डेली न्यूज़ (28 Aug, 2018)



कंपनी अधिनियम, 2013 के दंड विषयक प्रावधानों की समीक्षा समिति के सुझाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बेहतर कॉर्पोरेट अनुपालन हेतु कॉर्पोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में गठित समिति ने कंपनी अधिनियम, 2013 के दंड विषयक प्रावधानों की समीक्षा समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट वित्त मंत्री को सौंपी है।

समिति के प्रमुख सुझाव

  • इस रिपोर्ट में उन सभी दंड विषयक प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण है, जिन्हें अपराधों की प्रकृति के आधार पर उस समय आठ श्रेणियों में बाँट दिया गया था।
  • समिति ने सिफारिश की है कि उक्त में से छह श्रेणियों के गंभीर अपराधों के लिये वर्तमान कठोर कानून जारी रहना चाहिये, जबकि दो श्रेणियों तकनीकी अथवा प्रक्रियात्मक खामियों के अंतर्गत आने वाले अपराधों का निर्णय आंतरिक प्रक्रिया द्वारा किया जाना चाहिये।
  • समिति के अनुसार इससे ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस और कॉरपोरेट के बेहतर अनुपालन को बढ़ावा देने के दोहरे मकसद को पूरा किया जा सकेगा।
  • इससे विशेष अदालतों में दायर मुकदमों की संख्या भी कम होगी, परिणामस्वरूप गंभीर अपराधों का तेज़ी से निपटारा होगा और गंभीर अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज हो सकेगा।
नोट: उल्लेखनीय है कि कॉरपोरेट धोखेबाजी से जुड़ा अनुच्छेद 447 उन मामलों पर लागू रहेगा, जहाँ धोखेबाजी पाई गई है।
  • राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) को न्यायाधिकरण के समक्ष मौजूद शमनीय अपराधों की संख्या में पर्याप्त कटौती के ज़रिये मुक्त करने की सिफारिश की गई है।
  • 81 शमनीय अपराधों में से 16 को विशेष अदालतों के अधिकार क्षेत्र से हटाकर आंतरिक ई-निर्णय के लिये अपराधों की नई श्रेणियाँ बनाने (ताकि अधिकृत निर्णय अधिकारी (कंपनियों के रजिस्ट्रार) चूककर्ता पर दंड लगा सकें) का सुझाव दिया गया है।
  • जबकि शेष 65 शमनीय अपराध अपने संभावित दुरूपयोग के कारण विशेष अदालतों के अधिकार क्षेत्र में ही रहेंगे।
  • इसी प्रकार गंभीर कॉरपोरेट अपराधों से जुड़े सभी अशमनीय अपराधों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने तथा फैसलों का ई-निर्णय एवं ई-प्रकाशन करने के लिये पारदर्शी ऑनलाइन मंच तैयार करने की सिफारिश की गई है।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में कॉरपोरेट शासन प्रणाली जैसे कि व्यवसाय शुरू करने की घोषणा, पंजीकृत कार्यालय का संरक्षण, जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा, पंजीकरण और शुल्क प्रबंधन, हितकारी स्वामित्व की घोषणा और स्वतंत्र निदेशकों की स्वतंत्रता से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को शामिल किया गया है।
  • समिति द्वारा प्रस्तुत सुझावों के अनुसार सार्वजनिक जमा के संबंध में विशेष रूप से सार्वजनिक हितों के दुरुपयोग और नुकसान को रोकने के लिये अधिनियम की धारा 76 के तहत सार्वजनिक जमा की परिभाषा से मुक्त लेनदेन के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदत्त की जानी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त एक बार जब कंपनी महत्त्वपूर्ण लाभकारी स्वामित्व से संबंधित धारा 90 (7) के तहत प्रतिबंध प्राप्त करती है, तो शेयरों के स्वामित्व की अनिश्चितता की स्थिति में (यदि सही मालिक इस तरह के प्रतिबंधों के एक वर्ष के भीतर स्वामित्व का दावा नहीं करता है) ऐसे शेयर को निवेशक शिक्षा और संरक्षण कोष में स्थानांतरित किया जाना चाहिये।
  • NCLT को डी-क्लोग/मुक्त करने के लिये समिति ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 441 के तहत अपराधों के परिसंचरण के लिये क्षेत्रीय निदेशक के क्षेत्राधिकार को बढ़ाने का सुझाव दिया है।
  • समिति द्वारा सृजन, सुधार और लेनदार के अधिकार से जुड़े दस्तावेजों को भरने के लिये समय-सीमा में भारी कटौती तथा जानकारी नहीं देने की स्थिति में कड़े दंड के प्रावधान सुझाव दिया गया है। 

तेलंगाना ने कृष्णा नदी जल विवाद को ट्रिब्यूनल को सौंपने की मांग की

चर्चा में क्यों?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री श्री के. चंद्रशेखर राव ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से अनुरोध किया है कि कृष्णा नदी के जल बँटवारे को लेकर विवाद को अधिकरण को सौंप दिया जाए ताकि राज्य के लोगों को न्याय मिल सके।

प्रमुख बिंदु:

  • तेलंगाना द्वारा अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार अनुरोध के बावज़ूद केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति बृजेश कुमार ट्रिब्यूनल की अवधि बढ़ा दी थी और आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुसार मामले को संदर्भित किया गया था।
  • चूँकि अधिनियम की धारा 89 का दायरा काफी सीमित था जो तेलंगाना के उचित मांगों के साथ न्याय करने में नहीं सक्षम होता। इसलिये यह अनिवार्य हो गया था कि मामले को अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के पास भेजा जाए।
  • एक अलग अनुरोध में मुख्यमंत्री ने कहा था कि सीता राम लिफ्ट सिंचाई परियोजना को एक नई परियोजना के बजाय गोदावरी नदी पर चल रही एक पुरानी परियोजना के रूप में माना जाए ताकि परियोजना को आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद समय पर पूरा किया जा सके।
  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त आंध्र प्रदेश की पूर्व सरकार ने परियोजना को ₹ 1,681 करोड़ की लागत वाली राजीव दुमुगुडेम लिफ्ट सिंचाई योजना और ₹ 1,824 करोड़ लागत की इंदिरासागर रूद्रमकोटा लिफ्ट सिंचाई योजना के रूप में मंजूरी दे दी।
  • तदनुसार इन दो परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया गया था और राज्य के विभाजन के समय क्रमशः ₹ 871.8 करोड़ और ₹ 899.36 करोड़ खर्च किए गए थे।
  • हालाँकि परियोजना को फिर से डिज़ाइन किया जाना था क्योंकि इंदिरासगर परियोजना का मुख्य कार्य शेष आंध्र प्रदेश में चला गया था और इसका सीमांकन कार्य वन्यजीव अभयारण्य के कोर क्षेत्र से होकर गुजर रहा था।
  • गौरतलब है कि अंतर्राज्यीय मुद्दों से बचने के लिये सरकार ने परियोजना के मुख्य कार्य को तेलंगाना के अधिकार क्षेत्र में हस्तांतरित कर दिया।

ड्रोन पॉलिसी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने ड्रोन या दूरस्थ रूप से संचालित विमान के वाणिज्यिक उपयोग हेतु अंतिम दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

ड्रोन के उपयोग
ड्रोन, मानव रहित विमानों को कहा जाता है। इनका उपयोग कई तरह के कार्यों के लिये किया जा सकता है, उदाहरण के तौर पर-

  • शहर के विभिन्न इलाकों का हवाई चित्रण करने में
  • घने वनों में किसी विशेष वस्तु या विशेष वन्य जीव की निगरानी में
  • बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा उपभोक्ता को सामान पहुँचाने में।
  • रेलमार्गों के सर्वेक्षण में।
  • आपदा राहत कार्यों में।

नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA)

  • नागर विमानन मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है।
  • DGCA नागर विमान के क्षेत्र में एक विनियामक निकाय है, जो मुख्यतः सुरक्षा संबंधी विषयों पर कार्यवाही करता है।
  • यह भारत के लिये/से/भारत के भीतर, विमान परिवहन सेवाओं के विनियमन और सिविल विमान विनियमन, विमान सुरक्षा तथा उड़न योग्यता मानकों के प्रवर्तन के लिये उत्तरदायी है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन के साथ सभी विनियामक कार्यों का समन्वय भी करता है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है, जबकि क्षेत्रीय कार्यालय भारत के विभिन्न भागों में हैं।
  • इसके 14 क्षेत्रीय उड़न योग्यता कार्यालय है जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरू, हैदराबाद, त्रिवेंद्रम, भोपाल, लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर, कानपुर, गुवाहाटी और पटियाला में स्थित है।

ड्रोन पॉलिसी संबंधी प्रमुख दिशा-निर्देश

  • यह एक ऐसा कदम है जो निजी ऑपरेटरों को कृषि, स्वास्थ्य और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में फोटोग्राफी, सुरक्षा, निगरानी इत्यादि की अनुमति देगा। 
  • हालाँकि नियामक ने ड्रोन द्वारा पेलोड की डिलीवरी को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है, इसका अर्थ यह है कि ड्रोन को ई-कॉमर्स कंपनियों या ऑनलाइन खाद्य प्लेटफार्मों द्वारा भोजन या सामान के वितरण के लिये उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि यह दिशा-निर्देश 1 दिसंबर,2018 से प्रभावी होंगे।

सीमाएँ

  • सभी नागरिक ड्रोन का संचालन केवल दिन के दौरान ही सीमित किया जा सकेगा। साथ ही, ड्रोन की उड़ान, दृष्टि की दृश्य रेखा के भीतर तक होगी, जो आम तौर पर 450 मीटर तक मानी गई है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन तथा केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के स्वामित्व वाले नैनो ड्रोन को छोड़कर, शेष सभी ड्रोनों के लिये पंजीकृत और विशिष्ट पहचान संख्या जारी की जाएगी।
  • यह दिशानिर्देश ड्रोन को कुछ प्रतिबंधित स्थानों जैसे हवाई अड्डे, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास, तट रेखा के नज़दीक, राज्य सचिवालय परिसरों के आसपास उड़ान भरने से प्रतिबंधित हैं।
  • इसके अलावा ड्रोन रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों, सैन्य प्रतिष्ठानों तथा राजधानी में विजय चौक क्षेत्र में संचालित नहीं किये जा सकते हैं।
  • सरकार ने देश भर में 23 साइटों की पहचान की है, जहाँ ड्रोन प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग का मूल्यांकन किया जाएगा।

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 28 अगस्त, 2018

प्रथम जैव-ईंधन उड़ान

  • जेट्रोफा बीज से निर्मित तेल और विमानन टरबाइन ईंधन के मिश्रण से प्रणोदित उड़ान देश की पहली जैव जेट ईंधन संचालित उड़ान होगी।
  • उल्लेखनीय है कि यह उड़ान सेवा दिल्ली से देहरादून के बीच संचालित हुई, जिसमें 43 मिनट का समय लगा। यह सेवा स्पाइस जेट (Bombardier Q-400) द्वारा मुहैया कराया गया। इस उड़ान में चालक दल के पाँच सदस्यों सहित कुल 25 व्यक्ति सवार थे।
  • विमान के ईंधन में जैव-ईंधन और विमानन टरबाइन ईंधन का अनुपात 25:75 था। ध्यातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, विमानन टरबाइन ईंधन के साथ 50% की दर से जैव ईंधन मिश्रित करने की अनुमति प्राप्त है।
  • उल्लेखनीय है कि देहरादून स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के साथ भारतीय पेट्रोलियम संस्थान को स्वदेशी रूप से ईंधन के निर्माण में आठ वर्ष का समय लग गया।
  • ध्यातव्य है कि 2008 में वर्जिन अटलांटिक द्वारा वैश्विक स्तर पर पहली टेस्ट उड़ान के बाद ही संस्थान ने जैव ईंधन पर अपना प्रयोग कार्य शुरू किया था।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शांति मिशन, 2018

  • SCO शांति मिशन अभ्यास, 2018 चेबरकुल (रूस) में औपचारिक तौर पर शुरू हुआ। यह अभ्यास शांति मिशन श्रृंखला में नवीनतम है। इस अभ्यास में सभी आठ सदस्य देशों की सैनिक टुकड़ियाँ भाग ले रही हैं।
  • यह अभ्यास संगठन देशों की सशस्त्र सेनाओं को बहुराष्ट्रीय और संयुक्त माहौल के शहरी परिदृश्य में आतंकवाद की कार्रवाइयों से निपटने के लिये प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करेगा।
  • अभ्यास के दायरे में पेशेवर बातचीत, अभ्यास और प्रक्रियाओं की पारस्परिक समझ, संयुक्त कमांड एवं नियंत्रण संरचनाओं की स्थापना तथा शहरी काउंटर आतंकवादी परिदृश्य में आतंकवादी खतरे को खत्म करना आदि शामिल है।
  • इस अभ्यास में 1700 सैन्यकर्मियों के साथ रूस सबसे बड़े भागीदार के रूप में है, इसके बाद 400 के सैन्यकर्मियों के साथ चीन और 200 के साथ भारत का स्थान है।
  • गौरतलब है कि इस अभ्यास के तहत पहली बार भारत और पाकिस्तान के सेनाओं ने संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास में भाग लिया।

शंघाई सहयोग संगठन

  • SCO 2001 में स्थापित एक अंतर सरकारी संगठन है। वर्तमान में इसमें 8 सदस्य हैं।
  • SCO का मुख्यालय: बीजिंग (चीन) में स्थित है।
  • SCO की उत्पत्ति 26 अप्रैल, 1996 को स्थापित शंघाई पाँच समूह के देशों चीन, कज़ाखस्तान, रूस, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान से मिलकर हुई थी।
  • 2001 में उज़्बेकिस्तान शंघाई पाँच में शामिल हो गया और इसे शंघाई सहयोग संगठन के रूप में पुनः नामित किया गया। वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान SCO में पूर्णकालिक सदस्यों के रूप में शामिल हुए हैं।

जी. सतीश रेड्डी बने DRDO के नए अध्यक्ष

  • प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जी. सतीश रेड्डी को DRDO का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
  • जी. सतीश रेड्डी को दो साल के लिये DRDO के अध्यक्ष पद हेतु नियुक्त किया गया है और इसी अवधि के दौरान वह डीओडीआरडी के सचिव भी रहेंगे।   
  • उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व इस पद पर एस. क्रिस्टोफर कार्यरत थे उनका कार्यकाल मई 2018 में पूरा हो गया था ।
  • जी. सतीश रेड्डी को भारत में मिसाइल प्रणाली के अनुसंधान और विकास के साथ अंतरिक्ष विज्ञान की कई तकनीकों के विकास में योगदान लिये जाना जाता है।
  • इन्हें मई 2015 में रक्षा मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त किया गया था।
  • मिसाइल और सामरिक प्रणाली (डीजी, एमएसएस) के महानिदेशक के रूप में, उन्होंने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स लेबोरेटरीज - एएसएल, डीआरडीएल और आरसीआई, आईटीआर, टीबीआरएल और अन्य तकनीकी सुविधाओं का नेतृत्व किया।

हिंद महासागर सम्मेलन

  • भारत की विदेश मंत्री ने वियतनाम की राजधानी हनोई में 27 अगस्त को हिंद महासागर सम्मेलन के तीसरे संस्करण में भाग लिया।
  • इस साल के सम्मेलन का विषय 'क्षेत्रीय वास्तुकला का निर्माण' था और इसमें 43 देशों ने हिस्सा लिया।
  • इससे पूर्व वर्ष 2016 और वर्ष 2017 का यह सम्मेलन क्रमशः सिंगापुर और श्रीलंका में आयोजित किया गया था।
  • हिंद महासागर सम्मेलन का आयोजन इंडिया फाउंडेशन द्वारा सिंगापुर, बांग्लादेश और श्रीलंका के भागीदारों के साथ मिलकर किया जाता है।
  • यह एक पहल है जिसके द्वारा एक ही छत के नीचे राज्य के नेताओं, राजनयिकों और नौकरशाहों को लाने का प्रयास किया जाता है, ताकि एक-दूसरे के बीच समझ को मज़बूत किया जा सके।

इंडिया फाउंडेशन 

  • इंडिया फाउंडेशन दिल्ली में स्थित एक स्वतंत्र थिंक टैंक है, जो भारतीय राजनीति और विदेश मामलों के मुद्दों, चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित है।