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डेली न्यूज़

  • 27 Sep, 2018
  • 28 min read
प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति- 2018 को मंत्रिमंडल की मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति- 2018 (National Digital Communications Policy-2018 or NDCP-2018) को मंज़ूरी देने के साथ ही दूरसंचार आयोग का नाम बदलकर ‘डिजिटल संचार आयोग’ करने के लिये भी स्वीकृति दे दी है।

राष्ट्रीय डिजिटल नीति-2018 के लक्ष्य

  • सभी के लिये ब्रॉडबैंड।
  • डिजिटल संचार के क्षेत्र में 4 मिलियन अतरिक्त रोज़गार का सृजन।
  • भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में डिजिटल क्षेत्र के योगदान को 2016 के 6% से बढ़ाकर 8% करना।
  • इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU) के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) विकास सूचकांक में भारत को आगे बढ़ाकर 2017 के 134वें स्थान से शीर्ष 50 देशों में पहुँचाना।
  • वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत का योगदान बढ़ाना।
  • डिजिटल संप्रभुता सुनिश्चित करना।

उल्लेखनीय है कि ये सभी लक्ष्य 2022 तक हासिल किये जाएंगे

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति के उद्देश्य

  • प्रत्येक नागरिक को 50Mbps की गति से सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना।
  • सभी ग्राम पंचायतों को वर्ष 2020 तक 1Gbps तथा 2022 तक 10Gbps की कनेक्टिविटी प्रदान करना।
  • ऐसे क्षेत्र जिन्हें अभी तक कवर नहीं किया गया है के लिये कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।
  • डिजिटल संचार क्षेत्र के लिये 100 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित करना।
  • नए युग के कौशल निर्माण के लिये 1 मिलियन मानव शक्ति को प्रशिक्षित करना।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) प्रणाली का विस्तार 5 बिलियन आपस में जुड़े उपकरणों तक करना।
  • व्यक्ति की निजता, स्वायत्तता तथा पसंद को सुरक्षित रखने वाले डिजिटल संचार के लिये व्यापक डाटा संरक्षण व्यवस्था का निर्माण करना।
  • वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की सक्रिय भागीदारी हेतु सहायता देना।
  • नागरिकों को सुरक्षा आश्वासन देने के लिये उचित संस्थागत व्यवस्था के माध्यम से दायित्व लागू करना।
  • डिजिटल संचार अवसंरचना तथा सेवाओं को सुरक्षित रखना।

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति की रणनीति

  • राष्ट्रीय फाइबर प्राधिकरण बनाकर राष्ट्रीय डिजिटल ग्रिड की स्थापना करना।
  • सभी नए शहर तथा राजमार्ग सड़क परियोजनाओं में समान सेवा मार्ग और उपयोगिता गलियारों की स्थापना करना।
  • मार्ग उपयोग के समान अधिकार, लागत मानक तथा समय-सीमा के लिये केंद्र, राज्य तथा स्थानीय निकायों के बीच सहयोगी संस्थागत व्यवस्था बनाना।
  • स्वीकृतियों में बाधाओं को दूर करना।
  • ओपन एक्सेस नेक्स्ट जनरेशन नेटवर्कों के विकास में सहायता देना।

राष्ट्रीय संचार नीति का प्रभाव

  • राष्ट्रीय संचार नीति-2018 का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था और समाज के रूप में स्थापित करना है। यह कार्य सर्वव्यापी, लचीला और किफायती डिजिटल संचार अवसंरचना तथा सेवाओं की स्थापना कर नागरिकों तथा उद्यमों की सूचना और संचार आवश्यकताओं को पूरा करके किया जाएगा।
  • उपभोक्ता केंद्रित और एप्लीकेशन प्रेरित राष्ट्रीय संचार नीति- 2018 हमें 5G, IOT, M2M जैसी अग्रणी टेक्नोलॉजी लॉन्च होने के बाद नए विचारों तथा नवाचार की ओर ले जाएगी।

और अधिक जानकारी के लिये क्लिक करें:

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2018

http://www.drishtiias.com/hindi/current-affairs/telecom-policy-eyes-40-lakh-new-job


जैव विविधता और पर्यावरण

ई-कचरे का खतरनाक संग्रहण : रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तैयार की गई एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट (e-waste) पुनर्चक्रण केंद्र (recyclers) कचरे का पुनर्चक्रण नहीं कर रहे हैं और कुछ तो खतरनाक परिस्थितियों में इसे संगृहीत कर रहे हैं, जबकि अन्य के पास इस तरह के कचरे का प्रबंधन करने की क्षमता भी नहीं है।

भारत में पुनर्चक्रण केंद्र

  • भारत में अब तक 178 पंजीकृत ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण केंद्र हैं जिन्हें ई-कचरे को संसाधित करने के लिये राज्य सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • भारत एक साल में लगभग दो लाख टन ई-कचरे का उत्पादन करता है और इसकी अधिकांश मात्रा को अनौपचारिक क्षेत्र में संसाधित किया जाता है।

ई-कचरा प्रबंधन नियम

  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अक्तूबर 2016 से प्रभाव में आया।
  • ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होंगे।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, न कि उसमें से कीमती धातुओं को निकालने के बाद।
  • इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 प्रभावी था।

ई-कचरा प्रबंधन संशोधन नियम

  • ई-कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्‍य 1 अक्‍तूबर, 2017 से प्रभावी माने जाएंगे। विभिन्‍न चरणों में ई-कचरे का संग्रहण लक्ष्‍य 2017-18 के दौरान उत्‍पन्‍न किये गए कचरे के वज़न का 10 फीसदी होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से बढ़ता जाएगा। वर्ष 2023 के बाद यह लक्ष्‍य कुल उत्‍पन्‍न कचरे का 70 फीसदी हो जाएगा।
  • यदि किसी उत्‍पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्‍पादों की औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे में नए ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण हेतु अलग लक्ष्‍य निर्धारित किये जाएंगे।
  • उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी।
  • हानिकारक पदार्थों से संबधित व्‍यवस्‍थाओं में आरओएच के तहत ऐसे उत्‍पादों की जाँच का खर्च सरकार वहन करेगी यदि उत्‍पाद आरओएच की व्‍यवस्‍थाओं के अनुरूप नहीं हुए तो उस हालत में जाँच का खर्च उत्‍पादक को वहन करना होगा।
  • उत्‍पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिये खुद को पंजीकृत कराने हेतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा।
  • 22 मार्च, 2018 को अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा नियमों के अनुपालन की जाँच

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को यह जाँचने के लिये अधिकार दिया जाता है कि रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) एजेंसियाँ नियमों का पालन कर रही हैं अथवा नहीं।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा की गई जाँच

  • पर्यावरण मंत्रालय ने मई 2018 में 11 पंजीकृत केंद्रों और एक गैर-नियंत्रित पुनर्चक्रण केंद्र की जाँच की।
  • पर्यावरण मंत्रालय ने जिन पुनर्चक्रण केंद्रों की जाँच की वे कानपुर, ठाणे (मुंबई), वापी (गुजरात), कोलकाता, बंगलूरू और अलवर (राजस्थान) में स्थित हैं।
  • इन जाँचों के बाद मंत्रालय में अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि इन पुनर्चक्रण केंद्रों में कई तरह के उल्लंघन पाए गए जैसे- ई-कचरे का भंडारण, हैंडलिंग और प्रसंस्करण के गैर-पर्यावरणीय तरीके अपनाना और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों का पालन न करना आदि। इसके अलावा कुछ पुनर्चक्रण केंद्र ऐसे थे जो परिचालन में नहीं थे या ई-कचरे का प्रबंधन करने के लिये ये केंद्र पर्याप्त नहीं थे।

कचरा निपटान के लिये कोई निश्चित स्थान नहीं

  • पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कानपुर स्थित पुनर्चक्रण केंद्र खान ट्रेडर्स का भी निरीक्षण किया गया जिसे वार्षिक रूप से 7,190 टन ई-कचरा इकट्ठा करने, भंडारण करने, सभी विभिन्न प्रकार के कचरे को अलग करने और उसका निपटान करने के लिये अधिकृत किया गया है।
  • विभिन्न प्रकार के ई-कचरे में एयर कंडीशनर कंप्रेसर, टेलीविज़न सेट, कंप्यूटर और सर्किट बोर्ड आदि शामिल हैं। लेकिन जाँच में पाया गया गया कि यह कंपनी किसी भी प्रकार के ई-कचरे का पुनर्चक्रण नहीं करती है बल्कि केवल मैन्युअल रूप से उनमें उपस्थित घटकों को हटा देती है। इसके अलावा, यहाँ खतरनाक कचरे के निपटान के लिये कोई निश्चित स्थान नहीं है।

क्या है ई-कचरा? 

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण और टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव

  • ई-कचरे में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।

निष्कर्ष

भले ही ई-कचरा प्रबंधन के संदर्भ में नियम लागू किये गए हैं लेकिन ये नियम केवल तभी सफल हो सकते हैं जब इन्हें सही ढंग से लागू किया जाए। लेकिन पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट को देखकर यही कहा जा सकता है कि नियमों को सही ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है।


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बहुपक्षवाद, यूएनएससी सुधार हेतु जी-4 देशों की बैठक

चर्चा में क्यों

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के संबोधन में बहुपक्षवाद की निंदा किये जाने के कुछ समय बाद हाल ही में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ब्राज़ील, जापान और जर्मनी के विदेश मंत्रियों- क्रमशः अलॉयसियो नून्स फेरेरा, तारो कोनो तथा हीको मास की जी-4 बैठक की मेज़बानी की।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में भारत और अन्य जी-4 देशों ने बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में प्रारंभिक सुधार किये जाने की मांग की।
  • जी-4 देशों के मंत्रियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि 21वीं शताब्दी की समकालीन ज़रूरतों के लिये संयुक्त राष्ट्र की स्वीकार्यता हेतु सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता है।
  • जी-4 देशों के मंत्रियों ने व्यक्त किया कि सुरक्षा परिषद सुधार का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के भारी बहुमत के बावजूद, 2009 में शुरू हुई बातचीत ने 10 वर्षों में वास्तविक प्रगति नहीं की है।
  • इस बैठक के दौरान जी-4 देशों के मंत्रियों ने सुरक्षा परिषद सुधार की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और उन्होंने अपने देशों के संबंधित अधिकारियों को सुधार कार्य आगे बढ़ाने के तरीके पर विचार करने के लिये काम करने को कहा।
  • उल्लेखनीय है कि जर्मनी और जापान संयुक्त राष्ट्र के बजट में पाँचववें हिस्से का योगदान करते हैं जबकि जी-4 देशों में विश्व की आबादी का पाँचवाँ हिस्सा रहता है।
  • मंत्रियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि "यूएनएससी की वर्तमान संरचना बदलती वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आज की जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिये सुरक्षा परिषद में सुधार किया जाना आवश्यक है।"
  • विदेश मंत्रियों द्वारा दिये गए सामूहिक बयान में संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था की कार्यपद्धति को मज़बूत करने के साथ-साथ एक-दूसरे की उम्मीदवारी के लिये उनके समर्थन पर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।

ट्रंप के आरोप

  • UNSC के स्थायी सदस्यों के रूप में शामिल होने के इन चार देशों की मांग के लिये अमेरिका का कोई सक्रिय विरोध नहीं है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने सुधार के लिये एक सौहार्द्रपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है।
  • अपने भाषण में ट्रंप ने बहुपक्षीय संस्थानों के खिलाफ व्यापक आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर हमला किया।
  • इस प्रक्रिया पर नज़र रखने वाले राजनयिकों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय निकायों में अमेरिकी असंतोष को देखते हुए, UNSC के पाँच स्थायी सदस्यों में से एक चीन ने इस निकाय के विस्तार के लिये किये जा रहे प्रयासों को धीमा कर दिया है।
  • एक अधिकारी के अनुसार, हालाँकि सुधार के लिये कोई सक्रिय अमेरिकी समर्थन नहीं है, जबकि अन्य देशों को इस दिशा में कदम उठाने और संयुक्त राष्ट्र के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी साझा करने के लिये ट्रंप द्वारा किये गए आह्वान से सक्रिय चीनी विरोध के मुकाबले सुधार का समर्थन हो सकता है।

जी-4 देश और कॉफ़ी क्लब

  • सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग के लिये जापान, जर्मनी, भारत और ब्राज़ील ने जी-4 के नाम से एक गुट बनाया है और स्थायी सदस्यता के मामले में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
  • सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में विस्तार का यूएफसी (Uniting for Consensus-UFC) देश विरोध करते हैं। इनमें इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको, मिस्र, स्पेन, अर्जेंटीना और दक्षिण कोरिया जैसे 13 देश शामिल हैं, जिन्हें 'कॉफ़ी क्लब' कहा जाता है।
  • कॉफ़ी क्लब के देश स्थायी सदस्यता के विस्तार के पक्षधर न होकर अस्थायी सदस्यता के विस्तार के समर्थक हैं, लेकिन इन देशों की आशंका सामूहिक न होकर व्यक्तिगत हितों पर कहीं अधिक टिकी है।

सुरक्षा परिषद क्या है?

  • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हुआ था और इसके पाँच स्थायी सदस्य (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) हैं।
  • सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के उस शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है, जब सुरक्षा परिषद का गठन किया गया था।  
  • इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है। स्थायी और अस्थायी सदस्य बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद के अध्यक्ष बनाए जाते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 27 सितंबर 2018

वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (GSTN)

  • हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जीएसटी नेटवर्क (GSTN) को 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी में बदलने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी।
  • GSTN के पुनर्गठन के बाद इसका स्वामित्त्व केंद्र तथा राज्यों के बीच बराबर रूप से बाँटा जाएगा। हर राज्य की हिस्सेदारी समानुपातिक आधार पर काम करेगी।
  • GSTN नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली जीएसटी के लिये आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करता है।
  • वर्तमान में केंद्र तथा राज्यों के पास जीएसटी नेटवर्क की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। शेष 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी पाँच निजी वित्तीय संस्थानों- एचडीएफसी लिमिटेड, एचडीएफसी बैंक लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड, एनएसई सामरिक निवेश कंपनी और एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के पास है।
  • GSTN बोर्ड निजी कंपनियों द्वारा धारण किये गए इक्विटी के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करेगा।
  • बोर्ड की मौजूदा संरचना में बदलाव कर इसमें केंद्र और राज्यों के तीन निदेशकों, बोर्ड द्वारा मनोनीत तीन अन्य स्वतंत्र निदेशकों एवं एक अध्यक्ष तथा एक सीईओ को शामिल किया जाएगा। इस प्रकार अब निदेशकों की कुल संख्या 11 हो जाएगी।
  • GSTN को 28 मार्च, 2013 को यूपीए सरकार द्वारा एक निजी लिमिटेड कंपनी के रूप में शामिल किया गया था।

एगमार्क हेतु ऑनलाइन एप्लीकेशन की शुरुआत

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि उत्पादों हेतु एगमार्क प्रमाणीकरण के लिये ऑनलाइन सॉफ्टवेयर की शुरुआत की है।

  • एगमार्क प्रमाणीकरण से संबंधित आवेदन प्रक्रिया विपणन व निरीक्षण निदेशालय (डीएमआई) द्वारा ऑनलाइन की जाएगी। आवेदन की प्रक्रिया सरल, त्वरित, पारदर्शी और 24x7 होगी।
  • ऑनलाइन एगमार्क प्रणाली के माध्यम से अधिकार प्रमाण पत्र, प्रिंटिंग प्रेस की अनुमति, प्रयोगशालाओं की अनुमति और प्रयोगशाला सूचना प्रबंधन प्रणाली से संबंधित सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।
  • एग्मार्क एक प्रमाणन चिन्ह है जो सरकारी एजेंसी विपणन व निरीक्षण निदेशालय द्वारा अनुमोदित मानकों के समूह के अनुरूप है।
  • एग्मार्क प्रमाणन के लिये मौजूदा प्रक्रिया के तहत आवेदनकर्त्ता को स्वयं उपस्थित होना पड़ता था। साथ ही इस प्रक्रिया में समय भी अधिक लगता था।
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा आधुनिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग ने इन प्रक्रियाओं को ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक सुविधा प्रदान करके आसान, भरोसेमंद और किफायती बना दिया है।
  • नई ऑनलाइन आवेदन प्रणाली में आवेदकों के लिये शुल्क की रसीद ऑनलाइन प्राप्त करने का भी प्रावधान हैं। भुगतान gov.in वेबसाइट के द्वारा डिजिटल मोड में प्राप्त किया जाएगा।

अस्त्र बियॉन्ड विज़ुअल रेंज मिसाइल

हाल ही में भारतीय वायुसेना ने स्वदेशी रूप से तैयार की गई बियॉन्ड विज़ुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (BVRAAM) का सुखोई- 30 (SU-30) लड़ाकू विमान के ज़रिये सफल परीक्षण किया।

  • यह परीक्षण पश्चिम बंगाल में पश्चिम मेदनीपुर ज़िले के खड़कपुर स्थित कलाईकुंडा एयरफोर्स स्टेशन से किया गया।
  • कृत्रिम लक्ष्य के साथ किया गया यह परीक्षण मिशन के सभी मानकों और उद्देश्यों पर खरा उतरा।
  • अभी तक किये गए परीक्षणों की श्रृंखला में ‘अस्त्र’ को पूरी तरह से SU- 30 लड़ाकू विमान द्वारा छोड़ा गया था।
  • यह हवाई परीक्षण इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्व में किये गए परीक्षणों की श्रृंखला का अंतिम हिस्सा था।
  • ‘अस्त्र’ मिसाइल हथियार प्रणाली में सर्वश्रेष्ठ है और अब तक इसके 20 से अधिक परीक्षण हो चुके हैं।
  • अस्त्र भारत का पहला स्वदेश निर्मित दृश्य सीमा से परे हवा-से-हवा में मार करने वाला मिसाइल है। इसे DRDO द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह उन्नत प्रक्षेपास्त्र लड़ाकू विमान चालकों को 80 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन के विमानों पर निशाना लगाने और उन्हें मार गिराने की क्षमता प्रदान करता है।
  • DRDO ने ‘अस्त्र’ प्रक्षेपास्त्र को मिराज 2000 H, मिग 29, सी हैरियर, मिग 21, HAL तेजस और SU-30 विमानो में लगाने के लिये विकसित किया है।
  • इसमें ठोस ईंधन प्रणोदक का इस्तेमाल किया जाता है।

हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी

लोकोपकारी सहायता और आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR) पर हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी के कार्यकारी समूह (IWG) की बैठकों की श्रृंखला में तीसरी बैठक का आयोजन पूर्वी नौसेना कमान के मुख्यालय, विशाखापत्तनम में 27-28 सितंबर, 2018 को निर्धारित है।

  • हिंद महासागर क्षेत्र के देशों की क्षेत्रीय ताकत को भुनाने के लिये फरवरी 2008 में हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी की शुरुआत की गई थी।
  • यह 21वीं सदी की पहली महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा पहल थी।
  • इसमें हिंद महासागर क्षेत्र के 35 तटीय देशों को चार उपक्षेत्रों – दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, पूर्वी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया सहित दक्षिण-पूर्व एशिया में बाँटा गया था। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इसमें 24 सदस्य और आठ पर्यवेक्षक नौसेनाएँ हैं।
  • IONS एक क्षेत्रीय मंच उपलब्ध कराता है जहाँ सभी तटीय देशों के नौसेना प्रमुख समय-समय पर रचनात्मक तौर पर एक दूसरे से मिलते हैं जिससे कि क्षेत्र के लिये ज़रूरी तंत्र, कार्यक्रम एवं गतिविधियों का सृजन किया जा सके अथवा उन्हें आगे बढाया जा सके।

IONS की अध्यक्षता

  • IONS के अध्यक्ष का पद चारों उप-क्षेत्रों में क्रमिक रूप से स्थानांतरित होता रहता है।
  • 2008 से 2010 - भारत
  • 2010 से 2012 – संयुक्त अरब अमीरात
  • 2012 से 2014 – दक्षिण अफ्रीका
  • 2014 से 2016 – ऑस्ट्रेलिया
  • 2016 से 2018 – बांग्लादेश

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