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डेली न्यूज़

  • 26 Nov, 2019
  • 54 min read
भूगोल

कोलबेड मीथेन

प्रीलिम्स के लिये

कोलबेड मीथेन क्या है?

मेन्स के लिये

भारत की उर्जा आवश्यकता की पूर्ति में कोलबेड मीथेन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्य द्वारा संचालित कोयला खदान से कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited-CIL) को आगामी दो से तीन वर्षों के लिये 2 एमएमएससीबी (Million Metric Standard Cubic Metres-MMSCB) प्रतिदिन कोलबेड मीथेन के उत्पादन का निर्देश दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • कोलबेड मीथेन (Coalbed Methane-CBM) एक अपरंपरागत गैस का भंडार है। यह कोयले की चट्टानों में प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद रहती है।
  • मीथेन गैस कोयले की परतों के नीचे पाई जाती है। इसे ड्रिल किया जाता है तथा नीचे उपस्थित भूमिगत जल को हटाकर इसे प्राप्त किया जाता है।
  • भारत कोयले के भंडार के मामले में विश्व में पाँचवें स्थान पर है तथा इस दृष्टिकोण से CBM स्वच्छ उर्जा का एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
  • पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (Directorate General of Hydrocarbon-DGH) के अनुसार, भारत में CBM भंडार लगभग 92 ट्रिलियन क्यूबिक फीट या 2,600 बिलियन क्यूबिक मीटर है।
  • देश के 12 राज्यों में कोयला तथा CBM भंडार पाए जाते हैं। जहाँ गोंडवाना निक्षेप (Gondwana Sediments) में यह बहुतायत में मौजूद है।
  • वर्तमान में CBM का उत्पादन झारखंड के रानीगंज, झरिया तथा बोकारो कोलफील्ड में होता है।
  • आगामी समय में सरकार दामोदर-कोयल घाटी तथा सोन घाटी में CBM के उत्पादन का कार्य प्रारंभ कर सकती है।

CBM का महत्त्व:

  • CBM का उपयोग विद्युत उत्पादन में, वाहनों के ईंधन में संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas-CNG) के तौर पर, खाद (Fertiliser) के निर्माण में किया जा सकता है।
  • इसके अलावा इसका प्रयोग औद्योगिक इकाइयों में जैसे- सीमेंट उद्योग, रोलिंग मिलों में, स्टील प्लांट तथा मीथेनॉल के उत्पादन में किया जा सकता है।
  • CBM एक स्वच्छ ईंधन है जो कि तुलनात्मक रूप से अन्य ईंधनों की अपेक्षा कम प्रदूषण उत्पन्न करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस

मेन्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिये प्रतिवर्ष 25 नवंबर को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2030 तक महिला हिंसा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चलाए गए यूनाइट अभियान (UNiTE campaign) के अंतर्गत किया गया।
    • वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिये यूनाइट अभियान चलाया गया।
  • इस वर्ष की थीम ऑरेंज द वर्ल्ड: जनरेशन इक्वलिटी स्टैंड अगेंस्ट रेप (Orange the world: Generation Equality Stand Against Rape) है।
  • इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिये 16 डेज एक्टिविज्म अगेंस्ट जेंडर बेस्ड वाॅइलेंस कैम्पेन (16 Days Activism Against Gender Based Violence Campaign) का आयोजन 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक किया जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला ( United Nation’s Women) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विश्व भर में लगभग 15 मिलियन किशोर लडकियाँ (15-19 आयु वर्ग) अपने जीवन में कभी-न-कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।
  • इसके अलावा 3 बिलियन महिलाएँ वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) की शिकार होती हैं।
  • आँकड़ों के अनुसार, करीब 33% महिलाओं व लड़कियों को शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।
  • हिंसा की शिकार 50% से अधिक महिलाओं की हत्या उनके परिजनों द्वारा ही की जाती है।
  • वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी के शिकार लोगों में 50% वयस्क महिलाएं हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में लगभग 650 मिलियन महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से पहले हुआ है।
  • WHO की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन 3 में से 1 महिला किसी न किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा का शिकार होती है।

भारत के संदर्भ में:

  • हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau) द्वारा राष्ट्रीय अपराध 2017 रिपोर्ट जारी की गई।
    • रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल 3,59,849 मामले दर्ज़ किये गए।
    • इस सूची में सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गए, इसके बाद क्रमशः महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल मामलों में 27.9% मामले पति या परिजनों द्वारा किये गए उत्पीड़न के अंतर्गत दर्ज़ किये गए।
    • इसके अलावा अपमान के उद्देश्य से किये हमले (21.7%), अपहरण (20.5%) और बलात्कार (7%) के मामले सामने आए।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम :

संयुक्त राष्ट्र महिला (United Nations Women):

  • वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र के महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र महिला का गठन किया गया।
  • यह संस्था महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करती है।
  • इसके तहत संयुक्त राष्ट्र तंत्र के 4 अलग-अलग प्रभागों के कार्यों को संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है:
    • महिलाओं की उन्नति के लिये प्रभाग (Division for the Advancement of Women -DAW)
    • महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (International Research and Training Institute for the Advancement of Women -INSTRAW)
    • लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की उन्नति पर विशेष सलाहकार कार्यालय (Office of the Special Adviser on Gender Issues and Advancement of Women-OSAGI)
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष (United Nations Development Fund for Women-UNIFEM)

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन

प्रीलिम्स के लिये

ICAO

मेन्स के लिये

पड़ोसी राष्ट्रों के साथ भारत के संबंधों का उल्लेख करते समय इसे संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान द्वारा भारत को अपने हवाई क्षेत्र के उपयोग से इनकार करने के मामले को भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation-ICAO) के समक्ष उठाया है।

क्या था मामला?

  • भारत ने 28 अक्तूबर, 2019 को प्रधानमंत्री की सऊदी अरब यात्रा के लिये पाकिस्तान से ओवरफ्लाइट क्लीयरेंस की मांग की थी।
  • पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन का हवाला देते हुए इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

ICAO क्या है?

  • यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1944 में राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन अभिसमय (शिकागो कन्वेंशन) के संचालन तथा प्रशासन के प्रबंधन हेतु की गई थी।
    • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संबंधी अभिसमय/कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में हस्ताक्षर किये गए। इसलिये इसे शिकागो कन्वेंशन भी कहते हैं।
    • शिकागो कन्वेंशन ने वायु मार्ग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले प्रमुख सिद्धांतों की स्थापना की और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्व किया।
  • इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना एवं विकास को बढ़ावा देना है ताकि दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन की सुरक्षित तथा व्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित हो सके।
  • भारत इसके 193 सदस्यों में से है।
  • इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

चीन-पाक आर्थिक गलियारा, पेरिस क्लब, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

अमेरिका द्वारा चीन की विकास परियोजनाओं पर लगाए गए प्रश्नचिह्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक द्वारा चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाओं पर सवाल उठाए गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • अमेरिकी राजनयिक ने चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाओं तथा ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative- BRI) के तहत ऋण देने की प्रथाओं की कड़ी आलोचना की है।
  • अमेरिकी राजनयिक ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) की व्यावसायिक व्यवहार्यता (commercial Viability) पर भी सवाल उठाया है।

आलोचना के प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी राजनयिक ने कहा कि चीन अमेरिकी नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों से संबंधित प्रणाली के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है।
  • अमेरिकी राजनयिक के अनुसार, जब ‘देंग शियाओपिंग’ (Deng Xiaoping) ने वर्ष 1978 में चीन में ‘ओपन डोर पॉलिसी’ (Open Door Policy) की घोषणा की थी तब यूरोप और जापान की कंपनियों ने चीन में निवेश किया जिससे चीन को लाभ हुआ पर चीन ने यह नीति पाकिस्तान में नहीं अपनाई तथा चीन द्वारा पाकिस्तान में किया गया निवेश केवल चीन के लिये ही लाभप्रद रहा।
  • चीन की CPEC परियोजना पाकिस्तान के युवाओं और वहाँ की कंपनियों को वह अवसर प्रदान नहीं करती है जो अवसर दशकों पहले चीन को विभिन्न देशों द्वारा चीन में निवेश करने के कारण प्राप्त हुए थे और यही कारण है कि चीन एवं पाकिस्तान के बीच एकतरफा व्यापारिक संबंध हैं।
  • अमेरिकी राजनयिक ने CPEC की आलोचना ऋण, लागत, पारदर्शिता में कमी और नौकरियाँ प्रदान न करने के संबंध में की।
  • हालाँकि अमेरिकी राजनयिक ने चीन की बुनियादी ढाँचे संबंधी परियोजनाओं तथा ऋण प्रदान करने की प्रथाओं की आलोचना की परंतु चीन के लोगों तथा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए चीनी और अमेरिकी नागरिकों के बीच मित्रता को परंपरागत बताया।
  • अमेरिकी राजनयिक ने BRI परियोजना के तहत चीन की ऋण प्रदान करने की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि चीन आमतौर पर विभिन्न देशों को ऋण प्रदान करता है पर ‘पेरिस क्लब’ (Paris Club) का सदस्य नहीं है।

पेरिस क्लब

(Paris Club):

  • पेरिस क्लब की स्थापना वर्ष 1956 में विकासशील और उभरते (Emerging) देशों की ऋण समस्याओं के समाधान के लिये की गई थी।
  • इसकी स्थापना के समय विश्व शीत युद्ध, अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह की जटिलता, वैश्विक स्तर पर विनिमय दर के मानकों का अभाव और अफ्रीका के कुछ देशों द्वारा औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता की प्राप्ति जैसी परिस्थितियाँ विद्यमान थीं।
  • अर्जेंटीना ने एक बड़ी ऋण धोखाधड़ी के लिये वैश्विक समुदाय से सहायता की अपील की जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1956 में फ्राँस द्वारा पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे पेरिस क्लब कहा गया।
  • इसका सचिवालय पेरिस में स्थित है।
  • चीन विश्व स्तर पर सबसे बड़ा ऋणदाता होने के बावजूद अपने समग्र ऋण की जानकारी नहीं देता है अतः न तो पेरिस क्लब, न IMF और न ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ (Credit Rating Agencies) इन वित्तीय लेन-देनों की निगरानी कर पाती हैं।
  • चीन से ऋण लेने वाले देशों द्वारा इतने बढ़े ऋण चुकाने में विफल होने पर ऋण प्राप्तकर्त्ता देशों की विकास परियोजनाएँ बाधित होती हैं तथा उन देशों की संप्रभुता में कमी आती है।
  • श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह तथा मालदीव में रनवे का निर्माण चीन की संदिग्ध वाणिज्यिक व्यवहार्यता वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण के उदाहरण हैं।
  • 2017 में श्रीलंका ने बकाया ऋण नहीं चुका पाने के कारण चीन को हंबनटोटा बंदरगाह का परिचालन पट्टा 99 साल के लिये सौंप दिया।
  • अमेरिकी राजनयिक ने ‘क्वाड’ (Quadrilateral Strategic Dialogue- QUAD) की भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा कि इस समूह में शामिल ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और भारत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये निवेश की तलाश कर रहे देशों को यथार्थवादी विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
  • QUAD देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक सितंबर के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान न्यूयॉर्क में हुई थी।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

शहरी बेरोज़गारी दर

प्रीलिम्स के लिये:

शहरी बेरोज़गारी दर

मेन्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के शहरी बेरोज़गारी दर के संबंध में विभिन्न आँकड़े

चर्चा में क्यों?

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labor Force Survey- PLFS) के आँकड़ों के अनुसार भारत में जनवरी-मार्च, 2019 (तिमाही) के दौरान शहरी बेरोज़गारी दर में कमी आई है।

मुख्य बिंदु:

  • साप्ताहिक स्थिति के आधार पर जारी PLFS के आँकड़ों के अनुसार, जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान शहरी बेरोज़गारी दर 9.3 प्रतिशत, अक्तूबर-नवंबर, 2018 के दौरान 9.9 प्रतिशत, जुलाई-सितंबर, 2018 के दौरान 9.7 प्रतिशत तथा अप्रैल-जून, 2018 के दौरान 9.8 प्रतिशत थी।
  • हालाँकि इन आँकड़ों में महिलाओं की बेरोज़गारी दर जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान 11.6 प्रतिशत, अक्तूबर-दिसंबर, 2018 के दौरान 12.3 प्रतिशत और अप्रैल-जून, 2018 के दौरान 12.8 प्रतिशत थी, जबकि पुरुषों की बेरोज़गारी दर जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान 8.7 प्रतिशत, अक्तूबर-दिसंबर, 2018 के दौरान 9.2 प्रतिशत और अप्रैल-जून, 2018 के दौरान 9 प्रतिशत थी।
  • सभी आयु-वर्ग की महिलाओं में राज्यवार आँकड़ों में जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान जम्मू कश्मीर में सर्वाधिक 38.2 प्रतिशत, उत्तराखंड में 33.7 प्रतिशत तथा केरल में 21.5 प्रतिशत बेरोज़गारी दर है।
  • सभी आयु-वर्गों के पुरुषों में सर्वाधिक बेरोज़गारी दर ओडिशा में 15.6 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 13 प्रतिशत तथा दिल्ली में 12.9 प्रतिशत है।

श्रम शक्ति भागीदारी दर:

(Labour Force Participation Rate)

  • नवीनतम तिमाही आँकड़ों के अनुसार, 15 वर्ष और उससे उपर के आयु-वर्ग की श्रम शक्ति भागीदारी दर जनवरी-मार्च, 2019 की तिमाही के दौरान 46.5 प्रतिशत रही जो कि पिछली तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर, 2018) के दौरान 46.8 प्रतिशत थी।
  • 15 वर्ष और उससे उपर के आयु-वर्ग की महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान 19.1 प्रतिशत और अक्तूबर-दिसंबर, 2018 के दौरान 19.5 प्रतिशत थी, जबकि इसी आयु वर्ग के पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान 73.4 प्रतिशत थी तथा अक्तूबर-दिसंबर, 2018 के दौरान यह दर 73.6 प्रतिशत थी।
  • जनवरी-मार्च, 2019 के दौरान 15-29 वर्ष आयु-वर्ग के युवाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर 37.7 प्रतिशत जबकि अक्तूबर-दिसंबर, 2018 के दौरान 38.2 प्रतिशत थी।
  • 15 वर्ष और उससे उपर के आयु वर्ग की महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर उत्तर प्रदेश (6 प्रतिशत) तथा बिहार (5.6 प्रतिशत) में सबसे कम थी।

नोट- उपर्युक्त सभी आँकड़े शहरी क्षेत्र से संबंधित हैं।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट

(Periodic Labor Force Survey- PLFS):

  • यह रिपोर्ट राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Organisation- NSSO) द्वारा जारी की जाती है।
  • जुलाई, 2017 से जून, 2018 के लिये पहली PLFS रिपोर्ट मई, 2019 में जारी की गई थी।
  • जुलाई, 2018 से जून, 2019 के लिये दूसरी PLFS रिपोर्ट अभी जारी नहीं की गई है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

भारतीय नागरिकता प्रावधान

प्रीलिम्स के लिये

नागरिकता अधिनियम, इससे संबंधित संवैधानिक पक्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) ने चेन्नामनेनी रमेश (Chennamaneni Ramesh) की नागरिकता रद्द कर दी, चेन्नामनेनी वेमुलावाड़ा (तेलंगाना) से विधानसभा के सदस्य (Member of the Legislative Assembly- MLA) हैं।

प्रमुख बिंदु

  • MHA के अनुसार, चेन्नामनेनी रमेश ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 (1) (f) के तहत नागरिकता के संबंध में धोखाधड़ी, गलत प्रतिनिधित्व और फर्जी तरीके से तथ्यों को छुपाया है।
  • ध्यातव्य है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो भारतीय नागरिक नहीं है, वह किसी भी चुनाव को लड़ने या मतदान करने का पात्र नहीं है।

धारा 5 (1) (f)

  • नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 में पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने का प्रावधान है।
  • धारा 5 (1) (f) भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण हेतु निम्नांकित श्रेणियों में से किसी से संबद्ध होना चाहिये;
    • कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु एवं क्षमता का हो तथा उसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो।
    • या वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से एक वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।

धारा 10 (2)

  • धारा 10 किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता से वंचित करने के अधिकार से संबंधित है।
  • धारा 10 (2) में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार, किसी नागरिक (जो पंजीकरण द्वारा ऐसा है) को भारतीय नागरिकता से वंचित कर सकती है, यदि:
    • नागरिकता धोखाधड़ी या फर्जी तरीके से प्राप्त की गई हो, या
    • नागरिक ने भारत के संविधान के प्रति अरुचि या अनादर जताया हो, या
    • नागरिक ने किसी युद्ध के दौरान, जिसमें भारत संलग्न हो, गैर-कानूनी रूप से शत्रु राष्ट्र के साथ व्यापार किया हो या कोई राष्ट्र विरोधी सूचना दी हो, या
    • पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पाँच वर्ष के भीतर किसी देश में दो वर्ष का कारावास हुआ हो; या
    • नागरिक सामान्य रूप से सात वर्षों की निरंतर अवधि से भारत से बाहर निवास कर रहा हो।
  • हालाँकि भारत में यह सुनिश्चित करने के लिये भी आवश्यक प्रावधान है कि कहीं नागरिकता को मनमाने ढंग से तो रद्द नहीं किया गया है।
    • अधिनियम की धारा 10 (3) के अनुसार, इस धारा के तहत केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता से वंचित नहीं करेगी जब तक कि यह संतुष्ट न हो कि यह जन हित के अनुकूल नहीं है कि उक्त व्यक्ति भारत का नागरिक बना रहे।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

समीक्षा/पुनर्विचार याचिका

प्रीलिम्स के लिये

समीक्षा/पुनर्विचार याचिका क्या है, न्यायपालिका, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये

समीक्षा/पुनर्विचार याचिका से जुड़े मामले, न्यायापालिका का पक्ष एवं अधिकार, न्यायापालिका की शक्तियाँ, सर्वोच्च न्यायालय, याचिका दाखिल करने से संबंधित अन्य पक्ष

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court-SC) के हाल के निर्णयों में समीक्षा/पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दायर करने की बात की जा रही है। जहाँ एक ओर याचिकाकर्त्ताओं ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाबरी मस्ज़िद-राम जन्मभूमि और दूरसंचार राजस्व मामले में दिये गए निर्णय की समीक्षा करने की योजना बनाई है। वहीं दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला निर्णय की समीक्षा करने पर तो सहमति जताई लेकिन राफेल मामले की जाँच करने से इंकार कर दिया।

ऐसे में समीक्षा याचिका के संदर्भ में बहुत से मुद्दे चर्चा का विषय बन गए हैं:

समीक्षा याचिका (Review petition) क्या है?

संविधान के अनुसार, SC द्वारा दिया गया निर्णय अंतिम निर्णय होता है। हालाँकि अनुच्छेद 137 के तहत SC को अपने किसी भी निर्णय या आदेश की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है। इसका कारण यह है कि किसी भी मामले में SC द्वारा दिया गया निर्णय भविष्य में सुनवाई के लिये आने वाले मामलों के संदर्भ में निश्चितता प्रदान करता है।

  • समीक्षा याचिका में SC के पास यह शक्ति होती है कि वह अपने पूर्व के निर्णयों में निहित ‘स्पष्टता का अभाव’ तथा ‘महत्त्वहीन आशय’ की गौण त्रुटियों की समीक्षा कर उनमें सुधार कर सकता है।

पेटेंट त्रुटी (Patent Error)

एक त्रुटी जो स्वयं स्पष्ट है अर्थात् जिसे किसी भी जटिल तर्क या तर्क की लंबी प्रक्रिया में शामिल किये बिना प्रदर्शित किया जा सकता है।

  • वर्ष 1975 के एक फैसले में, तत्कालीन न्यायमूर्ति कृष्ण/कृष्णा अय्यर ने कहा था कि एक समीक्षा याचिका को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय में भयावह चूक या अस्पष्टता जैसी स्थिति उत्पन्न हुई हो।
  • SC द्वारा समीक्षाओं को स्वीकार करना दुर्लभ होता है, इसका जीवंत उदाहरण सबरीमाला और राफेल मामलों में देखने को मिलता है।
  • पिछले वर्ष SC ने केंद्र सरकार की याचिका पर मार्च 2018 के फैसले की समीक्षा करने की अनुमति दी थी, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम को कमज़ोर कर दिया था।

किस आधार पर याचिकाकर्त्ता SC के फैसले की समीक्षा की माँग कर सकता है?

  • वर्ष 2013 में SC ने अपने निर्णय की समीक्षा करने के तीन आधार स्पष्ट किये थे-
  1. नए और महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों की खोज, जिन्हें पूर्व की सुनवाई के दौरान शामिल नहीं किया गया था।
  2. दस्तावेज़ में कोई त्रुटि अथवा अस्पष्टता रही हो।
  3. कोई अन्य पर्याप्त कारण (अर्थात् ऐसा कारण जो अन्य दो आधारों के अनुरूप हो)।

समीक्षा याचिका कौन दायर कर सकता है?

  • नागरिक प्रक्रिया संहिता और उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो फैसले से असंतुष्ट है, समीक्षा याचिका दायर कर सकता है भले ही वह उक्त मामले में पक्षकार हो अथवा न हो।

नोट:

  • हालाँकि न्यायालय प्रत्येक समीक्षा याचिका पर विचार नही करता है। यह (न्यायालय) समीक्षा याचिका को तभी अनुमति देता है जब समीक्षा करने का कोई महत्त्वपूर्ण आधार दिखाता हो।
  • SC अपने पूर्व के फैसले पर अडिग रहने के लिये बाध्य नहीं है, सामुदायिक हितों और न्याय के हित में वह इससे हटकर भी फैसले कर सकता है।
  • संक्षेप में SC एक स्वयं सुधार संस्था है।
    • उदाहरण के तौर पर, केशवानंद भारती मामले (1973) में SC ने अपने पूर्व के फैसले गोलकनाथ मामले (1967) से हटकर फैसला दिया।

समीक्षा याचिका पर विचार करने के लिये न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया-

  • उच्चत्तम न्यायालय द्वारा निर्मित वर्ष 1996 के नियमों के अनुसार समीक्षा याचिका निर्णय की तारीख के 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिये।
  • कुछ परिस्थितियों में, न्यायालय समीक्षा याचिका दायर करने की देरी को माफ़ कर सकती है यदि याचिकाकर्ता देरी के उचित कारणों को अदालत के सम्मुख प्रदर्शित करे।
  • न्यायालय के नियमों के मुताबिक “वकीलों की मौखिक दलीलों के बिना याचिकाओं की समीक्षा की जाएगी।
  • समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई उन न्यायधीशों द्वारा भी की जा सकती है जिन्होंने उन पर निर्णय दिया था।
  • यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्त या अनुपस्थित होता है तो वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए प्रतिस्थापन किया जा सकता है।

अपवाद: (जब न्यायालय मौखिक सुनवाई की अनुमति देता है)

  • वर्ष 2014 के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “मृत्युदंड” के सभी मामलों की समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई तीन न्यायाधीशों की बेंच द्वारा खुली अदालत में की जाएगी।

अयोध्या के फैसले की समीक्षा किस आधार पर की जानी है?

  • अभी तक केवल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने कहा है कि वह निर्णय समीक्षा कराएगा। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य याचिकाकर्त्ता इस मत पर विभाजित हैं।
  • हालाँकि अभी तक इस आधार का खुलासा नहीं किया गया है जिसके आधार पर समीक्षा याचिका दायर की जाएगी।
  • हालाँकि ध्वस्त बाबरी मस्ज़िद के बदले सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी गई 5 एकड़ ज़मीन का मुद्दा महत्त्वपूर्ण है जिसे आधार बनाकर समीक्षा याचिका दायर की जा सकती है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड:

यह एक गैर-सरकारी संगठन है जिसे वर्ष 1973 में गठित किया गया था जो मुस्लिम पर्सनल लाॅ (शरीयत) की सुरक्षा और इसको प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिये कार्य करता है।

यदि समीक्षा याचिका असफल हो जाये तो?

  • यदि SC द्वारा समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया जाता है तो भी SC से दोबारा समीक्षा करने का अनुरोध किया जा सकता है। इस प्रकार की याचिका को आरोग्यकर/सुधारात्मक याचिका अर्थात् क्यूरेटिव पिटीशन कहा जाता है।
  • रूपा हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) मामले में SC ने पहली बार सुधारात्मक याचिका शब्दावली का प्रयोग किया।
  • सुधारात्मक याचिका को SC में अनुच्छेद 142 के अंतर्गत दाखिल किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

कुकी और ज़ोमी समूह

प्रीलिम्स के लिये

कुकी और ज़ोमी समूह, जनजातियाँ, उत्तर-पूर्व की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये

मणिपुर में जातीय समुदाय, जनजातियाँ और इनकी संवैधानिक एवं भौगोलिक स्थिति, अधिकार, इस संदर्भ में सरकार द्वारा चलाई जा रही कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ समय से भारत सरकार मणिपुर के 23 कुकी और ज़ोमी समूहों (Kuki and Zomi groups) के साथ शांति वार्ता को किसी परिणाम पर पहुँचाने का प्रयास कर रही है। इस संदर्भ में न केवल ये जनजातीय समूह चर्चा का विषय बने हुए हैं बल्कि भारत सरकार के इन प्रयासों की पृष्ठभूमि भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

पृष्ठभूमि

  • 15 अक्तूबर, 1949 को भारतीय संघ में विलय से पहले मणिपुर एक रियासत थी। यहाँ नगा, कुकी और मैती सहित कईं जातीय समुदाय निवास करते हैं।
  • मणिपुर के विलय और पूर्ण विकसित राज्य (वर्ष 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला) का दर्जा मिलने में हुई देरी से मणिपुर के लोगों में असंतोष की भावना उत्पन्न हुई।
  • प्राकृतिक संसाधनों पर अतिव्यापी दावों के संबंध में अलग-अलग आकांक्षाओं और कथित असुरक्षा के कारण विभिन्न जातीय समुदाय एक दूसरे से दूर होते चले गए।
  • शुरुआती दौर में मणिपुर में एक स्वतंत्र राज्य की मांग को लेकर आंदोलन हुआ और राज्य की स्थापना के साथ यह आंदोलन समाप्त हो गया। परंतु, वर्ष 1978 में यहाँ पुन: हिंसक आंदोलन शुरू हुआ और लोगों ने विकास तथा पिछड़ेपन को आधार बनाकर भारतीय गणराज्य से अलग होने की मांग की।
  • इसके अलावा वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में नगा एवं कुकी के बीच हुए जातीय संघर्ष के बाद, नगा आधिपत्य और दावे का सामना करने के लिये कई तरह के कुकी संगठनों का भी जन्म हुआ। इसके फलस्वरूप वर्ष 1998 में कुकी नेशनल फ्रंट (Kuki National Front-KNF) का गठन हुआ।
    • कुकी जनजाति के लोग एक अलग राज्य की मांग करते हैं। ये लोग एक उग्रवादी संगठन मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट की छत्रछाया में काम करते हैं।
  • इस दौरान नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (National Socialist Council of Nagalim) अर्थात् Issac (वर्ष 1988 में गठित) ने मणिपुर के कुछ ऐसे क्षेत्रों को नगालैंड में मिलाये जाने की मांग की, जिनमें बड़ी संख्या में कुकी जनजाति निवास करती हैं।

हालाँकि वर्ष 2008 में दो बड़े संगठनों [कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF)] के तहत कुकी और ज़ोमिस से संबंधित 20 उग्रवादी समूहों ने भारत सरकार एवं मणिपुर सरकार के साथ SoO (Suspension of Operations) समझौते पर हस्ताक्षर किये। समझौते का उद्देश्य चरमपंथी समूहों द्वारा की गई मांगों पर चर्चा करना और मणिपुर में शांति स्थापित लाना है।

मणिपुर में जातीय समुदाय

मणिपुर के लोगों को तीन मुख्य जातीय समुदायों में बाँटा गया है- मैती जो घाटी में निवास करते हैं और 29 प्रमुख जनजातियाँ, जो पहाड़ियों में निवास करती हैं, को दो मुख्य नृवंश-समुदायों (Ethno-Denominations); नगा और कुकी-चिन में विभाजित किया जाता हैं।

नगा समूह में ज़ेलियानग्रोंग (Zeliangrong), तंगखुल (Tangkhul), माओ (Mao), मैरम (Maram), मारिंग (Maring) और ताराओ (Tarao) शामिल हैं।

चिन-कुकी समूह

  • चिन-कुकी समूह (Chin-Kuki group) में गंगटे (Gangte), हमार (Hmar), पेइती (Paite), थादौ (Thadou), वैपी (Vaiphei), जोऊ/ज़ो (Zou), आइमोल (Aimol), चिरु (Chiru), कोइरेंग (Koireng), कोम (Kom), एनल (Anal), चोथे (Chothe), लमगांग (Lamgang), कोइरो (Koirao), थंगल (Thangal), मोयोन (Moyon) और मोनसांग (Monsang) शामिल हैं।
  • चिन पद का प्रयोग पड़ोसी राज्य म्याँमार के चिन प्रांत के लोगों के लिये किया जाता है जबकि भारतीय क्षेत्र में चिन लोगों को कुकी कहा जाता है। अन्य समूहों जैसे पेइती, जोऊ/ज़ो, गंगटे और वैपी अपनी पहचान ज़ोमी के रूप में करते हैं तथा स्वयं को कुकी नाम से दूर रखते हैं।
  • यह इस बात पर विशेष ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है कि सभी विभिन्न जातीय समूह एक ही मंगोलॉयड समूह (Mongoloid group) के हैं और उनकी संस्कृति एवं परम्पराओं में बहुत करीबी समानताएँ हैं।

हालाँकि मैती हिंदू रीति-रिवाज़ों का पालन करने वाला जनजातीय समूह हैं, यह अपने आसपास की पहाड़ी जनजातियों से सांस्कृतिक रूप से भिन्न है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

प्रीलिम्स के लिये

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण क्या है?

मेन्स के लिये

आर्थिक संवृद्धि के मापन में उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने आँकड़ों की गुणवत्ता के मद्देनज़र वर्ष 2017-18 के दौरान उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey) जारी करने से मना कर दिया।

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण क्या है?

  • यह एक पंचवर्षीय सर्वेक्षण है जिसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय के (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MOSPI) के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey-CES), पूरे देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त सूचना के आधार पर घरेलू स्तर पर होने वाले व्यय के पैटर्न को दर्शाता है।
  • इस सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर किसी परिवार द्वारा वस्तुओं (खाद्य एवं गैर-खाद्य) तथा सेवाओं पर किये जाने वाले औसत खर्च एवं मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (Monthly Per Capita Expenditure-MPCE) का अनुमान लगाया जाता है।

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (CES) की उपयोगिता:

  • मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग के अनुमान से किसी अर्थव्यवस्था में मांग तथा वस्तुओं और सेवाओं को लेकर लोगों की प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाया जाता है।
  • इसके अलावा यह लोगों के जीवन स्तर एवं विभिन्न पैमानों पर आर्थिक संवृद्धि को दर्शाता है।
  • यह संरचनात्मक विसंगतियों की पहचान करता है तथा आर्थिक नीतियों के निर्माण में मददगार साबित होता है जिससे मांग के पैटर्न का पता लगाया जा सके एवं वस्तु तथा सेवाओं के उत्पादकों को मदद मिल सके।
  • CES एक विश्लेषणात्मक प्रक्रिया है जिसका प्रयोग सरकारें जीडीपी तथा अन्य वृहत आर्थिक संकेतकों के पुनर्निर्धारण (Rebasing) के लिये करती हैं।

विगत सर्वेक्षण (वर्ष 2011-12) के आँकड़े:

क्षेत्र मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) भोजन पर खर्च (MPCE का प्रतिशत) शिक्षा पर खर्च अनाजों पर खर्च घर का किराया
शहरी क्षेत्र 2,630 रुपए 42.6 प्रतिशत 7 प्रतिशत 6.7 प्रतिशत 6.2 प्रतिशत
ग्रामीण क्षेत्र 1,430 रुपए 53 प्रतिशत 3.5 प्रतिशत 10.8 प्रतिशत 0.5 प्रतिशत
  • वर्ष 2011-12 के आँकड़ों के अनुसार, बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले राज्य तथा पिछड़े राज्यों के बीच असमानता में वृद्धि हुई है।
  • MPCE के मामले में शीर्ष पाँच प्रतिशत राज्यों में यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 2,886 रुपए था, जबकि निचले पाँच प्रतिशत राज्यों के लिये 616 रुपए था।
  • शीर्ष पाँच प्रतिशत राज्यों के शहरी क्षेत्रों के लिये MPCE 6,383 रुपए था, जबकि निचले पाँच प्रतिशत राज्यों के लिये यह 827 रुपए था।

All About Consumption

वर्ष 2017-18 के सर्वेक्षण पर विवाद:

  • हाल ही में मीडिया द्वारा यह दावा किया गया कि MPCE पर वर्ष 2017-18 के आँकड़ों में वर्ष 1972-73 के बाद पहली बार गिरावट दर्ज की गई है जो कि 3.7% है।
  • इसके अनुसार वास्तविक कीमतों पर वर्ष 2011-12 में MPCE 1,501 रुपए (मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित) था जो वर्ष 2017-18 में घटकर 1,446 रुपए रह गया।
  • इसके अलावा मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित उपभोग व्यय (Inflation Adjusted Consumption Expenditure) ग्रामीण क्षेत्रों में 8.8 प्रतिशत घट गया, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसमें 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • इसके विपरीत सरकार का मानना है कि वस्तु एवं सेवाओं के वास्तविक उत्पादन को दर्शाने वाले प्रशासनिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि विगत वर्षों में लोगों के उपभोग व्यय में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि उनके उपभोग के पैटर्न में भी विविधता आई है।
  • सरकार का यह भी कहना है कि अधिकांश परिवारों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सामाजिक सेवाओं के उपभोग में वृद्धि हुई है।
  • इसलिये सरकार इस सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों को लेकर संतुष्ट नहीं थी तथा इस मामले को विशेषज्ञों की एक समिति के पास भेजा गया।
  • समिति का कहना है कि इस सर्वेक्षण में कई अनियमितताएँ हैं तथा इसमें प्रयुक्त शोध विधि को लेकर भी कई बदलाव किये जाने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा कुछ अर्थशास्त्रियों का सरकार के विपरीत तर्क है कि मई 2019 में NSSO द्वारा प्रकाशित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey-PLFS) 2017-18 के अनुसार, देश में बेरोज़गारी पिछले 45 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है तथा वेतन में स्थिरता बनी हुई है।
  • इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित जीडीपी के आँकड़ों के मुताबिक, वर्तमान वित्तीय वर्ष के अप्रैल-जून तिमाही में निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure) पिछली 18 तिमाहियों के न्यूनतम स्तर पर था।

सरकार के निर्णय का प्रभाव:

  • सरकार द्वारा CES के आँकड़े न जारी करने के इस निर्णय से वर्तमान उपभोक्ताओं के व्यय पैटर्न की सही जानकारी नहीं मिलेगी जिससे नीति निर्माताओं को आर्थिक सुधार से संबंधित रणनीति बनाने में मुश्किल होगी।
  • वर्ष 2017-18 के आँकड़े न जारी होने से सरकार अगला सर्वेक्षण वर्ष 2020-21 या 2021-22 में जारी करेगी। इससे वर्ष 2011-12 में जारी आँकड़ों के बाद 9 या 10 वर्षों का अंतराल आएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के विशेष आँकड़े प्रसार मानक (Special Data Dissemination Standard-SDDS) का भागीदार होने के नाते भारत वृहत स्तर के आर्थिक आँकड़े (Macro-Economic Data) प्रकाशित करने के लिये बाध्य है।
  • इन मानकों में निम्नलिखित दिशा-निर्देश शामिल हैं-
    • आँकड़ों का समयानुसार, निश्चित समय के अंतराल पर कवरेज
    • आँकड़ों की जनता तक पहुँच
    • आँकड़ों की गुणवत्ता
    • आँकड़ों की अखंडता
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एनुअल आब्ज़रवेंस रिपोर्ट (Annual Observance Report) 2018 के अनुसार, भारत अपने आर्थिक आँकड़ों के प्रकाशन में प्रायः देरी करता है जो SDDS के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
  • राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics) पर सलाहकार समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि वर्ष 2017-18 को जीडीपी के आधार वर्ष के तौर पर पुनर्निर्धारण हेतु प्रयोग करना उचित नहीं होगा क्योंकि इसके द्वारा जारी डेटा भविष्य में संदेहास्पद हो सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (26 नवंबर)

संविधान दिवस

  • हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को अंगीकार किये जाने की 70वीं वर्षगाँठ है।
  • 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू होने से पहले 26 नवंबर, 1949 को इसे अपनाया गया था।
  • 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहे। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के अन्य प्रमुख सदस्य थे।
  • संविधान सभा के सदस्यों का पहला सेशन 9 दिसंबर, 1947 को आयोजित हुआ। इसमें संविधान सभा के 207 सदस्य थे।
  • संविधान की ड्रॉफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर थे। इन्हें भारत के संविधान का निर्माता भी कहा जाता है।
  • भारतीय संविधान को तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था।
  • सरकार ने 19 नवंबर, 2015 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था। यानी कि वर्ष 2015 से संविधान दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

संविधान दिवस मनाने का उद्देश्य नागरिकों को संविधान के प्रति सचेत करना, समाज में संविधान के महत्त्व का प्रसार करना है। साथ ही भारतीय संविधान में व्यक्त किये गए मूल्यों और सिद्धांतों को नागरिकों के समक्ष दोहराना तथा सभी देशवासियों को भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने में अपनी उचित भूमिका निभाने के लिये प्रोत्साहित करना।


राष्ट्रीय दुग्ध दिवस

  • भारत में श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस’ (National Milk Day) के रूप में मनाया जाता है।
  • वर्ष 2014 में 26 नवंबर के दिन भारतीय डेयरी एसोसिएशन (Indian Dairy Association-IDA) ने पहली बार यह दिवस मनाने की पहल की थी।
  • वर्ष 1970 में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि तथा ग्रामीण क्षेत्र की आय बढ़ाने को दृष्टिगत रखते हुए ‘ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की गई।
  • दुग्ध उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य है, जबकि गुजरात स्थित अमूल देश की सबसे बड़ी दुग्ध सहकारी संस्था है।

विश्व दुग्ध दिवस 1 जून को मनाया जाता है। विश्व दुग्ध दिवस 2019 की थीम- ‘ड्रिंक मिल्क टुडे एंड एवरीडे’ (Drink Milk: Today & Everyday) रखी गई है। वर्ष 2001 में पहली बार विश्व दुग्ध दिवस मनाया गया था।


दिल्ली में स्मॉग टावर

  • दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह अलग-अलग स्थानों पर प्यूरीफाइंग टॉवर या स्मॉग टॉवर लगाने का खाका तैयार करें।
  • स्मॉग टावर एक बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर है। यह अपने आसपास से प्रदूषित हवा या उसके कणों को सोख लेता है और फिर वापस पर्यावरण में साफ हवा छोड़ता है।
  • घर पर लगने वाले आम प्यूरीफायर की तरह यह बिजली से चलते हैं। इनमें से कुछ को सोलर पावर से भी चलाया जा सकता है।
  • स्मॉग टॉवर का पहला प्रोटोटाइप चीन की राजधानी बीजिंग में लगाया गया। इसे बाद में चीन के तियानजिन और क्राको शहर में भी लगाया गया।

दिल्ली की एक स्टार्टअप कंपनी ने 40 फुट लंबा ऐसा प्यूरीफायर बनाया है जो उसके 3 किलोमीटर के दायरे में रह रहे 75 हज़ार लोगों को स्वच्छ हवा दे सकता है। इसके निर्माता कुरीन सिस्टम्स को हाल ही में ‘दुनिया के सबसे लंबे और साथ ही सबसे मजबूत प्यूरीफायर’ के लिये पेटेंट मिला है।


सिटी क्लीनर:

  • छोटे टावर को सिटी क्लीनर भी कहा जाता है। स्मॉग टावर और सिटी क्लीनर के अंतर की बात करें तो सिटी क्लीनर स्मॉग टॉवर से बेहतर होता है।
  • प्रायः स्मॉग टावर हवा को साफ करने के लिये आयनाइजेशन तकनीक का उपयोग करता है। इसमें हवा का आयनीकरण प्रदूषकों को पूरी तरह नहीं समाप्त तो नहीं कर पाता, लेकिन ऑक्सीजन से प्रदूषकों को अलग कर देता है। इसके विपरीत सिटी क्लीनर में हवा का आयनीकरण पूरी तरह प्रदूषकों को खत्म करता है। हमारे देश में ऐसे एक टावर की अनुमानित लागत डेढ़ से दो करोड़ रुपए के बीच है।

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