भूगोल
एटालिन जलविद्युत परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:
एटालिन हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना, दिबांग नदी की भौगोलिक अवस्थिति
मेन्स के लिये:
भारत की जलविद्युत क्षमता और उससे संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित 3097 मेगावाट की एटालिन परियोजना के कारण जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन की अनुशंसा की है।
अवस्थिति
- यह परियोजना दिबांग नदी पर प्रस्तावित है। इसके पूर्ण होने की समयावधि 7 वर्ष निर्धारित की गई है।
- दिबांग नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है जो अरुणाचल प्रदेश और असम से होकर गुज़रती है।
- परियोजना के अंतर्गत दिबांग की सहायक नदियों (दिर तथा टैंगो) पर दो बांधों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
- यह परियोजना हिमालय के सबसे समृद्ध जैव-भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आती है तथा यह पुरापाषाणकालीन, इंडो-चाइनीज़ और इंडो-मलयन जैव-भौगोलिक क्षेत्रों के संधि-स्थल पर स्थित होगी।
महत्त्व:
- भारत सरकार द्वारा यह परियोजना चीन से आने वाली नदियों पर प्राथमिक उपयोगकर्त्ता अधिकार स्थापित करने और उत्तर-पूर्व में परियोजनाओं को तेज़ करने के उद्देश्य से प्रस्तावित है।
- इस परियोजना के भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक होने की उम्मीद है।
मुद्दे:
- इस परियोजना से कुल 18 गाँवों के निवासी प्रभावित होंगे।
- इसके तहत लगभग 2,80,677 पेड़ों की कटाई होगी और विश्व स्तर पर लुप्तप्राय 6 स्तनधारी प्रजातियों के अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- इस क्षेत्र में पक्षियों की 680 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो भारत में पाई जाने वाली कुल एवियन प्रजातियों (Avian Species) का लगभग 56% है।
नोट:
- जैव भौगोलिक क्षेत्र, समान पारिस्थितिकी, बायोम प्रतिनिधित्व, समुदाय और प्रजातियों की वृहद् विशिष्ट इकाइयाँ हैं। जैसे हिमालय, पश्चिमी घाट।
- पुरापाषाण क्षेत्र में आर्कटिक और शीतोष्ण यूरेशिया, आर्कटिक क्षेत्र में महाद्वीप के आसपास के सभी द्वीप, जापान के समुद्री क्षेत्र और उत्तरी अटलांटिक के पूर्वी हिस्से शामिल हैं।
- इसमें मैकरोल द्वीप, भूमध्यसागरीय उत्तरी अफ्रीका और अरब भी शामिल हैं।
- इंडो-मलयन प्रांत की प्राकृतिक सीमाओं के अंतर्गत, उष्णकटिबंधीय एशिया में पाकिस्तान के बलूचिस्तान पहाड़ों से लेकर हिमालय शिखर के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्व तक, इसके अलावा इसमें संपूर्ण दक्षिणपूर्वी एशिया, फिलीपींस और चीन की उष्णकटिबंधीय दक्षिणी सीमा के साथ ताइवान भी शामिल है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
मुद्रा ऋण
प्रीलिम्स के लिये:
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
मेन्स के लिये:
मुद्रा ऋणों के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक की वर्तमान चिंताएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri MUDRA Yojana- PMMY) के तहत प्रदान किये गए ऋणों का बड़े स्तर पर ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्ति’ (Non Performing Assets- NPA) के रूप में परिवर्तित होने पर चिंता जताई है।
मुख्य बिंदु:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के अनुसार, मुद्रा योजना के तहत प्रदान किये गए ऋणों से कई लाभार्थी गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकले हैं, परंतु कई ऋण प्राप्तकर्त्ताओं द्वारा समय पर ऋण न चुकाने से NPA का स्तर बढ़ा है।
- PMMY के तहत प्रदान किये गए ऋणों का बड़ी मात्रा में NPA के रूप में परिवर्तन होने के कारण RBI ने बैंकों से इस तरह के ऋणों की बारीकी से निगरानी करने को कहा है क्योंकि अस्थिर ऋण वृद्धि बैंकिंग प्रणाली को जोखिम में डाल सकती है।
- RBI के अनुसार, अनिश्चित ऋण वृद्धि, अत्यधिक अंतरसंबद्धता तथा ऋणों के चक्रीय रूप से NPA में परिवर्तित हो जाने से वित्तीय जोखिम बढ़ता है जो भारत के सूक्ष्मवित्तीय (Microfinance) क्षेत्र में प्रणालीगत जोखिम को बढ़ावा देता है।
- डिजिटल ढाँचे में सुधार के चलते सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Companies- NBFCs) एवं सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों के लिये आकर्षक ग्राहक के रूप में उभरा है जिससे धन के अनौपचारिक स्रोतों पर उनकी निर्भरता कम हुई है।
- जुलाई, 2019 में केंद्र सरकार द्वारा संसद में दी गई एक जानकारी के अनुसार, मुद्रा योजना के अंतर्गत 3.21 लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण NPA में परिवर्तित हो चुका है, तथा इस योजना के अंतर्गत NPA में परिवर्तित कुल ऋण वित्तीय वर्ष 2017-18 के 2.52% से वित्तीय वर्ष 2018-19 में 2.68% तक पहुँच चुका है।
- जून, 2019 तक मुद्रा योजना के तहत 19 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण प्रदान किया गया है तथा मार्च 2019 तक लगभग 3.63 करोड़ खातों को डिफॉल्ट (Default) घोषित किया गया है।
- RTI द्वारा प्राप्त एक सूचना के अनुसार, इस योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान बैड लोन्स (Bad Loans) में पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 126% की वृद्धि हुई।
- इस योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान बैड लोन्स (Bad Loans) 9204.14 करोड़ रुपए था जो वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान बढ़कर 16481.45 करोड़ रुपए हो गया।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
(Pradhan Mantri MUDRA Yojana-PMMY)
- इस योजना की शुरुआत अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी।
- इसके तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग इकाइयों को ज़मानत मुक्त ऋण प्रदान किया जाता है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों की व्यवस्था की गई:
- शिशु (Shishu) - 50,000 रुपए तक के ऋण
- किशोर (Kishor) - 50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण
- तरुण (Tarun) - 500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण
- इसका उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस का उपयोग आर्थिक विकास के एक उपकरण के रूप में करना है।
- यह योजना कमज़ोर वर्ग के लोगों, छोटी विनिर्माण इकाइयों, दुकानदारों, फल एवं सब्जी विक्रेताओं, ट्रक और टैक्सी ऑपरेटरों को लक्षित करने, खाद्य सेवा इकाइयों, मशीन ऑपरेटरों, कारीगरों तथा खाद्य उत्पादकों को आय प्राप्ति हेतु अवसर प्रदान करने में मदद करती है।
स्रोत-द हिंदू
शासन व्यवस्था
दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव (केंद्रशासित प्रदेशों का विलय) विधेयक, 2019
प्रीलिम्स के लिये:
दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव (केंद्र शासित प्रदेशों का विलय) विधेयक, 2019
मेन्स के लिये:
दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव के विलय के प्रयासों से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा दादरा नगर हवेली तथा दमन एवं दीव का विलय करके एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिये लोकसभा में दादरा नगर हवेली और दमन-दीव (केंद्र शासित प्रदेशों का विलय) विधेयक, 2019 पेश किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- इस विधेयक का उद्देश्य दादरा नगर हवेली तथा दमन एवं दीव का आपस में विलय करके एक नया केंद्रशासित प्रदेश बनाना है।
- केंद्र सरकार द्वारा यह कदम जम्मू-कश्मीर राज्य का जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन किये जाने के तीन महीने बाद उठाया गया है।
- भारत में अभी 9 केंद्रशासित प्रदेश हैं। दमन एवं दीव और दादरा नगर हवेली के विलय के बाद इनकी संख्या आठ हो जाएगी।
विलय का उद्देश्य:
- केंद्र सरकार के अनुसार, दमन एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली के विलय का उद्देश्य सेवा दक्षता में सुधार तथा कागज़ी काम को कम करके दोंनों केंद्रशासित प्रदेशों के नागरिकों को सेवाओं का बेहतर वितरण करना है।
- केंद्र सरकार ने अपनी ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ की नीति को ध्यान में रखते हुए दोंनों की छोटी आबादी और सीमित भौगोलिक क्षेत्र को देखते हुए अधिकारियों की सेवाओं का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिये दोंनों केंद्रशासित प्रदेशों के विलय का निर्णय लिया है।
- इन केंद्रशासित प्रदेशों में दो अलग-अलग संवैधानिक और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ होने से बहुत अधिक दोहराव, सेवा प्रदान करने में अक्षमता और धन का अपव्यय होता है।
वर्तमान स्थिति:
- दोंनों केंद्रशासित प्रदेश गुजरात के पास पश्चिमी तट पर स्थित हैं।
- दोंनों केंद्रशासित प्रदेशों के अलग-अलग सचिवालय हैं।
- दादरा नगर हवेली में सिर्फ एक ज़िला है, जबकि दमन एवं दीव में दो ज़िले हैं।
ऐतिहासिक स्थिति:
- इन दोंनों केंद्रशासित प्रदेशों पर लंबे समय तक पुर्तगालियों का शासन रहा।
- दिसंबर 1961 में दोंनों को पुर्तगाली शासन से आज़ादी मिली।
- 1961 से 1987 तक दमन-दीव गोवा केंद्रशासित प्रदेश का हिस्सा था परंतु 1987 में जब गोवा राज्य बना तो इसे अलग केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय युवा संसद योजना पोर्टल
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय युवा संसद योजना पोर्टल, राष्ट्रीय युवा संसद योजना
चर्चा में क्यों?
26 नवंबर, 2019 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भारतीय संविधान की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘राष्ट्रीय युवा संसद योजना’ का एक वेब पोर्टल लॉन्च किया। राष्ट्रपति ने राज्यसभा के 250वें सत्र पूरे होने पर 250 रुपए मूल्य का सिक्का और विशेष डाक टिकट भी जारी किया।
सिक्का और डाक टिकट के विषय में
- इस सिक्के का वज़न 40 ग्राम और परिधि 44 मिलीमीटर है। इसमें अशोक स्तंभ एवं संसद भवन के चित्रों के साथ-साथ महात्मा गांधी की तस्वीर उभरी हुई है।
- सिक्के पर सत्यमेव जयते लिखा है जबकि डाक टिकट पर संसद के स्थापत्य की जालीनुमा आकृतियों के साथ संसद भवन का चित्र बना हुआ है।
राष्ट्रीय युवा संसद योजना पोर्टल
- भारत के सभी मान्यता प्राप्त शैक्षिक संगठन/संस्थान ‘राष्ट्रीय युवा संसद योजना’ में भाग लेने के लिये पात्र होंगे।
- यह वेब-पोर्टल शिक्षण संस्थानों की भागीदारी और उनके पंजीकरण के लिये आवेदन करने का एकमात्र माध्यम होगा।
- यह पोर्टल ऑनलाइन स्व-शिक्षा के लिये वीडियो, पिक्चर्स/तस्वीरें, स्क्रिप्ट और ई-प्रशिक्षण मॉड्यूल भी उपलब्ध कराएगा।
- एक बार पंजीकरण हो जाने के पश्चात् पात्र शैक्षिक संगठन/संस्थान अपने संबंधित युवा संसद की बैठक में भाग ले सकेंगे।
स्रोत: pib
शासन व्यवस्था
नियम 12
प्रीलिम्स के लिये:
नियम 12
मेन्स के लिये:
नियम 12, इससे संबंधित परिस्थितियाँ तथा महाराष्ट्र मामले में इसका प्रयोग
चर्चा में क्यों?
23 नवंबर, 2019 को बगैर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में प्रधानमंत्री ने भारत सरकार (कार्यकरण) नियमावली, 1961 के नियम 12 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटा दिया। इसके साथ ही कई प्रश्न चर्चा का विषय बन गए हैं, जैस- नियम 12 क्या है? यह सरकार को क्या-क्या अधिकार प्रदान करता है?
नियम 12 क्या है?
- भारत सरकार (कार्यकरण) नियमावली, 1961 का नियम 12 प्रधानमंत्री को अपने विवेक के आधार पर सामान्य नियमों से भटकाव की अनुमति है।
- "नियमों से प्रस्थान" (Departure from Rules) शीर्षक को नियम 12 कहा जाता है।
- नियम 12 के तहत लिये गए किसी भी निर्णय के लिये मंत्रिमंडल कुछ समय बाद तथ्यात्मक स्वीकृति दे सकता है।
नियम 12 का उपयोग किन परिस्थितियों में किया जाता है?
- आमतौर पर सरकार द्वारा प्रमुख निर्णयों के लिये नियम 12 का उपयोग नहीं किया जाता है।
- हालाँकि पूर्व में इसका उपयोग कार्यालय ज्ञापन को वापस लेने या एमओयू पर हस्ताक्षर करने जैसे मामलों में किया गया है।
- नियम 12 के माध्यम से आखिरी बड़ा फैसला 31 अक्तूबर, 2019 को तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में लिया गया था। जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर इसे केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के रूप में विभाजित कर दिया गया है।
- इसके विषय में मंत्रिमंडल ने 20 नवंबर, 2019 को एक्स-फैक्टो स्वीकृति प्रदान की।
महाराष्ट्र का मामला
- 23 नवंबर, 2019 की सुबह 5 बजकर 47 मिनट पर भारत सरकार के राजपत्र में महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन को हटाए जाने की अधिसूचना प्रकाशित हुई। इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति ने इसके लिये ज़रूरी दस्तावेज़ पर इस समय से पहले ही हस्ताक्षर किये होंगे।
- इसके बाद 23 नवंबर, 2019 को ही सुबह 7 बजकर 50 मिनट पर नए मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री को पद की शपथ दिला दी गई।
विवादास्पद क्यों?
- नियम 12 के क्रियान्वित होने से प्रतीत होता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के शीर्ष नेताओं को भी आगे की कार्यवाही के बारे में जानकारी नहीं थी। जबकि सामान्य नियमों के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने तथा समाप्ति के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक आवश्यक होती है, इसके पश्चात् इसे राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिये भेजा जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सैन्य सूचना सामान्य सुरक्षा समझौता (GSOMIA)
प्रीलिम्स के लिये:
सैन्य सूचना सामान्य सुरक्षा समझौता (GSOMIA)
मेन्स के लिये:
GSOMIA संधि तथा जापान-दक्षिण कोरिया संबंध
चर्चा में क्यों?
22 नवंबर, 2019 को दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के दबाव के बीच जापान के साथ एक खुफिया साझाकरण समझौते (Intelligence Sharing Pact) से बाहर निकलने की अपनी योजना को स्थगित करने का फैसला किया।
- इससे पहले, दक्षिण कोरिया ने 22 नवंबर, 2019 तक सैन्य सूचना सामान्य सुरक्षा समझौता (General Security of Military Information Agreement- GSOMIA) नामक खुफिया समझौते को समाप्त करने का फैसला किया था, इसकी शर्त थी कि यदि जापान निर्यात नियंत्रण उपायों की समीक्षा करने का फैसला नहीं करता तो यह समझौते से बाहर हो जाएगा।
GSOMIA संधि
- जापान और दक्षिण कोरिया के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान का विचार पहली बार 1980 के दशक में आया था।
- वर्ष 2012 में दोंनों देशों द्वारा GSOMIA पर हस्ताक्षर किये जाने की उम्मीद थी, लेकिन दक्षिण कोरिया के लोगों में इस समझौते को लेकर आक्रोश होने के कारण इस पर आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई।
- उत्तर कोरिया के बढ़ते खतरे (परमाणु परीक्षण करना और बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास) के बीच GSOMIA को अपनाने की आवश्यकता को महसूस किया गया।
- अंततः नवंबर 2016 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते में अमेरिका के हित उत्तर कोरिया से उत्पन्न होने वाले किसी भी प्रकार के खतरे का विश्लेषण करने और उसका जवाब देने के लिये उत्तर पूर्व में एक सशक्त गठबंधन बनाने की आवश्यकता से उपजा है।
- हालाँकि इस संदर्भ में चीन को इस बात का संदेह अवश्य हो सकता है कि GSOMIA, बीजिंग को शामिल करने के लिये अमेरिकी-जापानी-दक्षिण कोरियाई त्रिपक्षीय गठबंधन का एक प्रयास है, जिससे इस त्रिपक्षीय गठबंधन और चीन-उत्तर कोरिया-रूस के बीच विरोध बना रहे।
जापानी और दक्षिण कोरियाई संबंध
- कोरिया, जापान का एक पूर्व उपनिवेश है, जापान ने वर्ष 1910-1945 (35 वर्षों) तक कोरिया पर शासन किया।
- कोरियाई लोगों के मन में निहित "जापान विरोधी" भावना के पीछे आज भी कहीं न कहीं जापानी शासन है।
- वर्ष 1948 में उत्तर और दक्षिण कोरिया के विभाजन के बाद, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच बुनियादी संबंधों पर एक संधि (Treaty on Basic Relations) पर हस्ताक्षर के साथ, वर्ष 1965 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
- दक्षिण कोरिया और जापान दोंनों ही अमेरिका के सहयोगी हैं, लेकिन हाल के वर्षों में दोंनों देशों के बीच संबंधों में खटास आई हैं। दोंनों देशों के मध्य डोकडो द्वीप (Dokdo Islands) को लेकर विवाद बना हुआ है, जिसे जापान में ताकेशिमा (Takeshima) के रूप में जाना जाता है। जहाँ एक ओर इन द्वीपों पर दक्षिण कोरिया का नियंत्रण है, वहीं जापान इन द्वीपों पर स्वामित्व का दावा करता है।
- इसके अलावा दोंनों देशों के लोगों के मन में जापानी शासन में कोरियाई लोगों के किये गए व्यवहार के संबंध में अलग-अलग विचार हैं, विशेषकर जबरन मज़दूरी और "सेविका" या "यौन दासियों/सेक्स स्लेव्स" के विषय में।
- जापानी शासन में कोरिया पर किये गए अत्याचार के विषय में जापान का कहना है कि वर्ष 1965 की संधि के साथ ही उसने दक्षिण कोरिया के क्षतिपूर्ति के दावों का निपटारा कर दिया था।
वर्तमान संदर्भ में
- यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो जुलाई 2019 में जापान ने तीन रासायनिक पदार्थों पर निर्यात नियंत्रण लगा दिया जिनका इस्तेमाल दक्षिण कोरिया अपने महत्त्वपूर्ण अर्धचालक उद्योग में करता है। इतना ही नहीं हाल ही में अगस्त 2019 में भी जापान ने दक्षिण कोरिया को अपनी "व्हाइट लिस्ट" (विश्वसनीय भागीदारों की फास्ट ट्रैक व्यापार सूची) से हटाने का फैसला किया है।
- जापान के इस फैसले को दक्षिण कोरिया के ही एक निर्णय का प्रतिउत्तर माना जा रहा है, कुछ समय पहले दक्षिण कोरिया ने खुफिया संधि GSOMIA से बाहर निकलने का फैसला किया था।
हालाँकि एक ऐसे समय में जब उत्तर कोरिया स्वयं को सभी मोर्चों पर सशक्त कर रहा है ऐसे में दक्षिण कोरिया का इस संधि से बाहर जाना वास्तव में एक अनावश्यक कदम होगा। वर्तमान स्थिति में टोक्यो और सियोल को अपने संबंधों को खराब करने की बजाय इन्हें सुदृढ़ करने पर ध्यान देना चाहिये।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कार्टोसेट-3
प्रीलिम्स के लिये
Cartosat-3, PSLV-C47
मेन्स के लिये
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा आपदा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का योगदान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इसरो (ISRO) ने PSLV-C47 रॉकेट की सहायता से कार्टोसेट-3 उपग्रह को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है।
मुख्य बिंदु:
- इस उपग्रह को पृथ्वी के ऊपर 509 किलोमीटर की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकालिक कक्षा (Sun Synchronous Orbit) में स्थापित किया गया।
- इस उपग्रह का भार 1625 किलोग्राम है जो कि इस वर्ग के पिछ्ले सभी उपग्रहों के भार से दोगुना है।
- कार्टोसेट-3 कार्टोसेट शृंखला का नौवां उपग्रह है। इस शृंखला का पहला उपग्रह वर्ष 2005 में प्रक्षेपित किया गया था।
- PSLV-C47 से अलग होने के बाद कार्टोसेट-3 बंगलूरू स्थित इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (Telemetry Tracking and Command Network) के नियंत्रण में है।
- इस प्रक्षेपण में कार्टोसेट-3 के अलावा अमेरिका के 13 वाणिज्यिक नैनोसैटेलाइट भी शामिल थे।
- कार्टोसेट-3 के प्रत्येक कैमरे में 25 सेंटीमीटर के ग्राउंड रेज़ोल्यूशन की क्षमता होगी। इसका तात्पर्य है कि यह पृथ्वी पर उपस्थित किसी वस्तु के न्यूनतम हिस्से को भी 500 किलोमीटर की ऊँचाई से स्पष्ट देख सकता है।
- वर्तमान में अमेरिकी कंपनी मैक्सर (Maxar) के उपग्रह वर्ल्डव्यू-3 (WorldView-3) की ग्राउंड रेज़ोल्यूशन क्षमता सर्वाधिक 31 सेंटीमीटर है।
- इस उपग्रह में कई नई तकनीकों का प्रयोग किया गया है जिसमें उच्च क्षमता के घुमावदार कैमरे, हाई स्पीड डेटा ट्रांसमिशन तथा एडवांस कंप्यूटिंग सिस्टम आदि शामिल हैं।
कार्टोसेट-3 की उपयोगिता:
- यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग के मामले में विश्व में सर्वश्रेष्ठ होगा, इसलिये इसे शार्पेस्ट आई (Sharpest Eye) कहा जा रहा है।
- इसके अलावा इसे कार्टोग्राफी या अन्य मानचित्रण संबंधी कार्यों के लिये प्रयोग में लाया जाएगा जिससे यह भौगोलिक संरचनाओं में प्राकृतिक तथा मानवजनित कारणों से होने वाले बदलावों की जानकारी देगा।
- इन उपग्रहों से प्राप्त हाई रेज़ोल्यूशन फोटोग्राफ्स की आवश्यकता विविध अनुप्रयोगों में उपयोगी हैं, जिनमें कार्टोग्राफी, अवसंरचना योजना निर्माण, शहरी एवं ग्रामीण विकास, उपयोगिता प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधन इवेंट्री एवं प्रबंधन, आपदा प्रबंधन शामिल हैं।
- कार्टोसेट श्रेणी के उपग्रहों से प्राप्त डेटा का प्रयोग सशस्त्र बलों द्वारा किया जाता है। अतः कार्टोसेट-3 द्वारा प्राप्त डेटा देश के सुदूर सीमावर्ती इलाकों में निगरानी एवं रक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होगा।
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
बोडोलैंड विवाद
प्रीलिम्स के लिये:
नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड
मेन्स के लिये:
बोडो आदिवासियों से संबंधित विभिन्न मुद्दे
चर्चा में क्यों?
24 नवंबर, 2019 को केंद्र सरकार ने उग्रवादी समूह ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (National Democratic Front of Bodoland- NDFB) पर प्रतिबंध को और पाँच साल के लिये बढ़ा दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- असम आधारित उग्रवादी समूह NDFB पर हत्या और जबरन वसूली सहित कई हिंसक गतिविधियों में शामिल होने तथा भारत विरोधी ताकतों से हाथ मिलाने का आरोप है।
- गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, गैर-कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार केंद्र सरकार NDFB को उसके सभी समूहों, गुटों और अग्रिम संगठनों के साथ गैरकानूनी संगठन घोषित करती है।
- केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इस संगठन द्वारा की गई घटनाओं की संख्या का भी उल्लेख किया है। आँकड़ों के अनुसार, जनवरी 2015 के बाद से अभी तक लगभग 62 हिंसक घटनाएँ घटित हुई हैं, जिसमें 19 लोगों की हत्या की गई। इस दौरान लगभग 55 चरमपंथी मारे गए हैं, 450 चरमपंथियों को गिरफ्तार किया गया है और उनसे 444 हथियार बरामद किये गए।
- गृह मंत्रालय के मुताबिक, NDFB ने नरसंहार और जातीय हिंसा पैदा की जिसके परिणामस्वरूप हत्याएँ हुईं, गैर-बोडो की संपत्ति को नष्ट किया गया, असम में बोडो बहुल क्षेत्रों में निवास करने वाले गैर-बोडो के बीच असुरक्षा का माहौल पैदा किया गया, देश की सीमा पर शिविर एवं ठिकाने स्थापित किया गया ताकि अलगाववादी गतिविधियों को हवा दी जा सके।
बोडो समुदाय
- बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है। यह राज्य की कुल आबादी के 5-6 प्रतिशत से अधिक हैं। बोडो (असमिया) समुदाय के लोग पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य के मूल निवासी हैं तथा भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत भारत की एक महत्त्वपूर्ण जनजाति है।
- असम के चार ज़िले कोकराझार (Kokrajhar), बक्सा (Baksa), उदलगुरी (Udalguri) और चिरांग (Chirang) बोडो प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (Bodo Territorial Area District- BTAD) का गठन करते हैं।
क्या है बोडोलैंड का मुद्दा?
- 1960 के दशक से ही बोडो अपने लिये अलग राज्य की मांग करते आए हैं।
- असम में इनकी ज़मीन पर अन्य समुदायों का आकर बसना और ज़मीन पर बढ़ता दबाव ही बोडो असंतोष की वज़ह है।
- अलग राज्य के लिये बोडो आंदोलन 1980 के दशक के बाद हिंसक हो गया और तीन धड़ों में बंट गया। पहले का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने किया, जो अपने लिये अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स है, जिसने अधिक स्वायत्तता की मांग की। तीसरा धड़ा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन है, जिसने मध्यम मार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की।
- बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर जो वर्चस्व चाहते थे, वह उन्हें 2003 में मिला। तब बोडो समूहों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा की राजनीति में आने पर सहमति जताई।
- इसी का नतीजा था कि बोडो समझौते पर 2003 में हस्ताक्षर किये गए और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन हुआ।
नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड
National Democratic Front of Bodoland- NDFB
- अक्तूबर 1986 में बोडो सिक्योरिटी फोर्स (Bodo Security Force- BdSF) का गठन हुआ। बाद में BdSF का नाम बदलकर NDFB हो गया, जो एक ऐसा संगठन है, जिसे हमलों, हत्याओं और जबरन वसूली करने के लिये जाना जाता है।
- 1990 के दशक में भारतीय सुरक्षा बलों ने इस समूह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाए, जिस कारण इस समूह का भूटान की सीमा पर पलायन हुआ। इस समूह को वर्ष 2000 की शुरुआत में भारतीय सेना और रॉयल भूटान सेना द्वारा किये गए कठोर आतंकवाद विरोधी अभियानों का सामना करना पड़ा।
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सूर्य के वायुमंडल का तापमान
प्रीलिम्स के लिये
स्पीक्यूल्स, कोरोना, फोटोस्फीयर क्या है?
मेन्स के लिये
सौर कोरोना के तापमान वृद्धि में स्पीक्यूल्स की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने सूर्य के वायुमंडल का इसकी सतह से अधिक गर्म होने के कारणों का पता लगाया।
मुख्य बिंदु:
- खगोल भौतिकी के विषय में अभी तक यह एक पहेली है कि सूर्य का वायुमंडल इसके सतह से अधिक गर्म क्यों है? वैज्ञानिकों ने इसका हल निकालने का दावा किया है तथा इससे संबंधित शोध के तथ्यों को ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित किया है।
- ध्यातव्य है कि सूर्य के केंद्र (Core) का तापमान लगभग 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस है, जबकि इसकी सतह, जिसे फोटोस्फीयर (Photosphere) कहते हैं, का तापमान मात्र 5,700 डिग्री सेल्सियस है।
- सूर्य के चारों ओर उपस्थित इसका वायुमंडल, जिसे कोरोना (Corona) कहते हैं, का तापमान इसकी सतह से बहुत अधिक है। सूर्य के वायुमंडल का तापमान बढ़कर अधिकतम 10 लाख डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।
- सामान्य तौर पर जब हम किसी गर्म पिंड से दूर जाते हैं, तब ऊष्मा का कोई अन्य स्रोत न होने की वजह से तापमान लगातार घटता है।
- किंतु सूर्य के मामले में यह ठीक उल्टा है जहाँ सतह से दूर जाने पर तापमान में वृद्धि होती है तथा तापमान में यह वृद्धि सतह से लाखों किलोमीटर दूर तक होती रहती है।
- इसका तात्पर्य है कि सूर्य के वायुमंडल में ऊष्मा का कोई अन्य स्रोत भी मौजूद है।
सौर स्पीक्यूल्स
सौर स्पीक्यूल्स (Solar Spicules):
- सूर्य के ऊपरी वायुमंडल का इसकी सतह से अधिक गर्म होने का मुख्य कारण स्पीक्यूल्स का होना है।
- यह सूर्य की सतह पर गेसर जैसी संरचना वाले जेट हैं जो कि कोरोना तथा फोटोस्फीयर के मिलने से उत्सर्जित होते हैं।
- ये किसी एक समय में सूर्य की सतह पर लाखों की संख्या में हो सकते हैं तथा पाँच से दस मिनट के अंदर समाप्त हो जाते हैं।
- देखने में ये बाल (Hair) जैसी संरचना प्रतीत होते हैं लेकिन इनकी लंबाई 5,000 किलोमीटर तथा व्यास 500 किलोमीटर तक होता है।
- अभी तक यह अनुमान लगाया जाता था कि ये स्पीक्यूल्स एक नलिका की तरह कार्य करते हैं जिसके द्वारा सूर्य के केंद्र से द्रव्यमान तथा उर्जा, फोटोस्फीयर को पार करते हुए कोरोना तक पहुँच जाती है।
- अध्ययन से पता चला कि स्पीक्यूल्स का निर्माण धन तथा ऋण आवेशित इलेक्ट्रानों के मिलने से बने प्लाज़्मा से होता है तथा ऊपर की तरफ बढ़ते हुए इनके तापमान में वृद्धि होती है।
- वैज्ञानिकों की टीम ने इसका अध्ययन करने के लिये अमेरिका स्थित 1.6 मीटर गूड सोलर टेलीस्कोप (1.6 meter Goode Solar Telescope) का प्रयोग किया जो विश्व का सबसे बड़ा सौर टेलीस्कोप है।
- इसके अलावा नासा (NASA) का सोलर डायनामिक ऑब्ज़र्वेटरी एयरक्राफ्ट (Solar Dynamic Observatory Aircraft) का प्रयोग किया गया।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट- 584
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण
मेन्स के लिये:
देश में पेयजल, साफ सफाई और स्वच्छता की स्थिति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey-NSS) के 76वें राउंड के रूप में देश में पेयजल, साफ सफाई और स्वच्छता की स्थिति पर एक सर्वेक्षण कराया।
प्रमुख बिंदु
- इसके पहले NSO की ओर से जुलाई 2008 से जून 2009 के बीच NSS के 65वें राउंड के तहत और जुलाई–दिसंबर 2012 के बीच NSS के 69वें राउंड के तहत इन विषयों पर सर्वेक्षण कराया गया था।
- वर्तमान सर्वेक्षण पूरे देश में कराया गया।
- इसके लिये देश भर से 106838 नमूने इकठ्ठा किये गए (ग्रामीण क्षेत्रों से 63763 और शहरी क्षेत्र से 43102)। इनमें से 5378 नमूने गाँवों से और 3614 शहरी क्षेत्रों के UFS ब्लाकों से जुटाए गए।
- नमूनों को इकठ्ठा करने के लिये वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई।
- यह रिपोर्ट NSS के 76वें दौर के दौरान पेयजल, स्वच्छता, साफ-सफाई और आवास की स्थिति पर सर्वेक्षण के माध्यम से एकत्र केंद्रीय नमूना आंकड़ों पर आधारित है।
उद्देश्य
- इस सर्वेक्षण का मूल उद्देश्य परिवारों को उपलब्ध पेयजल, स्वच्छता और आवास सुविधाओं तथा घरों के आसपास उपलब्ध वातावरण की जानकारी जुटाना था जो लोगों के लिये गुणवत्ता युक्त रहन सहन की स्थितियाँ सुनिश्चित करती हैं।
- ये जानकारियाँ जिन महत्त्वपूर्ण तथ्यों के आधार पर जुटाई गईं उनमें अवासीय इकाइयों के प्रकार (अलग मकान, फ्लैट आदि) ऐसी इकाइयों के मालिकाना हक का प्रकार, आवासीय इकाइयों का ढाँचा (जैसे- पक्का, कच्चा-पक्का या कच्चा) आवासीय इकाइयों की स्थिति, आवासीय इकाइयों का फ्लोर एरिया, उनके निर्माण का समय, ऐसी इकाइयों में पेयजल, बाथरूम आदि की सुविधा तथा ऐसी इकाइयों के आसपास जल निकासी, कचरे और गंदे जल के निस्तारण की सुविधा आदि शामिल हैं।
आँकड़ों का आधार पूर्वाग्रह से ग्रस्त
- ‘पेयजल, साफ-सफाई, स्वच्छता और आवास की स्थिति’ जुलाई-दिसंबर 2018 पर हाल ही में जारी NSS के 76वें सर्वेक्षण में प्रतिभागियों के पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने की बात को स्वीकार किया गया है।
- इसका मतलब यह हुआ कि जब किसी परिवार से यह अहम सवाल पूछा जाता है कि क्या उसे सरकार की ओर से कभी भी कोई लाभ प्राप्त हुआ है, तो वह परिवार अपने यहाँ शौचालय या एलपीजी सिलेंडर होने की बात को इस उम्मीद में स्वीकार नहीं करता है कि उसे सरकार की ओर से अतिरिक्त लाभ प्राप्त होंगे।
- संभवतः इसी पूर्वाग्रह की वजह से स्वच्छता कवरेज के वास्तविकता से काफी कम होने की जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
- विभिन्न परिवारों के इस तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने का तथ्य अक्सर तब सामने आता है जब सरकार द्वारा कार्यान्वित व वित्तपोषित लाभार्थी योजनाओं से जुड़ी चीजों और मुद्दों के बारे में उनसे पूछा जाता है।
सरकार द्वारा खण्डन
- किसी अहम सवाल से जुड़ी इस तरह की सीमा को स्वीकार करते हुए NSS (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) की रिपोर्ट में स्वयं एक डिस्क्लेमर जारी किया गया हैः ‘‘NSS के 76वें दौर के सर्वेक्षण में ‘पेयजल, स्वच्छता, आवास, विद्युतीकरण और एलपीजी कनेक्शन की सुविधाओं से जुड़ी सरकारी योजनाओं से परिवारों को प्राप्त लाभ’ पर विभिन्न सूचनाओं का संकलन पहली बार किया गया। इन सुविधाओं के प्राप्त होने के बारे में सवाल पूछने से पहले ही यह सर्वेक्षण किया गया।
- ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिभागी इस उम्मीद में नकारात्मक उत्तर देता है कि सरकारी सुविधाएँ न मिलने या उन तक पहुँच न होने की बात कहने पर उन्हें सरकारी योजनाओं के ज़रिये अतिरिक्त लाभ प्राप्त होने में मदद मिल सकती है।
- विभिन्न सरकारी योजनाओँ से लोगों को प्राप्त लाभों और संबंधित सुविधाओँ तक लोगों की पहुँच होने से जुड़े निष्कर्षों की व्याख्या करते वक्त इन बिंदुओं को ध्यान में रखा जाएगा।’’
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने यह बात दोहराई है कि इस सीमा के कारण भारत में स्वच्छता की स्थिति के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिये इस रिपोर्ट के परिणामों या निष्कर्षों का उपयोग करना सही नहीं है।
स्रोत: pib
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (27 नवंबर)
IIT कानपुर का ड्रोन ‘प्रहरी’
- IIT-कानपुर के शोधार्थियों ने ‘प्रहरी’ नामक एक ड्रोन तैयार किया है। यह ड्रोन न सिर्फ 4-5 किलोग्राम तक वज़न उठा सकता है, बल्कि किसी संवेदनशील क्षेत्र में लगातार तीन घंटे तक गश्त भी कर सकता है। इस ड्रोन का उपयोग निगरानी से लेकर भीड़ को नियंत्रित करने, आपातकाल में आवश्यक वस्तु की आपूर्ति करने, किसी स्थिति विशेष का पता लगाने आदि में किया जा सकता है। इस ड्रोन में एडवांस ऑटो-पायलट सिस्टम है, यह अन्य ड्रोन को पकड़ने के दौरान वज़न के बढ़ने से होने वाले अचानक बदलाव को संभालने में सक्षम है। इसे खासतौर पर सीमा पर निगरानी रखने के लिये और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से तैयार किया गया है। यह सशस्त्र बलों द्वारा सीमा क्षेत्रों की निगरानी रखने में मदद करने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगाने वाले दुश्मनों के ड्रोन को पकड़ने में भी काफी मददगार हो सकता है।
सुमन बिल्ला
केरल कैडर के वरिष्ठ IAS अधिकारी सुमन बिल्ला को संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) में नियुक्ति मिली है। सुमन बिल्ला UNWTO में D1 स्तर पर निदेशक, तकनीकी सहयोग और सिल्क रोड डेवलपमेंट के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे। यह एक विशेष एजेंसी है, जो सतत् और सार्वभौमिक रूप से सुगम पर्यटन को बढ़ावा देती है। सुमन बिल्ला वर्तमान में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं।
क्या है UNWTO: इसका पूरा नाम यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूरिज्म आर्गेनाईजेशन है। यह पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में आर्थिक विकास, समावेशी विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के पर्यटन को बढ़ावा देता है। साथ ही दुनियाभर में ज्ञान और पर्यटन नीतियों को आगे बढ़ाने में इस क्षेत्र को नेतृत्व एवं समर्थन प्रदान करता है। UNWTO पर्यटन के लिये वैश्विक आचार संहिता (Global Code of Conduct for Tourism) के कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करता है, ताकि इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए पर्यटन के सामाजिक-आर्थिक योगदान को अधिकतम किया जा सके।
सुधीर धर
प्रख्यात कार्टूनिस्ट सुधीर धर का 87 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। प्रयागराज में जन्मे सुधीर धर ने अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी। उनके बनाए कार्टून द इंडिपेंडेंट, द पायोनियर, दिल्ली टाइम्स, न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट और सैटरडे रिव्यू सहित कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
सर डेविड एटनबोरो
वर्ष 2019 के इंदिरा गांधी शांति, निशस्त्रीकरण एवं विकास पुरस्कार के लिये प्रसिद्ध प्रकृतिवादी एवं प्रसारणकर्त्ता सर डेविड एटनबोरो के नाम की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा प्रदान किया जाता है। पिछले वर्ष का पुरस्कार सुनीता नारायण को दिया गया था।
लक्ष्य सेन
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने स्कॉटिश ओपन प्रतियोगिता में पुरुष एकल प्रति स्पर्द्धा का खिताब जीत लिया है। यह प्रतियोगिता ग्लासगो में आयोजित की गई थी।
कमर जावेद बाजवा
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल विस्तार की अधिसूचना को निलंबित कर दिया है। जनरल बाजवा पाकिस्तान सेना प्रमुख के पद से 29 नवंबर, 2019 को रिटायर हो रहे हैं। 19 अगस्त, 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने जनरल बाजवा के कार्यकाल को अगले तीन वर्षों के लिये बढ़ा दिया था। वर्तमान में पाकिस्तानी सेना के 16वें सेनाध्यक्ष जावेद बाजवा को वर्ष 2011 में हिलाल-ए-इम्तियाज से नवाजा जा चुका है।