शासन व्यवस्था
नागरिकता (संशोधन) विधेयक और मिज़ोरम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर-पूर्वी राज्य मिज़ोरम में नागरिकता (संशोधन) विधेयक के विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुआ इसमें प्रदर्शनकारियों द्वारा सोशल मीडिया पर ‘नमस्ते चीन, अलविदा भारत’ के पोस्टर का व्यापक प्रदर्शन किया गया जो एक संप्रभु देश भारत के लिये बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
- पूर्वोत्तर राज्यों के बीच जहाँ नागरिकता (संशोधन) विधेयक को लेकर विरोध प्रदर्शन जोर-शोर से चल रहा है वहीं, मिज़ोरम राज्य में मिज़ो ज़िरलाई पावल (Mizo Zirlai Pawl-MZP) के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों को ऐसे नारे एवं पोस्टर के साथ दिखाया गया जिसका मकसद देश को यह बताना था कि वे भारत देश में सुरक्षित नहीं हैं।
- युवा मिज़ो एसोसिएशन (Young Mizo Association-YMA) की केंद्रीय समिति के महासचिव ने सरकार पर आरोप लगाया कि भारत सरकार द्वारा उनकी बातों एवं अनुरोध पर ध्यान नही दिया जा रहा है।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक क्या कहता है?
- इस विधेयक के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक (गैर-मुस्लिम) धर्मों से संबंधित आप्रवासियों के लिये नागरिकता पात्रता नियमों में ढील देते हुए ‘नागरिकता अधिनियम 1955’ में संशोधन किया गया है।
- इस विधेयक के अंतर्गत विभिन्न अन्य प्रावधानों के साथ-साथ दिसंबर 2014 तक आए सभी आप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है।
- पूर्वोत्तर के राजनीतिक दलों एवं गैर-राजनीतिक समूहों द्वारा इस क्षेत्र की जनसांख्यिकी पर पड़ने वाले संभावित नकारात्मक प्रभाव के आधार पर इस विधेयक का विरोध करते हुए इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाया सवाल उठाया गया क्योकिं इनके अनुसार यह नागरिकता शंशोधन धर्म के आधार पर किया जा रहा है।
- प्रदर्शनकारियों ने असम, मेघालय और त्रिपुरा में बांग्लादेश से आए आप्रवासी हिंदुओं के बारे में भी चिंता व्यक्त की है क्योंकि 1971 में आए इन आप्रवासी हिंदुओं को स्वीकृति देने के लिये असम समझौते के तहत नागरिकता प्राप्त करने के मानदंडों में ढील दी गई थी। इसके आधार पर ही अब नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को अपडेट किया जा रहा है, जो धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता है।
मिज़ोरम की स्थिति अलग कैसे है?
- मिज़ोरम में बांग्लादेशियों एवं हिंदू आप्रवासियों की समस्या न होकर वहाँ पाई जाने वाली एक आदिवासी जनजाति ‘चकमा’ और बड़े पैमाने पर पाए जाने वाले बौद्ध समूह से संबंधित है।
- चकमा जनजाति पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों और बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है, जिसके साथ मिज़ोरम एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है।
- मिज़ोरम में जहाँ ईसाईयों की 11 लाख आबादी (2011) का 87% हैं, वहीं चकमा आदिवासी लगभग 1 लाख हैं।
- मिज़ोरम में कुछ वर्गों द्वारा बांग्लादेश से अवैध प्रवास के लिये चाकमा जनजाति को दोषी ठहराया जाता है, जबकि यह समुदाय इस बात से इनकार करता है।
- वर्तमान में राज्य में जातीय हिंसा एवं आगजनी के मामले सामने आ रहे हैं, मतदाताओं की सूची से चकमा आदिवासियों के नाम हटाने एवं चकमा छात्रों के स्कूल कॉलेज में प्रवेश रोकने का मामला सामने आया है।
- एक पुस्तक ‘बीइंग मिज़ो’ में चकमा जनजाति के बारे में यह बात सामने आई है कि मिज़ोरमवासी चकमा को गैर-मिज़ो मानते हैं तथा उनके द्वारा इन्हें अवैध आप्रवासी मानते हुए कभी भी अपने समुदाय में शामिल करने का प्रयास नहीं किया गया है और न ही चकमा मिज़ो-वासियों में शामिल होना चाहते हैं।
डेटा बनाम डेटा
- शीर्ष छात्रों के निकाय ‘मिज़ो ज़िरलाई पावल’ और YMA, जो वर्तमान में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं ने अपनी जनसंख्या आँकड़ों पर ज़ोर देते हुए अपने अस्तित्व को ज़ोर-शोर से दर्शाया है। वहीं दूसरी तरफ, एक नेता द्वारा इस जनजाति के जनसंख्या आँकड़ों को अवैध बताते हुए आँकड़े प्रस्तुत किये गए जिसके अनुसार, 1901 में मिज़ोरम में सिर्फ 198 चकमा जनजाति के लोग थे जो 1991 में बढ़कर 80,000 हो गए विकास दर में असामान्य वृद्धि दर बांग्लादेश से अवैध आप्रवास को दर्शाता है।
- चकमा कार्यकर्त्ताओं ने 2015 में मिज़ोरम सरकार द्वारा NHRC (National Human Rights Commission) को सौंपी गई रिपोर्ट का हवाला दिया। इसमें तत्कालीन राज्य उप सचिव (गृह) ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि 1901 से 1941 के बीच की जनगणना के आँकड़ों की सत्यता का पता नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि जनगणना निदेशालय, मिज़ोरम के पास उपलब्ध रिपोर्ट में 1951 में चकमा की आबादी 15,297 और 2011 में 96,972 है।
अप्रत्याशित वृद्धि दर के परिणाम
अखिल भारतीय चकमा सोशल फोरम के महासचिव ने बताया है कि 1960 के दशक में संरचनात्मक भेदभाव होने के कारण चकमा जनजाति मिज़ोरम में शामिल न होकर ‘चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स’ से चली गई, जिन्हें अरुणाचल प्रदेश में बसाया गया था।
महासचिव ने एक समाचार रिपोर्ट ‘मिज़ो दैनिक वानग्लानी’ 2017 का हवाला दिया, जिसमें तत्कालीन DGP द्वारा कहा गया था कि पिछले पाँच वर्षों में बांग्लादेश से चकमा जनजाति का कोई भी अवैध प्रवास नहीं हुआ है।
विधेयक और चकमा जनजाति
MZP के नेतृत्वकर्त्ता ने बताया कि वे उन चकमा जनजातियों का विरोध नही कर रहे हैं जो दशकों से मिज़ोरम में रह रहे हैं बल्कि उनका विरोध कर रहे हैं जो अवैध रूप से बांग्लादेश से आए हैं। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो वे सभी कानूनी रूप से भारत के नागरिक हो जाएंगे और जिस तरह से चकमा जनजाति की आबादी बढ़ रही है उससे कुछ दिनों में मिज़ोरम के लोग अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इसके अलावा यह विधयेक संविधान का भी उल्लंघन करता है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
आर्कटिक पहुँचा न्यू डेल्ही सुपरबग जीन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पता चला है कि न्यू डेल्ही सुपरबग जीन अब आर्कटिक तक पहुँच गया है। गौरतलब है कि यह सुपरबग जीन लगभग एक दशक पहले दिल्ली के पानी में खोजा गया था।
प्रमुख बिंदु
- अब तक न्यू डेल्ही सुपरबग जीन 100 से ज़्यादा देशों में देखा जा चुका है और कई जगहों पर इसके नए वैरिएंट भी देखने को मिले है।
- आर्कटिक के स्वालबार्ड द्वीप (Svalbard) के आठ अलग-अलग स्थानों से जुटाए गए सैंपल में एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (Antibiotic Resistance Genes-ARG) के रूप में NDM-1 की पहचान की गई है जिसे न्यू डेल्ही मैटलो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1) कहा जाता है।
- इस तरह के एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) विभिन्न सूक्ष्म जीवों में एक से ज़्यादा दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता (Multidrug-resistant-MDR) पैदा करते हैं।
- विभिन्न बैक्टीरिया में दवा प्रतिरोधकता पैदा करने में सक्षम प्रोटीन NDM-1 की पहचान सबसे पहले वर्ष 2008 में की गई थी। उस समय क्लीनिकल परीक्षण में इस प्रोटीन वाले जीन blaNDM-1 को देखा गया था।
आर्कटिक कैसे पहुँचा सुपरबग?
- वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न जीवों और मनुष्यों के पेट में मिलने वाले blaNDM-1 व अन्य एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) संभवतः आर्कटिक आने वाले पक्षियों और पर्यटकों के ज़रिये यहाँ पहुँचे होंगे।
- ध्रुवीय क्षेत्र धरती के प्राचीनतम संरक्षित पारिस्थितिक तंत्र में शामिल हैं। इनसे प्री-एंटीबायोटिक काल को समझने में मदद मिलती है।
बहुत जटिल है दवा प्रतिरोधकता की समस्या
- आर्कटिक जैसे क्षेत्र में सुपरबग का पहुँचना यह साबित करता है कि एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट बहुत तेज़ी से फैल रहा है।
- कुछ ही ऐसे एंटीबायोटिक हैं जो दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो चुके बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम हैं। ऐसे में blaNDM-1 और अन्य एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) का दुनियाभर में फैलना चिंता का विषय बनता जा रहा है।
क्या है न्यू डेल्ही सुपरबग
- न्यू डेल्ही मिटेलो बीटा लेक्टामेस-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1) एक ऐसा जीन है जो एक बैक्टीरिया के ज़रिये शरीर में प्रवेश करता है।
- यह इतना शक्तिशाली होता है कि इसके चलते शरीर पर एंटीबायोटिक्स दवाएँ भी असर करना बंद कर देती हैं।
- NDM-1 आसानी से एक बैक्टीरिया से दूसरे में पहुँच जाता है। इसके बाद यह एक दूसरा बैक्टीरिया उत्पन्न करता है जो एंटीबायोटिक्स दवाओं का असर नहीं होने देता है।
- यह कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा कर सकता है जो बहुत ही तेज़ी के साथ लोगों में फैल सकती हैं। इस बैक्टीरिया से बच पाना अब तक संभव नहीं हो पाया है।
इस संबंध में भारत का रुख
- अब तक भारत का एंटीबायोटिक प्रतिरोध अभियान अनावश्यक एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में कटौती करने पर केंद्रित रहा है।
- लेकिन ‘द 2017 नेशनल प्लान ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस’ (The 2017 National Action Plan on Antimicrobial Resistance) में पहली बार इन दवा निर्माताओं द्वारा वातावरण में एंटीबायोटिक दवाओं को डंप करने की बात कही गई।
- विदित हो कि इस समस्या की गंभीरता की पहचान करते हुए वर्ष 2012 में ‘चेन्नई डिक्लरेशन’ (Chennai Declaration) में सुपरबग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये व्यापक योजना बनाई गई थी।
- इस योजना में 30 ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात की गई थी जो एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करेंगे।
- एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक प्रयोग को रोकने के लिये सरकार ने बिक्री योग्य दवाओं की नई सूची जारी कर उसके आधार पर ही दवा विक्रेताओं को दवा बेचने का निर्देश दिया है। लेकिन, कहीं भी आसानी से एंटीबायोटिक दवाओं का मिल जाना चिंताजनक है। अतः इस संबंध में निगरानी तंत्र को और अधिक चौकस बनाए जाने की आवश्यकता है।
- हालाँकि, इसमें एक महत्त्वपूर्ण बिंदु संतुलन बनाए रखने का भी है। पूरे विश्व में अभी भी एंटीबायोटिक दवाओं समेत अन्य आवश्यक दवाओं की कमी से मरने वालों की संख्या एंटीबायोटिक प्रतिरोध से मरने वालों से कहीं ज़्यादा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ हमें सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा।
क्या होता है सुपरबग?
- वर्ष 1928 में जब अलेक्ज़ेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक ‘पेन्सिसीन’ का अविष्कार किया तो यह खोज जीवाणुओं के संक्रमण से निपटने में जादू की छड़ी की तरह काम करने लगी।
- समय के साथ एंटीबायोटिक दवाओं का धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा। लेकिन, एंटीबायोटिक खा-खाकर बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर इसका असर न के बराबर हो गया है।
- धीरे-धीरे यही प्रभाव अन्य सूक्ष्मजीवियों (Micro-Organism) के संदर्भ में भी देखने को मिलने लगा, यानी एंटीफंगल (Antifungal), एंटीवायरल (Antiviral) और एंटीमलेरियल (Antimalarial) दवाओं का भी असर कम होने लगा।
- अतः एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) ही नहीं बल्कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) आज समस्त विश्व के लिये एक बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे सामान्य से भी सामान्य बीमारियों के कारण मौत हो सकती है।
- एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को ‘सुपरबग’ के नाम से जाना जाता है। सुपरबग एक ऐसा सूक्ष्मजीवी है, जिस पर एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है।
स्रोत- द हिंदू
विविध
बीटिंग द रिट्रीट
चर्चा में क्यों?
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में होने वाले समारोहों का समापन 29 जनवरी को विजय चौक पर हुए भव्य बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम के साथ हुआ।
बीटिंग द रिट्रीट-2019
इस वर्ष के समारोह में भारतीय धुनों की प्रधानता रही। विजय चौक पर 27 से अधिक प्रदर्शनों में सेना, नौसेना, वायुसेना और राज्य पुलिस तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CRPF) के बैंड ने मनोरम संगीत प्रस्तुति दी।
27 प्रदर्शनों में से 19 धुनें भारतीय संगीतकारों ने तैयार की थीं, जिनमें इंडियन स्टार, पहाड़ों की रानी, कुमाऊंनी गीत, जय जन्मभूमि, क्वीन ऑफ सतपुड़ा, मारूनी, विजय, सोल्जर-माई वेलंटाइन, भूपाल, विजय भारत, आकाशगंगा, गंगोत्री, नमस्ते इंडिया, समुद्रिका, जय भारत, यंग इंडिया, वीरता की मिसाल, अमर सेनानी और भूमिपुत्र शामिल थे। 8 विदेशी धुनों में फैनफेयर बाइ बीयूगलर्स, साउंड बैरियर, एमब्लेजेंड, ट्वाइलाइट, एलर्ट, स्पेस फ्लाइट, ड्रमर्स कॉल और एबाइड विद मी शामिल होंगी। आयोजन का समापन लोकप्रिय धुन ‘सारे जहां से अच्छा’ के साथ हुआ।
हर साल आकर्षण का केंद्र होता है
- हर साल 29 जनवरी को विजय चौक पर होने वाला बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम चार दिवसीय गणतंत्र दिवस समारोह के समापन का प्रतीक है।
- इस साल 15 सैन्य बैंड, 15 पाइप्स और ड्रम बैंड रेजीमेंटल सेंटर और बटालियन से बीटिंग द रिट्रीट समारोह में शामिल हुए।
- इसके अलावा भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना का एक-एक बैंड भी इस आयोजन का हिस्सा बना।
- केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल और दिल्ली पुलिस के बैंड भी इसमें शामिल हुए।
- बीटिंग द रिट्रीट समारोह के प्रमुख संचालक कमाडोर विजय डी’ क्रूज थे।
सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है बीटिंग द रिट्रीट
दरअसल, 'बीटिंग द रिट्रीट' सदियों पुरानी सैन्य परंपरा का प्रतीक है, जब सैनिक लड़ाई समाप्त कर अपने शस्त्र रख देते थे और सूर्यास्त के समय युद्ध के मैदान से शिविरों में वापस लौट आते थे। यह ब्रिटेन की बहुत पुरानी परंपरा है और इसे सूर्य डूबने के समय मनाया जाता है। भारत में दो बार ऐसा हुआ है जब इसका आयोजन नहीं किया गया। पहली बार 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप की वज़ह से ऐसा करना पड़ा और दूसरी बार 27 जनवरी 2009 को देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन का निधन हो जाने पर इसे टाला गया।
इस समारोह के महत्त्व का पता इस बात से चल जाता है कि इसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सेना प्रमुख सहित कैबिनेट मंत्री एवं गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
1950 में हुई थी शुरुआत
गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान होने वाला ‘बीटिंग द रिट्रीट’ कार्यक्रम आज राष्ट्रीय गौरव बन चुका है। 1950 में इसकी शुरुआत हुई थी। तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस अनोखे समारोह का ढाँचा विकसित किया था, जो आज तक वैसा ही चला आ रहा है। समारोह में राष्ट्रपति बतौर मुख्य अतिथि शामिल होते हैं। कार्यक्रम का समापन करने से पहले प्रमुख बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। वापस जाते समय बैंड 'सारे जहां से अच्छा...' की धुन बजाते हैं। शाम 6 बजे बिगुल पर रिट्रीट की धुन बजाई जाती है और राष्ट्रीय ध्वज को ससम्मान उतार कर राष्ट्रगान गाया जाता है। इस तरह गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन हो जाता है।
स्रोत: PIB
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विश्व आर्थिक मंच वार्षिक सम्मेलन 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दावोस में पाँच दिवसीय विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक 2019 आयोजित की गई जिसमें जलवायु परिवर्तन, बढ़ती असमानता और अमेरिका-चीन व्यापार तनाव सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा हुई।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) का सम्मलेन दावोस में आयोजित किया गया। इसमें राजनीति, व्यापार, विज्ञान, समाज और पर्यावरण से संबंधित परिचित एवं नए लोगों एवं विविध विचारों एवं संस्कृतियों का संवेदी समावेश किया गया।
- इस सम्मलेन में सामान्य विषयों को भी शामिल किया गया है जिससे यह प्रदर्शित होता है कि सबके सहयोग से ही बेहतर भविष्य का निर्माण हो सकता है।
- इस वर्ष सम्मलेन का विषय ग्लोबलाइज़ेशन 4.0 था जिसमें संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को शामिल किया गया। इसमें वैश्वीकरण (ग्लोबलाइज़ेशन) के वास्तविक अर्थ पर बात की गई, जबकि पहले ग्लोबलाइज़ेशन का अर्थ पश्चिम से पूर्व देशों को किया जाने वाला आयात था। जो आज पूरी तरह बदल चुका है।
- इस सम्मलेन में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लगभग 3,000 प्रतिभागी और 115 देशों के नागरिक और सांस्कृतिक समाज के संगठन शामिल हुए।
भारत के संदर्भ में
- WEF भविष्य को नया आयाम देने के अंतर्गत विभिन्न नागरिक समाज संगठनों के युवाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व करता है।
- इसके अंतर्गत बाज़ार अवसरों पर चर्चा की गई जैसे कि तेजी से बढ़ते बाजारों में भविष्य में होने वाली खपत। इस बार इसका केंद्रबिंदु भारत रहा जिसमें साझेदारी पर महत्त्वपूर्ण ध्यान दिया गया है।
- WEF की भविष्य की खपत प्रणाली की पहल के अंतर्गत एक ऐसे वैश्विक समाज को शामिल करती है जहां लोगों के जीवन में तकनीकी प्रगति समावेशी और दृढ़ता से जुड़ा है, जो लोगों के दैनिक जीवन को सरल बनाता है।
- WEF की इस साल की रिपोर्ट में भारत को युवा राष्ट्र बताते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि भारत 2030 तक अपनी खपत में लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि करेगा क्योंकि तब तक इसकी आबादी और बढ़ जाएगी।
- नीति आयोग के CEO ने भी भारत को नवाचार से जोड़ने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों को और अधिक सुविधा प्रदान करने पर बल देने की बात कही है।
- कंपनियों, सरकार एवं नागरिक समाज ने आने वाले दशक में भारत को बहुत बड़ा उपभोक्ता और सकारात्मक परिणामों को आगे बढ़ाने के लिये जीवन भर का अवसर बताया है।
वैश्वीकरण का दौर
वैश्वीकरण 1.0
- यह प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व का चरण था, जिसे भाप और यांत्रिक शक्ति के अन्य रूपों द्वारा व्यापार की लागत में एक ऐतिहासिक गिरावट के साथ शुरू किया गया था। इस दौरान दूरदराज़ से निर्मित वस्तुओं को उपभोग करने के लिये किफायती बनाया गया था।
- इस वैश्वीकरण को कोई सरकारी समर्थन प्राप्त नहीं था।
- इसके लिये कोई वैश्विक शासन नहीं था।
वैश्वीकरण 2.0
- यह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का चरण है जहाँ वस्तुओं के व्यापार को पूरक घरेलू नीतियों के साथ जोड़ा गया था।
- इसमें जहाँ बाज़ार पर दक्षता का प्रभाव था वहीं, सरकार पर न्याय का प्रभार था।
- वैश्वीकरण 2.0 के तहत संस्थान आधारित, नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक (WB), गैट / डब्ल्यूटीओ और खाद्य एवं कृषि संगठन तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जैसी कई विशिष्ट एजेंसियों की स्थापना की गई।
वैश्वीकरण 3.0
- इसे हाइपर ग्लोबलाइज़ेशन भी कहा जाता है। अरविंद सुब्रमण्यन के अनुसार वैश्वीकरण 3.0 के दौरान विनिर्माण की एक नई दुनिया बनाई गई जिसमें उच्च तकनीक को कम मज़दूरी के साथ जोड़ा गया। इसका मतलब था सीमाएँ पार करने वाले कारखाने।
वैश्वीकरण 4.0
- यह वैश्वीकरण का एक नया चरण है जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी के विस्फोट के साथ आगे बढ़ने वाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल किया गया है।
- इसमें दूरियाँ कम हो रही हैं और दायरा बढ़ता जा रहा है और दुनिया भर के लोगों को एक साथ लाया जा रहा है।
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)
- विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
- यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
- इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
- इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर प्रदान की जानी है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
- इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।
स्रोत – लाइवमिंट
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (29 January)
- हाल ही में गणतंत्र दिवस के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि भारत यात्रा पर आए दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा और नरेंद्र मोदी के बीच हुई वार्ता में कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी। रक्षा, समुद्री सुरक्षा, व्यापार और निवेश संबंधी कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
- भारत में कैंसर की अत्याधुनिक सुविधा उपलब्ध कराने के लिये अपोलो अस्पताल ने चेन्नई में देश के पहले प्रोटोन कैंसर ट्रीटमेंट सेंटर की शुरुआत की है। उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू ने 1300 करोड़ रुपए की लागत वाले इस सेंटर का शुभारंभ किया, जो देश ही नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया का ऐसा पहला सेंटर है। इसके लिये बेल्जियम से 120 टन वज़नी मशीन लाई गई है। लगभग 600 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं से गुज़रने के बाद केंद्र सरकार के Atomic Energy Regulatory Board (AERB) ने इसके प्रचालन की अनुमति दी है।
- जापान को पीछे छोड़कर भारत दुनिया में कच्चे इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है। विश्व इस्पात संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत का कच्चा इस्पात उत्पादन 4.9 प्रतिशत बढ़कर 10.65 करोड़ टन हो गया, जो 2017 में 10.15 करोड़ टन था। जापान का उत्पादन इस दौरान 0.3 प्रतिशत घटकर 10.43 करोड़ टन रह गया। इस तरह भारत ने इस्पात उत्पादन में जापान को पीछे छोड़ दिया। चीन दुनिया के कुल कच्चे इस्पात उत्पादन के 51 प्रतिशत हिस्से के साथ इस मामले में अव्वल है। 2018 में चीन का कच्चे इस्पात का उत्पादन 6.6 प्रतिशत बढ़कर 92.83 करोड़ टन पर पहुँच गया। 2017 में यह 87.09 करोड़ टन था।
- आधुनिक सिंगापुर की स्थापना के 200 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में वहाँ लाइट महोत्सव का आयोजन किया गया है। 28 जनवरी से 24 फरवरी तक चलने वाले इस आयोजन को I Light Singapore Festival 2019 नाम दिया गया है। गौरतलब है कि 1819 में आधुनिक सिंगापुर की नींव एक ब्रिटिश व्यक्ति सर थॉमस स्टैमफोर्ड रेफल्स ने डाली थी। 9 अगस्त 1965 को सिंगापुर स्वतंत्र गणराज्य बना था।
- अमेरिका में 35 दिन से चला आ रहा शट डाउन समाप्त हुआ। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे खत्म करने के अस्थायी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने की मांग पर वह कोई समझौता नहीं करेंगे। बजट पर सहमति न बन पाने की वज़ह से 22 दिसंबर से अमेरिका में शट डाउन चल रहा था। बजट पास नहीं होने से अमेरिका में बहुत से सरकारी विभागों का कामकाज ठप हो गया था। राष्ट्रपति ट्रंप ने मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने के लिये 5.7 अरब डॉलर (लगभग 40 हज़ार कर्रोड़ रुपए) का फंड मांगा है। डेमोक्रेट्स ने यह मांग स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
- अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी नई तरकीब खोजी है, जिससे ह्यूमन स्टेम सेल्स को इंसुलिन का स्राव करने वाली बीटा कोशिकाओं में बदला जा सकता है। गौरतलब है कि इंसुलिन हार्मोन रक्त शर्करा (Blood Sugar) को नियंत्रित करने का काम करता है। मनुष्य के स्टेम सेल से बीटा सेल्स का निर्माण करने वाली टीम ने इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स को बनाने से पहले इसमें काफी बदलाव किये हैं और इसका परीक्षण चूहों पर किया गया है।
- अमेरिका के इलिनॉइस सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी सेंटर के शोधकर्त्ताओं के एक अध्ययन से पता चलता है कि भूजल भी प्लास्टिक से सुरक्षित नहीं है। शोधकर्त्ताओं को भूजल में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है, जो मानव शरीर को कई तरह से हानि पहुँचा सकता है। भूजल में यह माइक्रोप्लास्टिक कई तरह के घटकों के रूप में मौज़ूद है। अभी तक केवल धरती की सतह पर मौज़ूद पानी में ही माइक्रोप्लास्टिक के अंश पाए जाते थे। इस शोध के लिये पानी के 17 सैंपल अमेरिका के कुओं और झरनों से एकत्र किये गए थे।
- भारत ने 10 वर्ष बाद न्यूज़ीलैंड को उसी की धरती पर हराकर एक दिवसीय मैचों की सीरीज़ पर कब्ज़ा किया। तीसरे मैच में भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड को 7 विकेट से पराजित किया। इस जीत के साथ ही टीम इंडिया ने 5 मैचों की सीरीज़ में 3-0 की अजेय बढ़त हासिल करते हुए सीरीज़ पर कब्ज़ा कर लिया है। इन तीन मैचों में से दो में तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद शमी को ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया। गौरतलब है कि इससे पहले भारत ने साल 2009 में न्यूजीलैंड के खिलाफ 3-1 से एकदिवसीय सीरीज़ जीती थी।
- ICC ने भारतीय बल्लेबाज और पार्ट टाइम स्पिनर अंबाती रायुडू के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में गेंदबाजी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। हाल ही में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले एक दिवसीय मैच के दौरान उनके संदिग्ध गेंदबाजी एक्शन की शिकायत की गई थी। रायुडू ने इस मैच में सिर्फ दो ओवर गेंदबाजी करते हुए 13 रन दिये थे। इसके बाद ICC ने उनकी गेंदबाजी एक्शन की जाँच के लिये 14 दिनों का समय दिया था। लेकिन रायुडू ने अपने गेंदबाजी एक्शन की जाँच कराने से इनकार कर दिया। ऐसे में उन पर गेंदबाजी एक्शन की वैधता संबंधी ICC नियमों के प्रावधान 4.2 के तहत प्रतिबंध लगा दिया गया।
- पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज़ का 88 वर्ष की आयु में निधन। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीज़ लंबे समय से अल्ज़ाइमर से पीड़ित थे। उन्होंने पूर्व में संचार मंत्री, उद्योग मंत्री, रेल मंत्री आदि जैसे अहम मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला था। 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीतकर वह सांसद रहे। अल्ज़ाइमर की बीमारी की वज़ह से लगभग एक दशक से वह सार्वजनिक जीवन से दूर थे। आपको बता दें कि अल्ज़ाइमर का असर याददाश्त, सोचने की क्षमता तथा रोज़मर्रा की गतिविधियों पर पड़ता है। यह एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव बीमारी है, जो मस्तिष्क कोशिकाओं के लगातार नुकसान की वज़ह से होती है।