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डेली न्यूज़

  • 31 Jul, 2020
  • 41 min read
शासन व्यवस्था

एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

अटल नवाचार मिशन, एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

देश भर के इनक्यूबेटर पारिस्थितिकी तंत्र में समग्र प्रगति को प्रोत्साहित करने की प्रमुख पहल के तहत नीति आयोग के अटल नवाचार मिशन (AIM) ने एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र हेतु एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह कार्यक्रम मुख्य तौर पर उच्च प्रदर्शन वाले स्टार्टअप के सृजन पर केंद्रित है। गौरतलब है कि भारत में नवाचार को आगे बढ़ाने के लिये यह अपनी तरह की पहली कोशिश है।
  • इस कार्यक्रम के लिये अटल नवाचार मिशन (AIM) ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill & Melinda Gates Foundation) और वाधवानी फाउंडेशन (Wadhwani Foundation) के साथ साझेदारी की है।
    • ये संगठन उद्यमिता एवं नवाचार के क्षेत्र में विश्वसनीय मदद और विशेषज्ञता प्रदान कर सकते हैं। इस साझेदारी के माध्यम से अटल नवाचार मिशन (AIM) के इनक्यूबेटर नेटवर्क हेतु वैश्विक विशेषज्ञता हासिल हो सकेगी।

एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम:

  • एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम को देश के इनक्यूबेटर पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाने और देश भर में अटल नवाचार मिशन (AIM) के तहत अटल और स्थापित इनक्यूबेटर केंद्रों (AIM’s Atal and Established
  • Incubators) के लिये विकास कारक के रूप में कार्य करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत इनक्यूबेटरों को अपग्रेड किया जाएगा और इनक्यूबेटर उद्यम आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये उन्हें अपेक्षित मदद प्रदान की गई है, जिससे उन्हें अपने प्रदर्शन को बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
  • मौजूदा महामारी संकट को देखते हुए यह कार्यक्रम ज्ञान सृजन और उसके प्रसार में स्टार्ट-अप उद्यमियों की मदद करने के साथ-साथ एक मज़बूत एवं सक्रिय नेटवर्क विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

महत्त्व:

  • भारत को अपने देश की बेहतरीन नवाचार प्रतिभा का लाभ उठाने के लिये विश्व स्तर के स्टार्टअप को बढ़ावा देने वाले विश्व स्तरीय इनक्यूबेटरों की आवश्यकता है।
  • यह कार्यक्रम देश में नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

इनक्यूबेटर का अर्थ?

  • सामन्यतः इनक्यूबेटर केंद्रों का अभिप्राय उन संस्थानों से होता है, जो किसी विशिष्ट व्यवसाय को विकसित करने में उद्यमियों की मदद करती हैं, खासतौर पर व्यवसाय शुरू के आरंभिक चरणों में। इस प्रकार का कार्य सामान्यतः उन संस्थानों द्वारा
  • किया जाता है, जिनके पास व्यापार और प्रौद्योगिकी का व्यापक अनुभव होता है।
  • इनक्यूबेटर्स द्वारा दी जानी वाली सहायता में आमतौर पर तकनीकी सुविधाएँ एवं सलाह, प्रारंभिक विकास निधि, नेटवर्क और लिंक, कार्यस्थल की सुविधा और प्रयोगशाला संबंधी सुविधाएँ, शामिल होती हैं।
  • अटल इनक्यूबेशन केंद्र

    • अटल इनोवेशन मिशन (AIM) का उद्देश्य अटल इनक्यूबेशन केंद्रों (Atal Incubation Centres-AICs) की स्थापना करना है, जो कि सतत् व्यावसायिक उद्यमों के निर्माण के लिये नवीन स्टार्ट-अप्स का पोषण करेंगे।
  • स्थापित इनक्यूबेशन केंद्र

    • अटल इनक्यूबेशन केंद्र (AICs) की स्थापना के अलावा अटल इनोवेशन मिशन (AIM) के तहत देश में पहले से स्थापित इनक्यूबेशन केंद्रों, जिन्हें स्थापित इनक्यूबेशन केंद्र (Established Incubation Centres) के रुप मे पहचाना गया है, को विश्व स्तरीय मानकों के आधार पर अपग्रेड करना है।
    • गौरतलब है कि हाल के वर्षों में उद्योग, निवेशकों, छोटे और बड़े उद्यमियों, सरकारी संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों ने देश भर में कई इनक्यूबेशन केंद्र स्थापित किये हैं, जिन्हें ही स्थापित इनक्यूबेशन केंद्रों के रूप में पहचाना गया है।


स्रोत: पी.आई.बी


आंतरिक सुरक्षा

लड़ाकू विमान: राफेल

प्रीलिम्स के लिये:

राफेल लड़ाकू विमान, सुखोई-30

मेन्स के लिये:

राफेल की विशेषताएँ और भारत के लिये सुरक्षा दृष्टि से इसका महत्त्व, भारतीय वायु सेना के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 7000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए पाँच राफेल लड़ाकू विमान (Rafale Fighter Jets) फ्रांँस से हरियाणा स्थित अंबाला एयर बेस (Ambala Air Base) पहुँचे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • इन पाँच राफेल लड़ाकू विमानों के भारतीय वायु सेना में शामिल होने से उसकी युद्धक क्षमता में अतुलनीय बढ़ोतरी हुई है।
  • फ्रांँस से भारत आए पाँच राफेल लड़ाकू विमानों को भारतीय वायु सेना के नंबर 17 ‘गोल्डन एरो स्क्वाड्रन’ (Golden Arrows Squadron) में शामिल किया जाएगा।
  • 90 के दशक के अंत में रूस से सुखोई-30 (Sukhoi-30) के बाद से भारतीय वायु सेना में शामिल होने वाला यह पहला आयातित लड़ाकू विमान है।

फ्राँस के साथ अंतर-सरकारी समझौता:

  • सितंबर 2016 में भारत सरकार ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये फ्रांँस के साथ एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • ज्ञात हो कि सभी 36 राफेल लड़ाकू विमान वर्ष 2021 तक भारत पहुँच जाएँगे।
  • साथ ही समझौते में यह भी तय किया गया था कि राफेल बनाने वाली फ्रांँस की डसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) कंपनी भारतीय वायु सेना के पायलटों और सहायक कर्मियों को विमान और हथियार प्रणालियों पर पूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करेगी।

क्या खास है राफेल में?

  • वर्ष 2001 में प्रस्तुत किये गए राफेल (Rafale) फ्रांँस का डबल इंजन वाला और मल्टीरोल लड़ाकू विमान है, जिसे फ्रांँस की डसॉल्ट एविएशन कंपनी द्वारा डिज़ाइन किया गया है।
  • तमाम तरह के आधुनिक हथियारों से लैस राफेल लड़ाकू विमान में अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया है और यह एक 4.5 जेनरेशन (4.5 Generation) वाला लड़ाकू विमान है।
  • राफेल लड़ाकू विमान में मौजूद मीटीओर मिसाइल (Meteor Missile), SCALP क्रूज मिसाइल (Scalp Cruise Missile) और MICA मिसाइल प्रणाली (MICA Missile System) इसे सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
    • मीटीओर मिसाइल: यह हवा-से-हवा में मार करने वाली एक मिसाइल है, जो तकरीबन 150 किमी दूर से दुश्मन के विमानों को निशाना बना सकती है। इससे पहले की दुश्मन के विमान भारतीय विमानों के करीब पहुँचे, यह मिसाइल उनका विमानों को नष्ट कर सकती है।
    • SCALP क्रूज मिसाइल: राफेल में लगी SCALP क्रूज मिसाइल प्रणाली हवा-से-ज़मीन पर हमला करने वाले मिसाइल प्रणाली है और यह तकरीबन 300 किलोमीटर दूर निशाना साधने में सक्षम है।
    • MICA मिसाइल प्रणाली: राफेल में मौजूद यह मिसाइल प्रणाली एक बहुमुखी हवा-से-हवा में मार करने वाली प्रणाली है और इससे 100 किलोमीटर दूरी तक फायर किया जा सकता है। ध्यातव्य है कि यह मिसाइल प्रणाली पहले से ही भारतीय वायु सेना के मौजूद मिराज लड़ाकू विमान में कार्य कर रही है।
  • भारतीय वायु सेना ने राफेल जेट के लिये अत्याधुनिक मध्यम दूरी की मॉड्यूलर एयर-टू-ग्राउंड हथियार प्रणाली हैमर (Hammer) की खरीदारी की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
    • इस सटीक निशाना लगाने वाली मिसाइल प्रणाली को मूल रूप से फ्रांँस की वायु सेना और नौसेना के लिये डिज़ाइन किया गया था।

अन्य विशेषताएँ:

  • विदित हो कि राफेल 2,222.6 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार और 50,000 फीट की ऊँचाई तक उड़ सकता है।
  • इस लड़ाकू विमान की रेंज तकरीबन 3,700 किलोमीटर है यानी यह एक बार में लगभग 3,700 किलोमीटर तक बढ़ सकता है, हालाँकि इस रेंज को मिड-एयर रीफ्यूलिंग (Mid-Air Refuelling) के साथ बढ़ाया जा सकता है।
  • यह लड़ाकू विमान लगभग 15.27 मीटर लंबा है और यह अपने साथ एक बार में 9,500 किलोग्राम बम और गोला-बारूद ले जा सकता है।

भारत के लिये इसका महत्त्व

  • वायु युद्धक क्षमता में बढ़ोतरी: विशेषज्ञों का मानना है कि राफेल लड़ाकू विमान ऐसे समय में भारत आए हैं, जब भारत चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के संबंधों में तनाव का सामना कर रहा है, ऐसे में ये लड़ाकू विमान भारत की वायु युद्धक
  • क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी करेंगे, साथ ही इनके आने से वायु सेना के मनोबल में भी काफी वृद्धि होगी।
  • बेजोड़ क्षमता: भारतीय पड़ोसी देशों खासकर चीन और पाकिस्तान के बेड़े में मौजूद कोई भी लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना के इस विमान के साथ मुकाबला करने में सक्षम नहीं है और यह राफेल बीते कुछ वर्षों में अफगानिस्तान, लीबिया, इराक और सीरिया में हुए वायु युद्ध अभियानों में अपनी बेजोड़ क्षमताओं को साबित कर चुका है।
    • भारत के अलावा मिस्र और कतर के पास भी यह लड़ाकू विमान मौजूद है।
  • लगभग दो दशक तक भारतीय वायु सेना लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले हथियारों और अत्याधुनिक मिसाइल प्रणाली की कमी का सामना कर रही थी, इस प्रकार राफेल लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना के लिये निर्णायक साबित होंगे।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि राफेल लड़ाकू विमान खतरे की स्थिति में भारतीय वायु सीमा को पार किये बिना भी दुश्मन के लड़ाकू विमानों पर निशाना साध सकते हैं।

संबंधित चिंताएँ:

  • ध्यातव्य है कि भारत और वायु सेना के लिये भले ही राफेल लड़ाकू विमान निर्णायक साबित हो, हालाँकि इसे भारतीय वायु सेना के समक्ष मौजूद चुनौतियों के एकमात्र हल के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
  • लड़ाकू विमानों की घटती संख्या भारतीय वायु सेना के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। वर्तमान में भारतीय वायु के बेड़े में लड़ाकू विमानों के कुल 30 स्क्वाड्रन शामिल हैं, जबकि भारतीय वायु के लिये प्राधिकृत स्क्वाड्रनों की कुल संख्या 42 है।
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2023 तक पाकिस्तान की वायु सेना के बेड़े में कुल 27 स्क्वाड्रन होंगे, जबकि चीन की वायु सेना के बेड़े में कुल 42 स्क्वाड्रन होंगे, यह स्थिति भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से काफी चिंताजनक हो सकती है।
    • ऐसे में आवश्यक है कि नीति निर्माता जल्द-से-जल्द भारतीय वायु सेना की प्राधिकृत क्षमता में विस्तार कर ध्यान केंद्रित करें।
  • बीते कई वर्षों में भारतीय वायु सेना में मौजूद स्क्वाड्रनों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है और विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में भी यह कमी जारी रहेगी।
    • गौरतलब है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारतीय वायु सेना में मौजूद रूस के पुराने मिग (MiG) विमानों के पाँच स्क्वाड्रन डीकमीशन (Decommission) हो रहे हैं।

निष्कर्ष:

गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमान भारत की सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हैं और इनमें भारत के रक्षा क्षेत्र को भी बढ़ावा देने की क्षमता मौजूद है, अतः आवश्यक है कि भारत और फ्रांँस के बीच रक्षा क्षेत्र से संबंधित निरंतर संवाद के लिये एक तंत्र स्थापित किया जाए और सामरिक संबंधों को मज़बूत करने के साथ-साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत करने पर भी ध्यान दिया जाए। इसके अलावा भारत सरकार और शीर्ष सैन्य अधिकारियों को भारतीय वायु सेना समेत भारत की तीनों सेनाओं के समक्ष मौजूद चुनौतियों को जल्द-से-जल्द हल करने का प्रयास करना चाहिये, ताकि भारतीय सेनाओं को और मज़बूत बनाया जा सके और सेना में कार्यरत जवानों को प्रोत्साहन मिल सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

PLpro प्रोटीन और SARS-CoV-2 वायरस

प्रीलिम्स के लिये:

PLpro प्रोटीन, SARS-CoV-2 और मानव प्रतिरक्षा प्रणाली, T-सेल, इंटरफेरॉन, NK सेल

मेन्स के लिये:

मानव प्रतिरक्षा तंत्र

चर्चा में क्यों?

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में उत्पन्न विशेष प्रोटीन पीएलप्रो (PLpro) की पहचान की है, जो SARS-CoV-2 वायरस के संक्रमण के दौरान मानव में उत्पन्न होता है तथा वायरस के प्रतिकृति निर्माण में मदद करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • जब कोरोनावायरस- SARS-CoV-2 मानव कोशिका में प्रवेश करता है तो यह शरीर के कोशिका तंत्र को नियंत्रित कर लेता है।
  • इस वायरस के शरीर में प्रवेश करने पर मानव कोशिका तंत्र द्वारा विशेष प्रकार का प्रोटीन; जिन्हें PLpro कहा जाता है, निर्मित होता है।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वायरस की प्रतिकृति निर्माण के लिये यह PLpro प्रोटीन आवश्यक होता है।

SARS-CoV-2 के खिलाफ मानव प्रतिरक्षा प्रणाली:

  • जब SARS-CoV-2 वायरस से मानव शरीर संक्रमित होता है, तो संक्रमित शरीर की कोशिकाओं द्वारा ‘टाइप-1 इंटरफेरॉन’ नामक संदेशवाहक पदार्थ मुक्त किया जाता है। ये संदेशवाहक पदार्थ शरीर की मारक कोशिकाओं (Killer Cells) या NK सेल को आकर्षित करते हैं और संक्रमित कोशिकाओं को खत्म करते हैं।
  • मानव कोशिकाओं द्वारा PLpro प्रोटीन का उत्पादन प्रारंभ होने पर SARS-CoV-2 वायरस पुन: प्रतिरक्षा प्रणाली के खिलाफ लड़ना शुरू कर देता है, क्योंकि PLpro प्रोटीन टाइप 1 इंटरफेरॉन के निर्माण को प्रभावित करता है। इससे शरीर की मारक कोशिकाओं या NK कोशिकाओं को आकर्षित करने की क्षमता कम हो जाती है तथा शरीर वायरल से रोग ग्रस्त हो जाता है।

शोध का महत्त्व:

  • वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि यदि PLpro प्रोटीन निर्माण को औषधीय तरीकों से रोक (ब्लॉक) दिया जाता है तो वायरस की प्रतिकृति निर्माण प्रक्रिया भी रुक जाती है और हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रणाली भी मज़बूत होती है।
  • शोधकर्त्ता अब 'सेल कल्चर' (कृत्रिम वातावरण) में इन प्रक्रियाओं की निगरानी कर सकते हैं।

वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Immune Responses to Viruses):

T सेल:

  • जब एक वायरस किसी व्यक्ति को संक्रमित करता है, तो यह जीवित रहने और अपनी प्रतिकृति निर्माण के लिये मेज़बान कोशिकाओं पर हमला करता है।
  • इस दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली की विशेष कोशिकाएँ; जिन्हें T सेल कहा जाता है, संक्रमित कोशिकाओं की तलाश करती है।
  • 'T सेल रिसेप्टर' वायरस से उत्पन्न पेप्टाइड (संक्रमित कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित कारक) का पता लगाता है तथा T सेल को संक्रमण की चेतावनी देता है।
  • ‘T सेल’ संक्रमित कोशिका को नष्ट करने के लिये साइटोटोक्सिक कारक (Cytotoxic Factors) नामक प्रोटीन मुक्त करता है जो वायरस को नष्ट कर देता है।

NK सेल:

  • वायरस में अनुकूलन की अत्यधिक क्षमता होती हैं जो ‘T सेल’ की पहचान से बचने के लिये नवीन तरीके विकसित कर लेता हैं तथा T सेल संक्रमित कोशिकाओं का पता नहीं लगा पाती है।
  • जब T सेल संक्रमित कोशिकाओं का पता नहीं लगा पाती है तो यह कार्य शरीर की विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं; जिन्हें 'प्राकृतिक मारक कोशिका' (Natural Killer Cell) या संक्षेप में NK सेल कहा जाता है, द्वारा संपन्न किया जाता है।

इंटरफेरॉन (Interferons):

  • वायरस से संक्रमित होने पर कोशिकाओं द्वारा इंटरफेरॉन नामक प्रोटीन का उत्पादन किया जाता है जो वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इंटरफेरॉन संक्रमित कोशिका में वायरस की प्रतिकृति निर्माण प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करके इसे रोकते हैं।
  • इंटरफेरॉन संक्रमित कोशिकाओं के संकेतक अणुओं के रूप में भी कार्य करते हैं तथा निकट की कोशिकाओं में वायरस की उपस्थिति के संबंध में चेतावनी देते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

हरियाणा में एरियल सीडिंग

प्रीलिम्स के लिये:

एरियल सीडिंग

मेन्स के लिये:

एरियल सीडिंग का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने राज्य के अरावली क्षेत्र में हरित आवरण को बेहतर बनाने के लिये एरियल सीडिंग ड्रोनों को तैनात किया है। अरावली और शिवालिक पहाड़ियों के दुर्गम और कठिन स्थलों पर कम वनस्पति घनत्व या खंडहर क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिये इस परियोजना को पायलट आधार पर संचालित किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

एरियल सीडिंग (Aerial Seeding)

  • विवरण:

    • एरियल सीडिंग, रोपण की एक तकनीक है जिसमें बीजों को मिट्टी, खाद, चारकोल और अन्य घटकों के मिश्रण में लपेटकर एक गेंद का आकार दिया जाता है, इसके बाद हवाई
    • उपकरणों जैसे- विमानों, हेलीकाप्टरों या ड्रोन आदि का उपयोग करके इन गेंदों को लक्षित क्षेत्रों में फेंका जाता है/छिड़काव किया जाता है।
  • कार्य:

    • बीजों से युक्त इन गेंदों को निचली उड़ान भरने में सक्षम ड्रोनों द्वारा एक लक्षित क्षेत्र में फैलाया जाता है, इससे बीज हवा में तैरने की बजाय लेपन में युक्त मिश्रण के वज़न से एक पूर्व निर्धारित स्थान पर जा गिरते हैं।
    • इसका एक अन्य लाभ है कि जल और मिट्टी में घुलनशील इन पदार्थों के मिश्रण से पक्षी या वन्य जीव इन बीजों को क्षति नहीं पहुँचाते हैं, जिससे इनके लाभाकारी परिणाम प्राप्त होने की उम्मीदें भी बढ़ जाती है।
  • लाभ:
    • इस विधि के माध्यम से ऐसे क्षेत्र जो दुर्गम हैं, जिनमें खड़ी ढलान या कोई वन मार्ग नहीं होने के कारण, पहुँचना बहुत कठिन है, उन्हें आसानी से लक्षित किया जा सकता है।
    • बीज के अंकुरण और वृद्धि की प्रक्रिया ऐसी है कि मैदानों में इसके छिड़काव के बाद इस पर कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है और इस तरह बीजों को छिड़ककर भूल जाने के तरीके के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
    • न इन्हें जुताई की आवश्यकता होती हैं और न ही रोपण की, क्योंकि वे पहले से ही मिट्टी, पोषक तत्त्वों और सूक्ष्मजीवों से घिरे होते हैं। मिट्टी का खोल उन्हें पक्षियों, चींटियों और चूहों जैसे कीटों से भी बचाता है।
  • सीडिंग ड्रोन का उपयोग:

    • इस विधि के अंतर्गत 25 से 50 मीटर की ऊँचाई से विभिन्न आकारों के बीज के छिड़काव के लिये एक सटीक वितरण तंत्र से सुसज्जित ड्रोन इस्तेमाल किये जा रहे हैं।
    • एक एकल ड्रोन एक दिन में 20,000-30,000 बीज रोपित कर सकता है।
    • क्रियान्वयन:
    • इस तकनीक की प्रभावशीलता का परीक्षण और सफलता दर की समीक्षा करने के लिये 100 एकड़ भूमि पर इस विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
      • इसके अलावा, विशिष्ट घास के बीजों के मिश्रण को भी इसमें शामिल किया जाएगा क्योंकि ये मिट्टी को बांधे रखने में सहायक होते हैं।
  • महत्त्व:

    • यह स्थानीय समुदाय विशेषकर महिलाओं को काम के अवसर प्रदान करेगा, जो इन बीजों की गेंद/सीड बॉल तैयार कर सकती हैं।
    • यह विधि इसलिये भी उपयोगी साबित होगी क्योंकि ऐसे कई क्षेत्र हैं जो या तो पूरी तरह से दुर्गम है, या जहाँ तक पहुँचना बहुत ही कठिन है, जिसके चलते इन क्षेत्रों में वृक्षारोपण के पारंपरिक तरीकों को सफल बनाना कठिन हो जाता हैं।
  • एरियल सीडिंग के लिये उपयोग की जाने वाली प्रजातियाँ:

    • इस तकनीक के तहत इस्तेमाल होने वाली पौधों की प्रजातियाँ, क्षेत्र विशेष की स्थानिक प्रजातियाँ होती हैं।
    • एरियल सीडिंग के माध्यम से जो प्रजातियाँ रोपित की जाएंगी, उनमें एकेसिया सेनेगल (खैरी), ज़िज़िफस मौरिटिआना (बेरी) और होलेरेना एसपीपी (इंद्रजो) शामिल हैं, इन प्रजातियों का इस्तेमाल इसलिये किया जा रहा है क्योंकि इनमें बगैर किसी देख-रेख के भी इन दुर्गम क्षेत्रों में जीवित रहने की संभावना अधिक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

डेयरी क्षेत्र में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग

प्रीलिम्स के लिये:

एंटीबायोटिक प्रतिरोध, ‘राष्ट्रीय दुग्ध सुरक्षा और गुणवत्ता सर्वेक्षण’,

मेन्स के लिये:

डेयरी क्षेत्र में दवाओं के दुरुपयोग और इसके विनियमन से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा जारी एक सर्वेक्षण में डेयरी (दुग्ध उत्पादन) क्षेत्र में एंटीबायोटिक के अनियंत्रित प्रयोग पर चिंता ज़ाहिर की गई है।

प्रमुख बिंदु :

भारतीय डेयरी क्षेत्र:

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, वर्ष 2018-19 में भारत में लगभग 188 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया गया था।
  • भारत में उत्पादित 52% दूध की खपत शहरी क्षेत्रों में होती है।
  • भारतीय बाज़ार में दूध की कुल मांग में से 60% की आपूर्ति असंगठित क्षेत्र के छोटे दूध विक्रेताओं और ठेकेदारों द्वारा की जाती है तथा शेष मांग की आपूर्ति संगठित क्षेत्र की डेयरी सहकारी समितियों (Dairy Cooperatives) और निजी डेयरियों द्वारा की जाती है।

एंटीबायोटिक का दुरुपयोग:

उपलब्धता:

  • एंटीबायोटिक के दुरुपयोग पर प्रतिबंध होने के बावज़ूद भी एंटीबायोटिक दवाएँ किसी पंजीकृत पशु चिकित्सक के परामर्श के बगैर भी बाज़ार में बहुत ही आसानी से उपलब्ध होती हैं।

चिंता का कारण:

  • CSE की रिपोर्ट के अनुसार, किसान अक्सर किसी पशु चिकित्सक का परामर्श लिये बगैर अनुमान के आधार पर पशुओं को एंटीबायोटिक दवाएँ दे देते हैं।
  • किसानों द्वारा पशुओं में ‘स्तन संक्रमण/सूजन’ या ‘मास्टिटिस’ (Mastitis) जैसे रोगों के मामलों में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
  • इनमें कुछ ऐसी एंटीबायोटिक दवाएँ भी शामिल हैं जिन्हें मनुष्यों के लिये ‘अतिमहत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक’ [Critically Important Antibiotics (CIAs) for humans] की श्रेणी में रखा गया है।
  • WHO के अनुसार, CIA के निर्धारण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है-
    • ऐसी एंटीबायोटिक दवाओं से है जो मनुष्यों में होने वाले किसी गंभीर जीवाणु संक्रमण के सीमित (या एकमात्र) विकल्पों में से एक हैं।
    • साथ ही ऐसा जीवाणु संक्रमण मनुष्यों में गैर-मानव स्रोत (जैसे-पशु) से हुआ हो या वह गैर-मानव स्रोत से प्रतिरोधी जीन प्राप्त कर सकता हो।
  • ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब किसी पशु का इलाज चल रहा होता है तब भी किसान उससे प्राप्त दूध की बिक्री जारी रखते हैं। इससे दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों की उपस्थिति की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

अपर्याप्त परीक्षण:

  • किसानों से सीधे ग्राहकों को प्राप्त होने वाले दूध के साथ पैकेट में मिलने वाले प्रसंस्कृत दूध में भी अधिकांशतः एंटीबायोटिक अवशेषों की कोई जाँच नहीं होती है।
  • राज्य दुग्ध संघों द्वारा इकट्ठा किये गए दूध में उपस्थित एंटीबायोटिक अवशेषों की जाँच पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

दुष्परिणाम:

  • हाल के वर्षों में खाद्य पदार्थों के उत्पादन में रसायनों के उपयोग में भारी वृद्धि देखी गई है।
  • खाद्य पदार्थों (जैसे-दूध आदि) में एंटीबायोटिक अवशेषों की उपस्थित से ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ (Antibiotic Resistance) जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

समाधान:

  • सरकार को डेयरी क्षेत्र में CIA और ‘सर्वाधिक प्राथमिकता वाले अति महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक’ (Highest Priority Critically Important Antimicrobials- HPCIA) के उपयोग को कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  • दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों के वर्तमान मानकों को संशोधित किया जाना चाहिये।
  • बगैर चिकित्सीय परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध के साथ बेहतर पशु प्रबंधन और किसानों में एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

यमुना में अमोनिया का उच्च स्तर

प्रीलिम्स के लिये:

जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग, यमुना एवं इसकी सहायक नदियाँ

मेन्स के लिये:

जल में बढ़ते अमोनिया स्तर का मानव स्वास्थ एवं जलीय जीवों पर प्रभाव एवं इसे नियंत्रित करने हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, दिल्ली में यमुना नदी के पानी में अमोनिया के उच्च स्तर (लगभग 3 पार्ट पर मिलियन) का पता चला है जिसके कारण दिल्ली में पानी की आपूर्ति बाधित हुई है। भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) केअनुसार, पीने के पानी में अमोनिया की स्वीकार्य अधिकतम सीमा 0.5 पार्ट पर मिलियन (Parts Per Million-ppm) है।

प्रमुख बिंदु:

  • अमोनिया:

    • इसका रासायनिक सूत्र NH3 है।
    • यह एक रंगहीन गैस है जिसका उपयोग उर्वरक, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, रंजक एवं अन्य उत्पादों के उत्पादन में एक औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
    • इसका निर्माण पर्यावरण में जैविक अपशिष्ट पदार्थ के टूटने से स्वाभाविक रूप से होता है तथा ज़मीन और सतह के जल स्रोतों में यह औद्योगिक अपशिष्टों, सीवेज द्वारा संदूषण या कृषि अपवाह के माध्यम से रिसकर अपना मार्ग स्वयं बना लेता है।
  • अमोनिया के उच्च स्तर का प्रभाव:

    • अमोनिया पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है।
    • यह नाइट्रोजन के ऑक्सीकरण रूप को परिवर्तित कर देता है जिससे ‘जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग’ ( Biochemical Oxygen Demand- BOD) बढ़ जाती है।
    • अगर जल में अमोनिया की मात्रा 1 ppm से अधिक है तो यह जल मछलियों के लिये विषाक्त है।
    • मनुष्यों द्वारा 1 ppm या उससे ऊपर के अमोनिया स्तर वाले जल के दीर्घकालिक अंतर्ग्रहण से आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
  • उपचार:

    • मीठे पानी का प्रदूषित अमोनिया पानी के साथ मिश्रण।
    • क्लोरीनीकरण।
    • क्लोरीनीकरण पानी में सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे क्लोरीन या क्लोरीन यौगिकों को जोड़ने की प्रक्रिया है।
    • इस विधि का उपयोग नल के पानी में कुछ बैक्टीरिया एवं अन्य रोगाणुओं को मारने के लिये किया जाता है हालांकि क्लोरीन अत्यधिक विषाक्त है।
  • दीर्घकलिक उपचार:

    • हानिकारक कचरे को नदी में फेंकने के खिलाफ के खिलाफ जारी दिशा-निर्देशों का सख्ती से कार्यान्वयन करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि अनुपचारित सीवेज/वाहित मल पानी में प्रवेश न करे।
    • जल के एक स्थायी न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना जिसे पारिस्थितिक प्रवाह कहा जाता है।
    • पारिस्थितिक प्रवाह पानी की वह न्यूनतम मात्रा है जो हर समय नदी में नदी के मुहाने पर स्थित पारिस्थितिकी तंत्र, मानव आजीविका तथा स्वतः नियमित को बनाए रखने के लिये प्रवाहित होनी चाहिये।

यमुना

  • यह गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में निम्न हिमालय के मसूरी रेंज में बंदरपूँछ चोटियों के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
  • यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में बहने के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में (संगम) में गंगा नदी से मिल जाती है।
  • युमना की कुल1376 किमी. है।
  • महत्वपूर्ण बांध: लखवार-व्यासी बांध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बांध (हरियाणा) आदि।
  • युमना की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा और केन है।


शासन व्यवस्था

सीमा पर स्थित ग्रामों में पर्यटन

प्रीलिम्स के लिये:

इनर लाइन परमिट

मेन्स के लिये:

सीमा क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने चीन की सीमा से लगे उत्तराखंड राज्य के गाँवों में पर्यटन को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। उत्तराखंड चीन के साथ 350 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • गलवान घाटी में उत्पन्न गतिरोध की पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार पर्यटन संबंधी गतिविधियों के नियमों में लोचशीलता लाकर उत्तराखंड के सीमावर्ती गाँवों में 'रक्षा की एक दूसरी पंक्ति' (Second Line of Defence) के निर्माण की योजना बना रही है।
  • केंद्र सरकार ने भारत के सीमावर्ती गाँवों को सुरक्षित बनाने के लिये 'जनजातीय पर्यटन' की अवधारणा को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।
  • लेकिन इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये 'इनर लाइन परमिट' (ILP) प्रणाली से उत्तराखंड के कुछ हिस्सों को मुक्त करना होगा।

इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली

  • इनर लाइन परमिट ऐसा दस्तावेज़ है जो एक भारतीय नागरिक को ILP प्रणाली के तहत संरक्षित राज्य में जाने या रहने की अनुमति देता है।
  • इनर लाइन परमिट उन सभी के लिये अनिवार्य है जो संरक्षित राज्यों से बाहर रहते हैं।
  • यह सिर्फ यात्रा के प्रयोजनों के लिये संबंधित राज्य द्वारा ही जारी किया जाता है।
  • इनर लाइन परमिट की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत बंगाल के पूर्वी हिस्से की जनजातियों की सुरक्षा के लिये की थी।
  • जब ILP प्रणाली को हटा दिया जाएगा, तो 'राज्य पर्यटन विभाग' ग्रामीण क्षेत्र के घरों को 'होमस्टे' के रूप में विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करेगा जो सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
  • उत्तराखंड सरकार ने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन और नागरिक बस्तियों को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये आवश्यक कदम उठाने की घोषणा की है

सीमा पर्यटन का महत्त्व:

  • सीमावर्ती क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन से इन गाँवों की सुरक्षा और निगरानी सुनिश्चित होगी तथा इससे सैनिकों को यहाँ निगरानी में अतिरिक्त सहायता मिलेगी।
  • यह सीमावर्ती गाँवों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा और रोज़गार सृजन करेगा।
  • यह बाहर की ओर पलायन को भी रोकने में मदद करेगा।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अधिकांश सीमावर्ती गाँवों में आजीविका के अवसरों की कमी होने के कारण बाहरी प्रवासन देखने को मिलता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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