प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 29 Oct, 2019
  • 23 min read
भारतीय राजनीति

राजकोषीय संघवाद

प्रीलिम्स के लिये:

वस्तु एवं सेवा कर, सहकारी संघवाद, संघवाद से संबंधित प्रावधान।  

मेन्स के लिये:

वस्तु एवं सेवा, सहकारी संघवाद, संघवाद से संबंधित प्रावधान और संबंधित मुद्दे।

संदर्भ

केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को प्रत्यक्ष कर एकत्र करने की शक्तियाँ प्रदान करने पर विचार-विमर्श चल रहा है। 

  • उल्लेखनीय है कि राज्यों के पास वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax) के बाद भी वित्तीय संसाधनों का अभाव दिख रहा है।
  • वस्तु एवं सेवा कर के क्रियान्वयन के पश्चात् प्रत्यक्ष रूप से एकीकृत राजकोषीय संघवाद का विकास हो रहा है लेकिन वास्तविकता यह भी है कि राजस्व का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष करों के संग्रहण से आता है जहाँ पर राज्यों को केवल केंद्र की इच्छा पर ही निर्भर रहना होता है।

budget

  • विदित है कि वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से प्राप्त कर का केवल एक छोटा हिस्सा ही राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है शेष प्रत्यक्ष कर के हिस्सों को परंपरागत तरीके से राज्यों के मध्य विभाजित किया जाता है।
  • वर्तमान समय में भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुज़र रही है ऐसे में राज्यों के पास वित्तीय संसाधनों का अभाव अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक हो सकता है।

भारतीय संघवाद:

  • भारत राज्यों का एक संघ है। प्रत्येक राज्य के नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार का चुनाव करते हैं। निर्वाचित सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उसके मतदाताओं के प्रति जवाबदेहिता है।
  • संघात्मक व्यवस्था का तात्पर्य ऐसी शासन प्रणाली से है जहाँ पर संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्य सरकार के मध्य किया जाता है एवं दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं।
  • संविधान की संघीय विशेषता के अंतर्गत- द्वैध शासन प्रणाली, लिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, कठोर संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका और द्विसदनीयता जैसी सामान्य विशेषताएँ पाई जाती हैं।
  • एक निर्वाचित सरकार को सामान्य तौर पर अपने नागरिकों के कराधान के माध्यम से राजस्व जुटाने में सक्षम होने और उनके लाभ के लिये उचित व्यय करने की शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
  • के संथानम् द्वारा भी वित्तीय मामलों में केंद्र का प्रभुत्व और राज्यों की केंद्र पर निर्भरता जैसी स्थिति को भारतीय संघवाद का असंतुलनकारी पक्ष माना गया है।

राजकोषीय संघवाद

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान के भाग 12 में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद-राज्य वित्तीय संबंधों की चर्चा की गई है। 
    • संसद की संघ सूची के पास 15 और राज्य विधानमंडल के पास राज्य सूची के 20 विषयों पर कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
    • कर निर्धारण की अवशेषीय शक्ति संसद में निहित है, इस उपबंध के तहत संसद ने उपहार कर, संवृद्धि कर और व्यय कर लगाएँ हैं। 
    • सामान्य विनियमों के अतिरिक्त राज्य विधानमंडल की कर निर्धारण शक्तियों पर निम्नलिखित पाबंदियाँ भी लगाई गई हैं- 
      • व्यापार, व्यवसाय और रोज़गार पर प्रति व्यक्ति अधिकतम 2500 रुपए प्रति वर्ष।  
      • खरीद-बिक्री पर कर लगा सकता है लेकिन ऐसी शक्तियों पर भी चार पाबंदियाँ हैं- 
        • राज्य के बाहर किसी वस्तु की खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।  
        • आयात-निर्यात के दौरान खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।  
        • अंतर्राज्यीय व्यापार वाणिज्य के दौरान किसी वस्तु की खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।
        • संसद द्वारा अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत महत्त्वपूर्ण घोषित मसलों पर क्रय-विक्रय के आधार पर प्रतिबंध।
  • ऐतिहासिक मुद्दे:
    • वर्ष 1982 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के अंतर्गत लाना चाहते थे ताकि छात्र नामांकन में सुधार हो सके।
    • इस कार्यक्रम के लिये 150 करोड़ रुपए के अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता थी जो राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं था। इस अतिरिक्त व्यय हेतु तमिलनाडु में बेचे जाने वाले सामानों पर अतिरिक्त बिक्री कर लगाया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के फलस्वरूप तमिलनाडु की साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि दर्ज़ की गई और कुछ दशकों में तमिलनाडु को भारत के सर्वाधिक साक्षर राज्यों में गिना जाने लगा।
  • वर्तमान मुद्दे: 
    • वस्तु और सेवा कर के क्रियान्वयन के पश्चात् राज्यों ने अप्रत्यक्ष करों को लगाने की अपनी शक्तियाँ खो दीं है। इसके अतिरिक्त भारत में राज्य सरकार के पास आयकर और बिक्री कर लगाने की कोई शक्ति नहीं है। 
    • वर्तमान में केंद्र सरकार कुल कर राजस्व पूल का 52% अपने रखता है और शेष 48% सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को  वितरित करता है।
  • सरकार के द्वारा राजकोषीय संघवाद के सुधार हेतु प्रयास:
    • नीति आयोग के निर्माण से वित्तीय केंद्रीकरण की पूर्व स्थिति में बदलाव आया है तथा भारत राजकोषीय संघवाद की ओर तेज़ी से स्थानांतरित हुआ है। इस बदलाव के साथ ही वर्तमान सरकार ने केंद्र-राज्य के मध्य विभिन्न माध्यमों से संघवाद को बढ़ावा दिया है जिसमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं-
    • योजना आयोग की समाप्ति तथा इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन।
    • केंद्र-राज्य संबंधों को ध्यान में रखकर GST परिषद का गठन।
    • राजकोषीय विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से राज्यों के खर्च पर केंद्र का नियंत्रण कम   करना।
    • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करना।
    • ध्यातव्य है कि भारत में उपर्युक्त प्रयास ऐसे समय में किये जा रहे हैं जब भारत में मज़बूती से राजनीतिक केंद्रीकरण हो रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति कमज़ोर हुई है।

वैश्विक परिदृश्य: 

  • भारत के विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय सरकारों को भी आयकर लगाने का अधिकार है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त ब्राज़ील, जर्मनी जैसे देश भी राज्य और स्थानीय स्तर पर आयकर एकत्र  करते हैं।

स्रोत: द हिंदू 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अर्द्ध-डाइरेक धातु

प्रीलिम्स के लिये:

अर्द्ध-डाइरेक धातु  

मेन्स के लिये:

प्रौद्योगिकीयों का विकास एवं अनुप्रयोग 

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं ने अर्द्ध-डाइरेक (Semi-Dirac) नामक विशेष वर्ग के धातु में विशिष्ट गुणों का पता लगाया है।

प्रमुख बिंदु:

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जब कोई घटना किसी विशेष दिशा में होती है तो ये धातुएँ दी हुई आवृत्ति तथा ध्रुवीकरण (Polarization) के प्रकाश के लिये पारदर्शिता प्रकट करती हैं।
  • इसके अतिरिक्त जब घटना अलग-अलग दिशा में होती है तब ये धातुएँ उसी प्रकाश के लिये अपारदर्शी होगी।
  • वर्तमान में पारदर्शी संचालन परत हेतु कई प्रकार के अनुप्रयोग विद्यमान हैं, जैसे- मोबाइल में प्रयोग की जाने वाली टच स्क्रीन इसका सामान्य उदाहरण है।
  • अध्ययन में पाया गया कि विशिष्ट आवृत्ति तथा ध्रुवीकरण वाले विद्युत चुंबकीय तरंगों (प्रकाश तरंगों) के लिये अर्द्ध-डाइरेक धातु उच्च प्रकाशीय चालकता (Optical Conductivity) प्रदर्शित करती है।

डाइरेक धातु:

  • सोना एवं चाँदी जैसी धातुएँ विद्युत की सुचालक होती हैं तथा इनकी सुचालकता व ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों की गति पर निर्भर करती है। इसके विपरीत डाइरेक धातु सामान्य धातुओं की तुलना में भिन्न होती हैं व इसमें ऊर्जा का स्थानांतरण रैखिक गति द्वारा होता है जो कि इनके अद्वितीय गुणों को प्रदर्शित करता है।
  • टाइटेनियम ऑक्साइड (Titanium Oxide- TiO2) और वैनेडियम ऑक्साइड  (Vanadium Oxides- V2O3) की नैनो संरचना वाले पदार्थ डाइरेक धातुओं के उदाहरण हैं।
  • अर्द्ध-डाइरेक धातुएँ एक दिशा में डाइरेक धातुओं के सामान तथा  लंबवत दिशा में सामान्य धातुओं के समान व्यवहार करती हैं।
  • किसी भी धातु में समावेशित संवाहकों जैसे इलेक्ट्रॉन आदि का प्रभावी द्रव्यमान जो कि धातु की प्रकृति पर आधारित होता है, धातु की स्वतंत्र अवस्था के द्रव्यमान से अलग होता है।
  • इसके अतिरिक्त एक विशिष्ट दिशा में चालन (Conductivity) हेतु इन धातुओं का प्रभावी द्रव्यमान शून्य हो जाता है।

आवश्यकता:

  • सामान्य धातुओं की तुलना में इन धातुओं का वेग 100 गुना अधिक हो सकता है, अतः डाइरेक धातु से बने उपकरणों में गतिशीलता तथा धारा में वृद्धि की जा सकती है।
  • अध्ययन से पता चला है कि अर्द्ध-डाइरेक धातु थर्मोइलेक्ट्रिक गुणों को प्रदर्शित कर सकती है।
    • वस्तुतः थर्मोइलेक्ट्रिसिटी (Thermoelectricity) एक स्वच्छ ऊर्जा तकनीक है जो अपशिष्ट ताप का उपयोग कर विद्युत का उत्पादन करती है। इस प्रकार की तकनीक वर्तमान में कम उपलब्ध हैं।
    • थर्मोइलेक्ट्रिक्स ऊष्मा से विद्युत रूपांतरण दक्षता प्राप्त की जा सकती है। साथ ही इससे नैनो प्रौद्योगिकी (Nano Technology) तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी (Quantum Technology) को बढ़ावा मिल सकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन चक्र में पर्वतीय धाराओं की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये:

वैश्विक कार्बन प्रवाह, पर्वतीय धारा

मेन्स के लिये:

कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

पर्वतीय धाराओं (Mountain Stream) की कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और वैश्विक कार्बन प्रवाह में भूमिका से संबंधित एक रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) नामक पत्रिका में प्रकाशित की गई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • पृथ्वी की सतह के कुल क्षेत्रफल का 25% हिस्सा पर्वतीय है और इन पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ एवं धाराओं का प्रसार वैश्विक क्षेत्रफल का लगभग एक तिहाई है।
  • अभी तक वैश्विक कार्बन प्रवाह में इन पर्वतीय धाराओं की भूमिका का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया जा सका है। अब तक वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से कम ऊँचाई वाले उष्णकटिबंधीय और बोरियल क्षेत्रों में ही इन धाराओं से संबंधित प्रभावों का अध्ययन किया है।

कार्बन प्रवाह (Carbon Fluxe)

  • किसी भी वस्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना ‘प्रवाह’ कहलाता है। इसी प्रकार पारितंत्र के विभिन्न माध्यमों के बीच कार्बन के प्रवाह को ‘कार्बन प्रवाह’ कहते हैं।
  • कार्बन प्रवाह पृथ्वी के कार्बन पूलों जैसे- महासागरों, वायुमंडल, भूमि और जीवित वस्तुओं के मध्य कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान है।
  • इसे गीगाटन कार्बन प्रतिवर्ष (GtC/yr) की इकाई में मापा जाता है।
  • प्रकाश-संश्लेषण, महासागरों द्वारा कार्बन उत्सर्जन और मनुष्यों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कर्षण कार्बन प्रवाह के उदाहरण हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, निम्न ऊँचाई की तुलना में पर्वतीय क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन दर अधिक है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में पर्वतीय क्षेत्र की धाराओं का 5% और संपूर्ण नदी जनित प्रणालियों (All Fluvial Network) का 10%-30% हिस्सा है। इस प्रकार वैश्विक कार्बन चक्र के आकलन में पर्वतीय क्षेत्र की धाराओं को शामिल करना अति महत्त्वपूर्ण है।
  • वैज्ञानिकों ने विश्व की मुख्य पर्वत शृंखलाओं की धाराओं से संबंधित पर्यावरणीय डेटा का संग्रहण कर उनका अध्ययन किया जा रहा है। इस पर्यावरणीय डेटा के आधार पर प्राकृतिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का अनुमान लगाने के लिये एक मॉडल विकसित किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कटसेक तकनीक

प्रीलिम्स के लिये:

कटसेक तकनीक, कॉपी नंबर ऐल्टरेशन

मेन्स के लिये:

चिकित्सा के क्षेत्र में कटसेक तकनीक का योगदान 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अनुसंधानकर्त्ताओं ने आक्रामक विषम ट्यूमर (Agressive Hetrogenous Tumour) की पहचान के लिये नई तकनीक कटसेक (CutSeq) विकसित की है।

प्रमुख बिंदु:

  • सामान्यतया जब कैंसर कोशिकाएँ विभाजित होती हैं तो उनमें पाई जाने वाली जीन की प्रतियाँ (Copies) अलग अलग संख्या में होती हैं। इस प्रक्रिया को कॉपी नंबर ऐल्टरेशन (Copy Number Alternation- CNA) कहते हैं।
  • शोध के अनुसार, जब एक ही ट्यूमर के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग CNAs पाए जाते हैं तो ऐसे ट्यूमर आमतौर पर काफी तेजी से बढ़ते हैं और इलाज के बाद पुन: विकसित हो जाते हैं ।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं द्वारा विकसित की गई कटसेक (CutSeq) तकनीक से ट्यूमर के अलग-अलग हिस्सों में CNAs के प्रकार और संख्या ज्ञात की जा सकती है। इसकी लागत वर्तमान में प्रयुक्त तकनीकों से काफी कम है।
  • यह तकनीकी बहुक्षेत्रीय ट्यूमर सिक्वेंसिंग (Multiregion Tumour Sequencing) प्रणाली से विषम कैंसर के मरीजों के इलाज में सहायक होगी।
  • इस तकनीक में सिंगल सिक्वेंसिंग एक्सपेरिमेंट (Single Sequencing Experiment) के तहत कैंसर की विषमता और आक्रामकता का विश्लेषण किया जा सकता है।

घातक विषम ट्यूमर (Agressive Hetrogenous Tumour) क्या है?

  • इस तरह के ट्यूमर में कोशिकाओं की रूपात्मक और गुणात्मक प्रोफाइल जैसे कोशिकीय आकृति, जीन अभिव्यक्ति, चयापचय गतिशीलता और प्रसार अलग-अलग होती है। यह अपेक्षाकृत अधिक घातक होता है।

कटसेक (Cut Seq) तकनीक क्या है?

  • इस तकनीक के तहत ट्यूमर के अलग-अलग हिस्सों से DNA लिया जाता है और एकल अनुक्रमण प्रयोग (Single Sequencing experiment) से ट्यूमर की विषमता का पता लगाया जाता है।
  • इस प्रक्रिया के अंतर्गत मरीज के शरीर में कई ट्यूमर या एक ही ट्यूमर के अलग-अलग हिस्सों से लिये गए DNA जिनमें यूनिक मोलेक्यूलर बारकोड्स (Unique Moleculer Barcodes) होते हैं, की सहायता से एक विस्तृत विश्लेषण किया जाता है।

यूनिक मोलिक्यूलर बारकोड्स (Unique Moleculer Barcodes) 

  • मोललिक्यूलर बारकोड वो आणविक ‘टैग’ है जो DNA के हिस्सों में जोड़े जाते हैं और इकट्ठे किये गए DNA, अणुओं (Molecules) की पहचान में सहायक होते हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 


भारतीय अर्थव्यवस्था

बिहार द्वारा कश्मीरी सेबों का विक्रय

प्रीलिम्स के लिये:

नेफेड

मेन्स के लिये:

सहकारी संस्थाओं का अर्थव्यवस्था में योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कश्मीरी सेब उत्पादकों की मदद के लिये बिहार की शीर्ष सहकारी संस्था बिस्कोमान ने बिहार में बाज़ार से कम मूल्य पर कश्मीरी सेब के विक्रय की पहल की।

प्रमुख बिंदु :

  • गौरतलब है कि भारत सरकार ने कश्मीरी किसानों कि समस्या को देखते हुए सेबों के विक्रय हेतु नेफेड (NEFED- National Agricultural Cooperative Marketing Federation Limited) को नोडल एजेंसी बनाया है।
  • नेफेड ने अपनी संबद्ध इकाई बिस्कोमान (BISCOMAUN- Bihar State Cooperative Marketing Union Limited) को बिहार में सेबों के विक्रय हेतु अपनी नोडल एजेंसी बनाई है।
  • सहकारी संस्थाओं की इस प्रकार की पहल से कश्मीरी किसानो और व्यापारियों को सेबों का उचित दाम मिलेगा।
  • बिस्कोमान के द्वारा सेबों का मूल्य बाजार में उपलब्ध सेबों के मूल्य से कम रखा गया है।
  • एजेंसी स्पेशल मार्केट इंटरवेंशन प्राइस स्कीम (Special Market Intervention Scheme) के तहत किसानों से सेब खरीदेगी।

स्पेशल मार्केट इंटरवेंशन प्राइस स्कीम (Special Market Intervention Scheme)

  • बाज़ार मूल्य में गिरावट की स्थिति में खराब होने वाले खाद्यान्नों और बागवानी वस्तुओं की खरीद के लिये राज्य सरकारों के अनुरोध पर लागू की जाने वाली एक मूल्य समर्थन प्रणाली है।

सहकारी समिति :

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, सहकारी समिति संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जरूरतों व आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये स्वेच्छा से एकजुट हुए व्यक्तियों का एक स्वायत्त समूह है।
  • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 के तहत सहकारिता की स्वायत्तता ,राज्य एवं राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने और सहकारी समितियों के संचालन के लिये अधिक से अधिक प्रबंधकीय कौशल को लाने की परिकल्पना की गयी है।
  • इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 19(1)के तहत सहकारी समिति के गठन के अधिकार को मौलिक अधिकार के अंतर्गत लाया गया।
  • इसके तहत संविधान के भाग IV में एक नया नीति निर्देशक सिद्धांत भी शामिल किया गया।

अनुच्छेद 43 B के अनुसार- "राज्य, स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और सहकारी समितियों के पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा"।

नेफेड क्या है?

  • नेफेड की स्थापना 2 अक्टूबर, 1958 को की गई।
  • नेफेड का पंजीकरण मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज एक्ट (Multi State Co-Operative Society Act) के तहत किया गया है।
  • कृषि उत्पादों के सहकारी विपणन को प्रोत्साहित करने के लिये नेफेड की स्थापना की गई थी। बिस्कोमान नेफेड की संबद्ध राज्य इकाई और बिहार की शीर्ष सहकारी संस्था है।
  • स्रोत-द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2