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डेली न्यूज़

  • 27 Dec, 2019
  • 38 min read
भूगोल

सूर्य ग्रहण

प्रीलिम्स के लिये

ग्रहण, सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण

मेन्स के लिये

सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ

चर्चा में क्यों?

26 दिसंबर, 2019 को वलयाकार सूर्य ग्रहण की स्थिति बनी जिसे पृथ्वी के पूर्वी गोलार्द्ध में देखा गया। भारत में यह सूर्य ग्रहण केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में देखा गया।

सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse):

  • जब पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं।
  • यदि चंद्रमा एक निश्चित वृत्तीय कक्षा तथा समान कक्षीय समतल पर परिक्रमा कर रहा होता तो प्रत्येक अमावस्या को सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती।
  • किंतु चंद्रमा का कक्षीय समतल (Orbital Plane) पृथ्वी के कक्षीय समतल (Ecliptic Plane) से 5o का कोण बनाता है जिसके कारण चंद्रमा की परछाई पृथ्वी पर हमेशा नहीं पड़ती।
  • सूर्य ग्रहण तभी होता है जब चंद्रमा अमावस्या को पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है।

Solar-Eclipse

चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है, जबकि सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या की रात को होता है।

  • सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं- पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण तथा वलयाकार सूर्य ग्रहण।

पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse):

  • पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में हों।
  • इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह अँधेरा छा जाता है तथा जो व्यक्ति पूर्ण सूर्य ग्रहण को देख रहा होता है वह इस छाया क्षेत्र के केंद्र में स्थित होता है।
  • यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है।
  • ध्यातव्य है कि चंद्रमा, पृथ्वी के चारों ओर अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करता है इसलिये पृथ्वी से उसकी दूरी में परिवर्तन होता रहता है।
  • सूर्य की तुलना में चंद्रमा का आकार 400 गुना छोटा है लेकिन दोनों समान आकार के दिखाई देते हैं क्योंकि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पृथ्वी से सूर्य की दूरी की तुलना में 400 गुना कम होती है।

आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse):

  • जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढके तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse):

  • ग्रहण की यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है।
  • इसकी वजह से चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह ढक नहीं पाता और सूर्य एक अग्नि वलय (Ring of Fire) की भाँति प्रतीत होता है।

सूर्य ग्रहण के दौरान निर्मित ‘अग्नि वलय’ क्या है?

  • सभी प्रकार के सूर्य ग्रहण के दौरान अग्नि वलय नहीं दिखाई देता। इसका निर्माण केवल उस स्थिति में होता है जब सूर्य का केंद्र चंद्रमा से इस प्रकार ढक जाए कि सूर्य का केवल बाहरी किनारा ही दिखाई दे।
  • इस प्रकार दिखाई देने वाला सूर्य का बाहरी किनारा एक आग के छल्ले की भाँति प्रतीत होता है जिसे वलय कहते हैं।
  • वलयाकार सूर्य ग्रहण से निर्मित अग्नि वलय पृथ्वी पर स्थित सभी स्थानों से नहीं दिखाई देता। इसलिये अलग-अलग स्थानों पर यह आंशिक सूर्य ग्रहण की भाँति दिखाई देता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण कब बनता है?

  • सभी सूर्य ग्रहणों में अग्नि वलय का निर्माण नहीं होता है। वलयाकार सूर्य ग्रहण के निर्माण के लिये निम्नलिखित तीन परिस्थितियाँ अनिवार्य हैं-
  1. अमावस्या
  2. चंद्रमा की स्थिति चंद्र नोड (Lunar Nod) पर या उसके निकट हो ताकि सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में हों।
  3. चंद्रमा पृथ्वी से दूरस्थ बिंदु (Apogee) पर स्थित हो।
  • सूर्य ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा की दो परछाइयाँ बनती हैं जिसे छाया (Umbra) तथा उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं।
    • छाया: इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए छोटा होता जाता है तथा इस क्षेत्र में खड़े व्यक्ति को पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।
    • उपच्छाया: इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए बड़ा होता जाता है तथा इस क्षेत्र में खड़े व्यक्ति को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।
  • सूर्य की बाहरी परत कोरोना के अध्ययन के लिये वलयाकार सूर्य ग्रहण एक आदर्श स्थिति होती है क्योंकि चंद्रमा के बीच में आ जाने से सूर्य की तेज़ रोशनी अवरोधित हो जाती है तथा खगोलीय यंत्रों द्वारा इसका अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

सूर्य ग्रहण देखने में सावधानी:

  • एक पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य को नंगी आँखों से देखा जा सकता है किंतु आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण को बिना आवश्यक तकनीकी तथा यंत्रों के नहीं देखा जा सकता।
  • सूर्य ग्रहण को आँखों में बिना कोई उपकरण लगाए देखना खतरनाक साबित हो सकता है जिससे स्थायी अंधापन या रेटिना में जलन हो सकती है जिसे सोलर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) कहते हैं।
  • सूर्य से उत्सर्जित खतरनाक पराबैंगनी किरणें रेटिना में मौजूद उन कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं जिनका कार्य रेटिना की सूचनाएँ मस्तिष्क तक पहुँचाना होता है। इसके कारण अंधापन, वर्णांधता (Colour Blindness) तथा दृश्यता (Vision) नष्ट हो सकती है।

चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse):

जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है तब सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाता तथा चंद्रमा की सतह पर अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को चंद्र ग्रहण कहते हैं।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

संस्कृत शिलालेख

प्रीलिम्स के लिये

संस्कृत शिलालेख, सातवाहन वंश

मेन्स के लिये

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की पुरालेख शाखा ने दक्षिण भारत में अब तक के सबसे पुराने संस्कृत शिलालेख की खोज की है। इस शिलालेख से सप्तमातृका के बारे में जानकारी मिलती है।

Sanskrit-Inscription

सप्तमातृका (Saptamatrika):

  • सप्तमातृका हिंदू धर्म में सात देवियों का एक समूह है जिसमें शामिल हैं ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा, इंद्राणी।
  • किसी-किसी संप्रदाय में इन सातों देवियों को ‘महालक्ष्मी’ के साथ मिलाकर ‘अष्ट मातृ’ कहा जाता है।
  • सप्तमातृका की जानकारी कदंब ताम्र प्लेट, प्रारंभिक चालुक्य तथा पूर्वी चालुक्य ताम्र प्लेट से मिलती है।

चेब्रोलू शिलालेख विवरण:

  • यह सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले के चेब्रोलू गाँव में पाया गया है।
  • इस शिलालेख को स्थानीय भीमेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार और मरम्मत के दौरान प्राप्त किया गया है।
  • इस शिलालेख में संस्कृत और ब्राह्मी वर्ण हैं, इसे सातवाहन वंश के राजा विजय द्वारा 207 ईसवी में जारी किया गया था।

मत्स्य पुराण के अनुसार, राजा विजय सातवाहन वंश के 28वें राजा थे, इन्होंने 6 वर्षों तक शासन किया था।

  • इस शिलालेख में एक मंदिर तथा मंडप के निर्माण के बारे में वर्णन किया गया है।
  • इस अभिलेख में कार्तिक नामक व्यक्ति को ताम्ब्रापे नामक गाँव में, जो कि चेब्रोलू गाँव का प्राचीन नाम था सप्तमातृका मंदिर के पास प्रासाद (मंदिर) व मंडप बनाने का आदेश दिया गया है।
  • इस चेब्रोलू संस्कृत शिलालेख से पहले इक्ष्वाकु राजा एहवाल चंतामुला (Ehavala Chantamula) द्वारा चौथी सदी में जारी नागार्जुनकोंडा शिलालेख को दक्षिण भारत में सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख माना जाता था।

अन्य शिलालेख:

  • इस स्थान पर एक अन्य शिलालेख भी मिला है जो प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में है जिसे पहली सदी का बताया जा रहा है।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण

(Archaeological Survey of India- ASI)

  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण राष्‍ट्र की सांस्‍कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्‍ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्त्वीय स्‍थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है ।
  • इसके अतिरिक्‍त प्राचीन स्‍मारक तथा पुरातत्त्वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है।
  • यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

सातवाहन वंश:

  • सातवाहन वंश का शासन क्षेत्र मुख्यतः महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक था।
  • इस वंश की स्थापना सिमुक ने की थी तथा इसकी राजधानी महाराष्ट्र के प्रतिष्ठान/पैठन में थी।
  • सातवाहन शासक ‘हाल’ एक बड़ा कवि था इसने प्राकृत भाषा में ‘गाथासप्तशती’ की रचना की है।
  • सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी थी।
  • सातवाहन काल में व्यापार व्यवसाय में चांदी एवं तांबे के सिक्कों का प्रयोग होता था जिसे ‘काषार्पण’ कहा जाता था।
  • भड़ौच सातवाहन वंश का प्रमुख बंदरगाह एवं व्यापारिक केंद्र था।

इक्ष्वाकु वंश:

  • भारतीय प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में सातवाहनों के अवशेषों पर कृष्णा-गुंटूर क्षेत्र में इक्ष्वाकुओं का उदय हुआ।
  • इक्ष्वाकुओं ने कृष्णा-गुंटूर क्षेत्र में भूमि-अनुदान की प्रथा चलाई। इस क्षेत्र में अनेक ताम्रपत्र सनदें पाई गई हैं।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

उच्च शिक्षा में सुधार के लिये नवाचार

प्रीलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

मेन्स के लिये:

भारतीय उच्च शिक्षा में सुधार संबंधी नवाचार तथा उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा उच्च शिक्षा में मूल्यों और नैतिकता के संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल करते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पाँच नए कार्यक्रम संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • ये पाँच दस्तावेज़ उच्च शिक्षा में मूल्यांकन सुधार, पर्यावरण के अनुकूल और सतत् विश्वविद्यालय परिसरों का निर्माण, मानवीय मूल्यों एवं पेशेवर नैतिकता, शिक्षक प्रेरण तथा शैक्षिक शोध में सुधार को समाहित करते हैं।
  • ये दिशा-निर्देश उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों में महत्त्वपूर्ण कौशल, ज्ञान और नैतिकता विकसित करने में सहायता करेंगे।

UGC द्वारा उच्च शिक्षा में सुधार संबंधी निम्नलिखित पाँच नवाचारों की चर्चा की गई है-

मूल्य प्रवाह

(MulyaPravah):

  • उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मानवीय मूल्यों की संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से UGC ने मूल्य प्रवाह नाम से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा तैयार दिशा-निर्देशों में छात्र संघों को वैध तरीके से कानूनी मुद्दों को उठाने तथा सही समय पर निर्णय लेने के लिये प्रशासन का समर्थन करने की सलाह दी गई है।
  • इन दिशा-निर्देशों के माध्यम से छात्रों को अपने समग्र व्यवहार में विनम्रता का पालन करने के लिये कहा गया है।
  • छात्रों को अच्छी सेहत बनाए रखने तथा किसी भी तरह के नशे से परहेज करने के लिये कहा गया है।
  • उच्च शिक्षण संस्थानों में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, समुदाय, जाति, धर्म या क्षेत्र से संबंधित छात्रों के बीच सामंजस्य बनाए रखने से संबंधी निर्देश भी दिये गए हैं।
  • ये दिशा-निर्देश ऐसे समय में आए हैं, जब विभिन्न विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है तथा राजनीतिक मुद्दों में छात्रों की भागीदारी जाँच के दायरे में आ गई है।
  • दिशा-निर्देशों की यह रूपरेखा उच्च शिक्षा संस्थानों में ऐसी चर्चा और प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिये प्रोत्साहित करती है जो शैक्षिक संस्थानों में मानवीय मूल्यों और नैतिकता की संस्कृति को समाहित करने में सहायता करती है।

सतत्

(SATAT):

  • उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण के अनुकूल तथा टिकाऊ परिसर के विकास के लिये सतत् कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।
  • यह कार्यक्रम विश्वविद्यालयों को अपने परिसर की पर्यावरणीय गुणवत्ता को बढ़ाने और अपने भविष्य में सतत् और हरित तरीकों को अपनाने के लिये चिंतनशील नीतियों एवं प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है।

गुरु-दक्षता

(Guru-Dakshta):

  • यह कार्यक्रम उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक प्रेरण कार्यक्रम (Faculty Induction Programme) के तौर पर प्रारंभ किया गया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य शिक्षकों में सीखने से संबंधित दृष्टिकोण विकसित करने के लिये उन्हें जागरूक करना, शिक्षण के लिये नए दृष्टिकोण अपनाना तथा उच्च शिक्षा में नए मूल्यांकन उपकरणों को अपनाना है।

UGC-केयर (कंसोर्टियम फॉर एकेडमिक एंड रिसर्च एथिक्स):

(Consortium for Academic and Research Ethics-CARE):

  • UGC- CARE कार्यक्रम 28 नवंबर 2018 को UGC की एक अधिसूचना द्वारा प्रारंभ किया गया एक कार्यक्रम है, जिसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
    • उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध गुणवत्ता और प्रकाशन की नैतिकता को बढ़ावा देना।
    • प्रतिष्ठित जर्नल्स (Journals) में उच्च गुणवत्ता वाले प्रकाशनों को बढ़ावा देना ताकि उच्च वैश्विक रैंक प्राप्त करने में सहायता मिल सके।
    • अच्छी गुणवत्ता वाले जर्नल्स की पहचान के लिये दृष्टिकोण और पद्धति विकसित करना।
    • संदिग्ध और उप-मानक के जर्नल्स का प्रकाशन रोकना, क्योंकि ये भारतीय उच्च शिक्षा की प्रतिकूल छवि प्रतिबिंबित करते हैं तथा उसकी छवि को धूमिल करते हैं।
    • सभी शैक्षणिक उद्देश्यों के लिये गुणवत्तापूर्ण जर्नल्स की सूची जारी करना।

भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में मूल्यांकन सुधार कार्यक्रम

(Evaluation Reforms in Higher Educational Institutions in India):

  • इस कार्यक्रम के तहत छात्रों के मूल्यांकन को अधिक सार्थक और प्रभावी बनाया जाएगा तथा मूल्यांकन को ‘लर्निंग आउटकम’ (Learning Outcomes) से जोड़ा जाएगा।
  • छात्रों का उचित मूल्यांकन देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

UGC द्वारा उठाए गए इन क़दमों से शिक्षण संस्थाओं की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा उनके अनुसंधान, शिक्षण और सीखने के तरीकों में भी सुधार आएगा। इन नवाचारों के माध्यम से संस्थानों में अनुसंधान सहयोग को बढ़ाने के लिये ज्ञान एवं सूचनाओं को साझा करने की सुविधा भी प्राप्त होगी।

स्रोत- पीआईबी, द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तमिल शरणार्थी समस्या

मेन्स के लिये

भारत में शरणार्थी समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act) में भारत में रह रहे तमिल शरणार्थियों को शामिल न किये जाने के कारण तमिलनाडु में इसका विरोध किया जा रहा है।

तमिल शरणार्थी:

  • तमिलनाडु में लगभग 1 लाख से अधिक तमिल शरणार्थी रह रहे हैं जो कि श्रीलंका में हुए नृजातीय संघर्ष के बाद भारत आए थे। इनमें से अधिकांश हिंदू हैं।
  • श्रीलंकाई तमिल मूलतः भारतीय मूल के तमिल हैं जिनके पूर्वज एक शताब्दी पहले श्रीलंका के चाय बागानों में काम करने गए थे।
  • भारत में आने वाले तमिल शरणार्थियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहले वो जो वर्ष 1983 से पहले भारत आए तथा दूसरे वो जो श्रीलंका में हुए हिंसक तमिल विरोधी अलगाववादी आंदोलन के बाद आए थे।
  • वर्ष 1964 में भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री तथा तत्कालीन श्रीलंकाई प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनाइके के बीच समझौता हुआ।
  • इसके तहत फैसला लिया गया था कि श्रीलंका में रह रहे भारतीय मूल के लगभग 9,75,000 लोगों, जिन्हें किसी देश की नागरिकता नहीं प्राप्त थी, को उनके पसंद के देश में नागरिकता दी जाए।
  • श्रीलंका से आए लगभग 4.6 लाख तमिल लोगों को भारत में आधिकारिक तौर पर नागरिकता दी गई।
  • अतः जो लोग वर्ष 1982 तक भारत आ गए थे उनमें से अधिकांश को वैधानिक तौर पर निवास की सुविधा दी गई किंतु इस समझौते के तहत सभी को नागरिकता नहीं दी जा सकी।
  • वर्ष 1983 में तमिलों के विरुद्ध हुई नृजातीय हिंसा के बाद श्रीलंका से भारी संख्या में लोग शरणार्थी के रूप में भारत आए। इन शरणार्थियों की संख्या म्यांमार, वियतनाम से आने वाले शरणार्थियों से बहुत अधिक थी।
  • इस दौरान श्रीलंका से आए शरणार्थियों को भारत के तमिलनाडु राज्य में विभिन्न स्थानों पर बने कैंपों में रखा गया।
  • वर्ष 2009 में लिट्टे (Liberation Tigers of Tamil Eelam- LTTE) के अंत होने तक तमिल शरणार्थियों का श्रीलंका से भारत आना जारी रहा।

तमिल शरणार्थियों की वर्तमान स्थिति:

  • तमिलनाडु के 107 शरणार्थी शिविरों में लगभग 19,000 परिवार हैं जिनमें 60,000 सदस्य रहते हैं।
  • कैंपों में रह रहे इन शरणार्थियों को सरकार की तरफ से आर्थिक व अन्य आवश्यक सहायता प्रदान की जाती है किंतु उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं होती है।
  • इसके अलावा लगभग 30,000 तमिल शरणार्थी कैंपों के बाहर रहते हैं किंतु उन्हें एक निश्चित अवधि के बाद नजदीकी पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट करना होता है।
  • वर्ष 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद तमिल शरणार्थियों पर अत्यधिक नियंत्रण लगा दिया गया।

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की मांग:

  • भारत में रह रहे श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की मांग है कि वे भारतीय नागरिक घोषित किये जाएँ क्योंकि उन्हें इस बात का भय है कि यदि वे वापस श्रीलंका लौटते हैं तो उन्हें श्रीलंका सरकार और सिंहल बौद्ध संप्रदाय के बहुसंख्यक लोगों की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ेगा।
  • भारतीय मूल के अधिकांश श्रीलंकाई तमिलों की पैतृक संपत्ति, रिश्तेदार आदि भारत में मौजूद हैं। इनमें से जो श्रीलंका में हुए नृजातीय हिंसा के पहले भारत आ गए थे उनको शास्त्री-भंडारनाइके समझौते (Shastri-Bandaranaike Pact) के तहत नागरिकता प्राप्त हो गयी थी। अतः बाद में आए शरणार्थियों का कहना है कि उन्हें भी भारतीय नागरिकता दी जाए।
  • इसके अलावा कैंपों में रह रहे लोगों की श्रीलंका की संपत्ति तथा घर सभी नष्ट हो चुके हैं। इस स्थिति में उन्हें वहाँ जाने पर नए सिरे से जीवन शुरू करना पड़ेगा जिसके लिये वे तैयार नहीं हैं।
  • जब नागरिकता संशोधन अधिनियम में तमिल शरणार्थियों के लिये कोई प्रावधान नहीं किया गया तो इस स्थिति में उनकी तरफ से कुछ राजनीतिक दलों तथा समाजसेवियों ने इसका विरोध करना प्रारंभ किया।

आगे की राह:

  • तमिल शरणार्थियों के मामले को हल करने के लिये आवश्यक है कि भारत तथा श्रीलंका दोनों के मध्य आपसी बातचीत के माध्यम से कोई सर्वमान्य हल निकाला जाए।
  • इसके अलावा वर्ष 1964 के शास्त्री-भंडारनाइके समझौते के तहत तमिल शरणार्थियों को दोबारा नागरिकता देने का प्रावधान किया जाना चाहिये। ताकि वे शरणार्थी कैंपों से बाहर निकलकर सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

दुर्लभ मृदा तत्त्व

प्रीलिम्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE)

मेन्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व की उपयोगिता और महत्व

चर्चा में क्यों ?

पिछले दिनों चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध के दौरान चीन ने अमेरिका (USA) को होने वाले कई दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके बाद अब अमेरिका की सेना नें दुर्लभ मृदा तत्त्वों (Rare Earth Element -REE) के प्रसंस्करण की तकनीकी में निवेश की इच्छा जाहिर की है।

प्रमुख बिंदु:

  • चीन के साथ व्यापार युद्ध से सीख लेते हए संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना ने दुर्लभ मृदा तत्त्वों की स्वदेशी आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दुर्लभ मृदा तत्त्वों के प्रसंस्करण की तकनीकी में निवेश की इच्छा जाहिर की है।
  • यह अमेरिकी सेना द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के ‘मैनहट्टन परियोजना’ (Manhattan Project) के बाद व्यापारिक स्तर पर दुर्लभ मृदा तत्त्वों के प्रसंस्करण में किया गया पहला निवेश होगा।

मैनहट्टन परियोजना/प्रोजेक्ट द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा यूनाइटेड किंगडम और कनाडा के सहयोग से चलाया गया एक शोध और निर्माण कार्यक्रम था, जिसके अंतर्गत प्रथम परमाणु बम का निर्माण किया गया।

  • इस कार्यक्रम के लिये अमेरिकी सेना को 1950 के ‘रक्षा उत्पादन अधिनियम’ के तहत धन उपलब्ध कराया जाएगा।
  • अनुमानतः शुरुआत में छोटे स्तर पर इस संयंत्र को लगाने में 5 से 20 मिलियन डॉलर तक का खर्च आएगा जबकि संयंत्र को पूर्ण रूप से संचालित करने में 100 मिलियन डॉलर तक का खर्च आ सकता है।

क्या हैं दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE)?

  • REE 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है जो पृथ्वी की ऊपरी सतह (क्रस्ट) में पाए जाते हैं।
  • REE आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड (Z-57 से71) और स्कैंडियम (Scandium) तथा Ytterbium के नाम से जाने जाते हैं।

REE

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व अपने नाम के विपरीत पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं परंतु इनके प्रसंस्करण की प्रकिया बहुत ही जटिल है।
    • दुर्लभ मृदा तत्त्वों में अन्य धातुओं की अपेक्षा बेहतर उत्प्रेरक, धातुकर्म, परमाणु, विद्युत और चुंबकीय गुण होते हैं।

REE की कुछ अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व चाँदी के रंग (Silver), सिल्वर व्हाइट या भूरे (Grey) रंग के होते हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व चमकीली लेकिन हवा में आसानी से धूमिल नज़र आने वाली धातुएँ हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों में उच्च विद्युत चालकता होती है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व कई समान गुण साझा करते हैं, जिसके कारण इन्हें एक-दूसरे से अलग करना या इनकी अलग-अलग पहचान करना बहुत ही कठिन है।
  • इनकी घुलनशीलता तथा जटिल संरचना में बहुत ही सूक्ष्म अंतर होता है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व प्राकृतिक रूप से अन्य खनिजों में एक साथ घुले हुए होते हैं। (जैसे Monazite एक मिश्रित दुर्लभ मृदा फॉस्फेट है)

दुर्लभ मृदा तत्त्वों की उपयोगिता: REE के विशिष्ट गुणों के कारण इसका इस्तेमाल स्मार्ट फोन, HD डिस्प्ले, इलेक्ट्रिक कार, वायुयान के महत्त्वपूर्ण उपकरण, परमाणु हथियार और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीकी विकास में होता है।

Rare-Earth

  • वर्तमान समय में REE के बाज़ार में चीन की हिस्सेदारी लगभग 94% है।
  • चीन में सर्वाधिक (83 %) दुर्लभ मृदा तत्त्व बेस्टनासाइट भंडार (Bastnasite deposits) के रूप में इनर मंगोलिया (Inner Mongoliya) प्रांत में पाया जाता है।

भारत में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का खनन एवं प्रसंस्करण-

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का बाज़ार 90 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का है।
  • परमाणु खनिज अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (Atomic Minerals Directorate for Exploration and Research- AMD) के अनुसार, भारत में 11.93 मिलियन टन मोनाज़ाइट (Monazite) के स्रोत खोजे गए हैं।

AMD

  • भारत में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board-AERB) की निगरानी में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का सीमित खनन किया जाता है।
  • वर्तमान में भारत सरकार के उपक्रम Erstwhile Indian Rare Earths Limited द्वारा केरल के चवारा (Chavara) और तमिलनाडु के मनावलाकुरीची (Manavalakurichi) में समुद्रतट से REE का खनन और ओडिशा के छतरपुर में ‘ओडिशा सैंड कॉम्प्लेक्स’ (OSCOM) पर इसके पृथक्करण का काम होता है।
  • केरल सरकार के सहयोग से ‘केरल खनिज एवं धातु लिमिटेड’, ‘विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (Vikram Sarabhai Space Centre-VSSC) और ‘रक्षा धातुकर्म अनुसंधान प्रयोगशाला’ (Defence Metallurgical Research Laboratory- DMRL) के साथ मिलकर इस क्षेत्र में काम करता है।
  • वर्ष 2015 में राज्यसभा में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2009-2014 के बीच ‘इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड’ (Indian Rare Earth Limited-IREL) द्वारा 310.145 मीट्रिक टन REE की खुदाई की गई और इसी दौरान लगभग 285.90 मीट्रिक टन REE की बिक्री हुई।

अलग-अलग राज्यों में REE के भंडार (सितंबर 2013 तक)-

REE-State

दुर्लभ मृदा तत्त्वों के खनन के दुस्प्रभाव:

यद्यपि दुर्लभ मृदा तत्त्व अंतरिक्ष तथा अन्य तकनीकी विकास के लिये बहुत ही आवश्यक हैं परंतु इनके खनन के अनेक दुष्प्रभाव भी हैं-

  • प्राकृतिक तटों और उन पर आश्रित पारिस्थितिकी प्रणालियों की क्षति।
  • कई महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ प्रजातियों के वास स्थान इस प्रक्रिया में नष्ट हो जाते हैं।
  • तटों के प्राकृतिक तंत्र की हानि जिससे मृदाक्षरण जैसी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों के खनन तथा प्रसंस्करण से बड़ी मात्रा में जल प्रदूषण होता है तथा Monazite जैसे तत्त्वों में यूरेनियम (0.4%) की उपस्थिति से इसके खतरे और भी बढ़ जाते हैं।

आगे की राह:

दुर्लभ मृदा तत्त्व आज के समय में तकनीकी विकास, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि क्षेत्रों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही इसके लिये किसी भी अन्य देश पर निर्भर होना हमें सामरिक रूप से कमज़ोर बनाता है। परंतु इस प्रतिस्पर्द्धा में निकट लाभ के लिये प्रकृति को अनदेखा करना एक बड़ी भूल होगी। अतः यह आवश्यक है कि REE के प्रसंस्करण के लिये प्रकृति अनुकूल माध्यमों की खोज की जाए, जिससे विकास के कार्यों के साथ-साथ प्रकृति की कम से कम क्षति हो।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 27 दिसंबर, 2019

मिग-27

करगिल युद्ध में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिये पहचाने जाने वाला लड़ाकू विमान मिग-27 भारतीय वायुसेना से रिटायर हो गया है। गौरतलब है कि मिग-27 ने लगभग 38 वर्षों तक भारतीय वायु सेना को अपने सेवाएँ दी हैं। भारतीय वायु सेना के बेड़े में 1985 में शामिल किया गया यह अत्यंत सक्षम लड़ाकू विमान ज़मीनी हमले की क्षमता का आधार रहा है। वायु सेना के सभी प्रमुख ऑपरेशन्स में भाग लेने के साथ मिग-27 ने वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में भी एक अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी।


सुशासन संकल्प वर्ष

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में घोषणा की है कि राज्य में वर्ष 2020 को ‘सुशासन संकल्प वर्ष’ के तौर पर मनाया जाएगा और इस दौरान राज्य की जनता से शासन के संबंध में सुझाव आमंत्रित किये जाएंगे। खट्टर ने गुरुग्राम में राज्यस्तरीय ‘सुशासन दिवस’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस उद्देश्य के लिये एक विशेष वेबसाइट तैयार की जाएगी जिस पर लोग अपने सुझाव दे सकेंगे। साथ ही वेबसाइट पर आने वाले सर्वश्रेष्ठ सुझावों पर राज्य सरकार विचार करेगी।


पोलियो मार्कर

पाकिस्तान की संघीय कैबिनेट ने भारत से केवल एक बार के लिए पोलियो मार्कर के आयात की अनुमति दी है। विदित है कि मार्कर से उन बच्चों की अंगुलियों पर निशान लगाए जाते हैं जिन्हें पोलियो वैक्सीन पिलाई जाती है। यह प्रक्रिया विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकृत है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को समाप्त किये जाने के पश्चात् पाकिस्तान ने एकतरफा कदम उठाते हुए भारत के साथ होने वाले कारोबार पर रोक लगा थी जिसके कारण आम पाकिस्तानी नागरिकों को कई ज़रूरी दवाओं और अन्य उत्पादों की कमी का सामना करना पड़ रहा था।


वर्ष 2004 की सुनामी

तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्र सहित दुनिया भर के कई हिस्सों में वर्ष 2004 में आई भीषण सुनामी (Tsunami) लहरों के कारण मारे गए हज़ारों लोगों की याद में 26 दिसंबर, 2019 को कई कार्यक्रम आयोजित किये गए। हज़ारों लोगों की जान लेने वाली इस सुनामी की कल 15वीं बरसी थी। ध्यातव्य है कि इस प्राकृतिक आपदा से तमिलनाडु के कडलूर और नागापट्टिनम ज़िले सर्वाधिक प्रभावित हुए थे। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक राज्य में इस आपदा ने 7,000 से ज्यादा लोगों की जान ली थी।


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