शासन व्यवस्था
उत्तर प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विधेयक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने निजी विश्वविद्यालय विधेयक, 2019 पारित किया जिसका उद्देश्य राज्य के 27 निजी विश्वविद्यालयों को एक ही कानून के अंतर्गत लाना है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय एकीकरण, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव, अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना, नैतिक उन्नति और देशभक्ति को उत्तर प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विधेयक के तहत विश्वविद्यालयों के उद्देश्यों में शामिल किया गया है।
- विश्वविद्यालय का निर्माण अथवा गठन करने के लिये अब एक वचन पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। वचन पत्र में ये घोषणा करनी होगी कि विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी प्रकार की देश विरोधी गतिविधियों का संचालन नहीं होने दिया जाएगा। यदि इस प्रकार के कृत्य परिसर में होते हुए पाए जाते हैं तो इनको विश्वविद्यालय निर्माण की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार आवश्यक कार्यवाही करने के लिये अधिकृत होगी।
- उत्तर प्रदेश के सभी नए निजी विश्वविद्यालय तथा पुराने 27 विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश निजी विश्वविद्यालय के अधिनियमों के अनुसार शासित होंगे इससे पहले सभी निजी विश्वविद्यालय भिन्न-भिन्न अधिनियमों के माध्यम से शासित होते थे।
- नई प्रणाली में शुल्क संरचना, शिक्षा की गुणवत्ता तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) के दिशा-निर्देशों को लागू कराने में एकरूपता लाई जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के अनुभवों का उपयोग भी इस प्रणाली में किया जाएगा।
- विश्वविद्यालय में न्यूनतम 75 प्रतिशत स्थाई शिक्षकों का होना आवश्यक होगा तथा शिक्षकों गुणवत्ता की ऑनलाइन निगरानी की जाएगी।
- शहर में किसी विश्वविद्यालय के निर्माण के लिये न्यूनतम 20 एकड़ भूमि का होना आवश्यक होगा जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वविद्यालय निर्माण के लिये 50 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। मौजूदा 27 विश्वविद्यालयों को इस स्थिति में आने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
(University Grants Commission-UGC)
- 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक तौर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नींव रखी थी।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित एक स्वायत्त संगठन है।
- पात्र विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्त, आयोग केंद्र और राज्य सरकारों को उच्चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
- इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री द्वारा राज्य सभा में दी गई जानकारी के अनुसार, भारत सरकार लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण के लिये ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’ (Scheme for Protection and Preservation of Endangered Languages-SPPEL) का संचालन कर रही है।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 1652 भाषाएँ थीं। लेकिन वर्ष 1971 तक इनमें से केवल 808 भाषाएँ ही बची थीं।
- भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण/पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (People’s Linguistic Survey of India) 2013 के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में लगभग 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं जबकि 197 भाषाओं को लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- वर्तमान में भारत सरकार केवल उन भाषाओं को मान्यता देती है जिसकी अपनी एक लिपि हो तथा व्यापक स्तर पर बोली जाती हो। इस प्रकार भारत सरकार द्वारा 122 भाषाओं को मान्यता दी गई है जो भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण द्वारा आकलित 780 भाषाओं की तुलना में बहुत कम है।
- इस विसंगति का एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत सरकार ऐसी किसी भाषा को मान्यता नहीं देती जिसे बोलने वालों की संख्या 10,000 से कम है।
- यूनेस्को द्वारा अपनाए गए मानदंडों के अनुसार, कोई भाषा तब विलुप्त हो जाती है जब कोई भी व्यक्ति उस भाषा को नहीं बोलता है या याद रखता है। यूनेस्को ने लुप्तप्राय के आधार पर भाषाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:-
- सुभेद्य (Vulnerable)
- निश्चित रूप से लुप्तप्राय (Definitely Endangered)
- गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Severely Endangered)
- गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered)
- यूनेस्को ने 42 भारतीय भाषाओं को गंभीर रूप से संकटग्रस्त माना है।
पतन के कारण:
- भारत सरकार द्वारा 10,000 से कम लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषाओं को मान्यता नहीं दी जाती है।
- समुदायों की प्रवासन एवं आप्रवासन की प्रवृत्ति के कारण पारंपरिक बसावट में कमी आती जा रही है, जिसके कारण क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान पहुँचता है।
- रोज़गार के प्रारूप में परिवर्तन बहुसंख्यक भाषाओं का पक्षधर है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन।
- ‘व्यक्तिवाद’ की प्रवृत्ति में वृद्धि होना, समुदाय के हित से ऊपर स्वयं के हित को प्रथिमकता दिये जाने से भाषाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- पारंपरिक समुदायों में भौतिकवाद का अतिक्रमण जिसके चलते आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य उपभोक्तावाद से प्रभावित होते है।
क्या किये जाने की आवश्यकता है?
- भाषा के अस्तित्त्व को सुरक्षित रखने का सबसे बेहतर तरीका ऐसे विद्यालयों का विकास करना है जो अल्पसंख्यकों की भाषा (जनजातीय भाषाएँ) में शिक्षा प्रदान करते हैं। यह भाषा का संरक्षण करने और उसे समृद्ध बनाने में वक्ताओं को सक्षम बनाता है।
- भारत की संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर एक विशाल डिजिटल परियोजना शुरू की जानी चाहिये।
- ऐसी भाषाओं के महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे- कथा निरूपण, लोकसाहित्य तथा इतिहास आदि का श्रव्य दृश्य/ऑडियो विज़ुअल प्रलेखन (Documentation) किया जाना चाहिये।
- इस तरह के प्रलेखन प्रयासों कोण बढ़ाने के लिये ग्लोबल लैंग्वेज हॉटस्पॉट्स (Global Language Hotspots) जैसी अभूतपूर्व पहल के मौजूदा लेखन कार्यों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना (SPPEL)
Scheme for Protection and Preservation of Endangered Languages (SPPEL)
- इसकी स्थापना वर्ष 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा की गई थी।
- इस योजना का एकमात्र उद्देश्य देश की ऐसी भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण करना और उन्हें संग्रहित करना है जिनके निकट भविष्य में लुप्तप्राय या संकटग्रस्त होने की संभावना है।
- इस योजना की निगरानी कर्नाटक के मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) द्वारा की जाती है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission-UGC) अनुसंधान परियोजनाओं को शुरू करने के लिये केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्र स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- इस योजना के अधीन केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान देश में 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी मातृभाषाओं और भाषाओं की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रलेखन का कार्य करता है।
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान
Central Institute of Indian Languages- CIIL
- मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी।
- यह भारत सरकार की भाषा नीति को तैयार करने, इसके कार्यान्वयन में सहायता करने, भाषा विश्लेषण, भाषा शिक्षा शास्त्र, भाषा प्रौद्योगिकी तथा समाज में भाषा प्रयोग के क्षेत्रों में अनुसंधान द्वारा भारतीय भाषाओं के विकास में समन्वय करने हेतु स्थापित की गई है।
- इसके अंतर्गत इनके उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिये यह बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- भारतीय भाषाओं का विकास
- क्षेत्रीय भाषा केंद्र
- सहायता अनुदान योजना
- राष्ट्रीय परीक्षण सेवा
स्रोत: PIB
और पढ़ें…
भारतीय विरासत और संस्कृति
प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल
चर्चा में क्यों?
सरकार देश में 17 ‘प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल’ विकसित करेगी, जो विश्व स्तर के पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित होंगे, ये स्थल अन्य पर्यटन स्थलों के लिये एक मॉडल के रूप में कार्य करेंगे।
- पर्यटन मंत्रालय ‘प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल’ (Iconic Tourist Sites) पहल के कार्यान्वयन के लिये नोडल मंत्रालय है।
मंत्रालय द्वारा चिह्नित 17 स्थल हैं:
- ताजमहल और फतेहपुर सीकरी (उत्तर प्रदेश)
- अजंता और एलोरा (महाराष्ट्र)
- हुमायूँ का मकबरा, लाल किला और कुतुब मीनार (दिल्ली)
- कोलवा (गोवा)
- आमेर किला (राजस्थान)
- सोमनाथ और धोलावीरा (गुजरात)
- खजुराहो (मध्य प्रदेश)
- हम्पी (कर्नाटक)
- महाबलिपुरम (तमिलनाडु)
- काजीरंगा (असम)
- कुमारकोम (केरल)
- महाबोधि मंदिर (बिहार)
इस पहल का उद्देश्य भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाना है।
विज़न:
- पर्यटन मंत्रालय स्थलों को गंतव्य से समग्रता से जोड़ने, स्थल पर पर्यटकों के लिये बेहतर सुविधाओं/अनुभव सुनिश्चित करने, कौशल विकास, स्थानीय समुदाय की भागीदारी, प्रचार और ब्रांडिंग तथा निजी निवेश के माध्यम से इन स्थलों को विकसित करने की दिशा में कार्य करेगा।
निष्पादन:
- इस पहल के तहत विकास के लिये निर्धारित सभी स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) और राज्य पुरातत्व विभागों (State Archaeology Departments) के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
- मंत्रालय ASI और राज्य सरकार के सहयोग से इन स्मारकों के लिये कार्य करेगा और सभी विकास योजनाओं में सार्वभौमिक पहुँच, स्मारकों की सफाई, ग्रीन टेक्नोलॉजी के उपयोग और पर्यटकों के लिये सुरक्षा बढ़ाने संबंधी पक्षों पर भी विशेष महत्त्व देगा।
पहल की आवश्यकता क्यों है?
- नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत के पर्यटन क्षेत्र में तीव्र मंदी देखी गई।
- विदेशी पर्यटक आगमन (Foreign Tourist Arrival-FTA) की वृद्धि दर वर्ष 2017-18 के 14.2% से घटकर वर्ष 2018-19 में 2.1% हो गई।
- सर्वेक्षण में यह भी स्पष्ट किया गया कि होटल और पर्यटन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2017-18 के 1,132 मिलियन डॉलर से घटकर वर्ष 2018-19 में 1,076 मिलियन डॉलर हो गया।
- ‘धरोहर गोद लें: अपनी धरोहर, अपनी पहचान’ (Adopt A Heritage: Apni Dharohar, Apni Pehchaan) परियोजना के तहत कम गति: पर्यटन मंत्रालय की ‘धरोहर गोद लें’ योजना के तहत वर्ष 2017 के अंत तक कई स्मारकों को गोद लेने के लिये उपलब्ध कराया गया। परंतु इस परियोजना की गति में भी धीमापन देखने को मिला है क्योंकि इस संबंध में अभी तक केवल 11 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- लाल किले को डालमिया समूह द्वारा गोद लिया गया था, जबकि कुतुब मीनार और अजंता की गुफाओं को यात्रा ऑनलाइन (YatraOnline) द्वारा गोद लिया गया था।
वित्तीय मुद्दा:
- पर्यटन संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पर्यटन मंत्रालय को वर्ष 2019-20 के लिये 1,378 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। यह आवंटन वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 में किये गए आवंटन (क्रमशः 1,151 करोड़ रुपए तथा 1,330 करोड़ रुपए) से थोड़ा अधिक है।
आगे की राह
- देश में पर्यटन को बढ़ावा देने संबंधी मुद्दों का समाधान करने के लिये विभिन्न मंत्रालयों और हितधारकों के बीच समन्वय तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है।
- देश में पर्यटन को रोज़गार और गरीबी उन्मूलन का एक प्रमुख चालक बनाने हेतु जागरूकता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
- निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि ये प्रतिष्ठित पर्यटन स्थल पर्यटकों को बेहतर अनुभव प्रदान करेंगे, जिससे इन स्थलों पर देशी और विदेशी दोनों पर्यटक बड़ी संख्या में आएंगे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
प्रोजेक्ट सहारा
चर्चा में क्यों?
अहमदाबाद ज़िला प्रशासन द्वारा शुरू की गई पहल ‘प्रोजेक्ट सहारा’ (Project sahara) से प्रसवोत्तर रक्तस्राव (Postpartum Haemorrhage-PPH) के कारण मातृ मृत्यु को कम करने में मदद मिली है।
प्रमुख बिंदु
- इस परियोजना के तहत ज़िले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को नॉन-न्यूमेटिक एंटी-शॉक गारमेंट (Non-Pneumatic Anti-Shock garment: NASG) उपलब्ध कराए गए हैं।
- NASG प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH) के कारण होने वाली रक्त की कमी को नियंत्रित करता है। इस प्रकार NASG के माध्यम से मातृ मृत्यु को कम करने में मदद मिली है।
- प्रसवोत्तर रक्तस्राव (Postpartum Haemorrhage-PPH) का तात्पर्य निरंतर और अत्यधिक रक्तस्राव से है। PPH की वजह से अत्यधिक रक्तस्राव होने से शरीर का रक्तचाप कम हो जाता है और यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।”
- प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या को मातृ मृत्यु दर कहते हैं। यह दुनिया के सभी देशों में प्रसव के पूर्व या उसके दौरान या बाद में माताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार के प्रयासों के लिये एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है।”
- NASG शरीर के निचले हिस्से और पेट पर दबाव बनाता है, जिससे शरीर के अन्य आवश्यक अंगों से पेडू या श्रोणि क्षेत्र में रक्त जमा हो जाता है। इस प्रकार, NASG रोगी की स्थिति को कुछ समय के लिये स्थिर कर देता है और डॉक्टरों को इलाज के लिये पर्याप्त समय मिल जाता है।
पृष्ठभूमि
- NASG गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के ज़िला विकास अधिकारी (अरुण महेश बाबू) द्वारा शुरू की गई ‘सहारा’ नामक एक स्थानीय पहल का हिस्सा है। इस पहल की शुरुआत नवंबर 2018 में की गई थी।
- इस पहल की शुरुआत से पहले जनवरी और नवंबर 2018 के बीच PPH की वज़ह से ज़िले में 8 मातृ मृत्यु हुई थीं, परंतु इस पहल के शुरू होने के बाद से PPH के कारण एक भी मृत्यु की घटना सामने नहीं आई।
- यहाँ एक पहलू यह भी है कि सही पोषण न मिलने की वज़ह से अहमदाबाद ज़िले में बहुत-सी माताएँ एनीमिया की शिकार थीं।
- इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव की पर्याप्त सुविधा न होने और अस्पतालों के दूर अवस्थित होने के कारण महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। आँकड़ों से पता चला कि राज्य में लगभग 30% मातृ मृत्यु PPH की वजह से हुईं और ये मुख्य रूप से प्रसव के बाद प्रथम 4 से 24 घंटों के भीतर हुईं।
वर्तमान स्थिति
- आज अहमदाबाद में 40 PHCs (प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर) में प्रत्येक में एक NASG सूट मौजूद है, प्रत्येक सूट को 140 बार उपयोग किया जा सकता है और सरकार ने भी जननी शिशु सुरक्षा कार्यकम (JSSK) के तहत प्रति सूट 14,500 रुपए खर्च किये हैं।
- वर्ष 2016-17 के नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System) परिणामों के अनुसार, गुजरात का IMR (प्रति 1,000 जीवित जन्म) 30 था और MMR (प्रति 100,000 जीवित जन्म) 91 था जो कि राष्ट्रीय औसत से बेहतर था, हालाँकि यह एक अधिक समृद्ध राज्य के लिये अपेक्षाकृत काफी अधिक था।
“संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास लक्ष्य (SDG 3.1) वर्ष 2030 तक MMR को प्रति 100,000 जीवित जन्म पर 70 से कम करने की बात करता है।”
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम
Janani Shishu Suraksha Karyakaram (JSSK)
- नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य की सुविधाएँ न मिलने के कारण मृत्यु की समस्या का निवारण करने के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने (जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम) 1 जून, 2011 को गर्भवती महिलाओं तथा रूग्ण नवजात शिशुओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिये शुरू किया था।
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने योजना का कार्यान्वयन शुरू कर दिया है।
- इस योजना के अंतर्गत मुफ्त सेवा प्रदान करने पर बल दिया गया है। इसमें गर्भवती महिलाओं तथा रूग्ण नवजात शिशुओं को खर्चों से मुक्त रखा गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
बैटरी स्टोरेज़ संयंत्र के लिये भारत की योजनाएँ
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार बैटरी उत्पादन के लिये टेस्ला शैली की कम-से-कम चार गीगाफैक्टरीज़ (Tesla-style Gigafactories) स्थापित करने के लिये लगभग 4 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी।
प्रमुख बिंदु
- यह पहल इलेक्ट्रिक वाहनों में संक्रमण, प्रदूषण में कटौती और विदेशी तेल आयात पर निर्भरता को कम करने की सरकार की योजना का हिस्सा है।
पृष्ठभूमि
- केंद्रीय बजट 2019 में सरकार ने सौर फोटोवोल्टिक सेलों (solar Photovoltaic Cells), लिथियम भंडारण बैटरियों (Lithium Storage Batteries) और सौर इलेक्ट्रिक चार्जिंग बुनियादी ढाँचे (solar electric charging infrastructure) के लिये मेगा-विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने हेतु कर में छूट की घोषणा की है।
- नीति आयोग के अनुसार, भारत की घरेलू मांग को पूरा करने के लिये वर्ष 2025 तक 10 गीगावॉट और वर्ष 2030 तक 12 गीगावॉट की क्षमता वाली (प्रत्येक फैक्ट्री की क्षमता क्रमशः 10 गीगावॉट और 12 गीगावॉट होगी) 6 गीगाफैक्टरीज़ की आवश्यकता होगी।
इस कदम से भारत को क्या लाभ होगा?
- यह भारत की ऊर्जा आवश्कताओं को पूरा करने में मदद करेगा।
- यह भारत को एक इलेक्ट्रिक वाहन परिवेश विकसित करने में सक्षम बनाएगा।
- यह बैटरी के साथ-साथ ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करेगा।
- यह स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देकर प्रदूषण से निपटने में मददगार होगा और भारत को अपने अभिप्रेत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Intended Nationally Determined Contributions-INDC) लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।
भारत के लिये चुनौतियाँ
- परियोजना की वित्तीय व्यवहार्यता।
- तकनीकी बाधाएँ।
- इलेक्ट्रिक वाहन के लिये स्थिर नीति का अभाव।
- भूमि अधिग्रहण जैसे बुनियादी ढाँचे के मुद्दों का समाधान करना।
‘परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी स्टोरेज पर राष्ट्रीय मिशन’
(National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage)
- हाल ही में सरकार ने स्वच्छ, आपस में जुड़ी, साझा, सतत् एवं समग्र गतिशीलता पहलों को बढ़ावा देने के लिये ‘परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी स्टोरेज पर राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage) भी शुरू किया है।
- इस मिशन के तहत परिवर्तनकारी गतिशीलता के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, इन वाहनों के कलपुर्जों और बैटरियों से जुड़े चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रमों के लिये विभिन्न रणनीतियों की सिफारिशें पेश की जाएंगी एवं इन्हें अपेक्षित गति प्रदान की जाएगी।
- भारत में गतिशीलता या आवागमन में व्यापक बदलाव लाने के लिये विभिन्न पहलों को एकीकृत करने हेतु इस मिशन के तहत मंत्रालयों/विभागों और राज्यों के महत्त्वपूर्ण हितधारकों के साथ समन्वय स्थापित किया जाएगा।
स्रोत: लाइव मिंट
भारतीय अर्थव्यवस्था
सफेद चाय
चर्चा में क्यों?
पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के उनाकोटि ज़िले में इस साल की शुरुआत में ही 95 वर्ष पुराने गोलोकपुर टी एस्टेट (Golokpur Tea Estate) ने 10 हज़ार रुपए में एक किलोग्राम सफेद चाय (व्हाइट टी) बेचकर कीर्तिमान स्थापित किया।
सफेद चाय क्या है?
- चाय की कलियों और नई पत्तियों के आसपास के सफेद रोएं/रेशे से तैयार चाय को सफेद चाय कहा जाता है। यह दिखने में हल्के भूरे या सफेद रंग की होती है इसलिये इसे यह नाम दिया गया है।
- कई स्थानों पर इसे कम प्रसंस्करण के साथ सुखाई गईं पत्तियों से तो कहीं-कहीं पर कलियों से भी तैयार किया जाता है।
- टी बोर्ड इंडिया के अनुसार, भारत वैश्विक चाय 14% तथा देश में उत्पादित चाय का लगभग 20% निर्यात करता है।
भारत और चाय उत्पादन
- भारत दुनिया में चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- यह दुनिया में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- यह दुनिया में चाय का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
चाय उत्पादन
- असम, दार्जिलिंग, दक्षिण भारत की नीलगिरी पहाड़ियों और हिमालय की तलहटी के साथ तराई भागों में चाय की खेती और रोपण किया जाता है।
चाय की खेती के लिये अनुकूल स्थितियाँ
- जलवायु: चाय एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पौधा है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से वृद्धि करता है।
- तापमान: इसकी वृद्धि के लिये आदर्श तापमान 20°-30°C है।
- वर्षा: इसके लिये वर्ष भर 150-300 सेमी. औसत वर्षा की आवश्यकता होती है।
- मृदा: चाय की खेती के लिये सबसे उपयुक्त छिद्रयुक्त अम्लीय मृदा (कैल्शियम के बिना) होती है, जिसमें जल आसानी से प्रवेश कर सके।
टी बोर्ड
(Tea Board)
- टी बोर्ड वाणिज्य मंत्रालय (Ministry of Commerce) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
- बोर्ड के 31 सदस्यों में संसद के सदस्य, चाय उत्पादक, चाय विक्रेता, चाय ब्रोकर, उपभोक्ता व प्रधान चाय उत्पादन राज्यों से सरकार के प्रतिनिधि एवं व्यावसायिक संघ के सदस्य (अध्यक्ष सहित) शामिल होते हैं।
- प्रत्येक तीन साल में बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता है।
कार्य
- चाय के विपणन, उत्पादन के लिये तकनीकी व आर्थिक सहायता का प्रस्तुतीकरण करना।
- निर्यात संवर्द्धन करना।
- चाय की गुणवत्ता में सुधार व चाय उत्पादन के आवर्धन के लिये अनुसंधान व विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना।
- श्रमिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से चायरोपण श्रमिकों और उनके वार्डों तक सीमित तरीके से आर्थिक सहायता पहुँचाना।
- लघु उत्पादकों के असंगठित क्षेत्र को आर्थिक व तकनीकी सहायता देना व उन्हें प्रेरित करना।
- सांख्यिकी डेटा व प्रकाशन का संग्रह व रख-रखाव करना।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
जैव विविधता और पर्यावरण
अखिल भारतीय बाघ अनुमान का चौथा चक्र- 2018
चर्चा में क्यों?
29 जुलाई, 2019 को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर वर्ष 2018 में हुई बाघों की गणना के चौथे चक्र के आँकड़े जारी किये गए।
प्रमुख बिंदु
- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) ने देश भर के टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय उद्यान (National Park) तथा अभयारण्यों में बाघों की गिनती की।
- सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है। यह भारत के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि है क्योंकि देश ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार साल पहले ही प्राप्त कर लिया है।
- वर्तमान में भारत लगभग 3,000 बाघों के साथ सबसे बड़ा एवं सुरक्षित प्राकृतिक वास बन गया है।
- दुनियाभर में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य बाघों के संरक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
- 29 जुलाई, 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में एक टाइगर समिट के दौरान दुनिया भर के बाघों की घटती संख्या के संदर्भ में एक समझौता किया गया था।
- समझौते के अंतर्गत वर्ष 2022 तक विश्व में बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था।
चौथे चक्र की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- इस रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है।
- उल्लेखनीय है कि बाघों की संख्या में वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक 21 प्रतिशत तथा वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
- बाघों की संख्या में वर्तमान वृद्धि वर्ष 2006 से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप है।
- मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक 526 पाई गई, इसके बाद कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में इनकी संख्या 442 थी।
- छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में बाघों की संख्या में गिरावट देखने को मिली, जबकि ओडिशा में इनकी संख्या अपरिवर्तनशील रही।
- अन्य सभी राज्यों में सकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली। बाघों के सभी पाँच प्राकृतिक वासों में उनकी संख्या में वृद्धि देखने को मिली।
- गौरतलब है कि इस नई रिपोर्ट में तीन टाइगर रिज़र्व बक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों के अनुपस्थिति दर्ज की गई है।
बाघों की गणना के लिये अपनाई गई प्रक्रिया
- भारत में बाघों की संख्या का आकलन करने के लिये MK-रीकैप्चर फ्रेमवर्क को शामिल कर दोहरे प्रतिचयन दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में होने वाली उन्नति के साथ समय-समय पर सुधार हुआ है।
- चौथे चक्र के दौरान सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के साथ एक एन्ड्रॉयड आधारित एप्लीकेशन-मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेट्स (Monitoring system for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status/M-STrIPES) का इस्तेमाल करते हुए आँकड़े एकत्र किये गए तथा एप्लीकेशन के डेस्कटॉप मॉडयूल पर इनका विश्लेषण किया गया।
- इस एप्लीकेशन ने करीब 15 महीने में बड़ी मात्रा में एकत्र किये गए आँकड़ों का विश्लेषण आसान बना दिया।
- इसके अलावा 26,760 स्थानों पर कैमरे लगाए गए, जिनसे वन्य जीवों की 35 मिलियन तस्वीरें प्राप्त की गईं, इनमें से 76,523 तस्वीरें बाघों की थीं।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के कारण थोड़े ही समय में इन चित्रों को अलग करना संभव हुआ।
- जिस तीव्रता से यह कार्य किया गया, उसके परिणामस्वरूप बाघों की 83 प्रतिशत आबादी के आँकड़े एकत्र कर लिये गए। 2,461 बाघों के चित्र प्राप्त किये गए तथा बाघों की केवल 17 प्रतिशत आबादी के बारे में अनुमान लगाया गया।
बाघ अभयारण्य प्रबंध प्रणाली
- बाघ अभयारण्यों के प्रभावी मूल्यांकन प्रबंधन (Management Effectiveness Evaluation of Tiger Reserves- MEETR) के चौथे चक्र की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश स्थित पेंच बाघ अभयारण्य में बाघों के संरक्षण लिये सबसे अच्छा प्रबंधन पाया गया, जबकि तमिलनाडु स्थित सत्यमंगलम बाघ अभयारण्य में पिछले चक्र के बाद से सबसे अच्छा प्रबंध देखने को मिला, जिसके लिये उसे पुरस्कृत किया गया।
- 42 प्रतिशत बाघ अभयारण्य प्रबंधन श्रेणी में बहुत अच्छी स्थिति में हैं जबकि 34 प्रतिशत अच्छी श्रेणी में तथा 24 प्रतिशत मध्यम श्रेणी में हैं।
- ध्यातव्य है कि चौथे चक्र की मूल्यांकन प्रबंधन रिपोर्ट के तहत किसी भी बाघ अभयारण्य को ‘खराब’ रेटिंग नहीं दी गई है।
- किसी भी बाघ की उपस्थिति दर्ज नहीं किये जाने के बावज़ूद भी डम्पा और पलामू को 'अच्छी’ श्रेणी जबकि बक्सा को ‘बहुत अच्छी’ श्रेणी के अभयारण्य में रखा गया है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान
Wildlife Institute of India
- इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी।
- यह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान है।
- यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, अकादमिक कार्यक्रम के अलावा वन्यजीव अनुसंधान तथा प्रबंधन में सलाह प्रदान करता है।
- इसका परिसर समस्त भारतवर्ष में जैव-विविधता संबंधी मुद्दों पर उच्च स्तर के अनुसंधान के लिये श्रेष्ठतम ढाँचागत सुविधाओं से सुसज्जित है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
Ministry of Environment, Forest and Climate Change
- यह भारत की पर्यावरण एवं वानिकी संबंधी नीतियों एवं कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के नियोजन, संवर्द्धन, समन्वय और निगरानी हेतु केंद्र सरकार के प्रशासनिक ढाँचे के अंतर्गत एक नोडल एजेंसी है।
- इसका मुख्य दायित्व देश की झीलों और नदियों, जैव विविधता, वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, पशु कल्याण आदि से संबंधित नीतियों तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना है।
- इन नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में मंत्रालय सतत् विकास एवं जन कल्याण को बढ़ावा देने के सिद्धांतों का पालन करता है।
- यह मंत्रालय देश में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP), अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र (ICIMOD) के लिये तथा पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) के पालन हेतु भी नोडल एजेंसी की तरह कार्य करता है।
- इस मंत्रालय को बहुपक्षीय निकायों और क्षेत्रीय निकायों के पर्यावरण से संबंधित मामले भी सौंपे गए हैं।
स्रोत: PIB
सुरक्षा
एकीकृत युद्ध समूह (IBG)
चर्चा में क्यों?
भारतीय सेना ने युद्ध में बेहतर प्रदर्शन और दुश्मन पर त्वरित आक्रमण करने की अपनी क्षमता में वृद्धि करने के लिये पहले एकीकृत युद्ध समूह (Integrated Battle Groups-IBG) का गठन करने का फैसला किया है।
प्रमुख बिंदु:
- IBG की संकल्पना का प्रयोग भारतीय सेना द्वारा स्वयं में सुधार के लिये किया जा रहा है जिसका कार्यान्वयन अगले माह यानी अगस्त 2019 के अंत तक होने की संभावना है।
- IBG, ब्रिगेड के आकार की एक दक्ष और आत्मनिर्भर युद्ध व्यवस्था है जो युद्ध की स्थिति में शत्रु के विरुद्ध त्वरित आक्रमण करने में सक्षम है।
- IBG का परीक्षण पहले ही किया जा चुका है हालाँकि इनकी संख्या का निर्धारण अभी तक नहीं किया गया है।
- प्रत्येक IBG का गठन संभावित खतरों, भू-भाग और कार्यो के निर्धारण के आधार पर किया जाएगा और इन्हीं तीन आधारों पर IBG को संसाधनों का आवंटन भी किया जाएगा।
- IBG कार्यवाही करने हेतु अपनी अवस्थति के आधार पर 12 से 48 घंटों के भीतर संगठित होने में सक्षम होंगे।
- कमांड एक परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में फैली सेना की सबसे बड़ी स्थैतिक इकाई (Static Formation) होती है जबकि वाहिनी (Corps) सबसे बड़ी गतिशील इकाई (Mobile Formation) होती है। सामान्यत: प्रत्येक वाहिनी (Corps) में तीन डिवीज़न होते हैं और प्रत्येक डिवीज़न में तीन ब्रिगेड होते हैं।
- प्रत्येक वाहिनी (Corps) को 1 से 3 IBG में पुर्नगठित किया जाएगा साथ ही IBG का आकर ब्रिगेड के समान ही होगा परंतु IBG में तोपखाना (Infantry), बख्तरबंद (Armoured), आर्टिलरी और वायु-प्रतिरक्षा (Air Defence) आदि भी संभावित खतरों (Threat), भू-भाग (Terrain) और कार्यो के निर्धारण के आधार पर सन्निहित अथवा इसका भाग होंगे।
- IBG आक्रामक और रक्षात्मक दोनों प्रकार की होंगे। जहाँ एक ओर आक्रामक IBG तीव्रता से कार्यवाही करते हुये दुश्मन के क्षेत्र में हमला करने में सक्षम होंगे, वहीं दूसरी ओर रक्षात्मक IBG दुश्मन के संभावित हमले के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों की सुरक्षा करेंगे।
- IBG का गठन सेना की ‘कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन’ (Cold Start Doctrine) का एक भाग है।
भारतीय सेना की ‘कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन’
(Cold Start Doctrine)
- यह डॉक्ट्रिन भारतीय सेना को दुश्मन (विशेष रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध) के क्षेत्र में प्रवेश कर तीव्रता से कार्यवाही करने का लक्ष्य प्रदान करती है।
- इस डॉक्ट्रिन का विचार सर्वप्रथम वर्ष 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन पराक्रम’ से आया।
- ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान भारत की आक्रामक रणनीतियों की अनेक कमियाँ उजागर हुई जिनमें सीमा पर सेना की तैनाती में ही एक माह का समय लगने, जैसे कई मुद्दे शामिल थे।
- वर्ष 2017 में तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष द्वारा इस डॉक्ट्रिन के अस्तित्व को स्वीकार किया गया।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (The National Commission of Minorities-NCM) ने उन राज्यों में हिंदुओं को ‘अल्पसंख्यक समुदाय’ घोषित करने की याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया है, जहाँ उनकी संख्या बहुत कम है।
प्रमुख बिंदु:
- NCM का यह निर्णय एक वकील द्वारा दायर याचिका के संदर्भ में आया है। दायर याचिका में यह कहा गया था कि या तो राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिये कुछ दिशा-निर्देश निश्चित किये जाएँ या फिर उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए जहाँ उनकी संख्या काफी कम हैं।
- NCM द्वारा इस संदर्भ में तीन सदस्यों (जॉर्ज कुरियन, मनजीत सिंह राय और आतिफ रशीद) की एक उप-समिति का गठन किया गया था।
- NCM द्वारा गठित उप-समिति के अनुसार, अल्पसंख्यक आयोग का कार्य नए अल्पसंख्यक समुदायों का निर्धारण करना नहीं है, बल्कि इसका कार्य अल्पसंख्यकों के विकास को सुनिश्चित करना और उनके धार्मिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करना है।
- उप-समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि नए अल्पसंख्यक समुदायों के निर्धारण का अधिकार अल्पसंख्यक आयोग के पास नहीं है और इसलिये NCM इसका प्रयोग नहीं कर सकती है। ज्ञातव्य है कि केवल केंद्र सरकार के पास ही किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने का अधिकार है।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(c) में भी यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी समुदाय को ‘अल्पसंख्यक’ घोषित करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है।
- उप-समिति की रिपोर्ट में वर्ष 1999 के बाल पाटिल बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें NCM के कार्यों की विस्तृत व्याख्या की गई थी।
क्या था सर्वोच्च न्यायालय का फैसला?
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले के अनुसार, अल्पसंख्यक आयोग का संवैधानिक लक्ष्य “ऐसी सामाजिक परिस्थितियों का निर्माण करना है जिसमें अल्पसंख्यकों के हितों एवं अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती।”
- न्यायालय के अनुसार, यदि अल्पसंख्यक का दर्जा धार्मिक विचारों और कम संख्यात्मक शक्ति के आधार पर दिया जाएगा तो देश के सभी छोटे बड़े समूहों के मध्य सामूहिक संघर्ष उत्पन्न हो जाएगा और सभी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लग जाएँगे।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
(The National Commission of Minorities-NCM)
- अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक निकाय है।
- इसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
- अधिनियम के अनुसार, किसी भी मामले की जाँच करते समय आयोग के पास दीवानी अदालत के अधिकार होंगे।
- आयोग में केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत एक अध्यक्ष के साथ-साथ पाँच अन्य सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष तथा सदस्यों के संदर्भ में यह आवश्यक है कि वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से हों।
- प्रमुख कार्य:
- अल्पसंख्यकों की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये केंद्र व राज्य सरकार को प्रभावी उपायों की सिफारिश करना।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
विश्व के बच्चों में कैंसर की स्थिति
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन में यह सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों में होने वाले कैंसर के 82 प्रतिशत मामले गरीब देशों में सामने आते हैं।
प्रमुख बिंदु:
- लांसेट/लैंसेट जर्नल के हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रत्येक दिन तकरीबन 700 बच्चों के कैंसर से पीड़ित होने की जानकारी मिलती है।
- हालाँकि वर्ष 2017 में बच्चों और किशोरों (0-19 वर्ष) में वैश्विक स्तर पर कैंसर के लगभग 4,16,500 नए मामले ही सामने आए। लेकिन खराब स्वास्थ्य, विकलांगता और घातक कैंसर से संबंधित इलाज के चलते वैश्विक स्तर पर अनुमानत: प्रत्येक वर्ष 11.5 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
- संपन्न देशों की अपेक्षा गरीब देशों के बच्चों में कैंसर से मृत्यु की संभावना 4 गुना अधिक होती है।
- कारणों की व्याख्या करते हुए अध्ययन में कहा गया है कि निदान/डायग्नोसिस तथा स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच में कमी कई गरीब देशों में कम उम्र में होने वाले कैंसर के प्रमुख कारण हैं।
भारत के संदर्भ में
- अध्ययन के अनुसार, भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों की मृत्यु के लिये कैंसर 9वाँ सबसे बड़ा कारण है। भारत में कैंसर के कुल पीड़ितों में से तकरीबन 5 प्रतिशत बच्चे हैं।
- हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुंबई का टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल और दिल्ली का एम्स (AIIMS) आदि भारत के कुछ ऐसे स्वास्थ्य संस्थान हैं जहाँ कैंसर से प्रभावित लोगों के जीवित रहने की दर लगभग पश्चिम देशों के बराबर हैं।
- इसके अतिरिक्त भारतीय बच्चों में होने वाले कैंसर की दर भी पश्चिमी देशों की तुलना में कम है। जहाँ एक ओर भारत में प्रति 1,00,000 बच्चों में से मात्र 80-90 बच्चे ही कैंसर से पीड़ित हैं वहीं दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप में यह आँकड़ा 160 के आस-पास है।
- टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में कैंसर के मामले में भारत विश्व में 5वें स्थान पर है और दुनिया भर के कैंसर से प्रभावित कुल बच्चों में से 20 प्रतिशत भारत में हैं।
कैंसर (CANCER) क्या है?
- कैंसर से अभिप्राय शरीर के भीतर कुछ कोशिकाओं का अनियंत्रित होकर बढ़ना है।
- अनुपचारित कैंसर आसपास के सामान्य ऊतकों या शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है तथा इसके कारण बहुत से गंभीर रोग, विकलांगता यहाँ तक की मृत्यु भी हो सकती है।
- मूलतः कैंसर को प्राथमिक ट्यूमर कहा जाता है।
- शरीर के दूसरे हिस्से में फैले कैंसर को मेटास्टैटिक या माध्यमिक कैंसर कहा जाता है।
- मेटास्टैटिक कैंसर में प्राथमिक कैंसर के समान ही कैंसर कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
- आमतौर पर मेटास्टैटिक कैंसर शब्द का प्रयोग ठोस ट्यूमर का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलता है।
स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (30 July)
- सर्वोच्च न्यायालय ने नियमों में संशोधन करके अब पाँच लाख रुपए वार्षिक आय वालों को निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध करने का निर्देश दिया है। अब तक सर्वोच्च न्यायालय में अपने मामले में मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिये आय की सीमा 1.25 लाख रुपए थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह संशोधन मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद किये हैं तथा केंद्र सरकार ने इन्हें अधिसूचित भी कर दिया है। इसमें कई कारकों जैसे महंगाई सूचकांक, न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी और लंबा समय गुज़रने को ध्यान में रखा गया है। इनमें कोर्ट फीस का भुगतान, केस पेपर तैयार करना तथा पंजीकरण और वकील द्वारा मुफ्त बहस करना शामिल है। यह संशोधन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के नियम 7 में किया गया है, जिसमें मुफ्त कानूनी सेवा के लिये योग्यता बढ़ाई गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39ए में सभी के लिये न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिये निशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) के तहत राज्य का यह उत्तरदायित्व है कि वह सबके लिये समान अवसर सुनिश्चित करे। समानता के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों को बेहतर कानूनी सेवाएं प्रदान करने हेतु एक तंत्र की स्थापना करने के लिये वर्ष 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया। इसी के तहत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का गठन किया गया, जिसका काम कानूनी सहायता कार्यक्रम लागू करना और उसका मूल्यांकन एवं निगरानी करना है। साथ ही, इस अधिनियम के अंतर्गत कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराना भी NALSA की ज़िम्मेदारी है।
- IPS अधिकारी वी.के. जौहरी देश के सबसे बड़े सीमा सुरक्षा बल (BSF) के महानिदेशक नियुक्त किये गए हैं। नियुक्ति से संबंधित मंत्रिमंडलीय समिति ने यह आदेश जारी किया। इस समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और गृहमंत्री अमित शाह उसके सदस्य हैं। मध्य प्रदेश कैडर के वर्ष 1984 बैच के IPS अधिकारी वी.के. जौहरी फिलहाल कैबिनेट सचिवालय में रॉ के विशेष सचिव हैं। वह BSF में रजनीकांत मिश्रा की जगह लेंगे जो 31 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। लगभग ढाई लाख कर्मियों वाला BSF देश का सबसे बड़ा सीमा प्रहरी बल है और उस पर पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगती भारत की दो महत्त्वपूर्ण सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मा है। जीवन पर्यन्त कर्त्तव्य उद्देश्य वाक्य के साथ BSF का गठन 1 दिसंबर, 1965 को हुआ था। देश में दो अन्य सीमा प्रहरी बल ITBP (चीन के साथ लगी सीमा की सुरक्षा) और SSB (नेपाल एवं भूटान के साथ सीमा की सुरक्षा) हैं।
- केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) ने 27 जुलाई को अपना 81वाँ स्थापना दिवस मनाया। 27 जुलाई 1939 को क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के नाम से इस बल की स्थापना की गई थी। 28 दिसंबर, 1949 को CRPF अधिनियम के लागू होने पर यह केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल बन गया। यह विश्व का सबसे बड़ा अर्द्धसैनिक बल है। जम्मू-कश्मीर तथा पूर्वोत्तर के साथ देश के वाम उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में CRPF महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है। CRPF का मिशन सरकार को कानून, सार्वजनिक व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा को प्रभावी और कुशलता से बनाए रखने में सक्षम बनाना है। यह बल 246 बटालियन के साथ एक विशाल संगठन के तौर पर विकसित हो चुका है। जिसमें 208 कार्यकारी बटालियन, छह महिला बटालियन, 15 रैपिड एक्शन फोर्स (दंगा विरोधी) बटालियन, 10 कोबरा (विशेष नक्सल विरोधी) बटालियन शामिल हैं। एक बटालियन में लगभग 1000 जवान होते हैं।
- IIT खड़गपुर के छात्रों ने बुजुर्गों की देखभाल के लिये एक ऐसास ऐप बनाया है जो किसी बुजुर्ग के गिर जाने की स्थिति में उनकी देखभाल करने वालों को तत्काल इसकी सूचना देगा। CARE4U नामक यह एप बुजुर्गों तथा उनकी देख-भाल करने वालों को आपस में जोड़ने का काम करेगा। बुजुर्ग व्यक्तियों के फोन में इंस्टॉल हुआ यह एप किसी बुजुर्ग के गिर जाने की हालत में देख-रेख करने वाले को और आपात सेवाओं को अपने आप कॉल कर देगा। साथ ही उस स्थान की सटीक जानकारी देगा जहाँ बुजुर्ग गिरा है। साथ ही यह एप बुजुर्ग व्यक्ति की मनोदशा का भी पता लगाएगा। जब कोई बुजुर्ग व्यक्ति इस एप को चलाएगा तो फोन उनकी तस्वीर खींचेगा और मूड इंडेक्स की गणना करेगा। इस ऐप से संबंधियों को पता चलेगा कि बुजुर्ग का पूरे दिन मूड कैसा रहा। इसके अलावा इस एप में बुजुर्ग व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री भी रखी जा सकती है।
- प्रख्यात भारतीय रेत कलाकार (Sand Artist) सुदर्शन पटनायक को अमेरिका में सैंड स्कल्पटिंग फेस्टिवल में पीपल्स चॉइस अवार्ड से सम्मानित किया गया है। सुदर्शन पटनायक ने महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने संबंधी संदेश देते हुए रेत पर स्टॉप प्लास्टिक पॉल्यूशन, सेव आवर ओशन कलाकृति बनाई थी, जिसके लिये उन्हें पुरस्कृत किया गया है। मैसाचुसेट्स के बोस्टन में ‘रिवीर बीच’ पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ‘सैंड स्कल्पटिंग फेस्टिवल’ 2019 में हिस्सा लेने के लिये विश्वभर से चुने गए 15 शीर्ष रेत कलाकारों में पटनायक भी शामिल थे। उन्हें उनकी कलाकृति के लिये ‘पीपल्स चॉइस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। पद्म श्री से सम्मानित सुदर्शन पटनायक देश के लिये कई पुरस्कार जीत चुके हैं तथा उनका नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल है।