भूगोल
गुजरात में टिड्डियों का हमला
प्रीलिम्स के लिये:
टिड्डी चेतावनी संगठन
मेन्स के लिये:
टिड्डियों के आक्रमण के कारण गुजरात के किसानों की समस्याएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गुजरात में पाकिस्तान के सीमावर्ती कुछ ज़िलों में टिड्डियों के समूहों ने आक्रमण किया है, जो कि सीमावर्ती क्षेत्रों में कृषि करने वाले किसानों के लिये चिंता का विषय है।
मुख्य बिंदु:
- इन टिड्डियों से उत्पन्न नवजात टिड्डियों के समूह के परिपक्व अवस्था में आ जाने पर उत्तरी गुजरात के तीन सीमावर्ती जिलों बनासकांठा, पाटन और कच्छ में फसल को उजाड़ देने से किसानों को और अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है स्थिति?
- टिड्डियों के हमले से प्रभावित ज़िलों में बनासकांठा (Banaskantha) सर्वाधिक प्रभावित ज़िला है।
- इन टिड्डियों का समूह दिन के दौरान उड़ता रहता है तथा रात में खेतों में ही रुक जाता है, जिससे टिड्डियों के इन समूहों को भगाना मुश्किल हो जाता है।
- इन टिड्डियों को भगाने के लिये किसान ढोल और बर्तन पीटने जैसी पुरानी तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं।
- गुजरात में बनासकांठा, पाटन, कच्छ और साबरकांठा तथा मेहसाणा के कुछ हिस्से टिड्डियों के हमले से सर्वाधिक प्रभावित हैं।
विभिन्न संस्थानों द्वारा दी गई चेतावनी की उपेक्षा:
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UN-Food and Agriculture Organisation- FAO) ने भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया में टिड्डियों के आक्रमण की चेतावनी जारी की थी।
- इसके अतिरिक्त टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organization-LWO) ने भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर टिड्डियों के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी। इसके बावजूद राज्य प्रशासन द्वारा निवारक उपाय नहीं किये गए।
- LWO के अनुसार, ये टिड्डियाँ पाकिस्तान के सिंध प्रांत से उड़कर आ रही हैं और राजस्थान एवं गुजरात के गाँवों में फैल रही हैं, इसका कारण इस वर्ष दक्षिण-पश्चिमी-मानसून का लंबे समय तक प्रभावी रहना था।
- मूलतः इन टिड्डियों ने इस वर्ष फरवरी में अफ्रीकी देशों सूडान और इरिट्रिया से सऊदी अरब एवं ईरान के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश किया तथा सिंध प्रांत से होते हुए राजस्थान और गुजरात क्षेत्र को अपने आक्रमण से प्रभावित किया।
राज्य प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम:
- केंद्रीय प्रशासन के साथ मिलकर राज्य प्रशासन ने इन टिड्डियों को नष्ट करने के लिये एक कीटनाशक-छिड़काव अभियान शुरू किया है।
- सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर के माध्यम से कीटनाशक रसायनों का छिड़काव कराए जाने की संभावना व्यक्त की है।
- सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया है कि किसानों को हुए नुकसान के आकलन के लिये एक सर्वेक्षण करेगा और तदनुसार किसानों को मुआवज़ा प्रदान करेगा।
टिड्डी (Locusts):
- मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के बड़े उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है।
- ये व्यवहार बदलने की अपनी क्षमता में अपनी प्रजाति के अन्य कीड़ों से अलग होते हैं और लंबी दूरी तक पलायन करने के लिये बड़े-बड़े झुंडों का निर्माण करते हैं।
- टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियों को सबसे खतरनाक और विनाशकारी माना जाता है।
- आमतौर पर जून और जुलाई के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जाता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होते हैं।
- सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं।
- यदि अच्छी बारिश होती है और परिस्थितियाँ इनके अनुकूल रहती हैं तो इनमें तेज़ी से प्रजनन करने की क्षमता भी होती है और ये तीन महीनों में 20 गुना तक बढ़ सकते हैं।
वनस्पति के लिये खतरा :
- एक वयस्क टिड्डी प्रतिदिन अपने वज़न के बराबर भोजन (लगभग 2 ग्राम वनस्पति प्रतिदिन) खा सकती है जिसके कारण ये फसलों और खाद्यान्नों के लिये बड़ा खतरा बन जाते हैं।
- यदि इनसे होने वाले संक्रमण को नियंत्रित न किया जाए तो गंभीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
टिड्डियों को नियंत्रित करने के उपाय :
- इसके झुंडों द्वारा रखे गए अण्डों का विनाश।
- इन्हें फँसाने के लिये घेराबंदी करना।
- कीटनाशक का उपयोग
भारत में टिड्डी:
भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं :
- रेगिस्तानी टिड्डी (Desert Locust)
- प्रवासी टिड्डी ( Migratory Locust)
- बॉम्बे टिड्डी (Bombay Locust)
- ट्री टिड्डी (Tree Locust)
टिड्डी चेतावनी संगठन:
(Locust Warning Organization-LWO)
- इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
LWO के कार्य:
- टिड्डियों पर अनुसंधान करना।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित करना।
- टिड्डी चेतावनी संगठन के सदस्यों, राज्य के अधिकारियों, BSF कर्मियों और किसानों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करना।
- टिड्डियों के कारण निर्मित होने वाली आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिये टिड्डी नियंत्रण अभियान प्रारंभ करना।
- अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्वों और प्रतिबद्धताओं को मानते हुए अनुसूचित मरुस्थलीय क्षेत्रों (Scheduled Desert Area-SDA) में टिड्डियों की निगरानी और आवाज़ाही को नियंत्रित करना।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
भारत में मानसिक विकार की समस्या
प्रीलिम्स के लिये
मानसिक विकारों से संबंधित समस्याएँ
मेन्स के लिये
भारतीयों में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनिशिएटिव (India State-Level Disease Burden Initiative) द्वारा भारत में मानसिक विकारों के संबंध में एक अध्ययन किया गया जिसे लांसेट साइकाइट्री (Lancet Psychiatry) में प्रकाशित किया गया।
मुख्य बिंदु:
- इस रिपोर्ट को द बर्डन ऑफ मेंटल डिसऑर्डर अक्रॉस द स्टेट्स ऑफ इंडिया: द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 1990-2017 (The burden of mental disorders across the states of India: the Global Burden of Disease Study 1990–2017) नाम दिया गया है।
- इसके अनुसार, अवसाद तथा चिंता भारत में मानसिक विकारों के प्रमुख कारण हैं तथा इनका प्रभाव दक्षिणी राज्यों और महिलाओं में अधिक है। इसके अलावा इसमें लगातार वृद्धि हो रही है।
- लगभग प्रत्येक 7 में से 1 भारतीय या कुल 19 करोड़ 70 लाख लोग विभिन्न प्रकार के मानसिक विकारों से ग्रसित हैं।
- वर्ष 2017 में देश में लगभग 76 लाख लोग बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) से ग्रसित थे। इसका सर्वाधिक प्रभाव गोवा, केरल, सिक्किम तथा हिमाचल प्रदेश में देखा गया।
- इसी वर्ष लगभग 35 लाख लोग सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रसित थे। इसका प्रभाव गोवा, केरल, तमिलनाडु तथा दिल्ली में सर्वाधिक था।
- भारत में कुल बीमारियों में मानसिक विकारों की हिस्सेदारी विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (Disability Adjusted Life Years- DALY) के अनुसार, वर्ष 1990 में 2.5% थी तथा वर्ष 2017 में यह बढ़कर 4.7% हो गई।
- यहाँ 1 DALY का आशय एक स्वस्थ जीवन में एक वर्ष की कमी से है।
- वर्ष 2017 में भारत में मानसिक विकार DALY के सभी मामलों में 33.8% लोग अवसाद (Depression), 19% लोग एंग्जायटी डिसऑर्डर (Anxiety Disorder), 10.8% लोग इडियोपथिक डेवलपमेंटल इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी (Idiopathic Developmental Intellectual Disability) तथा 9.8% लोग सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रसित थे।
- इस अध्ययन में राज्यों को सामाजिक-जनांकिकीय इंडेक्स (Socio-Demographic Index- SDI) के आधार पर तीन वर्गों- निम्न, मध्यम, तथा उच्च में विभाजित किया गया।
- SDI के मापन में राज्य की प्रतिव्यक्ति आय, औसत शिक्षा, 25 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में प्रजनन दर जैसे पैमानों को अपनाया गया।
- उच्च SDI वाले राज्यों जैसे- तमिलनाडु, केरल, गोवा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तेलंगाना में अवसाद एवं एंग्जायटी की समस्या से सर्वाधिक ग्रसित लोग थे।
- इस अध्ययन में कहा गया कि अवसाद, एंग्जायटी, ईटिंग डिसऑर्डर के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक प्रभावित थीं।
आगे की राह:
- इस अध्ययन के आधार पर देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ज़ोर देने तथा उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ने की आवश्यकता है। इसके साथ ही इन समस्याओं को एक लांछन की तरह देखने की बजाय इनके लिये बेहतर इलाज उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
- पिछले तीस वर्षों के आँकड़ों पर किये गए अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में मानसिक विकार गैर-घातक बीमारियों के मुख्य कारण है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। इससे आत्महत्या जैसी समस्याएँ भी बढ़ती हैं। अतः आवश्यक है कि सामुदायिक स्तर पर एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार द्वारा उनके नियंत्रण के लिये प्रयास किये जाएं।
- इस अध्ययन के आधार पर लोगों को इससे बचाव हेतु राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य नीतियों जैसे आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat), स्वास्थ्य बीमा योजना (Health Insurance Scheme), हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (Health and Wellness Centre) आदि के माध्यम से मानसिक विकार संबंधी समस्याओं को दूर किया जाए।
- यह अध्ययन राज्यों के स्तर पर मानसिक विकारों के संबंध में जानकारी देता है जिसका प्रयोग नीति-निर्माताओं तथा स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा विभिन्न राज्यों में इन बीमारियों के नियंत्रण हेतु किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यूनाइटेड किंगडम चुनाव
प्रीलिम्स के लिये:
यूनाइटेड किंगडम की भौगोलिक स्थिति, गुड फ्राइडे समझौता
मेन्स के लिये:
भारत के ब्रिटेन और शेष यूरोप के साथ राजनीतिक संबंधों से जुड़े मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रेक्ज़िट की पृष्ठभूमि में संपन्न हुए यूनाइटेड किंगडम चुनाव (United Kingdom Election) में बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) की कंज़रवेटिव पार्टी ने जीत हासिल की।
प्रमुख बिंदु:
- बोरिस जॉनसन की इस जीत को कंज़रवेटिव पार्टी के लिये मार्गरेट थैचर की वर्ष 1987 की चुनावी विजय के बाद सबसे बड़ी जीत माना जा रहा है।
- बोरिस जॉनसन की इस जीत को उनके ब्रेक्ज़िट संपन्न कराने (Get Brexit Done) के चुनावी वादे पर ब्रिटिश जनसमर्थन के रूप में देखा जा रहा है।
- इन चुनावी परिणामों के बाद ब्रिटेन ने ब्रेक्ज़िट की राह में पहली बाधा पार कर ली है। जैसा कि 20 दिसंबर को ब्रिटिश संसद में ब्रेक्ज़िट मसौदे पर कराए गए मतदान में देखा गया। ब्रिटिश संसद में ब्रेक्ज़िट डील के पारित होने के साथ ही यह लगभग तय है कि ब्रिटेन वर्तमान समय सीमा 31 जनवरी को या उससे पहले यूरोपीय संघ (EU) से बाहर हो जाएगा।
ब्रेक्ज़िट का मुद्दा:
- ब्रेक्ज़िट (Brexit) दो शब्दों- Britain+Exit से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रिटेन का बाहर निकलना। दरअसल, यूरोपीय संघ में रहने या न रहने के सवाल पर यूनाइटेड किंगडम में 23 जून, 2016 को जनमत संग्रह कराया गया था, जिसमें लगभग 52 फीसदी वोट यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में पड़े थे।
- जनमत संग्रह में केवल एक प्रश्न पूछा गया था- क्या यूनाइटेड किंगडम को यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहना चाहिये या इसे छोड़ देना चाहिये? इसके पीछे ब्रिटेन की संप्रभुता, संस्कृति और पहचान बनाए रखने का तर्क देते हुए इसे Brexit नाम दिया गया।
ब्रेक्ज़िट के कारण:
- आप्रवासन
- संप्रभुता
- आर्थिक संसाधन
- कानूनी हस्तक्षेप
- सुरक्षा
ब्रिटेन पर ब्रेक्ज़िट का प्रभाव
- ब्रेक्ज़िट अल्पकाल में ब्रिटेन को मंदी की ओर धकेल सकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ UK का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और जैसे ही ब्रेक्ज़िट संपन्न होगा उन दोनों के रिश्तों में अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
- कई अध्ययनों में सामने आया है कि इसके प्रभाव से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को 1 से 3 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है।
- उल्लेखनीय है कि ब्रेक्ज़िट के कारण पाउंड में करीब 20 फीसदी की गिरावट की आशंका है।
- ब्रिटेन के लिये सिंगल मार्केट सिस्टम खत्म हो जाएगा।
- ब्रिटेन की सीमा में बिना रोकटोक आवाजाही पर रोक लगेगी और वहाँ संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग संभव हो पाएगा।
- ब्रेक्ज़िट के पश्चात् फ्री वीज़ा पॉलिसी के कारण ब्रिटेन को जो नुकसान होता है, उसे कम किया जा सकेगा।
स्कॉटलैंड समस्या:
ब्रेक्ज़िट के बाद स्कॉटलैंड में एक बार फिर आज़ादी को लेकर आवाजें बुलंद होने लगी हैं। स्कॉटलैंड के अधिकतर लोगों का मानना है की UK के साथ जाने की बजाय EU में रहना आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।
वर्ष 2014 में स्कॉटिश स्वतंत्रता पर कराये गए जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की 55% जनता ने UK में रहने जबकि 45% ने स्वतंत्रता के लिये वोट किया था, SNP की दुसरे जनमत संग्रह की मांग से यह मुद्दा एक बार फिर से उठ गया है।
आइरिश बॉर्डर समस्या:
ब्रेक्ज़िट मुद्दे के उठने से आयरलैंड के साथ सीमा समस्या का मुद्दा एक बार पुनः जीवित हो जाएगा। गुड-फ्राइडे समझौते (Good Friday Agreement) के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में जो शांति स्थापित हुई थी, उस पर एक बार फिर संकट मंडराने लगा है।
वर्ष 1922 में आयरिश प्रायद्वीप में 26 काउंटी वाले आयरलैंड गणतंत्र को स्वतंत्रता प्राप्त हुई जबकि 6 काउंटी के साथ उत्तरी आयरलैंड UK का हिस्सा बना रहा। वर्ष 1998 में उत्तरी आयरलैंड में हुए गुड-फ्राइडे या बेलफ़ास्ट समझौते के पश्चात् प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक अनुयायियों के बीच वर्षों से चल रहे संघर्ष पर विराम लगाया जा सका था, दोनों देशों (ब्रिटेन और आयरलैंड) के EU में जुड़ जाने से यह समस्या कुछ और कम हुई थी।
ब्रेक्ज़िट का भारत पर प्रभाव:
- ब्रिटेन उन कुछ गिने-चुने देशों में से है जिनके साथ व्यापार में भारत का निर्यात (ब्रिटेन से होने वाले) आयात से अधिक है।
- ब्रेक्ज़िट के बाद भारत और ब्रिटेन के बीच सैन्य और व्यापार जैसे कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दोबारा संधियाँ करनी पड़ेगी।
- साथ ही कई भारतीय कंपनियों को ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (EU) में अलग-अलग कार्यालय खोलने पड़ेंगे और दो जगहों पर टैक्स देना पड़ेगा।
- लेकिन साथ ही यूरोपीय संघ से अलग होने के फलस्वरूप भारत के लिये ब्रिटेन का नया बाज़ार एक नई उम्मीद लेकर आएगा तथा व्यापार में कुछ अच्छे समझौते भारतीय निर्यात को नई दिशा दे सकते है।
- सैन्य, सेवा (Service Sector), फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों में व्यापार के कई नए समझौते होने की संभावना है।
स्रोत: द हिन्दू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया त्रिपक्षीय बैठक
प्रीलिम्स के लिये
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी
मेन्स के लिये:
एशियाई देशों के संबंधों का भारत पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
दक्षिण कोरिया, जापान और चीन नें 24 दिसंबर, 2019 को चीन में एक त्रिपक्षीय बैठक में हिस्सा लिया, इस बैठक का मुख्य उद्देश्य व्यापार और क्षेत्रीय शांति (विशेषतः कोरियाई प्रायद्वीप के संबंध में) पर चर्चा करना था।
मुख्य बिंदु :
- व्यापारिक जटिलताओं, सैन्य हलचल और ऐतिहासिक शत्रुता के बीच तीनों देशों की यह बैठक व्यापार और क्षेत्रीय शांति के लिये महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है।
तीनों देशों के ऐतिहासिक संबंध
- जापान और दक्षिण कोरिया:
- 20वीं शताब्दी के जापानी उपनिवेश के दौर से चला आ रहा तनाव वर्ष 2019 में दोनों देशों के संबंधों पर कुछ अधिक ही हावी रहा, दोनों देशों में व्यापार और सैन्य सहयोग के क्षेत्र में तनाव देखने को मिला।
- नवंबर माह में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद यह तनाव कुछ कम हुआ लेकिन दक्षिण कोरिया ने जापान के साथ एक महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय सैन्य सूचना समझौते से स्वंय को अलग कर लिया, उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण और क्षेत्र में बढ़ते चीनी हस्तक्षेप के बीच यह एक महत्वपूर्ण सैन्य समझौता माना जा रहा था।
- जापान द्वारा दक्षिण कोरिया के साथ कई महत्त्वपूर्ण रसायनों के निर्यात में लगाए गए प्रतिबंध पर फिर से वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया, दक्षिण कोरिया इन रसायनों का प्रयोग कंप्यूटर चिप और स्मार्टफोन बनाने में करता है।
- जापान ने यह प्रतिबंध दक्षिण कोरिया के एक न्यायालय के आदेश के बाद लगाया था जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दक्षिण कोरियाई कामगारों से जबरन मज़दूरी कराए जाने के लिये जापानी कंपनियों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया था। 20 दिसंबर, 2019 को जापान ने एक रसायन के निर्यात पर प्रतिबंधों में छूट देने की घोषणा की है।
- दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन (Moon Jae-in) और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) के बीच क्रिसमस की पूर्व संध्या पर त्रिपक्षीय वार्ता से अलग एक द्विपक्षीय बैठक हुई।
- चीन और दक्षिण कोरिया :
- सियोल द्वारा अमेरिकी एंटी- मिसाइल सिस्टम को अपने देश में अपनाए जाने के बाद चीन और दक्षिण कोरिया के व्यापारिक रिश्तों में तनाव देखा गया।
- चीन ‘THAAD’(Terminal High Altitude Area Defense) को अपनी संप्रभुता के लिये खतरा मानता है। चीन के अनुसार, दक्षिण कोरिया द्वारा इस तंत्र को अपनाने का उद्देश्य चीन की सीमा में हस्तक्षेप करना है।
- चीन ने इसका विरोध करते हुए दक्षिण कोरिया जाने वाले चीनी पर्यटक समूहों के दौरों को स्थगित कर दिया। सभी कोरियाई टीवी कार्यक्रमों तथा अन्य सांस्कृतिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही चीन में दक्षिण कोरियाई व्यापार श्रंखला लोट्टे (Lotte) को भी प्रतिबंधित किया।
- Lotte ने ही कोरिया में THAAD के लिये ज़मीन उपलब्ध कराई थी।
- दक्षिण कोरिया ने जापान और कोरिया के बीच समुद्री क्षेत्र में बढ़ती चीनी-रूसी हवाई गश्तों का भी विरोध किया। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन ये हवाई गश्त अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच सैन्य सहयोग की मज़बूती का परीक्षण करने के लिये करता है।
- दक्षिण कोरिया ने वर्ष 2020 में अपने देश में चीनी राष्ट्रपति का दौरा सुनिश्चित करने के प्रति उत्सुकता दिखाई है।
- जापान और चीन :
- जापान के साथ चीनी संबंध किसी अन्य राष्ट्र के मुकाबले अधिक शत्रुतापूर्ण रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दोनों के रिश्तों में महत्त्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं, जिसका कुछ श्रेय अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को भी जाता है।
- वर्ष 2020 के प्रारंभिक महीनों में ही चीनी राष्ट्रपति के जापान दौरे की तैयारियाँ जोरों पर हैं। राजनीतिक असहमतियों को पीछे रख कर दोनो देशों ने कई मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता की इच्छा जाहिर की है।
- जापान उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण और परमाणु कार्यक्रमों के साथ क्षेत्र में बढ़ती चीन की समुद्री गतिविधियों और सैन्य नवीनीकरण को खतरे के रूप में देखता है।
- जापान ने इसका जवाब अपनी प्रतिरक्षा क्षमता में वृद्धि कर तथा चीन के प्रतिद्वंदी भारत एवं अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सैन्य और व्यापार समझौते के साथ दिया है।
बैठक का परिणाम:
- बैठक के पश्चात साझा वक्तव्य में तीनों देशों ने कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निशस्त्रीकरण और स्थायी शांति के लिये संवाद और सहयोग जारी रखने पर सहमति जताई।
- साथ ही कोरियाई प्रायद्वीप में शांति सुनिश्चित करने के लिये साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता को दोहराया।
- क्योंकि तीनों ही देश RCEP (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) के सदस्य हैं इसलिए इस त्रिपक्षीय बैठक में हुए समझौते इन देशों के संबंधों के साथ-साथ RCEP को सफल बनाने में सहायक सिद्ध होंगें।
स्रोत: द हिन्दू
शासन व्यवस्था
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
प्रीलिम्स के लिये:
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
मेन्स के लिये:
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति तथा इसके निहितार्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में उच्च रक्षा प्रबंधन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (Chief of Defence Staff- CDS) के पद के सृजन को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु:
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद की घोषणा 15 अगस्त, 2019 को की गई थी। यह भारत की जल, थल एवं वायु सेना के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा व आपस में उनके संपर्क को स्थापित करेगा।
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का वेतन और अतिरिक्त सुविधाएँ सर्विस चीफ (Service Chief) के बराबर होंगी।
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs- DMA) का भी प्रमुख होगा।
- इसका गठन रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) के तहत किया जाएगा और वह उसके सचिव के रूप में कार्य करेगा।
कार्य:
- CDS के नेतृत्व में DMA निम्मलिखित कार्यों का नेतृत्व करेगा:
- संघ की सशस्त्र सेना अर्थात सेना, नौसेना और वायु सेना।
- रक्षा मंत्रालय के समन्वित मुख्यालय जिनमें सेना मुख्यालय, नौसेना मुख्यालय, वायु सेना मुख्यालय और रक्षा प्रमुख मुख्यालय शामिल है।
- प्रादेशिक सेना, सेना, नौसेना और वायु सेना से जुड़े कार्य।
- चालू नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार पूंजीगत प्राप्तियों को छोड़कर सेवाओं के लिये विशिष्ट खरीद।
- सैन्य मामलों के विभाग का प्रमुख होने के अलावा चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ चीफ ऑफ स्टॉफ कमेटी के अध्यक्ष भी होंगे।
- वे सेना के तीनों अंगों के मामले में रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेंगे, लेकिन इसके साथ ही तीनों सेनाओं के अध्यक्ष रक्षा मंत्री को अपनी सेनाओं के संबंध में सलाह देना जारी रखेंगे।
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ तीनों सेनाओं के प्रमुखों को कमांड (Command) नहीं करेंगे और नहीं किसी अन्य सैन्य कमान के लिये अपने अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को सैन्य मामलों में निष्पक्ष सुझाव दे सके।
- इसके अलावा सैन्य मामलों के विभाग के अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित बातें भी शामिल होंगीः-
- एकीकृत संयुक्त योजनाओं और आवश्यकताओं के माध्यम से सैन्य सेवाओं की खरीद, प्रशिक्षण और स्टॉफ की नियुक्ति की प्रक्रिया में समन्वय लाना। संयुक्त संचालन के माध्यम से संसाधनों के तर्कसंगत इस्तेमाल के लिये सैन्य कमानों के पुनर्गठन और संयुक्त थिएटर कमानों के गठन की सुविधा।
- सेनाओं द्वारा स्वदेश निर्मित उपकरणों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
- चीफ ऑफ स्टॉफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष के रूप में चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ निम्नलिखित कार्य करेंगेः-
- वे तीनों सैन्य सेवाओं के लिये प्रशासनिक कार्यों की देख-रेख करेंगे। तीनों सेवाओं से जुड़ी एजेंसियों, संगठनों तथा साइबर और अंतरिक्ष से संबंधित कार्यों की कमान चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ के हाथों में होगी।
- CDS रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद और राष्ट्रीय सुरक्षा सलहकार की अध्यक्षता वाली रक्षा नियोजन समिति के सदस्य होंगे।
- परमाणु कमान प्राधिकरण के सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेंगे।
- प्रथम CDS के पदभार संभालने के बाद तीन वर्षों के भीतर तीनों ही सेवाओं के परिचालन, लॉजिस्टिक्स, आवाजाही, प्रशिक्षण, सहायक सेवाओं, संचार, मरम्मत एवं रखरखाव इत्यादि में संलग्नता सुनिश्चित करेंगे।
- अवसंरचना का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करेंगे और तीनों ही सेवाओं के बीच संलग्नता के जरिये इसे तर्कसंगत बनाएंगे।
- एकीकृत क्षमता विकास योजना (Integrated Capacity Development Plan- ICDP) के बाद आगे के कदम के रूप में पंचवर्षीय ‘रक्षा पूंजीगत सामान अधिग्रहण योजना’ और दो वर्षीय सतत वार्षिक अधिग्रहण योजनाओं (Annual Acquisition Plans) को कार्यान्वित करेंगे।
- अनुमानित बजट के आधार पर पूंजीगत सामान खरीद के प्रस्तावों को अंतर-सेवा प्राथमिकता देंगे।
- अपव्यय में कमी करके सशस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमताएं बढ़ाने के लिये तीनों सेवाओं के कामकाज में सुधारों को लागू करेंगे।
महत्त्व:
- उच्च रक्षा प्रबंधन में इस सुधार से सशस्त्र बल समन्वित रक्षा सिद्धांतों एवं प्रक्रियाओं को लागू करने में समर्थ हो जाएंगे
- इसके साथ ही यह तीनों सेवाओं के बीच एक साझा रणनीति के साथ एकीकृत सैन्य अभियान के संचालन को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित होगा।
- प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक्स एवं परिचालनों के साथ-साथ खरीद को प्राथमिकता देने में संयुक्त रणनीति अपनाने के लिये समन्वित प्रयास करने से देश लाभान्वित होगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
म्यूचुअल फंड में निवेश हेतु नए नियम
प्रीलिम्स के लिये
सेबी, म्यूचुअल फंड
मेन्स के लिये
शेयर बाज़ार में निवेशकों के हितों की सुरक्षा में सेबी की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने अल्पवयस्कों (Minors) के लिये म्यूचुअल फंड में निवेश के नए नियम बनाए हैं।
मुख्य बिंदु:
- सेबी द्वारा जारी नियमों में कहा गया है कि यदि कोई अल्पवयस्क म्यूचुअल फंड में निवेश करता है तो वह निवेश उस अल्पवयस्क के खाते या उसके किसी संयुक्त खाते से किया जाएगा।
- निवेश के लिये चेक, डिमांड ड्राफ्ट अथवा किसी अन्य माध्यम से किये गए भुगतान को अल्पवयस्क के खाते या अभिभावक के साथ उसके संयुक्त खाते से ही स्वीकार किया जाएगा।
- इसके साथ ही जब अल्पवयस्क 18 वर्ष का हो जाता है तब उसे बैंक अकाउंट के अद्यतन (Updation) हेतु के.वाई.सी. (Know Your Client- KYC) का पूरा विवरण देना होगा अन्यथा उसके अकाउंट से संबंधित सभी लेन-देन रोक दिये जाएंगे।
- इसके साथ ही 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर उस खाताधारक के बैंक अकाउंट को अद्यतन कराने हेतु KYC (Know Your Client) का पूरा विवरण देना होगा अन्यथा उसके खाते से से संबंधित सभी लेन-देन पर रोक लगा दी जाएगी।
- एक अन्य निर्देश में सेबी ने कहा कि पूल अकाउंट (Pool Accounts) के प्रयोग को समाप्त किया जाए जिनका प्रयोग मुख्यतः बिचौलियों जैसे- स्टॉक ब्रोकर्स या अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा किया जाता है।
- पूल अकाउंट के माध्यम से बिचौलिये अपने ग्राहक की तरफ से म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं।
निर्देश जारी करने का कारण:
- हाल ही में कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग (Karvy Stock Broking) के मामले में हुई धाँधली को देखते हुए सेबी द्वारा यह निर्णय लिया गया। ध्यातव्य है कि इस ब्रोकर कंपनी ने अपने निवेशकों के धन को बिना उनकी अनुमति के अलग-अलग जगहों पर निवेश किया था।
- हाल के कई मामलों में ऐसा हुआ है कि ब्रोकर कंपनियों द्वारा उनके ग्राहकों के पैसे या प्रतिभूतियों का दुरुपयोग किया गया है।
निर्णय के लाभ:
- इस नियम के लागू होने के बाद पूंजी बाज़ार में होने वाले विनिमयों में अधिक पारदर्शिता आएगी तथा बिचौलियों का महत्त्व कम होगा।
- स्टॉक ब्रोकर्स के माध्यम से होने वाले किसी भी लेन-देन के लिये शेयर बाज़ार आवश्यक व्यवस्था करें ताकि ग्राहकों के खाते से किया गया भुगतान तथा उनको मिलने वाली राशि सीधे मान्यता प्राप्त समाशोधन निगम (Clearing Corporation) के खाते से हो।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड:
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है।
- इसके मुख्य कार्य हैं -
- प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
- प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
म्यूचुअल फंड:
- म्यूचुअल फंड एक प्रकार का सामूहिक निवेश होता है। निवेशकों के समूह मिलकर अल्पावधि के निवेश या अन्य प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं।
- म्यूचुअल फंड में एक फंड प्रबंधक होता है, जो इस पैसे को विभिन्न वित्तीय साधनों में निवेश करने के लिये अपने निवेश प्रबंधन कौशल का उपयोग करता है।
- वह फंड के निवेशों को निर्धारित करता है और लाभ तथा हानि का हिसाब रखता है। इस प्रकार हुए फायदे-नुकसान को निवेशकों में बाँट दिया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
अनिवासी सामान्य खाता
प्रीलिम्स के लिये:
अनिवासी सामान्य खाता
मेन्स के लिये:
बांग्लादेश, पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिये अनिवासी सामान्य खाता की सुविधा
चर्चा में क्यों ?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा नवंबर 2018 में बांग्लादेश तथा पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को अनिवासी सामान्य खाता (Non-Resident Ordinary Rupee Account- NRO) खोलने की अनुमति दी गई थी, जो कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act) के पारित होने के बाद एक प्रासंगिक विषय बन गया है।
मुख्य बिंदु:
- RBI ने इससे संबंधित अधिसूचना 9 नवंबर, 2018 को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (जमा) संशोधन विनियम, 2018 [Foreign Exchange Management (Deposit) Amendment Regulations, 2018] के तहत जारी की थी।
- उल्लेखनीय है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुस्लिमों को अल्पसंख्यक न मानने का प्रावधान करता है।
क्या थी RBI की अधिसूचना?
- RBI द्वारा वर्ष 2018 में जारी एक अधिसूचना के अनुसार, भारत में रह रहा ऐसा व्यक्ति जो बांग्लादेश या पाकिस्तान का नागरिक है तथा उन देशों में अल्पसंख्यक समुदायों अर्थात् हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म से संबंधित है एवं जिसे केंद्र सरकार द्वारा दीर्घकालिक वीज़ा (Long Term Visa) प्रदान किया गया है। इन देशों के ऐसे अल्पसंख्यकों को भारत में अर्जित आय का प्रबंधन करने के लिये NRO खाता खोलने की अनुमति दी गई थी।
- जब ये अल्पसंख्यक व्यक्ति नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत भारत के नागरिक बन जाएंगे तो उक्त NRO खातों को निवासी खातों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
- इस अधिसूचना में उन अल्पसंख्यक व्यक्तियों को भी अर्द्धवार्षिक समीक्षा के आधार पर NRO खाता खोलने की अनुमति दी गई थी, जिन्होंने दीर्घकालिक वीज़ा के लिये आवेदन किया है तथा जिनके पास संबंधित विदेशी पंजीकरण कार्यालय (Foreigner Registration Office-FRO)/ विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (Foreigner Regional Registration Office-FRRO) द्वारा जारी वैध वीज़ा और आवासीय परमिट है।
- ऐसे NRO खाता खोलने वाले बैंकों को त्रैमासिक आधार पर गृह मंत्रालय को इन खातों के संबंध में जानकारी देनी होगी।
क्या है विवाद?
- कुछ बैंकरों के अनुसार, RBI द्वारा उठाया गया यह कदम सिर्फ नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को लेकर ही सवाल खड़े नहीं करता बल्कि इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है कि एक संघीय संस्था, जो कि पूरी तरह से स्वायत्त है तथा किसी पूर्वाग्रह एवं धार्मिक व्यवस्था से प्रभावित नहीं है, वह नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 पारित होने के लगभग एक वर्ष पहले ऐसी अधिसूचना जारी करती है जिसमें बांग्लादेश या पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को उसी प्रकार परिभाषित किया गया है, जिस प्रकार के प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 में किये गए हैं।
क्या होता है अनिवासी सामान्य खाता
(Non-Resident Ordinary Rupee Account):
- यह किसी अनिवासी भारतीय द्वारा भारत में अर्जित आय का प्रबंधन करने के लिये खोला जाने वाला एक बचत या चालू खाता है।
- इस खाते में भारतीय मुद्रा के साथ-साथ विदेशी मुद्रा के रूप में भी धन जमा कर सकते हैं तथा भारतीय मुद्रा में आहरण कर सकते है।
- इस खाते को अनिवासी भारतीय द्वारा एक भारतीय नागरिक या किसी अनिवासी भारतीय के साथ भी खोला जा सकता है।
- इस खाते में अर्जित ब्याज़ कर-योग्य होता है।
- इस खाते के माध्यम से ब्याज राशि तथा मूलधन की एक निर्धारित सीमा को भी अपने देश वापस भेजा जा सकता है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
वाई-फाई कॉलिंग
प्रीलिम्स के लिये
वाई-फाई कॉलिंग, वाई-फाई
मेन्स के लिये
वाई-फाई कॉलिंग तकनीकी तथा इसका महत्त्व
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारती एयरटेल ने भारत में वाई-फाई कॉलिंग (Wi-Fi Calling) की सुविधा प्रारंभ की जिसे मोबाइल तकनीकी के क्षेत्र में बड़ी प्रगति माना जा रहा है।
वाई-फाई कॉलिंग क्या है?
- वाई-फाई कॉलिंग एक नई तकनीकी है जिसके माध्यम से हम बिना कैरियर नेटवर्क या मोबाइल नेटवर्क के किसी से बातचीत कर सकते हैं।
- इसके लिये किसी कैरियर नेटवर्क की बजाय हमें वाई-फाई कनेक्शन की आवश्यकता होती है।
कैरियर नेटवर्क (Carrier Network):
कैरियर या वाहक नेटवर्क एक पंजीकृत नेटवर्क अवसंरचना है जिसका कार्य दूरसंचार सेवाएँ प्रदान करना है। जैसे- एयरटेल, वोडाफोन, रिलायंस जिओ आदि।
- वाई-फाई (Wireless Fidelity- Wi-Fi) एक तार-रहित नेटवर्किंग तकनीकी है। इसके माध्यम से हम मोबाइल, लैपटॉप, प्रिंटर या अन्य उपकरणों को आपस में जोड़ सकते हैं तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
- वाई-फाई में सूचनाओं का स्थानांतरण रेडियो तरंगों (Radio Waves) के माध्यम से होता है।
वाई-फाई कॉलिंग कैसे कार्य करता है?
- अभी तक वाई-फाई का प्रयोग तार-रहित इंटरनेट कनेक्शन, डेटा ट्रांसफर जैसे- शेयरइट (Shareit), ज़ेंडर (Xender) आदि के लिये किया जाता था लेकिन कॉलिंग के लिये इसका प्रयोग भारत में पहली बार किया जा रहा है।
- वर्तमान में कुछ मोबाइल एप भी इंटरनेट कॉलिंग की सुविधा देते हैं। जैसे- व्हाट्सएप, मैसेंजर, स्काइप आदि। लेकिन ये सभी मोबाइल एप कॉलिंग के लिये वाई-फाई या डेटा कनेक्शन का प्रयोग करते हैं जिसे वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (Voice Over Internet Protocol- VoIP) कहते हैं।
- VoIP की सहायता से कॉलिंग के लिये यूज़र को इन एप्लीकेशन्स को मोबाइल या कंप्यूटर में डाउनलोड करना पड़ता है। इसके विपरीत वाई-फाई कॉलिंग करने के लिये किसी एप्लीकेशन को डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- वाई-फाई कॉलिंग के लिये यूज़र इसे डिफॉल्ट मोड में लगा सकता है। इससे मोबाइल में नेटवर्क न होने की स्थिति में यह स्वयं ही वाई-फाई कॉलिंग के माध्यम से कॉल करने में सक्षम है।
- वाई-फाई कॉलिंग के लिये यूज़र को अलग से संपर्क सूची (Contacts List) नहीं बनानी होगी बल्कि यह फोन की मौजूदा संपर्क सूची को एक्सेस कर लेगा।
- इसके माध्यम से बिना इंटरनेट कनेक्शन के ही व्यक्ति कॉल प्राप्त सकेगा तथा उसे किसी अन्य एप की आवश्यकता नहीं होगी।
- इसके अलावा वाई-फाई कॉलिंग करने के लिये मोबाइल फोन में वाई-फाई कॉलिंग तथा हाई डेफिनिशन वॉइस (HD Voice) की सुविधा होनी चाहिये।
वाई-फाई कॉलिंग का महत्व
- इसकी आवश्यकता उन स्थितियों में होती है जब कैरियर नेटवर्क कमज़ोर हो तथा उसके प्रयोग से बातचीत करना संभव न हो। जैसे- बड़े मकानों के बीच में, किसी भूमिगत स्थान में या दूरदराज़ के क्षेत्रों में जहाँ नेटवर्क उपलब्ध नहीं होता।
- इसमें किसी कैरियर नेटवर्क का प्रयोग नहीं होता। अतः इसमें बात करने पर टॉकटाइम या बैलेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
अटल भू-जल योजना
प्रीलिम्स के लिये:
अटल भूजल योजना
मेन्स के लिये:
भारत के विभिन्न शहरों में गिरते हुए भूमि जलस्तर से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
25 दिसंबर, 2019 को प्रधानमंत्री द्वारा निम्न भूमि जल स्तर वाले क्षेत्रों में भूजल संरक्षण के लिये ‘अटल भूजल योजना’ प्रारंभ की गई है।
वित्तीय प्रारूप:
- इस योजना का कुल परिव्यय 6000 करोड़ रुपए है तथा यह पाँच वर्षों की अवधि (2020-21 से 2024-25) के लिये लागू की जाएगी।
- 6000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय में 50 प्रतिशत विश्व बैंक ऋण के रूप में होगा, जिसका भुगतान केंद्र सरकार करेगी।
- बकाया 50 प्रतिशत नियमित बजटीय सहायता से केंद्रीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा। राज्यों को विश्व बैंक का संपूर्ण ऋण और केंद्रीय सहायता अनुदान के रूप में उपलब्ध कराई जाएगी।
उद्देश्य
- इस योजना का उद्देश्य चिन्हित प्राथमिकता वाले 7 राज्यों- गुजरात, हरियाण, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जनभागीदारी के माध्यम से भू-जल प्रबंधन में सुधार लाना है।
- इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 ज़िलों में लगभग 8350 ग्राम पंचायतों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- यह योजना मांग पक्ष प्रबंधन पर प्राथमिक रूप से ध्यान देते हुए ग्राम पंचायतों में भू-जल प्रबंधन तथा व्यवहार्य परिवर्तन को बढ़ावा देगी।
अटल जल के दो प्रमुख घटक हैं–
- संस्थागत मज़बूती और क्षमता निर्माण घटक:
- राज्यों में स्थायी भू-जल प्रबंधन के लिये संस्थागत प्रबंधनों को मजबूत बनाने के लिये नेटवर्क निगरानी और क्षमता निर्माण में सुधार तथा जल उपयोगकर्त्ता समूहों को मजबूत बनाना।
- डेटा विस्तार, जल सुरक्षा योजनाओं को तैयार करना, मौजूदा योजनाओं के समन्वय के माध्यम से प्रबंधन प्रयासों को लागू करना।
- मांग पक्ष प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाने के लिये राज्यों को प्रोत्साहन देने हेतु घटक:
- विभिन्न स्तरों पर हितधारकों के क्षमता निर्माण तथा भू-जल निगरानी नेटवर्क में सुधार के लिये संस्थागत मज़बूती से भू-जल डेटा भंडारण, विनिमय, विश्लेषण और विस्तार को बढ़ावा देना।
- उन्नत और वास्तविक जल प्रबंधन से संबंधित उन्नत डेटाबेस तथा पंचायत स्तर पर समुदायिक नेतृत्व के तहत जल सुरक्षा योजनाओं को तैयार करना।
- भारत सरकार और राज्य सरकारों की विभिन्न मौजूदा और नई योजनाओं के समन्वय के माध्यम से जल सुरक्षा योजनाओं को लागू करना, ताकि सतत् भू-जल प्रबंधन के लिये निधियों के न्यायसंगत और प्रभावी उपयोग में मदद मिल सके।
- सूक्ष्म सिंचाई, फसल विविधता, विद्युत फीडर विलगन आदि जैसे मांग पक्ष के उपायों पर ध्यान देते हुए उपलब्ध भू-जल संसाधनों का उचित उपयोग करना।
प्रभाव:
- स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी से परियोजना क्षेत्र में जल जीवन मिशन के लिये संसाधनों की निरंतरता।
- किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य में योगदान मिलेगा।
- भागीदारी भू-जल प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।
- बड़े पैमाने पर परिष्कृत जल उपयोग निपुणता और उन्नत फसल पद्धति को बढ़ावा।
- भू-जल संसाधनों के निपुण और समान उपयोग तथा समुदाय स्तर पर व्यवहार्य परिवर्तन को बढ़ावा।
पृष्ठभूमि
भू-जल देश के कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में लगभग 85 प्रतिशत योगदान देता है। बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की बढ़ती हुई मांग के कारण देश के सीमित भू-जल संसाधन खतरे में हैं। अधिकांश क्षेत्रों में व्यापक और अनियंत्रित भू-जल दोहन से इसके स्तर में तेज़ी से और व्यापक रूप से कमी होने के साथ-साथ भू-जल पृथक्करण ढाँचों की निरंतरता में गिरावट आई है। देश के कुछ भागों में भू-जल की उपलब्धता में गिरावट की समस्या को भू-जल की गुणवत्ता में कमी ने और बढ़ा दिया है। अधिक दोहन, अपमिश्रण और इससे जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों के कारण भू-जल पर पड़ते दबाव के कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा खतरे में पहुँच गई है। इसके लिये आवश्यक सुधारात्मक, उपचारात्मक प्रयास प्राथमिकता के आधार पर किये जाने की ज़रूरत है।
जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने अटल भू-जल योजना के माध्यम से देश में भू-जल संसाधनों की दीर्घकालीन निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये एक अग्रणीय पहल की है, जिसमें विभिन्न भू-आकृतिक, जलवायु संबंधी, जल भू-वैज्ञानिक और सांस्कृतिक स्थिति के पहलुओं का प्रतिनिधित्व करने वाले 7 राज्यों में पहचान किये गए भू-जल की कमी वाले प्रखंडों में ‘टॉप-डाउन’ और ‘बॉटम अप’ का मिश्रण अपनाया गया है। अटल जल को भागीदारी भू-जल प्रबंधन तथा निरंतर भू-जल संसाधन प्रबंधन के लिये समुदाय स्तर पर व्यवहार्य परिवर्तन लाने के लिये संस्थागत ढाँचे को मजबूत बनाने के मुख्य उद्देश्य के साथ तैयार किया गया है। इस योजना में जागरूकता कार्यक्रमों, क्षमता निर्माण, मौजूदा और नई योजनाओं के समन्वय तथा उन्नत कृषि प्रक्रियाओं सहित विभिन्न उपायों के माध्यम से इन उद्देश्यों को प्राप्त करने की कल्पना की गई है।
स्रोत- PIB
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 26 दिसंबर, 2019
भारत की पहली ट्रांसजेंडर यूनिवर्सिटी:
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के फाजिलनगर खंड में ट्रांसजेंडरों के लिये भारत के पहले विश्विद्यालय की स्थापना की जा रही है। यह देश में अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय होगा जहाँ थर्ड जेंडर के लोग शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। इसका निर्माण अखिल भारतीय किन्नर शिक्षा सेवा ट्रस्ट (All-India Transgender Education Service Trust) द्वारा किया जा रहा है। इस विश्वविद्यालय में कक्षा 1 से लेकर स्नातकोत्तर तथा Ph.D तक की उपाधि/डिग्री हासिल की जा सकेगी।
केंद्र सरकार आल इंडिया रेडियो:
केंद्र सरकार आल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी में परिवर्तन करके वर्ष 2024 तक डिजिटल रेडियो लॉन्च करने की योजना बना रही है। आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार समारोह 2019 के दौरान इसकी घोषणा केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा की गई। डिजिटल रेडियो के माध्यम से रेडियो की ध्वनि गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा इसकी रेंज भी काफी व्यापक होगी। ध्यातव्य है कि आल इंडिया रेडियो भारत का राष्ट्रीय रेडियो प्रसारक है। “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” इसका आदर्श वाक्य है। वर्तमान में आकाशवाणी 23 भाषाओँ तथा 179 बोलियों में कार्यक्रमों का प्रसारण करता है।
गंगा प्रसाद विमल:
हाल ही में हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार गंगा प्रसाद विमल का निधन हो गया। वह हिंदी के जाने माने लेखक, अनुवादक और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर थे। हिंदी साहित्य जगत में उन्हें ‘अकहानी आंदोलन’ के जनक के रूप में जाना जाता था। उनका पहला काव्य संग्रह ‘विज्जप’ वर्ष 1967 में, प्रथम उपन्यास ‘अपने से अलग’ वर्ष 1972 में तथा पहला कहानी संग्रह ‘कोई भी शुरुवात’ वर्ष 1967 में प्रकाशित हुआ था। उनके प्रसिद्ध कविता संग्रहों में 'बोधि-वृक्ष’, 'इतना कुछ’, 'सन्नाटे से मुठभेड़’, 'मैं वहाँ हूँ’ एवं 'कुछ तो है’ आदि तथा कहानी संग्रह 'कोई शुरुआत’, 'अतीत में कुछ’, 'इधर-उधर’, 'बाहर न भीतर’ तथा 'खोई हुई थाती’ का भी हिंदी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका अंतिम उपन्यास 'मानुसखोर’ वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ।
भारत की प्रथम ‘CNG बस’:
भारत को गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाने और CNG को देश में लंबी दूरी के आवागमन का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनाने की दिशा में एक प्रमुख कदम उठाते हुए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने लंबी दूरी तय करने वाली भारत की प्रथम CNG बस का अनावरण किया। इसमें संयोजित (कंपोजिट) CNG सिलेंडर लगाए गए हैं, जो एक बार पूरी तरह CNG से भर जाने पर लगभग 1000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। इस परियोजना को इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL) ने कार्यान्वित किया है। यह उपलब्धि बसों में उत्कृष्ट डिज़ाइन वाले टाइप-IV संयोजित सिलेंडरों के इस्तेमाल से संभव हो सकी है जिसने परंपरागत अत्यंत भारी टाइप-I कार्बन स्टील सिलेंडरों का स्थान लिया है।