असमानता से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कार्यक्रमों को आवश्यक आवंटन की मात्रा प्राप्त करनी चाहिये। इसके साथ ही पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (PAEG) ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान में सक्रिय जॉब कार्ड्स के लिये 100 दिनों के काम की गारंटी सुनिश्चित करने के लिये लगभग 2,64,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
- सामाजिक सुरक्षा पेंशनभोगियों को भूख, बीमारी और गरीबी से बचाने की ज़रूरत है। चुनावी मौसम असंगठित और कमज़ोर लोगों के मूल अधिकारों को बहाल करने का एक अवसर प्रदान करता है।
- कर से प्राप्ति: सभी सरकारों को इस महामारी अवधि के दौरान अत्यधिक अमीर (सुपर-रिच) लोगों द्वारा अर्जित लाभ पर तुरंत करारोपण करना चाहिये।
- सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय 30 संगठनों के नेटवर्क ‘जन सरोकर’ ने सुझाव दिया है कि आबादी के शीर्ष 1% पर 2% संपत्ति कर और 33% उत्तराधिकार कर से लगभग 11 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष की प्राप्ति होगी जो बुनियादी सामाजिक क्षेत्र अधिकार के समर्थन में काम आ सकता है।
- बुनियादी आवश्यकताओं की पहुँच बढ़ाना: यह तय करना आवश्यक है कि भारत में बढ़ती असमानता को देखते हुए सार्वजनिक नीति को अब कौन सी दिशा लेनी चाहिये । आवश्यकता है कि जनसंख्या के बीच स्वास्थ्य और शिक्षा को और अधिक व्यापक रूप से प्रसारित किया जाए।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ, रोज़गार गारंटी योजनाओं जैसी सार्वजनिक वित्तपोषित उच्च गुणवत्तायुक्त सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित कर असमानता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- रोज़गार सृजन: भारत के श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र में उन लाखों लोगों को संलग्न कर सकने की क्षमता है जो खेती करना छोड़ रहे हैं, जबकि सेवा क्षेत्र शहरी मध्यम वर्ग को ही लाभान्वित करता रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने भी अनुशंसा की है कि न्यूनतम वेतन सीमा इस तरह से निर्धारित की जानी चाहिये जो व्यापक आर्थिक कारकों के साथ श्रमिकों और उनके परिवारों की आवश्यकताओं को पूर्ण करे।
अभ्यास प्रश्न: भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता को संबोधित करने के संदर्भ में आगामी केंद्रीय बजट द्वारा प्रदान किये जा सकने वाले अवसरों की चर्चा कीजिये।