विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
नैदानिक परीक्षण नियमों का नया मसौदा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नैदानिक परीक्षण नियमों का एक नया मसौदा जारी किया गया जिसमें नई दवाओं को त्वरित स्वीकृति प्रदान करने और देश में नैदानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये कदम उठाते हुए सरकार ने दवा कंपनियों को भारत में नई दवाओं के परीक्षण में छूट देने का फैसला किया है लेकिन यह छूट केवल ऐसे मामलों में दी जाएगी जिसमें दवाओं को भारत के शीर्ष औषधि नियामक केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा CDSCO द्वारा निर्दिष्ट देशों में उनका विपणन किया जाता है।
- यह छूट उन दवाओं के परीक्षण के लिये भी मिलेगी, जिनके विपणन के लिये अनुमोदन मिल चुका है लेकिन भारत में उन पर परीक्षण चल रहा है।
क्या कहते हैं नए नियम?
- स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नैदानिक परीक्षण नियमों के अनुसार, भारत में किये जाने वाले किसी नैदानिक परीक्षण के दौरान घायल होने वाले मरीज़ों को ‘जब तक आवश्यक हो’ या जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता कि चोट का संबंध परीक्षण से नहीं है, तब तक के लिये चिकित्सकीय देख-रेख प्राप्त करने का अधिकार होगा।
- नए नियमों के अनुसार, जिन रोगियों ने किसी नई दवा की जाँच के लिये किये जाने वाले नैदानिक परीक्षण में भाग लिया है, परीक्षण समाप्त होने के बाद उन्हें प्रायोजक द्वारा वह दवा नि:शुल्क लेकिन कुछ संशोधनों के साथ प्राप्त हो सकती है।
यदि किसी मरीज़ को एक अनुसंधान भागीदार के रूप में नामांकित किया जाता है, तो शोधकर्त्ता का यह कर्त्तव्य है कि वह उस प्रतिभागी की देखभाल करे। - एक प्रतिभागी जो किसी नैदानिक परीक्षण में अधिकतम जोखिम उठा रहा है, उसे पर्याप्त उपचार प्राप्त करने, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने और पर्याप्त मुआवज़ा प्राप्त करने का अधिकार है (चोटों या मृत्यु के मामले में)।
- उल्लेखनीय है कि भारत के नैदानिक परीक्षण नियमों के पिछले मसौदे में प्रायोजक को रोगी की मृत्यु या स्थायी विकलांगता के मामले में क्षतिपूर्ति का 60 प्रतिशत भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
विशेषताएँ
- इंडियन सोसाइटी ऑफ़ क्लिनिकल रिसर्च (Indian Society of Clinical Research-ISCR) के अनुसार, नए नियम बहुत संतुलित हैं। यह उन रोगियों के अधिकारों, सुरक्षा और भलाई को ध्यान में रखेगा जो नैदानिक परीक्षणों में भाग लेते हैं इसके अलावा यह नैतिक और गुणवत्तापूर्ण नैदानिक परीक्षणों के संचालन में वृद्धि करेगा जिससे रोगियों के लिये आवश्यक नई दवाओं के विकास में मदद मिलेगी।
- ऐसे नियम पहली बार परिभाषित किये गए हैं जो रोगियों के लिये आवश्यक दवाओं की जाँच के बाद पहुँच प्रदान करने की शर्तें निर्धारित करते हैं।
- वैश्विक नैदानिक परीक्षणों के लिये अनुमोदन की समय-सीमा 90 कार्य दिवस है। नए नियम वैश्विक दवा विकास में भारत की भागीदारी का समर्थन करेंगे क्योंकि यह समय-सीमा भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बढ़त प्रदान करती है और नैदानिक परीक्षण के संबंध में भारत के ये नियम विकसित देशों के नियमों के अनुरूप हैं।
- कुछ कार्यकर्त्ताओं द्वारा निःशुल्क परीक्षण के बाद दवा तक निःशुल्क पहुँच या पोस्ट-ट्रायल एक्सेस को एक अच्छा कदम माना गया है, क्योंकि अक्सर ये दवाएँ सस्ती नहीं होती हैं। कार्यकर्त्ताओं ने नए नियमों में अन्य प्रावधानों को शामिल किये जाने के साथ ही कुछ चिंताओं को भी व्यक्त किया है जिसमें मुआवज़ा मानदंड और परीक्षण संबंधी कुछ छूट शामिल हैं।
- नए नियमों पर सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, मृत्यु और स्थायी विकलांगता के मामलों में क्षतिपूर्ति या किसी परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागी की अन्य प्रकार की चोटों का निर्धारण भारत की सर्वोच्च दवा नियामक संस्था, भारतीय औषधि महानियंत्रक (Drug Controller General of India-DCGI) द्वारा किया जाएगा। लेकिन रोगियों के लिये कार्य करने वाले कुछ कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागी हेतु किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति तय करने के लिये एक समिति होनी चाहिये जो पारदर्शी तरीके से कार्य करे।
समस्याएँ
रोगियों के लिये कार्य करने वाले कुछ कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि ऐसी छूट से समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- समस्या यह है कि भारत विशाल नस्लीय विविधता वाला देश है और इस प्रकार के परीक्षण अधिकांशतः पश्चिमीं देशों में किये जाते हैं। उदाहरण के लिये यदि किसी दवा की खोज अमेरिका जैसे देश में की जाती है तो इस दवा का परीक्षण एक श्वेत आबादी पर किया जाता है, इसलिये भारत की विविधता को देखते हुए नस्लीय रूप से विविध आबादी के लिये परीक्षण की आवश्यकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह दवा हमारी विविध आबादी के अनुरूप होगी।
- यदि सरकार उस स्थिति के लिये सचेत नहीं है जिसमें वह इस प्रकार की छूट देती है तो ऐसे मामलों में दी जाने वाली छूट खतरनाक हो सकती है। इस प्रकार यह छूट केवल आवश्यक दवाओं के लिये होनी चाहिये जैसे कि पहले दी जाती थी।
- नए नियमों के अनुसार, जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता कि चोट नैदानिक परीक्षण के कारण नहीं है, तब तक चिकित्सा प्रबंधन प्रदान करने संबंधी नियम में हेर-फेर किया जा सकता है। क्योंकि जिस दवा का परीक्षण/अध्ययन किया जा रहा है वह अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है, ऐसे में यह यह सिद्ध करना मुश्किल हो सकता है कि चोट किसी परीक्षण के दौरान लगी है या नहीं।
केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)
- केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) भारतीय दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों के लिये एक राष्ट्रीय विनियामक निकाय है।
- औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा सौंपे गए कृत्यों का निर्वहन करने के लिये यह केंद्रीय औषधि प्राधिकरण है।
- CDSCO में भारतीय औषधि महानियंत्रक (Drug Controller General of India-DCGI) औषधि एवं चिकित्सा उपकरणों का विनियमन करता है।
CDSCO के कार्य
- औषधि के आयात पर विनियामक नियंत्रण, नई औषधियों एवं नैदानिक परीक्षणों का अनुमोदन औषधि परामर्शीय समिति एवं औषधि तकनीकी सलाहकारी बोर्ड की बैठकें, केंद्रीय लाइसेंस अनुमोदन प्राधिकरण के तौर पर कुछ विशिष्ट लाइसेंसों की अनुमति देना आदि।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
विविध
शहरी वयस्कों में विटामिन की कमी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (National Institute of Nutrition- NIN) द्वारा किये गए शोध से पता चला है कि शहरों में रहने वाले बहुत से वयस्क लोग ऐसे हैं जो बाहर से स्वस्थ तो दिखते हैं, लेकिन वास्तविकता में स्वस्थ नहीं हैं।
प्रमुख बिंदु
- NIN के अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित पत्रिका ‘न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित किया गया।
- भारत में पहली बार शोधकर्त्ताओं ने स्वस्थ शहरी वयस्कों के आहार सेवन के साथ-साथ रक्त स्तर में पाए जाने वाले प्रमुख विटामिनों की स्थिति का भी पता लगाया। यह अध्ययन हैदराबाद और सिकंदराबाद के लोगों पर केंद्रित था।
- अध्ययन के अनुसार, ऐसे लोग जो सही तरीके से नियमित आहार नही लेते उनमें विटामिन A, D, B-1, B-2, B-6, B-12 और B-9 की कमी पाई गई।
- NIN शोधकर्त्ताओं ने होमोसिस्टीन (रक्त में मौजूद एक पदार्थ) के स्तर का भी पता लगाया, जो हृदय रोग जैसी गैर-संचारी बीमारियों की संभावना को बढ़ाता है।
- राष्ट्र के प्राथमिक कार्यबल का गठन करने वाली यह आबादी, जो शायद ही कभी विटामिन के स्तर की जाँच करती है, को कई उप-विटामिन की कमियों और उच्च आहार अपर्याप्तता का शिकार पाया गया।
- रक्त में इनके स्तर के संबंध में विटामिन B-2 (50%), B-6 (46%), B-12 (46%), B-9 (32%) और विटामिन D (29%) की कमी पाई गई।
- आहार सेवन के संदर्भ में किये गए अध्ययन में 72% आबादी के आहार में पोषक तत्त्वों की अपर्याप्तता पाई गई। इसके अतिरिक्त 52% आबादी में उच्च होमोसिस्टीन (Homocysteine) स्तर पाया गया।
- हालाँकि शरीर के लिये सभी विटामिनों के महत्त्व के बावजूद, केवल कुछ विटामिन जैसे- विटामिन B-9, विटामिन B-12 और विटामिन D ने विश्व स्तर पर काफी ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन अन्य विटामिनों की कमी, स्वतंत्र रूप से या संयोजन में होती है, जिनका हानिकारक परिणाम हो सकता है।
- शोधकर्त्ताओं ने महिलाओं की विशेष रूप से उच्च जोखिम की स्थिति बताई हैं।
स्रोत - टाइम्स ऑफ इंडिया
विविध
इंडियन म्यूज़ियम ऑफ अर्थ
चर्चा में क्यों?
अपनी प्रागैतिहासिक विरासत को बेहतर ढंग से संरक्षित करने के लिये भारत सरकार इंडियन म्यूजियम ऑफ अर्थ (The Indian Museum of Earth- TIME), ‘पृथ्वी संग्रहालय’ (Earth Museum) के निर्माण की योजना बना रही है।
प्रमुख बिंदु
- भारत में भूगर्भीय और पुरापाषाणकालीन नमूनों का विशाल संग्रह मौजूद है। इस संग्रह की सहायता से पृथ्वी और इसके इतिहास के संबंध में बेशकीमती वैज्ञानिक जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
- ध्यातव्य है कि ये दुर्लभ नमूने पूरे देश में अलग-अलग प्रयोगशालाओं में बिखरे हुए हैं जिन्हें एक स्थान पर एकत्रित करने के लिये केंद्र सरकार उक्त संग्रहालय के निर्माण की योजना बना रही है।
- इस संग्रहालय को अमेरिकी प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (American Museum of Natural History) या स्मिथसोनियन संग्रहालय (Smithsonian Museum) के आधार पर बनाया जाएगा।
- इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थापित किया जाएगा।
- किसी एक स्थान पर स्थिर सामान्य संग्रहालयों से भिन्न यह प्रस्तावित संग्रहालय डायनामिक होगा, ताकि जीवाश्म से संबंधित अनुसंधानों तथा छात्रों हेतु विभिन्न गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके।
- इस संग्रहालय में एक ऐसे रिपॉजिटरी की भी व्यवस्था होगी जहाँ संग्रहकर्त्ता तथा शोधकर्त्ता अपने संग्रह (नमूने) सुरक्षित रख सकेंगे ताकि भावी पीढ़ी के शोधकर्त्ता उन नमूनों का अध्ययन कर सकें।
आवश्यकता क्यों?
- भारत में एक भी ऐसा संग्रहालय नहीं है, जहाँ नए नमूनों की तुलना पहले से खोजे गए नमूनों से की जा सके।
- पुरातत्त्वीय, नृजातीय, भूगर्भीय तथा प्राणि-विज्ञान एवं पृथ्वी के विकास क्रम के संबंध में समझ विकसित करने की दृष्टि से ऐसे संग्रहालयों की आवश्यकता है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS)
संदर्भ
व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (Trade Receivable Discounting System-TReDS) MSME को कॉर्पोरेट से मिलने वाले प्राप्यों के भुगतान के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
- इसका गठन RBI द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (Payment and Settlement Systems Act 2007) के तहत स्थापित नियामक ढाँचे के तहत किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- TReDS प्लेटफॉर्म का मुख्य उद्देश्य MSMEs की महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों जैसे-तत्काल प्राप्यों का नकदीकरण और ऋण जोखिम को समाप्त करने वाले दोहरे मुद्दों का समाधान करना है।
- TReDS प्लेटफॉर्म, एक नीलामी तंत्र द्वारा सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित बड़े कॉर्पोरेटों के समक्ष MSMEs के विक्रेताओं के बीजक/विनिमय बिलों के बट्टाकरण (Discounting) में सहायता प्रदान करता है। इससे प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार दरों पर व्यापार प्राप्यों की त्वरित वसूली सुनिश्चित होती है।
- TReDS भारत में विक्रेताओं के लिये फैक्टरिंग विदाउट रीकोर्स (Factoring Without Recourse) शुरू करने का एक प्रयास है, इससे MSMEs को प्राप्यों की त्वरित वसूली के साथ-साथ योग्य मूल्य का पता लगाने में सहायता होगी।
TReDS प्लेटफॉर्म में हिस्सा लेने हेतु पात्र निकाय :
- TReDS, MSMEs के बीजक/बिलों को अपलोड, स्वीकार, बट्टाकरण, व्यापार और निपटान करने हेतु विभिन्न प्रतिभागियों को एक जगह पर लाने हेतु एम मंच/प्लेटफॉर्मर प्रदान करता है।
* (MSMED अधिनियम, 2006 के अनुरूप पारिभाषित MSMEs आपूर्तिकर्त्ता)
TReDS संव्यवहार कौन शुरू कर सकता है:
- MSMEs विक्रेताओं के व्यापार प्राप्यों के वित्तपोषण के लिये विक्रेता और खरीदार दोनों TReDS लेन-देन शुरू कर सकते हैं।
- जब MSMEs विक्रेता बीजक (Invoice) अपलोड करता है और ब्याज़ लागत का वहन करता है, तो इसे ‘फैक्टरिंग’ कहा जाता है अर्थात् (एकल विक्रेता-एकाधिक खरीदार)। ‘रिवर्स फैक्टरिंग’ (एकल खरीदार-एकाधिक विक्रेता) के मामले में खरीदार द्वारा लेन-देन शुरू किया जाता है और ब्याज़ लागत को भी खरीदार द्वारा वहन किया जाता है।
TReDS के मुख्य लाभ
सभी सहभागियों के लिये
- स्वचालित पारदर्शी प्लेटफॉर्म
- पेपरलेस और परेशानीमुक्त
- लागत में कमी
विक्रेता को लाभ
- प्रतिस्पर्द्धी मूल्य की खोज
- विक्रेता पर किसी प्रकार के दायित्व का न होना (Without Recourse)।
- MSMEs को सबसे बेहतर बोली चुनने का अधिकार।
- भुगतान हेतु खरीदार के साथ किसी तरह की अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की जाती।
- एकल वित्तपोषक पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं होती।
- उत्पादकता में वृद्धि और दक्षतापूर्ण चलनिधि प्रबंधन।
- वित्तपोषण के विकल्पों में वृद्धि।
ख़रीदारों को लाभ
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास, अधिनियम 2006 (MSMED अधिनियम, 2006) के प्रावधानों का अनुपालन।
- MSME, विक्रेताओं के साथ बेहतर शर्तों के लिये मोल-तोल कर सकते हैं।
- खरीदारों के लिये निविष्टि (इनपुट) की कम लागत।
- कम प्रशासनिक लागत।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्य की खोज।
- कुशल नकदी प्रवाह प्रबंधन।
- यह सुनिश्चित करना कि उनके विक्रेताओं को नकदी/कार्यशील पूंजी की कमी नहीं है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) द्वारा वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2019 जारी किया गया। इसमें दुनिया के 115 देशों की ऊर्जा प्रणाली के प्रदर्शन स्तर पर सर्वेक्षण किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक में इस साल भारत को 76वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि पिछले साल यह 78वें स्थान पर था।
- दक्षिण एशियाई देशों में श्रीलंका ही एक ऐसा देश है जो भारत से आगे है इसे 60वाँ स्थान मिला है।
- अन्य पड़ोसी देशों की रैंकिंग इस प्रकार है :
देश | वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2019 |
चीन | 82 |
बांग्लादेश | 90 |
नेपाल | 93 |
पाकिस्तान | 97 |
- स्वीडन अपनी पिछले साल की रैंकिंग को बरकरार रखते हुए इस साल भी प्रथम स्थान पर है, जबकि हैती को सबसे आख़िरी पायदान प्राप्त हुआ है।
- ब्रिक्स देशों में भी भारत को दूसरे सबसे बेहतर देश का स्थान प्राप्त हुआ है जबकि ब्राज़ील 46वें रैंक के साथ पहले स्थान पर है।
- उभरते और विकासशील देशों की श्रेणी में मलेशिया 31वीं रैंक हासिल कर पहले पायदान पर है।
ऊर्जा सूचकांक
- इसे विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) द्वारा जारी किया जाता है।
- इसके अंतर्गत दुनिया के देशों द्वारा ऊर्जा सुरक्षा और सतत पर्यावरण को बनाए रखने का उल्लेख किया जाता है।
- इसमें विभिन्न देशों के प्रदूषण स्तर का आकलन भी होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच सालों से ऊर्जा संरक्षण मामले में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है।
- ऊर्जा संक्रमण के लिये तैयारी के घटक में शामिल 6 संकेतक निम्नलिखित हैं :
- पूंजी और निवेश
- विनियमन और राजनीतिक प्रतिबद्धता
- संस्थान और शासन
- संस्थान और अभिनव व्यावसायिक वातावरण
- मानव पूंजी और उपभोक्ता भागीदारी
- ऊर्जा प्रणाली संरचना
भारत के संदर्भ में
- भारत को उच्च प्रदूषण स्तर वाले देशों की सूची में शामिल किया गया है, क्योंकि CO2 के उत्सर्जन में दूसरे देशों के सापेक्ष भारत अग्रणी है।
- भारत कोयला के उपभोग में भी वृद्धि कर रहा है।
- भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के लिये नीतियाँ बनाने में शीर्ष तीन देशों में शामिल किया गया है।
- विद्युतीकरण की दिशा में सबसे तीव्र दर से विकास करने वाले देशों में भी भारत शामिल है।
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)
- विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
- यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
- इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
- इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर प्रदान की जानी है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
- इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।
स्रोत - बिज़नेस लाइन (द हिंदू)
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (26 March)
- 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNAIDS ने जानकारी दी है कि भारत ने एड्स जनित टीबी से होने वाली मौतों को रोकने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। भारत ने यह कमी 2020 की तय समय-सीमा से तीन महीने पहले हासिल की है तथा टीबी से होने वाली मौतों के मामले में 20 से अधिक देशों में सर्वाधिक गिरावट भारत में देखी गई है। वैसे 2010 के बाद दुनियाभर में इन मौतों में 42% के कमी हुई है और ऐसी टीबी से मरने वालों की संख्या 52 लाख से घटकर 30 लाख रह गई है। गौरतलब है कि HIV संक्रमण के बाद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने के कारण टीबी की वज़ह से सबसे अधिक रोगियों की मौत होती है।
- 25 मार्च को भारतीय वायुसेना में चिनूक हैवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर की पहली यूनिट को शामिल किया गया। CH-47F (I) चिनूक एक उन्नत बहुद्देशीय हेलीकॉप्टर है, जिसका इस्तेमाल सैनिकों, हथियारों, उपकरण और ईंधन को ढोने में किया जाता है। इसका इस्तेमाल मानवीय और आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है। राहत सामग्री पहुंचाने तथा बड़ी संख्या में लोगों को बचाने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी बोइंग ने चिनूक को भारत की ज़रूरतों के लिहाज से तैयार किया है। वर्तमान में कई बड़े देशों की वायुसेनाएं चिनूक हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही हैं। चिनूक हेलीकॉप्टर सिर्फ दिन में नहीं, बल्कि रात में भी सैन्य ऑपरेशन को अंजाम दे सकता है। आपको बता दें कि अमेरिका में पर्वतीय ढाल के सहारे चलने वाली गर्म व शुष्क पवन को चिनूक कहते हैं। यह पवन रॉकी पर्वत की पूर्वी ढाल में कोलारेडो से उत्तर में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तक चलती है।
- करतारपुर कॉरीडोर पर सहमति बन जाने के बाद पाकिस्तान ने शारदा पीठ कॉरीडोर खोलने को भी मंज़ूरी दे दी है। कश्मीरी पंडित काफी समय से इसे खोलने की मांग करते रहे हैं। पिछले काफी समय से लाइन ऑफ कंट्रोल से 10 किमी. और कुपवाड़ा से 22 किमी. दूर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित शारदा पीठ के लिये कॉरीडोर बनाने पर विचार चल रहा है। भारत सरकार इस मामले में कई बार पाकिस्तान सरकार से आग्रह कर चुकी है। माना जाता है कि सम्राट अशोक ने 237 ईसा पूर्व में इसका निर्माण कराया था और छठी तथा 12वीं शताब्दी के बीच शारदा पीठ अध्ययन का बड़ा केंद्र हुआ करता था।
- आंध्र प्रदेश की यनादि (Yanadi) जनजाति के लगभग 2000 लोग आगामी लोकसभा चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे। 10 स्वयंसेवकों के एक समूह ने इन लोगों को मताधिकार का उपयोग करने में सक्षम बनाया है। राज्य के कृष्णा ज़िले में पाई जाने वाली यह घुमंतू जनजाति लगातार एक मौसम से अगले मौसम तक रोज़गार की तलाश में भटकती रहती है। इनमें से अधिकांश लोग जंगली केकड़ों और मछलियों का शिकार करने के लिये मैंग्रोव जंगलों और दलदली भूमि के निकट रहते हैं और एक स्थान पर टिककर न रह पाने की वज़ह से सरकारी अधिकारियों को इन तक पहुँचने में कठिनाई आती थी। इसके अलावा, इस जनजाति को राजनीतिक अधिकारों और वोट के महत्त्व से दूर रखने में अशिक्षा भी एक बड़ी वज़ह रही है।
- कंपनी नियामक को दी गई जानकारी के अनुसार भारी घाटे और कर्ज़ के बोझ तले दबी जेट एयरवेज़ के चेयरमैन नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनिता गोयल ने बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद लंबे समय से वित्तीय संकट से जुझ रही जेट एयरवेज़ को अब बैंक की अध्यक्षता वाला बोर्ड चलाएगा और जेट एयरवेज़ को बैंकों की तरफ से 1500 करोड़ रुपए तक का तत्काल वित्तपोषण मिलेगा। बैंक इसके बदले कंपनी के निदेशक मंडल में दो सदस्यों को नामित करेंगे और एयरलाइन के दैनिक परिचालन के लिये अंतरिम प्रबंधन समिति बनाई जाएगी। आपको बता दें कि नरेश गोयल ने अपनी पत्नी अनिता के साथ मिलकर 1993 में इसकी शुरुआत की थी। अबु धाबी स्थित एतिहाद की जेट एयरवेज़ में 24 फीसदी हिस्सेदारी है। अब नरेश गोयल की जेट एयरवेज़ में 51 फीसदी हिस्सेदारी घटकर 25.5 फीसदी पर आ गई है। फिलहाल जेट एयरवेज़ पर कई सरकारी और विदेशी बैंकों का कर्ज़ है।
- अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने अगले वित्त वर्ष (2019-20) के लिये अपना ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक पेश करते हुए चालू वित्त वर्ष (2018-19) में भारत की विकास दर 6.9 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जो सेंट्रल स्टेटिस्टिकल ऑफिस (CSO) के सात फीसदी के अनुमान से कुछ ही कम है। इससे पूर्व फिच ने पिछले वर्ष दिसंबर में चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। पिछले वित्त वर्ष (2017-18) में भी भारत की विकास दर 7.2 फीसदी रही थी। फिच के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में भारत की विकास दर 6.8 फीसदी तथा 2020-21 में 7.1 फीसदी रहेगी।
- चंद्रमा पर भारत के दूसरे अभियान चंद्रयान-2 के साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का एक लेज़र उपकरण भी भेजा जाएगा। इस उपकरण की मदद से पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का सटीक पता चल सकेगा। आपको बता दें कि चंद्रयान-2 से पहले इज़राइल के बेयरशीट लैंडर (Beresheet Lander) के साथ भी नासा का लेज़र रेट्रोरिफलेक्टर भेजा गया है। बेयरशीट के 11 अप्रैल को चंद्रमा पर उतरने की संभावना है। चंद्रमा पर पहले से पाँच लेज़र रिफलेक्टर मौजूद हैं, लेकिन उनमें कई खामियाँ हैं और कुछ का आकार बहुत बड़ा है। रिफलेक्टर एक तरह का शीशा होता है जो पृथ्वी से आने वाले लेज़र लाइट सिग्नल को प्रतिबिंबित करता है। इस सिग्नल की मदद से वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि कोई भी यान चंद्रमा के किस हिस्से पर मौजूद है। यह चंद्रमा के बदलते तापमान का पता लगाने में भी मदद कर सकता है।
- ओमान ने अमेरिका के साथ एक समझौता करके उसके जलपोतों और युद्धक विमानों को अपने बंदरगाहों और हवाई अड्डों का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी है। अब अमेरिका के पोतों और विमानों को ओमान के कुछ बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा। इनमें खासतौर पर दक्कम बंदरगाह शामिल है। यह बंदरगाह दक्षिणी ओमान में अरब सागर में स्थित है जो होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) से करीब 500 किलोमीटर दूर है। यह जलडमरूमध्य दुनियाभर में कच्चे तेल की आपूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण मार्ग है। इस समझौते का उद्देश्य ओमान और अमेरिका के बीच सैन्य संबंधों को मज़बूत करना है। आपको बता दें कि भारतीय प्रधानमंत्री की पिछले वर्ष हुई ओमान यात्रा के दौरान एक विशेष समझौता हुआ था, जिसके तहत भारत ओमान के दक्कम बंदरगाह का सैन्य इस्तेमाल कर सकता है। गौरतलब है कि इसी वर्ष 10 फरवरी को भारतीय वायुसेना के लिये चार चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह पर हुई थी।
- कुछ समय पहले तक दक्षिण अमेरिकी देश चिली की राजधानी सेंटियागो से कुछ दूर नीले पानी वाली आकुलियो झील हुआ करती थी, लेकिन अब इस झील का कोई नामोनिशान नहीं है। जिस 12 वर्ग किमी. क्षेत्र में यह झील फैली थी, वहां अब एक विशाल गड्ढा है। यहाँ सूखी मिट्टी पर गायों और घोड़ों के कंकाल बिखरे हुए हैं। यह इलाका पिछले 10 वर्षों से सूखे का सामना कर रहा है। पर्यावरणविद इस घटना को जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभाव के तौर पर देख रहे हैं।