डेली न्यूज़ (31 Jan, 2020)



अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोरोनावायरस (Coronavirus) के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार के जोखिम को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने ‘अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (Public Health Emergency of International Concern- PHEIC) लागू करने की घोषणा की है।

मुख्य बिंदु:

  • WHO के अनुसार, यह वायरस कमज़ोर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली वाले देशों में सर्वाधिक प्रभावी हो सकता है।
  • WHO के अनुसार, जर्मनी, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम सहित 18 अन्य देशों में कोरोनावायरस संक्रमण के 82 मामलों की पुष्टि की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के कारण:

  • चीन से प्रसारित कोरोनावायरस दुनिया के कई देशों में दस्तक दे रहा है, अकेले चीन में ही इस वायरस से मरने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है।
  • चीन में 7,700 से अधिक व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित हुए हैं जिनमें से लगभग 170 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है।
  • पूरे विश्व में कोरोनावायरस से संक्रमित लगभग 8,200 से अधिक मरीज़ हैं, जिसे देखते हुए कोरोनावायरस को अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाना चाहिये।

अन्य वायरस जिनके संबंध में लागू हुआ अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल:

  • WHO ने वर्ष 2007 में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल से संबंधित कानून के प्रभावी होने के बाद से पाँच बार सार्वजनिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल लागू किया है।
  • इससे पहले स्वाइन फ्लू (Swine Flu), पोलियो (Polio), ज़ीका (Zika) के संबंध में एक-एक बार तथा इबोला (Ebola) के संक्रमण के संबंध में दो बार आपातकाल लगाया जा चुका है।

क्या है अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल?

  • कुछ गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाएँ जिनसे अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है और ऐसी आपात स्थितियों के नियमन के लिये WHO द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल लागू किया जाता है।
  • WHO अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल के लिये ‘अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (Public Health Emergencies of International Concern- PHEIC) नामक पद का प्रयोग करता है।
  • PHEIC को अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमन, 2005 (International Health Regulations- IHR)मेंएक असाधारण घटना के रूप में परिभाषित किया गया है जो निम्नलिखित स्थितियों पर विनियमों के उद्देश्य से लगाया जाता है-
    • रोग के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार से अन्य देशों के लिये एक सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होना।
    • ऐसी स्थिति जो कि गंभीर, असामान्य या अप्रत्याशित हो तथा जिसका संक्रमण प्रभावित राज्य की राष्ट्रीय सीमा से परे हो और जिसने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न कर दिया हो तथा ऐसी स्थिति के लिये तत्काल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता हो।

कैसे होता है आपात स्थिति का निर्धारण?

  • आपात स्थिति निर्धारित करने की ज़िम्मेदारी WHO महानिदेशक की होती है, ऐसी स्थिति के निर्धारण के लिये विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाता है जिसे ‘IHR इमरजेंसी कमेटी’ (IHR Emergency Committee) के नाम से जाना जाता है।
  • यह समिति WHO के महानिदेशक को आपातकाल लागू करने के मापदंडों पर सलाह देती है, जिन्हें अस्थायी सिफारिशों के रूप में जाना जाता है।
  • इन अस्थायी सिफारिशों में PHEIC की स्थिति वाले देशों द्वारा प्रयोग में लाए गए स्वास्थ्य देखभाल उपाय भी शामिल किये जाते हैं।
  • इस समिति की सिफारशों के आधार पर WHO महानिदेशक द्वारा PHEIC को लागू किया जाता है।

स्रोत- द हिंदू


निमोनिया के कारण मौतें

प्रीलिम्स के लिये:

UNICEF, निमोनिया रोग

मेन्स के लिये:

बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे, सरकार द्वारा स्वास्थ्य की दिशा में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) के हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में वार्षिक तौर पर होने वाली पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु में से 14% मृत्यु का कारण निमोनिया (Pneumonia) होता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत में वार्षिक तौर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में 14% या लगभग 1,27,000 मौतों का कारण निमोनिया है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2013 में यह आँकड़ा लगभग 1,78,000 था। इनमें से आधे से अधिक मौतें देश के उत्तरी भाग में होती हैं।
  • निमोनिया के कारण वर्तमान मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर पाँच है और इसे वर्ष 2025 तक तीन से कम करने का लक्ष्य है।
  • UNICEF के अनुसार, निमोनिया बच्चों के लिये सबसे बड़ा खतरा है। वैश्विक स्तर पर यह 1,53,000 से अधिक नवजात शिशुओं सहित हर वर्ष पाँच वर्ष से कम उम्र के 8,00,000 से अधिक संक्रमित बच्चों के जीवन को प्रभावित करता है। अर्थात् हर 39 सेकंड में एक बच्चा निमोनिया के कारण मर जाता है।
  • अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में निमोनिया से अत्यधिक मौतें होती हैं जिसमें डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान शामिल हैं। ध्यातव्य है कि निमोनिया के कारण होने वाली कुल मौतों में लगभग आधी मौतें इन पाँच देशों में होती हैं।

निमोनिया के लक्षण:

  • चूँकि निमोनिया फेफड़ों का संक्रमण है, इसलिये इसके सबसे आम लक्षण खाँसी, साँस लेने में परेशानी और बुखार हैं।
  • निमोनिया से पीड़ित बच्चों में तेज साँस लेने संबंधी लक्षण पाए जाते हैं।

क्या निमोनिया संक्रामक रोग है?

  • निमोनिया एक संक्रामक रोग है और वायुजनित कणों (खाँसी या छींक) के माध्यम से फैल सकता है।
  • यह अन्य तरल पदार्थों जैसे बच्चे के जन्म के दौरान रक्त या दूषित सतह के माध्यम से भी फैल सकता है।

निमोनिया के कारण:

  • निमोनिया से होने वाली मौतों के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • कुपोषण
    • टीकों और एंटीबायोटिक्स की पहुँच में कमी
    • वायु प्रदूषण
  • इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (The Institute for Health Metrics and Evaluation) के एक अध्ययन के अनुसार, निमोनिया के प्रमुख कारणों में वायु प्रदूषण का योगदान लगभग 17.5 प्रतिशत है।
  • खाना पकाने के ठोस ईंधन के उपयोग से होने वाले प्रदूषण के कारण लगभग 1,95,000 (या कुल मौतों का 29.4 प्रतिशत) मौतें होती हैं।

निमोनिया की रोकथाम के उपाय

  • पर्याप्त पोषण जैसे सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ाकर और वायु प्रदूषण (जो फेफड़ों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है) तथा अच्छी स्वच्छता प्रथाओं का उपयोग करके जोखिम वाले कारकों को कम किया जा सकता है।
  • अध्ययनों से पता चला है कि यदि साबुन से हाथ धोया जाए तो बैक्टीरिया के संपर्क में आने से होने वाले निमोनिया के खतरे को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
  • निमोनिया का इलाज करने के लिये स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की परिवारों तक आसान पहुँच, सही प्रशिक्षण, दवाओं और नैदानिक ​​उपकरणों का होना आवश्यक है।
  • रोकथाम और उपचार दोनों के लिये मज़बूत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ-साथ संलग्न एवं सशक्त समुदायों की आवश्यकता होती है। लेकिन विश्व स्तर पर निमोनिया से पीड़ित केवल 68 प्रतिशत बच्चे ही स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के पास पहुँच पाते हैं।

आगे की राह

  • देश में बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, साथ ही देशवासियों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की भी आवश्यकता है।
  • ध्यातव्य है कि निमोनिया के उपचार और रोकथाम हेतु सेवाओं को बढ़ाकर दुनिया भर में पाँच वर्ष से कम उम्र के 3.2 मिलियन बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
  • इससे एक लहर प्रभाव (Ripple Effect) भी निर्मित होगा जिससे अन्य प्रमुख बचपन की बीमारियों से 5.7 मिलियन अतिरिक्त बच्चों की मृत्यु को रोका जा सकेगा और साथ ही एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को कम किया जा सकेगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारत की नो-फ्लाई लिस्ट

प्रीलिम्स के लिये:

नो-फ्लाई लिस्ट

मेन्स के लिये:

नो-फ्लाई लिस्ट में प्रतिबंधित व्यवहार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा को इंडिगो एयरलाइंस द्वारा नो-फ्लाई लिस्ट में कर तीन माह के लिये हवाई यात्रा से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

हालिया संदर्भ

  • कुमार कामरा पर यह प्रतिबंध इंडिगो (IndiGo) एयरलाइंस में उड़ान के दौरान समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी के संपादक तथा ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन के गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष, अर्नब गोस्वामी का मजाक बनाने के कारण लगाया गया है।
  • इंडिगो एयरलाइंस के साथ-साथ स्पाइसजेट (SpiceJet), एयर इंडिया (Air India) और गो एयर (GoAir) द्वारा भी उन पर प्रतिबंध लगाया गया गया है।

नो-फ्लाई लिस्ट क्या है?

  • भारतीय संदर्भ में नो-फ्लाई लिस्ट उन यात्रियों के मामले में जारी की जाती है जो हवाई यात्रा के दौरान अपने शारीरिक, मौखिक या फिर किसी भी आपत्तिजनक व्यवहार के माध्यम से यात्रा में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • इस लिस्ट का संकलन और रखरखाव नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation- DGCA) द्वारा एयरलाइंस द्वारा दिये गए विवरण के आधार पर किया जाता है।

नो-फ्लाई लिस्ट (No-Fly List) के अंतर्गत प्रतिबंधित व्यवहार:

किसी भी व्यक्ति के अनियंत्रित व्यवहार को इस लिस्ट के अनुसार तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:

  • पहली श्रेणी में मौखिक व्यवहार को शामिल किया जाता है अर्थात् यदि कोई व्यक्ति हवाई यात्रा के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणी या शब्दों का प्रयोग करता है तो उसे तीन माह के लिये हवाई यात्रा से प्रतिबंधित किया जा सकता है।
  • दूसरी श्रेणी में शारीरिक व्यवहार को शामिल किया जाता है यानी किसी के साथ मारपीट करना, धक्का देना या फिर गलत इरादे से किसी को छुना इत्यादि। इस व्यवहार के लिये यात्री को छह महीने तक हवाई यात्रा से वंचित किया जा सकता है।
  • तीसरी श्रेणी में किसी को जान से मरने की धमकी देने को शामिल किया गया है और इस व्यवहार के लिये कम-से-कम दो साल का प्रतिबंध आरोपित किया जा सकता है।

नो-फ्लाई लिस्ट के नियम:

वर्ष 2017 में सरकार ने हवाई यात्रा के दौरान विघटनकारी या अमान्य व्यवहार को रोकने के लिये नो-फ्लाई सूची हेतु दिशा-निर्देश जारी किये। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार,

  • हवाई यात्रा के दौरान अनियंत्रित व्यवहार की शिकायत पायलट-इन-कमांड द्वारा दर्ज की जाएगी तथा इसकी जाँच एयरलाइन द्वारा गठित आंतरिक समिति द्वारा की जाएगी।
  • समिति 30 दिनों के भीतर मामले का निपटारा करेगी और प्रतिबंध की अवधि भी निर्धारित करेगी।
  • नियमों के अनुसार, जाँच अवधि के दौरान भी एयरलाइन को संबंधित यात्री की हवाई यात्रा पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है।
  • एयरलाइन द्वारा प्रतिबंधित व्यक्ति अपीलीय समिति के आदेश जारी करने की तिथि से 60 दिनों के भीतर अपना पक्ष रख सकता है।

आंतरिक समिति की संरचना:

  • आंतरिक समिति में अध्यक्ष के रूप एक सेवानिवृत्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश को शामिल किया जाता है।
  • इसके अलावा एक प्रतिनिधि को अन्य अनुसूचित एयरलाइन से शामिल किया जाता है।
  • एक सदस्य यात्री संघ या उपभोक्ता संघ के प्रतिनिधि के रूप में होता है।
  • आंतरिक समिति 30 दिनों में अपना निर्णय, लिखित रूप में प्रस्तुत करती है और संबंधित एयरलाइन के लिये यह निर्णय बाध्यकारी होता है।
  • यदि समिति 30 दिनों के भीतर किसी निर्णय पर नहीं पहुँचती है, तो प्रतिबंधित व्यक्ति हवाई यात्रा करने के लिये स्वतंत्र होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019, होम्योपैथी

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 में संशोधन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 (Homoeopathy Central Council Act, 1973) में संशोधन के लिये राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 (National Commission for Homoeopathy Bill, 2019) में आधिकारिक संशोधनों को अपनी मंजूरी दे दी है।

मुख्य बिंदु:

  • इस मसौदा विधेयक में होम्योपैथी के लिये राष्ट्रीय आयोग की स्थापना करने तथा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 में संशोधन कर केंद्रीय होम्योपैथी परिषद को प्रतिस्थापित करने संबंधी प्रावधान किया गया है।
  • वर्तमान में यह विधेयक राज्य सभा में लंबित है।

पृष्ठभूमि:

  • होम्योपैथी की शिक्षा एवं प्रैक्टिस के नियमन, केंद्रीय होम्योपैथी रजिस्टर के रखरखाव तथा संबंधित मामलों को लेकर केंद्रीय होम्योपैथी परिषद के गठन के लिये होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम को भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 (Indian Medical Council Act, 1956) के प्रारूप पर तैयार किया गया है।
  • भारतीय चिकित्सा परिषद के मुख्य क्रियाकलापों में शक्तियों का निर्धारण एवं नियमन करना शामिल है।
  • यह अधिनियम होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा एवं प्रैक्टिस के विकास के लिये एक ठोस आधार प्रदान करता है।
  • परिषद के क्रियाकलापों में अनेक बाधाओं का अनुभव किया गया है जिसके परिणामस्वरूप चिकित्सा शिक्षा के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण होम्योपैथी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर गंभीर हानिकारक प्रभाव पड़ा है।

संशोधन से लाभ:

  • यह संशोधन होम्योपैथिक शिक्षा में कई आवश्यक नियामक सुधारों को सुनिश्चित करेगा।
  • आम जनता के हितों की रक्षा के लिये पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित होंगे।
  • यह आयोग देश के सभी हिस्सों में किफायती स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता को बढ़ावा देगा।

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019:

  • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 को केंद्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा 7 जनवरी, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था।
  • यह विधेयक होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को रद्द करता है और ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली का प्रावधान करता है जो निम्नलिखित उद्देश्य सुनिश्चित करे-
    • उच्च स्तरीय होम्योपैथिक मेडिकल प्रोफेशनल्स को पर्याप्त संख्या में उपलब्ध कराना।
    • होम्योपैथिक मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा नवीनतम चिकित्सा अनुसंधानों को अपनाना।
    • मेडिकल संस्थानों का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
    • एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना करना।

होम्योपैथी

  • होम्योपैथी की खोज एक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (Christian Friedrich Samuel Hahnemann) (1755-1843) द्वारा अठारहवीं सदी के अंत के दशक में की गई थी।
  • यह ‘सम: समम् शमयति’ (Similia Similibus Curentur) या ‘समरूपता’ (let likes be treated by likes) दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है।
  • यह प्रणाली दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।

स्रोत: पीआईबी


सूर्य की सतह का दृश्य

प्रीलिम्स के लिये:

डेनियल के. इनौय सोलर टेलीस्कोप

मेन्स के लिये:

डेनियल के. इनौय सोलर टेलीस्कोप द्वारा ली गई सूर्य की तस्वीरों का वैज्ञानिक महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी संस्था नेशनल साइंस फाउंडेशन (National Science Foundation- NSF) ने हवाई द्वीप पर स्थित डेनियल के. इनौय सोलर टेलीस्कोप (Daniel K. Inouye Solar Telescope- DKIST) की सहायता से सूर्य की सतह की तस्वीरें प्राप्त करते हुए सूर्य की सतह से संबंधित कुछ अभूतपूर्व जानकारियाँ एकत्रित की हैं।

मुख्य बिंदु:

  • NSF ने हवाई स्थित DKIST द्वारा अपने पहले सर्वेक्षण से संबंधित आँकडों और तस्वीरों को जारी किया है।

क्या है नया शोध?

  • DKIST द्वारा प्राप्त सूर्य की सतह की तस्वीरों से यह ज्ञात हुआ है कि सूर्य की बाहरी सतह पूरी तरह से अशांत उबलते प्लाज़्मा के रूप में है।
  • इन चित्रों में सूर्य की बाहरी सतह के नज़दीक का दृश्य दिखाया गया है जो सोने के रंग के सेल (Cell) के प्रतिरूप जैसा दिखता है।
  • सोने के रंग के सेल जैसी ये संरचनाएँ लावा की तरह उबलती हुई दिखाई देती हैं तथा उन गतियों को दर्शाती हैं जो सूर्य की बाहरी सतह से उसकी आतंरिक सतह तक संवहन के माध्यम से ऊष्मा का संचरण करती हैं।

Solar-Telescope

  • वैज्ञानिकों ने एक वीडियो भी जारी किया है, जिसमें सूर्य में होने वाले विस्फोट को 14 सेकंड तक दिखाया गया है।

शोध के लाभ:

  • वैज्ञानिकों का मानना है कि ये तस्वीरें सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र को मापने और समझने में सहायता कर सकती हैं।
  • इन तस्वीरों द्वारा प्राप्त जानकारी से वर्ष 2017 में हरिकेन इरमा (Hurricane Irma) के दौरान आठ घंटे के लिये रेडियो संचार बाधित होने जैसी विघटनकारी अंतरिक्ष मौसमी घटनाओं की भविष्यवाणी करने में सहायता मिल सकती है।
  • सौर चुंबकीय क्षेत्र की बेहतर समझ वर्तमान में दी जाने वाली चेतावनी के समय को 70 गुना तक बढ़ाने में सहायता कर सकती है।
  • इससे बिजली ग्रिड (Power Grids) जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा करने में सहायता मिलेगी।

डेनियल के. इनौय सोलर टेलीस्कोप:

(Daniel K. Inouye Solar Telescope- DKIST)

  • अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन की डेनियल के. इनौय सोलर टेलीस्कोप हवाई के मौई (Maui) द्वीप पर स्थित चार मीटर की एक सौर दूरबीन है।
  • यह वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी सौर दूरबीन है।
  • इस अभिनव दूरबीन का प्रमुख कार्य सूर्य के विस्फोटक व्यवहार को समझने पर ध्यान देने के साथ ही इसके चुंबकीय क्षेत्र का अवलोकन करना है।
  • DKIST में प्रयुक्त चार मीटर का दर्पण सौर वातावरण की उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें प्रदान करता है।
  • नेशनल साइंस फाउंडेशन के अनुसार, इस टेलीस्कोप को अगले छह महीने में अंतर्राष्ट्रीय सौर विज्ञान समुदाय के उपयोग के लिये तैयार किया जाएगा।
  • DKIST अपने जीवनकाल के पहले 5 वर्षों के दौरान ही गैलिलियो द्वारा वर्ष 1612 में पहली बार सूर्य को टेलीस्कोप से देखने से लेकर अब तक एकत्रित किये गए सूर्य संबंधी डेटा की तुलना में अधिक जानकारी एकत्र करेगा।

स्रोत- द हिंदू


इकोसिस्टम-आधारित अनुकूलन

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme-UNEP) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature-IUCN) इकोसिस्टम-आधारित अनुकूलन (2020-2024) के लिये संयुक्त रूप से ग्लोबल फंड (Global Fund for Ecosystem-based Adaptation) लॉन्च कर रहे हैं।

उद्देश्य

  • इस फंड का उद्देश्य अभिनव दृष्टिकोण के साथ पारिस्थितिकी तंत्र आधारित अनुकूलन के लिये लक्षित और तीव्र समर्थन तंत्र प्रदान करना है।

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में मैड्रिड में संपन्न संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 25) में जर्मनी के संघीय पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की कि यह नए UNEP-IUCN कार्यक्रम के लिये 20 मिलियन यूरो प्रदान करेगा।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत संबंधित गैर-सरकारी संगठनों और INGOs के साथ मिलकर काम करने पर विशेष बल दिया जाएगा, साथ ही इसमें तकनीकी ज्ञान और समझ में विशिष्ट अंतराल को ध्यान में रखते हुए सरकारों के साथ काम करने पर विशेष ध्यान होगा।

EbA क्या है?

  • पारिस्थितिक तंत्र-आधारित अनुकूलन (Ecosystem-based adaptation-EbA) ऐसे दृष्टिकोणों के समूह को संदर्भित करता है जो मानव समुदायों की जलवायु परिवर्तन की भेद्यता को कम करने के लिये पारिस्थितिक तंत्र के प्रबंधन को शामिल करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना तटीय क्षेत्रों को बढ़ते समुद्री स्तर के प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करती है, जबकि पहाड़ियों और पहाड़ों पर वनस्पतियों को रोपित करने तथा उनकी बहाली करने से इन क्षेत्रों की अत्यधिक वर्षा के दौरान होने वाले कटाव और भूस्खलन से रक्षा होती है।
  • EbA पारिस्थितिक तंत्र-आधारित या प्रकृति-आधारित जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के उपायों को बढ़ावा देने की गतिविधि का एक प्रमुख स्तंभ है, पिछले कुछ वर्षों में व्यापक स्तर पर लोगों और वैज्ञानिकों का ध्यान गया है।
  • हालाँकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल (International Climate Initiative-IKI) है, तथापि जर्मनी पारिस्थितिकी तंत्र आधारित अनुकूलन के लिये अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को तकरीबन €60 मिलियन तक बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, जिसमें नया UNEP-IUCN कार्यक्रम भी शामिल है।
  • प्रकृति अक्सर जलवायु संबंधी कार्रवाई और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिये सबसे बेहतर समाधान उपलब्ध कराती है। जलवायु संबंधी कार्रवाई और प्रकृति संरक्षण के अलावा ऐसी परियोजनाओं के सामाजिक लाभ भी होते हैं; ये जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य विकासशील देशों के लिये भी लाभकारी साबित होती हैं। इसका एक पमुख कारण यह है कि विकासशील देशों के लोग प्रकृति पर बहुत अधिक सीधे निर्भर होते हैं। कृषि और तटीय संरक्षण के संबंध में भी यही तथ्य सामने आता है।

प्रकृति-आधारित समाधान

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पिछले कुछ समय से वैश्विक जलवायु कार्रवाई के अभिन्न अंग के रूप में प्रकृति आधारित समाधानों को तीव्रता से महत्त्व मिल रहा है, ऐसे में इस कार्यक्रम के अंतर्गत इस प्रकार के समाधानों पर विशेष रूप से बल दिया जाना चाहिये। इस नए कार्यक्रम के अंतर्गत पारिस्थितिक तंत्र में निहित सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग मानव समाज को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने और आवश्यक कार्यवाही करने में किया जा सकता है।
  • पारिस्थितिकी-आधारित अनुकूलन सहित प्रकृति-आधारित समाधान सितंबर 2019 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के एक केंद्रीय बिंदु थे। इस दिशा में यूनेप भी निरंतर कार्य कर रहा है।
  • इतना ही नहीं वर्ष 2009 में आईयूसीएन ने भी पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन की अवधारणा का प्रारूप तैयार किया था और तब से वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति समाज में लोचशीलता को बढ़ाने के लिए इसके उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र आधारित सेवाएँ और जैव-विविधता जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सबसे अच्छे सहयोगी उपाय हैं, यदि इन उपायों को बुद्धिमानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाता हैं तो ये जलवायु परिवर्तन शमन की दिशा में बहुत लाभकारी साबित हो सकते हैं।

UNEP और IUCN अपनी वैश्विक योजनाओं और प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये EbA उपायों को लागू करने की दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं। इस कार्यक्रम द्वारा वित्त पोषित उपायों को विशिष्ट विशेषज्ञता और क्षमता-निर्माण द्वाराa आवश्यक समर्थन प्रदान किया जाएगा, जबकि अनुकूलन के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों हेतु सूचना, ज्ञान और राजनीतिक इच्छाशक्ति को भी सुदृढ़ बनाने का भरपूर प्रयास किया जाएगा। इसके लिये आईयूसीएन और यूनेप अपने व्यापक मौजूदा नेटवर्क, उपकरण और विशेषज्ञता को इस कार्यक्रम के साथ संबद्ध करेंगे, जिसमें फ्रेंड्स ऑफ इकोसिस्टम-आधारित अनुकूलन (Friends of Ecosystem-based Adaptation-FEBA), यह आईयूसीएन द्वारा समर्थित है, और ग्लोबल एडेप्टेशन नेटवर्क (Global Adaptation Network), यूएनईपी द्वारा समर्थित, को शामिल किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 31 जनवरी, 2020

वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर

हाल ही में भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने ‘वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार जीता है। विदित हो कि रानी रामपाल यह पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय हैं। ‘द वर्ल्ड गेम्स' ने विश्व भर के खेल प्रेमियों द्वारा 20 दिन के मतदान के बाद 30 जनवरी, 2020 को विजेता की घोषणा की है। यह पुरस्कार शानदार प्रदर्शन, सामाजिक सरोकार और अच्छे व्यवहार हेतु खिलाड़ियों को दिया जाता है। रानी रामपाल के नेतृत्व में ही देश की महिला हॉकी टीम ने वर्ष 2017 में एशिया कप जीता था।

विनय मोहन क्वात्रा

राजनयिक विनय मोहन क्वात्रा को नेपाल में भारत का नया राजदूत नियुक्त किया गया है। वर्ष 1988 के IFS अधिकारी विनय मोहन क्वात्रा को सेवानिवृत्त हो रहे मंजीव सिंह पुरी के स्थान पर नियुक्त किया गया है। ज्ञात हो कि वर्तमान में वे फ्रांँस में भारत के राजदूत के रूप में कार्यरत हैं। अब तक अपने 30 वर्ष के के कार्यकाल में उन्होंने जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन, चीन, दक्षिण अफ्रीका और उज़्बेकिस्तान में राजनयिक मिशनों में कार्य किया है। इसके अलावा उन्होंने अक्टूबर 2015 से अगस्त 2017 के मध्य प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव के रूप में भी कार्य किया है।

मैथ्यू सत्य बाबू

भारतीय बास्केटबाल टीम के पूर्व कप्तान मैथ्यू सत्य बाबू का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। मैथ्यू सत्य बाबू ने वर्ष 1967 में दक्षिण कोरिया के सियोल, 1969 में बैंकाक और 1970 में मनीला में एशियाई बास्केटबाल चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।