शासन व्यवस्था
जेम संवाद
प्रीलिम्स के लिये
जेम संवाद क्या है, संबंधित मंत्रालय का नाम, तथ्यात्मक पक्ष,
मेन्स के लिये
ई-गवर्नेंस में संदर्भ के रूप में इसका प्रयोग
चर्चा में क्यों?
17 दिसंबर, 2019 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय आउटरीच कार्यक्रम ‘जेम संवाद’ का शुभारंभ किया।
उद्देश्य
- इसका उद्देश्य देश भर में फैले हितधारकों के साथ-साथ स्थानीय विक्रताओं तक पहुँच सुनिश्चित करना या उनसे संपर्क साधना है, ताकि खरीदारों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं खरीदारी संबंधी ज़रूरतों को पूरा करते हुए गवर्नमेंट मार्केटप्लेस (जेम) से स्थानीय विक्रताओं को जोड़ने में आसानी हो सके।
प्रमुख बिंदु
- यह आउटरीच कार्यक्रम 19 दिसंबर, 2019 को शुरू हुआ।
- यह आउटरीच कार्यक्रम 17 फरवरी, 2020 तक जारी रहेगा और यह इस दौरान सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें कवर किया जाएगा।
लाभ
- राज्य सरकारों के विभिन्न विभाग एवं संगठन और सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम अपनी खरीदारी संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये जेम का उपयोग करते रहे हैं।
- राज्यों के विक्रेतागण भी इस पोर्टल का उपयोग कर राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद बाज़ार में अपनी पहुँच के ज़रिये लाभान्वित हो रहे हैं।
- ‘जेम संवाद’ के ज़रिये यह मार्केटप्लेस विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं (यूज़र्स) से आवश्यक जानकारियाँ एवं सुझाव प्राप्त करने की आशा कर रहा है जिनका उपयोग इस पूरी प्रणाली में बेहतरी सुनिश्चित करने में किया जाएगा।
स्रोत: pib
शासन व्यवस्था
लोक संपत्तियों के नुकसान की क्षतिपूर्ति
प्रीलिम्स के लिये:
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984
मेन्स के लिये:
लोक संपत्ति की क्षतिपूर्ति से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देश
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 [The Citizenship (Amendment) Act, 2019-CAA] के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान लोक-संपत्तियों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) द्वारा दी गई क्षतिपूर्ति राशि को स्वीकार करने में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों की उपेक्षा की गई है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2009 में ‘डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज़ Vs स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश एंड अदर्स’ (Destruction of Public & Private Properties v State of AP and Others) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए लोक संपत्तियों को हुए नुकसान और देयता संबंधी दिशा-निर्देश दिया था।
उपरोक्त संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देश एवं प्रक्रिया:
- हिंसा की घटनाओं में नष्ट की गई संपत्ति के लिये ‘अनुकरणीय क्षति’ (Exemplary Damages) का आकलन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया/निजी वीडियो सबूतों पर आधारित होना चाहिये।
- अभियोजन पक्ष (Prosecution) को भी पृथक रूप से यह साबित करना होता है कि किसी संगठन द्वारा की गई प्रत्यक्ष कार्रवाई में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा है और यह संबंधित व्यक्तियों के ‘प्रत्यक्ष कार्यों’ का परिणाम था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं तथा सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने के लिये कहा था।
- ऐसे प्रत्येक मामले में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय को क्षतिपूर्ति का अनुमान लगाने एवं देयता की जाँच के लिये उच्च न्यायालय के वर्तमान/सेवानिवृत्त न्यायाधीश या वर्तमान/सेवानिवृत्त ज़िला न्यायाधीश को दावा आयुक्त (Claims Commissioner) के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिये। दावा आयुक्त की सहायता के लिये एक परामर्शदाता की नियुक्ति भी की जानी चाहिये।
- दावा आयुक्त और मूल्यांकनकर्त्ता, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कार्य करते हुए, क्षति को परिभाषित करने तथा क्षति के लिये ज़िम्मेदार व्यक्तियों से संपर्क स्थापित करने के लिये निजी और सार्वजनिक स्रोतों से वीडियो या अन्य रिकॉर्डिंग का भी प्रयोग कर सकते हैं।
- लोक संपत्ति के नुकसान संबंधी मामले में पूर्ण देयता का सिद्धांत केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा, जिन मामलों में आरोप सिद्ध हो चुके हैं। यह देयता वास्तविक आरोपियों के साथ इसके आयोजकों द्वारा वहन की जाएगी। ज्ञातव्य है कि क्षतिपूर्ति के रूप में वसूली जाने वाली राशि में इन दोनों की देयता न्यायालय द्वारा तय की जाएगी।
- ‘अनुकरणीय क्षति’ की राशि भुगतान की जाने वाली क्षतिपूर्ति के दुगने से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- क्षतिपूर्ति की राशि का आकलन नष्ट की गई सार्वजनिक या निजी संपत्ति के मूल्य, मृतकों एवं घायलों को हुए नुकसान तथा हिंसा को रोकने में अधिकारियों एवं पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई पर आने वाली लागत के आधार पर किया जाना चाहिये। दावा आयुक्त अंत में उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, जो दोनों पक्षों को सुनने के बाद देयता का निर्धारण करेगा।
लोक संपत्तियों के संरक्षण से संबंधित भारतीय कानून:
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984:
(The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984)
- इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
- इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
- कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण किया जाता है।
- तेल संबंधी प्रतिष्ठान
- खान या कारखाना
- सीवेज संबंधी कार्यस्थल
- लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कई अवसरों पर इस कानून को अपर्याप्त बताया है और दिशा-निर्देशों के माध्यम से अंतराल को भरने का प्रयास किया है।
स्रोत- द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
‘रन थ्रू फाइल्स’ सिस्टम
प्रीलिम्स के लिये:
रन थ्रू फाइल्स सिस्टम, ई.गवर्नेंस
मेन्स के लिये:
रन थ्रू फाइल्स सिस्टम की शासन व्यवस्था में उपयोगिता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा सरकार ने सरकारी फाइलों को शीघ्रता से निपटाने एवं विभिन्न विभागीय कार्यों में तीव्रता लाने के लिये हरियाणा सरकार द्वारा ‘रन थ्रू फाइल्स’ (Run Through Files -RTF) प्रणाली की शुरुआत की है।
मुख्य बिंदु:
- हरियाणा सरकार द्वारा केंद्रीकृत फाइल मूवमेंट और ट्रैकिंग सूचना प्रणाली (Centralised File Movement and Tracking Information System- CFMS) के माध्यम से ‘रन थ्रू फाइल्स’ प्रणाली का प्रावधान किया गया है।
- इस प्रणाली की निगरानी स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी।
- CFMS के अंतर्गत एक फाइल को केवल मुख्यमंत्री ही रन थ्रू फाइल के रूप में चिह्नित करेगा।
- इस सिस्टम का मुख्य बल इस बात पर है कि महत्त्वपूर्ण फाइलों को क्लियर करने में विभागीय प्राथमिकताओं एवं विरोधाभासों के कारण विलंब या नुकसान न हो।
- उसके बाद अन्य महत्त्वपूर्ण फाइलों को प्राथमिकता के आधार पर RTF के रूप में चिह्नित कर क्लियर किया जाएगा।
- इन फाइलों की आवाजाही और फाइल को क्लियर करने में लगने वाले समय की मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से समीक्षा की जाएगी।
केंद्रीयकृत फाइल मूवमेंट और ट्रैकिंग सूचना प्रणाली (CFMS)
केंद्रीयकृत फाइल मूवमेंट और ट्रैकिंग सूचना प्रणाली (CFSM) हरियाणा सरकार की एक पहल है। यह वेब आधारित प्रणाली है जो सभी सरकारी कार्यालयों में फाइलों की आवाजाही पर नज़र रखने पर आधारित है।
लाभ:
- सरकारी कार्यो में पारदर्शिता एवं तीव्रता आएगी।
- सरकारी कार्यों एवं योजनाओं का सही एवं समय पर क्रियान्वयन संभव होगा।
- लोगों का शासन व्यवस्था एवं सरकार में विश्वास बढ़ेगा तथा सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होगी।
- ई-गवर्नेंस को बढ़ावा मिलेगा।
ई-गवर्नेंस
ई-गवर्नेंस में "ई" का अर्थ 'इलेक्ट्रॉनिक' है। ई-गवर्नेंस का अर्थ है, किसी देश के नागरिकों को सरकारी सूचना एवं सेवाएँ प्रदान करने के लिये संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में म्याँमार का पक्ष
प्रीलिम्स के लिये:
ICJ, म्याँमार की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये:
रोहिंग्या समस्या, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का महत्व
चर्चा में क्यों?
10 दिसंबर, 2019 को म्याँमार की राज्य सलाहकार आंग सान सू की वर्ष 2016-17 के दौरान रोहिंग्या मुस्लिमों के विरुद्ध हुई हिंसा के मामले में म्याँमार का पक्ष रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice-ICJ) में उपस्थित हुईं।
मुख्य बिंदु:
- ICJ में म्याँमार का पक्ष रखते हुए आंग सान सू की ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सेना ने अराकान रोहिंग्या मुक्ति सेना (Arakan Rohingya Salvation Army-ARSA) नामक चरमपंथी समूह से मुकाबला करने के लिये आवश्यक बल का प्रयोग किया, इसका उद्देश्य लोगों को क्षति पहुँचाना नहीं था।
- सू की ने आरोप लगाया कि ARSA एक आतंकवादी संगठन है जिसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के चरमपंथियों से प्रशिक्षण एवं हथियार प्राप्त होते हैं।
- सू की ने 9 अक्तूबर, 2016 को ARSA द्वारा रखाइन प्रांत में तीन पुलिस चौकियों पर किये गए हमले के बारे में भी न्यायालय को बताया जिसमें 9 पुलिस कर्मियों के साथ 100 अन्य नागरिक मारे गए थे।
- उन्होंने बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में रोहिंग्या लोगों की स्थिति पर दुःख व्यक्त किया।
- सू की ने गाम्बिया पर घटनाओं को गलत तरह से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया।
- म्याँमार पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि रखाइन प्रांत में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को बिना धार्मिक भेदभाव के जन्म प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है तथा बड़ी संख्या में मुस्लिम युवाओं को विश्वविद्यालयी शिक्षा प्रदान करने के लिये प्रबंध किये जा रहे हैं।
- म्याँमार के पक्षकारों ने रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ आपराधिक हिंसा की बात को स्वीकार किया परंतु समुदाय विशेष पर जनसंहार के उद्देश्य से की गई हिंसा के आरोपों को निराधार बताया।
मई 2018 में म्याँमार सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ एक MoU पर हस्ताक्षर किया जिसके तहत लाखों रोहिंग्या लोगों को उनकी स्वेक्छा के अनुरूप सुरक्षित पुनर्वास के लिये म्याँमार सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया गया।
क्या था मामला?
- 25 अगस्त, 2017 को अराकान रोहिंग्या मुक्ति सेना (ARSA) ने उत्तरी रखाइन प्रांत में 30 पुलिस चौकियों पर हमला किया जिसमें लगभग 12 सुरक्षा कर्मियों की मृत्यु हुई और कई अन्य घायल हो गए।
- इसके बाद अगस्त 2017 में ही रोहिंग्या लोगों के खिलाफ की गई कार्यवाई में सेना पर बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोगों के घर जलाने और उनकी सामूहिक हत्या जैसे गंभीर आरोप लगे, इस दौरान लाखों (लगभग 7,45,000) रोहिंग्या लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली।
- मार्च 2019 तक बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार शरणार्थी शिविर में लगभग 9 लाख से अधिक रोहिंग्या लोग बगैर मूलभूत सुविधाओं के रहने को विवश थे।
- विश्व के विभिन्न देशों ने इस कार्यवाही की निंदा की तथा संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘राज्य-प्रायोजित जनसंहार’ की संज्ञा दी।
- नवंबर 2019 में पश्चिमी अफ्रीका के एक छोटे से देश गाम्बिया ने इस्लामिक देशों के समूह (Organisation for Islamic Countries- OIC) की तरफ से इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice-ICJ) में उठाया, इसके बाद ICJ ने म्याँमार को अपना पक्ष रखने के लिये कहा।
- इसी मामले में 10 दिसंबर, 2019 को म्याँमार का पक्ष रखने के लिये आंग सान सू की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उपस्थित हुई थीं।
कौन हैं रोहिंग्या लोग?
- रोहिंग्या म्याँमार का एक मुस्लिम बाहुल्य अल्पसंख्यक समुदाय है, इनमें से अधिकतर म्याँमार के रखाइन प्रांत से संबंध रखते हैं।
- इस समुदाय में कुछ रोहिंग्या हिंदू भी है परंतु इनकी संख्या बहुत ही कम है।
- म्याँमार में रोहिंग्या लोगों ने 1430 के दशक में अराकान प्रांत में बसना शुरू किया।
- वर्ष 1824 में बर्मा (म्याँमार) पर ब्रिटिश विजय के साथ ही यह राज्य ब्रिटिश प्रशासित भारत का अंग बन गया।
- वर्ष 1948 में म्याँमार की स्वतंत्रता तक बंगाल (बांग्लादेश+पश्चिम बंगाल) क्षेत्र से व्यापार और काम की खोज में म्याँमार में रोहिंग्या लोगों का प्रवासन जारी रहा जिसके परिणामस्वरूप इस देश में रोहिंग्या समुदाय की जनसंख्या इन 40 वर्षों में तीन गुना बढ़ गई।
- ब्रिटिश-बर्मा युद्ध के दौरान सहयोग के बदले ब्रिटेन ने रोहिंग्याओं को स्वायत्त राज्य देने का वादा किया, जिसे वर्ष 1948 में पूरा न करने पर रोहिंग्या और म्याँमार के स्थानीय बौद्ध बाहुल्य समुदाय में संघर्ष और बढ़ गया।
- वर्ष 1948 में स्वतंत्रता के पश्चात् म्याँमार सरकार ने मुस्लिमों के लिये किसी अलग राज्य की व्यवस्था नहीं की और साथ ही समुदाय को ‘रोहिंग्या’ के रूप में मान्यता देने से भी इनकार कर दिया।
- वर्ष 1982 के विवादित नागरिकता कानून के अनुसार, रोहिंग्या लोगों को म्याँमार का नागरिक नहीं माना जाता।
म्याँमार में 135 अलग-अलग जनजातीय समूहों को नागरिकता दी गई है लेकिन म्याँमार सरकार रोहिंग्या को मुस्लिम अल्पसंख्यक के रूप में स्वीकार नहीं करती।
रोहिंग्या समुदाय के विरुद्ध हिंसा: म्याँमार में रोहिंग्या समुदाय के प्रति हिंसा का पुराना इतिहास रहा है-
- वर्ष 1962 में म्याँमार में सेना के शासन के साथ ही रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा की शुरुआत हो गई।
- वर्ष 1978 की सैनिक कार्यवाही ‘ऑपरेशन किंग ड्रैगन’ और वर्ष 1991-92 के ‘ऑपरेशन क्लीन एंड ब्यूटीफ़ुल नेशन’ के दौरान म्याँमार की सेना पर रोहिंग्या लोगों के प्रति अत्याचार, सामूहिक हत्या और घर तथा गाँव उजाड़ने के आरोप लगे, इस दौरान लगभग 2 लाख लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली।
- आज म्याँमार के कानून में रोहिंग्या लोगों को अवैध अप्रवासी की संज्ञा दी गई है तथा उन्हें किसी सरकारी सुविधा जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त म्याँमार सरकार पर रोहिंग्या लोगों के विवाह करने और बच्चों के जन्म पर कई तरह की पाबंदियाँ/सीमाएँ निर्धारित करने के आरोप लगते रहे हैं।
रोहिंग्या मुद्दे का भारत का पक्ष :
- भारत अपने पूर्वोत्तर राज्यों की आतंरिक अस्थिरता का कारण बांग्लादेश से हो रहे ऐतिहासिक अवैध प्रवासन को मानता है, ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोगों का भारत आना इस समस्या को और बढ़ाता है।
- रखाइन मुद्दे पर भारत ने हमेशा से एक अच्छे पड़ोसी की तरह म्याँमार का सहयोग किया है।
- वर्ष 2012 में तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री ने रखाइन प्रांत का दौरा किया और 1 मिलियन डॉलर का राहत पैकेज दिया जिसकी सराहना तत्कालीन UN प्रमुख ने भी की।
- 14 सितंबर, 2017 को “ऑपरेशन इंसानियत” के तहत बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या लोगों को भारत द्वारा मदद पहुँचाई गई।
- 19 दिसंबर, 2017 को तत्कालीन गृह राज्य मंत्री ने लोकसभा में भारत में लगभग 40000 रोहिंग्या शरणार्थियों के होने की पुष्टि की। इनमें से कुछ जम्मू, हरियाणा, यूपी, दिल्ली और राजस्थान आदि राज्यों में रह रहे हैं।
- इसी वर्ष भारत द्वारा भेजे गए 22 हज़ार रोहिंग्या लोगों की सूची में 13 हज़ार लोगों के म्याँमार के नागरिक होने की पुष्टि म्याँमार सरकार द्वारा की गई।
- वर्ष 2017 के एक समझौते में भारत सरकार ने अगले पाँच वर्षों में म्याँमार में रोहिंग्या लोगों के हितों के लिये 25 मिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया था, इसी के अंतर्गत जुलाई 2019 में 250 घरों का निर्माण कार्य पूरा किया गया।
आगे की राह:
- पूर्व में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को जनसंहार के मामलों में कई देशों के विरुद्ध निर्णय देते देखा गया है परंतु हाल के कुछ वर्षों में न्यायालय को ऐसे फैसलों से बचते देखा गया है (जैसे 2007 में बोस्निया युद्ध का मामला)।
- इस समय म्याँमार पर अपराध सिद्ध होने से अधिक महत्त्वपूर्ण गाम्बिया की याचिका पर ध्यान देना है जिसमें म्याँमार में इस जातीय जनसंहार को रोकने के लिये हस्तक्षेप करने तथा रोहिंग्या लोगों का पुनर्वास और सुरक्षा सुनिश्चित करनें की बात कही गई है, जिसपर सू की और उनकी सरकार को तुरंत अमल करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तालिबान, अफगानिस्तान में संघर्ष विराम हेतु सहमत
प्रीलिम्स के लिये:
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये:
अफगानिस्तान समस्या का कारण, प्रभाव और समाधान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तालिबान परिषद (Taliban council) ने अफगानिस्तान में एक अस्थायी संघर्ष विराम के लिये सहमति व्यक्त की। अनुमानतः इसके पश्चात् एक विंडो के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ स्थायी शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया जा सकता है।
- अमेरिका द्वारा किसी भी शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने से पहले संघर्ष विराम की मांग की गई थी। शांति समझौते के बाद अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में 18 वर्ष से सक्रिय सैन्य अभियान को समाप्त कर अपने सैनिकों को वापस लाया जा सकेगा।
- अमेरिकी द्वारा विशेष शांति दूत के रूप में नियुक्त ज़ल्माय खलीलज़ाद (Zalmay Khalilzad) सितंबर 2018 से ही धार्मिक मिलिशिया के साथ शांति हेतु वार्ता कर रहे हैं। मिलिशिया (Militia) को एक नागरिक सेना के रूप में समझा जा सकता है। यह विशेष परिस्थितियों में सैनिकों को सहायता प्रदान करती है या सैनिकों के रूप में कार्य भी करती है।
- पिछले वर्ष प्रारंभ की गई वार्ता के दौरान दोनों पक्षों को शांति समझौते पर हस्ताक्षर करना था लेकिन इसी बीच काबुल में हिंसा बढ़ने से एक अमेरिकी सैनिक की मृत्यु हो गई जिससे वार्ता को रोक दिया गया।
- इसके पश्चात् अमेरिकी राष्ट्रपति की अफगानिस्तान यात्रा ने शांति वार्ता में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया तथा तालिबान भी हिंसा में कमी करने की घोषणा के साथ वार्ता हेतु सहमत हुआ।
अफगानिस्तान समस्या की पृष्ठभूमि:
- अफगानिस्तान समस्या के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार तालिबान है। इसका उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में अफगानिस्तान से सोवियत संघ सेना की वापसी के पश्चात् हुआ। उत्तरी पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान ने पश्तूनों के नेतृत्व में अफगानिस्तान में भी अपनी मज़बूत पृष्ठभूमि बनाई।
- विदित है कि तालिबान की स्थापना और प्रसार में सबसे अधिक योगदान धार्मिक संस्थानों एवं मदरसों का था जिन्हें सऊदी अरब द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता था।
- अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के पश्चात् वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था और इससे जन-सामान्य बुरी तरह से परेशान था ऐसी परिस्थिति में राजनीतिक स्थिरता को ध्यान में रखकर अफगानिस्तान में भी तालिबान का स्वागत किया गया।
- प्रारंभ में तालिबान को भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर अंकुश लगाने तथा विवादित क्षेत्रों में अपना नियंत्रण स्थापित कर शांति स्थापित करने जैसी गतिविधियों के कारण सफलता मिली।
- प्रारंभ में दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना प्रभाव बढ़ाया तथा इसके पश्चात् ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर अधिकार कर लिया।
- धीरे-धीरे तालिबान पर मानवाधिकार का उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगने लगे। तालिबान द्वारा विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने की विशेष रूप से आलोचना की गई।
- तालिबान द्वारा न्यूयॉर्क पर किये गए हमले के पश्चात् इसका वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ा इसके शीर्ष नेता ओसामा बिन लादेन को इन हमलों का दोषी बताया गया।
- पिछले कुछ समय से अफगानिस्तान में तालिबान का दबदबा फिर से बढ़ा है और पाकिस्तान में भी उसकी स्थिति मज़बूत हुई है।
- अफगानिस्तान के बारे में?
- अफगानिस्तान दक्षिण पश्चिम एशिया में मुसलमान बाहुल्य जनसंख्या वाला, पामीर पठार के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक स्थलबद्ध देश है।
- काबुल अफगानिस्तान की राजधानी एवं प्रमुख नगर है। कंधार, हेरात, मज़ार-ए-शरीफ और जलालाबाद आदि अन्य मुख्य नगर हैं। अफगानिस्तान की राज्यभाषा पश्तो है।
- अफगानिस्तान के आमू एवं उसकी सहायक कुंदज तथा कोक्चा नदियों द्वारा निर्मित उत्तरी मैदानी भाग को छोड़कर इसका अधिकतर भाग पहाड़ी और पठारी है, जो शेल और चूना पत्थरों से बना है। यहाँ ग्रेनाइट भी मिलता है।
- अफगानिस्तान की मुख्य पर्वत श्रेणी हिंदूकुश है। हिंदूकुश को कोह-ए-बाबा, फिरोज़ कोह और कोह-ए-सफेद जैसे क्षेत्रीय नामों से भी जाना जाता हैं। हिंदूकूश पर्वत के प्रमुख दर्रे खैबर, गोमल एवं बोलन है। प्राचीनकाल में इन्हीं दर्रो से होकर सर्वप्रथम आर्य लोग तथा बाद में मुसलमान, मुगल और अन्य विदेशी भारत आए।
- कार्बनिफेरस युग के पहले यह क्षेत्र टेथिस सागर का एक भाग था। परवर्ती काल में यह ऊपर उठने लगा तथा यहाँ के पठारों एवं पर्वतों का निर्माण तृतीय कल्प (टर्शियरी युग) में हिमालय और आल्प्स के निर्माण के साथ हुआ।
- अफगानिस्तान खनिज पदार्थों की दृष्टि से एक संपन्न देश है, परंतु इसका अभी तक पूरी तरह विकास नहीं हो सका है। निम्न कोटि का कोयला घोरबंद की घाटी में और लटाबाद के समीप मिलता है। नमक कटाघम क्षेत्र में मिलता है। अन्य खनिज पदार्थो में तांबा, हिंदूकुश में; सीसा, हज़ारा में; चाँदी, हज़ाराजत एवं पंजशीर की घाटी में; लोहा घोरबंद की घाटी एवं काफिरिस्तान में; गंधक, मयमाना प्रांत एवं कामार्द की घाटी में; अभ्रक, पंजशीर की घाटी में मिलता है।
- आमू, हरी रूद, मुर्घाब, हेलमाँद, काबुल आदि अफगानिस्तान की प्रमुख नदियाँ हैं। आमू तथा काबुल के अतिरिक्त अन्य नदियाँ अंत:स्थल परिवाही हैं। आमू नदी रोशन एवं दरवाज़ नामक पर्वत श्रेणियों से निकलकर अफगानिस्तान की उत्तरी सीमा निर्धारित करती है। आमू नदी द्वारा अफगानिस्तान के इतर तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और कज़ाखस्तान में निर्मित मैदान को तूरान का मैदान के नाम से जाना जाता है।
- हेलमाँद अफगानिस्तान की सर्वाधिक लंबी नदी है जो हज़ारा एवं दक्षिणी पश्चिमी मरुस्थल से होती हुई सिस्तान क्षेत्र में विलुप्त हो जाती है।
- दक्षिणी मरुस्थल के पश्चिमी भाग में सिस्तान एवं पूर्व में रेगस्तान नामक मरुस्थल हैं। इस क्षेत्र का जलपरिवाह (Drainage) हमुन-ए-हेलमाँद तथा गौद-ए-ज़िर्रेह नामक झीलों में होता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
हर्बिसाइड प्रदूषण एवं कार्बन डॉट्स
प्रीलिम्स के लिये :
हर्बिसाइड प्रदूषण, कार्बन डॉट्स, जलकुंभी,
मेन्स के लिये :
पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने में नैनो प्रोद्योगिकी के अनुप्रयोग।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम के शोधकर्त्ताओं ने कार्बन नैनो कणों/कार्बन डॉट्स (Carbon Dots) के उत्पादन हेतु जलकुंभी (Water Hyacinth) पौधे का प्रयोग किया।
प्रमुख बिंदु:
- जलकुंभी के उपयोग से उत्पादित इन अत्यधिक छोटे (10 नैनोमीटर से भी कम) कणों का इस्तेमाल (आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले) तृणनाशक/हर्बिसाइड- प्रेटिलाक्लोर (Pretilachlor) का पता लगाने के लिये किया जा सकता है।
- हर्बिसाइड का पता लगाने के मामले में इन नैनो कणों को चयनात्मक और संवेदनशील पाया गया।
- इस अध्ययन के आधार पर, शोधकर्त्ताओं का एक समूह प्रेटिलाक्लोर की ऑन-साइट पहचान करने के लिये एक पेपर स्ट्रिप-आधारित सेंसर विकसित करने पर कार्य कर रहा है।
कार्बन डॉट्स का निर्माण
- कार्बन डॉट्स के निर्माण हेतु जलकुंभी के पत्तों से पर्णहरिम यानी क्लोरोफिल को पृथक किया गया, उसके बाद इन्हें सूखाकर पाउडर के रूप में परिवर्तित किया गया।
जब एक नैनो कण का आकार 10 नैनोमीटर से कम होता है तो इस एक डॉट या नैनोडॉट कहा जाता है।
- इस पाउडर को कार्बन डॉट्स में परिवर्तित करने के लिये कई चरणों में इसे उपचारित किया गया जिसमें पाउडर को 150 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करना भी शामिल था।
क्रियाविधि
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, ये कार्बन डॉट्स पराबैंगनी प्रकाश में हरे रंग की प्रतिदीप्ति (Fluorescence) उत्पन्न करने में सक्षम हैं। इस प्रतिदीप्ति का कारण डॉट की सतह पर अत्यंत छोटे ऑक्सीजन कार्यात्मक समूह की उपस्थिति हैं।
- हर्बिसाइड की उपस्थिति में इन कार्बन डॉट्स की प्रतिदीप्ति प्रबलता बढ़ जाती है।
- डॉट और हर्बिसाइड के बीच इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण से प्रतिदीप्ति में वृद्धि होती है।
- ये कार्बन डॉट प्रेटिलाक्लोर (हर्बिसाइड) के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं तथा यह हर्बिसाइड की अत्यंत कम मात्रा की पहचान करने में भी सक्षम है।
लाभ
- कार्बन डॉटस के माध्यम से हर्बिसाइड का पता लगाना तुलनात्मक रूप से एक सस्ता एवं बेहतर विकल्प है क्योंकि इस तकनीक में कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाने वाली जलकुंभी सरलता से उपलब्ध हो सकती है।
- इस तकनीक की मदद से जलकुंभी जैसे अपशिष्ट पदार्थ का प्रयोग उपयोगी तकनीक के विकास में किया जा सकेगा।
हर्बिसाइड प्रदूषण (Herbicide Pollution):
गैर कृषि क्षेत्रों में अवांछनीय पौधों या खरपतवार को नष्ट करने के लिये हर्बिसाइड्स का उपयोग किया जाता है। लेकिन जब हर्बिसाइड अपने संपर्क में आने वाले उपयोगी पौधों को भी नष्ट कर देते हैं तो उसे हर्बिसाइड प्रदूषण कहा जाता है।
जलकुंभी (Water Hyacinth):
- यह एक जलीय पौधा (Hydrophytic Plant) है, जो जल की सतह पर तैरता है। इसका मूल स्थान दक्षिण अमेरिका है।
- यह अपनी संख्या को 2 सप्ताह में ही लगभग दोगुना करने की क्षमता रखता है। इसके बीजों में लगभग 30 वर्षों तक अंकुरण की क्षमता बनी रहती है।
- इसका वैज्ञानिक नाम Eichhornia crassipes है।
जलकुंभी के लाभ:
- जलकुंभी में नाइट्रोजन प्रचुर मात्रा में होती है, अत: इसका उपयोग बायोगैस उत्पादन के विकल्प के रूप में भी किया जा सकता है।
- जलकुंभी आर्सेनिक संदूषित पेयजल से आर्सेनिक को हटाने में भी सक्षम है। अत: पेयजल को शुद्ध करने का यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
फुकुशिमा परमाणु संयंत्र
प्रीलिम्स के लिये
फुकुशिमा परमाणु संयंत्र
मेन्स के लिये
परमाणु संयंत्रों से उत्सर्जित रेडियोएक्टिव तत्त्वों का उपचार एवं निहित समस्याएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापान के आर्थिक एवं उद्योग मंत्रालय ने सुनामी से नष्ट हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में भारी मात्रा में एकत्रित किए गए उपचारित किंतु अभी भी रेडियोएक्टिव जल के क्रमिक निस्तारण या वस्पोत्सर्जन का प्रस्ताव दिया है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2011 में फुकुशिमा दाई-ईची परमाणु संयंत्र (Fukushima Dai-ichi Nuclear Plant) के तीन रिएक्टर कोरों (Reactor Cores) में हुई दुर्घटना के 9 वर्ष बाद तक रिएक्टर कोर को ठंडा रखने के लिये प्रयोग किया जाने वाला जल, रिसाव के कारण इकट्ठा होता गया और उसे टैंकों में एकत्रित किया गया ताकि वह महासागरों में या अन्य कहीं न बह जाए।
- परमाणु संयंत्रों में रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जल का संग्रहण किया जाता है तथा यह जल रेडियोएक्टिव हो जाता है। फुकुशिमा में हुई घटना के बाद इस जल को टैंकों में संरक्षित कर लिया गया था ताकि वह समुद्र या अन्य स्थानों पर न प्रवाहित हो।
- पिछले कई वर्षों से जापान सरकार इस समस्या को हल करने तथा वहाँ के मछुआरों व निवासियों को आश्वस्त करने की कोशिश कर रही है क्योंकि उन्हें इस बात का भय है कि रेडियोएक्टिव जल को छोड़ने से स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं साथ ही साथ उस क्षेत्र की छवि तथा मछली-पालन उद्योग दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
प्रस्तावित उपाय:
- TEPCO (Tokyo Electric Power Company) के अनुसार, इस जल का उपचार किया जा चुका है तथा इसमें मौजूद ट्रिटियम के अलावा 62 प्रकार के रेडियोएक्टिव तत्त्वों को उस स्तर तक निकाला जा सकता है जो मानव स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक नहीं है।
- ट्रिटियम को पूरी तरह जल से अलग करने की कोई स्थापित विधि मौजूद नहीं है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी थोड़ी मात्रा नुकसानदायक नहीं होती है। किंतु ट्रिटियम के अलावा इस जल में मौजूद अन्य रेडियोएक्टिव तत्त्व जैसे- सीज़ियम (Cesium), स्ट्रोंटियम (Strontium), आदि कैंसर के कारक हैं तथा इनको भी आगे उपचारित करना पड़ता है।
- प्रस्तावित उपाय में कहा गया है कि संयंत्र से जल को नियंत्रित मात्रा में प्रशांत महासागर में छोड़ा जाए और उसे वाष्पोत्सर्जित (Evaporation) होने दिया जाए या इन दोनों विधियों को सम्मिलित तौर पर प्रयोग किया जाए।
- इस प्रकार से जल का समुद्र में नियंत्रित निकास एक अच्छा विकल्प होगा क्योंकि यह समुद्र में रेडियोएक्टिव जल की सांद्रता को स्थायी तौर पर कम करेगा और इसको समुद्र के जल में समिश्रित करेगा तथा इसकी निगरानी की जा सकेगी।
- प्रस्ताव में कहा गया है कि इस प्रकार जल के निकास में वर्षों लगेंगे तथा रेडिएशन स्तर को एक निर्धारित सीमा से कम रखा जाएगा।
- पूरे विश्व के परमाणु संयंत्रों से ट्रिटियम को निर्धारित तरीके से लगातार छोड़ा जाता है तथा दुर्घटना से पहले फुकुशिमा से भी छोड़ा जाता था। वर्ष 1979 में अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड (Three Mile Island) परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना के बाद वाष्पोत्सर्जन विधि द्वारा 8,700 टन ट्रिटियम प्रदूषित जल से छुटकारा पाने में 2 वर्ष लगे।
- इसके बाद वाष्पोत्सर्जन विधि को रेडियोएक्टिव जल के उपचार हेतु सर्वमान्य विधि के तहत स्वीकार किया गया।
- सरकार की पहले की रिपोर्टों में इस रेडियोएक्टिव जल के उपचार हेतु पाँच अन्य विधियाँ बताई गई थीं जिनमें जल को समुद्र में छोड़ना तथा वाष्पोत्सर्जन शामिल था। इसके अतिरिक्त अन्य विधियों में इसको भूमि में दबा देना एवं गहराई में स्थित भूगर्भीय परतों में इसे इंजेक्ट करना आदि शामिल था।
प्रभाव:
- TEPCO (Tokyo Electric Power Company) के अनुसार, वर्तमान में इस परमाणु संयंत्र के टैंकों में 1 मिलियन टन रेडियोएक्टिव जल को संग्रहीत किया गया है तथा इसकी कुल क्षमता 1.37 मिलियन टन है जो कि वर्ष 2022 के मध्य तक पूरी तरह समाप्त हो सकती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस जल को अगले वर्ष होने वाले टोक्यो ओलंपिक के बाद छोड़ा जाएगा।
- TEPCO व अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये टैंक फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को नष्ट करने की राह में एक बड़ी बाधा हैं। इसके अलावा इनके स्थान को खाली कराने की आवश्यकता है ताकि परमाणु संयंत्र से निकले मलबे तथा अन्य रेडियोएक्टिव पदार्थों को एकत्रित किया जा सके। इसके अलावा सुनामी, भूकंप या किसी अन्य आपदा की स्थिति में इन टैंकों से रिसाव भी हो सकता है।
- इसके अलावा इसके एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण में निहित तकनीकी समस्याएँ भी चुनौतीपूर्ण होती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के विशेषज्ञों व अन्य विशेषज्ञों, जिन्होंने फुकुशिमा संयंत्र का निरीक्षण किया है, का मानना है कि इस जल को नियंत्रित तरीके से समुद्र में छोड़ना ही एकमात्र उचित विकल्प है।
पैनल में मौजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये जिन्होंने पूर्व में भी इस जल के आकस्मिक रिसाव तथा जल के संभावित निकास के कारण अपनी छवि को नुकसान पहुँचते हुए देखा है। संभवतः इसीलिये तकनीकी तौर पर रेडियोएक्टिव जल को समुद्र में छोड़ना एक उचित विकल्प है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
नौसेना के लिये 24 नई पनडुब्बियाँ बनाने की योजना
प्रीलिम्स के लिये
भारतीय नौसेना
मेन्स के लिये
भारत-रूस संबंध, हिंद महासागर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसदीय दल के समक्ष नौसेना द्वारा प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में नौसेना ने अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि के लिये 24 नई पनडुब्बियों के निर्माण की योजना पर बल दिया है।
मुख्य बिंदु:
- हाल के दिनों में हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की गतिविधियाँ बढ़ी हैं जिसे देखते हुए भारतीय नौसेना ने अपनी मूलभूत संरचना में कई नए सुधार किये हैं।
- इसी प्रक्रिया के अंतर्गत नौसेना ने अपनी वर्तमान क्षमता की स्थिति और भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा को संसदीय दल के साथ साझा किया।
- नौसेना द्वारा साझा की गई रिपोर्ट में बताया गया कि पनडुब्बी सिंधुराज के मेजर रिफिट लाइफ सर्टिफिकेशन (Major Refit and Life Certification-MRLC) की प्रक्रिया अभी तक बाधित है, क्योंकि अमेरिकी (USA) प्रतिबंधों के कारण रूस इंटीग्रिटी पैक्ट बैंक गारंटी (Integrity Pact Bank Guarantee) प्रदान करने में असफल रहा है।
- भारतीय नौसेना की सभी इकाइयाँ एक व्यापक परिचालन-सह-परिशोधन चक्र (comprehensive operational-cum-refit cycle) का पालन करती हैं। MRLC कार्यक्रम, जिसके तहत एक पनडुब्बी को नवीनतम तकनीक और नौसैनिक प्रणालियों के साथ परिष्कृत किया जाता है, एक अत्यंत लंबी और प्रौद्योगिकीय रूप से जटिल प्रक्रिया है। आम तौर पर इसमें लगभग 24-27 महीने लगते हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा 1 जनवरी, 2013 के बाद से 50 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के रक्षा सौदों में भावी विक्रेताओं/कंपनियों से इंटीग्रिटी पैक्ट बैंक गारंटी पर हस्ताक्षर की अनिवार्यता लागू की गई है।
भारत सरकार ने यह व्यवस्था रक्षा सौदों में बिचौलिओं, धोखाधड़ी और अन्य गड़बड़ियों से बचने के लिये की है।
- रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार, नौसेना के बेड़े (Fleet) में अभी 15 पारंपरिक तथा 2 परमाणु पनडुब्बियाँ हैं, जिनमें से एक INS अरिहंत और दूसरी रूस से अनुबंधित (Leased) INS चक्र है।
- लेकिन इनमें से ज़्यादातर 25 वर्ष से अधिक पुरानी हैं, इनमें से 13 पनडुब्बियाँ 17 से 32 वर्ष पहले नौसेना में शामिल की गई थीं।
- नौसेना ने जानकारी दी है कि रक्षा मंत्रालय ने मुंबई के मझगांगाँव बंदरगाह पर प्रोजेक्ट-75 के तहत 6 पनडुब्बियों के निर्माण सहित ऐसी कई अन्य परियोजनाओं में देरी को देखते हुए 6 पुरानी पनडुब्बियों के MRLC की स्वीकृति दे दी है।
Project-75: प्रोजेक्ट 75 रणनीतिक साझेदारी (Strategic Partnership) मॉडल पर आधारित स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण की एक परियोजना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत मझगाँव डॉक्स शिपबिल्डर्स लिमिटेड, महाराष्ट्र में 45 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश कर स्थानीय तथा विदेशी कंपनियों के सहयोग से वर्ष 2030 तक कई पारंपरिक तथा परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण की योजना है।
- रिपोर्ट में नौसेना ने 18 पारंपरिक और 6 परमाणु पनडुब्बियों की योजना को प्रस्तावित किया है।
- अमेरिका ने रूस पर यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के आरोप के कारण तथा हाल ही में CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के तहत कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं।
- रूस ने तीसरी पनडुब्बी सिन्धुरत्न का MRLC प्राप्त करने के लिये भारतीय कंपनी L&T (लार्सन & ट्यूब्रो) को अपने पसंदीदा साझेदार के रूप में चुनने की इच्छा जाहिर की है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 30 दिसंबर, 2019
चीनी भाषा में साइन बोर्ड
उत्तर प्रदेश में पुरातात्विक महत्त्व के पाँच संरक्षित स्थलों पर चीनी भाषा में साइन बोर्ड लगाए गए हैं। इन स्थलों में बौद्धकालीन अवशेष वाला सारनाथ का चौखंडी स्तूप, कुशिनगर, महापरिनिर्वाण मंदिर, पिपरवाह और श्रावस्ती शामिल हैं। साइन बोर्ड पाँच विदेशी भाषाओं में लगाए जाएंगे। इसकी शुरुआत नवंबर 2019 में सिंहली भाषा के साइन बोर्ड लगाने के साथ की गई थी। ऐसा श्रीलंका से बड़ी संख्या में लोगों के मध्यप्रदेश में स्थित सांची स्तूप देखने आने के मद्देनज़र किया गया।
सेतुरमन पंचनाथन
अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सेतुरमन पंचनाथन को नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) का प्रमुख (निदेशक) नियुक्त किया गया है। इस पद पर वह फ्रेंच ऐनी डोमिनिक कोरडोवा (France Anne-Dominic Córdova) का स्थान लेंगे। NSF एक अमेरिकी सरकारी संस्था है जो विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के सभी गैर-चिकित्सकीय क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान एवं शिक्षा में सहायता करती है। वर्तमान में पंचनाथन एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (ASU) में कार्यकारी उपाध्यक्ष और मुख्य अनुसंधान एवं नवोन्मेष अधिकारी के रूप में नियुक्त है।
देश का पहला ट्रांसजेंडर विश्वविद्यालय
देश का पहला ट्रांसजेंडर विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले में खोला जाएगा। इस विश्वविद्यालय में देश-दुनिया के ट्रांसजेंडर विद्यार्थियों को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा मुफ्त मिलेगी। कुशीनगर ज़िले की कसया तहसील में ऑल इंडिया ट्रांसजेंडर शिक्षा सेवा ट्रस्ट (All-India transgender education service trust) द्वारा इस विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाएगा।
पश्चिमी अफ्रीकी देशों की साझी मुद्रा ‘इको’
हाल ही में पश्चिमी अफ्रीका के आठ देशों ने अपनी साझा मुद्रा (करेंसी) का नाम बदल कर ‘इको’ करने का निर्णय लिया है। इन देशों ने उपनिवेश काल के शासक फ्राँस से मौजूदा मुद्रा 'CFA फ्रैंक' को भी अलग करने का निर्णय लिया है। ये आठ देश बेनिन, बुर्किना फासो, गिनी-बिसाउ, आईवरी कोस्ट, माली, नाइजर, सेनेगल और टोगो हैं। इन देशों ने फ्राँसीसी औपनिवेशिक काल के अस्तित्व को समाप्त करने का फैसला किया है। गिनी-बिसाउ को छोड़कर ये सभी देश फ्राँस के पूर्व उपनिवेश हैं। यह नई मुद्रा 2020 में प्रचलन में आ जाएगी। मुद्रा का नाम बदलने के बाद इन देशों की मुद्रा के संबंध में फ्राँस का किसी भी तरह का हस्तक्षेप रुक जाएगा।
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। इस साल सितंबर में अमिताभ बच्चन को यह पुरस्कार दिये जाने का एलान किया गया था।