डेली न्यूज़ (26 Sep, 2018)



वित्तीय समावेशन सूचकांक

चर्चा में क्यों?

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ वार्षिक प्रदर्शन समीक्षा बैठक के बाद वित्तीय समावेशन सूचकांक (Financial Inclusion Index) लॉन्च किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Services- DFS), वित्त मंत्रालय एक वार्षिक वित्तीय समावेशन सूचकांक जारी करेगा जो औपचारिक वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के बास्केट तथा उन सेवाओं जिनमें बचत, प्रेषण, क्रेडिट, बीमा और पेंशन उत्पाद शामिल हैं, तक पहुँच और उनके उपयोग का एक मापक होगा।
  • सूचकांक में तीन मापक आयाम होंगे-
  1. वित्तीय सेवाओं तक पहुँच
  2. वित्तीय सेवाओं का उपयोग
  3. गुणवत्ता।
  • यह एकल समग्र सूचकांक वित्तीय समावेशन के स्तर पर समष्टि नीति (Macro Policy) की योजनाओं का मार्गदर्शन करेगा।
  • इंडेक्स के विभिन्न घटक आंतरिक नीति बनाने के लिये वित्तीय सेवाओं के मापन में भी मदद करेंगे।
  • वित्तीय समावेशन सूचकांक का उपयोग विकास संकेतकों में सीधे एक समग्र उपाय के रूप में किया जा सकता है।
  • यह G20 देशों के वित्तीय समावेशन संकेतकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा।
  • यह शोधकर्त्ताओं को वित्तीय समावेशन और समष्टि अर्थव्यवस्था (macro economy) की अन्य परिवर्ती राशियों के प्रभाव का अध्ययन करने में भी सुविधा प्रदान करेगा।
  • यह सूचकांक जनवरी, 2019 में जारी किया जाएगा।

वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) 

  • ‘वित्‍तीय समावेशन' एक ऐसा मार्ग है जिस पर सरकारें आम आदमी को अर्थव्‍यवस्‍था के औपचारिक माध्‍यम में शामिल करके उन्हें आगे बढाने का प्रयास करती हैं ताकि यह सुनिश्‍चित किया जा सके कि अंतिम छोर पर खड़ा व्‍यक्‍ति भी आर्थिक विकास के लाभों से वंचित न रहे तथा उसे अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल किया जाए।
  • ऐसा करके गरीब आदमी को बचत करने एवं विभिन्‍न वित्‍तीय उत्‍पादों में सुरक्षित निवेश करने के लिये प्रोत्‍साहित किया जाता है तथा उधार लेने की आवश्‍कता पड़ने पर वह उन्‍हीं औपचारिक माध्‍यमों से उधार भी ले सकता है।
  • ऋण, भुगतान और धन-प्रेषण सुविधाएँ तथा मुख्यधारा के संस्थागत खिलाड़ियों के लिये उचित और पारदर्शी ढंग से वहनीय लागत पर बीमा सेवा आदि कुछ प्रमुख वित्तीय सेवाएँ हैं।

वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • भारत में मोबाइल बैंकिंग का विस्तार
  • बैंकिंग कॉरस्पॉन्डेट (BC) योजना
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
  • वरिष्‍ठ पेंशन बीमा योजना

वित्तीय समावेशन के लाभ

आम आदमी को अर्थव्यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल किये जाने से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं। 

  • जहाँ एक ओर इससे समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को उनकी ज़रूरतों तथा भविष्‍य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्‍न वित्तीय उत्‍पादों जैसे - बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन आदि के उपयोग से देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्‍त करने के लिये प्रोत्‍साहन प्राप्‍त होता है।
  • वहीं दूसरी ओर, इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्‍त होती है।
  • इसके फलस्‍वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय दृष्‍टि से अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल लोग ऋण सुविधाओं का आसानी से उपयोग कर पाते हैं, फिर चाहे वे संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हों अथवा असंगठित क्षेत्र में, शहरी क्षेत्र में रहते हों अथवा ग्रामीण क्षेत्र में।
  • वित्तीय समावेशन से सरकार को सब्‍सिडी तथा कल्‍याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेरा-फेरी पर रोक लगाने में भी मदद मिलती है, क्‍योंकि इससे सरकार उत्‍पादों पर सब्‍सिडी देने की बजाय सब्‍सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है।

वित्तीय समावेशन के अभाव में होने वाले नुकसान

  • वित्‍तीय समावेशन का अभाव समाज एवं व्‍यक्‍ति दोनों के लिये हानिकारक होता है। जहाँ तक व्‍यक्‍ति का संबंध है, वित्‍तीय समावेशन के अभाव में, बैंकिंग सुविधा से वंचित लोग अनौपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ने के लिये बाध्‍य हो जाते हैं, जहाँ ब्‍याज दरें अधिक होती हैं और प्राप्‍त होने वाली राशि काफी कम होती है।
  • चूँकि अनौपचारिक बैंकिंग ढाँचा कानून की परिधि से बाहर है, अत: उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच उत्‍पन्‍न किसी भी विवाद का कानूनन निपटान नहीं किया जा सकता।

भारत में बेरोज़गारी की दर 20 वर्षों में सबसे अधिक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सतत् रोज़गार केंद्र द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, तेज़ी से बढ़ रही बेरोज़गारी भारत के नीति निर्माताओं और प्रशासकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

बेरोज़गारी में वृद्धि

  • स्टेट ऑफ वर्किंग रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है, कई सालों तक 2-3% पर रुकी होने के बाद बेरोज़गारी दर 2015 में 5% तक पहुँच गई जिसमें युवा बेरोज़गारी सबसे अधिक 16% है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बेरोज़गारी दर पिछले 20 सालों में सबसे अधिक है।

कम मज़दूरी है बेरोज़गारी का कारण

  • नौकरियों में यह कमी निराशाजनक मज़दूरी दर के कारण हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, 82% पुरुष और 92% महिला श्रमिक 10,000 रुपए से कम वेतन पाते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हालाँकि देश के अधिकांश क्षेत्रों में मज़दूरी पिछले 15 वर्षों से सालाना 3% की मुद्रास्फीति समायोजित दर से बढ़ रही है, वहीं कामकाजी आबादी की अधिकांश संख्या ऐसी है जिन्हें सातवें वेतन आयोग द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिलता है।

बेरोज़गार विकास

  • रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में देश ने शिक्षा क्षेत्रों में जो परिवर्तन किया है उसकी तुलना में सरकार नौकरियों का सृजन करने में असमर्थ रही है। रिपोर्ट में इसे 'बेरोज़गार विकास' (Jobless Growth) के रूप में दर्शाया गया है। वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में 10% की वृद्धि के परिणामस्वरूप रोज़गार में वृद्धि 1% से भी कम है।

विभिन्न आधिकारिक सर्वेक्षणों का किया गया उपयोग

  • यह रिपोर्ट विभिन्न आधिकारिक सर्वेक्षणों जैसे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिये केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय और श्रम ब्यूरो के वार्षिक सर्वेक्षण के साथ-साथ क्षेत्रीय अध्ययनों जैसे स्रोतों का उपयोग कर श्रम और रोज़गार के मुद्दों के बारे में मात्रात्मक डेटा और अंतर्दृष्टि प्रदान करने का प्रयास करती है।

रिपोर्ट का सकारात्मक पहलू

  • इस रिपोर्ट में एक सकारात्मक क्षेत्र है-विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों का सृजन। लेकिन विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों में समस्या यह है कि ये स्थायी होने की बजाय अधिक अनुबंध युक्त और प्रशिक्षु कार्य वाली थीं।
  • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि पिछले 30 वर्षों में श्रम उत्पादकता 6 गुना बढ़ी है। जबकि इस अवधि के दौरान प्रबंधन स्तर के वेतन में 3 गुना वृद्धि हुई, उत्पादन के क्षेत्र में काम करने वालों के वेतन में केवल 1.5 गुना वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप, विकास से नियोक्ताओं को श्रमिकों की तुलना में कहीं अधिक लाभ हुआ है।

जातिगत और लैंगिक असमानता का उच्च स्तर

  • जातिगत और लैंगिक असमानता का स्तर उच्च पाया गया है। रिपोर्ट में उद्धृत कुछ आँकड़े ये दर्शाते हैं कि -
  • सेवा क्षेत्र में कार्यरत सभी कर्मचारियों में महिला कर्मचारियों की संख्या 16% है लेकिन घरेलू श्रमिकों के मामले में इनकी संख्या कुल घरेलू श्रमिकों की संख्या का 60% है।
  • इसी तरह, कुल श्रमिकों में अनुसूचित जाति के श्रमिकों का प्रतिनिधित्व 18.5%, लेकिन कुल चमड़ा श्रमिकों में इनका प्रतिनिधित्व 46% है।

भारत में जारी होने वाले पहले आरईआईटी का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

दस साल तक कई परामर्श पत्र और नियमों में अनगिनत छूटों के बाद  भारत में रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (Real Estate Investment Trusts- REIT) अब एक वास्तविकता बनने के लिये तैयार है। पहली बार सूचीबद्ध एंबेसी ऑफिस पार्क आरईआईटी, भारत में पहला आरईआईटी होगा।

आरईआईटी क्या है?

  • आरईआईटी एक ऐसा मंच है जो निवेशकों को कम मात्रा में प्रतिभूतीकृत अचल संपत्ति निवेश की अनुमति देता है। यह एक म्यूचुअल फंड की तरह काम करता है, जो विभिन्न निवेशकों से एकत्र की गई पूंजी को एक स्थान पर संयोजित करता है।
  • आरईआईटी के माध्यम से, लीज़ पर दी जाने वाली अचल संपत्तियों को कई हिस्सों में वर्गीकृत किया जा सकता है और उन्हें एक पत्र निवेश या प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • आरईआईटी अचल संपत्ति में निवेश को अधिक सुलभ, दीर्घकालिक और आय उन्मुख बनाने में भी मदद करते हैं। वैश्विक स्तर पर दो प्रमुख प्रकार के आरईआईटी हैं: इक्विटी और बंधक।
  • आरईआईटी को एक ट्रस्ट के रूप में विनियमित और प्रबंधित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि यह इसका उत्तरदायित्व होगा कि निवेशक निधि का उपयोग कैसे किया जाए और इस निधि की लेखा परीक्षा की जा सकेगी।

क्या यह एक आरईआईटी लिस्टिंग के लिये अच्छा समय है?

  • भारत का आवासीय क्षेत्र पाँच वर्षों से अधिक समय से सुस्ती का सामना कर रहा है, लेकिन वाणिज्यिक कार्यालय के क्षेत्रक ने वैश्विक निवेशकों को आकर्षित किया है।
  • आधारभूत संरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs) के सूचीकरण में निराशाजनक प्रतिक्रिया भी चिंता का कारण रही है। आरईआईटी के विपरीत, InvITs के पास परिसंपत्तियों का स्वामित्व नहीं होता है बल्कि केवल उन्हें संचालित करने के लिये लाइसेंस होता है और किसी प्रकार का अनुबंध संबंधी दायित्व नहीं होता है।
  • विश्लेषकों का कहना है कि शीर्ष गुणवत्ता वाली संपत्ति और किरायेदार आधार तथा इसकी विकास क्षमता को देखते हुए एंबेसी-ब्लैकस्टोन आरईआईटी निवेशकों को आकर्षित करेगा।

भारत में आरईआईटी में इतनी देर क्यों हुई?

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वर्ष 2008 में इसके लिये मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये, लेकिन वर्ष 2014 में उन्हें अधिसूचित किया गया। तब यह कहा गया कि आरईआईटी में अधिकतम तीन प्रायोजक होने चाहिये और उसमें किया जाने वाला निवेश तैयार हो चुकी आय अर्जक संपत्ति में आरईआईटी परिसंपत्तियों का कम-से-कम 80% होना चाहिये।
  • 2016 के बजट ने आरईआईटी को लाभांश वितरण कर से छूट दी और उन्हें विदेशी निवेश की अनुमति दी।
  • 2016 में, सेबी ने कहा कि आरईआईटी के निवेश प्रबंधकों को प्रस्तावित दस्तावेज़ों में कम-से-कम लगातार 3 वर्षों के लिये फंड के राजस्व, संपत्ति-आधारित ऑपरेटिंग कैश प्रवाह को दर्शाना चाहिये।
  • 28 जुलाई, 2017 को एंबेसी ऑफिस पार्क आरईआईटी सेबी के साथ पंजीकृत हुआ।

आरईआईटी लिस्टिंग के साथ एंबेसी पार्क का लक्ष्य कितना धन जुटाना है?

  • ब्लैकस्टोन समूह और एंबेसी समूह द्वारा सह-प्रायोजित एंबेसी ऑफिस पार्क, आरईआईटी में सूचीकरण के माध्यम से 5,250 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखता है।

भारत के वाणिज्यिक कार्यालय क्षेत्र को आकार देने में ब्लैकस्टोन की क्या भूमिका है?

  • ब्लैकस्टोन रियल एस्टेट भारत में 31 योजनाओं में 5.3 बिलियन डॉलर के निवेश के लिये प्रतिबद्ध है।
  • इनमें से उसने 100 मिलियन वर्ग फुट की कार्यालयी संपत्तियों में 9 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिसने इसे भारत में शीर्ष कार्यालयी स्थान (ऑफिस स्पेस) निवेशक बना दिया है।
  • कंपनी ने 2007 में भारत में अपना रियल एस्टेट डिवीज़न खोला और 2008 में सिनर्जी संपत्ति विकास सेवाओं में अल्पसंख्यक हिस्सेदारी के साथ पहला लेन-देन किया। इसने 2011 में कार्यालय संपत्तियाँ खरीदना शुरू कर दिया।

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 26 सितंबर 2018

यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन द्वारा जारी मानव पूंजी रैंकिंग में भारत 158वें स्थान पर

साप्ताहिक पत्रिका द लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि मानव पूंजी के स्तर पर भारत 2016 में 195 देशों में से 158वें स्थान पर था, जबकि 1990 में इसका रैंक 162वाँ था। यह अध्ययन किसी देश द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर किये गए खर्च के आधार पर रैंक निर्धारित करता है।

  • अध्ययन के मुताबिक, भारत का स्थान सूडान (157वाँ स्थान) के बाद है और नामीबिया (159वाँ स्थान) से आगे है। अमेरिका 27वें स्थान पर, जबकि चीन 44वें स्थान पर और पाकिस्तान 164वें स्थान पर है।
  • अध्ययन के मुताबिक, भारत अपने कार्यबल की शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में पीछे है। जो संभावित रूप से अर्थव्यवस्था पर नकारत्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • इस अध्ययन में सरकारी संस्थाओं, स्कूलों तथा स्वास्थ्य सेवाओं से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया था।
  • विश्व बैंक के अनुरोध पर यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन के स्वास्थ्य मेट्रिक्स और मूल्यांकन संस्थान (IHME) द्वारा आयोजित यह अध्ययन देशों की ‘मानव पूंजी’ के स्तर को मापने और उनकी तुलना हेतु इस तरह का पहला अध्ययन है।
  • यह अध्ययन इस तथ्य का भी खुलासा करता है कि किसी देश की मानव पूंजी में बढ़ोतरी के साथ उसकी अर्थव्यवस्था में भी वृद्धि होती है।

नेशनल ई-विधान एप्‍लीकेशन (नेवा)

हाल ही में नेशनल ई-विधान एप्लीकेशन (National e-Vidhan Application- NeVA) पर एक राष्ट्रीय ओरिएंटेशन कार्यशाला का आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि इस कार्यशाला का आयोजन संसदीय मामलों के मंत्रालय ने किया।

  • कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य सभी राज्य विधान पालिकाओं को ई-विधान प्लेटफॉर्म अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना और विधान पालिकाओं के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्त्व लाना था।
  • नेवा विकेंद्रीकृत डिजिटल एप्लीकेशन है, जो विधानमंडलों के दैनिक कामकाज से संबंधित सूचना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराती है।
  • यह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का एक हिस्सा है और संसदीय मामलों का मंत्रालय इसके लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है तथा इसकी योजना ‘एक राष्ट्र एक एप्लीकेशन’ के सिद्धांत के अनुरूप ई-विधान को संसद के दोनों सदनों सहित 40 विधानमंडलों में लागू करने की है।
  • यह पहल हिमाचल प्रदेश में केंद्रीय सहायता द्वारा निष्पादित एक पायलट परियोजना के साथ शुरू हुई जिसने 2014 में शिमला विधानसभा को भारत की पहली पेपरलेस विधानसभा बनाया।

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस

संयुक्त राष्ट्र की घोषणा का अनुसरण करते हुए बधिरों के अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह के हिस्से के रूप में दुनिया भर में हर साल 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाता है।

  • इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की थीम “सांकेतिक भाषा के साथ, सभी लोग सम्मिलित हैं” (With Sign Language, Everyone is Included) है।
  • भारत में अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के तहत दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग के भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (Indian Sign Language Research and Training Centre- ISLRTC) द्वारा मनाया जाता है।
  • सांकेतिक भाषाएँ पूर्ण रूप से विकसित प्राकृतिक भाषाएँ हैं, जो बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं।
  • एक अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा भी है, जिसका प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में और अनौपचारिक रूप से यात्राओं तथा लोगों से घुलने मिलने के दौरान बधिर लोगों द्वारा किया जाता है।
  • कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटीज़ सांकेतिक भाषा की पहचान करने और उनके प्रयोग को बढ़ावा देने का कार्य करता है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि सांकेतिक भाषा और बोली जाने वाली भाषाओं की स्थिति समान होती है और राज्यों की पार्टियों को सांकेतिक भाषा सिखाने और बधिर समुदाय की भाषायी पहचान को बढ़ावा देने के लिये बाध्य करता है।
  • सांकेतिक भाषाएँ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओँ की तरह ही जटिल व्याकरण युक्त भाषाएँ हैं। इनका स्वयं का व्याकरण तथा शब्दकोश होता है। सांकेतिक भाषा का कोई भी रूप सार्वभौमिक नहीं है। अलग-अलग देशों या क्षेत्रों में अलग-अलग सांकेतिक भाषाएँ प्रयोग की जाती हैं। जैसे- ब्रिटिश सांकेतिक भाषा (BSL) तथा अमेरिकन सांकेतिक भाषा (ASL), जो लोग ASL को समझते हैं वे BSL को नहीं समझ सकते।

वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ (WFD)

  • विश्व फेडरेशन ऑफ द डेफ (WFD) 133 देशों के बधिर संघों का एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी और गैर-सरकारी संगठन है।
  • इसके अलावा, इसकी सदस्यता में सहयोगी सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय सदस्य और व्यक्तिगत सदस्य और युवा सदस्य शामिल हैं। इसका विधिक केंद्र फिनलैंड के हेलसिंकी में है जहाँ WFD सचिवालय संचालित होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र में डब्ल्यूएफडी की स्थिति परामर्शदाता की है और यह अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता गठबंधन (IDA) का संस्थापक सदस्य है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों, मानवाधिकार संधियों, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और 2030 सतत् विकास लक्ष्य के अनुसार बधिर लोगों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है।

पराक्रम पर्व

भारतीय सशस्त्र सेना नियंत्रण रेखा (Line of Control- LOC) पर आतंकवादी शिविरों के खिलाफ किये गए सर्जिकल हमलों की दूसरी सालगिरह और सशस्त्र बलों के साहस, बहादुरी और बलिदान को प्रदर्शित करने के लिये 28-30 सितंबर तक 'पराक्रम पर्व' का आयोजन करेगी।

  • भारतीय सेना ने 2016 में सर्जिकल हमले किये थे, जो सामरिक रूप से अत्यधिक जटिल था। इसका उद्देश्य देश में शांति का माहौल सुनिश्चित करना और हिंसा का मार्ग अपनाकर दुश्मन को विचलित करना था।
  • मुख्य कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली के राजपथ मपर इंडिया गेट परिसर में किया जाएगा। इसी प्रकार, देश भर के 51 शहरों में 53 स्थानों पर भारतीय सशस्त्र बलों और स्पेशल फोर्सेज़ की बहादुरी वाली सामान्य तथा विशेष घटनाओं को प्रमुखता से प्रदर्शित करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
  • आगंतुकों को सेना द्वारा कब्ज़े में लिये गए हथियारों (जिनका प्रयोग आतंकवादियों द्वारा किया गया) के अलावा सेना का तोपखाना, बंदूकें और छोटे हथियारों जैसे सैन्य उपकरण भी देखने को मिलेंगे।