डेली न्यूज़ (29 Jun, 2019)



धार्मिक समूहों के बीच बेरोज़गारी दर में अंतर

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) के आँकड़ों के आधार पर लोकसभा में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया कि भारत के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच बेरोज़गारी दर में काफी अंतर है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत के चार प्रमुख धार्मिक समूहों- हिंदू,मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई से संबंधित बेरोज़गारी के आँकड़े शहरी-ग्रामीण और लैंगिक विभाजन के आधार पर पेश किये गए। इससे पहले श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने वर्ष 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर भारतीय बेरोज़गारी दर- ग्रामीण पुरुष के लिये 5.8%, ग्रामीण महिलाओं के लिये 3.8%, शहरी पुरुषों के लिये 7.1% और शहरी महिलाओं के लिये 10.8% बताई थी।
  • केंद्र सरकार के अधिकांश सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तीकरण कार्यक्रम निर्धन और दलित वर्गों के लिये हैं, जिससे अल्पसंख्यकों को भी समान रूप से लाभ मिल रहा है।
  • शैक्षिक सशक्तीकरण, रोज़गारोन्मुखी कौशल विकास आदि से संबंधित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से अधिसूचित अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन) की रोज़गार क्षमता बढ़ाने हेतु रणनीति अपनाई गई है।\

अल्पसंख्यकों से संबंधित कुछ प्रमुख योजनाएँ

  • नई मंज़िल: औपचारिक स्कूली शिक्षा और स्कूल बीच छोड़ने वालों के कौशल संवर्द्धन के लिये योजना।
  • उस्ताद (USTTAD): पारंपरिक कला/शिल्प कौशल और प्रशिक्षण के उन्नयन के लिये योजना।
  • हुनर ​​हाट योजना के माध्यम से पारंपरिक शिल्प /कला,रोज़गार सृजन को बढ़ावा दिया जा रहा है। हुनर हाट के आयोजन के माध्यम से उत्पादों की बाज़ार तक पहुँच को आसान किया जा रहा है।
  • हमारी धरोहर: इस योजना के कार्यान्वयन से भारतीय संस्कृति की समग्र अवधारणा के तहत अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध विरासत को संरक्षित किया जा रहा है।
  • ग़रीब नवाज़ कौशल विकास प्रशिक्षण के माध्यम से 6 अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन) के युवाओं को रोज़गारोन्मुखी अल्पकालिक कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने की योजना है। इसे मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है ।
  • नया सवेरा योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जिससे सरकारी और निजी नौकरियों में उनकी भागीदारी में सुधार हो।
  • जियो पारसी योजना का उद्देश्य भारत में पारसियों की कम होती जनसंख्या को बढ़ाना है।
  • पढ़ो परदेश योजना के अंतर्गत अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को विदेश में अध्ययन के लिये शैक्षिक ऋण के ब्याज पर सब्सिडी दी जाती है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अपनी छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा है कि बैंकिंग प्रणाली में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assests- NPA) में लगातार दूसरी छमाही में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि ऋण देने की रफ्तार बढ़ रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • कॉर्पोरेट शासन में सुधार की आवश्यकता के मद्देनज़र रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकिंग प्रणाली को सरकारी सहायता पर कम निर्भर रहते हुए पूंजी निर्माण के लिये बाज़ार से निजी पूंजी जुटाने का प्रयास करना चाहिये।
  • मार्च 2019 में 20% से अधिक सकल एनपीए (NPA) कम करने वाले बैंकों की परिसंपत्ति की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण में 9.6% की वृद्धि हुई, जबकि निजी बैंकों के लिये यह वृद्धि 21% रही। कुल ऋण वृद्धि सितंबर 2018 में 13.1% से मार्च 2019 में मामूली बढ़त के साथ 13.2% हो गई। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks-SCBs) की ऋण वृद्धि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ दोहरे अंकों में पहुँच गई।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण के बाद, वाणिज्यिक बैंकों का समग्र पूंजी पर्याप्तता अनुपात सितंबर 2018 के13.7% से बढ़कर मार्च 2019 में 14.3% हो गया तथा इसी अवधी के दौरान राज्य द्वारा संचालित बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) 11.3% से बढ़कर 12.2% हो गया। लेकिन निजी क्षेत्र के बैंकों के CAR में मामूली गिरावट दर्ज की गई है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)

  • CAR, बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (capital-to-risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
  • व्यापक आर्थिक पैमाने पर देखें तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, क्योंकि निजी खपत कमज़ोर हो गई है और चालू खाते घाटे (Current Account Deficit- CAD) ने राजकोषीय मोर्चे पर दबाव बढ़ा दिया है। इससे सरकार के बाज़ार से कर्ज़ लेने और बाज़ार के ब्याज दरों पर भी असर पड़ता है। निजी निवेश की मांग को दोबारा पटरी पर लाना भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • ऐसे में कहा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के बेहतर समन्वय से प्रणालीगत स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

रिपोर्ट के बारे में

  • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) भारतीय रिज़र्व बैंक का एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
  • FSR वित्तीय स्थिरता के लिये जोखिम, साथ ही वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council- FSDC) की उप-समिति के समग्र आकलन को दर्शाती है।
  • यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा करती है।

स्रोत : द हिंदू


दिल्ली में ओज़ोन प्रदूषण की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, ओज़ोन (Ozone) से होने वाले प्रदूषण के मामले में NCR के शहरों (गुरुग्राम, फ़रीदाबाद, नोएडा और गाज़ियाबाद) के बीच दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर रहा है।\

प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार

  • वर्ष 2016 से 2018 के बीच दिल्ली में कम-से-कम 95 दिन ऐसे रहे जब ‘ओज़ोन’, शहर के वातावरण में प्रदूषण का मुख्य कारण रहा।
  • दिल्ली की तुलना में नोएडा ने 49, गुरुग्राम ने 48, फ़रीदाबाद ने 11 और गाज़ियाबाद ने 8 ऐसे ही दिनों का सामना किया।

Ojone pollution

  • वर्ष 2019 में 31 मार्च तक दिल्ली को कुल 23 ऐसे दिन को सामना करना पड़ा जब ओज़ोन की अधिकता थी, वहीं इस वर्ष ओज़ोन की अधिकता के मामले में फ़रीदाबाद ऐसे 55 दिनों के साथ शीर्ष पर रहा है। इसके अतिरिक्त गुरुग्राम और गाज़ियाबाद ने भी इस प्रकार के कुछ दिनों का सामना किया।
  • नोएडा एक मात्र ऐसा शहर है जहाँ अभी तक ऐसा कोई दिन नहीं रहा है जब ओज़ोन प्रदूषण का कारण रहा हो।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन कार्यरत प्रदूषण का पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसी ‘SAFAR’ बीते कई हफ़्तों से ओज़ोन प्रदूषण के संदर्भ में चेतावनी जारी कर रही है।

वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) :

  • वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली की शुरुआत जून 2015 में दिल्ली और मुंबई के लिये की गई थी।
  • इस प्रणाली के ज़रिये अग्रिम तीन दिनों के लिये वायु प्रदूषण (स्थान-विशेष) का अनुमान लगाने के साथ ही लोगों को आवश्यक परामर्श देना संभव हो पाया है।
  • यह प्रणाली लोगों को उनके पास के निगरानी स्टेशन पर हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त करने और उसके अनुसार उपाय अपनाने का फैसला लेने में मदद करती है।
  • 'सफर' (SAFAR) के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ ही पराबैंगनी/अल्ट्रा वायलेट सूचकांक (Ultraviolet Index) के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण (Solar Radiation) के तीव्रता की जानकारी भी मिलती है।

ओज़ोन प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • ओज़ोन के अंत:श्वसन पर सीने में दर्द, खाँसी और गले में दर्द सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • इसके कारण साँस से संबंधी होने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।
  • इससे फेफड़ों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है और ओज़ोन के बार-बार संपर्क में आने से फेफड़ों के ऊतक स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते है।
  • सतही ओज़ोन वनस्पति और पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुँचाती है।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि ओज़ोन मानव स्वास्थ्य के लिये कितनी ज्यादा हानिकारक है। ओज़ोन प्रदूषण लगातार हमारे वायुमंडल में अपने पैर पसरता जा रहा है और हमारे पास अब तक ओज़ोन प्रदूषण और मृत्यु दर के बीच संबंध ज्ञात करने ली लिये कोई निश्चित पद्धति भी नहीं है। ओज़ोन प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये इस विषय पर अधिक-से-अधिक अनुसंधान और महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय अपनाने की आवश्यकता है।

स्रोत : हिन्दुस्तान टाइम्स


नए ग्रहों की खोज

चर्चा में क्यों?

नासा (NASA) के ट्रांज़िटिंग एक्ज़ोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (Transiting Exoplanet Survey Satellite- TESS) ने हाल ही में तीन नए ग्रहों की खोज की है। इनमें से एक ग्रह नासा द्वारा खोजा गया अब तक का सबसे छोटा ग्रह है जिसे L 98-59b नाम दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • कम तापमान वाले एक नज़दीकी तारे की परिक्रमा करने वाला L 98-59b ग्रह आकार में मंगल से बड़ा किंतु पृथ्वी छोटा है। L 98-59b के अलावा, दो अन्य ग्रह भी उसी तारे की परिक्रमा करते हैं।

Planet

  • तीनों ग्रहों के आकार तो ज्ञात हैं किंतु इन पर वायुमंडल की उपस्थिति का पता लगाने हेतु अध्ययन की आवश्यकता होगी जिसके लिये कुछ अन्य दूरबीनों का इस्तेमाल करना पड़ेगा।
  • छोटे ग्रहों के वायुमंडलीय अध्ययन हेतु चमकीले तारों के आस-पास छोटी कक्षाओं में गति करते ग्रहों की आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसे ग्रहों का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है।
  • L 98-59c और L 98-59d ग्रहों का आकार पृथ्वी के आकार का क्रमशः 1.4 और 1.6 गुना है।
  • इन ग्रहों के तारे (जिसकी परिक्रमा यह दोनों ग्रह करते है) का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग एक तिहाई है तथा सूर्य से इसकी दूरी लगभग 35 प्रकाश वर्ष है।
  • अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के अनुसार, TESS मिशन कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों जैसे कि ‘पृथ्वी की उत्पति कैसे हुई’ और ‘क्या ब्रह्मांड में अन्य ग्रहों पर जीवन संभव हैं’ आदि का उत्तर देने में सहायक हो सकता है।
  • TESS का लक्ष्य वायुमंडलीय अध्ययन के लिये उपयुक्त चमकीले, छोटे, चट्टानी ग्रहों जो आस-पास के तारों की छोटी कक्षाओं में परिक्रमण करने वाले ग्रहों की एक सूची बनाना है। ऐसे में यह खोज TESS के लिये एक बड़ी उपलब्धि है।

ट्रांज़िटिंग एक्ज़ोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS)

  • ट्रांज़िटिंग एक्ज़ोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) नासा का एक मिशन है, जो विगत दो वर्षों से ऑल-स्काई सर्वे (All-Sky Survey) के माध्यम से बहिर्ग्रहों'/एक्ज़ोप्लैनेट (Exoplanets) की खोज कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गुणवत्तापूर्ण बीज और कृषक आय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण संघ (International Seed Testing Association- ISTA) का 32वाँ सम्मेलन हैदराबाद में संपन्न हुआ। 

प्रमुख बिंदु

  • इस अवसर पर  भारत सरकार ने कहा कि भारत में वर्ष 2022 तक किसानो की आय दोगुना करने में गुणवत्तापूर्ण बीजों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहेगी और किसानो को गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने का प्रयास भी राज्य सरकारों के साथ मिलकर किया जा रहा है
  • विभिन्न चुनौतियों के बावजूद भारत के किसानों ने दुनिया में सबसे ज्यादा कपास का उत्पादन किया है । 
  • इसके अलावा सरकार ने गुणवत्तापूर्ण बीज के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने तथा वैश्विक बीज बाजार में भारत के योगदान को बढ़ाने पर बल दिया।
  • वर्तमान में तेलांगना  वैश्विक बीज हब के रूप में  विकसित हो रहा है एवं भारत के पास यह अवसर है कि वह यूरोप के समकक्ष देशो की तरह बीज निर्यात कर सके 
  • इसी उद्देश्य से केंद्र सरकार की बीज गुणवत्ता सुधार योजना के तहत बीज की गुणवत्ता का पता लगाने के लिये बार कोड और क्यूआर कोड को जून 2020 तक अनिवार्य कर दिया जायेगा
  • ISTA के अधिकारियों की सदस्य संख्या बढ़ाने के बजाय बीज परीक्षण प्रयोशालाओं पर अधिक ध्यान की बात कही गयी । 
  • भारत में कृषि संभावनाओं के मद्देनजर उपयुक्त कृषि जलवायु , 130 बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ , 25 बीज प्रमाणीकरण प्राधिकरण मौजूद हैं, इसके अलावा भारत दुनिया का 5वाँ सबसे बड़ा बीज बाजार भी है 

अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण संघ (International Seed Testing Association-ISTA)

  • ISTA एक गैर लाभकारी स्वायत्त संगठन है जो बीज की गुणवत्ता में सुधार करता है 
  • इसकी स्थापना वर्ष 1924 में की गई थी
  • बीज परीक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत मानक प्रक्रियाओं (नियमों) को विकसित एवं प्रकाशित करता है साथ ही बीज विश्लेषण प्रमाण पत्र और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है  
  • इसका सचिवालय स्विट्ज़रलैंड में स्थित है

स्रोत : द हिन्दू 


केरल का जलवायु अनुकूलता कार्यक्रम

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में भारत सरकार, केरल सरकार और विश्व बैंक ने ‘प्रथम केरल अनुकूलता कार्यक्रम’ के लिये 250 मिलियन अमरीकी डालर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। गौरतलब है कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति राज्य की अनुकूलता को बढ़ाना है।  

कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु: 

  • केरल में वर्ष 2018 में आए बाढ़ और भूस्खलन की आपदा ने संपत्ति, बुनियादी ढाँचे और लोगों के जीवन तथा आजीविका पर गंभीर प्रभाव डाला। राज्य में लगभग 5.4 मिलियन लोग इससे प्रभावित हुए और 1.4 मिलियन लोग अपने घरों से विस्थापित हुए। 
  • यह कार्यक्रम समावेशन और सहभागिता के माध्यम से गरीब तथा कमजोर समूहों की संपत्ति एवं आजीविका की रक्षा के लिये राज्य की संस्थागत व वित्तीय क्षमता को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह साझेदारी विकास के प्रभाव को अधिकतम करने के लिये नीतिगत और संस्थागत क्षेत्रों की पहचान भी करेगा। 
  • विश्व बैंक, भारत सरकार और केरल सरकार के साथ अगस्त 2018 में आई बाढ़ के बाद से ही मिलकर काम कर रहा है। विश्व बैंक बाढ़ प्रभाव का आकलन करने, पुनर्निर्माण, आपदा जोखिमों और जलवायु परिवर्तन के लिये नीतियों, संस्थानों तथा प्रणालियों की पहचान में भी सहायता कर रहा है। 
  • कार्यक्रम के मुख्य बिंदु:  
    • बेहतर नदी बेसिन प्रबंधन और जल अवसंरचना संचालन प्रबंधन, जल आपूर्ति और स्वच्छता सेवाएँ
    • सतत् और जलवायु अनुकूल कृषि तथा कृषि बीमा को मज़बूत करना।
    • मुख्य सड़कों के नेटवर्क को मज़बूत करना।
    •  उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में एकीकृत और अधिक अद्यतित भूमि रिकॉर्ड।
    • जोखिम आधारित शहरी योजना और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा व्यय योजना को मज़बूत करना।
    • राज्य की राजकोषीय और सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन क्षमता को मज़बूत करना।  

स्रोत: पीआईबी


स्मारकों के संरक्षण में सहायक बैक्टीरियल स्प्रे

चर्चा में क्यों?

भारतीय वैज्ञानिकों ने सोलहवीं शताब्दी में बने एक मुगल स्मारक (सलाबत खान का मकबरा) का गहन परीक्षण करते हुए इसके क्षरण के कारणों का पता लगाया है। गौरतलब है कि वैज्ञानिकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में स्मारकों के संरक्षण हेतु नए उपायों की भी खोज की है।  

प्रमुख बिंदु 

  • वैज्ञानिकों ने पाया कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित सलाबत खान के मकबरे की दीवारों एवं गुंबदों पर रासायनिक अभिक्रिया के परिणामस्वरुप कैल्शियम कार्बोनेट (Calcium Carbonate) के अवक्षेप जमा होने से उसकी चमक और सुंदरता समाप्त हो  रही है। 

  • दिल्ली स्थित नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट, कंजर्वेशन एंड म्यूजियोलॉजी (National Museum Institute of History of Art, Conservation and Museology) के शोधकर्त्ताओं ने मकबरे के प्रभावित हिस्सों में गहराई तक  खुदाई किया एवं नमूने एकत्रित किये।
  • शोधकर्त्ताओं ने इन नमूनों के माध्यम से चूने के कठोर होने तथा कैल्सीफिकेशन  के लिये ज़िम्मेदार बैक्टीरिया की पहचान की जिसमें सूक्ष्म जीवाणुओं की निम्नलिखित प्रजातियाँ शामिल हैं: 
    • बेसिलस प्रजाति (Bacillus sp), आर्थ्रोबैक्टर प्रजाति (Arthrobacter sp), एग्रोमाएसिस इंडिकस (Agromyces Indicus) और एक्वामाइक्रोबियम  प्रजातियाँ (Aquamicrobium sp)
  • ज्ञातव्य है कि चूने, वर्षा जल और कुछ जीवाणुओं (Bacterias) के मध्य रासायनिक अभिक्रिया से संगमरमर का क्षरण होता है।
  • जब वर्षा का जल मकबरे की संरचना में प्रवेश करता है तब निक्षालन के कारण  चूना एवं बैक्टीरिया के मध्य अभिक्रिया के परिणामस्वरूप मकबरे की संरचना कठोर कैल्सीफाइड चूने (Calcified Lime) में परिवर्तित हो जाती है। 

कैसे होगा संरक्षण? 

  • शोधकर्त्ताओं ने कैल्शियम कार्बोनेट युक्त जीवों का एक स्प्रे तैयार किया है जो कैल्साइट परत (Calcite Layer) का निर्माण कर स्मारकों के बाहरी हिस्सों को संरक्षित करने में मदद करेगा ।
  • सलाबत मकबरे (जो काले बसाल्ट पत्थरों से बना है) की सतहों पर जिस बैक्टीरिया के कारण सफेद धब्बे पड़ जाते हैं उसी बैक्टीरिया के कारण चूने पत्थर तथा संगमरमर से निर्मित इमारतों को क्षरण से बचाने में मदद मिलती है।
  • इस स्प्रे का इस्तेमाल अमरावती और नागार्जुनकोंडा की चूना पत्थर से निर्मित मूर्तियों को साफ करने के लिये भी किया जा सकता है।
  • इस विधि में, सूक्ष्मजीवों को संगमरमर की सतह पर समान रूप से छिड़का जाता है तथा उन्हें कैल्शियम और यूरिया युक्त पोषण दिया जाता है। तत्पश्चात् बैक्टीरिया अल्प अम्लीय माध्यम के निर्माण द्वारा कार्बोनेट का अवक्षेपण करता है और घुलित कैल्शियम को कैल्शियम कार्बोनेट की सुरक्षात्मक परत के रूप में परिवर्तित करता है।
  • अल्प अम्लीय या क्षारीय माध्यम ही वह प्राथमिक स्रोत हैं जिसके द्वारा सूक्ष्मजीव कैल्शियम कार्बोनेट के अवक्षेपण को बढ़ावा देते हैं और इस प्रक्रिया को बायोकोटिंग (Biocoating) के रूप में भी जाना जाता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


WTO का भारत के पक्ष में निर्णय

चर्चा में क्यों?

सितंबर 2016 में अमेरिका के खिलाफ WTO के विवाद निवारण तंत्र में भारत द्वारा दायर याचिका में भारत के पक्ष में निर्णय लिया गया है।

मुख्य बिंदु

  • भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के संबंध में WTO के विवाद निवारण तंत्र के समक्ष एक अपील दायर की थी।
  • इस अपील में अमेरिका के घरेलू सामग्री आवश्यकता (Domestic Content Requirements) से संबंधित नियम और अमेरिका के अपने 8 राज्यों को दी गई सब्सिडी का मुद्दा उठाया गया था। 
  • WTO के विवाद निवारण पैनल ने भारत के पक्ष में निर्णय दिया तथा अमेरिका के नियमों और सब्सिडी को विश्व व्यापार नियमों का उल्लंघन माना। 
  • भारत ने वर्ष 2016 में अपील करते समय यह तर्क दिया था कि अमेरिका का यह तरीका असंगत है, क्योंकि ये नियम आयातित उत्पाद के प्रति भेदभावपूर्ण रूप से लागू हैं तथा राज्यों को दी जाने वाली सब्सिडी घरेलू उत्पाद को आर्थिक रूप से अधिक आकर्षक बनाती है जिससे आयातित उत्पाद को हानि होती है।
  • पैनल ने अपने निर्णय में कहा कि अमेरिका के ये उपाय टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) के प्रावधानों से असंगत है। GATT विश्व व्यापार संगठन का एक समझौता है जो सीमा शुल्क जैसी व्यापार बाधाओं को कम या समाप्त करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • हालाँकि WTO के अपीलीय निकाय में इस निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। उल्लेखनीय है यह अपीलीय निकाय WTO के विवाद निवारण तंत्र का ही एक हिस्सा है।
  • यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत-अमेरिका के मध्य व्यापार को लेकर तनाव बना हुआ है। ज्ञात हो कि अमेरिका ने GSP के तहत भारत को दी जाने वाली छूट को समाप्त कर दिया है। वहीं भारत ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर सीमा शुल्क में वृद्धि कर दी है। 
  • भारत और अमेरिका व्यापार से संबंधित अन्य विवादों में भी शामिल है। अमेरिका ने भारत के निर्यात को प्रोत्साहित करने वाली कुछ योजनाओं को चुनौती दी है तो वहीं भारत ने अमेरिका द्वारा कुछ स्टील एवं एल्युमीनियम उत्पादों पर बढ़ाए गए एकतरफा सीमा शुल्क को चुनौती दी है। 

विश्व व्यापार संगठन

  • विश्व व्यापार संगठन विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मराकेश संधि के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • वर्तमान में विश्व के अधिकतम देश इसके सदस्य हैं। सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।

स्रोत: द हिंदू


ज़ीरो डे

चर्चा में क्यों?

उत्तर भारत में स्थित शिमला और तटीय कर्नाटक में स्थित उडुपी तथा मंगलूरु ज़ल्द ही जल संकट के कारण ‘ज़ीरो डे’ (Zero Day) का सामना कर सकते हैं।

Zero Day

शिमला के संदर्भ में

  • प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में शिमला की छवि ही इसके जल संकट का प्रमुख कारण है।
  • 0.17 मिलियन की आबादी वाले शिमला में गर्मियों के दौरान प्रतिदिन लगभग 10000 पर्यटक घूमने आते हैं।
  • रिपोर्ट्स के अनुसार, पर्यटन के सीज़न में शिमला में जल की माँग 45 मिलियन लीटर प्रति दिन (Million Litres Per Day- MLD) तक बढ़ जाती है।
  • हालाँकि कई जल स्रोतों के कारण शिमला में लगभग 54 मिलियन लीटर प्रति दिन (Million Litres Per Day- MLD) जल की पूर्ति की जा सकती है। फिर भी वहाँ माँग और पूर्ति के मध्य अंतर देखने को मिलता है।
  • वर्ष 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 में माँग और पूर्ति का यह अंतर 8 MLD था जो वर्ष 2031 में पाँच प्रतिशत और वर्ष 2051 में 12 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

उडुपी के संदर्भ में

  • तटीय कर्नाटक में स्थित उडुपी बीते कई दिनों से भारी जल संकट का सामना कर रहा है।
  • मई की शुरुआत में, जल संकट के कारण यहाँ स्कूलों को सिर्फ प्रथम पाली (First Half) तक ही काम करने का भी आदेश दिया गया था।
  • उडुपी में ‘स्वर्ण नदी’ (Swarna River) और ‘बाजे बाँध’ (Baje Dam) जल के प्रमुख स्रोत हैं, परंतु इसका जल भी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है और अब प्राकृतिक रूप से इनका प्रयोग करना संभव नहीं है।
  • उडुपी शहर कुल 6 क्षेत्रों में विभाजित है और स्वर्ण नदी का जल सभी 6 क्षेत्रों में हफ्ते के प्रत्येक दिन बारी-बारी से भेजा जाता है।
  • उडुपी प्रसाशन सभी 35 नगरपालिकाओं में टैंकों के माध्यम से भी जल की पूर्ति कर रहा है।

मंगलूरु के संदर्भ में

  • जल संकट का सामना करने के लिये मंगलूरु नगर निगम ने जल राशनिंग की व्यवस्था अपनाई है, जिसके अनुसार 48 घंटों के लिये जल की पूर्ति को रोक दिया जाता है और फिर अगले 96 घंटो के लिये जल की पूर्ति शुरू कर दी जाती है, यह चक्र बार-बार चलता रहता है।
  • वर्ष 1993 में शहर में पानी की पर्याप्त पूर्ति सुनिश्चित करने के लिये नेत्रावती नदी पर थुम्बे बाँध का निर्माण किया गया था।
  • परंतु इसके बावजूद भी नेत्रावती नदी में जल के कम बहाव के कारण प्रशासन को यह सख्त निर्णय लेना पड़ा है।

जीरो डे

  • ‘ज़ीरो डे’ का अर्थ उस दिन से है जब शहर के सभी नलों से पानी आना बंद हो जाएगा और शहर में जल की किल्लत होगी। जल की इस कमी के कारण शहर के सभी लोग एक-एक बूंद के लिये संघर्ष करेंगे।
  • शिमला, उडुपी और मंगलूरु की स्थितियों को देखते हुए यदि कहा जाए की ये शहर जल्द ही ‘ज़ीरो डे’ के ख़तरे में आ जाएँगे तो यह गलत नहीं होगा।

स्रोत : डाउन तो अर्थ


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (29 June)

  • रिज़र्व बैंक ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि देश के भुगतान से जुड़ा सभी डेटा केवल भारत में ही रखना होगा और भुगतान की प्रक्रिया में विदेशों में सृजित होने वाले भारतीयों के भुगतान से संबंधित डेटा को भी 24 घंटे के भीतर भारत वापस लाना होगा। ज्ञातव्य है कि RBI ने भुगतान प्रणाली डेटा रखे जाने को लेकर अप्रैल 2018 में निर्देश जारी किया था। उसमें केंद्रीय बैंक ने सभी भुगतान प्रणाली परिचालकों (PSO) को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे छह महीने के भीतर भुगतान प्रणाली से जुड़े सभी डेटा केवल भारत में स्थित प्रणालियों में ही रखे जाएँ। PSO यदि चाहता है तो भारत के बाहर भुगतान सौदे को लेकर कोई पाबंदी नहीं है, लेकिन यदि भुगतान की प्रक्रिया विदेश में होती है तो वहाँ उससे संबंधित डेटा को हटा दिया जाए और उसे भुगतान प्रक्रिया पूरी होने के एक कारोबारी दिवस या 24 घंटे के भीतर, जो भी पहले हो, भारत वापस लाया जाए। RBI ने यह स्पष्टीकरण PSO की तरफ से क्रियान्वयन से जुड़े मुद्दों पर बार-बार उठने सवालों के संदर्भ में दिया।
  • दूरसंचार मंत्रालय ने मार्च 2020 तक देश की सभी पंचायतों को भारतनेट परियोजना के तहत हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन से जोड़ने का लक्ष्य तय किया है। इस परियोजना का दूसरा चरण लागू किया जा रहा है और मार्च 2020 तक कुल दो लाख ग्राम पंचायतों को इससे जोड़ा जाना है। भारतनेट परियोजना के पहले चरण के तहत एक लाख ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड सेवा से जोड़ा गया है। आपको बता दें कि 19 जुलाई, 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतनेट को लागू करने के लिये एक संशोधित रणनीति को मंज़ूरी दी, जिसके तहत देश में शेष लगभग डेढ़ लाख ग्राम पंचायतों को परियोजना के दूसरे चरण में ब्रॉडबैंड संपर्क प्रदान किया जाना है। सरकार ने पहले मार्च, 2019 तक सभी पंचायतों में ऑप्टिकल आधारित उच्च गति ब्रॉडबैंड नेटवर्क शुरू करने का लक्ष्य रखा था। ग्राम पंचायतों तक यह सुविधा पहुँचाने के लिये केवल भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर केबल का उपयोग किया गया है। नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का नया नाम भारतनेट परियोजना है जिसे सभी ढाई लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये अक्तूबर, 2011 में लॉन्च किया गया था। वर्ष 2015 में इसका नाम बदलकर भारतनेट रखा गया था।
  • ग्लोबल वार्मिंग का असर अब गंगा नदी के प्रवाह पर भी पड़ने लगा है। इसके चलते सर्दियों की तुलना में गर्मियों में नदी के प्रवाह में प्रति सेकेंड आधे मीटर तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के एक अध्ययन के अनुसार, गंगा के पानी का तापमान बढ़ा है तथा गर्मियों में जब तापमान अधिक रहता है तो प्रवाह तेज़ होता है और सर्दियों में तापमान घटने के साथ ही प्रवाह भी कम हो जाता है। पानी के तापमान में बढ़ोतरी को जल-जीवों एवं नदी के जैविक स्वास्थ्य के लिये भी खतरा माना गया है। CPCB की बायोलॉजिकल हेल्थ ऑफ रिवर गंगा नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि औसत तापमान में लगभग एक डिग्री तक की बढ़ोतरी से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है। चूंकि गंगा ग्लेशियरों से ही निकलती है, इसलिये इस पर भी इसका असर स्पष्ट दिखाई देता है। वैज्ञानिकों ने इसके लिये रुद्रप्रयाग से लेकर फरक्का तक 86 स्थानों पर गंगा के तापमान और पानी के प्रवाह के आँकड़े एकत्र किये थे, जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकला गया है।
  • वैश्विक कार्रवाई को मज़बूत करने और मादक पदार्थों के दुरुपयोग से मुक्त अंतर्राष्ट्रीय समाज के लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोग करने के लिये प्रतिवर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्करी निरोध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य मादक पदार्थों के दुरुपयोग के साथ-साथ मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के खिलाफ संघर्ष के लिये जागरूकता बढ़ाना है। अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्करी निरोध दिवस सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1987 में मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (UNODC) प्रतिवर्ष विश्व ड्रग रिपोर्ट जारी करता है। इस वर्ष 17वें अंतर्राष्‍ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्‍करी निरोध दिवस की थीम न्याय के लिये स्वास्थ्य, स्वास्थ्य के लिये न्याय रखी गई है। भारत में अंतर्राष्‍ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्‍करी निरोध दिवस पर पिछले 16 वर्षों से एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मादक पदार्थ निरोध दौड़ का सफल आयोजन किया जाता रहा है।
  • 28 जून को 19वीं सदी की शुरुआत में पंजाब में करीब 40 वर्ष तक शासन करने वाले महाराजा रणजीत सिंह की 180वीं पुण्‍यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर पाकिस्‍तान के लाहौर में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया। महाराजा रणजीत सिंह की यह मूर्ति लाहौर किले में माई जिंदियाँ हवेली के बाहर लगाई गई है। इसी जगह पर महाराजा रणजीत सिंह की समाधि और गुरु अर्जुन देव द्वारा स्थापित गुरुद्वारा डेरा साहिब का भवन है। रणजीत सिंह की सबसे छोटी रानी के नाम पर स्थित हवेली में अब सिख कलाकृतियों की एक स्थायी प्रदर्शनी है और इसे सिख गैलरी कहा जाता है। प्रतिमा में महाराजा रणजीत सिंह को घोड़े पर बैठा हुआ दर्शाया गया है। यह प्रतिमा वॉल्ड सिटी ऑफ लाहौर अथॉरिटी ने ब्रिटेन स्थित सिख हेरिटेज फाउंडेशन के सहयोग से तैयार की है। प्रबल योद्धा के रूप में प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह को शासन प्रणाली में सुधार करने के लिए जाना जाता है तथा काबुल से लेकर दिल्‍ली तक उनका शासन था।