डेली न्यूज़ (26 Apr, 2019)



बीटी बैंगन की अवैध खेती

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा के एक ज़िले में ट्रांसजेनिक बैगन की किस्म (Transgenic Brinjal Variety) की खेती किये जाने की जानकारी प्राप्त हुई है। हालाँकि भारत में अभी तक इसकी खेती की अनुमति नही दी गई है।

  • बीटी बैंगन (Bt brinjal) के उत्पादन से देश के पर्यावरण संरक्षण कानूनों का उल्‍लंघन होने की आशंका है।

बीटी बैंगन

  • बीटी बैंगन जो कि एक आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल है, इसमें बैसिलस थुरियनजीनिसस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु का प्रवेश कराकर इसकी गुणवत्ता में संशोधन किया गया है।
  • बैसिलस थुरियनजीनिसस जीवाणु को मृदा से प्राप्त किया जाता है।
  • बीटी बैंगन और बीटी कपास (Bt Cotton) दोनों के उत्पादन में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।

आनुवंशिक संशोधित फसल
Genetically Modified Crops

  • आनुवंशिक संशोधित या जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलें (Genetically Modified Crops) वे होती हैं जिनके गुणसूत्र में कुछ परिवर्तन कर उनके आकार-प्रकार एवं गुणवत्ता में मनवांछित परिवर्तन किया जा सकता है।
  • यह परिवर्तन फसलों की गुणवत्ता, कीटाणुओं से सुरक्षा या पौष्टिकता में वृद्धि के रूप में हो सकता है।

फसलों का परीक्षण

  • फसलों को कीटों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये किये गए परीक्षण में वैज्ञानिकों द्वारा जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर एक जीवाणु प्रोटीन (Bacterial Protein) को पौधे में प्रवेश कराया गया।
  • प्रारंभिक परीक्षण में जीएम-फ्री इंडिया (CGFI) के लिये गठबंधन का प्रतिनिधित्व कार्यकर्ताओं ने किया।
  • इस मामले में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) और राज्य कृषि विभाग को पहले ही सूचित कर दिया गया है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति
(Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC)

  • यह समिति (GEAC) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करती है।
  • इस समिति की अध्यक्षता पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेष सचिव द्वारा की जाती है, जैव प्रौद्योगिकी विभाग का एक प्रतिनिधि इसका सह-अध्यक्ष होता है।
  • वर्तमान में इसके 24 सदस्य हैं।
  • नियमावली 1989 के अनुसार, यह समिति अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में खतरनाक सूक्ष्मजीवों एवं पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग संबंधी गतिविधियों का पर्यावरणीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करती है।
  • यह समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित आनुवंशिक रूप से उत्पन्न जीवों और उत्पादों के निवारण से संबंधित प्रस्तावों का भी मूल्यांकन करती है।

पूर्व के संदर्भ में बात करें तो

  • वर्ष 2010 में सरकार ने महिको द्वारा विकसित बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी थी।
  • उसी दौरान भारत में जैव विविधता को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों को इस पर स्वतंत्र रूप से अध्ययन करने के लिये बुलाया गया। क्योंकि भारत बैंगन के लिये (घरेलू और जंगली दोनों क्षेत्र में) विविधता का केंद्र है।
  • लेकिन उसी ट्रांसजेनिक किस्म को 2013 में बांग्लादेश में व्यावसायिक खेती के लिये अनुमोदित किया गया था।

शासन की विफलता

  • जैसा कि देखा जा रहा है देश में अवैध रूप से की जाने वाली बीटी बैंगन की खेती स्पष्ट रूप से संबंधित सरकारी एजेंसियों की विफलता को दर्शाती है।
  • हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। गुजरात में बीटी कपास की बड़े पैमाने पर अवैध खेती की शिकायतें मिलीं। जब तक इस पर रोक के लिये कदम उठाया है जाता तब तक यह लाखों हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी होती हैं।
  • 2017 के उत्तरार्द्ध में गुजरात में अवैध रूप से जीएम सोया की खेती किये जाने का भी पता चला था।
  • जीएम फसलों की अवैध खेती की शिकायत GEAC के पास दर्ज कराने पर भी तत्काल कोई कार्रवाई नही की जाती है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन (द हिंदू), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट


अंतरिक्ष यात्रा का मानव शरीर पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने दो जुड़वाँ भाइयों (अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री) के अलग-अलग समय पर अंतरिक्ष में रहने के दौरान तथा उसके बाद उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों पर व्यापक अध्ययन (ट्विन्स स्टडी) किया।

  • अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर एक वर्ष बिताया, जबकि उस दौरान मार्क केली (नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री) पृथ्वी पर रहे।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, अंतरिक्ष में रहने के दौरान स्कॉट के शरीर में दिखाई देने वाले अधिकांश परिवर्तन पृथ्वी पर उनकी वापसी के कुछ महीनों के भीतर ही सामान्य हो गए।
  • यह अध्ययन मानव शरीर पर अंतरिक्ष यात्रा के दौरान होने वाली प्रतिक्रिया की अब तक की सबसे व्यापक समीक्षा है।

उद्देश्य

  • पृथ्वी से दूसरे ग्रहों पर जाने से मनुष्य के शरीर में होने वाले वाह्य और आतंरिक परिवर्तनों का विस्तृत अध्ययन करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

अध्ययन

  • 12 विश्वविद्यालयों के 84 शोधकर्त्ताओं ने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान स्कॉट द्वारा अंतरिक्ष यान में बिताए गए समय के आणविक (Molecular), संज्ञानात्मक (Cognitive) और शारीरिक प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण किया।
  • संज्ञानात्मक परीक्षण में ध्यान, स्मरण, निर्णय लेने, भाषा-निपुणता और समस्याएँ हल करने जैसी क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है।
  • 50 वर्षीय स्कॉट ने ISS पर 27 मार्च, 2015 से लेकर 1 मार्च, 2016 तक 340 दिन बिताए।
  • अध्ययन के अनुसार, अंतरिक्ष में जाने वाले लोगों के शरीर में हज़ारों जीन और आणविक परिवर्तन होते हैं, हालाँकि पृथ्वी पर वापस आने के 6 माह पश्चात् ये सब सामान्य हो जाते हैं। जीन अभिव्यक्ति में परिवर्तनशीलता यह दर्शाती है कि शरीर पर्यावरण के अनुसार कैसे कार्य करता है।
  • स्कॉट केली के आईएसएस पर रहने के दौरान संभवतः पोषण और व्यायाम की कमी के कारण इनके शरीर का द्रव्यमान (Mass) 7% कम हुआ, जबकि मार्क केली का द्रव्यमान लगभग 4% बढ़ गया।
  • परीक्षण में पाया गया कि फ्लू वैक्सीन की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पृथ्वी और स्पेसफ्लाइट दोनों जगह एक समान कार्य करती है।
  • संज्ञानात्मक परीक्षणों में पाया गया कि उड़ान से पहले और बाद में स्कॉट के संज्ञानात्मक प्रदर्शन में (तेज़ी एवं सटीकता के मामले में) गिरावट आई।

मुद्दा क्या है?

  • कुछ समय पहले किये गए एक शोध में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर पाए गए सूक्ष्म जीवाणुओं एवं पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन की एक-दूसरे से अलग होने की जानकारी प्राप्त हुई थी।

प्रमुख बिंदु

  • शोध के अनुसार,इस परिवर्तन ने (जो कि 'सुपरबग्स' की एक नई पीढ़ी का निर्माण करता है) चिंता बढ़ा दी है। इससे यह प्रतीत होता है कि जीवाणुओं में पाया जाने वाला यह अंतर बैक्टीरिया की रोगजनक क्षमता बढ़ाने के बजाय अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों का सामना करने में उन्हें सक्षम बना रहा है।
  • बहुत से जीवाणु अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों के कपड़ों एवं सामानों में देखे जा सकते हैं, इनमें से ISS से लिये गए हज़ारों सूक्ष्म जीवों के जीवाणुओं के नमूने के जीनोमिक आँकड़ों को ‘नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन पब्लिक डेटाबेस’ में संग्रहीत किया गया है।
  • अमेरिका में अंतरिक्ष यात्रा के लिये लोगों की बढ़ती संख्या के साथ ही उनकी रुचि इस बात को समझने के प्रति बढ़ रही है कि ISS पर कठिन परिस्थितियों में, जहाँ उच्च स्तर का विकिरण, सूक्ष्म गुरुत्व और वेंटिलेशन की कमी है, ऐसे वातावरण में सूक्ष्म जीव कैसे व्यवहार करते हैं।
  • वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि यदि ऐसी विषम परिस्थिति में ये सूक्ष्म जीव जीवित रहते हैं तो इनसे सुपरबग का विकास हो सकता है, जिसमें जीवित रहने की अधिक क्षमता होती है।

जीनोमिक विश्लेषण

  • वैज्ञानिकों की टीम द्वारा ‘सिविल एंड एन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग विभाग, नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी’ अमेरिका में स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) और बेसिलस सेरेस (Bacillus cereus) के जीनोम की तुलना अंतरिक्ष स्टेशन पर पाए गए जीवाणुओं से की गई। विश्लेषण में ISS से लाये गए जीवाणुओं तथा पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन अलग-अलग पाए गए।
  • जीनोमिक विश्लेषण के आधार पर ऐसा लगता है कि यह बैक्टीरिया जीवित रहने के लिये अनुकूल है, बीमारी पैदा करने के लिये नहीं।
  • यह खोज कि अंतरिक्ष में विषम परिस्थिति के कारण बैक्टीरिया खतरनाक नहीं हो रहे हैं, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सुपरबग अंतरिक्ष यात्रियों और संभावित अंतरिक्ष पर्यटकों के लिये एक अच्छी खबर है, लेकिन यह संभव है कि संक्रमित व्यक्ति अंतरिक्ष स्टेशनों एवं अंतरिक्ष में बीमारी फैला सकते हैं।

निष्कर्ष

  • इस परिणाम से एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा की कल्पना करने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • जीन अभिव्यक्ति में परिवर्तन संबंधी यह अध्ययन, प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया और शरीर के अन्य आंतरिक गतिविधियों में परिवर्तन संबंधी भविष्य के बायोमेडिकल अंतरिक्ष अनुसंधान को निर्देशित करेगा तथा मंगल ग्रह पर जाने वाले यात्रियों को और अधिक सुरक्षित यात्रा की सुविधा प्रदान करेगा।

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन
(International Space Station- ISS)

  • इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station- ISS) कार्यक्रम सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि है।
  • इसे 1998 में शुरू किया गया।
  • इसके गठन के दौरान इसमें मुख्य रूप से यू.एस., रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के भाग लेने वाले देश शामिल थे।
  • इसके तहत कार्यक्रम के कई संगठनों की विभिन्न गतिविधियों की योजना, समन्वय और निगरानी की जाती है।

स्रोत- द हिंदू, नासा की आधिकारिक वेबसाइट


खतरे में दुनिया भर के जंगल

चर्चा में क्यों?

अमेरिका स्थित विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute-WRI) के नेतृत्व में किये गए हालिया शोध से पता चला है कि दुनिया भर के जंगलों पर खतरा मंडरा रहा है।

प्रमुख निष्कर्ष

  • वैश्विक हालात

पिछले वर्ष दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय वन्य आच्छादन के 12 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को नुकसान पहुँचा जो कि पृथ्वी के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है।

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के नए आँकड़ों के अनुसार, वन्य क्षेत्र का उक्त नुकसान वर्ष 2001 के बाद चौथा सबसे बड़ा नुकसान है।

सिमटते वन्य क्षेत्र का सबसे बड़ा प्रभाव उस क्षेत्र में रहने वाले समुदायों पर पड़ रहा है।

  • भारत की स्थिति

♦ विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute-WRI) द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 से 2018 के बीच भारत में 1.6 मिलियन हेक्टेयर वन्य क्षेत्र को नुकसान पहुँचा है।

♦ उक्त अवधि के दौरान पूर्वोतर राज्यों, नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, मिज़ोरम और मणिपुर में सबसे ज़्यादा वन्य क्षेत्र (लगभग 0.8 मिलियन हेक्टेयर) को नुकसान पहुँचा है।

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♦ वन्य क्षेत्र में इस नुकसान की वज़ह से भारत में 172 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन हुआ।

♦ इस विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2000 में कुल वन्य आच्छादित क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र का 12% था जो 2010 में घटकर 8.9% रह गया।

  • अध्ययन की सीमा

भारत के संदर्भ में अध्ययन के विश्लेषणों को सटीक नहीं माना जा सकता क्योंकि इस विश्लेषण में ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच द्वारा उपयोग किये गए डेटा में भारत के खुले तथा झाड़ीदार जंगलों को शामिल नहीं किया गया है।

ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच

  • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (Global Forest Watch-GFW) एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो जंगलों की निगरानी के लिये डेटा और उपकरण प्रदान करता है।

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  • अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ वनों में होने वाले परिवर्तन से संबंधित डेटा रियल टाइम में प्रदान करता है।
  • ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच उपग्रह इमेजरी और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीक का उपयोग करता है।

विश्व संसाधन संस्थान

  • विश्व संसाधन संस्थान एक वैश्विक अनुसंधान संस्थान है जिसका 50 से अधिक देशों में है।  
  • यह पर्यावरण और विकास पर के संबंध में छह महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित है जिसमें जलवायु, ऊर्जा, भोजन, वन, जल, ‘शहर एवं परिवहन’ शामिल हैं।
  • इसकी स्थापना 1982 में हुई थी। इसका मुख्यालय वाशिंगटन, अमेरिका में है।

स्रोत- द हिंदू, हिंदुस्तान टाइम्स


पेंगुइन के प्रजनन में समस्या

चर्चा में क्यों?

एम्परर पेंगुइन (Emperor Penguin) अपने दूसरे सबसे बड़े आवास स्थल में प्रजनन की समस्या से जूझ रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अंटार्कटिक के बर्फीले हिस्सों के सिकुड़ने के कारण पिछले तीन वर्षों से लगभग सभी नवजात पेंगुइन चूजों की मृत्यु हो रही है।
  • ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे ने केप होप के दक्षिण में स्थित वेडेल सागर में हैली बे कॉलोनी का अध्ययन करने के लिये इमेजरी उपग्रह का उपयोग किया।
  • गौरतलब है कि इस स्थान पर आमतौर पर हर साल 25,000 पेंगुइन के जोड़ों को देखा जाता है।
  • उन्होंने पाया कि 2016 में असामान्य रूप से गर्म और तूफानी मौसम के कारण समुद्री बर्फ के उस हिस्से के टूट जाने के कारण जिस पर पेंगुइन आमतौर पर अपने चूजों को शुरुआती दौर में पालते हैं, लगभग सभी चूजों की मृत्यु हो गई। यही हाल 2017 और 2018 में भी रहा।

विश्व पेंगुइन दिवस

  • प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को विश्व पेंगुइन दिवस मनाया जाता है।
  • विश्व में पेंगुइन की 17 प्रजातियाँ पाई जाती हैं और उनके प्राकृतिक आवास दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं।
  • सत्रह पेंगुइन प्रजातियों में से केवल छह प्रजातियाँ ऐसी हैं जो अंटार्कटिक में रहती हैं। ये हैं- एडिलेज़, चिन्स्ट्रैप, एम्परर्स, गेंटोस, मैकरोनिस और रॉकहॉपर्स।
  • इन छह प्रजातियों में से केवल चार प्रजातियाँ अंटार्कटिका पर ही प्रजनन करती हैं। ये हैं- एडिलेज़, एम्परर्स, चिन्स्ट्रैप और गेंटोस।
  • एम्परर पेंगुइन सभी प्रजातियों में से सबसे बड़ी है और अंटार्कटिका की स्थानिक प्रजाति है। यह IUCN की रेड लिस्ट में निकट संकटग्रस्त ( Near Threatened) श्रेणी में शामिल है।

स्रोत: द हिंदू


खासी किंगडम

संदर्भ

हाल ही में खासी किंगडम के संघ ने 1947 की संधि के पुनरावलोकन का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु

  • 25 खासी किंगडम के महासंघ ने वर्तमान मेघालय को भारत का हिस्सा बनाने वाले 1947 के समझौतों के पुनरावलोकन की योजना तैयार की है।
  • इस पुनरावलोकन का उद्देश्य केंद्रीय कानूनों से आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं की रक्षा करना है।

पृष्ठभूमि

  • 15 दिसंबर, 1947 से 19 मार्च, 1948 के बीच खासी किंगडम के महासंघ ने भारत के डोमिनियन के साथ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन और एनेक्सड (Instrument of Accession and Annexed) समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • 17 अगस्त, 1948 को गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इन राज्यों के साथ सशर्त संधि पर हस्ताक्षर किये।
  • हालाँकि, खासी किंगडम ने भारत के अन्य राज्यों के विपरीत विलय पत्र (Instrument of Merger) पर हस्ताक्षर नहीं किये।
  • ब्रिटिश शासन में खासी क्षेत्र को खासी किंगडम और ब्रिटिश क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। उस समय ब्रिटिश सरकार को खासी किंगडम पर कोई क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त नहीं था और अगर उन्हें किसी उद्देश्य के लिये ज़मीन की आवश्यकता होती थी तो उन्हें इन राज्यों के प्रमुखों से संपर्क करना पड़ता था।
  • स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश क्षेत्र भारतीय प्रभुत्व का हिस्सा बन गया लेकिन खासी राज्यों ने स्टैंडस्टिल समझौते के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत इन राज्यों को कुछ अतिरिक्त अधिकार प्राप्त थे।

हालाँकि, संविधान ने आदिवासी परिषदों के माध्यम से इन्हें काफी हद तक स्व-शासन का अधिकार प्रदान किया है लेकिन खासी लोग और अधिक अधिकारों की मांग करते रहे हैं।

खासी जनजाति

  • खासी मुख्यत: मेघालय में निवास करने वाली एक जनजाति है। यह जनजाति खासी तथा जयंतिया की पहाड़ियों में रहने वाली एक मातृसत्तात्मक समाज है।
  • मातृसत्तात्मक समाज से अभिप्राय ऐसे समाज से है जिसमें स्त्रियों की केंद्रीय भूमिका होती है।
  • ऐसे समाज का राजनैतिक एवं सामाजिक नेतृत्व एवं संपत्ति का अधिकार आदि स्त्रियों के पास होता है एवं वंशावली भी नारी से चलती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय सेना में पहली बार महिला सैनिकों की भर्ती

संदर्भ

पहली बार भारतीय सेना ने सामान्य ड्यूटी (महिला सैन्य पुलिस) के लिये महिला सैनिकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू की है तथा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के ज़रिये आवेदन मांगे हैं।

  • सेना का लक्ष्य 20% सैन्य पुलिस कैडर का गठन करना है।
  • सशस्त्र बलों ने अब तक महिलाओं को केवल अधिकारियों के रूप में शामिल किया है और उन्हें पैदल सेना, बख्तरबंद कोर, तोपखाने तथा "फाइटिंग आर्म" में शामिल होने और युद्धपोतों के परिचालन जैसे सेवाओं की अनुमति नहीं दी है।

डिफेंस फोर्सेज़ में महिलाएँ

  • सरकार ने घोषणा की थी कि 2019 से महिलाओं को सैन्य बल में सैनिक या कार्मिक से नीचे के अधिकारी रैंक (Personnel Below Officer Rank) के रूप में शामिल किया जाएगा।
  • वर्तमान में केवल भारतीय वायुसेना ही लड़ाकू पायलट के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है।
  • वायुसेना में 13.09% महिला अधिकारी हैं, जो तीनों सेनाओं में सबसे अधिक हैं।
  • आर्मी में 3.80% महिला अधिकारी हैं, जबकि नौसेना में 6% महिला अधिकारी हैं।

महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में कठिनाइयाँ

  • शारीरिक क्षमता: यद्यपि सशस्त्र बलों में अधिकांश नौकरियाँ पुरुषों और महिलाओं के लिये समान रूप से खुली हैं, लेकिन कुछ ऐसी सेवाएँ भी हैं जिनके लिये महिलाएँ शारीरिक रूप से अनुकूल नहीं हैं।
  • शारीरिक फिटनेस के मानकों को पुरुषों के अनुरूप बनाया गया है और इन मानकों को पूरा करने में महिलाओं को काफी परिश्रम करना पड़ेगा।
  • मनोबल और सामंजस्य: प्रत्यक्ष युद्ध स्थितियों में सेवारत महिलाओं को कॉम्बैट की भूमिका में मनोबल बनाए रखने तथा तथा सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई आएगी।
  • सैन्य तत्परता: महिला-पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
  • मासिक धर्म और गर्भावस्था की प्राकृतिक प्रक्रियाएँ महिलाओं को विशेष रूप से युद्ध स्थितियों में कमज़ोर बनाती हैं।
  • परंपरा: समाज में सांस्कृतिक बाधाएँ, विशेष रूप से भारत जैसे देश में युद्ध में महिलाओं को शामिल करने में यह सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
  • कुछ महिलाओं को पुरुष बाहुल्य वाले तंग आवासों, दुसह्य इलाकों तथा दुर्गम स्थानों पर तैनात करने के परिणाम का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक: मिलिट्री सेक्सुअल ट्रामा (MST) का मुद्दा और महिला लड़ाकों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव दिखाई देता है। कई देश अब इस समस्या को वास्तविक और ज़रूरी मान रहे हैं तथा इसे रोकने के लिये मज़बूत उपाय कर रहे हैं।
  • MST गंभीर तथा दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद (Depression) और वस्तुओं का दुरुपयोग शामिल है।

कॉम्बैट रोल में महिलाओं की भूमिका के पक्ष में तर्क

  • लैंगिकता बाधक नहीं है: जब तक आवेदक किसी पद के लिये योग्य है, तब तक लैंगिकता मायने नहीं रखती है। उन महिलाओं को भर्ती और तैनात करना आसान है जो युद्ध में भेजे गए कई पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम हैं।
  • सैन्य तत्परता: महिला और पुरुष दोनों ही लिंगों की अनुमति देने से सेना मजबूत होती है। सशस्त्र बल भर्ती दर गिरने से गंभीर रूप से परेशान हैं। इसका मुकाबला महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में नियुक्त करने से किया जा सकता है।
  • परंपरा: कॉम्बैट इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृति बदलती है और पुलिंग उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है।
  • सांस्कृतिक अंतर और जनसांख्यिकी: कुछ परिस्थितियों में पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक प्रभावी होती हैं।
  • महिलाओं को सेना में सेवा करने की अनुमति देने से नाजुक और संवेदनशील नौकरियों के लिये प्रतिभा पूल को दोगुना किया जा सकता है।

स्पेशल 301 रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने अपनी वार्षिक स्पेशल 301 रिपोर्ट जारी की है। गौरतलब है कि अमेरिका ने रिपोर्ट के इस संस्करण में कुल 36 देशों को निगरानी सूची में डाला है।

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अंतर्गत, अमेरिका अपने व्यापारिक भागीदारों का बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रवर्तन संबंधी ट्रैक रिकॉर्ड पर आकलन करता है।
  • यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव (USTR) के अनुसार, भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के कथित उल्लंघनों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका (US) की ‘प्रायोरिटी वाच लिस्ट’ में बरकरार रखा गया है।
  • ‘प्रायोरिटी वाच लिस्ट' में भारत के साथ ही चीन, इंडोनेशिया, रूस, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला जैसे कुल 11 देशों को रखा गया है।
  • तुर्की और पाकिस्तान जैसे कुल 25 देशों को अमेरिका ने ‘वाच लिस्ट’ में शामिल किया है।

intelectual property

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बौद्धिक संपदा की चुनौतियाँ लंबे समय से बरकरार हैं और भारत बौद्धिक संपदा के संरक्षण तथा उनके प्रवर्तन के संबंध में दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

भारत पर प्रभाव

  • अमेरिकी सरकार विश्व व्यापार संगठन (WTO) या अन्य प्रासंगिक व्यापार समझौते पर विवाद निपटान की कार्यवाहियाँ शुरू कर सकती है।
  • अमेरिकी सरकार एकतरफा टैरिफ प्राथमिकताओं जैसे कि सामान्यीकृत प्रणाली (GSP) को भी समाप्त कर सकती है।

बौद्धिक संपदा अधिकार

  • बौद्धिक संपदा अधिकार, निजी अधिकार हैं जो किसी देश की सीमा के भीतर मान्य होते हैं तथा औद्योगिक, वैज्ञानिक, साहित्य और कला के क्षेत्र में व्यक्ति (व्यक्तियों) अथवा कानूनी कंपनियों को उनकी रचनात्मकता अथवा नवप्रयोग के संरक्षण के लिये दिये जाते हैं।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार किसी भी प्रकार या आकार की अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार, नवाचार, सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

स्रोत- बिज़नेस लाइन


पेप्सिको ने किसानों पर मुकदमा दायर किया

चर्चा में क्यों?

कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स आदि बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको समूह ने कुछ गुजराती किसानों पर मुकदमा दायर किया है। पेप्सिको का आरोप है कि ये किसान आलू की उस किस्म का उत्पादन कर रहे थे, जिससे लेज चिप्स बनाए जाते हैं और इस पर कंपनी का कॉपीराइट है। पेप्सिको ने इससे हुए नुकसान के लिये 1.05 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति की भी मांग की है।

प्रमुख बिंदु

  • इन किसानों पर एफसी-5 किस्म के आलू उगाने और बेचने के लिये मुकदमा किया गया है। बहुराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको का दावा है कि वर्ष 2016 से ही उसे 'भारत में इस आलू के उत्पादन का विशेष अधिकार' मिला हुआ है।
  • किसान समूहों का कहना है कि प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज़ एंड फार्मर्स राइट्स (Protection of Plant Varieties and Farmers Rights-PPVFR) के तहत किसानों को किसी भी संरक्ष‍ित किस्म के बीज बोने, उगाने और बेचने का पूरा अधिकार है।
  • किसान चाहते हैं कि प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटीज़ एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी (PPV & FRA) नेशनल जीन फंड (National Gene Fund) के माध्यम से किसानों को मुक़दमा लड़ने के लिये धन मुहैया कराए।
  • जिन किसानों पर मुकदमा किया गया है वे 3-4 एकड़ की खेती वाले छोटे किसान हैं।
  • किसानों का आरोप है कि पेप्सिको ने एक निजी जासूसी एजेंसी का सहारा लिया और कुछ लोग उनके पास संभावित खरीदार के रूप में आए तथा गोपनीय तरीके से खेती का वीडियो बनाया और आलू का नमूना ले गए।
  • इससे पहले 2018 में भी कंपनी ने अरावली ज़िले के पाँच किसानों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।

सुरक्षात्मक खंड (Protective Clause)

  • पेप्सिको ने अपने अधिकारों के उल्लंघन का दावा पौधे की प्रजाति और कृषक अधिकार संरक्षण (PPV and FR) अधिनियम, 2001 की धारा 64 के अंतर्गत किया है।
  • धारा-64 में कहा गया है कि एक किसान को संरक्षित किस्म के बीज को बोने के अलावा उसे अपने कृषि उपज को बचाने, उपयोग करने, पुनः बोने, आदान-प्रदान करने, साझा करने या बेचने की अनुमति है जब तक कि वह "ब्रांडेड बीज" नहीं बेचता।

पौधे की प्रजाति और कृषक अधिकार संरक्षण (PPV and FR) अधिनियम, 2001

  • पौधों की किस्मों की सुरक्षा एवं संरक्षण तथा पौधों की नई किस्मों के विकास के लिये इस अधिनियम को भारत सरकार द्वारा लागू किया गया।
  • यह अधिनियम नई किस्मों के विकास के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उनमें सुधार तथा उन्हें उपलब्ध कराने में किसानों के योगदान को मान्यता प्रदान करता है।
  • पौधे की प्रजाति और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली में स्थापित किया गया है।

स्रोत : द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (26 April)

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग वर्ष 2020 तक देश के 660 जिलों के सभी 6500 ब्लॉकों के स्तर पर मौसम का पूर्वानुमान जारी करने की क्षमता स्थापित करने की परियोजना पर काम कर रहा है। इससे कृषि कार्यों में मौसम की अनिश्चितताओं से निपटने में मदद मिलेगी। फिलहाल मौसम विभाग ज़िला आधार पर मौसम परामर्श जारी करता है। अब मौसम विभाग ने मौसन पूर्वानुमान तथा अन्य सेवाओं का विस्तार ब्लॉक स्तर तक करने के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ समझौता किया है। वर्तमान में 200 ब्लॉक्स में पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। मौसम विभाग के पास ज़िला स्तर पर मौसम आधारित सलाह प्रसारित करने के लिये 130 फील्ड इकाइयाँ हैं। देश के 530 ज़िलों में ग्रामीण कृषि मौसम सेवा के तहत कृषि विज्ञान केंद्र में ऐसी इकाइयों को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • मौसम विभाग ने तमिलनाडु और पुद्दुचेरी में अगले 48 घंटों में चक्रवाती हवाओं के साथ बारिश होने की आशंका जताई है, जबकि 30 अप्रैल और 1 मई को भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि यह चक्रवात तट के करीब आने के बाद काफी शक्तिशाली होगा। इसे फानी नाम दिया गया है। मौसम विभाग ने कहा कि शक्तिशाली होने के बाद चक्रवाती परिसंचरण कम दबाव वाले क्षेत्र में आ गया है। यह इक्वेटोरियल हिंद महासागर और बंगाल के दक्षिण-पूर्व की खाड़ी में मौजूद है तथा तमिलनाडु और श्रीलंका के तट की ओर बढ़ रहा है।
  • हरियाणा के फतेहाबाद ज़िले में जीन परिवर्तित (GM) यानी BT बैंगन की गैरकानूनी खेती करने का मामला सामने आया है। जीएम फ्री इंडिया की ओर से यह जानकारी दी गई है कि BT बैंगन वाले खेत का निरीक्षण किया गया और एक बैंगन का नमूना भी लिया गया। इस नमूने में बैंगन जीन परिवर्तित पाया गया। बैंगन में BT CRY 1 AC प्रोटीन की पुष्टि हुई है। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने स्वास्थ्य और पर्यावरण चिंताओं के मद्देनज़र BT बैंगन की खेती को अनुमति दिये जाने का निर्णय 2010 में रोक दिया था। साथ ही कहा गया था कि जब तक इस बीज के प्रभाव को लेकर कोई ठोस अध्ययन नहीं हो जाता तब तक इसके बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।
  • केंद्र सरकार ने पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल (रिटायर्ड) दलबीर सिंह सुहाग को सेशेल्स गणराज्य में भारत के अगले उच्चायुक्त के रूप में नियुक्त किया है। ज्ञातव्य है कि जनरल सुहाग विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली भारतीय सेना के 26वें सेना प्रमुख रहे और 31 दिसबंर, 2016 को इस पद से सेवानिवृत्त हुए। भारत और सेशेल्स दोनों देशों के बीच मित्रवत संबंध हैं। विगत कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच आर्थिक, रणनीतिक और सामरिक सहित कई मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ताएं हुई हैं। भारत ने सेशेल्स को समुद्री निगरानी बढ़ाने के लिये और हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा बनाए रखने में मदद के लिये डोर्नियर विमान उपहार में दिये हैं। साथ ही भारत ने सेशेल्स को प्रतिरक्षा क्षमताओं और समुद्री बुनियादी संरचना को मज़बूत बनाने के लिये 10 करोड़ डॉलर का ऋण भी दिया है।
  • हाल ही में पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस बात को लेकर गाइडलाइन्स जारी की हैं कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कितनी देर तक टीवी या मोबाइल फोन या टैबलेट की स्क्रीन देखनी चाहिये। WHO के अनुसार, 5 साल से कम उम्र के बच्चों को हर रोज़ एक घंटे से अधिक स्क्रीन नहीं देखनी चाहिये। WHO की ओर से जारी गाइडलाइन्स में कहा गया है कि अभिभावकों में एक साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने की सामान्य समझ होनी चाहिये। 5 साल से कम उम्र के बच्चों को भी फिजिकली एक्टिव रहना चाहिये और अच्छी नींद लेनी चाहिये, ताकि वे स्वस्थ जीवन बिता सकें और उसका विकास भी अच्छा हो। WHO का कहना है कि एक से चार साल तक के बच्चों को दिन भर में कम-से-कम तीन घंटे फिजिकल एक्टिविटीज़ में बिताने चाहिये। इससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे। इन गाइडलाइन्स में यह भी कहा गया है कि दुनियाभर में लगभग 4 करोड़ बच्चों का वज़न सामान्य से अधिक है, जो कुल संख्या का लगभग छह प्रतिशत है।
  • घाना में दुनिया की सबसे बड़ी मेडिकल ड्रोन सेवा शुरू की गई है। करीब 3 करोड़ जनसंख्या वाले इस देश में ड्रोन्स की रोज़ 600 उड़ानें होंगी। इससे करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों को फायदा होगा। इसमें मरीज़ों के लिये 2 हज़ार हेल्थ सेंटरों में वैक्सीन, रक्त तथा जीवनरक्षक दवाओं की सप्लाई की जाएगी। ड्रोन सर्विस के लिये 4 हब बनाए गए हैं और प्रत्येक हब में 30 ड्रोन रखे गए हैं। इन ड्रोन्स को कैलिफोर्निया की रोबोटिक्स कंपनी जिपलाइन ने बनाया है। घाना सरकार ने जिपलाइन को चार साल तक प्रोजेक्ट चलाने के लिये 12 मिलियन डॉलर दिये हैं। गौरतलब है कि जिपलाइन ने 2016 में पहली बार रवांडा में ड्रोन सेवा शुरू की थी।
  • ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत की सरकार के तहत काम करने वाली हेरिटेज विक्टोरिया एजेंसी के पुरातत्त्वविदों ने ऑस्ट्रेलिया में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान डूबे हुए एक जहाज़ का पता लगाया है। इसका मलबा ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण पूर्वी तट के पास मिला है और 100 मीटर लंबा यह जहाज़ अब भी ठीक-ठाक स्थिति में है। MS आयरन क्राउन नाम का यह मालवाही जहाज़ 4 जून, 1942 को जापानी पनडुब्बी के तारपीडो की चपेट में आकर केवल 60 सेकेंड के भीतर समुद्र में समा गया था।
  • उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल रानीखेत के जंगलों में दुर्लभ किस्म की उडऩ गिलहरी (Flying Squirrel) दिखाई दी। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे जैवविविधता के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं तथा वन विभाग इस विलक्षण प्रजाति के वासस्थल को चिह्नित कर इसके संरक्षण की योजना बनाने की तैयारी कर रहा है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2016 में टिहरी ज़िले की देवलसारी रेंज में पहली बार उडऩ गिलहरी दिखी थी। इस गिलहरी के शरीर में दाएँ-बाएँ बाजुओं से पिछले दोनों पैरों तक पर्देदार लचीली त्वचा होती है। ऊँचे स्थान से छलांग लगाने पर यह त्वचा छतरी की तरह फैल जाती है और पैराग्लाइडर की तरह यह दुर्लभ गिलहरी काफी दूरी तक उड़ान भरती है। एक अनुमान के अनुसार पूरे भारत में उड़ने वाली गिलहरियों की 12 प्रजातियाँ हैं।