प्रौद्योगिकी
पृथ्वी विज्ञान की ओ-स्मार्ट योजना को मंज़ूरी
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने एक व्यापक योजना ‘महासागरीय सेवाओं, प्रौद्योगिकी, निगरानी, संसाधन प्रतिरूपण और विज्ञान (O-SMART)’ को अपनी मंज़ूरी दी।
प्रमुख बिंदु
- इस योजना की कुल लागत 1623 करोड़ रुपए है और यह योजना 2017-18 से 2019-20 की अवधि के दौरान लागू रहेगी।
- इस येाजना में महासागर के विकास से जुड़ी 16 उप-परियोजनाओं जैसे – सेवाएँ, प्रौद्योगिकी, संसाधनों के प्रेषण और विज्ञान को शामिल किया गया है।
- अगले दो वर्षों के दौरान विचार किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण विषय इस प्रकार है-
♦ महासागरीय निगरानी तंत्र का विस्तार ।
♦ मछुआरों के लिये महासागरीय सेवाओं में वृद्धि।
♦ समुद्र तटीय प्रदूषण की निगरानी के लिये समुद्र तट पर वेधशालाओं की स्थापना।
♦ वर्ष 2018 में कावारती में महासागर ताप ऊर्जा संरक्षण संयंत्र (OTEC) की स्थापना।
♦ तटीय अनुसंधान के लिये दो तटीय अनुसंधान पोतों का अधिग्रहण।
♦ महासागरीय सर्वेक्षण जारी रखना और खनिज तथा सजीव संसाधनों का अन्वेषण।
♦ गहरे समुद्र में खनन- गहरी खनन प्रणाली के लिये प्रौद्योगिकी विकसित करना।
♦ मानव युक्त पनडुब्बियाँ और लक्षद्वीप में छह विलवणीकरण संयंत्रों की स्थापना।
प्रभाव:
- O-SMART के अंतर्गत दी जाने वाली सेवाओं से तटीय और महासागरीय क्षेत्रों के अनेक क्षेत्रों जैसे -मत्स्यपालन, समुद्र तटीय उद्योग, तटीय राज्यों, रक्षा, नौवहन, बंदरगाहों आदि को आर्थिक लाभ मिलेगा।
- वर्तमान में पाँच लाख मछुआरों को मोबाइल के ज़रिये रोजाना सूचना प्रदान की जाती है, जिसमें मछलियाँ मिलने की संभावना वाले क्षेत्र और समुद्र तट के स्थानीय मौसम की स्थिति की जानकारी शामिल है।
- इस योजना से मछुआरों का मछलियों की तलाशी में व्यतीत होने वाले वाला समय बचेगा जिसके परिणामस्वरूप ईंधन की बचत होगी।
- O-SMART के कार्यान्वयन से सतत विकास लक्ष्य के 14वें बिंदु से जुड़े मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी, जिनका उद्देश्य महासागरों के इस्तेमाल, उनके निरंतर विकास के समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना है।
- यह योजना ब्लू अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक वैज्ञानिक और तकनीकी पृष्ठभूमि प्रदान करेगी।
- इस योजना के अंतर्गत स्थापित आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ सुनामी, झंझावात जैसी समुद्री आपदाओं से प्रभावी तरीके से निपटने में मदद करेंगी।
- इस योजना के अंतर्गत विकसित प्रौद्योगिकियाँ भारत के आस-पास के समुद्रों से विशाल समुद्री सजीव और निर्जीव संसाधनों को उपयोग में लाने में मदद करेंगी।
पृष्ठभूमि
- नवंबर 1982 में लागू महासागर नीति के अनुसार, मंत्रालय मुख्य रूप से सागर विकास के क्षेत्र में कई बहु-अनुशासनात्मक परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है जिनमें-
- महासागरीय सूचना सेवाओं का समूह की रूप में प्रदान करने, समुद्री संसाधनों को निरंतर उपयोग में लाने के लिये प्रौद्योगिकी विकसित करने, अग्रिम श्रेणी के अनुसंधान को बढ़ावा देने और महासागरीय वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराना आदि शामिल है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के कार्यक्रमों/नीतियों को उसके स्वायत्तशासी संस्थानों यानी राष्ट्रीय महासागरीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय महासागरीय सूचना सेवा केंद्र, राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागरीय अनुसंधान केंद्र तथा संबद्ध कार्यालय, समुद्र तट सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र, राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र तथा अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के ज़रिये लागू किया जा रहा है।
- अनुसंधान में आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी युक्त अनुसंधान पोतों का बेड़ा, यानी ‘सागर निधि’, समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत ‘सागर कन्या’, मत्स्यपालन और समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत ‘सागर संपदा’ तथा तटीय अनुसंधान पोत ‘सागर पूर्वी’ की मदद ली गई है।
- मंत्रालय विभिन्न तटीय साझेदारों जैसे मछुआरों, तटीय राज्यों, अपतटीय उद्योग, नौसेना, तटरक्षक आदि को समुद्र से जुड़ी अनेक प्रकार की सूचना सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- हिंद महासागर क्षेत्र के पड़ोसी देशों को भी इनमें से कुछ सेवाएँ दी गई हैं।
- भारत की महासागर संबंधी गतिविधियों का विस्तार अब आर्कटिक से अंटार्कटिक क्षेत्र तक हो गया है, जिसमें बड़ा महासागरीय क्षेत्र शामिल है और जिस पर यथास्थान व्यापक स्तर पर और उपग्रह आधारित वेधशालाओं के ज़रिये निगरानी रखी जा रही है।
- भारत ने समुद्री आपदाओं जैसे- सुनामी, समुद्री तूफान, झंझावात आदि के लिये आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित की हैं।
- गौरतलब है कि भारत अंटार्कटिक संधि प्रणाली पर हस्ताक्षर कर चुका है और संसाधनों के उपयोग के लिये अंटार्कटिक समुद्र तटीय आजीविका संसाधन संरक्षण आयोग (CCAMLR) में शामिल हो चुका है।
- महासागरीय संसाधनों के इस्तेमाल की प्रौद्योगिकियों का विकास विभिन्न चरणों में है। इनमें से कुछ जैसे- द्वीपों के लिये कम तापमान वाली तापीय विलवणीकरण प्रणाली काम कर रही है।
- इसके अलावा मंत्रालय तटरेखा में बदलावों और समुद्र तटीय पारिस्थितिकी प्रणाली सहित भारत के तटीय जल की शुद्धता की निगरानी कर रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
बेहतर पूंजी प्रवाह के लिये रिज़र्व बैंक ने नियमों को तर्कसंगत बनाया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी की गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वित्त वर्ष 2018 में पूंजी के बेहतर सीमा-पार प्रवाह की सुविधा के लिये उसने नियमों को तर्कसंगत बनाया है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार यह स्पष्ट है कि केंद्रीय बैंक देश के भुगतान संतुलन के बारे में चिंतित था क्योंकि बाहरी परिस्थितियों में तनाव के संकेत 2017-18 में दिखाई देने लगे थे।
- इस रिपोर्ट में ऋण बाज़ार में विदेशी निधि प्रवाह को प्रोत्साहित करने और भारतीय कंपनियों के बाहरी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के माध्यम से प्रवाह बढ़ाने के लिये किये गए उपायों पर विस्तृत चर्चा की गई है।
- यद्यपि आँकड़े यह प्रदर्शित करते हैं कि ये परिवर्तन बहुत प्रभावी नहीं हैं। जबकि ऋण परिवर्तन के संबंध में आरबीआई द्वारा उठाए गए क़दमों का अल्पकालिक प्रभाव पड़ा, नियमों में परिवर्तन के बावजूद वित्त वर्ष 2018 में ईसीबी बहिर्वाह जारी रहा।
उठाए गए प्रमुख कदम
- केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2018 में ऋण प्रतिभूतियों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा किये गए निवेश को नियंत्रित करने वाले नियमों की समीक्षा की ताकि उन्हें निवेश करने के लिये और अधिक स्थान उपलब्ध कराया जा सके, उपलब्ध विकल्पों में वृद्धि की जा सके तथा उनके कार्यकाल और अवधि का प्रबंधन करना आसान हो सके।
- श्रेणी स्तर पर एफपीआई निवेश पर उच्चतम सीमा निर्धारित करना कुछ हद तक सुधारात्मक प्रयास था। उदाहरण के लिये, एफपीआई को कुल सरकारी प्रतिभूतियों के बकाये का 5.5 प्रतिशत, एसडीएल का 2 प्रतिशत और कॉर्पोरेट बॉण्ड का 9 प्रतिशत तक रखने की इज़ाज़त दी गई थी।
- सरकारी प्रतिभूतियों और अन्य केंद्रीय सरकारी प्रतिभूतियों में कुल एफपीआई निवेश पर बकाया शेयरों में 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक उच्चतम सीमा बढ़ाना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बदलाव था।
- एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन तीन साल से कम अवशिष्ट परिपक्वता वाले प्रतिभूतियों में निवेश पर प्रतिबंध को हटाना था। विभिन्न उप-श्रेणियों को बंद करके और सभी प्रकार के कॉर्पोरेट बॉण्ड में एफपीआई निवेश के लिये एक सीमा निर्धारित करके कॉर्पोरेट बॉण्ड की सीमा निर्धारित करना भी तर्कसंगत था।
- आँकड़ों के आधार पर ऐसा लगता है कि इन परिवर्तनों से वित्त वर्ष 2018 में देश में अधिक ऋण निधि प्रवाह को आकर्षित करने के लिये एक अल्पकालिक प्रभाव पड़ा है। वित्त वर्ष 2017 में भारतीय ऋण से 7,292 करोड़ रुपए के शुद्ध बहिर्वाह होने के बावजूद, वित्त वर्ष 2018 में प्रवाह 1,19,036 करोड़ रुपए के अंतर्वाह के साथ उलट गया।
- हालाँकि, इन बदलावों का प्रभाव टिकाऊ नहीं है। क्योंकि, वित्त वर्ष 2019 में अब तक भारतीय ऋण उपकरणों से 35,673 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ है। ऐसा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनी मौद्रिक नीति में अधिक आक्रामक रुख अपनाए जाने, रुपये की कमज़ोरी और अमेरिकी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण हो सकता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ईसीबी के माध्यम से उठाए गए धन के बहिर्वाह के बारे में भी स्पष्टतः चिंतित है। 2014-15 में ईसीबी के माध्यम से देश में 1,570 मिलियन डॉलर का प्रवाह हुआ, जबकि वित्त वर्ष 2016 में 4,529 मिलियन डॉलर और वित्त वर्ष 2017 में 6,102 मिलियन डॉलर का बहिर्वाह हुआ।
- इसलिये केंद्रीय बैंक ने भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं या सहायक कंपनियों को उच्च श्रेणी निर्धारण (एएए) वाले निगमों के साथ-साथ नवरत्न और महारत्न जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के ईसीबी को पुनर्वित्त प्रदान करने की अनुमति देकर इस बहिर्वाह को नियंत्रित करने की कोशिश की है।
- ईसीबी ऋण की लागत, विदेशी मुद्राओं में एकत्र किये गए ईसीबी के लिये छह महीने में डॉलर लिबोर के आधार पर 450 आधार अंकों पर सीमित की गई थी। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ, बंदरगाह ट्रस्ट और रखरखाव, मरम्मत तथा ओवरहाल, एवं फ्रेट फॉरवर्डिंग में लगी कंपनियों को भी ईसीबी जुटाने की अनुमति दी गई थी।
बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में गिरावट
- आरबीआई द्वारा अपनाए गए उपायों के परिणामस्वरूप, ईसीबी के माध्यम से उठाए गए धन का बहिर्वाह वित्त वर्ष 2018 में 183 मिलियन डॉलर हो गया।
- लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि अल्पकालिक व्यापार ऋण तेज़ी से बढ़ रहा है, जो वित्त वर्ष 2018 में लगभग दोगुना होकर 13.9 अरब डॉलर हो गया है। इस आँकड़े की गहन निगरानी की आवश्यकता होगी क्योंकि बढ़ती वैश्विक ब्याज दरें और कमज़ोर रुपया ऋण शोधन को चुनौती देंगे।
शासन व्यवस्था
माब लिंचिंग पर समिति ने रिपोर्ट सौंपी
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा की अध्यक्षता में माब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिये वरिष्ठ अधिकारियों का एक पैनल गठित किया गया था। समिति ने इस विषय पर विचार – विमर्श कन्र के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रियों के समूह की अध्यक्षता कर रहे राजनाथ सिंह को सौंप दी है।
प्रमुख बिंदु
- पैनल ने लिंचिंग की विभिन्न घटनाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को ‘समयबद्ध तरीके’ से कार्य करने की आवश्यकता है।
- फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मिडिया प्लेटफॉर्मों के संज्ञान में लाए जाने के बाद विद्वेषपूर्ण पोस्ट और वीडियो को प्रतिबंधित नहीं करने पर उन्हें उत्तरदायी बनाया जाएगा और सरकार के आदेशों का पालन न करने पर देश में कार्यरत संबंधित मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रमुख पर प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमा चलाया जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपने से पहले विभिन्न हितधारकों से इस संबंध में चर्चा भी की थी।
कानून में ऐसा प्रावधान है जो सरकार को आपत्तिजनक सामग्री को हटाने, वेबसाइटों को ब्लॉक करने आदि कार्यों को करने में सक्षम बनाता है। इस तरह कानून लागू करने वाली एजेंसियों को इन आदेशों को आगे बढ़ाने और अधिक सक्रियता से काम करने की आवश्यकता है। इसके लिये सोशल मीडिया के साथ संबंधों को भी आगे बढ़ाना होगा।
- इस संबंध में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के लिये विभिन्न सरकारी आदेशों के अनुपालन के संदर्भ में एक रिपोर्ट दी गई थी। इसे बेहतर बनाने और समय पर अनुपालन सुनिश्चित करने पर वे सहमत हैं।
- कुछ देशों में गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवकों के माध्यम से इंटरनेट की निगरानी की जाती है, वहीं पैनल द्वारा इसके लिये एक पोर्टल बनाने की बात कही गई है जहाँ लोगों द्वारा आपत्तिजनक सामग्री और विडियो के संदर्भ में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकेगी जिसे राष्ट्रीय अपराध ब्यूरों द्वारा संबंधित राज्य को उचित कार्रवाई के लिये भेजा जा सकेगा।
विशेष कार्य बल
- केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक के स्तर पर एक अधिकारी नियुक्त करने, खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिये एक विशेष कार्य बल गठित करने और बच्चों की चोरी या मवेशियों की तस्करी के संदेह में लोगों पर भीड़ द्वारा किये जाने वाले हमलों को रोकने के लिये सोशल मिडिया पर निगरानी रखने के लिये कहा गया है।
भारत-विश्व
भारत और मोरक्को के बीच हवाई सेवाओं के समझौते को मंत्रिमंडल की मंज़ूरी
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और मोरक्को के बीच हवाई सेवाओं के लिये संशोधित समझौते को मंज़ूरी दे दी है।
लाभ
- नया समझौता नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में भारत और मोरक्को के बीच सहयोग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा।
- इससे दोनों देशों के बीच व्यापार निवेश, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
- यह समझौता व्यापक सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही दोनों देशों की विमान सेवाओं के लिये व्यापारिक संभावनाओं हेतु अवसर उपलब्ध कराएगा और निर्बाध हवाई संपर्क प्रदान करने के लिये अनुकूल वातावरण भी तैयार करेगा।
समझौते की प्रमुख विशेषताएँ
- दोनों देशों की विमानन कंपनियाँ विभिन्न तरह की सेवाओं को एक-दूसरे से हस्तांतरण सकती हैं।
- प्रत्येक पक्ष की निर्दिष्ट एयर लाइन विपणन के लिये परस्पर करार कर सकती हैं।
- ये कम्पनियाँ दूसरे पक्ष या तीसरी पार्टी के साथ भी ऐसा समझौता कर सकती हैं।
- इस समझौते के ज़रिये दोनों देशों की कोई भी निर्दिष्ट एयरलाइन हवाई सेवाओं की बिक्री और विज्ञापन के लिये एक-दूसरे के यहाँ अपने कार्यालय खोल सकती हैं।
- इस व्यवस्था के तहत भारत की निर्दिष्ट एयरलाइनें मोरक्को के कासाब्लांका, रबात, माराकेश, अगादीर, तांगीर और फेज़ तक आने-जाने के लिये अपनी सेवाएँ दे सकती हैं।
- इसी तरह मोरक्को की निर्दिष्ट एयरलाइनें नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूरू और हैदराबाद आने जाने के लिये अपनी सेवाएँ उपलब्ध करा सकती हैं।
- हवाई सेवा समझौते में विमान सेवाओं के संचालन की अनुमति, संचालन नियमों, व्यावासायिक संभावनाओं तथा सुरक्षा और संरक्षा से जुड़ी व्यवस्थाओं को निलंबित करने या खत्म करने की भी व्यवस्था है।
पृष्ठभूमि
- नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों तथा दोनों देशों के बीच हवाई सेवाओं के आधुनिकीकरण और इन्हें निर्बाध जारी रखने के उद्देश्य से मौजूदा हवाई सेवा समझौते में संशोधन किया जा रहा है।
- भारत और मोरक्को के बीच हवाई सेवा समझौता 2004 में किया गया था। इस नए समझौते के प्रभावी होने के साथ ही दिसंबर 2004 में किया गया यह समझौता स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि पूर्व में निर्दिष्ट व्यवस्था में एयरलाइनों की सुरक्षा, संरक्षा और वाणिज्यिक गतिविधियों से जुड़े प्रावधानों में समय के अनुरूप बदलाव की व्यवस्था नहीं थी।
प्रौद्योगिकी
प्रीलिम्स फैक्ट्स : 30 अगस्त, 2018
अरनमुला नौका दौड़
- केरल में हालिया बाढ़ के कारण नौका दौड़ ‘अरनमुला वल्ल्मकली’ बिना किसी उत्सव के ही आयोजित की गई। पिछले 50 वर्षों में ऐसा पहली बार है जब प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले इस नौका दौड़ का आयोजन बिना किसी उत्सव के ही किया गया है।
- अरनमुला नौका दौड़ केरल की सबसे पुराना नदी नाव त्योहार है, जो ओणम (अगस्त-सितंबर) के दौरान आयोजित किया जाता है।
- यह केरल के पथनमथित्ता (Pathanamthitta) ज़िले में पाम्पा नदी में श्री कृष्ण और अर्जुन को समर्पित पार्थसारथी नामक हिंदू मंदिर के समीप मनाया जाता है।
- इस त्योहार में गायन करते हुए और दर्शकों के शोर-शराबे के बीच साँप की आकृति वाली नौकाओं को जोड़े में दौड़ाया जाता है।
- केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने नई दिल्ली में विश्व के सबसे बड़े ओपन इनोवेशन मॉडल के तृतीय संस्करण – ‘स्मार्ट इंडिया हैकथॉन -2019’ का शुभारंभ किया।
- एसआईएच-2019 जीवन में आने वाली कुछ गंभीर समस्याओं के समाधान के लिये छात्रों को मंच मुहैया करवाने हेतु एक राष्ट्रव्यापी पहल है। इससे नवाचार की संस्कृति तथा समस्या समाधान की मानसिकता विकसित होती है।
- स्मार्ट इंडिया हैकथॉन मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE), पर्सिस्टेंट सिस्टम्स और इंटर इंस्टीट्यूशनल इनक्लूसिव इनोवेशन सेंटर (I4 C) की एक पहल है।
- IISCs, IITs, NITs और AICTE/UGC से अनुमोदन प्राप्त संस्थानों के विद्यार्थियों को समस्या समाधान की सृजनात्मक प्रतिस्पर्द्धा में भाग तथा तकनीकी समाधान प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।
- इसमें पहली बार उद्योगों एवं गैर-सरकारी संगठनों के समस्या-विवरण भी शामिल किये जाएंगे।
- स्मार्ट इंडिया हैकथॉन-2019 के दो उप संस्करण होंगे –
♦ सॉफ्टवेयर संस्करण (36 घंटे का सॉफ्टवेयर उत्पाद विकास प्रतिस्पर्द्धा) तथा
♦ हार्डवेयर संस्करण (5 दिन की लंबी अवधि की हार्डवेयर उत्पाद विकास प्रतिस्पर्द्धा)
इससे पूर्व दो संस्करणों का आयोजन वर्ष 2016 और 2017 में किया गया था।
ओपन इनोवेशन मॉडल
यह एक ऐसा तरीका है जिसके अंतर्गत किसी संगठन से संबंधित समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास ज्ञान और कर्मचारियों तथा विशेषज्ञों के अपने सामान्य आंतरिक पूल से परे विशेषज्ञता के दोहन के माध्यम से किया जाता है। यह नई प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये बाहरी पूल के साथ आंतरिक पूल को जोड़ने हेतु एक ढाँचा प्रदान करता है।
‘डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय मेधा पुरस्कार-2017’
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन डॉ. अम्बेडकर फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मधावी छात्रों को डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय मेधा पुरस्कार प्रदान किये गए।
- डॉ. अम्बेडकर फाउंडेशन की स्थापना 24 मार्च, 1992 में की गई थी और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री इसके अध्यक्ष हैं।
- पुरस्कार योजना वर्ष 2002-03 में शुरू की गई थी और डॉ. अम्बेडकर फाउंडेशन दसवीं कक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले अनुजाति जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों की पहचान करता है।
- फाउंडेशन 12वीं कक्षा के सभी विषयों यथा- विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य में बेहतर प्रदर्शन करने वाले अनुसूचित जाति के छात्रों का चयन करता है।
- योजना के तहत मेधा प्रमाण पत्र, डॉ. अम्बेडकर पर किताबें और भारतीय संविधान की एक प्रति के अलावा अपने-अपने वर्ग में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान हासिल करने वाले छात्रों को क्रमश: 60,000, 50,000 और 40,000 रुपए की नकद राशि दी जाती है।
- इस मेधा पुरस्कार योजना के लिये योग्यता मानदंड निम्नलिखित हैं:
1. दसवीं कक्षा के लिये छात्रों का अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होना आवश्यक।
2. बारहवीं कक्षा के लिये छात्रों का सिर्फ अनुसूचित जाति श्रेणी से होना ज़रूरी।
प्रगति
(PRAGATI - Pro-Active Governance and Timely Implementation)
- यह एक मंच है जो प्रधानमंत्री को संबंधित केंद्रीय और राज्य के अधिकारियों के साथ मुद्दों पर पूरी जानकारी के साथ चर्चा करने में सक्षम बनाता है।
- इसे 2015 में लॉन्च किया गया था और प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) की मदद से डिज़ाइन किया गया है।
- यह एक तीन-स्तरीय प्रणाली है (पीएमओ, केंद्र सरकार के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव)।
- प्रगति के तीन उद्देश्य हैं:
♦ शिकायत निवारण
♦ कार्यक्रम कार्यान्वयन
♦ परियोजना निगरानी - प्रगति मंच अद्वितीय रूप से तीन नवीनतम प्रौद्योगिकियों को एक साथ लाता है: डिजिटल डेटा प्रबंधन, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग और भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी।
- यह सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है क्योंकि यह भारत सरकार के सचिवों और राज्यों के मुख्य सचिवों को एक मंच पर लाता है।
- हालाँकि, राज्य के राजनीतिक अधिकारियों को शामिल किये बिना राज्य सचिवों के साथ प्रधानमंत्री की सीधी बातचीत राज्य की राजनीतिक कार्यकारी को कमज़ोर कर रही है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि यह पीएमओ जैसे संवैधानेतर कार्यालय में शक्ति के संकेद्रण का कारण बन रहा है।
- प्रमुख हितधारकों के बीच वास्तविक समय की उपस्थिति और विनिमय के साथ यह ई-पारदर्शिता और ई-जवाबदेही लाने के लिये एक मज़बूत प्रणाली है।
यह ई-शासन और सुशासन में एक अभिनव परियोजना है।
- यह हर महीने चौथे बुधवार को 3.30 बजे आयोजित होता है और प्रगाति दिवस के रूप में जाना जाता है।