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डेली न्यूज़

  • 26 Jun, 2019
  • 48 min read
सामाजिक न्याय

नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक (State Health Index) का दूसरा संस्करण जारी किया है। इसमें केरल सर्वाधिक स्वस्थ राज्य के रूप में शीर्ष स्थान पर काबिज़ है जबकि उत्तर प्रदेश इस सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर है।

प्रमुख बिंदु

  • यह चिंता की बात है कि मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा है। हालाँकि राजस्थान जैसे कुछ राज्यों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार देखने को मिला है।
  • इस सूचकांक के अंतर्गत वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष एवं वर्ष 2017-18 की अवधि को संदर्भ वर्ष मानते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समग्र प्रदर्शन एवं वृद्धिशील सुधार का विश्लेषण किया गया।
  • इसके अनुसार, बिहार में आधार वर्ष 2015-16 और संदर्भ वर्ष 2017-18 में स्वास्थ्य स्थिति में आई गिरावट के लिये जिन कारकों को ज़िम्मेदार माना गया उनमें शामिल हैं; कुल प्रजनन दर, जन्म के समय शिशु का कम वज़न, जन्म के समय लिंगानुपात, टीबी उपचार सफलता दर, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निधि हस्तांतरण के अंतर्गत होने वाली देरी।
  • बिहार में केवल 56% माताएँ ही स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त अस्पतालों में प्रसव कराती हैं, जो राष्ट्रीय औसत के हिसाब से बहुत खराब स्थिति है। यह स्थिति अत्यंत दयनीय इसलिये भी है क्योंकि वर्ष 2015-16 की तुलना में जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चों की जन्म दर अधिक होने के कारण बिहार खतरे की स्थिति में है।
  • उत्तराखंड के स्वास्थ्य सूचकांक में आई गिरावट के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
    • नवजात मृत्यु दर
    • पाँच वर्ष से कम के बच्चों की मृत्यु दर
    • ज़िला स्तर पर प्रमुख प्रशासनिक पदों के कार्यकाल की स्थिरता
    • प्रथम रेफरल इकाइयों (First Referral Units- FRU) का सही से संचालन न हो पाना
    • और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निधि हस्तांतरण में होने वाली देरी
  • उड़ीसा के स्वास्थ्य सूचकांक में आई गिरावट के प्रमुख कारणों में अधिकतर पूर्ण टीकाकरण दर और टीबी उपचार की सफलता दर में कमी शामिल हैं जबकि मध्य प्रदेश के मामले में जन्म पंजीकरण दर और टीबी उपचार की सफलता दर में आई कमी प्रमुख बाधा रही है।
  • बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में भी तमिलनाडु तीसरे स्थान से नौवें स्थान पर, जबकि पंजाब दूसरे स्थान से पाँचवें स्थान पर आ गया है। इस बार दूसरे सर्वश्रेष्ठ राज्य का स्थान आंध्र प्रदेश को दिया गया है, जबकि महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है।

वृद्धिशील प्रदर्शन

  • वृद्धिशील प्रदर्शन के मामले में हरियाणा, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्य सराहना के पात्र रहे है।
  • जहाँ एक ओर नीति आयोग की रिपोर्ट में केरल के स्वास्थ्य परिणामों की तुलना अर्जेंटीना और ब्राज़ील से की गई है, जिसमें नवजात मृत्यु दर (Neo-Natal Mortality Rate-NMR, जो जन्म के पहले 28 दिनों में प्रति 1,000 जीवित बच्चों पर मरने वाले बच्चे की संख्या को इंगित करती है) छह से भी कम है।
  • वहीं दूसरी ओर रिपोर्ट के अनुसार, उड़ीसा में नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित बच्चों पर 32 है, जो सिएरा लियोन (Sierra Leone) के आँकड़ों के करीब है।

प्रत्येक राज्य को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये अपने बजट का कम-से-कम आठ फीसदी हिस्सा खर्च करना चाहिये, ताकि स्वास्थ्य सुविधाओं के दायरे को और अधिक विस्तार दिया जा सकें।

स्रोत: द हिंदू बिजनेस लाइन


जैव विविधता और पर्यावरण

बांदीपुर में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये संयुक्त प्रयास

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में कर्नाटक के बांदीपुर में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के वरिष्ठ वन कर्मियों की अंतर-राज्यीय बैठक में इस क्षेत्र के वन्यजीवों के संरक्षण के लिये ठोस प्रयास करने का निर्णय लिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस बैठक में वन क्षेत्रों में आक्रामक पौधों (Allian Plant) के आक्रमण, गिद्ध संरक्षण के लिये किये जा रहे प्रयासों, बाघ और हाथियों के प्रसार से क्षेत्र में मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले विभिन्न उपायों, जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।
  • बैठक में नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व में वन्यजीवों के आवास के लिये बड़ा खतरा पैदा करने वाले सेना स्पेक्ट्बिल्स (Senna Spectabilis) नामक आक्रामक पौधे (Allian Plant) के उन्मूलन के प्रयासों को तेज़ करने पर भी बल दिया गया। इस तरह के प्रयास केरल के वायनाड वन्यजीव अभ्यारण्य में भी किये गए है।
  • बैठक में इस तथ्य का भी मूल्यांकन किया गया कि केरल और तमिलनाडु नियमित रूप से अपने अधिकार क्षेत्र में गिद्ध आबादी की निगरानी कर रहे हैं लेकिन कर्नाटक को उनके संरक्षण के प्रयासों को और अधिक मज़बूत करने की आवश्यकता है। इसमें देश की शेष गिद्ध आबादी के संरक्षण के लिये अपनाई गई विभिन्न रणनीतियों पर भी चर्चा की गई।
  • NTCA द्वारा संयुक्त गश्ती प्रयासों, जानवरों के प्रसार संबंधी विभिन्न जानकारियों, जंगली आग के प्रसार और इससे निपटने के प्रयास इत्यादि सूचनाओं के आदान-प्रदान की बात की गई।

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान

  • बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान को भारत के सबसे सुंदर और बेहतर रूप से प्रबंधित राष्ट्रीय उद्यानों में से एक माना जाता है। कर्नाटक में मैसूर-ऊटी राजमार्ग पर पश्चिमी घाट के सुरम्य परिवेश के बीच, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 874.2 वर्ग किमी. का क्षेत्र शामिल है।
  • तमिलनाडु में मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, केरल में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य और कर्नाटक में , के साथ मिलकर, यह भारत के सबसे बड़े जैवमंडल रिज़र्व ‘'नीलगिरी बायोस्फीयर रिज़र्व' का भी अभिन्न भाग बनता है।

नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व

  • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व था, जिसे वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था। नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को शामिल करता है। यहाँ 50 सेमी. से 700 सेमी. तक वार्षिक वर्षा होती है।
  • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व मालाबार वर्षा वन के भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस आरक्षित क्षेत्र में मौजूद संरक्षित क्षेत्र हैं।

Nilgiri Biosphere

  • सेना स्पेक्ट्बिल्स(SENNA SPECTABILIS) नामक आक्रामक पौधा, वन क्षेत्रों के लिये एक बड़ा खतरा है। इसके त्वरित विकास और प्रसार के कारण इसकी रोकथाम में भी अत्यधिक समस्याएँ है।
  • एक वयस्क पौधा कम समय में ही 15 से 20 मीटर तक बढ़ जाता है, और हर साल कटाई के बाद लाखों की संख्या में बीज विस्तृत क्षेत्रों में फैल जाते हैं।
  • मोटी पत्तियों वाला यह पौधा घास की अन्य देशी प्रजातियों के विकास को बाधित करता है और गर्मियों के दौरान वन्यजीवों की आबादी, विशेषकर शाकाहारियों के लिये भोजन की कमी का कारण भी बनता है।

स्रोत:द हिन्दू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मंगल ग्रह पर संभावना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी से मानव शुक्राणुओं (Human Sperms) को मंगल ग्रह पर ले जाकर मानव बस्तियों की स्थापना को संभव बनाया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • मंगल ग्रह के कम गुरुत्वाकर्षण (low Gravity) वाले वातावरण में जमे हुए शुक्राणुओं के नमूनों में पृथ्वी पर पाए जाने वाले शुक्राणु के समान विशेषताएँ पाई गई।
  • अध्ययन के निष्कर्षों से पुरुष युग्मकों (Male Gametes) को अंतरिक्ष में सुरक्षित रूप से ले जाने और पृथ्वी के बाहर मानव शुक्राणु बैंक (Human Sperm Bank) बनाने की संभावनाओं में वृद्धि हुई है।
  • अंतरिक्ष मिशनों और यानों की बढ़ती संख्या का अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है और पृथ्वी के बाहर प्रजनन की संभावना पर भी विचार किया जाना चाहिए ।
  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, मंगल पर सबसे पहले कदम रखने वाला व्यक्ति, एक महिला भी हो सकती है। साथ ही इसने वर्ष 2033 तक मंगल ग्रह पर मानव कॉलोनी स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन

(National Aeronautics and Space Administration-NASA)

  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) अमेरिका की एक स्वतंत्र एजेंसी है, जो नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ-साथ एयरोनॉटिक्स और एयरोस्पेस(Aeronautics and Aerospace) के क्षेत्र में अनुसंधान के कार्य करती है।
  • इसे नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एक्ट, 1958 के तहत स्थापित किया गया था और इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में स्थित है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


शासन व्यवस्था

स्कूलों में छात्रों के बीच खेल को बढ़ावा देना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and Literacy) ने सभी स्तरों पर समावेशी, न्यायसंगत एवं गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये ‘स्कूल शिक्षा- समग्र शिक्षा’ (School Education- Samagra Shiksha) नामक एक एकीकृत योजना लागू की है।

  • उल्लेखनीय है कि इस एकीकृत योजना में सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan- SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan- RMSA) और शिक्षक शिक्षा (Teacher Education- TE) तीनों को शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • बच्चों के संपूर्ण विकास को ध्यान में रखते हुए खेल, शारीरिक गतिविधियों, योग, सह-पाठयक्रम गतिविधियों (Co-curricular activities) आदि को प्रोत्साहित करने हेतु पहली बार समग्र शिक्षा के तहत खेल एवं शारीरिक शिक्षा के घटकों को शुरू किया गया है।
  • साथ ही सरकारी स्कूलों में खेल उपकरणों के लिये अनुदान का प्रावधान किया गया है जिसके तहत प्रतिवर्ष अनुदान के रूप में प्राथमिक विद्यालयों को 5000 रुपए, उच्च प्राथमिक विद्यालयों को 10,000 रुपए तथा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों को 25,000 रुपए दिये जाएंगे।
  • वर्ष 2018-19 के बजट में 894307 सरकारी स्कूलों के लिये खेल अनुदान के तहत 506.90 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी गई।
  • मंत्रालय ने खेल अनुदान के समुचित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र/दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों में सरकारी स्कूलों के लिये यथोचित आयु के आधार पर उपकरणों की एक सांकेतिक सूची जारी की गई है। खेल संबंधी विशेष उपकरण भी स्कूलों द्वारा चुने जा सकते हैं, जो स्कूल में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता पर आधारित होते हैं, जैसे- प्लेफील्ड की उपलब्धता आदि।
  • राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को उनके पारंपरिक/क्षेत्रीय खेलों को शामिल करने की सलाह दी गई है।
  • प्रत्येक स्कूल में एक शारीरिक शिक्षा शिक्षक (Physical Education Teacher- PET) नियुक्त किया गया है, जो खेल उपकरणों की देखभाल करने और उनके स्टॉक को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 (National Curriculum Framework, 2005) के अनुसार, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा को कक्षा I से X तक एक अनिवार्य विषय बनाया गया है।
  • NCERT ने कक्षा VI, VII और VIII के लिये शिक्षक मार्गदर्शिका कक्षा IX के पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के लिये एक अनिवार्य विषय का प्रावधान किया है।
  • केंद्रीय माध्यमिक परीक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Examination- CBSE) ने 9वीं-12वीं तक की कक्षा के छात्रों के लिये स्कूलों में स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा हेतु एक सुव्यवस्थित और बेहतर ढंग से डिज़ाइन किया गया है तथा स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा (Health and Physical Education- HPE) कार्यक्रम पेश किया है।
  • स्कूलों को स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के लिये प्रतिदिन एक निश्चित समयावधि निर्धारित करने का निर्देश दिया गया है। यह कार्यक्रम CBSE के सभी संबद्ध स्कूलों में अनिवार्य किया गया है।

सर्व शिक्षा अभियान

  • इसका कार्यान्‍वयन वर्ष 2000-2001 से किया जा रहा है।
  • यह एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है।
  • इस अभियान को देश भर में राज्य सरकारों की सहभागिता से चलाया जा रहा है।
  • 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा 6-14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना आवश्यक बना दिया गया है।
  • सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्‍य सार्वभौमिक सुलभता के साथ प्रारंभिक शिक्षा में बालक-बालिका एवं सामाजिक श्रेणी के अंतर को दूर करना तथा अधिगम की गुणवत्‍ता में सुधार करना है।
  • इसके अंतर्गत विविध प्रयास किये जा रहे हैं, जैसे- नए स्‍कूल खोलना तथा वैकल्पिक स्‍कूली सुविधाएँ प्रदान करना, स्‍कूलों एवं अतिरिक्‍त क्लासरूम का निर्माण किया जाना, प्रसाधन-कक्ष एवं पेयजल सुविधा प्रदान करना, नि:शुल्‍क पाठ्य-पुस्‍तकें एवं ड्रेस वितरित करना आदि।

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान

(Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan- RMSA)

  • 15-16 वर्ष की आयु के सभी युवाओं को अच्‍छी गुणवत्‍तायुक्‍त माध्‍यमिक शिक्षा उपलब्‍ध कराने, शिक्षा तक पहुँच तथा इसे वहनीय बनाने के उद्देश्‍य से मार्च 2009 में इस योजना की शुरुआत की गई।
  • इस योजना में सभी माध्‍यमिक स्‍कूलों के लिये निर्धारित मानकों का निर्धारण करके महिला-पुरुष, सामाजिक-आर्थिक भेदभाव और नि:शक्‍तता की बाधा को हटाने पर विशेष बल दिया गया है।
  • वर्ष 2013-14 में केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे- स्‍कूलों में आई.सी.टी., बालिका छात्रावास, माध्‍यमिक स्‍तर पर नि:शक्‍तजनों के लिये समावेशी शिक्षा और व्‍यावसायिक शिक्षा का राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत समावेशन कर दिया गया।

शिक्षक शिक्षा

(Teacher Education- TE)

  • नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (Right to Education- RTE) अधिनियम, 2009 (यह 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ) के बेहतर कार्यान्वयन के लिये शिक्षकों की शिक्षा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है।
  • भारत में शिक्षक शिक्षा नीति को समय के हिसाब से निरूपित किया जाता रहा है।
  • यह कई शिक्षा समितियों/आयोगों की विभिन्‍न रिपोर्टों में निहित सिफारिशों पर आधारित है, जैसे-
    • कोठारी आयोग (1966)
    • चट्टोपाध्‍याय समिति (1985)
    • राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति (एन पी ई 1986/92)
    • आचार्य राममूर्ति समिति (1990)
    • यशपाल समिति (1993)
    • राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढॉंचा (एन सी एफ, 2005)

स्रोत- PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ऑस्ट्रेलिया सरकार का ‘ज़ीरो चांस’ अभियान

चर्चा में क्यों?

ऑस्ट्रेलियाई सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये ‘ज़ीरो चांस’ (Zero Chance) नाम से एक अभियान शुरू करने की योजना बना रही है।

मुख्य बिंदु :

  • अभियान से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक इस अभियान का एकमात्र उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि यदि कोई भी व्यक्ति ऑस्ट्रेलिया में अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास करेगा, तो उसके सफल होने की संभावना शून्य है।
  • ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा ऐसा करने वाले सभी लोगों को उसी समय ऑस्ट्रेलिया से वापस कर दिया जाएगा।
  • अभियान के तहत भारत के तमिलनाडु सहित अन्य 10 देशों के तटीय क्षेत्रों पर विज्ञापनों और अन्य माध्यमों से लोगों को जागरूक करने का कार्य जल्द-से-जल्द शुरू कर दिया जाएगा।
  • अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया है कि ऑस्ट्रेलिया की कठोर सीमा नीति (Strong Border Policies) अभी भी बरकरार है और इसमें अभी तक कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ है। ज्ञातव्य है कि कई बार अंतर्राष्ट्रीय तस्करों द्वारा लोगों को ऑस्ट्रेलिया की सीमा नीति के बारे में यह कहते हुए भ्रमित किया जाता हैं कि चुनावों के बाद ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सीमा नीति में परिवर्तन कर दिया है।
  • हाल के कुछ वर्षों में ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सीमा नीति मुख्यतः समुद्री सीमा नीति को बहुत ही कठोर कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया की सीमा नीति में जहाज़ो से आए शरणार्थियों को उसी समय वापस लौटना, अनिवार्य नज़रबंदी और पास के द्वीपों पर शरणार्थी शिविर आदि तमाम चीज़े शामिल हैं।
  • वर्ष 2013 में शुरू किये गए अभियान ‘ऑपरेशन सॉवरेन बॉर्डर्स’ (Operation Sovereign Borders) के तहत अभी तक ऑस्ट्रेलिया लगभग 35 जहाज़ों से अवैध रूप से घुसने वाले 847 लोगों को वापस भेज चुका है।
  • ज्ञातव्य है कि ऑपरेशन सॉवरेन बॉर्डर्स ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल (Australian Defence Force) द्वारा चलाया गया एक अभियान है जिसका उद्देश्य समुद्र के रास्ते आने वाले सभी अवैध शरणार्थियों को रोकना है।
  • ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जो लोग ऑस्ट्रेलिया में वैध और स्थायी प्रवेश चाहते हैं उन्हें शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम (Refugees Resettlement Programmes) के तहत आवेदन करना होगा।
  • शरणार्थियों की पहचान करने के लिये ऑस्ट्रेलिया, UNHCR के साथ मिलकर कार्य रहा है।

शरणार्थी सामान्यतः ऐसे नागरिक होते हैं जो असुरक्षा या युद्ध के भय से दूसरे देशों में प्रवास के लिये बाध्य होते हैं।

शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम (Refugees Resettlement Programmes)

  • यह कार्यक्रम वैश्विक स्तर UNHCR द्वारा चलाया जाता है।
  • इस कार्यक्रम के तहत शरण मांगने वाले लोगों को किसी सुरक्षित स्थान पर स्थायी रूप से बसाने की व्यवस्था की जाती है।
  • वर्ष 2018 में इस कार्यक्रम के तहत 55,600 से भी ज्यादा लोगों को सुरक्षित और स्थायी स्थान प्रदान किया गया है।

United Nations High Commissioner for Refugees - UNHCR

  • UNHCR की स्थापना वर्ष 1950 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान घर छोड़ने वाले लाखों लोगों की मदद करने लिये की गई थी।
  • अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के कई शरणार्थी संकटों को सुलझाने में UNHCR की भूमिका रही है।
  • यूरोप में इसके अभूतपूर्व कार्य के लिये इसे वर्ष 1954 में नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया था।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लूनर एवाक्यूसन सिस्टम

चर्चा में क्यों ?

नासा के 2024 के चंद्र मिशन की तैयारियों के मद्देनज़र, यूरोपीय अंतरिक्ष संस्थान (ESA) द्वारा लूनर एवाक्यूसन सिस्टम असेंबली (Lunar Evacuation System Assembly-LESA) को विकसित किया गया है।

LESA.

प्रमुख बिंदु:

  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा विकसित LESA एक पिरामिड जैसी संरचना है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर चोट लगने से बचाना है।
  • LESA का प्रयोग एक अंतरिक्ष यात्री द्वारा अपने गिरते हुए सहयोगी को बचाने के लिये किया जा सकता है। यह एक अंतरिक्ष यात्री को 10 मिनट से भी कम समय में एक मोबाइल स्ट्रेचर द्वारा अपने सहयोगी को उठाने के लिये सक्षम बनाता है।
  • अंतरिक्ष यात्री समुद्र के नीचे LESA का परीक्षण कर रहे हैं क्योंकि समुद्र तल की चट्टानी, रेतीली और खारे पानी की स्थिति चंद्रमा की सतह से मिलती-जुलती है।

यूरोपीय अंतरिक्ष संस्थान

( EUROPEAN SPACE AGENCY-ESA)

  • यह 22 सदस्य देशों वाला एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो यूरोप की अंतरिक्ष क्षमता के विकास को प्रदर्शित करता है। यह अपने सदस्यों के वित्तीय और बौद्धिक संसाधनों को समन्वित करता है।
  • यह यूरोपीय देशों के बाहर भी अपने कार्यक्रम और गतिविधियों को संचालित करता है।
  • ESA का मुख्यालय पेरिस में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी।
  • ESA का अंतरिक्ष पत्तन (SPACE PORT) दक्षिण अमेरिका के फ्रेंच गुयाना में स्थित है।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

राज्यों में बेरोज़गारी की असमान दर

चर्चा में क्यों?

संसद के वर्तमान मानसून सत्र में सरकार ने बेरोज़गारी से संबंधित [वर्ष 2017-2018 में किये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (The Periodic Labour Force Survey) के] आँकड़े प्रस्तुत किये हैं, जिनके अनुसार देश में नगालैंड में बेरोज़गारी दर सबसे अधिक 21.4 प्रतिशत है, वहीं मेघालय में बेरोज़गारी दर सबसे कम सिर्फ 1.5 प्रतिशत है।

मुख्य बिंदु :

  • रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक बेरोज़गारी वाले राज्य नगालैंड और सबसे कम बेरोज़गारी वाले राज्य मेघालय के बीच विचलन या अंतर बहुत अधिक है।
  • सर्वाधिक बेरोज़गारी में नगालैंड के बाद दूसरा और तीसरा स्थान क्रमशः गोवा और मणिपुर का है।
  • यदि इन आँकड़ों में केंद्र शासित प्रदेशों को भी शामिल कर दिया जाए तब भी नगालैंड इस सूची में सबसे ऊपर है, परंतु 0.6 प्रतिशत की दर के साथ दादर और नगर हवेली सबसे कम बेरोज़गारी वाला प्रदेश बन जाएगा।
  • महिला और पुरुष बेरोज़गारों की अलग-अलग सूची देखें तो इनमें भी नगालैंड और मेघालय अपने -अपने स्थान पर बरकरार हैं।
  • राज्यों से संबंधित आँकड़े निम्नलिखित हैं:
राज्य महिला बेरोज़गारी दर(%) पुरुष बेरोज़गारी दर(%)
बिहार 2.8 7.4
मध्यप्रदेश 2.1 5.3
राजस्थान 2.3 6.0
उत्तर प्रदेश 3.1 6.9

unemployment rate

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण

(The Periodic Labour Force Survey)

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की शुरुआत वर्ष 2017 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) द्वारा की गई थी।
  • इससे पूर्व सरकार रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े जानने के लिये रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण कराती थी।
  • इसका उद्देश्य रोज़गार और बेरोज़गारी के तिमाही आँकड़े प्राप्त करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

सामान्यीकृत अंतर-वनस्पति सूचकांक

चर्चा में क्यो?

हाल ही में बेंगलुरु के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह पता चला है कि सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (Normalized Difference Vegetation Index-NDVI) के माध्यम से उष्णकटिबंधीय जंगलों में हाथियों के लिये भोजन की सही मात्रा का विश्वसनीय अनुमान नहीं लग पा रहा है।

  • सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक का कार्य जंगलों में वनस्पति के घनत्व और हाथी जैसे शाकाहारी जानवरों के भोजन की सही मात्रा का अनुमान लगाना है।
  • इस सूचकांक का वनस्पति मुख्यतः घास के घनत्व के साथ नकारात्मक (या विपरीत) सह-संबंध होता है अर्थात् जब सूचकांक अधिक होता है तब न केवल घनत्व कम होता है बल्कि इसके विपरीत हो जाता है।

सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक

  • NDVI, वस्तुओं द्वारा परावर्तित प्रकाश के लाल और निकट अवरक्त घटकों (Red and Near Infrared Components) के बीच अंतर की गणना करता है।
  • चूँकि वनस्पतियाँ प्रकाश के लाल घटकों को अवशोषित करती हैं और अवरक्त घटकों को प्रवर्तित करती हैं इसीलिये इस दोनों के मध्य अंतर से स्वस्थ वनस्पति का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

NDVI

  • NDVI का उच्च मूल्य स्वस्थ वनस्पतियों को प्रदर्शित करता है वहीं NDVI का निम्न मूल्य अस्वस्थ वनस्पतियों को प्रदर्शित करता है।
  • NDVI के मूल्य का अनुमान लाल घटकों और अवरक्त घटकों का उत्पादन करने वाले उपग्रहों से प्राप्त डेटा के आधार पर किया जाता है।

महत्त्व:

  • कृषि: किसान NDVI का प्रयोग शुद्ध खेती और बायोमास की गणना करने के लिये करते है।
  • वातावरण: NDVI का उपयोग हाथियों, लाल हिरणों, मच्छरों और पक्षियों आदि सभी प्रजातियों की पारिस्थितिकी को ज्ञात करने के लिये भी किया जाता है।
  • सूखा: नासा का मानना है कि NDVI सूखे का अनुमान लगाने के लिये एक अच्छा संकेतक है, जब पानी वनस्पति विकास को रोकता है तब NDVI निम्न स्तर पर होता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सीलिएक रोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए अध्ययन के अनुसार, भारत में प्रत्येक 140 लोगों में एक व्यक्ति सीलिएक रोग से ग्रसित है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है इसे व्हीट एलर्जी (Wheat Allergy) भी कहा जाता है, जो एक क्रोनिक डिज़ीज (Chronic Disease) है एवं इसके कारण छोटी आँत में सूजन आ जाती है। यह सूजन ग्लूटेन नामक प्रोटीन के कारण होता है। आमतौर यह बीमारी किसी व्यक्ति में आनुवंशिक रूप से भी हो सकती है।
  • ग्लूटेन सामान्यतः गेहूं, राई, जौ और ट्रिटिकेल (triticale), गेहूं और राई का संकर उत्पाद) में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है।
  • ग्लूटेन प्रोटीन भोजन के आकार को बनाए रखने में मदद करता है, गोंद के रूप में कार्य करता है जो भोजन में पोषक तत्त्वों को एक साथ मिलाये रखता है।

सीलिएक रोग का शरीर पर प्रभाव

  • जब सीलिएक रोग से ग्रसित रोगी ग्लूटेन का सेवन करते हैं, तो उनके शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होती है जिससे छोटी आँत बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है, जोकि इसके स्व-प्रतिरक्षित रोग होने का संकेत भी है।
  • इस प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया से सबसे अधिक क्षति विली (Villi, ये विली, छोटी आँत की सतह पर उपस्थित ऊँगली के आकार के उभार होते है जो भोजन में से पोषक पदार्थों का अवशोषण करते है) को पहुँचती है।
  • जब विली नष्ट हो जाती हैं तो शरीर में भोजन से पोषक पदार्थों का अवशोषण नहीं हो पाता है।
  • इसके अलावा, आधुनिक गेहूं जोकि अधिक एंटीजेनिक होते है, शरीर में प्रविष्ट होने पर एंटीबॉडी के उत्पादन को उत्तेजित करते है।
  • सीलिएक रोग से ग्रसित रोगियों में कोरोनरी धमनी से संबंधित रोग का दोगुना और छोटे आँत में कैंसर के चार गुना अधिक खतरे की संभावना होती है।
  • वर्तमान में, सीलिएक रोग का एकमात्र उपचार ग्लूटेन मुक्त आहार का सेवन करना है। लोगों को ग्लूटेन मुक्त रहने हेतु गेहूं, राई, जौ, ब्रेड और बीयर जैसे खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये।
  • कई लोग जिन्हें सीलिएक रोग नहीं है, वे भी ग्लूटेन के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं, जिसे गैर-सीलिएक ग्लूटेन संवेदनशीलता (Non Celiac Gluten Sensitivity) के रूप में जाना जाता है।

Celiac Disease

ग्लूटेन मुक्त आहार से संबंधित मुद्दे

  • वे लोग जो सीलिएक रोग से ग्रसित नहीं हैं, वे भी वज़न घटाने, बेहतर पाचन जैसी बातों के मद्देनजर इस प्रकार के मोटे अनाजों को छोड़ रहे हैं।
  • गेहूं जैसे मोटे अनाज जोकि फाइबर का एक अच्छा स्रोत होने के साथ ही आँत के बेहतर तरीके से कार्य करने के लिये आवश्यक है।
  • ग्लूटेन मुक्त आहार के सेवन से हृदय रोग का खतरा भी बढ़ सकता है।

स्व-प्रतिरक्षित रोग (Autoimmune Disease)

  • हमारे शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जिसमें कुछ विशेष कोशिकाओं और अंगों का एक जटिल नेटवर्क होता है तथा जो शरीर को रोगाणु एवं अन्य बाहरी प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षी बनकर हमारे शरीर को रोगों से बचाता है।
  • स्व-प्रतिरक्षित रोग से पीड़ित शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही शरीर के ऊतकों और अंगों पर आक्रमण करती है।
  • ऑटोइम्यून बीमारी के प्रकार के आधार पर शरीर के अंग प्रभावित होते हैं। उनमें से कुछ जैसे-मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis), ल्यूकोडर्मा (Leucoderma) आदि हैं।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


जैव विविधता और पर्यावरण

सीमेंट प्रदूषण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, सीमेंट उत्पादन से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (CO2) में लगभग 7% का योगदान पाया गया है, जो दुनिया भर के सभी ट्रकों द्वारा किये गए CO2 उत्सर्जन से भी अधिक है।

  • प्रमुख बिंदु
  • इसका प्रमुख कारण सीमेंट उत्पादन में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया है।
  • एक टन सीमेंट के उत्पादन से लगभग आधा टन CO2 उत्सर्जित होता है।
  • सीमेंट उत्पादन के लिये प्रयुक्त भट्ठों को 1,400 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है।
  • भट्ठे के अंदर चूना पत्थर (Limestone) में फंसा कार्बन ऑक्सीजन से संयुक्त होकर CO2 के रूप में उत्सर्जित होता है, जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है।
  • हालाँकि CO2 के उत्सर्जन को रोकने के लिये सीमेंट निर्माताओं द्वारा इसके विकल्प तैयार किये जा रहे हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल हों तथा कम-से-कम CO2 का उत्सर्जन करें।

सीमेंट के विकल्प

  • उत्सर्जन की मात्रा को देखते हुए कई सीमेंट निर्माता अपने सीमेंट में क्लिंकर (Clinker) की मात्रा में कटौती करने पर काम कर रहे हैं, जबकि कुछ अन्य फ्लाई-ऐश (fly-ash) सहित और विकल्पों पर ध्यान दे रहे हैं।
  • हालाँकि जियो-पालीमर सीमेंट (पृथ्वी के लिये अनुकूल) के रूप में विकल्प मौजूद हैं लेकिन इसकी उच्च लागत के कारण ग्राहकों के लिये यह विकल्प आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।

ग्रीनहाउस गैस

  • ग्रीन हाउस गैसें किसी ग्रह के वातावरण एवं जलवायु में परिवर्तन करती हैं, परिणामस्वरुप उस ग्रह का तापमान बढ़ जाता है। सामान्यतः इसे वैश्विक तापन (Global Warming) का कारण माना जाता है।
  • कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओज़ोन आदि प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें हैं।

  • क्लिंकर (Clinker)- पोर्टलैंड सीमेंट के उत्पादन में चूना पत्थर और एल्युमिनो सिलिकेट सामग्री द्वारा निर्मित कंकडों का इस्तेमाल लिया जाता है जिसे क्लिंकर (Clinker) कहते हैं।
  • फ्लाई-ऐश (fly-Ash)- तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में बारीक पाउडर प्राप्त होता है जिसे फ्लाई ऐश कहते हैं।

जिओपॉलीमर सीमेंट (Geopolymer Cement)

  • जियोपॉलिमर, एक प्रकार का अकार्बनिक बहुलक है।
  • यह सीमेंट, कैल्सियम और सिलिकॉन के बजाय एल्यूमिनियम एवं सिलिकॉन से बनाया गया है।
  • प्रकृति में एल्यूमीनियम के स्रोत कार्बोनेट के रूप में नहीं पाए जाते, इसीलिये जब यह सीमेंट के रूप में उपयोग के लिये सक्रिय किया जाता है, तो CO2 का उत्सर्जन अत्यधिक कम होता है।
  • इसके लिये सबसे आसानी से उपलब्ध एल्यूमीनियम और सिलिकॉन युक्त कच्चे माल, फ्लाई ऐश और लावा (Slag) हैं।

स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (26 June)

  • नीति आयोग ने 25 जून को नई दिल्ली में स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत के दूसरे संस्करण की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में दो वर्षों की अवधि (2016-17 और 2017-18) के दौरान राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन को रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट में केरल को पहला तथा उत्तर प्रदेश को अंतिम स्थान मिला है। प्रदर्शन का आकलन करते समय स्वास्थ्य संबंधी उपलब्धियाँ, प्रशासन, प्रक्रिया और नीतिगत हस्तक्षेपों के प्रभाव के संदर्भ में स्वास्थ्य पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया है। यह रिपोर्ट विश्व बैंक की तकनीकी सहायता तथा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से तैयार की गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2017 के लिये स्वास्थ्य आधारित सारणी का पहला संस्करण फरवरी, 2018 में जारी किया गया था। इस रिपोर्ट में 2014-15 (आधार वर्ष) से 2015-16 (संदर्भ वर्ष) के दौरान राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के वार्षिक प्रदर्शन का आकलन किया गया था।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश से तपेदिक (Tuberculosis-TB) के उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना तैयार की है। मार्च 2018 में प्रधानमंत्री ने टीबी मुक्त भारत अभियान लॉन्च किया था। इसके तहत TB उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना की गतिविधियों को मिशन मोड में आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था। राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के लिये अगले तीन साल के लिये 12 हज़ार करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक मरीज़ को गुणवत्ता संपन्न रोग निदान, उपचार और अन्य सभी प्रकार की सहायता मिल सके। राष्ट्रीय रणनीतिक योजना का उद्देश्य विविध दृष्टिकोण अपनाकर TB के सभी रोगियों का पता लगाना है। भारत में सालाना 27.4 लाख अनुमानित TB के मामले सामने आते हैं, जो निरपेक्ष संख्या के मामले में सबसे अधिक हैं। विश्वभर से TB को समाप्त करने की तय समय-सीमा वर्ष 2030 रखी गई है।
  • RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले पद से इस्तीफा दे दिया है। वह मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख थे। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के वित्त विभाग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विरल आचार्य वित्तीय क्षेत्र में प्रणालीगत जोखिम के विश्लेषण और शोध के लिये जाने जाते हैं। विरल आचार्य को तीन साल के कार्यकाल के लिये 23 जनवरी 2017 को RBI में शामिल किया गया था। आपको बता दें कि इससे पहले RBI गवर्नर उर्जित पटेल ने पिछले वर्ष दिसंबर में निजी कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्‍तीफा दे दिया था। RBI में अब तीन डिप्टी गवर्नर- एन.एस. विश्वनाथन, बी.पी. कानूनगो और एम.के. जैन कार्यरत हैं। RBI की स्थापना RBI एक्ट, 1935 के तहत 1 अप्रैल, 1935 को की गई थी।
  • भारतीय तटरक्षक (Indian Coast Guards) बल का पाँचवां भर्ती केंद्र उत्तराखंड में खोलने का निर्णय लिया गया है। यह भर्ती केंद्र कॉनवाला (हरड़वाला), देहरादून में खोला जाएगा। यह भर्ती केंद्र उत्तराखंड के युवाओं के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के युवाओं के लिये उपयोगी होगा और लगभग 18 महीनों में बनकर तैयार हो जाएगा। भारतीय तटरक्षक बल के अन्य चार केंद्र नोएडा, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में काम कर रहे हैं। समुद्र में राष्‍ट्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर राष्‍ट्रीय कानूनों को लागू करने तथा जीवन और संपति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संघ के एक स्‍वतंत्र सशस्‍त्र बल के रूप में भारतीय संसद द्वारा तटरक्षक अधिनियम,1978 के तहत 18 अगस्‍त, 1978 को भारतीय तटरक्षक बल की औपचारिक शुरुआत की गई। इसका मुख्यालय दिल्ली में है तथा इसे पाँच क्षेत्रों में बाँटा गया है- पश्चिमी, पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, अंडमान व निकोबार तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र। यहाँ आपको बता दें कि 25 जून को कृष्णस्वामी नटराजन को भारतीय तटरक्षक बल का अगला महानिदेशक नियुक्त किया गया है, जो राजेंद्र सिंह की जगह लेंगे।
  • प्रकाशन विभाग ने दत्त प्रसाद जोग के मराठी गीतों के संग्रह गीत रामायण का हिंदी रूपांतरण लाने का फैसला किया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत भारत का प्रकाशन विभाग महाकाव्य रामायण की घटनाओं का क्रमवार वर्णन करने वाले 56 मराठी गीतों के इस संग्रह को प्रकाशित करेगा है। गौरतलब है कि वर्ष 1955-1956 में इसका प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो, पुणे द्वारा किया गया था। ‘गीत रामायण’ को उसके गीत, संगीत और गायन के लिये जाना जाता है। जी.डी. मडगुलकर द्वारा लिखित और सुधीर फड़के की संगीत रचना वाले इन गीतों को मराठी सुगम संगीत में मील का पत्थर और रामायण का सबसे लोकप्रिय मराठी संस्करण माना जाता है।
  • 22 से 25 जून तक असम के गुवाहाटी में वार्षिक अंबुबाची मेले का आयोजन हुआ। राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी इसके शुरुआती कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। 4 दिन तक चलने वाला यह मेला शक्तिपीठ कामाख्या देवी मंदिर में आयोजित किया जाता जाता है। जब तक कामाख्या देवी ऋतुमति रहती हैं, तब तक यहां भव्य मेला लगता है। अंबुबाची योग पर्व के दौरान गर्भगृह के कपाट स्वत: बंद हो जाते हैं और कामख्या देवी के दर्शन निषेध हो जाते हैं। इसी मेले को अंबुबाची महोत्सव कहा जाता है। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है और इन्हीं में से एक कामाख्या पीठ भी है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है और इसे पूर्वोत्तर का कुंभ भी कहा जाता है।

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