अनुसंधान एवं विकास से संबंधित खर्च प्रणाली
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में अनुसंधान एवं विकास से संबंधित खर्च प्रणाली (Research & Development Expenditure Ecosystem) शीर्षक पर आधारित एक रिपोर्ट जारी की गई।
प्रमुख बिंदु:
- इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा संकलित किया गया।
- इस रिपोर्ट के अनुसार अनुसंधान और विकास (R&D) से संबंधित व्यय में वृद्धि सकल घरेलु उत्पाद (GDP) में वृद्धि के अनुरूप होनी चाहिये और इस व्यय को वर्ष 2022 तक GDP का 2% होना चाहिये।
- भारत का R&D में सार्वजनिक निवेश GDP के एक अंश के रूप में पिछले दो दशकों में स्थिर रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार यह निवेश GDP के लगभग 0.6 प्रतिशत से 0.7 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है जो कि अमेरिका (2.8%), चीन (2.1%), इज़राइल (4.3%) और कोरिया (4.2%) जैसे देशों के निवेश से काफी कम है।
- रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भारत में R&D में निवेश करने में केंद्र सरकार प्रमुख निवेशक है जबकि उन्नत देशों में निजी क्षेत्र R&D में मुख्य निवेशक है। इसलिये इस क्षेत्र के कुल व्यय में राज्य सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है।
- यह रिपोर्ट राज्यों को भी केंद्र के साथ मिलकर संयुक्त रूप से सामाजिक रूप से अभिकल्पित केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (Central Sponsored Schemes-CSS) के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार कार्यक्रमों का संयुक्त रूप से वित्तपोषण करने का सुझाव देती है।
- रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में मौजूद कर कानून कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (Corporate Social Responsiblity-CSR) निवेश को R&D में शामिल करने के पक्षधर हैं, इस संदर्भ में R&D की गतिविधियों के प्रकार को और अधिक विस्तारित किया जाना चाहिये।
- रिपोर्ट नवीन ज्ञान में वृद्धि हेतु सुदृढ़ आधार की स्थापना के लिये तेज़ी से निवेश के साथ-साथ अविष्कार व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था दोनों पर R&D के प्रभाव का आंकलन करने का सुझाव देती है।
- यह रिपोर्ट 30 समर्पित R&D एक्सपोर्ट्स हब बनाने के साथ-साथ क्रॉस कटिंग (Cross Cutting) थीम के साथ राष्ट्रीय हित की मेगा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये 5,000 करोड़ रुपए के एक कोष के निर्माण का भी समर्थन करती है।
- नवोन्मेष (Innovation) और औद्योगिक R&D के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिये R&D में निजी निवेश को बढ़ावा देना होगा, जो वर्तमान में GDP का मात्र 0.35% है। रिपोर्ट भारत में पंजीकृत माध्यम व बड़े उद्योगों को उनके कुल टर्नओवर के एक निश्चित भाग को R&D में निवेश करने का सुझाव देती है।
उद्देश्य
- इस रिपोर्ट का पहला उद्देश्य R&D आँकड़ों के संकलन में मौजूद खामियों को दूर करना है ताकि R&D के बारे में विश्वभर में भारत के वास्तविक दर्जे को दर्शाने हेतु अद्यतन आँकड़ों को उपलब्ध कराया जा सके।
- इसका दूसरा उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में खर्च के रुझानों और उनकी खामियों की जाँच करना है।
- इसका तीसरा उद्देश्य वर्ष 2022 तक R&D पर होने वाले खर्च के वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना तैयार करना है।
प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद
(Economic Advisory Council to the Prime Minister-EAC-PM)
- प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद एक स्वतंत्र निकाय है जिसका गठन भारत सरकार को और विशेष रूप से प्रधानमंत्री को आर्थिक एवं संबंधित अन्य मुद्दों पर सलाह देना है। इस परिषद में उच्च ख्याति प्राप्त और श्रेष्ठ अर्थशास्त्री शामिल होते है।
- इसमें एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं।
- इसके सदस्यों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बराबर होता है।
- आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सलाहकार समिति के सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
- प्रधानमंत्री द्वारा पद मुक्त होने के साथ ही सलाहकार समिति के सदस्य भी त्यागपत्र दे देते हैं।
निष्कर्ष
भारत को R&D पर राष्ट्रीय व्यय में वृद्धि करते हुए विज्ञान और अनुसंधान प्रणाली में अपनी रैंकिंग में सुधार करने के अपने प्रयासों को फिर से दोगुना करने की आवश्यकता है। R&D से संबंधित खर्च में वृद्धि GDP की वृद्धि के अनुरूप होनी चाहिये और वर्ष 2022 तक उसे GDP के कम-से-कम दो प्रतिशत तक पहुंच जाना चाहिये।
स्रोत: पीआईबी, द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-III
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मंत्रिमंडल की आर्थिक समिति ने पूरे देश में ग्रामीण सड़क कनेक्टिविटी को और मज़बूत बनाने के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण (PMGSY-III) को मंजूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना केंद्र प्रायोजित है, जिसे लागू करने की ज़िम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं राज्य सरकारों को दी गई है।
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना के तीसरे चरण के तहत देश भर में सड़कों का नेटवर्क स्थापित कर रिहायशी क्षेत्रों को ग्रामीण कृषि बाजारों, उच्च माध्यमिक विद्यालयों तथा अस्पतालों को ग्रामीण क्षेत्रों की प्रमुख संपर्क सड़कों से जोड़ा जाएगा।
- इसके अंतर्गत 1,25,000 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने की योजना है जिसकी अनुमानित लागत लगभग 80,250 करोड रुपए है।
- इससे ग्रामीण कृषि बाजारों, उच्च माध्यमिक विद्यालयों तथा अस्पतालों से आवाजाही तीव्र एवं सुविधाजनक हो जाएगी।
- PMGSY के अंतर्गत बनी सड़कों का रखरखाव ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा।
- ध्यातव्य है कि वित्तमंत्री ने वर्ष 2018-19 के बजट भाषण में PMGSY-III योजना की घोषणा की थी।
वित्तीय हिस्सेदारी
- परियोजना की अनुमानित लागत 80,250 करोड़ रुपए में से केंद्र का हिस्सा 53,800 करोड़ रुपए तथा राज्य का हिस्सा 26,450 करोड़ रुपए है।
- केंद्र एवं राज्यों के बीच निधियों की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में होगी, लेकिन 8 पूर्वोत्तर राज्यों तथा तीन हिमालयी राज्यों (जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड) में ये हिस्सेदारी 90:10 के अनुपात में होगी।
योजना का क्रियान्वयन
- ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-III की अवधि 2019-20 से 2024-25 तक निर्धारित की गई है।
- सड़कों का चयन आबादी, बाजार, शैक्षणिक तथा चिकित्सा सुविधाओं आदि के मानकों के आधार पर सड़क विशेष द्वारा प्राप्त किये गए अंकों में से कुल अंकों के आधार पर किया जाएगा।
- मैदानी क्षेत्रों में 150 मीटर तक लंबे पुलों का निर्माण और हिमालयी तथा पूर्वोत्तर राज्यों में 200 मीटर तक लंबे पुलों के निर्माण का प्रस्ताव है। वर्तमान प्रावधान मैदानी क्षेत्रों में 75 मीटर तथा हिमालयी एवं पूर्वोत्तर राज्यों में 100 मीटर है।
- राज्यों से PMGSY- III लॉन्च किये जाने से पहले समझौता ज्ञापन करने को कहा जाएगा, ताकि PMGSY के अंतर्गत पाँच वर्ष की निर्माण रखरखाव अवधि के बाद सड़कों के रखरखाव के लिये पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जा सके।
पृष्ठभूमि
- PMGSY दिसंबर 2000 में लॉन्च की गई थी।
- इसका उद्देश्य निर्धारित आकार (2001 की जनगणना के अनुसार, 500+मैदानी क्षेत्र तथा 250+ पूर्वोत्तर, पर्वतीय, जनजातीय और रेगिस्तानी क्षेत्र) को सभी मौसमों के अनुकूल एकल सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना था ताकि क्षेत्र का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो सके।
- सरकार द्वारा PMGSY के अंतर्गत वर्ष 2016 में चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों के लिये पृथक सड़क कनेक्टिविटी परियोजना लॉन्च की गई, ताकि सुरक्षा और संचार व्यवस्था की दृष्टि से गंभीर 44 जिलों में आवश्यक पुलियों तथा आड़े-तिरछे प्रतिकूल जल निकासी ढाँचे के साथ सभी मौसमों के अनुकूल रोड कनेक्टिविटी प्रदान की जा सके।
स्रोत: PIB
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
लोक सभा ने एक बार फिर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 (Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019) पारित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
1. इस विधेयक में तीन तलाक को गैर-ज़मानती अपराध घोषित करते हुए पुरुषों के लिये तीन साल की जेल का प्रावधान किया गया है।
2. यह कानून महिला सशक्तीकरण से संबंधित है।
3. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान और मलेशिया सहित दुनिया के 20 मुस्लिम देशों ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और ज़मानत देने का अधिकार होगा।
- मुकदमे से पहले पीड़िता का पक्ष सुनकर मजिस्ट्रेट आरोपी को ज़मानत दे सकता है।
- पीड़िता, उसके रक्त संबंधी और विवाह के बाद बने उसके संबंधी ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं।
- पति-पत्नी के बीच यदि किसी प्रकार का आपसी समझौता होता है तो पीड़िता अपने पति के खिलाफ दायर किया गया मामला वापस ले सकती है।
- मजिस्ट्रेट को पति-पत्नी के बीच समझौता कराकर विवाह बरकरार रखने का अधिकार होगा।
- तीन तलाक की पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट द्वारा तय किये गए मुआवज़े की भी हकदार होगी।
- इस विधेयक की धारा 3 के अनुसार, लिखित या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक विधि से एक साथ तीन तलाक कहना अवैध तथा गैर-कानूनी होगा।
पृष्ठभूमि
- भारत के मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा पति को एक बार में एक साथ तीन बार तलाक बोलकर पत्नी से निकाह खत्म करने का अधिकार देती है।
- तीन तलाक पीड़ित पाँच महिलाओं ने 2016 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी।
- तीन तलाक की सुनवाई के लिये 5 सदस्यीय विशेष बेंच का गठन किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर तीन तलाक का विरोध किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2017 में फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक और कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। 5 जजों की पीठ ने 2 के मुकाबले 3 मतों से यह फैसला दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन बताया, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है।
- शीर्ष अदालत ने सरकार से इस संबंध में कानून बनाने के लिये कहा। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद केंद्र सरकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक लाई थी।
- यह विधेयक दिसंबर 2017 में लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया।
- इसके बाद सितंबर 2018 में सरकार ने तीन तलाक को प्रतिबंधित करने के लिये अध्यादेश जारी किया।
- इस अध्यादेश में तीन तलाक को अपराध घोषित करते हुए पति को तीन साल तक की जेल और जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया।
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स्रोत: द हिंदू
गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
लोकसभा ने गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 [Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019] पारित किया है।
प्रमुख बिंदु
- विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य आतंकी अपराधों की त्वरित जाँच और अभियोजन की सुविधा प्रदान करना तथा आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान करना है।
- इस विधेयक का किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दुरुपयोग नहीं किया जाएगा, लेकिन शहरी माओवादियों सहित भारत की सुरक्षा एवं संप्रभुता के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न लोगों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
- यह संशोधन उचित प्रक्रिया तथा पर्याप्त सबूत के आधार पर ही किसी को आतंकवादी ठहराने की अनुमति देता है। गिरफ्तारी या ज़मानत प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
- यह संशोधन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को ऐसी संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार देता है जो उसके द्वारा की जा रही जाँच में आतंकवाद से होने वाली आय से बनी हो।
- इस संशोधन में परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन हेतु अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (2005) को सेकेंड शिड्यूल में शामिल किया गया है।
संशोधन की आवश्यकता
- वर्तमान में किसी भी कानून में किसी को व्यक्तिगत आतंकवादी कहने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिये जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते हैं।
- जब कोई व्यक्ति आतंकी कार्य करता है या आतंकी गतिविधियों में भाग लेता है तो वह आतंकवाद को पोषित करता है। वह आतंकवाद को बल देने के लिये धन मुहैया कराता है अथवा आतंकवाद के सिद्धांत को युवाओं के मन में स्थापित करने का काम करता है। ऐसे दोषी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना आवश्यक है।
संशोधन के क्रियान्वयन में बाधाएँ
- वर्तमान में UAPA की धारा 43 के अध्याय IV और अध्याय VI के अनुसार DSP या समकक्ष पद से नीचे के अधिकारी इस कानून के तहत अपराधों की जाँच नहीं कर सकते हैं। NIA में पर्याप्त DSP की तैनाती नहीं है और इसके पास आने वाले मामलों की संख्या बराबर बढ़ती जा रही है।
- वर्तमान में NIA में 57 स्वीकृत पदों के मुकाबले 29 DSP और 106 स्वीकृत पदों के मुकाबले 90 निरीक्षक हैं।
- NIA के निरीक्षक आतंकी अपराधों की जाँच करने में पर्याप्त दक्ष हो चुके हैं और उपरोक्त संशोधन UAPA के अध्याय IV और अध्याय VI के तहत दंडनीय अपराधों की जाँच के लिये उन्हें और सक्षम बनाने के लिये किये जा रहे हैं।
स्रोत: PIB
पवन ऊर्जा परियोजनाओं हेतु निविदा संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये निविदा संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन किये हैं।
क्या है पवन उर्जा?
- गतिमान वायु से उत्पन्न की गई ऊर्जा को पवन उर्जा कहते हैं।
- पवन उर्जा के उत्पादन के लिये हवादार स्थानों पर पवन चक्कियों की स्थापना की जाती है। इन चक्कियों द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
- इस यांत्रिक उर्जा को जनित्र (Dynamo) की मदद से विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- इसका उपयोग पहली बार स्कॉटलैंड में 1887 में किया गया था।
पूर्व के नियम
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017 में विद्युत अधिनियम (Electricity Act) 2003 की धारा 63 के तहत पवन ऊर्जा की खरीद के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।
- इन दिशा-निर्देशों के तहत पवन ऊर्जा की खरीद हेतु लगने वाली बोली की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की रूपरेखा तैयार करने की बात कही गई थी। साथ ही इसमें प्रक्रिया के मानकीकरण, भूमिका निर्धारण तथा विभिन्न हितधारकों की ज़िम्मेदारियों जैसे पहलुओं को भी शामिल किया गया था।
- इन दिशा-निर्देशों को ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजना से पवन ऊर्जा खरीदने हेतु लगने वाली ऐसी बोलियों पर लागू करने की बात भी कही गई थी।
नवीनतम संशोधन
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण की समय-सीमा सात महीने से बढ़ाकर निर्धारित कमीशनिंग तिथि, यानी 18 महीने तक कर दी गई है। यह उन राज्यों में पवन ऊर्जा परियोजना डेवलपर्स को मदद करेगा, जहाँ भूमि अधिग्रहण में अधिक समय लगता है।
- पवन ऊर्जा परियोजना की घोषित क्षमता उपयोग घटक (Capacity Utilisation Factor-CUF) के संशोधन की समीक्षा के लिये अवधि को बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है।
- घोषित CUF को अब वाणिज्यिक संचालन की तारीख के तीन साल के भीतर एक बार संशोधित करने की अनुमति है, जिसे पहले केवल एक वर्ष के भीतर अनुमति दी गई थी।
- न्यूनतम CUF के अनुरूप ऊर्जा में कमी पर जुर्माना, अब PPA शुल्क का 50 प्रतिशत तय किया गया है, जो कि पावर जेनरेटर द्वारा खरीदकर्ता को भुगतान की जाने वाली ऊर्जा शर्तों में कमी के लिये PPA शुल्क है।
- इसके अलावा, मध्यस्थ खरीदकर्ता द्वारा मध्यस्थ के घाटे को घटाने के बाद अंतिम खरीदकर्ता के लिये जुर्माना निर्धारित किया जाएगा।
- प्रारंभिक भाग के कमीशनिंग के मामलों में, खरीदकर्ता पूर्ण PPA शुल्क पर बिजली उत्पादन की खरीद कर सकता है।
- पवन ऊर्जा परियोजना की कमीशनिंग कार्यक्रम को PPA या PSA के कार्यान्वयन की तारीख (जो भी बाद में है) से 18 महीने की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- दंड प्रावधानों में शर्तों को हटा दिया गया है और दंड की दर तय कर दी गई है। PPA या PSA पर हस्ताक्षर करने की तारीख से, परियोजना के कार्यान्वयन की समय सीमा शुरू करने तक, जो भी बाद में हो, पवन ऊर्जा डेवलपर्स के जोखिम को कम कर दिया गया है।
उद्देश्य
- संशोधन का उद्देश्य न केवल भूमि अधिग्रहण और CUF से संबंधित निवेश जोखिमों को कम करना है, बल्कि परियोजना की जल्द शुरूआत के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना भी है।
यह निर्णय महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- सरकार का यह निर्णय विकास का महत्व इसलिए है चूँकि सरकार ने 2022 तक 175 गीगावॉट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसमें 100 गीगावॉट सौर तथा 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा शामिल है। अतः इस लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में सरकार का यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है।
- 8 दिसंबर, 2017 को ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजनाओं (Grid Connected Wind Power Projects) से बिजली की खरीद के लिये शुल्क आधारित प्रतिस्पर्द्धी निविदा (Competitive Bidding) प्रक्रिया दिशा-निर्देश अधिसूचित किये गए थे।
- निविदा के अनुभव के आधार पर और हितधारकों के साथ परामर्श के बाद, पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये इन मानक निविदा-प्रक्रिया के दिशा-निर्देशों में संशोधन किये गए।
भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति
- भारत में पवन ऊर्जा उद्योग की स्थापना 1980 के दशक के अंत में हुई थी। स्थापना के कई वर्षों तक यह केवल तमिलनाडु राज्य में कार्यरत रही। परंतु, पिछले एक दशक से यह देश के तकरीबन आठ अन्य राज्यों में भी प्रसारित हो गई है।
- वर्तमान में पवन ऊर्जा क्षेत्र के कुल आठ राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के साथ-साथ राजस्थान जैस पश्चिमी राज्य भी शामिल है।
- इस क्षेत्र में बढ़ती आशावादिता की मुख्य वज़ह यह है कि केंद्र सरकार पवन ऊर्जा उत्पादकों से विद्युत की खरीद करके इसे अन्य विद्युत आपूर्तिकर्ता कंपनियों को बेचना चाहती है, ताकि देश के ऐसे गरीब क्षेत्रों तक भी विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके जिन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये महँगे संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- वस्तुतः देश के प्रत्येक कोने को प्रकाशमयी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार इस दिशा में एक वास्तविक व्यापारी की भूमिका का निर्वाह कर रही है।
- गौरतलब है कि पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 32,280 मेगावाट की क्षमता के साथ भारत का चीन, अमेरिका तथा जर्मनी के बाद विश्व में चौथा स्थान है।
- इतना ही नहीं वरन् वर्ष 2022 तक भारत की पवन ऊर्जा क्षमता को वर्तमान के स्तर से बढ़ाकर 60 गीगावाट तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- ध्यातव्य है कि भारत की संपूर्ण ऊर्जा क्षमता में 3.2 लाख मेगावाट ऊर्जा के साथ पवन ऊर्जा का योगदान तकरीबन 10 फीसदी का है।
इन दिशा-निर्देशों के अनुपालन से न केवल पवन ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे ऊर्जा के स्रोतों में भी वृद्धि होगी। इससे वे राज्य जहाँ तेज हवाएँ चलती हैं स्वयं पवन ऊर्जा खरीद के लिये बोली में भाग लेने की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त पवन ऊर्जा परियोजनाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये एक ऐसे विस्तृत दस्तावेज की जरूरत है, जिसमें हितधारकों यानी OEM, स्वतंत्र बिजली उत्पादकों, पवन कृषि डेवलपरों, वित्तीय संस्थानों आदि द्वारा सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन के लिये पवन टरबाइन द्वारा संकलित संपूर्ण तकनीकी आवश्यकताओं का प्रावधान हो।
स्रोत: pib
अमेरिका का EB-5 वीज़ा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने अपने EB-5 वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी की है। यह शुल्क वृद्धि लक्षित रोज़गार क्षेत्र (Targeted Employment Areas-TEA) में न्यूनतम निवेश राशि में 80% की वृद्धि के कारण हुई।
प्रमुख बिंदु:
- अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (US Citizenship and Immigration Services-USCIS) की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार अमेरिका में लक्षित रोज़गार क्षेत्र में निवेश राशि को पाँच लाख डॉलर (3.5 करोड़ रुपए) से बढ़ाकर 9 लाख डॉलर (6.2 करोड़ रुपए) कर दिया गया है।
- मानक निवेश (शहरी क्षेत्रों के लिये) में यह वृद्धि 1,00,000 डॉलर (6.8 करोड़ रुपए) से बढ़कर 1,800,000 डॉलर (12 करोड़ रुपए से अधिक) हो गई है।
- वर्ष 1990 में इस वीज़ा कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी।
- यह शुल्क वृद्धि इसी वर्ष 21 नवंबर से लागू होगी।
- EB-5 वीज़ा कार्यक्रम आप्रवासियों को ग्रीन कार्ड धारक बनाने व अमेरिका की स्थायी नागरिकता प्राप्त करने का तीव्र वैधानिक माध्यम है।
EB-5 के माध्यम से प्राप्त निवेश की निगरानी और विनियमन अमेरिका के आव्रजन सेवा और प्रतिभूति विनिमय आयोग (U.S. Immigration Services and Securities Exchange Commission) द्वारा किया जाता है।
भारत पर इसका प्रभाव:
- H1-B वीज़ा नियमो को कठोर किये जाने के बाद् EB-5 वीज़ा शुल्क में हुई वृद्धि का परिणाम अमेरिका के लिये किये जाने वाले वीज़ा आवेदनों में कमी के रूप में देखने को मिलेगा। प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों द्वारा अमेरिकी वीज़ा के लिये आवेदन किया जाता है। इससे भारतीयों के लिये अमेरिका में उच्च शिक्षा व रोज़गार के अवसरों में भी कमी आएगी।
Targeted Employment Areas-TEA क्या है ?
TEA अमेरिका का वह क्षेत्र है जहाँ EB-5 वीज़ा आवेदनकर्त्ता को एक निश्चित धनराशि का निवेश करना होता है। TEA क्षेत्र की औसत बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर का कम-से-कम 150% होनी चाहिये।
स्रोत : द हिंदू
भारत के डिजिटल व्यापार में वृद्धि की संभावना
चर्चा में क्यों?
अखिल भारतीय प्रबंधन संघ (All India Management Association-AIMA) और हिनरिच फाउंडेशन (Hinrich Foundation) द्वारा किये गए शोध के अनुसार, यदि सीमा पार से डेटा का प्रवाह और भंडारण पूरी तरह से सुगम हो जाए तो वर्ष 2030 तक भारतीय डिजिटल व्यापार का आर्थिक मूल्य 512 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- ज्ञातव्य है कि वर्तमान में भारत के डिजिटल व्यापार का आर्थिक मूल्य 35 बिलियन डॉलर है। अर्थात् यदि शोध की माने तो भारतीय डिजिटल व्यापार के आर्थिक मूल्य में कुल 14 गुना वृद्धि होगी।
- शोध के संदर्भ में जारी की गई रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि भारत भविष्य में डिजिटल व्यापार से अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहता है तो उसे इसकी बाधाओं को कम करने पर विचार करना चाहिये।
- भारत को डिजिटल उद्यमों पर अनुचित और अत्यधिक नौकरशाही नियमों को थोपने, सीमा पर डेटा प्रवाह को प्रतिबंधित करने और असंतुलित कॉपीराइट तथा इंटरमीडिएट लायबिलिटी (Intermediate Liability) विनियम प्रदान करने जैसे मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को हल करने के लिये भारत को मज़बूत नियामक ढाँचे या तंत्र की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट में चेताया गया है कि विश्व के कई देश डिजिटल व्यापार को अपना रहे हैं जिसके कारण भारत के डिजिटल व्यापार अवसर कम हो सकते हैं।
- गौरतलब है कि भारतीय का डिजिटल निर्यात क्षेत्र का वर्तमान मूल्य 58 बिलियन डॉलर है और यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र है।
डिजिटल निर्यात का अभिप्राय वर्चुअल वस्तुओं (जैसे एप्लीकेशन और डिजिटल कंटेंट आदि) और डिजिटल माध्यम (जैसे ई-कॉमर्स) से भौतिक वस्तुओं के निर्यात से है।
डिजिटल व्यापार से संबंधित चुनौतियाँ
- नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करना और उन्हें अनुचित सामग्री से सुरक्षा प्रदान करना।
- डेटा तक तीव्र पहुँच को सक्षम बनाना।
- घरेलू डिजिटल फर्मों के विकास को बढ़ावा देना।
- स्थानीय कर तंत्र को मज़बूत करना :
- नीति निर्माताओं के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि डिजिटल व्यापार कर की चोरी को बढ़ावा देता है और अपने लाभ को किसी कम कर न्यायिक क्षेत्र (Low Tax Jurisdictions) में स्थानांतरित करने में सक्षम बनाता है।
अखिल भारतीय प्रबंधन संघ
(All India Management Association-AIMA)
- AIMA दिल्ली का एक प्रसिद्ध विश्विद्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 1957 में की गई थी।
- पिछले छह दशकों से भी अधिक समय में AIMA ने देश में प्रबंधन क्षमता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- AIMA पूरे भारत में 600 बिज़नेस स्कूलों द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रबंधन एप्टीट्यूड टेस्ट (Management Aptitude Test-MAT) आयोजित करता है।
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
ब्लॉकचेन तकनीक के लाभ
चर्चा में क्यों?
ब्लॉकचेन तकनीक प्राय: क्रिप्टोकरेंसी के संदर्भ में समाचारों में बनी रहती है। वर्तमान में अनेक कंपनियाँ ब्लॉकचेन तकनीक के प्रयोग की संभावनाएँ तलाश कर रही हैं।
क्या है ब्लॉकचेन तकनीक?
- ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार हज़ारों-लाखों कंप्यूटरों को आपस में जोड़कर इंटरनेट का अविष्कार हुआ, ठीक उसी प्रकार डेटा ब्लॉकों (आँकड़ों) की लंबी श्रृंखला को जोड़कर उसे ब्लॉकचेन नाम दिया गया है।
- ब्लॉकचेन तकनीक में तीन अलग-अलग तकनीकों का समायोजन है, जिसमें इंटरनेट, पर्सनल 'की' (निजी कुंजी) की क्रिप्टोग्राफी अर्थात् जानकारी को गुप्त रखना और प्रोटोकॉल पर नियंत्रण रखना शामिल है।
- ब्लॉकचेन एक ऐसी तकनीक है जिससे बिटकॉइन तथा अन्य क्रिप्टो-करेंसियों का संचालन होता है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक डिजिटल ‘सार्वजनिक बही-खाता’ (Public Ledger) है, जिसमें प्रत्येक लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज़ किया जाता है।
- ब्लॉकचेन में एक बार किसी भी लेन-देन को दर्ज करने पर इसे न तो वहाँ से हटाया जा सकता है और न ही इसमें संशोधन किया जा सकता है।
- ब्लॉकचेन के कारण लेन-देन के लिये एक विश्वसनीय तीसरी पार्टी जैसे-बैंक की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- इसके अंतर्गत नेटवर्क से जुड़े उपकरणों (मुख्यतः कंप्यूटर की श्रृंखलाओं, जिन्हें नोड्स कहा जाता है) के द्वारा सत्यापित होने के बाद प्रत्येक लेन-देन के विवरण को बही-खाते में रिकॉर्ड किया जाता है।
कैसे कार्य करती है ब्लॉकचेन तकनीक?
- ब्लॉकचेन में प्रत्येक ब्लॉक लेन-देन का विवरण रखता है और ब्लॉक की यह श्रृंखला उत्तरोतर लंबी होती जाती है।
- मुद्रा के संदर्भ में यह तकनीक लेन-देन के स्थान, समय और मूल्य को संग्रहीत कर लेती है जिसमे किसी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं होता।
- इसमें पहचान योग्य सूचनाएं न्यूनतम (Minimal Identifying Information) होती हैं और प्रत्येक ब्लॉक प्रयोगकर्त्ता के विशिष्ट डिजिटल हस्ताक्षर ( Unique Digital Signature ) से लिंक होता है।
- प्रत्येक ब्लॉक को एक विशिष्ट कोड के माध्यम से दूसरे से अलग किया जाता है और यह कोड संख्याओं की एक श्रृंखला होती है।
- ब्लॉकचेन तकनीक में लेनदेन के सत्यापन का कार्य एक ही नेटवर्क से जुड़े बहुत सारे कंप्यूटरों को दिया जाता है जिसमे प्रत्येक कंप्यूटर के पास किसी ब्लॉक की समान कॉपी होती है। ये कंप्यूटर गणितिये सूत्रों को हल कर लेनदेन की प्रमाणिकता की जाँच करतें हैं। इससे ब्लॉकचेन आधारित लेन-देन की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
ब्लॉकचेन तकनीक के उपयोग
- वर्ष 2017 में हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू ( Harvard Business Review-HBR) की रिपोर्ट के अनुसार बैंक ऑफ़ अमेरिका, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज जैसे संस्थान व्यापार वित्त, विदेशी मुद्रा विनियमन, सीमापारीय भुगतान और प्रतिभूति भुगतान में पेपर व मानव आधारित लेन-देन को प्रतिस्थापित करने हेतु ब्लॉक तकनीक का परीक्षण कर रहे हैं।
- Ethereum जैसे एप डाटा के विकेंद्रीकरण के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। यह एप उपयोगकर्त्ता को उसके डेटा पर नियंत्रण का अधिकार प्रदान करता है।
- तकनीक आधारित कंपनियां ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग कर रही है। हाल ही में फेसबुक ने अपनी क्रिप्टोकरेंसी लिब्रा जारी करने की घोषणा की।
स्रोत: द हिंदू
पॉक्सो मामलों के लिये विशेष अदालतें बनाई जाएं
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने 100 से अधिक लंबित POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम-Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) मामलों वाले ज़िलों में विशेष अदालतें स्थापित करने का आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने 60 दिनों के भीतर अदालतों को स्थापित करने का निर्देश दिया।
- अदालतें केंद्रीय योजना के तहत स्थापित होंगी और पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्त पोषित होंगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश बाल शोषण के मामलों में वृद्धि और अदालतों में लंबित मामलों को लेकर दायर जनहित याचिका पर दिया है।
- न्यायलय ने इंगित किया कि POCSO मामलों की जाँच और अभियोजन हेतु पूरी तरह से अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम
(Protection of Children from Sexual Offences Act- POCSO), 2012
- POCSO यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) का संक्षिप्त नाम है।
- POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
- यह अधिनियम ‘बच्चे’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है तथा बच्चे का शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज़्यादा महत्त्व देते हुए बच्चे के श्रेष्ठ हितों तथा कल्याण की बात करता है।
- इस अधिनियम की एक विशेषता यह है कि इसमें लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
2000 वर्षों में सबसे गर्म रहा 20वीं सदी का अंत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्विट्जरलैंड स्थित बर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक शोध में पाया गया है कि पिछले 2000 वर्षों में 20 सदी के अंत का समय ऐसा समय था जब विश्व के तापमान में सबसे तेज़ वृद्धि होनी शुरू हुई।
प्रमुख बिंदु :
- इस शोध के निष्कर्ष तक पहुँचाने के लिये शोधकर्त्ताओं ने पिछले 2000 वर्षों के वैश्विक तापमान के विशाल डेटाबेस का अध्ययन किया।
- अध्ययन के अनुसार, आधुनिक युग में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सार्वभौमिक है, जबकि इसके विपरीत इतिहास की जलवायु परिवर्तन घटनाएँ जैसे- हिमयुग और मध्यकालीन ग्रीष्म काल आदि वैश्विक अथवा सार्वभौमिक न होकर क्षेत्रीय थीं।
- उदाहरण के लिये प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में हिमयुग 15वीं शताब्दी में आया जबकि यूरोप में यह युग 17वीं शताब्दी में आया।
- दुनिया ने कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के सुरक्षित स्तर को 33 वर्ष पहले ही पार कर लिया था और वर्तमान में यह 412 PPM है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency) के अनुसार, 2018 में वैश्विक ऊर्जा खपत में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जिसके कारण CO2 उत्सर्जन में 1.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
- यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जून 2019 पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म जून महीना रिकॉर्ड किया गया था और जुलाई 2019 भी इतिहास में सबसे गर्म महीना बनने की राह पर है।
निष्कर्ष:
हरित गृह गैसों का उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन वैश्विक विकास में सबसे बड़ी बाधा हैं, यदि इन गैसों का उत्सर्जन इसी तरह लगातार बढ़ता रहा तो दुनिया जलवायु परिवर्तन के नए रिकॉर्ड बनती रहेगी और इनका समाधान करना बेहद आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू, डाउन टू अर्थ
एड्स की वर्तमान वैश्विक स्थिति
चर्चा में क्यों?
UNAIDS में नए कार्यकारी निदेशक की नियुक्ति की संभावना है, मई 2019 में मिशेल सिडिबे (Michel Sidibe) के जाने के बाद से इस पद पर अभी नियुक्ति नही हुई है।
संयुक्त राष्ट्र का एड्स पर कार्यक्रम
United Nations Programme on HIV and AIDS-UNAIDS:
- संयुक्त राष्ट्र का एड्स पर कार्यक्रम UNAIDS वैश्विक स्तर पर कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- UNAIDS वर्ष 1994 में अपनी स्थापना के बाद से एड्स के विरुद्ध विश्व जनमत को सफलतापूर्वक जुटाने में सक्षम रहा है। एड्स का प्रभावी उपचार न होने से अभी तक 20 मिलियन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
- एड्स उन्मूलन के प्रयासों में वर्ष 2001 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र का राजनीतिक प्रस्ताव बेहद महत्त्वपूर्ण था।
- एड्स, तपेदिक और मलेरिया से लड़ने के लिये वैश्विक कोष (Global Fund to Fight AIDS, Tuberculosis and Malaria- GFATM) की स्थापना और सस्ती भारतीय औषधियों ने कई देशों में उपचार को आसान बना दिया।
एड्स की वर्तमान स्थिति:
- वर्तमान में जब वैश्विक स्तर पर UNAIDS को एड्स के उन्मूलन के लिये प्रतिबद्धता दिखाने की ज़रूरत है तो इसी समय इसकी सक्रियता में कमी आई है।
- पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्र इस समय एड्स की समाप्ति से संबंधित लक्ष्यों से काफी दूर हैं, वही रूस में ड्रग्स का इस्तेमाल होने से स्थिति ठीक नहीं है।
- अभी तक एड्स का इलाज एंटी रेट्रोवायरल (Anti Retroviral-ARV) थेरेपी के माध्यम से ही किया जा रहा है, लेकिन एड्स से ज़्यादातर निर्धन लोग ही प्रभावित होते हैं, जिनके लिये इस प्रकार के इलाज आसानी से सुलभ नही हो पाते हैं।
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy):
- यह दैनिक रूप से ली जाने वाली दवाओं का एक संयोजन है जो वायरस के प्रसार को रोकते हैं।
- इस थेरेपी से CD-4 कोशिकाओं की रक्षा करने में मदद मिलती है जिससे रोग से लड़ने की प्रतिरक्षा क्षमता मज़बूत होती है।
- यह एचआईवी के संचरण के जोखिम को कम करने के अलावा, एड्स संक्रमण (एचआईवी के कारण संक्रमण की स्थिति) को बढ़ने से रोकने में भी मदद करता है।
- HIV का प्रसार मुख्यतः असुरक्षित यौन संबंधों और नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने से होता है। राष्ट्रीय कार्यक्रमों में कंडोम का इस्तेमाल, यौन शिक्षा और नशीली दवाओं की रोकथाम संबंधी कार्यक्रमों का अभाव है।
- एड्स की रोकथाम के लिये काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों और समुदाय-आधारित संगठनों के पास धन की कमी है।
- राष्ट्रीय स्तर पर UNAIDS की कमान ऐसे लोगों के हाथों में है, जो पर्याप्त दक्ष नहीं हैं, जिसके कारण एड्स उन्मूलन के लिये रचनात्मक कदम उठाने में कठिनाई हो रही है।
- एड्स को लेकर सक्रियता के स्तर पर अफ्रीका के कई देशों ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
नए कार्यकारी निदेशक के पास संगठन की विश्वसनीयता और प्रासंगिकता को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी होगी। प्रत्येक वर्ष होने वाले 1.7 मिलियन नए संक्रमण और एक मिलियन मौतों के साथ वर्ष 2030 तक एड्स को समाप्त करने के महत्त्वाकांक्षीे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध एवं दक्ष नेतृत्व की आवश्यकता होगी।
स्रोत: द हिंदू
मॉरीशस लीक
चर्चा में क्यों?
स्विस लीक्स, पनामा पेपर्स लीक्स और पैराडाइज़ पेपर्स के बाद मॉरीशस में 200,000 से अधिक ईमेल, अनुबंधों (Contracts) और बैंक दस्तावेज़ों के लीक होने से यह पता चला है कि विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर्स ने मॉरीशस में निवेश करके भारी मात्रा में कर-चोरी की है।
प्रमुख बिंदु
- इसके अंतर्गत कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने अपनी सहयोगी बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को कैपिटल गेन टैक्स के अंतर्गत इसकी सुविधा पहुँचाई, जिससे भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बुरी तरह प्रभावित हुआ है|
- 18 देशों कि संयुक्त इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (International Consortium of Investigative Journalists) द्वारा एक ऑफशोर स्पेशलिस्ट फर्म Conkers Dill & Pearman द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों का विश्लेषण किया।
Conkers Dill & Pearman क्या है?
- वर्ष 1998 में बरमूडा-निवासी वित्तीय विश्लेषक रोज़र क्रॉम्बी ने अपनी पुस्तक में कंपनी के कॉर्पोरेट और वाणिज्यिक कानून पर ज़ोर देते हुए फुल सर्विस लॉ फर्म के रूप में वर्णित किया तथा कंपनियों एवं व्यक्तियों को संपत्तियों के प्रबंधन के बारे में विश्वसनीयता पूर्वक प्रबंधन की पेशकश की।
- इस फर्म के तीन संस्थापक- जेम्स रेजिनाल्ड कॉनयेर्स (James Reginald Conyers), निकोलस बेयर्ड डिल (Nicholas Bayard Dill) और जेम्स यूजीन पियरमैन (James Eugene Pearman) बरमूडा में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और सार्वजनिक पदों पर कार्यरत थे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (26 July)
- केंद्र सरकार ने छोटे व्यापारियों-दुकानदारों की पेंशन योजना (प्रधानमंत्री लघु व्यापारी मान-धन योजना) के लिये नियम-शर्तों को अधिसूचित कर दिया है। इसके मुताबिक डेढ़ करोड़ रुपए तक सालाना कारोबार वाले इस योजना के तहत पेंशन के पात्र होंगे। 18 से 40 वर्ष का कोई भी कारोबारी इस योजना का लाभ उठा सकेगा और उसे हर माह के मामूली योगदान के बदले 60 वर्ष की उम्र से करीब तीन हजार रुपए पेंशन मिलेगी। लगभग तीन करोड़ खुदरा व्यापारी, कारोबारी या अपने किसी उद्यम में लगे लोग इस योजना का लाभ उठा सकेंगे। गौरतलब है नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में इस योजना को मंज़ूरी दी गई थी और बजट में भी इसके लिये 750 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। लघु व्यापारी के दायरे में दुकानदारों, खुदरा कारोबारियों, मिल के मालिक और कर्मचारी, कमीशन एजेंट, रियल एस्टेट ब्रोकर, छोटे होटल-रेस्तरां के मालिक और कर्मचारी शामिल हैं। इस योजना के संचालन के लिये सरकार एक पेंशन फंड बनाएगी और जीवन बीमा निगम (LIC) को इसके लिये पेंशन फंड मैनेजर चुना गया है। पेंशन संबंधी सभी रिकॉर्ड रखने के साथ इसके भुगतान की जिम्मेदारी भी LIC की होगी। इस योजना के तहत जितना अंशदान व्यापारियों का होगा, उतना ही सरकार अपनी ओर से देगी। इस योजना को 22 जुलाई 2019 से प्रभावी माना गया है।
- थेरेसा मे के इस्तीफे के बाद ब्रिटेन में बने नए मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने तीन भारतवंशियों को भी शामिल किया है। गुजराती मूल की प्रीति पटेल को गृह मंत्री बनाया गया है, वे ब्रेक्ज़िट के मुद्दे को लेकर थेरेसा मे की नीतियों की मुखर आलोचक थीं। नवंबर 2017 में थेरेसा मे ने प्रीति पटेल को अंतर्राष्ट्रीय विकास मामलों के मंत्री पद से हटा दिया था। प्रीति पटेल वर्ष 2010 में पहली बार एसेक्स के विथेम से कंज़रवेटिव सांसद बनी थीं। इससे पहले ब्रिटेन के गृह मंत्री पाकिस्तानी मूल के साजिद जाविद थे, जिन्हें अब वित्त मंत्री बनाया गया है। इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनाक को ट्रेज़री मिनिस्टर और आलोक शर्मा को अंतर्राष्ट्रीय विकास मामलों का विदेश मंत्री बनाया गया है। बोरिस जॉनसन ने उन सभी लोगों को पदोन्नत किया है, जिन्होंने ब्रेक्ज़िट मुद्दे पर उनका साथ दिया था। बोरिस जॉनसन को कट्टर ब्रेक्ज़िट समर्थक माना जाता है।
- हाल ही में गुजरात में चांदीपुरा वायरस को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। चांदीपुरा वायरस एक ऐसा खतरनाक वायरस है, जो 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को ही अपनी चपेट में लेता है। इस वायरस का नाम महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव के नाम पर रखा गया है, जहाँ पहली बार वर्ष 1965 में यह सैंडफ्लाई के कारण फैला। सैंडफ्लाई मक्खियों की एक ऐसी प्रजाति है जो कि रेत और कीचड़ में पाई जाती है और बारिश में इसका प्रकोप बढ़ जाता है। यह वायरस रोगी के न्यूरॉन्स यानी तंत्रिकाओं पर हमला करता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है, जिसके कारण दिमाग में सूजन आ जाती है। अभी तक इस वायरस से बचाव का कोई विशेष उपचार सामने नहीं आया है, लेकिन इसके लक्षण इंसेफ्लाइटिस यानी दिमागी बुखार से मिलते-जुलते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वर्ष 2019 और 2020 के लिये भारत के विकास दर अनुमान में 0.3 फीसदी की कमी कर दी है। IMF के नवीनतम अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत की वृद्धि दर 7 प्रतिशत और वर्ष 2020 में 7.2 प्रतिशत रहेगी। घरेलू मांग में उम्मीद से अधिक कमी की वज़ह से ऐसा किया गया है। इसके बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा और चीन से काफी आगे होगा। IMF के अनुमान में बताया गया है कि चीन में शुल्क वृद्धि के नकारात्मक प्रभाव और कमज़ोर बाहरी मांग के कारण पहले से संरचनात्मक मंदी झेल रही अर्थव्यवस्था पर दबाव और बढ़ेगा। कर्ज़ पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिये चीन को नियामकीय मज़बूती की ज़रूरत होगी। नीतिगत समर्थन की वज़ह से चीन की वृद्धि दर वर्ष 2019 में 6.2 प्रतिशत और वर्ष 2020 में 6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। IMF ने वर्ष 2019 के लिये वैश्विक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 3.2 प्रतिशत तथा वर्ष 2020 के लिये 3.5 प्रतिशत कर दिया है अर्थात् दोनों वर्षों के लिये 0.1 प्रतिशत की कटौती की गई है।
- ऑस्ट्रेलिया ने प्रशांत क्षेत्र के लिये एक अलग सैन्य इकाई बनाने का फैसला किया है। उसने यह फैसला प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये किया है। यह सर्वविदित है कि अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन प्रशांत क्षेत्र के छोटे-छोटे देशों को कर्ज़ देकर अपना प्रभुत्व जमाने में लगा है, जबकि ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखना चाहता है। ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री लिंडा रेनॉल्ड्स के अनुसार, इस नई सैन्य इकाई के गठन का उद्देश्य प्रशांत क्षेत्र में सहयोगी देशों को सैन्य प्रशिक्षण देना और मदद करना है। इससे सहयोगी देशों से संबंधों में और मज़बूती आएगी। संभावना है कि सेना की यह इकाई इसी साल काम करना शुरू कर देगी। इस क्षेत्र में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया क्वाड (Quad) समूह बनाकर सहयोग कर रहे हैं और इसका उद्देश्य भी प्रशांत क्षेत्र में चीन के दबदबे को कम करना है।