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डेली न्यूज़

  • 30 Nov, 2019
  • 29 min read
शासन व्यवस्था

विचाराधीन कैदी

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा विचाराधीन कैदियों के संबंध में उठाया गया कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री द्वारा राज्यसभा में विचाराधीन कैदियों के संदर्भ में चर्चा की गई।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि उन्होंने देश के सभी 25 उच्च न्यायालयों से अपील की है कि वे लंबित मामलों की तेजी से सुनवाई करने के साथ ही सजा की 50% अवधि पूरी कर चुके विचाराधीन कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करें।
  • केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री के अनुसार, विचाराधीन कैदियों की रिहाई भारत में जेल सुधार प्रक्रिया का एक हिस्सा है।

अन्य सुधार:

  • अगर कोई कैदी किसी गंभीर मामले में अपराधी नहीं है और उसने अपनी सजा की 50% अवधि एक विचाराधीन कैदी के रूप में पूरी कर ली है तो इन सुधारों के अंतर्गत उसे रिहा कर दिया जाना चाहिये।
  • जहाँ तक जमानत पर रिहाई का सवाल है तो यह कार्य केवल न्यायपालिका द्वारा किया जा सकता है।
  • जमानती बॉण्ड के न भरने तथा जाँच से भागने वाले कैदियों से संबंधित विषय एक जटिल मुद्दा है।
  • ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Record Bureau- NCRB) के अनुसार, भारतीय जेलों की क्षमता 3.91 लाख कैदियों को रखने की है परंतु इन जेलों में अभी भी लगभग 4.5 लाख कैदी रहते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

(National Crime Record Bureau- NCRB):

  • NCRB की स्थापना गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में अपराध और अपराधियों की सूचना संग्रह करने के लिये की गई थी।
  • वर्ष 2009 से यह अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS) योजना की देख-रेख, समन्वय तथा लागू करने का कार्य कर रहा है।
  • NCRB का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारतीय पुलिस को अपराध तथा अपराधियों की जानकारी देकर कानून व्यवस्था बनाए रखने और लोगों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाना है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय राजनीति

राज्य स्तरीय राजनीतिक दल

प्रीलिम्स के लिये

राज्य स्तरीय राजनीतिक दल,

मेन्स के लिये

राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें, राष्ट्रीय तथा राज्य राजनीतिक स्तरीय दल होने के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (JJP) को राज्य स्तरीय दल का दर्जा प्रदान किया।

मुख्य बिंदु:

  • JJP का गठन दिसंबर 2018 में इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के विभाजन के बाद हुआ था।
  • हाल ही में हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में JJP ने दस सीटों पर जीत हासिल की तथा भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर सरकार बनाई।
  • ध्यातव्य है कि JJP अब तक एक गैर-मान्‍यता प्राप्‍त पंजीकृत दल था जिसे सभी शर्तों को पूरा करने के बाद, निर्वाचन आयोग ने राज्य स्तरीय दल के तौर पर मान्यता प्रदान की।

राज्य स्तरीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें:

  • किसी राजनीतिक दल को राज्य स्तरीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाएगी जब वह निम्नलिखित अहर्ताओं में से किसी एक को पूरा करता हो-
    • दल ने राज्य की विधानसभा के लिये हुए चुनावों में कुल सीटों का 3 प्रतिशत या 3 सीटें, जो भी अधिक हो, प्राप्त किया हो।
    • लोकसभा के लिये हुए आम चुनाव में दल ने राज्य के लिये निर्धारित प्रत्येक 25 लोकसभा सीटों में 1 सीट पर जीत दर्ज की हो।
    • राज्य में हुए लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में दल ने कुल वैध मतों के 6 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों तथा इसके अतिरिक्त उसने 1 लोकसभा सीट या 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की हो।
    • राज्य में लोकसभा या विधानसभा के लिये हुए चुनावों में दल ने कुल वैध मतों के 8 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें:

  • किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाएगी जब वह निम्नलिखित अहर्ताओं में से किसी एक को पूरा करता हो-
    • लोकसभा चुनावों में कुल लोकसभा सीटों की 2 प्रतिशत (11 सीट) सीटों पर जीत हासिल करता हो तथा ये सीटें कम-से-कम तीन अलग-अलग राज्यों से हों।
    • लोकसभा या राज्यों के विधानसभा चुनावों में 4 अलग-अलग राज्यों से कुल वैध मतों के 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे तथा इसके अतिरिक्त 4 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करे।
    • यदि कोई दल चार या इससे अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करे।

किसी भी राजनीतिक दल के लिये राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दलों की श्रेणी में बने रहने हेतु यह आवश्यक है कि वह आगामी चुनावों में भी उपरोक्त अहर्ताओं को पूरा करे अन्यथा उससे वह दर्जा वापस ले लिया जाएगा।

राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय दल होने के लाभ:

  • अगर किसी पंजीकृत दल को राज्‍य स्‍तरीय दल की मान्यता प्राप्त है तो उसे जिस राज्‍य में मान्‍यता प्राप्‍त है, वहाँ अपने उम्‍मीदवारों को दल के लिये सुरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित करने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है।
  • यदि किसी दल को राष्‍ट्रीय दल का दर्जा हासिल है तो उसे पूरे भारत में अपने उम्‍मीदवारों को दल के लिये सुरक्षित चुनाव चिन्‍ह आवंटित करने का विशेष अधिकार प्राप्‍त होता है।
  • मान्‍यता प्राप्‍त राष्‍ट्रीय या राज्‍यस्‍तरीय उम्‍मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करते वक्‍त सिर्फ एक ही प्रस्‍तावक की ज़रूरत होती है।
  • इसके अलावा उन्‍हें मतदाता सूचियों में संशोधन के वक्‍त मतदाता सूचियों के दो सेट नि:शुल्क पाने का अधिकार भी होता है। आम चुनाव के दौरान उनके उम्‍मीदवारों को भी मतदाता सूची का एक सेट नि:शुल्क पाने का हक होता है।
  • इसके अलावा आम चुनाव के दौरान उन्‍हें आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा भी मिलती है।
  • ऐसे राजनीतिक दलों को आम चुनाव के दौरान अपने स्‍टार-प्रचारक (Star Campaigner) नामित करने की सुविधा भी प्राप्‍त होती है।
  • एक मान्‍यता प्राप्‍त राष्‍ट्रीय या राज्‍य स्‍तरीय दल अपने लिये अधिकतम 40 स्‍टार-प्रचारक रख सकता है, जबकि एक गैर मान्‍यता प्राप्‍त पंजीकृत दल अधिकतम 20 स्‍टार-प्रचारक ही रख सकता है। इन स्‍टार प्रचारकों की यात्रा का खर्च उस उम्‍मीदवार या दल के खर्च में नहीं जोड़ा जाता जिसके पक्ष में ये प्रचार करते हैं।

स्रोत: द हिंदू, पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

गैर-सरकारी विधेयक

प्रीलिम्स के लिये:

गैर-सरकारी विधेयक

मेन्स के लिये:

संसदीय कार्यप्रणाली से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सदन में कुछ सांसदों द्वारा शुक्रवार के स्थान पर बुधवार को गैर-सरकारी विधेयक प्रस्तुत करने का दिन निर्धारित करने की मांग की गई है।

गैर सरकारी विधेयक क्या है?

  • संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं हैं, उन्हें संसद का गैर-सरकारी सदस्य कहा जाता है।
  • इन सदस्यों द्वारा पेश किये गए विधेयक को गैर-सरकारी विधेयक कहते हैं।
  • यह विधेयक राज्यसभा और लोकसभा दोनों में पेश किया जा सकता है।
  • गैर- सरकारी विधेयक किसी भी विषय से संबंधित हो सकता है, जिसमें संविधान संशोधन विधेयक भी शामिल है।
  • यह विधेयक सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी दल के मंतव्य को प्रदर्शित करता है।

विधेयक प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया:

  • गैर-सरकारी विधेयक का मसौदा सांसद या उनके कर्मचारियों द्वारा तैयार किया जाता है। इन विधेयकों के तकनीकी और कानूनी मामलों की जाँच संसद सचिवालय द्वारा की जाती है।
  • इस विधेयक को पेश करने के लिये एक माह के नोटिस के साथ विधेयक के उद्देश्य और कारणों के विवरण की एक प्रति होनी चाहिए।
  • वर्ष 1997 तक प्रति सप्ताह 3 विधेयक प्रस्तुत किये जा सकते थे, जिनकी संख्या बाद में घटा कर प्रति सत्र 3 कर दी गई।
  • गैर-सरकारी विधेयकों को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है।

आँकड़े:

  • एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 से 2014 के बीच कुल 372 गैर सरकारी विधेयक प्रस्तुत किये गए, जिनमें से केवल 11 विधेयकों पर चर्चा की गई।
  • स्वतंत्रता के बाद से आज तक केवल 14 ऐसे गैर-सरकारी विधेयक हैं जिन पर क़ानून बनाया गया है।
  • वर्ष 1970 के बाद प्रस्तुत कोई भी गैर-सरकारी विधेयक क़ानून नहीं बन सका है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विधेयक को वर्ष 2014 में राज्यसभा द्वारा 45 वर्षों बाद पारित किया गया।

विधेयकों की असफलता के कारण:

  • गैर-सरकारी विधेयकों को स्वेच्छा या अनिच्छा से सत्ता पक्ष द्वारा नज़रअंदाज़ किये गए मुद्दों पर ध्यान देने के लिये अस्तित्व में लाया गया।
  • किसी भी गैर-सरकारी विधेयक का सफलतापूर्वक पारित होना, सरकार की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
  • इस प्रकार के विधेयक को अगर सदन में समर्थन मिल भी जाता है तो सत्ता पक्ष उसे सरकारी विधेयक की तरह पारित करवाने की कोशिश करता है।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत

प्रीलिम्स के लिये:

COP-25

मेन्स के लिये:

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत

चर्चा में क्यों?

2-13 दिसंबर, 2019 तक स्पेन की राजधानी मैड्रिड (Madrid) में आयोजित होने वाले ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के 25वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-25) में भारत समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों के सिद्धांत पर ज़ोर देगा।

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व तथा संबंधित क्षमताएँ

(Common But Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities- CBDR-RC):

  • इसका अर्थ यह है कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई में विकासशील और अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि विकसित होने की प्रक्रिया में इन देशों ने सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है और ये देश जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।
  • पेरिस जलवायु समझौते के अंतर्गत विभिन्न राष्ट्रों की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए विभेदित उत्तरदायित्त्वों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत का पालन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2019 के सम्मेलन के आयोजन की ज़िम्मेदारी चिली की थी लेकिन चिली ने आंतरिक कारणों से देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए COP-25 के आयोजन में असमर्थता जताई थी।
  • COP-25 के लिये भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर द्वारा किया जाएगा।

क्या रहेगा भारत का रुख?

  • भारत सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, COP-25 में भारत का दृष्टिकोण UNFCCC और पेरिस समझौते के सिद्धांतों पर आधारित होगा तथा विशेष रूप से CBDR-RC के सिद्धांत पर आधारित होगा।
  • इस विज्ञप्ति के अनुसार, विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन विरोधी महत्त्वाकांक्षी कार्यों को करने तथा इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये वर्ष 2020 तक 100 बिलियन डॉलर जुटाने की वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।
  • भारत के अनुसार, विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन को रोकने से संबंधित प्रयासों के लिये अपना वित्तीय समर्थन बढ़ाना चाहिये ताकि विकासशील देश अपनी कार्य योजनाओं को सुनिश्चित कर सकें।
  • भारत विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक तय की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर ज़ोर देगा ताकि वर्ष 2020 से पहले विकसित देशों द्वारा पूरी न की जा सकी प्रतिबद्धताएँ वर्ष 2020 के बाद विकासशील देशों पर अतिरिक्त बोझ न बन पाएँ।
  • वर्ष 2015 में संपन्न पेरिस जलवायु समझौता वर्ष 2020 के बाद विश्व के सभी राष्ट्रों के लिये जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्य करने की योजना प्रस्तुत करता है।
  • इसके अनुसार, सभी देशों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) करना होगा।
  • ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ के तहत विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 से पहले जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रतिबद्धताएँ सुनिश्चित की गई थीं।
  • इस विज्ञप्ति में भारत की दो जलवायु कार्रवाई पहलों की चर्चा की गई है-

आपदा प्रतिरोधी संरचना के लिये गठबंधन

(The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure):

  • इस पहल के माध्यम से विभिन्न देशों को जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे पर जानकारी के आदान-प्रदान करने के लिये एक मंच उपलब्ध होगा।

उद्योग संक्रमण के लिये नेतृत्त्व समूह

(Leadership Group for Industry Transition):

  • इस पहल को भारत और स्वीडन द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभ किया गया है। इस पहल के माध्यम से विभिन्न देशों में सरकारी और निजी क्षेत्र के लिये एक मंच उपलब्ध कराया जाएगा ताकि प्रौद्योगिकी नवाचार के क्षेत्र में सहयोग तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर कार्य किया जा सके।

स्रोत- द हिंदू बिzनेस लाइन


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल सल्फर कैप

प्रीलिम्स के लिये

ग्लोबल सल्फर कैप क्या है, इसे लागू करने वाली संस्था

मेन्स के लिये

प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में ग्लोबल सल्फर कैप की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के पोत परिवहन महानिदेशालय (Directorate General of Shipping) ने 1 जनवरी, 2020 से ग्लोबल सल्फर कैप (Global Sulphur Cap) के अनुपालन के लिये विभिन्न हितधारकों को अधिसूचित किया।

मुख्य बिंदु:

  • ग्लोबल सल्फर कैप के तहत जहाज़ों के ईंधन में प्रयोग होने वाले सल्फर के प्रयोग में 0.50% m/m (mass by mass) की कटौती की जाएगी।
  • कच्चे तेल के आसवन (Distillation) के बाद बचे हुए अवशेष से जहाज़ों में प्रयोग होने वाला बंकर ऑयल प्राप्त किया जाता है। इसमें भारी मात्रा में सल्फर पाया जाता है तथा इसके दहन पर यह सल्फर ऑक्साइड बनाता है।
  • सल्फर ऑक्साइड मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह श्वसन तथा फेफड़ों से संबंधित बीमारियों को जन्म देता है।
  • पर्यावरण में यह अम्लीय वर्षा के लिये उत्तरदायी है जिससे फसल, जंगल तथा जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है। साथ ही यह समुद्र के अम्लीकरण के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक संगठन (International Maritime Organisation-IMO) ने जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (International Convention for the Prevention of Pollution from Ships) या मारपोल अभिसमय 1973 (MARPOL Convention) द्वारा वर्ष 2005 में जहाज़ों से होने वाले सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये थे। भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • IMO ने पर्यावरणीय प्रभाव तथा जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए 1 जनवरी, 2020 से सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में और अधिक कटौती करने का निर्णय लिया है। इसके द्वारा निर्धारित उत्सर्जन नियंत्रण क्षेत्र (Designated Emission Control Area) से बाहर संचालित किसी जहाज़ में प्रयुक्त ईंधन में सल्फर की मात्रा में 0.50% m/m (mass by mass) की कमी की जाएगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (30 नवंबर)

50वाँ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

20 नवंबर, 2019 से गोवा में शुरू हुए 50वें इंटरनेशनल इंडियन फिल्म फेस्टिवल का 28 नवंबर, 2019 काे समापन हुआ। इस दौरान 76 देशों की 190 फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई। बेस्ट फिल्म का गोल्डन पीकॉक अवॉर्ड ब्लेस हैरिसन को फिल्म पार्टिकल्स के लिये मिला। बेस्ट एक्टर मेल सिल्वर पीकॉक अवॉर्ड सियू जॉर्ज को फिल्म मारिघेल्ला के लिये मिला। बेस्ट एक्ट्रेस फीमेल का सिल्वर पीकॉक अवॉर्ड ऊषा जाधव को फिल्म माई घाट क्राइम नंबर 103/2005 के लिये मिला। भारतीय निर्देशक लिजो जोस पेलिसरी ने अपनी फिल्म जल्लीकट्टू के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीता। प्रसिद्ध संगीतकार इलैया राजा को लीजेंड्स ऑफ इंडिया कैटेगरी में सम्मानित किया गया।


इसरो का ‘विक्रम’ प्रोसेसर

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने भविष्य में सभी भारतीय रॉकेटों का मार्गदर्शन और नियंत्रण करने के लिये स्वदेश निर्मित विक्रम प्रोसेसर बनाया है। 'विक्रम’' प्रोसेसर ने 27 नवंबर को 'कार्टोसैट-3' सैटेलाइट के साथ लॉन्च किये गए PSLV-C47 रॉकेट का मार्गदर्शन किया। गौरतलब है कि PSLV-C47 रॉकेट में पहली बार स्वदेश निर्मित प्रोसेसर का इस्तेमाल हुआ। PSLV-C47 रॉकेट को ‘विक्रम’ प्रोसेसर के साथ फिट किया गया था, जिसे चंडीगढ़ स्थित सेमी-कंडक्टर प्रयोगशाला द्वारा अंतरिक्ष विभाग के तहत डिज़ाइन, विकसित और निर्मित किया गया था। ‘विक्रम’ प्रोसेसर का उपयोग रॉकेट के नेविगेशन, मार्गदर्शन और नियंत्रण व सामान्य प्रसंस्करण अनुप्रयोगों के लिये भी किया जा सकता है।


ज्ञानपीठ पुरस्कार

प्रख्यात मलयाली कवि अक्कीतम अच्युतन नंबूदिरी को 55वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। ज्ञानपीठ चयन बोर्ड ने उनका चयन वर्ष 2019 के ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिये किया है। वर्ष 1926 में जन्मे अक्कतीम ने कविताओं के अलावा नाटक, संस्मरण, आलोचनात्मक निबंध, बाल साहित्य और अनुवाद का उत्कृष्ट काम किया है। इनकी कई रचनाओं का कई भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। अक्कीतम की ज्यादातर रचनाओं को क्लासिक माना जाता है। उनकी कविताओं में भारतीय दार्शनिक व सामाजिक मूल्यों का समावेश मिलता है जो कि आधुनिकता और परंपरा के बीच एक सेतु की तरह हैं। अक्कीतम में अब तक 55 पुस्तकें लिखी हैं। इनमें से 45 कविता संग्रह है। पद्मश्री से सम्मानित अक्कीतम को वर्ष 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1972 और 1988 में केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा मातृभूमि पुरस्कार और कबीर सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी रचनाओं का कई भारतीय भाषाओं के अलावा विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। विदित हो कि भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिये दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी. शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था।


एंटी-टैंक मिसाइल ‘स्पाइक’

हाल ही में भारतीय सेना ने मध्य प्रदेश में इंदौर ज़िले के समीप महू के इंफैंट्री स्कूल में टैंक भेदी स्पाइक LR' (लांग-रेंज) का सफल परीक्षण किया। इससे सेना की युद्ध क्षमता में और इजाफा होगा। स्पाइक LR चार किलोमीटर की दूरी तक शत्रु के टैंक पर अचूक निशाना साध सकती है। स्पाइक LR चौथी पीढ़ी की मिसाइल है, जिसे हाल ही में सेना में शामिल किया गया है। स्पाइक LR 'दागो और भूल जाओ' की क्षमता के साथ ही 'दागो, देखो और फिर निशाना साधो' (फायर, ऑब्जर्व एंड अपडेट) तकनीक से भी लैस है। यह हवा में ही लक्ष्य बदलने की क्षमता भी रखती है। इसे ऊँचे या कम ऊँचाई वाले ट्रैक से दागा जा सकता है। भारतीय सेना ने इसका DRDO के ज़रिये देश में निर्माण का फैसला किया है। फिलहाल तात्कालिक जरूरतें पूरी करने के लिये सीमित मात्रा में इन्हें इज़राइल से हासिल किया गया हैं। भारत ने 240 स्पाइक मिसाइलों के लिये इज़राइल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इन टैंक रोधी गाइडेड मिसाइलों और इसके लांचर को उत्तरी युद्ध क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर तैनात किया गया है और इस समय इनका इस्तेमाल किया जा रहा है।


जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र

उत्तर प्रदेश सरकार ने विलुप्ति के कगार पर पहुँचे गिद्धों के संरक्षण और उनकी संख्या बढ़ाने के लिये महराजगंज में ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ बनाने का फैसला किया है। गोरखपुर वन प्रभाग के में 5 हेक्टेयर क्षेत्रफल में यह केंद्र बनाया जा रहा है। संरक्षण व प्रजनन केंद्र से संबंधित सर्वेक्षण का 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है। यह केंद्र हरियाणा के पिंजौर में बने देश के पहले जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। इसके लिये महराजगंज की तहसील फरेंदा के गाँव भारी-वैसी का चयन किया गया है। इसका निर्माण वन्यजीव अनुसंधान संगठन और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी मिलकर करेंगे। कैंपा योजना के तहत इसके लिये धन की व्यवस्था की जाएगी। कैंपा (CAMPA-Compensatory Afforestation Management & Planning Authority) फंड का इस्तेमाल वनों के कटने से होने वाले नुकसान, पर्यावरण संरक्षण, खनन और विकास उपक्रम की स्थापना की वजह से विस्थापित लोगों की मदद के लिये किया जाता है। गौरतलब है कि महाराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में अगस्त माह में 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे। प्रदेश सरकार की ओर से बनाए गए गो-सदन के पास भी यह झुंड दिखा था। गो-सदन में निर्वासित पशु रखे जाते हैं, जो वृद्ध होने के कारण जल्दी ही मर जाते हैं। मृत पशुओं के मिलने से यहां गिद्धों का दिखना भी स्वभाविक है। इसीलिये भारी वैसी गाँव का चयन किया गया है। वर्ष 2013-14 की गणना के अनुसार राज्य के 13 ज़िलों में करीब 900 गिद्ध थे।


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