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डेली न्यूज़

  • 30 Sep, 2019
  • 41 min read
शासन व्यवस्था

स्वैच्छिक आचार संहिता

चर्चा में क्यों?

इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Internet & Mobile Association of India- IAMAI) ने अपने सदस्यों की ओर से आगामी चुनावों के दौरान "स्वैच्छिक आचार संहिता" का पालन करने की सहमति व्यक्त की है। IAMAI ने चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया है।

पृष्ठभूमि:

चुनाव आयोग के प्रोत्साहन के बाद सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और IAMAI ने एक साथ आम चुनाव 2019 के लिए "स्वैच्छिक आचार संहिता" को प्रस्तुत किया। 20 मार्च, 2019 को आयोग के सामने पेश किये जाने के बाद यह तत्काल प्रभाव में आ गई।

इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया

(Internet & Mobile Association of India- IAMAI):

  • यह सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत एसोसिएशन है।
  • यह भारत में ऑनलाइन और मोबाइल वीएएस (Value-added service- VAS) उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र पेशेवर उद्योग निकाय है।
  • इसे वर्ष 2004 में अग्रणी ऑनलाइन प्रकाशकों द्वारा स्थापित किया गया था। पिछले 10 वर्षों में इसने डिजिटल और ऑनलाइन उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों का प्रभावी ढंग से निपटान किया है, जिसमें मोबाइल सामग्री और सेवाएँ, ऑनलाइन प्रकाशन, मोबाइल विज्ञापन, ऑनलाइन विज्ञापन और ई-कॉमर्स आदि शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म; चुनावी कानूनों और अन्य संबंधित निर्देशों सहित जागरूकता बढ़ाने के लिए स्वेच्छा से सूचना, शिक्षा तथा संचार संबंधित अभियान चलाएगा।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने चुनाव आयोग द्वारा दर्ज किये गए मामलों पर कार्रवाई करने के लिये एक उच्च प्राथमिकता वाला शिकायत निवारण चैनल बनाया है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा चुनाव आयोग ने संयुक्त रूप से एक अधिसूचना तंत्र विकसित किया है, जिसके माध्यम से चुनाव आयोग द्वारा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (The Representation of the People Act, 1951) की धारा 126 और अन्य चुनावी कानूनों के संभावित उल्लंघनों को सूचित किया जा सकता है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके प्लेटफ़ॉर्म पर सभी राजनीतिक विज्ञापन सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियों से पूर्व-प्रमाणित हों।
  • इसमें भाग लेने वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध होंगे।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वायु प्रदूषण: हार्ट अटैक का उभरता जोखिम कारक

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में श्री जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवस्कुलर साइंस एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (Sri Jayadeva Institute of Cardiovascular Sciences and Research) द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान तथा सेंट जॉन रिसर्च सेंटर बंगलुरु (St. John’s Research Centre, Bengaluru- SJRI) जैसी संस्थाओं के साथ किये गए एक अध्ययन के अनुसार लगभग 35% हृदय रोगी वायु प्रदूषण से जुड़े कारणों के अतिरिक्त अन्य किसी पारंपरिक जोखिम कारक से पीड़ित नहीं हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन से संबंधित रिपोर्ट का प्रकाशन 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाने से पूर्व किया गया।
  • पूर्व मान्यताओं के अनुसार वायु प्रदूषण को केवल श्वसन रोगों से जुड़ा हुआ माना जाता था परंतु हालिया शोध के कई नैदानिक अध्ययनों ने हृदय रोग के कारण के रूप में वायु प्रदूषण की भूमिका को साबित किया है।
  • यह शोध अप्रैल 2017 से अप्रैल 2019 के मध्य समय पूर्व कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ (Premature Coronary Artery Disease- PCAD) क्लीनिक में 2,400 रोगियों पर किया गया था।
  • अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 26% रोगी निजी क्षेत्र, 15% रोगी कृषक और दैनिक वेतन भोगी, 12% रोगी तकनीकी क्षेत्रों से थे। इसके साथ ही 6.5% गृहणियाँ (Housewives) समय पूर्व कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ से पीड़ित थी।

Profile of participants

  • वायु प्रदूषण का प्रभाव तंबाकू सेवन से उत्पन्न प्रभाव से अधिक घातक है क्योंकि इससे मरने वाले लोगों की संख्या धूम्रपान से मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक है।
  • प्रति लाख भारतीयों में से लगभग 200 लोग वायु प्रदूषण के कारण हृदय रोग से ग्रस्त हैं।
  • अध्ययन में ऐसे लोगों पर गहन शोध किया गया जिन्हें हृदय रोग होने का कोई जोखिम नहीं था परंतु उनके रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर उच्च था। इस तरह कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन के उच्च स्तर को स्वस्थ कारक नहीं माना जा सकता है, यह लक्षण विशेष रूप से उन लोगों में देखे गए जो वायु प्रदूषण के संपर्क में थे।
  • रिपोर्ट के अनुसार अब पहले से अधिक लोग हृदय से संबंधित रोगों की चपेट में हैं और वायु प्रदूषण हृदय रोग के लिये एक उभरता हुआ जोखिम कारक है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि बंगलुरु में परिवहन, PM10 के उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों में से एक है। बंगलुरु में PM10 का औसत वार्षिक उत्सर्जन अभी भी राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों से लगभग 1.5 गुना अधिक है, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

स्वच्छ वायु गठबंधन एवं स्वच्छ वायु कोष

चर्चा में क्यों?

स्पेन और पेरू की सरकारों के नेतृत्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Orginisation- WHO) ‘स्वच्छ वायु गठबंधन’ (Clean Air Coalition) शुरू कर रहा है।

  • इसके साथ ही लोक-हितैषी संगठनों (Philanthropic Foundations) के समूह द्वारा एक नया ‘स्वच्छ वायु कोष’ (Clean Air Fund) बनाया जा रहा है। दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले वायु प्रदूषण के स्रोतों को कम करने हेतु निवेश करना है।

कदम के निहितार्थ:

WHO का अनुमान है कि विश्व भर में 90% से अधिक लोग प्रदूषित हवा में साँस लेते हैं।

स्वच्छ वायु गठबंधन (Clean Air Coalition):

  • स्वच्छ वायु गठबंधन को संयुक्त राष्ट्र महासचिव कार्यालय (UN Secretary General’s Office) एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के जलवायु तथा स्वच्छ वायु गठबंधन (Climate and Clean Air Coalition of UN Environment) द्वारा समर्थन प्रदान किया जा रहा है।
  • यह समान विचारधाराओं वाले ऐसे परोपकारी समूहों को एक साथ लाता है जिनका मानना है कि वायु प्रदूषण से निपटना स्वास्थ्य के साथ-साथ जलवायु के लिये भी लाभदायक होगा।

स्वच्छ वायु कोष (Clean Air Fund)

  • नए स्वच्छ वायु कोष का उद्देश्य उन परियोजनाओं का समर्थन करना है, जो वायु गुणवत्ता डेटा को उपलब्ध कराती हैं, साथ ही शहरों में बड़ी संख्या में लोगों को वायु गुणवत्ता के बारे में अधिक व्यापक जानकारी देती हैं।
  • यह कोष उन परोपकारी भागीदारों के गठबंधन के साथ काम करता है, जिन्हें स्वास्थ्य, बच्चों और जलवायु परिवर्तन शमन से जुड़े कार्यों में रुचि है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भूगोल

पृथ्वी के मेंटल के पास विशालकाय महाद्वीप की खोज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के मेंटल के पास 4 बिलियन वर्ष पुराने विशालकाय महाद्वीप की खोज की है।

  • अध्ययन के अनुसार, भूमिगत चट्टानी महाद्वीप प्राचीन मैग्मा महासागर (Magma Ocean) से बना हो सकता है जो लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी के गठन की शुरुआत के दौरान जम गया था।
  • पृथ्वी की विभिन्न परतों से गुजरने के दौरान भूकंपीय तरंगों की गति और पैटर्न में परिवर्तन होता है।

Mantle

  • भूकंपीय तरंगें जब इस विशाल महाद्वीप से गुज़रती तो उनका पैटर्न बदल जाता है। भूकंपीय तरंगों की इस प्रकार की गतिविधियों ने वैज्ञानिकों को इस महाद्वीप की खोज करने हेतु प्रेरित किया।
  • यह संरचना मेंटल और बाह्य कोर के समीप स्थित है। ये क्षेत्र पृथ्वी के अधिकांश ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं से अपेक्षाकृत बच गए हैं।
  • ऐसा अनुमान है कि भूमिगत महाद्वीप हमारे ग्रह का पुराना रूप हो सकता है और इसकी सबसे अधिक संभावना कि यह ग्रह-रॉकिंग (Planet-Rocking) प्रभाव से बच गया हो, जिससे चंद्रमा का निर्माण हुआ है।
  • वैज्ञानिकों ने नए भूगर्भीय नमूनों को हवाई, आइसलैंड और अंटार्कटिका के बैलेनी द्वीप के पुराने नमूनों के डेटा का उपयोग करके तैयार किया गया है। इन क्षेत्रों में पृथ्वी के मेंटल से सतह की ओर ज्वालामुखी लावा का निष्कर्षण होता रहता है। पृथ्वी के मेंटल से सतह तक आने वाली ज्वालामुखी लावा, आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है।
  • मेंटल से पृथ्वी की सतह पर ज्वालामुखी लावा, स्तंभ जैसी संरचना के माध्यम से आता है। इस स्तंभ रूपी संरचना को मेंटल प्लम (Mantle Plume) कहते हैं।
  • भूमिगत चट्टानी महाद्वीप के नमूनों में हीलियम-3 जैसे बिग बैंग के दौरान के आइसोटोप विद्यमान हैं।

मेंटल प्लम (Mantle Plume)

  • एक मेंटल प्लम पृथ्वी के मेंटल के भीतर असामान्य रूप से गर्म चट्टान का उत्थान है। ये चट्टानें अत्यधिक तापमान के कारण पिघलकर लावा के स्वरूप में बाहर निकलती हैं।
  • मेंटल प्लम कम गहराई में पहुंँचने पर आंशिक रूप से पिघल सकता है। मेंटल प्लम के कारण ज्वालामुखी का उद्गार होता है।

Mantle Plume

  • मेंटल प्लम के सतह के क्षेत्रों को हॉटस्पॉट (Hotspots) कहा जाता है।
  • पृथ्वी पर मेंटल प्लम के दो सबसे प्रसिद्ध स्थान- हवाई और आइसलैंड हैं। इसीलिये मेंटल के नमूनों की जाँच के लिये यहाँ की चट्टानों का प्रयोग किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हेड ऑन जेनरेशन तकनीक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेल मंत्रालय द्वारा घोषणा की गई है कि वह सभी मौजूदा लिंक हॉफमैन बुश (Linke Hofmann Busch- LHB) कोच को हेड ऑन ज़ेनरेशन (Head on Generation Technology- HOG) प्रौद्योगिकी के साथ अपग्रेड करेगा। यह एक ऐसा कदम है जिसके कारण ट्रेनें कम प्रदूषणकारी और अधिक लागत-कुशल हो जाएंगी।

प्रमुख बिंदु

  • रेल मंत्रालय के अनुसार, परियोजना का कार्यान्वयन पहले से ही चल रहा है और रेलवे ने 342 ट्रेनों को नई तकनीक से लैस करने के बाद वार्षिक रूप से ₹ 800 करोड़ की बचत की है।
  • पहले से अपग्रेड की गई 342 ट्रेनों में 13 राजधानी, 14 शताब्दी, 11 दुरंतो, 6 संपर्क क्रांति, 16 हमसफर और 282 अन्य मेल/ट्रेन हैं। इसके अतिरिक्त 284 ट्रेनें उन्नयन की प्रक्रिया में है, यह कार्य संबंधित रेलवे ज़ोन को सौंपा गया है।

लिंक हॉफमैन बुश ( Linke Hofmann Busch- LHB) कोच

  • वर्ष 1996 में रेलवे द्वारा जर्मन निर्माता लिंक हॉफमैन बुश से तकनीकी हस्तांतरण के बाद पश्चिम बंगाल के आसनसोल स्थित चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (Chittaranjan Locomotive Works- CLW) में LHB कोच बनाए जाने लगे।
  • ये कोच मूल रूप से एंड ऑन जेनरेशन (End on Generation- EOG) सिद्धांत पर काम करने के लिए डिज़ाइन किये गए थे।
  • EOG प्रणाली के तहत ट्रेन के 'होटल लोड' ( एयर कंडीशनर, बल्ब, पंखे और पेंट्री कोच का विद्युत् भार आदि) को बिजली प्रदान की जाती है। इसमें दो बड़े डीज़ल ज़ेनरेटर सेट हैं जो पूरी ट्रेन में 50 हर्ट्ज पर 750 वोल्ट बिजली की आपूर्ति तीन चरणों में करते हैं।
  • प्रत्येक कोच में 60 केवीए (KVA) के ट्रांसफार्मर के माध्यम से बिजली की आपूर्ति की जाती है, इससे वोल्टेज को 110 वोल्ट तक रखा जाता है।
  • हेड ऑन जेनरेशन तकनीक पैनटोग्राफ (Pantograph) के माध्यम से ओवरहेड इलेक्ट्रिक लाइनों से बिजली खींचकर होटल लोड चलाता है।
  • ओवरहेड केबल से बिजली की आपूर्ति एकल-चरण में 750 वोल्ट है और 945 केवीए का ट्रांसफार्मर इसे तीन चरणों में 50 हर्ट्ज पर 750 वोल्ट के आउटपुट में परिवर्तित कर देता है, जिसके बाद यह ऊर्जा कोच तक पहुँचाई जाती है।
  • चूंकि हेड ऑन जेनरेशन तकनीक से लैस ट्रेनों को डीज़ल जेनरेटर से बिजली की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिये उनके पास दो नियमित जेनरेटर कारों के बजाय केवल एक आपातकालीन जनरेटर कार होती है।
  • इससे अतिरिक्त स्थान सृजित होगा, जिससे अब अधिक यात्रियों को समायोजित किया जा सकता है।
  • HOG तकनीक वायु और ध्वनि प्रदूषण से मुक्त है। यह प्रणाली कार्बन डाइआक्साइड (CO2) और नाइट्रोज़न आक्साइड (NOx) के वार्षिक उत्सर्जन में कमी लाएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

कोयला गैसीकरण प्रोद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के तालचेर उर्वरक संयंत्र को यूरिया और अमोनिया के उत्पादन के लिये कोयला गैसीकरण इकाई शुरू करने का अनुबंध देने का निर्णय लिया गया। यह भारत का पहला कोयला गैसीकरण आधारित संयंत्र होगा जिससे प्राप्त गैस का उर्वरक उत्पादन में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • यह फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (FCIL) और हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HFCL) के बंद पड़े उर्वरक संयंत्रों को पुनर्जीवित करने की सरकार की पहल का हिस्सा है।
  • फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (FCIL) ने पहली बार वर्ष 1980 में ओडिशा संयंत्र में यूरिया और अमोनिया का उत्पादन शुरू किया था।
  • हालाँकि अनियमित बिजली आपूर्ति और बेमेल प्रौद्योगिकी जैसी बाधाओं की वज़ह से संयंत्र का परिचालन बंद करना पड़ा।
  • तत्पश्चात् वर्ष 2007 में इस संयंत्र को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया और वर्ष 2014 में तालचेर फर्टिलाइज़र लिमिटेड को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों- गेल (GAIL), कोल इंडिया लिमिटेड (CIL), राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (RCF) और FCIL के एक संघ के रूप में शुरू किया गया था।

कोयला गैसीकरण क्या है?

Coal Gasification

  • कोयला गैसीकरण (Coal Gasification) कोयले को संश्लेषण गैस (Synthesis Gas), जिसे सिनगैस भी कहा जाता है, में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
  • सिनगैस (Syngas) हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है।
  • सिनगैस का उपयोग बिजली के उत्पादन और उर्वरक जैसे रासायनिक उत्पाद के निर्माण सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।
  • कोयला गैसीकरण प्रक्रिया अत्यधिक संभावनाओं से युक्त है क्योंकि कोयला दुनिया भर में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है। इसके अतिरिक्त इसमें ​निम्न श्रेणी के कोयले का भी उपयोग किया जा सकता है।

लाभ

  • कोयला गैसीकरण प्रोद्योगिकी आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने और पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता करेगी।
  • वर्तमान में यूरिया का उत्पादन प्राकृतिक गैस के उपयोग से किया जाता है, जिसमें घरेलू प्राकृतिक गैस और आयातित द्रवित प्राकृतिक गैस (LNG) दोनों शामिल हैं।
  • उर्वरक बनाने के लिये स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कोयले के उपयोग से LNG के आयात को कम करने में मदद मिलेगी।
  • भारत वर्तमान में हर साल 50 से 70 लाख टन यूरिया का आयात करता है।
  • इन इकाइयों के पुनरुद्धार से घरेलू रूप से उत्पादित उर्वरकों की उपलब्धता में वृद्धि होगी और मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा मिलेगा।
  • इस परियोजना से लगभग 4,500 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होगा।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने न्यायपालिका के समक्ष लंबित मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिये उच्चतम न्यायालय की चार क्षेत्रीय पीठों के गठन का सुझाव दिया है।

पृष्ठभूमि

  • विश्व का पहला संवैधानिक न्यायालय वर्ष 1920 में यूरोप के ऑस्ट्रिया में और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी में स्थापित किया गया था।
  • वर्तमान में 55 देशों में संवैधानिक न्यायालय हैं, जिनमें से अधिकांश यूरोपीय या नागरिक कानून न्यायालय हैं।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी भारतीय गणतंत्र के शुरुआती दशकों में प्रमुख रूप से एक संवैधानिक न्यायालय के तौर पर ही कार्य किया और इसके द्वारा प्रतिवर्ष 70 से 80 निर्णय दिये जाते थे।
  • लेकिन लंबित वादों की बड़ी संख्या के चलते संवैधानिक पीठ द्वारा निपटाए जाने वाले मामलों की संख्या अब घटकर प्रतिवर्ष 10-12 हो गई है।

लंबित मामलों की समस्या

वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में 65,000 से अधिक मामले लंबित हैं और अपीलों के निपटान में कई वर्ष लग जाते हैं। बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने के निम्नलिखित कारण है-

  • अधिक कार्यभार के कारण सभी प्रकार के मामलों को निपटाने के लिये प्राय: न्यायाधीश दो या तीन न्यायाधीशों वाली बेंच में बैठते हैं जिनमें फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने या हटाने अथवा पुलिस आयुक्त द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग जैसे कई गैर-संवैधानिक और अपेक्षाकृत छोटे मामले शामिल होते हैं।
  • कई बार तो उच्चतम न्यायालय के समक्ष सरदारों पर बनने वाले चुटकुलों पर प्रतिबंध लगाने या मुस्लिमों को देश से बाहर भेज दिया जाना चाहिये जैसी मांगों पर भी जनहित याचिकाएँ आती हैं।
  • लंबित मामलों का कार्यभार इस कारण भी है कि भारत का उच्चतम न्यायालय शायद दुनिया का सबसे शक्तिशाली न्यायालय है, जिसका क्षेत्राधिकार बहुत व्यापक है।
  • यह केंद्र और राज्यों के बीच अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच के मामलों को सुनता है, नागरिक और आपराधिक मुकदमों पर अपील सुनता है और राष्ट्रपति को विधिक मामलों पर सलाह भी देता है।
  • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के सवाल पर कोई भी व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय में जा सकता है।

क्या है संवैधानिक पीठ?

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।
  • हालाँकि इसमें पाँच से अधिक न्यायाधीश भी हो सकते हैं जैसे- केशवानंद भारती केस में गठित संवैधानिक पीठ में 13 न्यायाधीश थे।

विधि आयोग की सिफारिशें

  • 10वें विधि आयोग (वर्ष 1984) की 95वीं रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत के उच्चतम न्यायालय के दो प्रभाग होने चाहिये। एक अपीलीय प्रभाग और दूसरा संवैधानिक प्रभाग, जिनमें केवल संवैधानिक कानून से जुड़े मामलों की ही सुनवाई होगी।
  • 11वें विधि आयोग (वर्ष 1988) ने 125वीं रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय को दो हिस्सों में विभाजित करने की सिफारिश को लागू किये जाने का समर्थन किया।
  • इसके बाद 18वें विधि आयोग ने 229वीं रिपोर्ट (वर्ष 2009) में सिफारिश की कि संवैधानिक और अन्य संबद्ध मुद्दों से निपटने के लिये दिल्ली में एक संविधान पीठ स्थापित की जाए।
  • इसके अलावा विशेष क्षेत्र के उच्च न्यायालयों के आदेश/निर्णय से उत्पन्न सभी अपीलीय मामलों से निपटने के लिए उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली, दक्षिणी क्षेत्र में चेन्नई/हैदराबाद, पूर्वी क्षेत्र में कोलकाता तथा पश्चिमी क्षेत्र में मुंबई में अपीलीय बेंच स्थापित किये जाए।
  • ध्यातव्य है कि विश्व के कई देशों में अपीलीय कोर्ट हैं जो गैर-संवैधानिक विवादों और अपील संबंधी मामलों का निपटारा करते हैं।

क्षेत्रीय पीठें सृजित करने हेतु तर्क

  • अनुच्छेद 39ए कहता है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे जिससे समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह विशिष्टतया यह सुनिश्चित करने के लिये कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
  • लेकिन किसी मामले की सुनवाई के लिये दिल्ली जाना या उच्चतम न्यायालय के वकील की फीस अदा करना अधिकांश वादियों के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।
  • अनुच्छेद 130 के अनुसार राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ भारत का मुख्य न्यायाधीश दिल्ली में या किसी अन्य स्थान पर भी सुनवाई कर सकता हैं।
  • उच्चतम न्यायालय के नियम भी मुख्य न्यायाधीश को भारत में बेंच गठित करने की शक्ति देते हैं।
  • वर्ष 2004, वर्ष 2005 और वर्ष 2006 में संसद की स्थायी समितियों ने सिफारिश की थी कि उच्चतम न्यायालय की बेंच कहीं और स्थापित की जाए।
  • वर्ष 2008 में समिति ने सुझाव दिया कि परीक्षण के लिये कम-से-कम एक पीठ चेन्नई में स्थापित की जाए।
  • लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कहा कि यह उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को कमज़ोर करेगा।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बहुराष्ट्रीय उद्यमों हेतु एकात्मक कर प्रणाली

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि एक समूह में शामिल सभी बहुराष्ट्रीय उद्यमों (Multinational Enterprises-MNEs) को एक इकाई मानते हुए एकात्मक कराधान की प्रणाली को अपनाया जाए। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह का दृष्टिकोण वैश्विक कर प्रणाली को सरल बनाएगा और सभी देशों के कर राजस्व को बढ़ाने में मदद करेगा।

संदर्भ:

  • संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) की ‘व्यापार और विकास रिपोर्ट 2019’ के अनुसार, मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कॉरपोरेट कर के उन मानदंडों में बदलाव की आवश्यकता है, जो MNEs के सहयोगियों को स्वतंत्र संस्थाओं के रूप में मानते हैं और MNEs की विभिन्न संस्थाओं के बीच कर योग्य लेन-देन को असंबद्ध मानते हैं।
  • ‘फाइनेंसिंग ए ग्लोबल ग्रीन न्यू डील ( Financing a Global Green New Deal)' नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, MNEs के कर-प्रेरित अवैध वित्तीय प्रवाह (Tax-Motivated Illicit Financial Flows) के कारण विकासशील देशों को राजकोषीय राजस्व में प्रतिवर्ष 50 बिलियन डॉलर से 200 बिलियन डॉलर तक का नुकसान झेलना पड़ता है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस बात को समझते हुए कि एक समूह के रूप MNEs का मुनाफा सम्मिलित रूप से उत्पन्न होता है, रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि एकात्मक कराधान को वैश्विक न्यूनतम प्रभावी कॉर्पोरेट कर की दर के साथ जोड़ा जाना चाहिये, जो सभी MNEs के मुनाफे पर लगभग 20-25 प्रतिशत [दुनिया भर के नाममात्र दरों (nominal rates) का वर्तमान औसत] निर्धारित है।
  • सभी देशों में ऐसे सुधारित कॉर्पोरेट करों (Reformed Corporate Taxes) से प्राप्त राजस्व का वितरण करने के लिए, रिपोर्ट ‘नियमबद्ध विभाजन’ (Formulatory Apportionment) का समर्थन करती है। इसके तहत MNEs समूह के कुल करों को एक ‘सहमति फॉर्मूला’, जो कि आदर्श रूप से कुल बिक्री की तुलना में रोज़गार और उत्पादक भौतिक संपत्ति को प्राथमिकता देता है, के अनुसार देशों में आवंटित किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि रिपोर्ट में MNEs को समूह के स्तर पर एक इकाई के रूप में मानने के इस दृष्टिकोण की सिफारिश सभी MNEs के लिये की गई है न कि केवल बड़ी अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल या तकनीकी कंपनियों के लिये।

डिजिटल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में:

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि आर्थिक गतिविधि के तीव्र डिजिटलीकरण के कारण मूल्य के निर्धारण, मापन और वितरण के संबंध में आए बदलाव से अंतर्राष्ट्रीय कर ढांचे में नई चुनौतियाँ उभर कर सामने आई हैं, तथापि डिजिटल अर्थव्यवस्था के निष्पक्ष कराधान के माध्यम से देशों के राजकोषीय राजस्व को बढ़ाया जा सकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी स्थिति में जब अमूर्त संपत्ति और डेटा उपयोगकर्त्ता मूल्य/आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन चुके हैं, गंभीर राजकोषीय रिसावों को कम करने के लिये मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कॉर्पोरेट कर मानदंडों और नियमों के नए परीक्षण की आवश्यकता है ताकि कर लगाने के क्षेत्राधिकार, MNEs के विभिन्न निकायों के बीच सीमा पार लेन-देन के बरताव और मूल्य सृजन की माप का निर्धारण किया जा सके।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था में उचित कर अधिकारों के लिये एक निश्चित सीमा से अधिक बिक्री या लेनदेन से प्राप्त राजस्व के अनुसार महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति की अवधारणा का उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि कई देशों ने इस मामले पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति की प्रतीक्षा करते हुए एकपक्षीय (Unilateral) कदम उठाए हैं एवं विकासशील देशों के लियेइस तरह के एकपक्षीय उपायों से अनुमानतः 11 बिलियन डॉलर से 28 बिलियन डॉलर तक की अतिरिक्त कर राजस्व की प्राप्ति संभावित है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (30 September)

1. INS नीलगिरी की लॉन्चिंग तथा INS खंडेरी का जलावतरण

  • भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा स्टील्थ फ्रिगेट (रडार को मात देने वाला) INS नीलगिरी को लॉन्च किया तथा स्कॉर्पीन श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी INS खंडेरी का जलावतरण किया। इसके साथ ही उन्होंने मुंबई में विश्‍व स्‍तर के ड्राई डॉक की भी शुरुआत की। यह प्रोजेक्‍ट17 अल्‍फा (P17A) का पहला युद्धपोत है।

INS खंडेरी

  • INS खंडेरी गहरे समुद्र में बिना आवाज़ किये 12 हज़ार किमी. तक सफर कर सकती है। इसकी लंबाई लगभग 67.5 मीटर और चौड़ाई 12.3 मीटर है। 40 से 45 दिन तक पानी में रहने की क्षमता वाली यह पनडुब्बी 350 मीटर की गहराई तक उतर सकती है तथा इसमें सभी अत्याधुनिक उपकरण लगे हैं।
  • इस पनडुब्बी का निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड में 7 अप्रैल, 2009 को शुरू हुआ था। 12 जनवरी, 2017 को इसे लॉन्च किया गया और इसका नामकरण किया गया।
  • इस पनडुब्बी में कुल 360 बैटरी लगी हैं, जिनमें से प्रत्येक का वज़न 750 किग्रा. है। इसमें 6 टॉरपीडो ट्यूब लगे हैं। इसमें से 2 ट्यूब से मिसाइल भी दागी जा सकती है। इसके भीतर कुल 12 टॉरपीडो रखने की व्यवस्था है।
  • इसे ‘खंडेरी’ नाम मराठा सेना के द्वीपीय किले के नाम पर दिया गया है। इसके अलावा खंडेरी को टाइगर शार्क भी कहते हैं।
  • स्कॉर्पीन श्रेणी की बनी पहली पनडुब्बी INS कलवरी है।
  • देश में वर्तमान में 49 जहाज़ों और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है।


2. ऑनलाइन फेक न्यूज़ रोकने पर 20 देश सहमत

  • भारत सहित 20 देशों ने ऑनलाइन फेक न्यूज़ (झूठी/भ्रामक खबरों) के प्रसार को रोकने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इन देशों ने फेक न्यूज़ के खिलाफ कार्रवाई कर विश्वसनीय खबरों के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।
  • उल्लेखनीय है कि ग्लोबल डिजिटल का विकास दुनिया को प्रगति के मार्ग पर ले जा रहा है, लेकिन साथ ही यह एक खतरा भी बन गया है। खासतौर से फेक न्यूज़ का प्रसार दुनिया के लिये चुनौती बनता जा रहा है। इस पर लगाम लगाने की ज़रूरत है। चुनावों के समय इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है।

क्या होती है फेक न्यूज़?

  • यह एक तरह की पीत पत्रकारिता (Yellow Journalism) है।
  • इसके तहत किसी के पक्ष में प्रचार करने व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्य आते हैं।
  • किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुँचाने या लोगों को उसके खिलाफ झूठी खबर के जरिए भड़काने को कोशिश फेक न्यूज़ है।
  • सनसनीखेज और झूठी खबरों, बनावटी हेडलाइन के जरिए अपनी रीडरशिप तथा ऑनलाइन शेयरिंग बढ़ाकर क्लिक रेवेन्यू बढ़ाना भी फेक न्यूज़ की श्रेणी में आता है।

विदेशों में भारी जुर्माने का प्रावधान

  • मलेशिया में फेक न्यूज़ पर 85 लाख रुपए तक जुर्माना तथा 6 साल तक जेल हो सकती है।
  • जर्मनी का NetzDG उन कंपनियों पर लागू होता है, जिनके देश में 20 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड यूज़र हैं। इसके तहत 40 करोड़ रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
  • सिंगापुर के मसौदा कानून में सार्वजनिक हितों को नुकसान पहुँचाने वाली झूठी खबर ऑनलाइन फैलाने वाले व्यक्ति को 10 साल तक की जेल हो सकती है। अगर सोशल मीडिया साइट ऐसे कंटेंट के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती तो उसे करीब 5 करोड़ रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
  • रूस में मार्च 2019 में बना कानून सरकार का अनादर करने वाली झूठी खबरों और सूचना फैलाने वाले पर 16 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान करता है।
  • फ्रांँस ने पिछले वर्ष अक्तूबर में दो एंटी-फेक न्यूज़ लॉ बनाए हैं, जो फ्रेंच ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी को झूठी खबरें फैलाने वाले किसी भी नेटवर्क को ऑफ एयर (प्रसारण पर रोक) लगाने का अधिकार देता है।
  • ऑस्ट्रेलिया में संबंधित कानून से जुड़े नियमों का पालन न करने पर आम लोगों को लगभग 80 लाख रुपए तक और कंपनियों को 4 करोड़ रुपए तक जुर्माना देना पड़ सकता है।
  • चीन ने ट्विटर, गूगल और व्हाट्सएप जैसी ज़्यादातर सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सर्विस पर रोक लगा रखी है। चीन में हज़ारों साइबर पुलिस अधिकारी हैं जो सोशल मीडिया और कंटेंट की निगरानी करते हैं।
  • हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फेक न्यूज़ को ट्रैक करने के लिए केंद्र सरकार से नियम बनाने को कहा है। न्यायालय ने केंद्र सरकार को 3 हफ्ते का वक्त दिया है, इस अवधि में केंद्र सरकार को सोशल मीडिया के जरिए फैलने वाली फेक न्यूज़ पर लगाम कसने के लिए गाइडलाइंस बनाने की एक निश्चित टाइमलाइन भी बताना है।

3. मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय सम्मानों की घोषणा

  • मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 और 2018 के लिये सिनेमा, साहित्‍य, पारंपरिक कलाओं, समाजसेवा, सांस्‍कृतिक समरसता, सद्भाव आदि के क्षेत्र में स्‍थापित राष्‍ट्रीय सम्‍मानों की घोषणा कर दी है। इन सम्‍मानों का निर्णय चयन समिति की सर्वसम्‍मत अनुशंसा के आधार पर किया गया है।

राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान, 2018- लोकायत, पुणे (अलका जोशी)

राष्ट्रीय कबीर सम्मान, 2017 के लिये नरेश सक्सेना (ग्वालियर) , 2018 के लिये गोरटी वेकन्ना, (हैदराबाद)

राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, 2017 के लिये राजेश जोशी (भोपाल), 2018 के लिये मंज़ूर एहतेशाम (भोपाल)

राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान, 2017 के लिये यशवंत व्यास (जयपुर), 2018 के लिये रवीश कुमार (दिल्ली)

राष्ट्रीय इकबाल सम्मान, 2017के लिये शम्सुर्रहमान फारूखी (दिल्ली) 2018 के लिये गज़नफर अली (अलीगढ़)

राष्ट्रीय तुलसी सम्मान, 2017 के लिये कैलाशचंद्र शर्मा (जयपुर) 2018 के लिये विक्रम यादव (राजनांदगांँव)

राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, 2017 के लिये कृष्णा वर्मा (उज्जैन) , 2018 के लिये शांतिदेवी झा (बिहार)

राष्ट्रीय कवि प्रदीप सम्मान, 2018- अशोक चक्रधर, नई दिल्ली

राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान, 2017-के लिये प्रियदर्शन (चेन्नई) , 2018 के लिये वहीदा रहमान, (मुंबई)


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