डेली न्यूज़ (28 May, 2019)



बथिनैलसियन (Bathynllaceans)

चर्चा में क्यों?

बथिनैलसियन (Bathynllaceans) क्रस्टेशियाई परिवार (Crustaceans Family) की सबसे छोटी इकाई है जो झरनों के किनारे स्थित सरंध्र/छिद्रयुक्त (Porous) स्थानों पर निवास करते हैं। ये आकार में 0.5 मिलीमीटर (0.5mm)  तक लंबे होते हैं और इन्हें नग्न आँखों से देखा जा सकता है। दुनिया भर में इसकी केवल आठ प्रजातियाँ हैं जिनमें से सात प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं।

  • पेन्ना नदी (River Penna) और वामशधारा नदी (River Vamshadhara) के कुछ तटों पर अंधाधुंध बालू खनन के कारण ये प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं।

वर्ष 2000 से किया जा रहा है सर्वेक्षण

  • इस प्रजाति को संरक्षित करने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में आंध्र प्रदेश और दक्षिण पूर्वी भारत में विशेष रूप से प्रभावित कृष्णा और गोदावरी नदियों के तटीय डेल्टा क्षेत्रों में नियमित सर्वेक्षण शुरू किया गया था।
  • अब तक 90 नए क्रस्टेशियाई वर्गों की  पहचान की जा चुकी है। इनमें से 74 नई प्रजातियों को औपचारिक रूप से वर्णित किया गया है। इनमें 34 बथिनैलसिया (Bathynellacea), 31 कॉपिपोडा  (Copepoda), 6 एम्फीपोडा (Amphipoda), 2 आइसोपोडा (Isopoda) और एक ऑस्ट्राकोडा (Ostracoda) प्रजाति शामिल है।

प्रजातियों की विलुप्ति का कारण

  • शोधकर्त्ताओं का मानना है कि राज्य में अंधाधुंध बालू खनन के कारण 31 में से 13 बाथिनलाइड प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पहुँच गई हैं।
  • गुफा पर्यटन और गुफा संबंधी अन्य गतिविधियों जैसे-उन गुफाओं में किसी खजाने/निधि की खोज करना, मनोरंजन के लिये कन्दरान्वेषण (Caving) करना आदि के कारण इन जीवों का पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है और ये प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गईं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार द्वारा नई प्रजातियों के संरक्षण के लिये किसी नियम या कानून का निर्माण नहीं किया गया है।

क्रस्टेशियाई जीवों के लिये हॉटस्पॉट

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा गोदावरी नदी के तट पर देवलेश्वरम्, कपिलेश्वरपुरम, रावुलपलेम और कृष्णा नदी के तट पर जग्गय्यापेटा (Jaggayyapetta) को इन सूक्ष्म क्रस्टेशियाई जीवों के लिये हॉटस्पॉट के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

आगे की राह

  • भू-विज्ञान विभाग एवं अन्य अधीनस्थ विभागों द्वारा गुफाओं का पता लगाने और उनकी सुरक्षा करने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये।
  • गुफा संरक्षण के अंतर्गत स्थानीय जानकारी, वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यटकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिये मार्गदर्शकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही इन प्रजातियों को संरक्षित करने के लिये नियम एवं कानून बनाए जाने चाहिये।

मलेशिया का अंतिम सुमात्रा राइनो

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मलेशिया के आखिरी नर सुमात्रा गैंडे/राइनो (Sumatran rhinoceros) की मृत्यु हो गई है, इस आखिरी सुमात्रा गैंडे की मृत्यु गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) प्रजातियों को बचाने के प्रयासों की विफलता को दर्शाती है।

प्रमुख बिंदु

  • टैम (Tam) नाम के इस गैंडे की उम्र लगभग 30 साल थी और वर्ष 2008 में इसकी खोज के बाद से ही इसे बोर्नियो द्वीप (Borneo Island) पर सबा राज्य (Sabah state) के वन्यजीव अभयारण्य में रखा गया था।
  • वर्ष 2015 में मलेशिया में गैंडों की सबसे छोटी प्रजाति सुमात्रा राइनो को वन से विलुप्त (Extinct in the Wild) घोषित किया गया था। वर्ष 2014 में पकड़ी गई इमान (Iman) नामक मादा राइनो अब देश में इस उप-प्रजाति की एकमात्र जीवित सदस्य है।
  • इससे पहले वर्ष 2017 में एक अन्य मादा राइनो, पुंटुंग (Puntung) की मृत्यु हो गई थी।
  • वन्यजीव विशेषज्ञों का अनुमान है कि दुनिया में लगभग 30 से 80 सुमात्रा गैंडे ही जीवित हैं, जिनमें से अधिकांशतः सुमात्रा द्वीप (इंडोनेशिया) और बोर्नियो पर पाए जाते हैं।
  • इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन (International Rhino Foundation) नामक संरक्षण समूह के अनुसार नर तथा मादा राइनो एक-दूसरे से अलगाव का कारण निवास स्थान का नुकसान और अवैध शिकार है, जिसका अर्थ यह है कि वे शायद ही कभी प्रजनन करते हैं और एक समय के बाद विलुप्त हो जाते हैं।
  • वर्ष 2011 से मलेशिया ने इन प्रजातियों को कैद में रखकर पात्रे निषेचन (In Vitro Fertilization-IVF) के माध्यम से इनकी संख्या में वृद्धि करने का प्रयास किया लेकिन मलेशिया का यह प्रयास सफल नहीं हुआ।

पात्रे निषेचन: पात्रे निषेचन (In Vitro Fertilization-IVF) निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया है जिसमें किसी मादा के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इस प्रकार का निषेचन शरीर के बाहर किसी अन्य पात्र में कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को मादा के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है।

इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन: 1980 के दशक के उत्तरार्ध में, संगठित, अवैध शिकार के कारण जिम्बाब्वे में ब्लैक राइनो की आबादी तेज़ी से से कम हो रही थी। वर्ष 1989 में कुछ व्यक्तियों और संस्थानों के एक समूह ने जिम्बाब्वे में ब्लैक राइनो के संरक्षण हेतु इंटरनेशनल ब्लैक राइनो फाउंडेशन की स्थापना की। इसके बाद वर्ष 1993 में, राइनो की सभी पाँच प्रजातियों के सामने बढ़ते संकट को देखते हुए, इंटरनेशनल ब्लैक राइनो फाउंडेशन को इंटरनेशनल राइनो फ़ाउंडेशन के रूप में विकसित किया गया और तथा इसके राइनो की सभी प्रजातियों के संरक्षण के लिये इसके मिशन में विस्तार किया गया।

सुमात्रा राइनो (Sumatran rhinoceros)

सुमात्रा राइनो जीवित बचे गैंडों में सबसे छोटे और दो सींग वाले एकमात्र एशियाई गैंडे हैं। ये लंबे बालों से ढके होते हैं।

स्थिति- गंभीर रूप से संकटापन्न (Critically Endangered)

आबादी- 80

वैज्ञानिक नाम- Dicerorhinus sumatrensis

ऊँचाई- 3.3 से 5 फीट तक

वज़न- 1320 से 2090 पौंड

लंबाई- 6.5 se 13 फीट तक

वास स्थान- सघन उच्चभूमि और तराई भूमि तथा उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय वन

sumatarn

बोर्निओ और सुमात्रा (BORNEO AND SUMATRA)

  • बोर्नियो और सुमात्रा के वन पृथ्वी पर पाए जाने वाले सर्वाधिक जैव-विविधता वाले स्थानों में से एक हैं, जहाँ काफी संख्या में अद्वितीय पौधे और जानवर पाए जाते हैं।
  • भूमध्य रेखा पर स्थित दक्षिण पूर्व एशियाई द्वीप बोर्नियो और सुमात्रा में विश्व के कुछ सबसे विविध वर्षा वन (Rain Forest) और दक्षिण पूर्व एशिया के अंतिम अक्षुण्ण वन (Intact Forests) पाए जाते हैं।
  • बोर्नियो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है, जो टेक्सास (Texas) की तुलना में एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है। सुमात्रा दुनिया का छठा सबसे बड़ा द्वीप है।
  • द्वीपों की उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate) और यहाँ पाए जाने वाले विविध इको क्षेत्रों (Ecoregions) के कारण यहाँ हज़ारों अद्वितीय प्रजातियाँ पाई जाती हैं एवं यहाँ विश्व के अंतिम शेष सुमात्रा बाघ (Sumatran Tigers), वनमानुष (Orangutans), पिग्मी हाथी (Pygmy Elephants) और सुमात्रा राइनो (Sumatran rhinoceros) पाए जाते हैं।

स्रोत: द हिंदू तथा wwf एवं International Rhino Foundation की वेबसाइट


PM के शपथ ग्रहण में शामिल होंगे बिम्सटेक प्रमुख

चर्चा में क्यों?

भारत ने 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिपरिषद के आयोजित होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation -BIMSTEC) और शंघाई सहयोग संगठन ( Shanghai Cooperation Organisation-SCO) के सदस्य देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान सहित दक्षेस देशों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था।

  • बिम्सटेक देशों के नेताओं के अलावा भारत ने किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव और मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्राविन्द जगन्नाथ को भी शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है, ये दोनों इस वर्ष 'प्रवासी भारतीय दिवस' पर मुख्य अतिथि भी थे। मॉरीशस के प्रधानमंत्री को वर्ष 2014 के शपथ ग्रहण समारोह में भी आमंत्रित किया गया था।
  • वर्तमान में किर्गिस्तान SCO का अध्यक्ष है, जो अगले महीने बिश्केक (Bishkek) में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भी करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सम्मेलन का हिस्सा होंगे।
  • भारत द्वारा शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक के सदस्य देशों के नेताओं को आमंत्रित किया जाना सरकार की 'पड़ोस पहले/नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood first policy) के अनुरूप है।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC)

  • दक्षेस/सार्क (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। सार्क की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को हुई थी और इसका मुख्यालय काठमांडू (नेपाल) में है। सार्क का प्रथम सम्मेलन ढाका में दिसंबर 1985 में हुआ था।
  • इस समूह में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं। वर्ष 2007 से पहले सार्क के सात सदस्य थे, अप्रैल 2007 में सार्क के 14वें शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य बन गया था।
  • प्रत्येक वर्ष 8 दिसंबर को सार्क दिवस मनाया जाता है। इसका संचालन संगठन के महासचिव द्वारा की जाती है, जिसकी नियुक्ति तीन साल के लिये देशों के वर्णमाला क्रम के अनुसार की जाती है।

उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा सार्क

  • दरअसल, पिछले 30 सालों से सार्क की जो स्थिति है, उससे लगता है कि यह संगठन मात्र औपचारिक बनकर रह गया है।
  • केवल सम्मेलनों का नियमित रूप से आयोजित होना किसी संस्था के जीवित रहने का प्रमाण नहीं है। जहाँ तक सार्क द्वारा ठोस कदम उठाने का सवाल है तो पाकिस्तान के असहयोग और राजनीतिक विभाजन की वज़ह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।
  • सदस्य देशों में कई बार आतंकवाद के खिलाफ जंग को लेकर भी सहमति बनी है लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर सार्क के सदस्य देश और भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने कभी साथ नहीं निभाया और यही सार्क की विफलता की एक बड़ी वज़ह बन गया।
  • पिछले कुछ सालों से दक्षेस लगभग निष्क्रिय हो गया है। संभवतः यही कारण रहा कि भारत सहित कई सदस्य देशों ने वर्ष 2016 में पाकिस्तान के इस्लामाबाद में होने वाले दक्षेस सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था।
  • जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस और सितंबर में उड़ी में हुए आतंकी हमले में 19 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने पाकिस्तान से अपने क्षेत्र में होने वाली आतंकी गतिविधियों के संबंध में कठोर कार्यवाही करने का दबाव बनाया। इसके बाद कई दक्षेस सदस्यों ने भी भारत के रुख का समर्थन किया और दक्षेस सम्मेलन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया।
  • नवंबर 2014 में काठमांडू में आयोजित दक्षेस सम्मेलन के बाद अभी तक इसका कोई सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ है। दक्षेस के लगभग निष्किय होने के बाद ही भारत ने बिम्सटेक समूह को मज़बूत बनाने पर बल दिया। यही कारण है कि सितंबर 2016 में गोवा में आयोजित ब्रिक्स-बिम्सटेक सम्मेलन में बिम्सटेक के नेताओं को आमंत्रित किया गया था।

सार्क की असफलता के कारण

भारत-पाकिस्तान संबंधों का बेहतर न हो पाना

  • भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक सहमति का अभाव और सैन्य संघर्ष के कारण दक्षिण-पूर्व क्षेत्रीय सहयोग कमज़ोर हुआ है।
  • विदित हो कि उड़ी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में होने वाले 19वें सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था।
  • बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी भारत के पक्ष में अपनी सहमति जताई और अंततः सम्मलेन निरस्त हो गया था।

क्षेत्रीय व्यापार की चिंताजनक स्थिति

  • सार्क देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार में न के बराबर प्रगति हुई है। विदित हो कि सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का 3.5% ही रहा है।
  • दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार संघ (South Asian Free Trade Association) के तहत की गई पहलें अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही हैं।

बेहतर कनेक्टिविटी का अभाव

  • इस क्षेत्र में व्यापार के मोर्चे पर यदि प्रगति नहीं हुई है तो इसका एक बड़ा कारण कनेक्टिविटी का बेहतर न हो पाना है।
  • बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता (BBIN Motor Vehicle Agreement) जैसी उप-क्षेत्रीय पहलें रुकी हुई हैं।
  • सार्क की वीज़ा प्राप्ति में राहत योजना (SAARC Visa Exemption Scheme) का लाभ केवल कुछ गणमान्य व्यक्तियों को ही प्राप्त है।
  • सार्क देशों में बुनियादी ढाँचे की खस्ता हालत के कारण भी बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित नहीं हो पाई है।

बिम्सटेक

  • बिम्सटेक यानी बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनामिक कोऑपरेशन (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation -BIMSTEC) दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग संगठन है जिसकी स्थापना 6 जून, 1997 को बैंकाक घोषणापत्र (Bangkok Declaration) से हुई थी।
  • आर्थिक और तकनीकी सहयोग के लिये बनाए गए इस संगठन में भारत समेत नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार और थाईलैंड शामिल हैं।
  • सात देशों का यह संगठन मूल रूप से एक सहयोगात्मक संगठन है जो व्यापार, ऊर्जा, पर्यटन, मत्स्यपालन, परिवहन और प्रौद्योगिकी को आधार बनाकर शुरू किया गया था लेकिन बाद में इसमें कृषि, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद, संस्कृति, जनसंपर्क, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को भी शामिल किया गया।
  • बिम्सटेक का मुख्यालय ढाका में बनाया गया है। बिम्सटेक के महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की लगभग 22 फीसदी आबादी बंगाल की खाड़ी के आस-पास स्थित इन सात देशों में रहती है जिनका संयुक्त जीडीपी (Gross Domestic Product-GDP) 2.7 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है।
  • बिम्सटेक के मुख्य उद्देश्यों में बंगाल की खाड़ी के किनारे दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग प्रदान करना शामिल है।

बिम्सटेक भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • बिम्सटेक के 7 देश बंगाल की खाड़ी के आसपास स्थित हैं जो एकसमान क्षेत्रीय एकता को दर्शाते हैं। भारत ने शुरू से ही इस संगठन को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई है।
  • बिम्सटेक दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच एक सेतु की तरह काम करता है। इस समूह में दो देश दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं। म्याँमार और थाईलैंड भारत को दक्षिण-पूर्वी इलाकों से जोड़ने के लिहाज़ से बेहद अहम हैं।
  • बिम्सटेक देशों के बीच मज़बूत संबंध भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को गति प्रदान कर सकता है। इससे भारत-म्याँमार के बीच परिवहन परियोजना और भारत-म्याँमार-थाईलैंड राजमार्ग परियोजना के विकास में भी तेज़ी आएगी।
  • भारत के अलावा बिम्सटेक के सदस्य देशों के लिये यह संगठन काफी महत्त्वपूर्ण है। बिम्सटेक के ज़रिये बांग्लादेश जहाँ बंगाल की खाड़ी में खुद को मात्र एक छोटे से देश से ज़्यादा महत्त्व के रूप में देखता है वहीं, श्रीलंका इसे दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने के अवसर के रूप में देखता है। इसके ज़रिये श्रीलंका हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में अपनी आर्थिक गतिविधि भी बढ़ाना चाहता है।
  • दूसरी तरफ, नेपाल और भूटान के लिये बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी से जुड़ने और अपनी भूमिगत भौगोलिक स्थिति से बचने की उम्मीद को आगे बढ़ाता है।
  • वहीं म्याँमार और थाईलैंड को इसके ज़रिये बंगाल की खाड़ी से जुड़ने और भारत के साथ व्यापार करने के नए अवसर मिलेंगे। बिम्सटेक के ज़रिये दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के बड़े पैमाने पर घुसपैठ को भी रोकने की कोशिश की जा सकती है।
    बिम्सटेक न केवल दक्षिण व दक्षिण-पूर्वी एशिया को जोड़ता है बल्कि हिमालय और बंगाल की खाड़ी की पारिस्थितिकी को भी शामिल करता है। एक-दूसरे से जुड़े साझा मूल्यों, इतिहासों और जीवन के तरीकों के चलते बिम्सटेक शांति और विकास के लिये एक समान स्थिति का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • भारत के लिये बिम्सटेक ‘पड़ोसी सबसे पहले और पूर्व की और देखो’ की हमारी विदेश नीति की प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिये एक स्वाभाविक मंच है।

क्या बिम्सटेक सार्क का विकल्प बनकर उभरा है?

  • बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक पुल की तरह काम करता है। इसके सात में से पाँच देश सार्क के सदस्य हैं, जबकि दो आसियान के सदस्य हैं। ऐसे में यह सार्क और आसियान देशों के बीच अंतर क्षेत्रीय सहयोग का भी एक मंच है।
  • बिम्सटेक के गठन के पहले भी आपसी सहयोग को लेकर एशिया में क्षेत्रीय संगठन अस्तित्व में रहे हैं जिसमें सार्क अहम है। पिछले वर्षों में बिम्सटेक अपने एजेंडा का मज़बूती से विस्तार कर रहा है। इस समूह ने प्राथमिकता के 14 क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें से 4 फोकस क्षेत्रों में भारत लीड कंट्री है, इसमें परिवहन और संचार, पर्यटन, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन के साथ आतंकवाद के खिलाफ रणनीति शामिल है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, सार्क की विफलता और भारत-पाकिस्तान के बीच आपसी तनाव के बीच बिम्सटेक का महत्त्व बढ़ रहा है जो आने वाले समय में क्षेत्रीय सहयोग का बड़ा मंच साबित हो सकता है।

स्रोत- द हिंदू


आसियान +3

चर्चा में क्यों?

चीन ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में आसियान+3 (जिसमें दस सदस्यीय आसियान के अलावा चीन, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं) के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका प्रभाव यह होगा कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) पर बातचीत कर रहे 16 देशों में से भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर सभी प्रस्तावित संधि में मिल हो जाएंगे।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)  

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है, के बीच होना है।
  • वस्तुतः आर.ई.सी.पी. वार्ता की औपचारिक शुरुआत 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में शुरू हो गई थी।
  • आर.ई.सी.पी. को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • आर.ई.सी.पी. के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 24 ट्रिलियन डॉलर और इसकी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 39 प्रतिशत है।
  • सदस्य देश : ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।
  • आसियान+3 (ASEAN+3) प्रस्ताव का उद्देश्य RCEP वार्ता में शामिल अन्य देशों द्वारा दी जा रही रियायतों के समान चीन को वरीयता (रियायतें देने के संदर्भ में) देने हेतु भारत पर दबाव डालना है।
  • इसके अलावा इस तरह का प्रस्ताव भारत के लिये एक संदेश है कि यदि भारत RCEP वार्ता में दृढ रहता है तो चीन भारत की अनदेखी कर सकता है।
  • इस पहल के परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी आरसीईपी वार्ता में भारत पर अधिक लचीली नीति को अपनाने पर दबाव डाल सकते हैं, क्योंकि ये दोनों देश भी प्रस्तावित समझौते से बाहर नहीं होना चाहेंगे।
  • इससे पहले जापान भी एक क्षेत्रीय ब्लॉक के लिये वार्ता में भारत की भागीदारी पर बल दे रहा था। जापान का मत यह था कि देश एक संतुलन कारक के रूप में कार्य कर सकता है और क्षेत्र विशेष पर अपने प्रभाव में वृद्धि करने के लिये चीन के प्रयासों को अवरुद्ध कर सकता है। हालाँकि यदि इस मामले में चीन जापान के साथ किसी तरह की साझेदारी करता है तो यह भारत के लिये मुश्किल हो सकता है।
  • आरसीईपी के सदस्यों ने प्रस्ताव पेश किया है कि 90% से अधिक व्यापारिक वस्तुओं पर शून्य शुल्क होना चाहिये, लेकिन भारत इस क्रम में शामिल होने में संकोच कर रहा है। संभवतः भारत की चिंता का कारण उसके घरेलू बाज़ार में चीनी वस्तुओं का प्रवेश है, जिसके चलते घरेलू उत्पादकों को उत्पादन में कटौती या उत्पादन को पूर्णतया बंद करने के लिये विवश होना पड़ता है।
  • यदि इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जाता है तो वैश्विक जीडीपी के 25% और विश्व व्यापार के 30% के साथ आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार ब्लॉक (Free Trade Bloc) बन जाएगा।

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS)

  • यह एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के 18 देशों के नेताओं द्वारा संचालित एक अनूठा मंच है जिसका गठन क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और समृद्धि के उद्देश्य से किया गया था।
  • इसे आम क्षेत्रीय चिंता वाले राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर सामरिक वार्ता और सहयोग के लिये एक मंच के रूप में विकसित किया गया है, जो क्षेत्रीय निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • ईस्ट एशिया ग्रुपिंग (East Asia Grouping) की अवधारणा पहली बार 1991 में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर-बिन-मोहम्मद द्वारा लाई गई थी, परंतु इसकी स्थापना 2005 में की गई।
  • EAS के सदस्य देशों में आसियान के 10 देशों (इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, म्याँमार, कंबोडिया, ब्रुनेई और लाओस) के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और यूएस शामिल हैं।
  • EAS के फ्रेमवर्क के अधीन क्षेत्रीय सहयोग के ये 6 प्राथमिक क्षेत्र आते हैं- पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे एवं विश्वव्यापी रोग, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन तथा आसियान कनेक्टिविटी।
  • भारत इन सभी 6 प्राथमिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन करता है।

आसियान (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN)

  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी।
  • वर्तमान में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके दस सदस्य देश हैं।
  • इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है।
  • भारत और आसियान अपने द्विपक्षीय व्यापार को $100 अरब के लक्ष्य तक ले जाने के लिये जूझ रहे हैं।
  • इसके लिये अन्य बातों के साथ-साथ स्थल, समुद्र और वायु कनेक्टिविटी में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि माल और सेवाओं के आवागमन की लागत में कटौती की जा सके।

आसियान के लक्ष्य एवं उद्देश्य

  • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना:
  • आसियान डिक्लेरेशन (Asean Declaration) के अनुसार, आसियान का लक्ष्य दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाने हेतु निरंतर प्रयास करना है।
  • पारस्परिक सहयोग एवं संधि को बढ़ावा देना:
  • आसियान देशों में न्याय और कानून के शासन के माध्यम से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना इसका एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
  • साथ ही आसियान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का पालन के प्रति भी दृढ़-प्रतिज्ञ है।
  • प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना:
  • आसियान देशों के बीच शैक्षणिक, पेशेवर, तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में प्रशिक्षण और अनुसंधान सुविधाओं के संबंध में परस्पर सहयोग को बढ़ावा देना आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • कृषि एवं उद्योग तथा संबंधित क्षेत्रों का विकास:
  • कृषि और उद्योगों की बेहतरी हेतु परस्पर संबंधों को मज़बूती देना तथा आपसी व्यापार को विस्तार देना आसियान के लक्ष्यों में प्रमुखता से शामिल है।
  • आसियान के लक्ष्यों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं, परिवहन और संचार सुविधाओं में सुधार तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार के प्रयास करना भी शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ अनुपूरक संबंध:
  • मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के उद्देश्यों के सापेक्ष साझा सहयोग को बढ़ावा देना भी आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन


एंटीबायोटिक दवाओं के कारण प्रदूषित होती नदियाँ

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक स्तर पर एंटीबायोटिक  (Antibiotic) दवाओं के कारण नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, न केवल प्रदूषित हो रही हैं बल्कि कहीं-कहीं तो प्रदूषण के खतरनाक स्तर को पार कर चुकी हैं। कुछ जलमार्गों (Waterways) में एंटीबायोटिक्स की सांद्रता निर्धारित सीमा, जिसे सुरक्षित सीमा माना जाता है, से लगभग 300 गुना अधिक हो चुकी हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • टेम्स/थेम्स नदी में पाँच एंटीबायोटिक दवाओं के प्रदूषण का प्रमाण मिला है जिसमें सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin) भी शामिल थी, इस दवाई का उपयोग त्वचा और  Urinary Tract के संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है।
  • 711 नदी स्थलों के परीक्षण में लगभग 307 में सबसे आम एंटीबायोटिक ट्राइमेथोप्रिम (Trimethoprim) का अंश पाया गया। बांग्लादेश, केन्या, घाना, पाकिस्तान और नाइजीरिया में सबसे अधिक दूषित नदियों के प्रमाण मिले हैं।
  • एशिया और अफ्रीका में नदियाँ प्रदूषण की खतरनाक सीमा रेखा को पार कर चुकी हैं। हालाँकि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के कुछ स्थलों पर भी प्रदूषण के उच्च स्तर के प्रमाण मिले थे जो इस बात का प्रमाण है एंटीबायोटिक प्रदूषण एक "वैश्विक समस्या" है।
  • नदियों में एंटीबायोटिक का यह प्रदूषण उन दवाइयों के माध्यम से पहुँच रहा है जो मानव और पशुओं द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट के रूप में नदियों में बहा दिया जाता है, साथ ही अपशिष्ट जल उपचार (Wastewater Treatmet) और औषधि निर्माण (Drug Manufacturing) के दौरान होने वाला रिसाव भी इस प्रदूषण का एक अहम कारण है।

चिंता के कारण

  • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि वर्ष 2050 तक 10 मिलियन लोगों की मृत्यु का कारण बन सकती है।
  • पर्यावरणीय जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न ऐसे बहुत-से जीन (gene) के विषय में आए दिन जानकारी मिलती है जो मानव रोगजनकों में प्रतिरोधक क्षमता रखते हैं।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial resistance) तब उत्पन्न होता है जब बैक्टीरिया और कवक जैसे रोगाणुओं को मारने हेतु निर्मित दवाईयों के विरुद्ध बैक्टीरिया एवं कवक अपनी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर लेते हैं।
  • ऐसे सूक्ष्मजीव, जो इन एंटीबायोटिक दवाईयों के विरुद्ध अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा लेते हैं, उन्हें कभी-कभी "सुपरबग्स" भी कहा जाता है। इन सुपरबग्स के परिणामस्वरूप, दवाएँ निष्प्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण शरीर में बने रहता हैं, जिससे दूसरों व्यक्तियों में यह संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
  • पिछले कुछ समय से प्रतिरोधक दवाओं का नया तंत्र उभर कर सामने आया हैं ज्सिका प्रसार वैश्विक स्तर पर हो रहा हैं। इससे आम संक्रामक बीमारियों से लड़ने की हमारी नैसैर्गिक क्षमता को खतरा बनता जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप लंबी बीमारी, विकलांगता और मृत्यु तक हो सकती है।
  • संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिये प्रभावी रोगाणुरोधी के बिना चिकित्सा प्रक्रियाएँ जैसे- अंग प्रत्यारोपण, कैंसर के उपचार (कीमोथेरेपी), मधुमेह प्रबंधन और प्रमुख सर्जरी (उदाहरण के लिये, सीज़ेरियन सेक्शन या हिप रिप्लेसमेंट) बहुत अधिक जोखिम हो जाती हैं।

इस समस्या का समाधान ढूँढना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है अपशिष्ट के निपटान, दूषित जल उपचार, अव्यवस्थित विनियमन प्रणाली और पहले से दूषित स्थलों की सफाई हेतु एक मज़बूत बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है। इसके लिये न केवल निवेश में वृद्धि करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये बल्कि जन सामान्य के बीच जागरूकता का प्रसार भी किया जाना चाहिये। बेहतर विनियमन एवं प्रबंधन के लिये सरकार को कुछ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भावी पीढ़ी को एक बेहतर भविष्य दिया जा सकें।


गुजरात में अग्नि सुरक्षा संबंधित प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल के दिनों में गुजरात के सूरत शहर में एक गैर-कानूनी बहुमंज़िला इमारत में भीषण आग लगी जिसमें 22 छात्रों की मृत्यु हो गई। इसी संदर्भ में गुजरात सरकार सभी बिल्डरों को तीन दिनों के भीतर सभी इमारतों में अग्निकाण्ड की रोकथाम के लिये पर्याप्त इंतज़ाम करने के आदेश दिये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 के दौरान भारत में आग की वज़ह से कुल 17,700 लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें 62% महिलाएँ थी।
  • देश में आग की वज़ह से होने वाली कुल मौतों में से 30% गुजरात और महाराष्ट्र में होती हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन दोनों राज्यों में शहरीकरण अत्यधिक है। ऐसा कहा जा सकता है कि आग से होने वाली मौतों और जनसंख्या घनत्व में सीधा संबंध है।
  • भारत जोखिम सर्वेक्षण 2018 (India Risk Surveys) के अनुसार, अग्निकांड की घटनाएँ व्यापार की निरंतरता और संचालन को बाधित करती है। आग की घटनाओं के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। विशेष रूप से भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में इस प्रकार की घटनाएँ अधिकांशतः घटित होती है।

भारत में आग की घटनाओं की वज़हें

  • अग्नि सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन और लापरवाही बरतने से ही ऐसे भीषण अग्निकांड होते हैं क्योंकि राष्ट्रीय भवन निर्माण कोड मे वर्णित प्रावधानों की अनदेखी करते हुए वाणिज्यिक भवनों और मल्टीप्लेक्स में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किये जा रहे हैं।
  • ऊँची इमारतों में आग लगने की संभावना अधिक होती है क्योंकि उनमें पर्याप्त अग्नि सुरक्षा संयंत्रों का अभाव होता है जिससे बचाव कार्य कठिन हो जाता है।
  • फायर सेफ्टी ऑडिट (Fire Safety Audit) का उद्देश्य किसी संगठन इमारतों में  अग्नि सुरक्षा मानकों का आंकलन और निरीक्षण करना है जो यह सुनिश्चित करता है कि निर्माण कार्य में भारत सरकार/राज्य सरकार/स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों का पूर्णतः पालन किया गया है या नहीं।
  • अग्नि शमन विभाग अपर्याप्त संसाधन और लापरवाही जैसे कारणों से अग्निकाण्ड से लोगों का बचाव करने में असमर्थ रहता है।
  • वर्ष 2011 के एक अध्ययन के आधार पर, फायर स्टेशनों की संख्या में 65% की कमी बताई गई थी। गृह मंत्रालय के अनुसार, 1 लाख से अधिक आबादी वाले 144 शहरों में, अग्निशमन के बुनियादी ढाँचे का अभाव है।

रोकथाम के उपाय

  • सरकार को अग्निशमन यंत्रों के आधुनिकीकरण हेतु आर्थिक सहायता देते हुए अग्नि शमन विभागों के कर्मियों को समय-समय पर नई तकनीकों द्वारा प्रशिक्षित करना चाहिये।
  • साल में कम-से-कम एक बार बिजली की फिटिंग और तारों की जाँच करते रहना चाहिये।
  • स्थानीय पार्षदों/निर्वाचित प्रतिनिधियों को साथ मिलकर इलाकों/मुहल्लों/स्कूलों में छह महीने में एक बार अग्निशमन कार्यशाला आयोजित करके नागरिकों को आग से बचाव उपायों के बारे में जागरूक करना चाहिये।
  • अग्निशमन विभाग को समय-समय पर सभी इमारतों में सुरक्षा उपकरणों का जायज़ा लेना चाहिये ताकि अवैध और अनियंत्रित रूप से निर्माण एवं सुरक्षा उपकरणों के अभाव में उचित कार्यवाही की जा सके।
  • सभी बहुमंजिला इमारतों एवं भीड़-भाड वाले इलाकों में प्रवेश और निकास स्थानों का उचित चयन करना एवं अग्निकांडों से निपटने की व्यवस्था करने के साथ ही पुराने व बेकार उपकरणों के स्थान पर नए उपकरण प्रयोग करना चाहिये तथा बिल्डिंग मालिकों को सुरक्षा उपकरणों व व्यवस्थाओं की जाँच करवा कर सरकार से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना चाहिये।

महिलाओं के विरूद्ध होने वाली हिंसा

चर्चा में क्यों            

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक दिन विश्व की 3 में से 1 महिला किसी न किसी प्रकार की शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होती है। महिलाओं पर इस प्रकार की हिंसा उनके अंतरंग मित्र, जीवन साथी या अज्ञात व्यक्ति द्वारा की जाती रही है। महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा मानव अधिकार के उल्लंघन की श्रेणी में आती है।

महत्त्वपूर्ण आँकड़ें

  • वैश्विक स्तर पर तकरीबन 38% महिलाओं की हत्या उनके अंतरंग साथी (Intimate Partner) द्वारा की जाती हैं। भारत जैसे देश में स्थिति इससे भी बदतर है क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में अंतरंग साथी द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाली हिंसा के आँकड़े 37.7% के साथ  विश्व में सबसे अधिक हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, हिंसा की स्थिति उच्च आय वाले देशों में 23.2%, विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्वी भूमध्य क्षेत्र के सदस्य देशों में 24.6%जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के सदस्य देशों में ये आँकड़े 37% तक है।
  • महिलाओं के साथ हिंसा, विशेष रूप से अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा / यौन हिंसा धीरे-धीरे एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है का रूप ले रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) और अन्य साझेदारों के  साथ मिलकर महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिये एक रूपरेखा तैयार की है जिसे सम्मान (Respect) कहा जाता है।
  • यौन हिंसा विशेषकर बाल्यावस्था में हुई यौन हिंसा महिलाओं को धूम्रपान, मदिरा एवं ड्रग्स सेवन और ऐसे यौन व्यवहार की ओर ले जा सकता है जो उनके लिये जोखिम पूर्ण हो सकता है।
  • 42% महिलाएँ अपने अंतरंग साथी के हिंसक व्यवहार के कारण किसी न किसी प्रकार की चोट का शिकार होती है।
  • जो महिलायें शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार हुई हैं उनमें यौन संक्रमण का खतरा उन महिलाओं से कहीं अधिक (1.5 times more) होता है जो आमतौर पर हिंसा की शिकार नहीं हुई होती हैं। किसी-किसी क्षेत्र में तो HIV जैसे संक्रमण फैलने का भी खतरा रहता है।
  • महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक रोगों जैसे- अवसाद (Depression), दुश्चिंता (Anxiety), पोस्ट ट्रौमैटिक डिसऑर्डर (Post Traumatic Disorder), अनिद्रा (Sleep Disorder), एवं आत्महत्या (Sucide Attempt) इत्यादि जैसी बहुत - सी प्रवृत्तियों को आमंत्रित कर सकती है। इसके अलावा गंभीर रोग जैसे- सरदर्द (Headaches), पीठ दर्द (Back Pain), पेट दर्द (Abdominal Pain) इत्यादि के साथ संपूर्ण स्वास्थ्य को दुष्प्रभावित कर सकती हैं।

महिलाओं पर हिंसा का प्रभाव

  • कुछ स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों के अनुसार, हिंसा एक महिला के शारीरिक, मानसिक, यौन और प्रजनन क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है, और कुछ मामलों में एचआईवी से ग्रसित होने के जोखिम को भी बढ़ा सकती हैं।  
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लैंगिक हिंसा का कारण पुरुषों में उचित शिक्षा का अभाव, कुपोषण से पीड़ित होना, बाल्यावस्था में माता को घरेलू हिंसा का शिकार होते देखना, शराब/मदिरा का सेवन, लिंग-विभेद जिसमें ऐसे वातावरण का निर्माण करना  जो महिलाओं के विरूद्ध हिंसा को एवं महिलाओं पर पुरूषों के अजेय अधिकार होने को सामाजिक मान्यता आदि को माना गया है।
  • वैसी महिलाओं पर हिंसा की संभावना और अधिक बढ़ जाती है जो अशिक्षित हैं, जिन्होनें अपनी माँ अथवा अन्य महिलाओं के साथ हिंसा होते देखी है, बाल्यावस्था में किसी प्रकार के शोषण का शिकार रही हैं, साथ ही हिंसा को सहन करती हैं करने की प्रवृत्ति, और पितृसत्ता का अनुपालन करने वाले पुरूषों के अधीनस्थ होने की मान्यता को स्वीकार करती हैं।
  • महिलाओं के साथ की जाने वाली हिंसा कई प्रकार की दीर्घ एवं अल्पकालीन समस्याओं को जन्म दे सकती हैं जो उनके लिये गंभीर पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक संकट को उत्पन्न कर सकती हैं।
  • यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिये कानूनी सुविधा, सशक्तिकरण हेतु परामर्श, साथ ही घर -घर  तक पहुँच बनाने (ताकि विश्व की प्रत्येक महिला को इसके विषय में जागरूक किया जा सके आदि) की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

निष्कर्ष

बदलते समय में महिलाओं ने स्वयं को अपनी पारंपरिक घरेलू भूमिका से बाहर शैक्षणिक, सामजिक, राजनितिक, आर्थिक, प्रबंधकीय आदि भूमिकाओं में स्थापित किया है। जो न केवल पितृसत्तात्मक विचारधारा को चुनौती देती है बल्कि समानता, सम्मान, उत्तरदायित्व, एवं साझेदारी जैसे पक्षों का भी प्रतिनिधित्व करती  हैं। ऐसे में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के बढ़ते आँकड़े जहाँ एक और समाज की संकीर्ण, अशिक्षित, असभ्य एवं अमानवीय सोच को प्रकट करते हैं वहीं अपने अधिकारों एवं शक्तियों से अनिभिज्ञ महिलाओं की स्थिति और इस संदर्भ में किये जाने वाले प्रयासों को भी दर्शाते हैं। महिलाओं के लिए नीति बनाने के क्रम में उक्त सभी पक्षों पर विचार किये जाने की आवश्यकता है ताकि भावी पीढ़ी के लिये एक सुरक्षित, सभ्य एवं हिंसामुक्त समाज सुनिश्चित किया जा सके।

और पढ़ें 

घर : महिलाओं के लिये सबसे असुरक्षित स्थान


सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों के लिए प्रकटीकरण मानदंड हुए सख्त

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड-सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों (Listed Debt Securities) में निवेशकों के हित को सुरक्षित रखने हेतु ऐसी प्रतिभूतियों को जारी करने वाली संस्थाओं के लिये प्रकटीकरण मानदंडों (Disclosure Norms) को सख्त कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • सेबी ने डिबेंचर न्यासियों (Debenture Trustee) को अपनी वेबसाइट पर ग्राहकों के साथ क्षतिपूर्ति की प्रकृति का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया है। इन खुलासों में न्यूनतम शुल्क और शुल्क को निर्धारित करने वाले कारकों के बारे में जानकारी देना भी शामिल है।
  • डिबेंचर न्यासियों को एक वित्त वर्ष के दौरान सभी निर्गमों के संबंध में डिबेंचर धारकों पर ब्याज या परिपक्वता अवधि पूरी होने पर देय राशि का विवरण अपनी अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा। यह विवरण वित्त वर्ष चालू होने के पाँच दिन के भीतर ही वेबसाइट पर उपलब्ध कराना होगा। साथ ही डिबेंचर न्यासियों को पूरे वित्त वर्ष के दौरान प्रबंधित नए निर्गम के बारे में भी सारा विवरण निर्गम बंद होने के पाँच दिन के भीतर उपलब्ध कराना आवश्यक है।
  • सेबी के अनुसार, निजी नियोजन वाले निर्गम के संबंध में भुगतान और सूचीबद्धता में चूक से जुड़ी जानकारियाँ जारीकर्त्ता और निवेशक के बीच हुए समझौते में शामिल होनी चाहिये।
  • निर्धारित तिथि पर ब्याज और परिपक्वता अवधि पर देय राशि के भुगतान में चूक की स्थिति में जारीकर्त्ता कंपनी को निर्धारित ब्याज दर (Coupon Rate) पर कम-से-कम 2% का अतिरिक्त ब्याज देना होगा। इसी प्रकार, आवंटन की तारीख से 20 दिनों से अधिक की देरी के साथ बॉण्ड को सूचीबद्ध करने पर जारीकर्त्ता कंपनी को ब्याज दर पर कम-से-कम एक प्रतिशत अतिरिक्त वार्षिक ब्याज निवेशक को देना होगा।

ऋणपत्र (Debenture)

  • ‘ऋणपत्र’ (Debenture) शब्द लैटिन भाषा के ‘डिबेयर’ शब्द से बना है जिसका तात्पर्य कर्ज़ लेने से है। “ऋण पत्र एक लिखित विपत्र है जो कंपनी की सामान्य मोहर के अंतर्गत एक ऋण का अभिज्ञान कराता है।” इसमें एक विशिष्ट अवधि के बाद या एक मध्यावधि पर या कंपनी के एक विकल्प पर परिशोधन और एक स्थिर दर पर ब्याज चुकौती (जोकि समान्यतः अर्द्धवार्षिक या वार्षिक तिथि पर देय होता है) के लिये एक अनुबंध समाहित होता है।

डिबेंचर न्यासी या ट्रस्टी  (Debenture Trustee)

  • डिबेंचर न्यासी या ट्रस्टी एक व्यक्ति या इकाई है कि जो कि अन्य पक्ष के लाभ के लिये डिबेंचर स्टॉक को अपने पास रखने का काम करता है। कंपनियों को डिबेंचर निर्गम के लिये डिबेंचर न्यासी या ट्रस्टी नियुक्त करना आवश्यक है। बैंक या वित्तीय कंपनियाँ न्यासी/ट्रस्टी के रूप में कार्य कर सकती हैं। जब कोई कंपनी पूंजी जुटाना चाहती है तो इस उद्देश्य को पूरा करने का एक तरीका यह है कि कर्ज़ चुकाने के दायित्व के साथ एक विशिष्ट ब्याज दर पर ऋण के रूप में स्टॉक जारी किया जाए। ट्रस्टी, ऋणपत्र/डिबेंचर जारी करने वाली कंपनी तथा ब्याज भुगतान प्राप्त करने वाले डिबेंचर धारक के बीच एक संपर्क के रूप में कार्य करता है।

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉपी: एक आनुवंशिक रोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food And Drug Administration) ने स्पाइनल मस्कुलर एट्रोपी (Spinal Muscular Atrophy) रोग के उपचार हेतु ज़ोल्गेंस्मा (Zolgensma) उपचार पद्धति को मंज़ूरी प्रदान की है।

प्रमुख बिंदु

  • यह दवा नोवर्टिस (Novertis) नामक कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है जो आनुवंशिक रूप से होने वाली बीमारी (Spinal Muscular Atrophy) का उपचार एक जीन थेरेपी द्वारा करेगी।
  • इस थेरेपी में बच्चों की मांसपेशियों को कमज़ोर कर उन्हें हिलने-डुलने और साँस   लेने में समस्या पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जाता है। अमेरिका में हर साल जन्म लेने वाले बच्चों में लगभग 400 बच्चे इस रोग से ग्रसित होते हैं।
  • अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (American Food and Drug Administration) ने इस उपचार पद्धति को 24 मई, 2019 को वैधानिक स्वीकृति प्रदान की है, जिसे “Zolgensma” के नाम से जाना जाता है।
  • नोवर्टिस ने कहा कि यदि उपचार के बाद भी बीमारी सही नहीं होती है तो यह बीमाकर्त्ताओं को पाँच वर्ष तक 425,000 डॉलर प्रतिवर्ष भुगतान करेगा और उपचार में आंशिक छूट भी देगा।
  • इससे पूर्व भी इस तरह की महँगी उपचार पद्धतियों को अमेरिकी सरकार द्वारा स्वीकृति मिल चुकी है, जैसे प्रत्येक चार महीने पर रोगी को Spinraza नामक दवा दी जाती है जिसमें पहले वर्ष उपचार शुल्क 7,50,000 अमेरिकी डॉलर और बाद में 3,50,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष शुल्क लिया जाता है।  
  • विशेषज्ञों के अनुसार, उपचार की लागत को न देखा जाए तो यह दवा रोगियों एवं संपूर्ण स्वास्थ्य जगत के लिये एक सकारात्मक परिणाम सभीत होगी।   

विकृत जीन की पहचान और निवारण

  • Spinal Muscular Atrophy रोग के लिये ज़िम्मेदार जीन शरीर में तंत्रिका तंत्र के सुचारु रूप से कार्य करने के लिये आवश्यक प्रोटीन के निर्माण को बाधित करता है। अन्ततः तंत्रिका तंत्र नष्ट हो जाता है और शिशु की मृत्यु हो जाती है।
  • जिन शिशुओं में इस बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं वे धीरे-धीरे अक्षम हो जाते हैं एवं उन्हें साँस लेने के लिये वेंटिलेटर की सहायता लेनी पड़ती है। कभी-कभी ऐसे बच्चे कुछ दशकों तक ही जीवित रह पाते हैं।
  • ज़ोल्गेन्स्मा (Zolegnsma) विकृत जीन की जगह एक स्वस्थ जीन को शरीर में प्रविष्ट करा कर तंत्रिका कोशिकाओं के लिये आवश्यक प्रोटीन का उत्पादन शुरू करता है जिससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य रूप से होने लगता है।
  • लेकिन इस उपचार पद्धति के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं जैसे- उल्टी आने के साथ ही यकृत को भी नुकसान पहुँचाना। अतः उपचार के बाद कुछ महीनों तक रोगी की बेहतर तरीके से देखभाल की जानी चाहिये, ताकि इस दवा के कारण होने वाले दुष्प्रभावों से  रोगी की देखभाल की जा सकें।

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (28 May)

  • सरकार देश की आधिकारिक सांख्यिकी प्रणाली में बड़ा परिवर्तन करने जा रही है। आँकड़े जारी करने वाली दो प्रमुख संस्थाएँ- केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) को मिलाकर नई संस्था बनाई जाएगी, जो सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत काम करेगी। इस नई संस्था का नाम राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) होगा, जिसकी अध्यक्षता सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) के सचिव करेंगे। आपको बता दें कि दोनों संस्थानों के विलय का फैसला वर्ष 2005 में ही ले लिया गया था, लेकिन अब तक इसे अमल में नहीं लाया गया था। विलय के बाद MOSPI के तीनों महानिदेशकों को नए सिरे से काम सौंपा जाएगा जो फिलहाल अर्थिक सांख्यिकी, सामाजिक सांख्यिकी और सर्वे के महानिदेशक पद पर कार्यरत हैं। नई ज़िम्मेदारियों के तहत तीनों महानिदेशक सांख्यिकी, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के साथ ही प्रशासनिक और नीतिगत कार्य संभालेंगे। सरकारी आँकड़ों में बार-बार फेरबदल और इनकी विश्वसनीयता पर संदेह होने की वज़ह से यह निर्णय लिया गया है।
  • भारतीय वायुसेना के AN-32 परिवहन विमान के बेड़े को 10% बायो-जेट ईंधन के मिश्रण वाले विमान ईंधन के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई है। इस परिवहन विमान बेड़े को हाल ही में जैव जेट ईंधन के इस्तेमाल के लिये प्रमाणन मिल गया। ‘सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्दिनेस एंड सर्टिफिकेशन (CEMILAC) ने रूस में बने विमानों के बेड़े के लिये जैव ईंधन के इस्तेमाल की मंज़ूरी दी। भारतीय वायुसेना ने पिछले एक साल के दौरान हरित विमान ईंधन को लेकर कई आकलन और परीक्षण किये और इन परीक्षणों में अंतर्राष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखा गया। ज्ञातव्य है कि CSIR-IIP प्रयोगशाला, देहरादून ने 2013 में पहली बार स्वदेशी बायो-जेट ईंधन का उत्पादन किया था।
  • भारतीय रेल ने ई-मुद्रा कार्ड लॉन्च किया है, जो कि वीज़ा कार्ड है। इस कार्ड का इस्तेमाल POS मशीन, ऑनलाइन ट्रांज़ेक्शन और ATM से धन निकालने के लिये किया जा सकता है। लेकिन इस कार्ड को लॉन्च करने का प्रमुख उद्देश्य रेल टिकट सेवाओं का सरलीकरण करना है। आम जनता की सुविधा के लिये रेल मंत्रालय द्वारा जारी इस कार्ड से यात्री टिकट खरीद सकते हैं तथा यह कार्ड अन्य प्रकार की खरीदारी के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। इस कार्ड के माध्यम से जनता को तत्काल रिफंड की सुविधा भी मिलेगी, लेकिन इसकी प्रक्रिया लागू होने में अभी कुछ समय लगेगा। अब तक करीब 10 हज़ार कार्ड जारी हो चुके हैं और इसका सबसे अधिक प्रयोग रेल टिकट खरीदने के लिये हुआ है। इसकी वर्चुअल सुविधा गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है, जहाँ से इसका एप डाउनलोड किया जा सकता है। इसके फिजिकल कार्ड का शुल्क 150 रुपए है।
  • सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के अध्यक्ष प्रेम सिंह तमांग ने सिक्किम के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, उन्हें पीएस गोले के नाम से भी जाना जाता है। राज्यपाल गंगा प्रसाद ने पलजोर स्टेडियम में उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। फिलहाल वह मौजूदा विधानसभा के सदस्य नहीं हैं क्योंकि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। प्रेम सिंह तमांग ने नेपाली भाषा में शपथ ली। सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की स्थापना 2013 में हुई थी और उसने 32 सदस्यीय सिक्किम विधानसभा में 17 सीटें जीती हैं, जबकि सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को 15 सीटों पर जीत मिली। ज्ञातव्य है कि सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट 24 से अधिक वर्षों तक सत्ता में बना रहा था और इस दौरान पवन कुमार चामलिंग राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।
  • केंद्र सरकार ने जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है। इसे जमात-उल-मुजाहिदीन इंडिया या जमात-उल-मुजाहिदीन हिंदुस्तान भी कहा जाता है। गृह मंत्रालय के अनुसार, इस संगठन ने आतंकी वारदातों को अंजाम दिया है, आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है और यह भारत में आतंकी गतिविधियों के लिये युवाओं में कट्टरपंथी भावनाएँ भरने और उनकी भर्ती करने का काम काम करता रहा है। गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर इस संगठन को एवं इसके सभी सहयोगी संगठनों को गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) कानून, 1967 की पहली अनुसूची में डाला है। इस अनुसूची में नाम शामिल किये जाने का मतलब है कि संगठन अब भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • भारतीय सेना के इन्फैंट्री स्कूल के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल शैलेश तिनेकर को दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMISS) का कमांडर नियुक्त किया गया है। दक्षिणी सूडान में चलाया जा रहा यह दूसरा सबसे बड़ा शांति अभियान है। लेफ्टिनेंट जनरल शैलेश तिनेकर रवांडा के लेफ्टिनेंट जनरल फ्रैंक कामांजी का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल हाल ही में समाप्त हुआ है। लेफ्टिनेंट जनरल शैलेश तिनेकर संयुक्त राष्ट्र मिशन के 16 हज़ार शांतिरक्षक सैनिकों की कमान संभालेंगे जिनमें से लगभग 2400 सैनिक भारतीय हैं। यह मिशन 2011 में शुरू किया गया था, जब सूडान से अलग होकर दक्षिण सूडान स्वतंत्र देश बना था। इस मिशन में काम करते हुए अब तक 67 शांति सैनिकों की मौत हो चुकी है। लेफ्टिनेंट जनरल शैलेश तिनेकर को दक्षिण सूडान की आज़ादी से पहले से ही सूडान में शांति मिशन में काम करने का अनुभव है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अंगोला सत्यापन मिशन-3 में भी काम किया है। उनकी प्रतिष्ठित सेवाओं के लिये उन्हें सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है।
  • लिबरल पार्टी के प्रत्याशी और इज़राइल में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत रह चुके डेव शर्मा ऑस्ट्रेलिया के संघीय चुनाव में सिडनी उपनगर में एक सीट जीतकर वहाँ की संसद में पहुँचने वाले पहले भारतवंशी सांसद बन गए हैं। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी केरिन फेल्प्स को पराजित कर ऑस्ट्रेलिया की संसद में अपने लिये जगह बनाई है। गौरतलब यह भी है कि छह महीने पहले हुए उपचुनाव में केरिन फेल्प्स ने डेव शर्मा को पराजित किया था। डेव शर्मा की यह जीत बताती है कि ऑस्ट्रेलिया के समाज में भारतीय मूल के लोग भी एक ताकत के रूप में उभर रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग 7 लाख है। डेव शर्मा 2013 से 2017 के दौरान इज़राइल में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत रहे।