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डेली न्यूज़

  • 27 Aug, 2018
  • 24 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन नेपाल में

चर्चा में क्यों?

दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक समूह के सदस्य राष्ट्रों द्वारा मुक्त व्यापार समझौते और बेहतर कनेक्टिविटी जैसे उपायों के माध्यम से इसके उच्चतर रूपरेखा और पुनरुत्थान की मांग की जा रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • नेपाल द्वारा चौथे बिम्सटेक (BIMSTEC) शिखर सम्मलेन की मेजबानी 30-31 अगस्त, 2018 को की जाएगी। इस सम्मलेन में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने कि उम्मीद है।
  • उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह नई दिल्ली में एक सम्मलेन के दौरान बांग्लादेश, थाईलैंड और श्रीलंका द्वारा बंगाल की खाड़ी पहल के लिये बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (BIMSTEC) की ‘स्पष्टता’ बढ़ाने की मांग की गई। साथ ही इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये एक जीवंत और संभावना से भरे हुए क्षेत्र के रूप में देखा।

बिम्सटेक के बारे में

  • बिम्सटेक का गठन 1997 में हुआ था।
  • इसके सात सदस्य देश हैं- बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, थाईलैंड और श्रीलंका।
  • यहाँ विश्व की लगभग 22% आबादी या 1.6 अरब लोग निवास करते हैं जिनका  संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 2.8 खरब डॉलर है।
  • उपर्युक्त प्रभावशाली आँकड़ों के बावजूद संगठन के पास पिछले इक्कीस वर्षों को उपलब्धि के रूप में अभिव्यक्त करने के लिये कुछ भी नहीं है।
  • इस क्षेत्रीय मंच को आगे बढ़ाने के लिये इन सात देशों के नेताओं ने शिखर वार्ता के स्तर पर केवल तीन बार- 2004, 2008 और 2014 में बैठक आयोजित की ।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2016 में ब्रिक्स आउटरीच फोरम में सदस्यों को आमंत्रित किये जाने से इसे काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था।
  • भारत द्वारा आमंत्रण को एक संकेत के रूप में देखा गया कि वह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के बदले इस समूह को वरीयता दे रहा है जिसकी प्रगति भारत – पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण बाधित है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने अपने सैन्य प्रतिष्ठान पर आतंकवादी हमले के बाद वर्ष 2016 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मलेन से स्वयं को अलग कर लिया था।

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियाँ:

  • इसके समूहीकरण से पूर्व वर्तमान वैश्वीकरण के युग में इसके अंतर्क्रियात्मक सहयोग को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • 2014 में ढाका में बिम्सटेक के सचिवालय की स्थापना की गई है लेकिन इसकी पहुँच को सार्क, आसियान जैसे अन्य संगठनों की तरह बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • समूह के बीच व्यापार और निवेश को भी बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को चीन और अमेरिका की नीतियों का पालन करना चाहिये जिन्होंने अपने पड़ोसी देशों में व्यापार और निवेश परियोजनाओं पर काफी निवेश किया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय मोटे अनाज दिवस : मोटे अनाजों को प्रोत्साहन

चर्चा में क्यों?

भारत, दुनिया में मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। देश के  विभिन्न राज्यों में लोगों के मेनू में मोटे अनाजों को लाने के लिये कई कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। 

प्रमुख बिंदु 

  • सरकार पोषण सुरक्षा हासिल करने के लिये मिशन स्तर पर रागी और ज्वार जैसे मोटे अनाजों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। बाजरा, जिसे कि पोषक अनाज कहा जाता है, को समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है और इसे मध्यान्ह भोजन योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत शामिल किया जा रहा है।
  • पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिये बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं क्योंकि 2016-17 के फसल वर्ष में खेती का रकबा घटकर 1 करोड़ 47.2  लाख हेक्टेयर रह गया है जो वर्ष 1965- 66 में 3 करोड़ 69 लाख हेक्टेयर था।
  • बाजरा फसलों का रकबा बढ़ाने के उद्देश्य से वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिये पंचवर्षीय योजना के तहत मोटे अनाजों के उपभोग की मांग बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
  • कार्यक्रम के तहत बाजरा के पोषण और स्वास्थ्य लाभों पर ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है।

राष्ट्रीय मोटे अनाज दिवस

  • केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह द्वारा औपचारिक रूप से मोटे अनाजों के राष्ट्रीय वर्ष का उद्घाटन करने के पश्चात् इसे 28 सितंबर को पुणे में उत्सव के रूप में शुरू किया जाएगा ।
  • 16 नवंबर को राष्ट्रीय ज्वार बाजरा (millets) दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया है।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च (IIMR) ने हाल ही में एक राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया है जहाँ सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के हितधारकों ने मोटे अनाजों के राष्ट्रीय वर्ष के संचालन के लिये रोडमैप पर चर्चा की और इसे अंतिम रूप दिया।
  • मोटे अनाजों के मूल्यवर्द्धित उत्पादों की मांग 2-3 गुना बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। हमें मिलेट्स उत्पादों के लिये एक सतत् ब्रांड बनाने की ज़रूरत है।
  • राष्ट्रीय मिशन मिलेट्स परिवार की सभी फसलों का उत्पादन दोगुना अर्थात् 31.74 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखता है।
  • पुणे में इसकी शुरुआत के बाद राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया पर अभियान चलाए जाएंगे। प्रचार गतिविधियों को लोकप्रिय बनाने के लिये ब्रांड एंबेसडरों को शामिल किया जाएगा।

मोटे अनाजों का महत्त्व 

  • दानों के आकार के आधार पर मोटे अनाजों को दो भागों में बाँटा गया है। पहला मोटा अनाज जिनमें ज्वार और बाजरा आते हैं। दूसरा, लघु अनाज जिनमें बहुत छोटे दाने वाले मोटे अनाज जैसे रागी, कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आदि आते हैं।
  • मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक लाभ हैं जैसे सूखा सहन करने की क्षमता, फसल पकने की कम अवधि, उर्वरकों, खादों की न्यूनतम मांग के कारण कम लागत, कीटों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता।
  • कम पानी और बंजर भूमि तथा  विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं। सल्हार, कांग, ज्वार, मक्का, मडिया, कुटकी, सांवा, कोदो आदि में अगर प्रोटीन, वसा, खनिज तत्त्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा कैलोरी, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड की तुलना गेहूँ, चावल जैसे अनाजों के साथ की जाए तो किसी भी प्रकार से इन्हें कम नहीं आँका जा सकता।
  • भारत के राजपत्र 13 अप्रैल, 2018 के अनुसार, मिलेट (ज्वार, बाजरा, रागी आदि) में देश की पोषण संबंधी सुरक्षा में योगदान देने की बहुत अधिक क्षमता है। 
  • इस प्रकार मोटे अनाजों में न केवल पोषक तत्त्वों का भंडार है बल्कि ये जलवायु लचीलेपन वाली फसलें भी हैं और इनमें अद्भुत पोषण संबंधी विशेषताएँ भी हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था

भुगतान बैंक द्वारा ग्राहकों की सेवा हेतु कई उपायों पर ज़ोर

चर्चा में क्यों?

सर्वव्यापी डाकिया, जो पूरे देश में पत्र, पार्सल और मनी ऑर्डर से संबंधित सेवा प्रदान करते हैं, को पार्ट-टाइम बैंकर की भूमिका निभाने के लिये प्राथमिकता दी जा रही है| यह कार्य स्मार्टफोन और बॉयोमेट्रिक उपकरणों को खरीदने के लिये सरकारी स्वामित्व वाले इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB) की एक महत्त्वाकांक्षी योजना के माध्यम से किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • IPPB, जिसे 17 अगस्त, 2016 को डाक विभाग के तहत 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व के साथ पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में निगमित किया गया था, डोरस्टेप बैंकिंग सुविधा के लिये लगभग 1.6 लाख स्मार्टफोन और लगभग 2.7 लाख बायोमेट्रिक डिवाइस (स्कैनर) खरीदना चाहता है। इसका टैगलाइन “आपका बैंक, आपके द्वार” है|
  • यह देश भर में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खरीदने में सेवाप्रदाताओं की मदद करेगा जो यह  प्रदर्शित करता है कि यह नया बैंक अपने प्रतिस्पर्द्धियों को किस प्रकार चुनौती देने के लिये तैयार है।
  • इसके तहत  भुगतान और प्रेषण सेवाएँ प्रदान की जाएंगी साथ ही साझाकरण के आधार पर गैर-जोखिम बीमा और म्यूचुअल फंड उत्पादों, उदाहरण के लिये साधारण वित्तीय उत्पादों का वितरण वास्तव में जोर पकड़ रहा है।
  • IPPB ने कहा है कि 3,250 एक्सेस पॉइंट्स के लॉन्च होने पर वह ज़िला, शहर और गाँव स्तर पर अपने ग्राहकों की सेवा के लिये लगभग 1.55 लाख डाकघरों और तीन लाख डाक कर्मचारियों के विशाल डाक नेटवर्क का लाभ उठाएगा।
  • संचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने मार्च में लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा था कि IPPB ने रायपुर और रांची में पायलट शाखा की शुरुआत की है।
  • उन्होंने कहा कि 1.55 लाख डाकघरों के साथ आईपीपीबी शाखाओं का पूर्ण एकीकरण किया जाएगा ताकि प्रत्येक डाकघर, डाक विभाग के आउटलेट और भुगतान बैंक तकनीकी तथा व्यावसायिक व्यवहार्यता के साथ एक एक्सेस पॉइंट के रूप में कार्य कर सके| अप्रैल 2018  से 650  शाखाओं की शुरुआत अखिल भारतीय स्तर पर की गई है|
  • IPPB अपने बैंकिंग परिचालनों के लिये डाक विभाग के एटीएम नेटवर्क का लाभ उठाएगा जो पहले से ही अन्य बैंकों के एटीएम नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। डाक विभाग में वर्तमान में 995 एटीएम हैं।

मांग को पूरा करना

  • डाक विभाग यह मानता है कि  देश के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर भारतीय आबादी की गतिशीलता ने संचार और वित्तीय सेवाओं के संबंध में नई और ज़रूरी मांगों को जन्म दिया है।
  • जिस गति के साथ संचार और अन्य प्रकार के लेन-देन को उच्च स्तर की विश्वसनीयता के साथ निष्पादित करने की आवश्यकता है उसके अनुरूप यह कार्य अब वास्तविक समय में किया जा रहा है।
  • विभाग ने अपनी रणनीतिक योजना में कहा है कि पहुँच, पारदर्शिता, विश्वसनीयता और गति के साथ बेहतर सुविधाओं, सेवाओं और उत्पादों की आवश्यकता बाज़ार में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 27 अगस्त, 2018

विश्व हिंदी सम्मलेन

  • भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय और मॉरीशस सरकार के सहयोग से 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन 18-20 अगस्त 2018 तक मॉरीशस में किया गया।
  • भारत के अतिरिक्त मॉरीशस विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जो 11वें विश्व हिंदी सम्मलेन के साथ तीसरी बार इस आयोजन की मेज़बानी कर रहा है।
  • इस अवसर पर मॉरीशस के पूर्व प्रधानमंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ ने कहा कि हम भारत की संतान हैं और भारत हमारी माता है। इस तरह एक बेटे की ज़िम्मेदारी पूरी करते समय हम हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयासों का समर्थन करते हैं।

अभी तक आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन इस प्रकार हैं-

 1. प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर, भारत 10-12 जनवरी,1975
 2. द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन पोर्ट लुई, मॉरीशस 28-30 अगस्त,1976
 3. तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन नई दिल्ली, भारत 28-30 अक्तूबर,1983
 4. चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन पोर्ट लुई, मॉरीशस 02-04 दिसंबर,1993
 5. पाँचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन पोर्ट ऑफ स्पेन, ट्रिनिडाड एण्ड टोबेगो 04-08 अप्रैल,1996
 6. छठा विश्व हिंदी सम्मेलन लंदन,यू. के. 14-18 सितंबर,1999
 7. सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन पारामारिबो,सूरीनाम 06-09 जून, 2003
 8. आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयार्क,संयुक्त राज्य अमरीका 13-15 जुलाई, 2007
 9. नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन जोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका 22-24 सितंबर, 2012
 10. दसवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल, भारत 10-12 सितंबर, 2015


चीता पुनर्प्रवेश परियोजना

  • हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को राज्य के नौरदेही अभयारण्य में चीता को फिर से प्रवेश कराने की योजना को पुनर्जीवित करने के लिये पत्र लिखा है।
  • इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की कल्पना वर्ष 2009 में की गई थी जो निधियन में  कमी के कारण बाधित हो गई थी।
  • देश की आखिरी मादा चीता की मौत 1947 में छत्तीसगढ़ में हुई थी। इसके उपरांत धरती के सबस तेज़ जानवर को सन् 1952 में भारत से विलुप्त (Extinct) घोषित कर दिया गया। 
  • उल्लेखनीय है कि आईयूसीएन की रेड डाटा बुक में इसे सुभेद्य (Vulnarable) वर्ग में रखा गया है। 
  • भारत के वन्यजीवन संस्थान ने देहरादून में छः साल पहले ₹ 260 करोड़ की लागत से चीता के पुन: प्रवेश परियोजना तैयार की थी।
  • उल्लेखनीय है नौरदेही अभयारण्य चीता के लिये सबसे उपयुक्त स्थलों में से एक है क्योंकि इसके कम घने जंगल तेज़ गति से दौड़ने के लिये अनुकूल हैं। इसके अलावा अभयारण्य में चीता के लिये शिकार भी बहुतायत मात्रा में उपलब्ध है।
  • पूर्व कार्य-योजना के अनुसार लगभग 20 चीतों को  अफ्रीका के नामीबिया से नौरदेही स्थानांतरित किया जाना था। गौरतलब है कि नामीबिया चीता संरक्षण कोष ने तब भारत को मादा चीता दान करने की इच्छा जाहिर की थी।

शेयरों की पुनर्खरीद

  • पुनर्खरीद एक ऐसा तंत्र है जिसके माध्यम से एक सूचीबद्ध कंपनी बाज़ार से शेयर वापस खरीदती है। पुनर्खरीद को खुली बाज़ार खरीद या निविदा प्रस्ताव मार्ग के माध्यम से किया जा सकता है।
  • खुले बाज़ार तंत्र के तहत कंपनी द्वितीयक बाज़ार से शेयरों की पुनर्खरीद करती है जबकि निविदा प्रस्ताव के तहत शेयरधारक पुनर्खरीद प्रस्ताव के दौरान अपने शेयरों की निविदा दे सकते हैं।
  • ऐतिहासिक रूप से अधिकांश कंपनियों ने खुले बाज़ार मार्ग को प्राथमिकता दी थी।

कंपनियाँ क्यों करती है पुनर्खरीद?

  • साधारण रूप में कोई भी कंपनी तभी पुनर्खरीद करती है जब उसके पास पर्याप्त नकद आरक्षित मौजूद होता है या  उसे ऐसा प्रतीत होता है कि बाज़ार में उसके शेयर का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
  • इस तंत्र को अपनाने के लिये कंपनी को सामान्य बैठक में विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता होती है। कोई कंपनी शेयरों की पुनर्खरीद के लिये अपनी कुल मुक्त आरक्षित (Free reserve) और भुगतान पूंजी (Paid-up capital) का अधिकतम 25% का ही उपयोग कर सकती है।
  • हाल ही में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पुनर्खरीद के नियमों में संशोधन किया है जो खुदरा निवेशकों को प्रस्ताव में उचित हिस्सा देता है और पुनर्खरीद प्रस्ताव में खुदरा शेयरधारकों के लिये 15% आरक्षण निर्धारित करता है।

लाभ

  • चूँकि पुनः खरीदे गए शेयर समाप्त हो जाते हैं इसलिये प्रति शेयर पर होने वाली कमाई स्वतः बढ़ जाती है।
  • शेयरधारकों को एक आकर्षक निकास विकल्प मिलता है, विशेषकर तब जब शेयरों का कारोबार कम-से-कम किया जाता है क्योंकि आमतौर पर पुनर्खरीद मौजूदा बाज़ार कीमत की तुलना में अधिक कीमत पर की जाती है।
  • यह शेयरधारकों को पुरस्कृत करने के लिए एक तरीके के रूप में लाभांश से भी अधिक कर-कुशल है।

कमियाँ

  • इसके बाद अधिमानी आवंटन (preferential allotment) शेयर जारी करने पर समयबद्ध सीमा भी आरोपित कर दी जाती है।
  • एक कंपनी पुनर्खरीद बंद होने की अंतिम तारीख से एक वर्ष के भीतर दूसरा पुनर्खरीद प्रस्ताव नहीं दे सकती है।

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी

  • बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) द्वारा ओडिशा के चिल्का झील के निकट चिल्का विकास प्राधिकरण (CDA) के आर्द्र्भूमि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में एक क्षेत्रीय इकाई की शुरुआत की जाएगी।
  • BNHS की क्षेत्रीय इकाई पक्षी प्रवासन और जल पक्षियों की गिनती तकनीकों पर स्वयंसेवकों के साथ वन्यजीव और CDA कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करेगी।
  • यह केंद्र नमूनों को इकट्ठा करके एवियन रोग पर शोध करेगा और नालाबाना पक्षी अभयारण्य की निगरानी करेगा।
  • 1883 में स्थापित।
  • मुंबई आधारित।
  • BNHS पूरे देश में वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर संरक्षण पर काम कर रहा एक अग्रणी गैर-सरकारी संगठन है।

जैव विविधता और पर्यावरण

पंबन जल-संधि पर होगा आठ लेन वाले पुल का निर्माण

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने रामेश्वरम द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिये ₹ 1,250 करोड़ की अनुमानित लागत से पंबन जल-संधि पर विश्व स्तरीय आठ-लेन सड़क पुल के निर्माण हेतु एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को तैयार करने का कार्य शुरू कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह पुल मौजूदा 2.345 किलोमीटर लंबे अन्नाई इंदिरा गांधी पुल के निकट ही बनाया जाएगा। बंगलूरू स्थित फीडबैक इंफ्रा लिमिटेड इस परियोजना के लिये डीपीआर तैयार कर रही है।
  • मंडपम क्षेत्र में भूमि पर और समुद्र में मृदा परीक्षण का कार्य शुरू किया जा चुका है और डीपीआर दो महीने में पूरी हो जाएगी। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने परियोजना के लिये धन की मंज़ूर दे दी है और डीपीआर के पूरा होने के तुरंत बाद कार्य शुरू हो जाएगा।
  • एनएचएआई ने पुल के नीचे से नौवहन हेतु पुल की ऊँचाई निर्धारित करने के लिये पंबन बंदरगाह कार्यालय से एक रिपोर्ट मांगी थी। पुल दक्षिण की तरफ बनाया जाएगा और पंबन जलसंधि के हिस्से को कवर करने के बाद यह पंबन क्षेत्र में ज़मीन पर लगभग एक किलोमीटर तक खंभों पर निर्मित होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मानव बस्तियाँ कम-से-कम प्रभावित हों।
  • यह पुल 39 किलोमीटर लंबे परमकुडी-रामानाथापुरम अनुभाग और 63 किलोमीटर लंबे रामानाथापुरम-रामेश्वरम अनुभाग की चार लेन वाली सड़क परियोजना के हिस्से के रूप में मुंबई में केबल पर निर्मित पुल बांद्रा-वर्ली सी लिंक की तर्ज पर बनाया जाएगा।
  • जबकि इन अनुभागों में दो लेन वाली सड़क को चार लेन तक बढ़ा दिया गया है, भविष्य की ज़रूरतों पर विचार करते हुए इस पुल में आठ लेन होंगे। मौजूदा सड़क पुल, जो 29 साल से अधिक पुराना है, का इस्तेमाल हल्के मोटर वाहनों के लिये किया जाएगा।
  • एनएचएआई द्वारा लगभग 650 करोड़ रुपए की लागत से परमकुडी से रामानाथापुरम तक चार लेन वाली सड़क का विस्तार करने के लिये भूमि अधिग्रहण का कार्य पूरा किया जा चुका है और जल्द ही उस पर काम शुरू कर दिया जाएगा। अब रामानाथापुरम-रामेश्वरम विस्तार में भी भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।

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