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डेली न्यूज़

  • 27 Jun, 2019
  • 44 min read
कृषि

जल शक्ति अभियान

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (Department of Personnel and Training) ने पानी की कमी से जूझ रहे देश के 255 ज़िलों में वर्षा जल के संचयन और संरक्षण हेतु 1 जुलाई, 2019 से ‘जल शक्ति’ अभियान की शुरू करने की घोषणा की है।

  • उल्लेखनीय है कि जल से संबंधित मुद्दे राज्य सरकार के अंतर्गत आते है लेकिन इस अभियान को केंद्र सरकार के संयुक्त या अतिरिक्त सचिव रैंक के 255 IAS अधिकारियों द्वारा समन्वित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, इस अभियान में अंतरिक्ष, पेट्रोलियम एवं रक्षा क्षेत्रों से अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।
  • इस अभियान को दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में 1 जुलाई से 15 सितंबर तक जबकि उत्तर-पूर्व मानसून से वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में 1 अक्तूबर से 30 नवंबर तक संचालित किया जाएगा।
  • इसके अंतर्गत गंभीर रूप से जल स्तर की कमी वाले 313 ब्लॉक शामिल किये जाएंगे। 1,186 ऐसे ब्लॉक भी शामिल किये जाएंगे जहाँ भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है। साथ ही 94 ज़िले ऐसे हैं जहाँ भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है।
  • जल शक्ति अभियान का उद्देश्य महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना और ग्रामीण विकास मंत्रालय के एकीकृत जलसंभरण प्रबंधन कार्यक्रम के साथ-साथ जल शक्ति और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही मौजूदा जल पुनर्भरण और वनीकरण योजनाओं के तहत जल संचयन, संरक्षण और पुनर्भरण गतिविधियों में तेज़ी लाना है।
  • मोबाइल एप्लिकेशन के ज़रिये इस कार्यक्रम की रियल टाइम निगरानी की जा सकेगी तथा इसे indiawater.gov.in के डैशबोर्ड पर भी देखा जा सकेगा।
  • इस योजना के तहत ब्लॉक और ज़िला स्तर पर जल संरक्षण योजना का मसौदा तैयार किया जाएगा।
  • बेहतर फसल विकल्पों एवं सिंचाई के लिये जल के अधिक कुशल उपयोग को बढ़ावा देने हेतु किसान विज्ञान केंद्र द्वारा मेले का आयोजन किया जाएगा।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना

(Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee scheme- MGNREGs)

  • भारत में लागू यह एक रोज़गार गारंटी योजना है।
  • राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम के रूप में इसकी शुरुआत 2 फरवरी, 2006 को आंध्रप्रदेश से की गई।
  • 2 अक्तूबर, 2009 से इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) कर दिया गया।
  • यह कानून किसी वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वैसे सभी वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल श्रम के लिये तैयार हों, 100 दिन के रोज़गार (सूखा प्रभावित क्षेत्र और जनजाति क्षेत्रों में 150 दिनों का रोज़गार) की गारंटी प्रदान करता है।
  • इस कानून के अनुसार, लाभार्थियों में कम-से-कम 33 प्रतिशत महिलाएँ अवश्य होनी चाहिये।
  • इस योजना का क्रियान्वयन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है तथा लाभ प्राप्तकर्त्ता इकाई परिवार है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय

(Rural Development Ministry- RDM)

  • अक्तूबर, 1974 के दौरान ग्रामीण विकास विभाग (Department of Rural Development) खाद्य और कृषि मंत्रालय (Ministry of Food and Agriculture) के अंग के रूप में अस्तित्व में आया। 18 अगस्त, 1979 को इसे ग्रामीण पुनर्गठन मंत्रालय (Ministry of Rural Reconstruction) नाम दिया गया।
  • 23 जनवरी, 1982 को इस मंत्रालय का नाम ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) कर दिया गया।
  • 2 जुलाई, 1992 को इस मंत्रालय के अधीन बंजर भूमि विकास विभाग (Department of Wasteland Development) के नाम से एक विभाग का गठन किया गया।

कार्य

  • यह मंत्रालय व्यापक कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करके ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाने का कार्य करता आ रहा है।
  • इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी उन्मू्लन, रोज़गार सृजन, अवसंरचना विकास तथा सामाजिक सुरक्षा है।
  • इसके दो विभाग हैं- ग्रामीण विकास विभाग (Department of Rural Development) तथा भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources)।

जलशक्ति मंत्रालय

(Jalshakti Ministry)

  • जलशक्ति मंत्रालय (Jalshakti Ministry) का सृजन दो मंत्रालयों का विलय करके किया गया है, ये दोनों मंत्रालय हैं:
  • जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय (Ministry of Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation)
  • पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय (Ministry of Drinking Water and Sanitation)
  • जल संबंधी सभी कार्य अब इस मंत्रालय के दायरे में आते हैं।
  • इससे पहले कई केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा जल संबंधी कार्यों का निर्वहन अलग-अलग किया जाता था जैसे- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ के तहत अधिकांश नदियों के संरक्षण का कार्य किया जाता है, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय’ द्वारा शहरी जलापूर्ति की देख-रेख की जाती है तथा सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाएँ कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSMEs हेतु तनावग्रस्त परिसंपत्ति कोष

चर्चा में क्यों?

सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को समर्थन देने के लिये RBI पैनल ने 5,000 करोड़ रुपए की तनावग्रस्त परिसंपत्ति कोष (Stressed Asset Fund) तथा एक गैर-लाभकारी विशेष प्रयोजन व्हीकल(SPV) की स्थापना की सिफारिश की है। यह बैंकों को 20 लाख रुपये तक संपार्श्विक मुक्त लोन (Collateral Free Loan) का विस्तार करने और क्राउड फंडिंग में मदद करेगा।

MSMEs

प्रमुख बिंदु :

  • सेबी के पूर्व चेयरमैन यू.के. सिन्हा की अध्यक्षता में MSMEs पर गठित विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया है कि यह कोष उन सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के क्लस्टर इकाइयों को सहायता प्रदान करेगा जो बाह्य कारकों जैसे-प्लास्टिक पर प्रतिबंध,निर्यात के माध्यम से सामानों की डंपिंग आदि के कारण गैर निष्पादक होती जा रही हैं।
  • बड़ी संख्या में MSME बंद हो रहे हैं।यह कोष , दिवालिया और बंद हो चुकी इकाइयों को उभरने हेतु इक्विटी निवेश के लिये भी उपलब्ध होगा और इन्हें पुनर्जीवित करने में सहायक होगा, अर्थात् इनको डूबने से बचाएगा।
  • समिति ने कहा कि MSME मंत्रालय विभिन्न एजेंसियों द्वारा MSME के लिये विशेष रूप से अनुकूल व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के लिये मार्ग प्रशस्त हेतु एक गैर-लाभकारी विशेष प्रयोजन व्हीकल(SPV) स्थापित करने पर विचार कर सकता है।

राष्ट्रीय परिषद

  • इसके अलावा,इसने नीतियों के अभिसरण और एक समर्थक उद्यम तंत्र के निर्माण के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये एक राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की सिफारिश की है, जिसमें MSME के मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग, कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि, ग्रामीण विकास, रेलवे और सड़क परिवहन मंत्री भी सदस्य के रूप में शामिल होंगे । यह भी कहा गया है कि सभी राज्यों में भी MSME के लिये इसी तरह की परिषदें होनी चाहिये।
  • समिति के अनुसार, MSME को इक्विटी सहायता प्रदान करने के लिये भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) को एक नोडल एजेंसी के रूप में एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहिये जिसमें विभिन्न उद्यम पूंजी कोष भाग ले सकें। इस संबंध में, समिति ने MSME क्षेत्र में निवेश करने वाली उद्यम पूंजी/निजी इक्विटी फर्मों का समर्थन करने के लिये एक सरकार-प्रायोजित निधियों की निधि (Fund of Funds) स्थापित करने की सिफारिश की है।
  • समिति ने यह भी सिफारिश की कि बैंकिंग लोन पोर्टल (PSBLoansIn59Minutes) जो अभी तक केवल मौजूदा उद्यमियों तक ही सीमित है, को नए उद्यमियों की सेवा करने की अनुमति दी जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया के तहत ऋण के लिये आवेदन करने वाले लोग भी शामिल हों और ऋण की सीमा को बढ़ाकर 5 करोड़ रुपए किया जाना चाहिये।
  • समिति की सिफारिशों के अनुसार, सभी क्रेडिट गारंटी योजनाएँ जैसे- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट और राष्ट्रीय क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट कंपनी, RBI विनियमन और पर्यवेक्षण के अधीन होने चाहिये।

विशेष प्रयोजन व्हीकल/ इकाई(SPV)

विशेष प्रयोजन इकाई या SPV किसी कंपनी की एक सहायक कंपनी होती है जो मुख्य संगठन को दिवालिया होने से बचाती है।

  • SPV ज़्यादातर बाज़ार से फंड जुटाने के लिये बनाई जाती है। तकनीकी रूप से SPV एक कंपनी की तरह ही कार्य करती है।
  • इसे कंपनी अधिनियम में निर्धारित कंपनी के नियमों का पालन करना होता है।
  • एक कंपनी की तरह, SPV एक कृत्रिम व्यक्ति है। इसमें एक कानूनी व्यक्ति के सभी गुण निहित होते हैं।
  • यह SPV,शेयर लेने वाले सदस्यों से स्वतंत्र होती है।

क्राउड फंडिंग (Crowd Funding): यह एक बड़े जन समूह से वित्त जुटाने का एक तरीका है। परंपरागत रूप से, एक व्यवसाय, परियोजना या उद्यम को लाभ पहुँचाने के लिये अधिक लोगों को इसमें शामिल किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की अस्थायी सीट

चर्चा में क्यों?

एशिया-प्रशांत के 55 देशों ने एकमत से वर्ष 2021-22 की समयावधि के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council-UNSC) में भारत की अस्थायी सदस्यता हेतु समर्थन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की कूटनीतिक चुनौतियों के बावजूद भी दोनों देशों ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया।
  • 55 सदस्यीय समूह ने अपने सदस्य देशों में से एक को जून 2020 के UNSC की अस्थायी सदस्यता के चुनाव के लिये नामांकित किया।
  • भारत अब आसानी से 193 देशों के समूह वाले UN महासभा के 2/3 सदस्यों का समर्थन प्राप्त करके UNSC की अस्थायी सदस्यता प्राप्त कर लेगा।
  • भारत इसके पहले 7 बार 1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और 2011-2012 की समयावधियों में अस्थायी सदस्य रह चुका है।
  • भारत की 2021-22 की सदस्यता की घोषणा 2013 में कर दी गई थी। उस समय भारत के सामने मज़बूत प्रतिस्पर्द्धी के रूप में अफग़ानिस्तान था लेकिन उसने भारत से अपनी मित्रता के मद्देनज़र स्वयं चुनाव न लड़ते हुए भारत को समर्थन दिया।
  • भारत अपनी स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर UNSC की सदस्यता प्राप्त करेगा साथ ही उसी वर्ष G-20 की बैठक भी नई दिल्ली में आयोजित होगी, जो वैश्विक पटल पर भारत को उभरती महाशक्ति के रूप में पहचान को दर्शाता।
  • एस्टोनिया, नाइज़र, ट्यूनीशिया, वियतनाम और सेंट विंसेंट & द ग्रेनेडाइस UNSC की अस्थायी सदस्यता के लिये जून 2019 की शुरुआत में चुने गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council-UNSC):

  • UNSC अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी है।
  • इसमें सदस्यों की संख्या 15 है, जिसमे 5 स्थायी (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस, चीन) और 10 अस्थायी सदस्य शामिल है।
  • सभी 15 देशों के पास एक वोट होता है।
  • इसके वर्तमान अस्थायी सदस्य पोलैंड, पेरू, कुवैत, आइवरी-कोस्ट, इक्वेटोरियल गिनी (वर्ष 2019 तक) और जर्मनी, बेल्जियम, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और डोमिनिकन गणराज्य (वर्ष 2020 तक) है।

स्रोत:द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का तरलता संकट

चर्चा में क्यों?

हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (Housing Finance Companies) के तरलता संकट (Liquidity Crisis) को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) ने यह निर्णय लिया है कि वह दैनिक आधार पर इन कंपनियों की तरलता स्थिति, परिसंपत्ति-देयता (Asset-Liability) का अंतर और पुनः भुगतान अनुसूची (Repayment Schedules) की निगरानी करेगा।

  • तरलता संकट ऐसी वित्तीय स्थिति को दर्शाता है जिसमें तरलता प्रवाह में कमी आ जाती है। किसी एक कंपनी के लिये इसका अर्थ है कि उसके पास तरलता परिसंपत्तियों की कमी हो जाना जिसके परिणाम स्वरूप कंपनी अपने ज़रूरी कार्य जैसे कर्मचारियों के वेतन, ऋणों के भुगतान आदि को भी चुकाने की स्थिति में नहीं होती।

मुख्य बिंदु

  • सामान्यतः इस प्रकार की कंपनियों को राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank- NHB) द्वारा विनियमित और संचालित किया जाता है, परंतु चूँकि इनका तरलता संकट बैंकों सहित वित्तीय क्षेत्र के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है और इससे अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता में भी परिवर्तन आने की संभावना होती है, ऐसे में RBI द्वारा इन पर नज़र रखना आवश्यक हो जाता है।
  • इस कार्य के लिये NHB के जनरल मैनेजर को RBI के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (Department of Non-Banking Supervision) के मुख्य महाप्रबंधक के साथ नियमित संचार और सहयोग करने लिये कहा गया है।
  • IL&FS के डिफॉल्टर हो जाने के बाद से गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र, बैंकों के साथ विश्वास के संकट (Trust Deficit) से जूझ रहा है।
  • RBI ने NBFS के संकट से जूझते हुए अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने पर ज़ोर दिया है।

राष्ट्रीय आवास बैंक

(National Housing Bank- NHB)

  • NHB की स्थापना संसदीय अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1987 में की गई थी।
  • इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर हाउसिंग फाइनेंस संस्थानों को बढ़ावा देना है।
  • NHB हाउसिंग फाइनेंस संस्थानों को वित्तीय और अन्य सहायता प्रदान करने वाली एक प्रमुख संस्था के रूप में कार्य करती है।
  • NHB हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का पंजीकरण, विनियमन और संचालन भी करता है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत होती है और जिसका प्रमुख कार्य उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित क्षेत्र में निवेश करना होता है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
  • यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न माध्यमों से वित्तीय मध्‍यस्‍थता का कार्य करता है जैसे –
    • जमा स्‍वीकार करना
    • ऋण और अग्रिम देना
    • प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना
    • अंतिम व्ययकर्त्ता को उधार देना
    • थोक और खुदरा व्यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सुपरनोवा विस्फोट के प्रमाण

चर्चा में क्यों?

भारतीय खगोलविदों की एक टीम ने G351.7-1.2 नामक अंतरिक्ष क्षेत्र में सुपरनोवा विस्फोट के प्रमाण प्राप्त किये है। यह सुपरनोवा परमाणु हाइड्रोजन के एक उच्च वेग वाली धारा के रूप में प्राप्त हुआ है। अंतरिक्ष विज्ञान की दृष्टि से यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रकार का विस्फोट कई शताब्दियों से खगोलविदों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।

सुपरनोवा

सामान्य शब्दों में सुपरनोवा का अर्थ अंतरिक्ष में किसी भयंकर और चमकीले विस्फोट से होता है। खगोलविदों के अनुसार जब एक सितारा अपना जीवन-चक्र समाप्त करके अपने जीवनकाल के अंतिम चरण में होता है तो वह एक भयंकर विस्फोट के साथ समाप्त हो जाता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं।

Supernova

मुख्य बिंदु :

  • खगोलविदों ने G351.7-1.2 क्षेत्र में बड़ी संख्या में गैस के बादल पाए तथा अधिक आवृति पर जाँच के बाद इसके सुपरनोवा होने की पुष्टि हुई।
  • परमाणु हाइड्रोजन के एक उच्च वेग वाला यह सुपरनोवा स्कोर्पियस (Scorpius) तारामंडल की दिशा में है।
  • परमाणु हाइड्रोजन के एक उच्च वेग वाली धारा 20 प्रकाश वर्षों की गति से विस्तारित हो रही है और 50 किमी. प्रति सेकंड की गति से यात्रा कर रही है।
  • इस विस्फोट के परिणामस्वरूप किसी ब्लैक होल (black hole) या पल्सर (अत्यधिक चुम्बकीय न्यूट्रॉन तारा) का निर्माण हो सकता है, हालाँकि इससे संबंधित कोई भी प्रमाण खगोलविदों को अब तक नही मिला है।
  • खगोलविदों के समूह ने इस सुपरनोवा का पता लगाने और G351.7-1.2 क्षेत्र की जाँच करने के लिये पुणे स्थित नेशनल सेंटर ऑफ़ रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स (National Centre of Radio Astrophysics) से संचालित होने वाले वृहत मीटरवेव रेडियो दूरबीन (Giant Metrewave Radio Telescope - GMRT) का प्रयोग किया था।
  • सूर्य के 8-10 गुना अधिक द्रव्यमान वाले बड़े सितारे सुपरनोवा विस्फोट के रूप में समाप्त होते हैं। यह विस्फोट कुछ दिनों के लिये बहुत अधिक चमकीला प्रकाश छोड़ता है और फिर धीरे-धीरे यह प्रकाश समाप्त हो जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध से आ सकती है वैश्विक विकास दर में गिरावट

चर्चा में क्यों?

फिच रेटिंग्स के अनुसार, वर्ष 2020 तक अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध से विश्व GDP वृद्धि दर में 0.4 प्रतिशत की कमी हो सकती है और संभवतः वर्ष 2009 के बाद यह सबसे कम वैश्विक GDP वृद्धि दर हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • फिच रेटिंग्स द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, चीन से आयातित 300 बिलियन डॉलर की वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% शुल्क (टैरिफ) से वर्ष 2020 में विश्व आर्थिक उत्पादन में 0.4 प्रतिशत अंक की कमी आएगी। वैश्विक GDP की वृद्धि वर्ष 2019 के लिये 2.7% और वर्ष 2020के लिये 2.4% हो जाएगी जबकि हमारे नवीनतम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य (Global EConomic) के पूर्वानुमान क्रमशः 2.8% और 2.7% थे।
  • वर्ष 2020 में चीन की विकास दर में 0.6 प्रतिशत और अमेरिकी विकास दर में 0.4 प्रतिशत कमी होने की संभावना है।
  • अमेरिका ने चीन से आयातित 300 बिलियन डॉलर के माल पर 25% आयात शुल्क लगाया है और बदले में चीन ने 20 बिलियन डॉलर के अमेरिकी आयातित माल पर 25% आयात शुल्क लगाया है।
  • फिच की रिपोर्ट के अनुसार, कम निर्यात मांग से प्रमुख निर्यातकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और निर्यात क्षेत्र में आय कम हो जाएगी।
  • इन बढ़े आयात शुल्कों का प्रभाव अन्य व्यापारिक भागीदारों को भी प्रभावित करेगा जो कि प्रत्यक्ष रूप से आयात शुल्क से संबंधित भी नहीं है। मौद्रिक नीति की सहज प्रतिक्रिया के बावज़ूद भी वैश्विक विकास में गिरावट आएगी। यह 2009 के बाद से सबसे कमज़ोर वैश्विक विकास दर होगी और वर्ष 2012 की तुलना में थोड़ी खराब होगी, जब यूरोज़ोन संप्रभु ऋण संकट अपने चरम पर था।

फिच रेटिंग:

  • यह न्यूयॉर्क और लंदन स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है।
  • फिच ने रेटिंग के लिये कुछ पैमाने बनाए हैं जैसे कि कंपनी किस तरह का ऋण रखती है और ब्याज दरों जैसे प्रणालीगत परिवर्तनों के प्रति कितनी संवेदनशील है।

यूरोज़ोन संप्रभु ऋण संकट

(Eurozone sovereign debt crisis)

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development- OECD) के अनुसार, वर्ष 2011 में यूरोज़ोन ऋण संकट दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक संकट था।
  • वर्ष 2009 में यह आर्थिक संकट शुरू हुआ था तब ऐसा माना जा रहा था कि ग्रीस दिवालिया हो सकता है।
  • तीन वर्षों में, यह पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड और स्पेन तक बढ़ गया।
  • जर्मनी और फ्राँस के नेतृत्व में यूरोपीय संघ ने इन सदस्यों का समर्थन करने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता ली।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट ‘विश्व की महिलाओं की प्रगति रिपोर्ट 2019-2020’ (Progress of The World’s Women 2019-2020) के अनुसार, लगभग आधे से अधिक विवाहित महिलाओं (25- 54 वर्ष की आयु) की वैश्विक श्रम बल में भागदारी नहीं हैं जबकि लगभग सभी विवाहित पुरुष वैश्विक श्रम बल का हिस्सा हैं।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पारंपरिक रूप से विद्यमान लैंगिक असमानता ने महिलाओं को घरेलू कार्यों तक ही सीमित कर दिया।
  • महिलाओं के सशक्तीकरण एवं उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आंदोलन वर्ष 1990 के दशक के मध्य से प्रारंभ हुए। लेकिन विवाह और संतानों की देखभाल जैसी ज़िम्मेदारियों ने महिलाओं को श्रम बाज़ार से दूर कर दिया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विवाहित महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सबसे अधिक (78.2%) और मध्य और दक्षिणी एशिया क्षेत्र में सबसे कम (29.1%) पाई गई। अपवाद के रूप में उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ विवाहित महिलाओं की श्रम बल में अधिक भागीदारी (73.8%) पाई गई।
  • वैश्विक स्तर पर जिन महिलाओं के बच्चे छोटे (6 वर्ष से कम आयु वाले) हैं उनकी श्रम बल में भागीदारी में भी स्वाभाविक गिरावट दर्ज़ की गई जो लगभग 5.9% है। तुलनात्मक रूप से विश्व में पुरुषों की श्रम-बल भागीदारी में 3.4% की वृद्धि हुई।
  • रिपोर्ट के अनुसार, मध्यम और उच्च आय वाले देशों की तुलना में मातृत्व कारकों ने निम्न-आय वाले देशों में महिलाओं की श्रमबल भागीदारी को कम नहीं किया।
  • संभवतः इसका कारण निम्न आय वाले देशों में गरीबी तथा परिवार की आजीविका चलाने के लिये बच्चे छोटे होने के बावज़ूद भी श्रम बल में बने रहना इनकी मज़बूरी है।
  • भारत और चीन जैसे देशों में आर्थिक वृद्धि के बाद भी महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी में गंभीर गिरावट दर्ज की गई है।
  • वर्ष 1977 से 2018 के बीच भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति में 6.9% तक गिरावट पाई गई जो विश्व स्तर पर सर्वाधिक गिरावट है।
  • इसके लिये निम्नलिखित कारण ज़िम्मेदार हैं:
    • वर्ष 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से शहरी क्षेत्रों में स्थिर भागीदारी।
    • छोटी उम्र (25-40 वर्ष की आयु) में ही ग्रामीण क्षेत्रों में विवाहित महिलाएँ।
    • पुरुषों को नियमित वेतन पर श्रम में भागीदारी से परिवार की आय स्थिर होना।
  • संयुक्त राष्ट्र की महिला कार्यकारी निदेशक के अनुसार, परिवार विविधता के साथ भी लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, यदि निर्णय लेने वाले लोग आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण के युग में महिलाओं के अधिकारों के साथ सकारात्मक व्यवहार करते हैं।
  • रिपोर्ट में महिलाओं को प्रोत्साहन देने वाली आर्थिक नीतियों के निर्माण करने हेतु सिफारिश की गई है जिससे सर्व-समावेशी अर्थव्यवस्था के तहत सभी महिलाओं और पुरुषों को काम और आजीविका के समान अवसर प्राप्त हों।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में होगा भुगतान से संबंधित डेटा का संचयन

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भुगतान से संबंधित नए निर्देश जारी किये हैं। अब किसी भी प्रकार का डेटा एवं सूचनाएँ, जो भुगतान (Payment transcations) से संबंधित हो, उनका भारत में ही भंडारण किया जाएगा।

मुख्य बिंदु

  • इस निर्देश के बाद भुगतान से संबंधित डेटा का भारत में ही संचय किया जाएगा। यदि भुगतान से संबंधित ऐसा कोई डेटा या सूचना देश से बाहर संसाधित हो रहा है, तो उसको भी एक व्यापार दिवस अथवा 24 घंटे, जो भी पहले हो, के भीतर भारत में वापस लाया जाएगा तथा संसाधित स्रोत पर उसे नष्ट करना भी ज़रुरी होगा।
  • भुगतान सेवा प्रदाता कंपनियाँ निर्बाध डेटा प्रवाह के पक्ष में है तथा इसके लिये पैरवी भी कर रहीं है। उनका तर्क है कि यह उपभोक्ताओं के हितों में है।
  • सरकार डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring) द्वारा आसानी से डेटा-स्थानीयकरण (Data Localisation) को आगे बढ़ा रही है लेकिन इससे संबंधित सरकार की नीति इस बजट सत्र में आने वाले डेटा संरक्षण विधेयक के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।
  • हालाँकि RBI का कहना है कि भारत में ही डेटा के संचयन के बावज़ूद कंपनियाँ उपभोक्ता से संबंधित विवादों को सुलझाने में डेटा का उपयोग कर सकती है। साथ ही यदि भुगतान अंतर्देशीय है, तो ऐसे डाटा की एक प्रति देश से बाहर भी रखी जा सकती है। यदि आवश्यक होगा तो ऐसे डेटा को RBI की सहमती के पश्चात् विदेशी विनियामकों के साथ भी शेयर किया जा सकता है।
  • विदेश में डेटा प्रसंस्करण को लेकर RBI का रुख स्पष्ट होने से कंपनियों को भविष्य के संदर्भ में अपनी प्रणाली में बदलाव करने में आसानी होगी लेकिन कंपनियों की दृष्टि से सिर्फ भारत में ही डेटा का संचयन समस्या पैदा कर सकता है।
  • RBI ने अप्रैल 2018 में डेटा स्थानीयकरण के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये थे और कंपनियों को इन नियमों के अनुपालन के लिये छः माह का समय दिया गया था। इन नियमों के संबंध में कंपनियों के विरोध के बावज़ूद केंद्रीय बैंक ने अपने निर्देशों में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया। अब भुगतान क्षेत्र से संबंधित कंपनियाँ इन नियमों के अनुसार अपनी प्रणाली में बदलाव कर रही हैं।

डेटा-स्थानीयकरण

(Data Localisation)

  • डेटा स्थानीयकरण का अर्थ है कि भारतीय नागरिकों से संबंधित जानकारी या सूचनाओं का संकलन भारत में ही प्रसंस्कृत एवं संचित किया जाएगा। कोई भी कंपनी न तो देश के बाहर डेटा को ले जा सकती है और न ही देश से बाहर इसका उपयोग कर सकती है।

डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring)

  • वास्तविक समय में एक स्थान से एक संग्रहण डिवाइस (Storage Device) में डेटा की प्रतिलिपि बनाने का कार्य।
  • इस प्रक्रिया से डेटा पर निगरानी रखी जा सकती है, साथ ही किसी आपात स्थिति के कारण यदि डेटा नष्ट हो जाता है तो दोबारा डेटा को उत्पन्न किया जा सकता है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

घट सकता है बैंकों का सकल NPA: रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

क्रिसिल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नए बैड लोन (Bad loan) में कमी और ऋणों की ज़्यादा रिकवरी के कारण बैंको की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घटकर लगभग 8 फीसदी हो सकती है।

मुख्य बिंदु

  • बैंकिंग प्रणाली में NPA मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत था जो मार्च 2019 में घटकर 9.3 प्रतिशत हो गया है।
  • बैंकों के परिसंपत्ति की गुणवत्ता में इस वित्त वर्ष 2019-20 में निर्णायक गिरावट होने की संभावना है और सकल गैर निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घटकर मार्च 2020 तक लगभग 8 प्रतिशत हो जाएगी। नए NPA में कमी के साथ-साथ मौजूदा NPA खातों से भी वसूली के ज़रिये यह संभव हो सकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB), जिनकी NPA में 80% से अधिक हिस्सेदारी है, को अपना सकल NPA मार्च 2018 के 14.6 प्रतिशत से मार्च 2020 तक 10.6 प्रतिशत तक लाना चाहिये।
  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के सख्त मानदंडों और परिसंपत्ति गुणवत्ता (Assets Quality) की समीक्षा के बाद बैंकों ने वित्त वर्ष 2016 के बाद से NPA के रूप में 17 लाख करोड़ रुपए की पहचान की है।
  • पिछले वित्त वर्ष के 7.4 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2019 में 3.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ नए NPA की वृद्धि दर में गिरावट आई है जो वित्त वर्ष 2020 में लगभग 3.2 प्रतिशत तक गिरने की उम्मीद है।
  • मार्च 2020 तक बैंकिंग प्रणाली के NPA में कुल आधी कटौती हो सकती है कुछ सार्वजानिक क्षेत्रक के बैंक (PSB) के पास विवादित संपत्तियों में कटौती करने के लिये तुलन पत्र (Balance Sheet) मौजूद है।
  • RBI ने वित्त वर्ष 2020 के अंत तक छोटे और मध्यम उद्यमों (Small and Medium Enterprises- SMEs) के ऋणों के पुनर्गठन पर बल दिया है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (27 June)

  • लगभग एक दशक के इंतज़ार के बाद नम्मा कोल्हापुरी चप्पल को GI यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिल गया है। इसके लिये महाराष्ट्र और कर्नाटक ने संयुक्त रूप से आवेदन किया था। पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेडमार्क के कंट्रोलर जनरल ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और सोलापुर ज़िलों तथा कर्नाटक के धारवाड़, बेलगाम, बागलकोट और बीजापुर में बनने वाली कोल्हापुरी चप्पल को GI टैग प्रदान किया है। इससे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पारंपरिक रूप से पहनी जाने वाली कोल्हापुरी चप्पलों को मान्यता मिल गई है। यहाँ के चप्पल निर्माताओं ने बाज़ार की ज़रूरतों और ग्राहकों की पसंद के अनुसार अलग-अलग डिज़ाइन और रंग विकसित किये हैं। हालाँकि चमड़े द्वारा हाथ से चप्पलों को बनाने की मूल प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं आया है और इनको रंगने के लिये वनस्पति रंगों का इस्तेमाल होता है।
  • 19 जून को अंतर्राष्ट्रीय यौन हिंसा उन्मूलन दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में यौन हिंसा के खिलाफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 19 जून, 2015 को संघर्ष के दौरान यौन हिंसा उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया गया था। यौन हिंसा के तहत बलात्कार, यौन दासता, ज़बरन वेश्यावृत्ति, ज़बरन गर्भपात, ज़बरन नसबंदी, ज़बरन शादी और महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों या लड़कों के खिलाफ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यौन हिंसा से जुड़ा कोई अन्य रूप शामिल हैं। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय यौन हिंसा उन्मूलन दिवस की थीम Survivor-centered approach to counter, prevent, and alleviate conflict-related violence in conflict and post-conflict situations रखी गई है।
  • सऊदी अरब ने एक नई ‎‎विशेष आवासीय योजना पेश की है। इस योजना के ज़रिये सऊदी अरब धनकुबेर विदेशियों को अपने यहाँ बसने का प्रस्ताव दे रहा है। इस गैर-सऊदी आवासीय योजना के तहत अन्य देशों के लोग 8 लाख रियाल यानी 2 लाख 13 हज़ार डॉलर देकर स्थायी रूप से सऊदी अरब में बस सकते हैं। इसके अलावा 27 हज़ार डॉलर चुकाकर एक वर्ष के लिये रहा जा सकता है तथा आगे का भुगतान कर इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है। इस योजना के तहत गैर-सऊदी लोगों को बिजनेस करने की भी अनुमति होगी और इसके लिये सऊदी स्पॉन्सर होना भी ज़रूरी नहीं है। सऊदी अरब ने कच्चे तेल पर अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम करने के लिये यह फैसला लिया है। गौरतलब है कि तेल से होने वाली आमदनी, जो कि लगातार कम होती जा रही है, का विकल्प तलाशने के लिये सऊदी अरब कई योजनाओं पर काम कर रहा है।
  • भारत के पंकज आडवाणी ने 35वीं पुरुष एशियाई स्नूकर चैंपियनशिप में थाईलैंड के थनावत तिरपोंगपैबून को पराजित कर खिताब जीत लिया। इस जीत के साथ ही उन्होंने क्यू खेलों (बिलियर्ड्स और स्नूकर) में अपना करियर ग्रैंडस्लैम भी पूरा किया। पंकज आडवाणी ने SCBS एशियाई स्नूकर स्पर्द्धा- 6 रेड (छोटा प्रारूप) और 15 रेड (लंबे प्रारूप) दोनों प्रारूपों में जीत हासिल की। इस तरह पंकज आडवाणी सभी प्रारूपों में एशियाई और विश्व चैंपियनशिप अपने नाम करने वाले एकमात्र खिलाड़ी बन गए हैं।
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के समक्ष वर्ष 2023 में होने वाले सत्र की मुंबई में मेज़बानी करने के लिये दावा पेश किया है। भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा और IOC सदस्य नीता अंबानी ने IOC की संचालन संस्था के 134वें सत्र से इतर IOC प्रमुख थॉमस बाक को औपचारिक बोली पत्र सौंपा। वर्ष 2022-23 में स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ है और भारतीय खेलों के लिये इससे बेहतर क्या हो सकता है कि इस अवसर पर संपूर्ण ओलंपिक समुदाय-परिवार भारत में उपस्थित रहे। भारत पहले वर्तमान सत्र की मेज़बानी चाहता था, लेकिन वह इटली के शहर मिलान से पिछड़ गया था। बाद में इटली ने वर्ष 2026 शीतकालीन ओलंपिक खेलों की मेज़बानी का दावा पेश करने का फैसला किया जिससे मिलान में यह सत्र आयोजित नहीं हो पाया। गौरतलब है कि भारत ने इससे पहले वर्ष 1983 में नई दिल्ली में IOC सत्र की मेज़बानी की थी। IOC की स्थापना आधुनिक ओलंपिक खेलों के जनक माने जाने वाले पियरे डि कुबर्तिन ने 23 जून, 1894 को की थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के लुसाने में है तथा वर्तमान में 205 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियाँ इसकी सदस्य हैं।
  • अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का बम्बल (Bumble) नाम का रोबोट अपनी स्वयं की शक्ति से उड़ान भरने वाला पहला एस्ट्रोबी (Astrobee) रोबोट बन गया है। ज्ञातव्य है कि एस्ट्रोबी एक फ्री-फ़्लाइंग रोबोट सिस्टम है, जो शोधकर्त्ताओं को शून्य गुरुत्वाकर्षण में नई तकनीकों का परीक्षण करने और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर तैनात अंतरिक्ष यात्रियों के साथ नियमित काम करने में मदद करेगा। एस्ट्रोबी रोबोट किसी भी दिशा में गति कर सकता है और अंतरिक्ष में किसी भी अक्ष में चालू हो सकता है। ज्ञातव्य है कि 29 जुलाई, 1958 को स्थापित नासा का मुख्यालय अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन DC में है।

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