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डेली न्यूज़

  • 28 Sep, 2018
  • 31 min read
शासन व्यवस्था

निर्वाचन आयोग की राजनैतिक दलों के साथ बैठक

चर्चा में क्यों?

27 अगस्त, 2018 को नई दिल्ली में निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित एक बैठक में सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनैतिक दलों और राज्य के राजनैतिक दलों ने हिस्सा लिया।

बैठक का उद्देश्य

  • भारत की निर्वाचन प्रणाली में राजनैतिक दल महत्त्वपूर्ण साझेदार हैं अतः निर्वाचन आयोग समय-समय पर सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों के साथ विचार-विमर्श करता रहता है ताकि महत्त्वपूर्ण विषयों पर उनके विचार प्राप्त हो सकें।
  • निर्वाचन आयोग हमेशा से वर्तमान निर्वाचन प्रणाली और अपनी कार्य पद्धति में सुधार करके देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाने के कार्य में संलग्न रहता है।
  • उल्लेखनीय है कि बैठक में पंजीकृत सभी 7 राष्ट्रीय राजनैतिक दलों और 34 राज्य स्तरीय पार्टियों ने हिस्सा लिया।

बैठक की कार्य सूची में शामिल विषय 

  • इस बैठक में निर्वाचन आयोग ने आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए मतदाता सूचियों की विशुद्धता, पारदर्शिता में सुधार करने के उपायों के बारे में सभी राजनैतिक दलों के विचार आमंत्रित किये।
  • राजनैतिक दलों में लिंग प्रतिनिधित्व और तुलनात्मक अंतर्राष्ट्रीय अनुभव के संबंध में, निर्वाचन आयोग ने सुझावों को भी आमंत्रित किया, जिससे राजनैतिक दल अपने संगठनात्मक ढाँचे के भीतर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उपाय कर सकें और साथ ही चुनाव लड़ने के लिये उम्मीदवार का चयन किया जा सके।
  • चुनाव खर्च पर नियंत्रण करने, विधान परिषद के चुनावों के खर्च की सीमा तय करने और राजनैतिक दलों का खर्च सीमित करने के विषय पर विचार-विमर्श किया गया।
  • इसके अलावा वार्षिक लेखा रिपोर्ट, चुनाव खर्च रिपोर्ट समय पर देने के उपाय लागू करने के बारे में विचार-विमर्श भी इस कार्य सूची का हिस्सा था।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुच्छेद 126(1)(बी) के दायरे में चुनाव प्रचार बंद होने की अवधि में प्रिंट मीडिया को शामिल करने सहित और मतदान समाप्त होने से पहले अंतिम 48 घंटों के दौरान सोशल मीडिया पर पार्टी/उम्मीदवार की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाने अथवा पूर्वाग्रह के लिये ऑनलाइन प्रचार के मुद्दे पर भी बैठक में विचार किया गया।

चुनाव कराने के संबंध में महत्त्वपूर्ण विचार 

  • प्रवासियों और अनुपस्थित मतदाताओं के लिये मतदान के वैकल्पिक तरीके।
  • इलेक्ट्रोनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बेलोट सिस्टम (ईटीबीपीएस) ईटीबीपीएस योजना के संचालन के संबंध में राजनैतिक दलों के विचार और फीडबैक।
  • दिव्यांग मतदाताओं की मतदान में भागीदारी को प्रोत्साहित करने के प्रयासों के संबंध में राजनैतिक दलों के विचार और फीडबैक पर भी बैठक में विचार किया गया।
  • मतदान में भागीदारी सहित पहुँच बढ़ाने और व्यापक आधार को प्रोत्साहित करने के आयोग के प्रयासों के संबंध में राजनैतिक दलों के विचार एवं फीडबैक आमंत्रित किये गए हैं।

स्रोत : पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के विघटन की घोषणा

चर्चा में क्यों?

भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के कामकाज की निगरानी करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षण समिति के अचानक इस्तीफा देने के बाद सरकार ने हाल ही में  चिकित्सा शिक्षा के शीर्ष नियामक इस 100 सदस्यीय परिषद के वर्तमान स्वरूप को भंग कर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • परिषद के सदस्यों के गैर-सहयोगी और गैर-अनुपालनशील रवैये के संबंध में पर्यवेक्षण समिति द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय को बार-बार शिकायतें और लिखित निवेदन भेजे जा रहे थे।
  • नीति आयोग के सदस्य वी.के. पॉल की अध्यक्षता वाली समिति ने जुलाई माह में परिषद पर आरोप लगाते हुए मंत्रालय को पत्र लिखा था कि, “एमसीआई अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या की जा रही है। मंत्रालय को या तो इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिये या सर्वोच्च न्यायालय को इससे अवगत कराया जाना चाहिये।”
  • बाद में, पॉल ने एमसीआई के खिलाफ जाँच आयोग की मांग करते हुए मंत्रालय को फिर से पत्र लिखा। इसके बाद पाँच सदस्यीय समिति ने इस्तीफा दे दिया। इस समिति में वी.के. पॉल के अतिरिक्त दिल्ली में एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया; एम्स में प्रोफेसर और एंडोक्राइनोलॉजी के प्रमुख निखिल टंडन; चंडीगढ़ में PGIMER के निदेशक जगत राम तथा बंगलूरू में NIMHANS के निदेशक बीएन गंगाधरन शामिल थे।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पूरी समिति द्वारा विरोधस्वरूप इस्तीफा दिये जाने के बाद मंत्रालय को आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय जाना पड़ता। जिससे मंत्रालय को सर्वोच्च न्यायालय की और अधिक आलोचना झेलनी पड़ती।
  • इसलिये एमसीआई को भंग करने का निर्णय लिया गया और पर्यवेक्षण समिति के पाँच सदस्यों को नए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के रूप में नियुक्त किया गया।
  • शीर्ष चिकित्सा निकाय संबंधी सुधार के लिये सरकार वर्ष 2010 से अत्यंत सुस्त गति से प्रयास कर रही है। इस संबंध में संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार पिछले आठ वर्षों से बार-बार पूर्ववर्ती बोर्ड का स्थान लेने के लिये गवर्नरों के एक बोर्ड का गठन कर रही है।
  • अभी तक राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन विधेयक पारित नहीं किया गया है जो भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 का स्थान लेगा। इससे पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मानव संसाधन आयोग विधेयक, 2011 को विपक्ष के विरोध के कारण वापस ले लिया गया था।

भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (Medical Council of India- MCI)

  • भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद की स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी। भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम, 1933 के तहत स्थापित इस परिषद का कार्य एक मेडिकल पंजीकरण और नैतिक निरीक्षण करना था।
  • दरअसल, तब चिकित्सा शिक्षा में इसकी कोई विशेष भूमिका नहीं थी, किंतु वर्ष 1956 के संशोधन द्वारा स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों ही स्तरों पर चिकित्सा शिक्षा की देख-रेख हेतु इसे अधिकृत कर दिया गया।
  • वर्ष 1992 शिक्षा के निजीकरण का दौर था और इसी दौरान एक अन्य संशोधन के ज़रिये एमसीआई को एक सलाहकारी निकाय की भूमिका दे दी गई। जिसके तीन महत्त्वपूर्ण कार्य थे-
  1. मेडिकल कॉलेजों को मंज़ूरी देना
  2. छात्रों की संख्या तय करना
  3. छात्रों के दाखिला संबंधी किसी भी विस्तार को मंज़ूरी देना

शासन व्यवस्था

न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये संवैधानिक महत्त्व वाले मामलों में की जाने वाली न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को अनुमति दे दी है।

न्यायलय द्वारा जारी दिशा-निर्देश

  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को ‘व्यापक और समग्र दिशानिर्देश’ तैयार करने का निर्देश देने के साथ ही न्यायालयों में इस प्रक्रिया को पायलट आधार पर शुरू करने का निर्देश भी दिया है।
  • यह परियोजना कई चरणों लागू की जाएगी।
  • यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अयोध्या तथा SC/ST आरक्षण जैसे मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं की जाएगी।
  • चूँकि ‘न्यायालय की खुली सुनवाई’ के संबंध में संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, ऐसे में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 327 और सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (Code of Civil Procedure- CPC) की धारा 153ख के प्रावधानों का अनुसरण किया जा सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 327

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 327 के अनुसार वह स्थान जहाँ कोई दंड न्यायालय किसी अपराध की जाँच या विचारण के प्रयोजन से बैठता है उसे खुला न्यायालय समझा जाएगा जिसमें जनता साधारणतः वहाँ तक प्रवेश कर सकेगी जहाँ तक कि वह सुविधापूर्वक उसमें समा सके।
  • लेकिन, यदि पीठासीन न्यायाधीश ठीक समझे तो वह किसी विशिष्ट मामले की जाँच या विचारण के किसी भी प्रक्रम पर यह आदेश दे सकता है कि न्यायालय द्वारा उक्त प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल किये गए कमरे या भवन तक जनता अथवा किसी विशिष्ट व्यक्ति को न पहुँचने दिया जाए।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 153ख

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 153ख के अनुसार, वह स्थान जहाँ किसी वाद के विचरण के प्रयोजन के लिये कोई सिविल न्यायालय लगता है तो उसे खुला न्यायालय समझा जाएगा और उसमें जनता की साधारणतः वहाँ तक पहुँच होगी जहाँ तक वह इसमें सुविधापूर्वक समा सके।
  • लेकिन, यदि पीठासीन न्यायाधीश ठीक समझे तो वह किसी विशिष्ट मामले की जाँच या विचरण के किसी भी प्रक्रम पर यह आदेश दे सकता है कि न्यायालय द्वारा प्रयुक्त कमरे या भवन तक जनता या किसी विशिष्ट व्यक्ति की पहुँच नहीं होगी या वह उसमें नहीं आएगा या वह वहाँ नहीं रहेगा।

सरकार का पक्ष

  • राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों में न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को गाइडलाइन तैयार कर न्यायालय] में दाखिल करने के निर्देश जारी किये थे। अटार्नी जनरल द्वारा विस्तृत गाइडलाइन दाखिल करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • अटॉर्नी जनरल द्वारा दाखिल गाइडलाइन के अनुसार, पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर लाइव स्ट्रीमिंग की प्रक्रिया मुख्य न्यायाधीश के न्यायलय से शुरू होनी चाहिये और सफल होने पर इसे दूसरे न्यायालयों में लागू किया जा सकता है।
  • इसमें संवैधानिक मुद्दों को भी शामिल किया जाना चाहिये। साथ ही इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि वैवाहिक विवाद, नाबालिगों से जुडे मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द से जुडे मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग न हो।
  • अटॉर्नी जनरल ने यह सुझाव भी दिया कि कोर्टरूम की भीड़-भाड़ को कम करने के लिये वादियों, पत्रकार, इंटर्न और वकीलों के लिये एक मीडिया रूम बनाया जा सकता है।
  • अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने यह सिफारिश भी की थी कि यदि सर्वोच्च न्यायालय चाहे तो सरकार, लोकसभा या राज्यसभा की तरह ही अलग सर्वोच्च न्यायालयचैनल की व्यवस्था कर सकती है।

इंदिरा जयसिंह ने दाखिल की थी याचिका

  • सर्वोच्च न्यायालयमें वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने PIL दाखिल कर यह अनुरोध किया था कि राष्ट्रीय महत्त्व और संवैधानिक महत्त्व के मामलों की पहचान कर उन मामलों की रिकॉर्डिंग की जानी चाहिये और उनका सीधा प्रसारण भी किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

  • यह प्रक्रिया अधिक पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के साथ ही ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ और ‘सिविल प्रक्रिया संहिता’ में जवाबदेहिता के लिये एक साधन के रूप में कार्य करेगी।

सामाजिक न्याय

व्यभिचार अब अपराध नहीं : सर्वोच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यभिचार को अपराध का दर्जा देने वाली 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने 1985 के उस फैसले को भी खारिज कर दिया जिसने इस धारा को बरकरार रखा था।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 497 महिला की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है। अतः यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
  • धारा 497 स्पष्ट रूप से मनमानी है क्योंकि स्त्री पर पुरुष की कानूनी संप्रभुता गलत है। अतः पत्नी पति की संपत्ति नहीं है।
  • व्यभिचार अपराध की अवधारणा में फिट नहीं है। यदि इसे अपराध के रूप में माना जाता है, तो वैवाहिक क्षेत्र की अत्यधिक निजता में अत्यधिक घुसपैठ होगी।
  • धारा 497, अनुच्छेद 14 और 15 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करता है और इसके तहत केवल पुरुषों को दंडित किया जाता है।
  • व्यभिचार को अपराध मानना एक ‘पुरातन विचार’ है जिसमें पुरुष को अपराधी और महिला को पीड़ित माना जाता है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में ऐसा नहीं है।
  • धारा 497 संस्थागत भेदभाव और विसंगतियों एवं असंगतताओं से भरा हुआ था।
  • धारा 497 उस सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार, एक महिला विवाह के साथ अपनी पहचान और कानूनी अधिकार खो देती है। ये उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। यह सिद्धांत संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। व्यभिचार अनैतिक हो सकता है लेकिन गैरकानूनी नहीं।

भारतीय दंड संहिता की धारा 497

  • धारा 497 के अनुसार, यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन (व्यभिचार) के अपराध का दोषी होगा।
  • परस्त्रीगमन के इस अपराध के लिये पुरुष को पाँच साल की कैद या ज़ुर्माना अथवा दोनों सज़ा हो सकती है।
  • ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दंडित नहीं होगी।
  • इसके अलावा, अगर पति किसी अविवाहित, तलाकशुदा या विधवा महिला के साथ संबंध बनाता है, तो उसे व्यभिचार का अपराधी नहीं माना जाता है।

ब्रिटिश काल के कानून ने महिलाओं को छूट क्यों दी?

  • लॉर्ड मैकॉले के अधीन 1837 के प्रथम विधि आयोग के मूल IPC व्यभिचार को अपराध के रूप में शामिल नहीं किया गया था, जिसमें इसे केवल एक गलती माना गया था।
  • 1860 में सर जॉन रोमिली की अध्यक्षता में द्वितीय विधि आयोग ने व्यभिचार को अपराध तो माना लेकिन एक ऐसे समाज (जहाँ बाल-विवाह, पति-पत्नी की उम्र में बड़ा फासला हो और जहाँ एक से अधिक विवाह करने पर कोई रोक न हो) में महिलाओं को व्यभिचार के लिये सजा से देने से बचाया।
  • IPC का मसौदा तैयार करने वालों ने इस फैसले को महिलाओं के प्रति सहानुभूति के रूप में देखा और पुरुषों को असली अपराधी माना।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद धारा 497 की स्थिति

  • 1954 के ‘युसूफ अब्दुल अज़ीज बनाम बॉम्बे राज्य’ मामले संविधान पीठ ने धारा 497 को संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के तहत महिलाओं के पक्ष में किये गए विशेष प्रावधान के रूप में माना क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 15(3) विधायिका को महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिये विशेष प्रावधान करने की छूट देता है।
  • 1985 के सौमित्र विष्णु मामले में तीन जजों की पीठ ने 1954 के निर्णय को आधार बनाया तथा इस प्रावधान को असंवैधानिक करार देने की मांग को केवल एक ‘भावनात्मक अपील’ कहकर खारिज़ कर दिया और कहा कि दूसरे की पत्नी से संबंध बनाने वाला व्यक्ति भारतीय समाज के लिये ज़्यादा बड़ी बुराई है।
  • 1988 के वी.रेवती बनाम भारत संघ मामले में दो जजों की बेंच ने इस कानून में लैंगिक भेदभाव की बात को खारिज़ किया और कहा कि इस कानून में पुरुष ही व्यभिचार का दोषी हो सकता है। तब सर्वोच्च न्यायलय ने कहा था कि किसी वैवाहिक रिश्ते को तोड़ना घर तोड़ने जैसे अपराध से कम गंभीर नहीं है और धारा 497 को समाप्त करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि यह नीति का सवाल है न कि संवैधानिकता का।

वैश्विक परिदृश्य में व्यभिचार

  • वर्तमान में कई यूरोपीय राष्ट्र ऐसे हैं जहाँ व्यभिचार को अपराध नहीं माना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में केवल 10 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने व्यभिचार से जुड़े विभिन्न आपराधिक कानूनों को बरकरार रखा है।
  • कुछ राज्यों में केवल ‘खुले और कुख्यात’ व्यभिचार पर प्रतिबंधित लगाए हैं तो कुछ में ‘आदतन’ व्यभिचार को प्रतिबंधित किया गया है जिसके लिये जुर्माना (10 डॉलर से 1000 डॉलर तक) एवं तीन साल तक कारावास का प्रावधान है।
  • सऊदी अरब, यमन और पाकिस्तान जैसे देशों में व्यभिचार को अभी भी गंभीर अपराध के रूप में माना जाता है।

निष्कर्ष

  • सामाजिक प्रगति के साथ लोगों को नए अधिकार भी मिलते हैं और नए विचारों की पीढ़ी भी जन्म लेती है। व्यभिचार के मामलों में केवल पुरुष को दोषी बनाना भेदभावपूर्ण था, जबकि विवाहेत्तर संबंधों में पुरुष व महिला दोनों की समान भागीदारी होती है। अतः इस पुराने कानून को समाप्त किया जाना वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप है।

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 28 सितंबर, 2018

प्रधानमंत्री कौशल केंद्र का उदघाटन तथा अन्य पहलों की शुरुआत

  • हाल में उड़ीसा के कालाहांडी में प्रधानमंत्री कौशल केंद्र का उदघाटन किया गया है।
  • यह केंद्र यौगिक उत्पादक, प्लम्बर, सिलाई मशीन ऑपरेटर, घरेलू स्वास्थ्य सहयोगी और इलेक्ट्रीशियन जैसे पाँच रोज़गार परक भूमिकाओं में कौशल विकास पाठ्यक्रम प्रदान करेगा।
  • इसका लक्ष्य हर साल 1000 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करना है।
  • ‘प्रधानमंत्री कौशल केंद्र’ कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय की पहल है।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और श्री श्री ग्रामीण विकास कार्यक्रम ट्रस्ट के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • इस साझेदारी के तहत, कैदियों के कौशल प्रशिक्षण के लिये 7 राज्यों (असम, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और मणिपुर) के 16 जेलों में कौशल केंद्र स्थापित किये जाएंगे। यह प्रशिक्षण प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत दिया जाएगा।
  • सौंदर्य एवं कल्याण सेक्टर कौशल परिषद और श्री श्री ग्रामीण विकास कार्यक्रम ट्रस्ट के बीच भी एक समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान किया गया।

प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (Pradhan Mantri Kaushal Kendras) 

  • वर्ष 2017 में एमएसडीई द्वारा उद्योग जगत के मानकों के अनुरूप अवसंरचना विकास पर विशेष ध्यान दिया गया।
  • इसके तहत प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (पीएमकेके) योजना की शुरुआत की गई थी। पीएमकेके के तहत संबंधित ज़िले के कौशल विकास अवसंरचना, प्रशिक्षण और रोज़गार प्राप्‍त करने के लिये एक आदर्श केंद्र के रूप में विकसित होने की क्षमता है।
  • यह कौशल विकास को गुणवत्‍ता के अनुरूप, आकांक्षापूर्ण और सतत् प्रक्रिया बनाने में सहायता प्रदान करेगा।
  • 22 दिसंबर, 2017 को 27 राज्‍यों के 484 ज़िलों व 406 संसदीय क्षेत्रों के लिये 527 प्रधानमंत्री कौशल केंद्र आवंटित किये गए थे।

राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार तथा अतुल्य भारत मोबाइल एप

विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार प्रदान करने के साथ ही अतुल्य भारत (Incredible India) मोबाइल एप एवं अतुल्य भारत पर्यटक सुविधा प्रदाता प्रमाणीकरण कार्यक्रम भी लॉन्च किये गए।

  • विश्व पर्यटन दिवस हर साल 27 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में हुई थी ।
  • विश्व पर्यटन दिवस- 2018 की थीम “पर्यटन और डिजिटल परिवर्तन” है।
  • पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय हर साल पर्यटन उद्योग के विभिन्न वर्गों में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार प्रदान करता है।
  • ये पुरस्कार राज्य सरकारों/संघशासित प्रदेशों, वर्गीकृत होटलों, पंजीकृत ट्रेवल एजेंट, टूर ऑपरेटर, व्यक्तियों तथा अन्य निजी संगठनों को संबंधित क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को आयोजित करने के लिये दिये जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष विभिन्न श्रेणियों में 77 पुरस्कार प्रदान किये गए हैं।
  • राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी।

सुविधा प्रदाता प्रमाणीकरण कार्यक्रम

  • विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर लॉन्च किया गया सुविधा प्रदाता प्रमाणीकरण कार्यक्रम ऑनलाइन लर्निंग का अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य सुविधा प्रदाताओं के माध्यम से सार्थक रूप में देश की ब्रांडिंग करना है।

अतुल्य भारत मोबाइल एप

  • अतुल्य भारत मोबाइल एप को टेक महिंद्रा द्वारा विकसित किया गया है जो भारत को एक संपूर्ण गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • इसमें प्राचीन धरोहर, रोमांच, संस्कृति, योग, स्वास्थ्य जैसे प्रमुख अनुभवों को शामिल किया गया है।
देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा

विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर इंदौर के देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डे तथा अहमदाबाद के सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को सबसे बेहतर हवाई अड्डे का राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया है।

देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा

  • इंदौर स्थित देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डे को पर्यटन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने वाले अन्य श्रेणी के हवाई अड्डों में सर्वश्रेष्ठ हवाई अड्डे का पुरस्कार प्रदान किया गया है।
  • एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रतिवर्ष 20 लाख यात्रियों के आवागमन वाले हवाई अड्डों की श्रेणी में भी देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डे को बेहतरीन क्षेत्रीय हवाई अड्डे का पुरस्कार मिला है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल हवाई अड्डा
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को देश में बड़े शहरों के हवाई अड्डों की श्रेणी में सबसे अच्छे हवाई अड्डे का पुरस्कार मिला।
  • अहमदाबाद के सरदार वल्लभ भाई पटेल हवाई अड्डे को देश का पहला विश्व धरोहर हवाई अड्डा होने का गौरव प्राप्त है।
  • हवाई अड्डे की भौगोलिक स्थिति इसे प्रमुख घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय गंतव्य स्थलों से जोड़ने में मदद करती है।
  • वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा परिषद ने इसे एशिया प्रशांत क्षेत्र के सबसे बेहतर हवाई अड्डे का पुरस्कार प्रदान किया था।
ट्राइब्स इंडिया तथा ‘पंच तंत्र संकलन’

हाल ही में जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन ट्राइब्स इंडिया तथा ट्राइफेड ने ‘पंच तंत्र संकलन’ जारी किया तथा विश्व चैंपियन मुक्केबाज़ मैरीकॉम को ट्राइब्स इंडिया का ब्रांड एम्बेसडर घोषित किया।

पंच तंत्र संकलन

  • पंच तंत्र संकलन में हथकरघा और दस्तकारी सहित जनजातियों द्वारा उत्पादित अन्य वस्तुओं की श्रेणी प्रस्तुत की गई है।
ट्राइफेड (TRIFED)
  • बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत राष्ट्रीय स्तर के शीर्षस्थ निकाय के रूप में वर्ष 1987 में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास ‘ट्राइफेड’ (Tribal Co-Operative Marketing Development Federation of India Ltd. - TRIFED) की स्थापना की गई।
  • बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2007 के अधिनियमित होने के बाद ट्राइफेड को इस अधिनियम में पंजीकृत कर इसे राष्ट्रीय सहकारी समिति के रूप में अधिनियम की दूसरी अनुसूची में अधिसूचित किया गया।
  • यह संगठन विपणन विकास और उनके कौशल तथा उत्पादों के निरंतर उन्नयन के माध्यम से देश के जनजातीय समुदायों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
  • इसके मुख्य कार्यों में क्षमता निर्माण, आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण प्रदान करना, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में ब्रांड निर्माण और सतत आधार पर विपणन के अवसरों के लिये विपणन संभावनाओं की खोज करना शामिल है।
  • ट्राइफेड अपनी खुद की दुकानों के माध्यम से जनजातीय उत्पादों का विपणन करता है जिसे ‘ट्राइब्स इंडिया’ कहा जाता है।

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