जहाज़ों का संग्रहालयों में परिवर्तन
प्रीलिम्स के लिये:संघीय बजट में जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने का प्रावधान मेन्स के लिये:जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने का उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
संघीय बजट 2020-21 में गुजरात के लोथल में एक समुद्री संग्रहालय स्थापित करने का उल्लेखनीय प्रावधान किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- संघीय बजट: 2020-21 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पर्यटन और सांस्कृतिक गंतव्य के रूप में भारत की क्षमता को बढ़ाने के लिये कई महत्त्वपूर्ण पहलों की घोषणा की थी, जिनमें से एक गुजरात के लोथल में समुद्री संग्रहालय स्थापित करने का निर्णय लेना है।
- सेवानिवृत्त नौसैनिक जहाज़ों को संग्रहालयों में संरक्षित करके देश की समुद्री पर्यटन क्षमता को बढ़ाने में भारत का रिकॉर्ड कमज़ोर रहा है।
जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने के संदर्भ में पूर्व में लिये गए निर्णय:
- समुद्री संग्रहालय की स्थापना के विचार के संदर्भ में वर्ष 2019 में दो निर्णय लिये गए थे।
- सबसे पहले, तमिलनाडु सरकार ने जुलाई में एक संग्रहालय के रूप में सेवानिवृत्त पनडुब्बी आईएनएस वागली को संरक्षित करने की परियोजना को छोड़ने का निर्णय लिया।
- आईएनएस विक्रांत को भी संग्रहालय के रूप में संरक्षित करने का विचार छोड़ दिया गया।
जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने का उद्देश्य:
- सेवानिवृत्त नौसैनिक जहाज़ों के भंजन के बजाय उन्हें संरक्षित करने से वृहद् आर्थिक परिदृश्य का निर्माण होता है।
- सामान्य तौर पर संग्रहालय कई अर्थों में अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, उदाहरण के लिये पर्यटन को बढ़ावा देना, रोज़गार पैदा करना, सरकारी राजस्व में योगदान करना और स्थानीय समुदायों के विकास का समर्थन करना।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संग्रहालयों का महत्त्व:
- वर्ष 2018 में किये गए ‘म्यूज़ियम्स इन इकोनॉमिक इंजन’ नामक एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में संग्रहालयों के माध्यम से 7,26,200 लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है तथा ये सकल घरेलू उत्पाद में हर साल $ 50 बिलियन का योगदान देकर प्रतिवर्ष $ 12 बिलियन कर राजस्व जुटाते हैं।
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में उत्पादित $ 100 की तुलना में संग्रहालय क्षेत्र $ 220 अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करता है।
- अमेरिका में ऐसे 60 पनडुब्बी आधारित संग्रहालय हैं।
इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था में संग्रहालयों का महत्त्व:
- ‘द इकोनॉमिक इम्पैक्ट ऑफ म्यूज़ियम इन इंग्लैंड’ नामक एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि इंग्लैंड में संग्रहालय क्षेत्र कुल आय में £ 2.64 बिलियन का योगदान देता है तथा £ 1.45 बिलियन की शुद्ध आगत के रूप में 38,165 व्यक्तियों को नौकरियाँ प्रदान करता है।
- इंग्लैंड में ऐसे 11 पनडुब्बी आधारित संग्रहालय हैं।
भारतीय संदर्भ में संग्रहालयों का महत्त्व:
- भारत के सामने एक बड़ी चुनौती युवा आबादी के लिये रोज़गार के पर्याप्त अवसर पैदा करने की है।
- ऐसे में सरकार का ध्यान उन सेवाओं तथा उद्योगों को बढ़ावा देने पर होना चाहिये जिनमें रोज़गार की संभावना अधिक है।
- पर्यटन और संबद्ध उद्योग रोज़गार की आवश्यकता की पूर्ति के लिये उपयुक्त विकल्प होते हैं, क्योंकि ये क्षेत्र दुनिया भर में शीर्ष रोज़गार सृजित करने वाले क्षेत्र साबित हुए हैं।
- उत्कृष्ट संग्रहालय प्रायः पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं जो स्थानीय और विदेशी आगंतुकों को आकर्षित करते हैं।
- संग्रहालय ऐतिहासिक मूल्यों को संरक्षित करने वाले स्थान के रूप में भी कार्य करते हैं।
- ये भविष्य की पीढ़ियों के लिये देश की विरासत को संरक्षित करते हैं और देश के इतिहास और संस्कृति के बारे में आम जनमानस को जानकारी प्रदान करते हैं।
- सैन्य और समुद्री संग्रहालयों के कुछ अतिरिक्त लाभ भी होते हैं, जैसे- इनका उपयोग सैन्य नायकों का सम्मान करने, रक्षा कर्मियों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों के बारे में आम जनता को जागरूक करने और युवा पीढ़ी को सशस्त्र बलों में शामिल होने हेतु प्रेरित करने के लिये किया जा सकता है।
जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने के मार्ग में आने वाली समस्याएँ:
- नौसैनिक जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने में एक महत्त्वपूर्ण समस्या उनके रखरखाव में आने वाली लागत है।
- ऐसे संग्रहालयों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से फंडिंग के साथ-साथ पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने की भी आवश्यकता होती है।
सुझाव:
- केवल सेवानिवृत्त नौसैनिक जहाज़ों का प्रदर्शन ही आगंतुकों की वांछित संख्या को आकर्षित नहीं करेगा। इसके लिये युद्धपोत संग्रहालयों को कई प्रकार की सेवाओं और मनोरंजन विकल्पों से युक्त करने की आवश्यकता है।
- सांस्कृतिक संस्थानों के निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी ने उन्नत देशों में बहुत अच्छा काम किया है।
- इन जहाज़ों पर वर्चुअल फ्लाइट ज़ोन बनाने और विभिन्न कार्यक्रमों की प्रस्तुति की अनुमति प्रदान करने की आवश्यकता है।
- इस तरह के संग्रहालयों की व्यावसायिक क्षमता का एहसास कराने और उनके प्रबंधन में व्यावसायिकता प्रदान करने के लिये निजी क्षेत्र का सहयोग आवश्यक है।
- यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी ने फुटबॉल और कबड्डी जैसे खेलों में कैसी क्रांति ला दी है। अतः यह उचित समय है जब सेवानिवृत्त नौसैनिक जहाज़ों को संरक्षित करने के लिये निजी क्षेत्र का उचित उपयोग किया जाना चाहिये।
अन्य बिंदु:
- इंग्लैंड में 11, रूस और जर्मनी में 10 और फ्राँस में पाँच पनडुब्बी आधारित संग्रहालय हैं।
- कई देशों ने अपने सेवानिवृत्त नौसैनिक युद्धपोतों को संग्रहालयों के रूप में संरक्षित किया है, अमेरिका इस सूची में शीर्ष पर है।
- विशाखापत्तनम में पनडुब्बी संग्रहालय के रूप में भारत केवल एक नौसैनिक पोत आईएनएस कुरसुरा का संरक्षण कर रहा है।
- कई भारतीय शहरों में मनोरंजन के सीमित विकल्प हैं। नौसेना जहाज़ संग्रहालय मनोरंजन का एक उचित विकल्प प्रदान करेंगे।
स्रोत- द हिंदू
भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी
प्रीलिम्स के लिये:ब्लू डॉट नेटवर्क, भारत-अमेरिका प्रमुख समझौते मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका के संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका ने व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के लिये विज़न और सिद्धांतों (Vision and Principles) पर संयुक्त वक्तव्य (Joint Statement) जारी किया।
भारत-अमेरिका द्वारा हस्ताक्षरित सहमति पत्र (Agreement Letter):
- मानसिक स्वास्थ्य पर सहमति पत्र
- चिकित्सा उत्पादों की सुरक्षा पर सहमति पत्र
- सहयोग पत्र
व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी:
- भारत-अमेरिका ने व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के लिये आपसी विश्वास, साझा हित, साख तथा नागरिक भागीदारी बढ़ाने पर बल दिया।
- रक्षा क्षेत्र:
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग की मज़बूती जिसमें विशेष रूप से समुद्री और अंतरिक्ष में जागरूकता एवं सूचना साझा करने के माध्यम से सहयोग पर दोनों राष्ट्रों द्वारा सहमति व्यक्त की गई।
- सैन्य संपर्क, उन्नत प्रशिक्षण, सैन्य अभ्यास, उन्नत रक्षा घटकों का सह-उत्पादन तथा रक्षा उद्योगों के बीच साझेदारी बढ़ाने पर बल देने के साथ ही दोनों देशों ने ‘बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौते’ ( Basic Exchange and Cooperation Agreement- BECA) सहित अन्य रक्षा समझौतों को शीघ्र पूरा करने के लिये तत्परता ज़ाहिर की है।
- दोनों देशों ने मानव तस्करी, आतंकवाद और हिंसक अतिवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी तथा साइबर अपराध से लड़ने के लिये सहयोग हेतु सहमति दी तथा द्विपक्षीय वाणिज्यिक संबंधों, समृद्धि, निवेश और रोज़गार सृजन को पूरी क्षमता से आगे बढ़ाने पर बल दिया।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- अपनी सामरिक ऊर्जा भागीदारी के माध्यम से भारत और अमेरिका ने ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने, संबंधित ऊर्जा क्षेत्रों में नवाचार में सहयोग बढ़ाने पर सहमति दी। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत भी अपने कोकिंग/धातुकर्म कोयला और प्राकृतिक गैस के आयात में विविधता लाना चाहता है।
- भारत में छह परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिये जल्द-से-जल्द तकनीकी प्रस्ताव को अंतिम रूप देने हेतु दोनों देशों ने कार्य करने पर सहमति व्यक्त की है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में सहयोग पर दोनों देशों ने संतोष व्यक्त किया है। दुनिया के पहले दोहरे-आवृत्ति वाले ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह’ (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar-NISAR) उपग्रह को वर्ष 2022 तक विकसित कर उसे लॉन्च किया जाएगा।
- इसके अलावा पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, मंगल और अन्य ग्रहों के लिये मिशन, हेलियोफिज़िक्स (Heliophysics), मानव स्पेसफ्लाइट तथा वाणिज्यिक अंतरिक्ष सहयोग में अग्रिम मदद पर सहमति दी गई।
- ‘यंग इनोवेटर्स’ इंटर्नशिप के माध्यम से उच्च शिक्षा में सहयोग को बढ़ाने, उच्च गुणवत्ता, सुरक्षित, प्रभावी और सस्ती दवाओं तक उपभोक्ताओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये एक द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर करना।
- भारत और अमेरिका ने एक ऐसे नवीन डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया जो सुरक्षित तथा विश्वसनीय हो।
इंडो-पैसिफिक में सामरिक अभिसरण:
- आसियान और हिंद महासागर:
- दोनों देश एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी, शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र का निर्माण करना चाहते हैं तथा इस सहयोग को आसियान को केंद्र में रखकर आगे बढ़ाना चाहते हैं।
- अमेरिका, भारत की हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा के शुद्ध प्रदाता (Net Provider of Security) के साथ-साथ विकासात्मक और मानवीय सहायता के रूप में सराहना करता है।
- दक्षिण चीन सागर:
- भारत और अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर के संदर्भ में एक सार्थक आचार संहिता (Meaningful Code of Conduct) के निर्माण की दिशा में कार्य करने पर बल दिया है।
- मंचों का निर्माण:
दोनों देश विभिन्न मंचों के माध्यम से समुद्री सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए हैं-- भारत-अमेरिकी-जापान त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन।
- 2+2 भारत तथा अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों की मंत्रिस्तरीय बैठक।
- अमेरिकी-भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान विमर्श के लिये चतुर्भुज।
ग्लोबल लीडरशिप के लिये साझेदारी:
- संगठनात्मक सुधार:
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की मज़बूती, संरचनात्मक सुधार तथा उनकी सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के लिये मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जाहिर की।
- अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत के प्रवेश का समर्थन करने का आश्वासन दिया है।
- विभिन्न क्षेत्रों में पहल:
- ब्लू डॉट नेटवर्क (Blue Dot Network) की अवधारणा में दोनों देशों ने रुचि दिखाई है।
ब्लू डॉट नेटवर्क:
- यह एक बहु-हितधारक पहल है जो वैश्विक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उच्च गुणवत्ता वाले विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाएगी।
महिला सशक्तीकरण की दिशा में अमेरिका की 'वुमेन्स ग्लोबल डेवलपमेंट एंड प्राॅस्पेरिटी’ (Women’s Global Development and Prosperity- W-GDP) पहल और भारत सरकार के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम के माध्यम से सहयोग करना।
W-GDP पहल:
- इस पहल को व्हाइट हाउस अमेरिका ने फरवरी 2019 में वैश्विक महिला आर्थिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने के लिये प्रयास के रूप में शुरू किया था। इसके तीन स्तंभ है-
- कार्यबल में समृद्ध महिलाएँ
- उद्यमी के रूप में सफल होने वाली महिलाएँ
- महिलाएँ और सक्षम अर्थव्यवस्था
- इसमें वर्ष 2025 तक विकासशील देशों की 50 मिलियन महिलाओं तक पहुँच स्थापित करना है।
अफगान नीति:
- भारत और अमेरिका संप्रभु, लोकतांत्रिक, समावेशी, स्थिर तथा समृद्ध अफगानिस्तान चाहते हैं। वे अफगानिस्तान के नेतृत्व व अफगानिस्तान के स्वामित्व वाली ऐसी सरकार चाहते हैं जो शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन करती हो ताकि वहाँ स्थायी शांति स्थापित की जा सके।
आतंकवाद रोधी पहल:
- दोनों देशों ने किसी भी प्रकार के आतंवाद तथा सीमा पार आतंकवाद की कड़ी निंदा की और अल-कायदा, आईएसआईएस, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल-मुज़ाहिदीन, हक्कानी-नेटवर्क, डी-कंपनी, एवं उनके सहयोगियों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया।
आगे की राह:
- वर्तमान अमेरिकी प्रशासन अपने व्यापार को सामरिक नज़रिये से देखने का प्रयास कर रहा है, ऐसे में भारत को अपने पड़ोसियों के साथ भी संबंधों को प्रगाढ़ बनाए रखने की आवश्यकता है।
स्रोत: PIB
डेटा स्थानीयकरण से संबंधित मुद्दे
प्रीलिम्स के लिये:व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 मेन्स के लिये:डेटा स्थानीयकरण से संबंधित मुद्दे, डेटा संरक्षण से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
डेटा स्थानीयकरण वर्तमान समय में सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, इसी संदर्भ में भारत सरकार ने भी व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 (Personal Data Protection Bill, 2019) को शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया था।
- विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिये संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है जहाँ विधेयक में शामिल बिंदुओं पर व्यापक चर्चा की जाएगी।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून एक व्यापक कानून है जो व्यक्तियों को इस बात पर अधिक नियंत्रण देने का प्रयास करता है कि उनका व्यक्तिगत डेटा कैसे एकत्रित, संग्रहीत और उपयोग किया जाता है।
- एक बार पारित होने के बाद यह कानून वर्तमान भारतीय गोपनीयता कानून में भारी सुधार का वादा करता है जो कि अपर्याप्त और अनुचित रूप से लागू किया गया है।
विधेयक में डेटा स्थानीयकरण संबंधी प्रावधान
- विधेयक में स्पष्ट उल्लेख है कि व्यक्तियों द्वारा स्पष्ट सहमति देने और विशेष शर्तों पर ही संवेदनशील पर्सनल डेटा को भारत से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। हालाँकि ऐसे संवेदनशील पर्सनल डेटा को भारत में भी स्टोर किया जाना चाहिये।
- जिस संवेदनशील डेटा को सरकार महत्त्वपूर्ण डेटा के तौर पर अधिसूचित करेगी, उसे केवल भारत में ही प्रोसेस किया जा सकता है।
डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में तर्क
डेटा स्थानीयकरण के संदर्भ में मूलतः 3 तर्क दिये जाते हैं:
- डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में एक महत्त्वपूर्ण तर्क यह दिया जाता है कि स्थानीय स्तर पर डेटा संग्रहीत करने से कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी अपराध का पता लगाने या साक्ष्य इकट्ठा करने के लिये आवश्यक जानकारी का उपयोग करने में मदद मिलती है।
- गौरतलब है कि जहाँ डेटा का स्थानीयकरण नहीं होता है वहाँ जाँच एजेंसियों को जानकारी प्राप्त करने के लिये पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (Mutual Legal Assistance Treaties-MLATs) पर निर्भर रहना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप जाँच-पड़ताल में विलंब होता है।
- डेटा स्थानीयकरण से स्थानीय अवसंरचना, रोज़गार और AI पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान के मामले में स्थानीय उद्योग को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।
- नागरिक स्वतंत्रता के संरक्षण के संबंध में तर्क यह है कि डेटा की स्थानीय होस्टिंग भारतीय कानून को डेटा पर लागू करने और उपयोगकर्त्ताओं को स्थानीय उपचार तक पहुँच प्रदान कर डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा में वृद्धि करेगा।
विपक्ष में तर्क
- विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सभी देश डेटा के संरक्षण पर बल देने लगे तो यह भारत की उन कंपनियों के लिये बेहद हानिकारक हो सकता है, जो वैश्विक विस्तार की आकांक्षी हैं।
- जहाँ एक ओर भारत और चीन डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में हैं, तो वहीं दूसरी ओर अमेरिकी सरकार तथा कंपनियाँ निर्बाध डेटा प्रवाह को ज़रूरी समझते हैं।
- आलोचकों का मानना है कि डेटा स्थानीयकरण की संकल्पना वैश्वीकरण की संकल्पना के विपरीत है तथा यह संरक्षणवाद को बढ़ावा देता है।
कंपनियाँ डेटा भंडारण और स्थानीयकरण में असमर्थ क्यों हैं?
- उच्च लागत- डेटा के स्थानीयकरण का कार्य कंपनियों के लिये उच्च लागत वाला है क्योंकि इसके लिये उन्हें सर्वर, यू.पी.एस., जनरेटर, भवन और कर्मियों सहित बहुत सी अन्य भौतिक एवं अवसंरचनात्मक लागतों को वहन करना पड़ेगा।
- सूचना प्रौद्योगिकी के लिये आधारिक संरचना: कंपनियों को लगता है कि भारत में अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी के लिये अनुकूल परिस्थितियों तथा आधारिक अवसंरचना का अभाव है। भारत में किसी भी बड़े ई-कॉमर्स व्यापारी हेतु कानूनी प्रावधानों के तहत यह लागत 10% से 50% के बीच हो सकती है।
- भारत में सेवाएँ प्रदान करने वाली छोटी कंपनियों के लिये मानदंडों का अनुपालन कर पाना मुश्किल होगा। वास्तव में डेटा स्थानीयकरण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक उद्देश्य भारत में स्टार्ट-अप क्षेत्र को बढ़ावा देना भी है। लेकिन भारत सरकार द्वारा निर्धारित सख्त मानदंड छोटी कंपनियों के लिये इसे काफी महँगा बना सकते हैं जिससे सरकार के उद्देश्य को पूरा करना संभव नहीं होगा।
आगे की राह
- देश में डेटा स्थानीयकरण के साथ-साथ डेटा की सुरक्षा पर भी व्यापक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, साथ ही साइबर सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- भारत को नागरिकों के निजता के अधिकार की रक्षा के लिये डेटा के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में कदम उठाना चाहिये।
- नीति निर्माताओं को विश्व स्तर पर सफल होने के लिये भारतीय उद्यमियों की परिवर्तनकारी शक्ति पर विश्वास करना चाहिये और इन उद्यमियों को गोपनीयता और डेटा प्रवाह के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास करना चाहिये।
- भारतीय नीतियों में यूरोपीय संघ के डेटा स्थानांतरण मॉडल (EU’s Data Transfer Model) और CLOUD अधिनियम से भी कुछ प्रावधानों का समावेश किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
असम समझौते की धारा-6
प्रीलिम्स के लिये:असम समझौता, असम समझौते की धारा-6 मेन्स के लिये:असम समझौते की धारा-6 से संबंधित चुनौतियाँ और इस संदर्भ में की गई कार्यवाहियाँ |
चर्चा में क्यों?
असम समझौते की धारा-6 के कार्यान्वयन हेतु गठित 15 सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार द्वारा इस समिति का गठन जुलाई 2019 में न्यायमूर्ति बिप्लब कुमार सरमा की अध्यक्षता में असम समझौते की धारा-6 के कार्यान्वयन की समीक्षा करने और इस संदर्भ में सिफारिश करने के लिये की गई थी।
- असम सरकार यह रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिये गृह मंत्रालय को भेजेगी।
- ज्ञात हो कि इस समिति में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (All Assam Students’ Union-AASU) के तीन प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
असम समझौता
- वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्रवाई शुरू हुई तो वहाँ के लगभग 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली। हालाँकि बांग्लादेश बनने के पश्चात् इनमें से अधिकांश वापस लौट गए, किंतु फिर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में ही अवैध रूप से रहने लगे।
- वर्ष 1971 के बाद भी जब बांग्लादेशी अवैध रूप से असम आते रहे तो इस जनसंख्या परिवर्तन ने असम के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दी और वर्ष 1978 के आस-पास वहाँ एक आंदोलन शुरू हुआ।
- असम में घुसपैठियों के खिलाफ वर्ष 1978 से शुरू हुए लंबे आंदोलन और वर्ष 1983 की भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई।
- इसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते (Assam Accord) के नाम से जाना जाता है।
- असम समझौते के मुताबिक, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।
- समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया। साथ ही 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, किंतु उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
असम समझौते की धारा-6
- असम समझौते की धारा-6 में असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान और धरोहर के संरक्षण तथा उसे बढ़ावा देने के लिये उचित संवैधानिक, विधायी तथा प्रशासनिक उपाय करने का प्रावधान है। इस संदर्भ में गठित समिति का कार्य इन प्रावधानों को लागू करने के लिये वर्ष 1985 से अब तक उठाए गए कदमों की समीक्षा करना था।
- तथापि यह महसूस किया गया है कि असम समझौते की धारा-6 को समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के लगभग 35 वर्ष बाद भी पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।
- इसलिये केंद्र सरकार ने असम समझौते की धारा-6 के संदर्भ में संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षात्मक उपायों से संबंधित सिफारिशें देने के लिये समिति का गठन किया था।
धारा-6 के तहत की गई कार्यवाही:
- वर्ष 1961 में असम समझौते की धारा-6 के तहत असम सरकार ने ज्योति चित्रबन फिल्म स्टूडियो का गठन किया था। असम सरकार तथा भारत सरकार (असम समझौते के तहत) द्वारा की जा रही वित्तीय सहायता के कारण यहाँ सभी प्रकार की आधुनिक तकनीक उपलब्ध है।
- ज्योति चित्रबन फिल्म स्टूडियो के आधुनिकीकरण हेतु भारत सरकार ने 10 करोड़ रुपए की परियोजना को मंज़ूरी दी है, वर्तमान में आधुनिकीकरण का कार्य प्रगति पर है।
- वर्ष 1998 में असम के लोगों की संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन और उत्थान हेतु कार्य करने के लिये केंद्र व असम सरकार द्वारा संयुक्त रूप से श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र सोसायटी का गठन किया गया था।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा असम के पाँच स्मारकों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास का कार्य आरंभ किया गया है। ये स्मारक हैं (1) सिंगरी मंदिर के अवशेष (2) उर्वशी पुरातत्त्व स्थल (3) पोवा-मेक्काय, हाजो (4) केदार मंदिर, हाजो (5) हयाग्रिवा माधव मंदिर, हाजो।
चुनौती
- असम के पूर्व मुख्यमंत्री और AASU के प्रतिनिधि के रूप में असम समझौते के हस्ताक्षरकर्त्ता प्रफुल्ल महंत के अनुसार, असम समझौते की धारा-6 को असम की जनसांख्यिकी और राज्य की संस्कृति पर वर्ष 1951 और वर्ष 1971 के मध्य प्रवासन के प्रभाव के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में कार्य करना चाहिये था, किंतु यह संभव नहीं हो पाया है।
- कई विशेषज्ञ नागरिकता संशोधन अधिनियम के असम समझौते पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं।
आगे की राह
- राज्य में असमिया बनाम बाहरी का मुद्दा कोई नया नहीं है, बल्कि देश की आज़ादी के बाद से यह वहाँ के ज्वलंत मुद्दों में सबसे ऊपर रहा है।
- इस मुद्दों को सुलझाने के लिये अब तक कई प्रयास किये गए हैं, किंतु इसके बावजूद सफलता नहीं मिल सकी है।
- आवश्यक है कि इस मुद्दे से संबंधित विभिन्न हितधारक एक मंच पर एकत्रित होकर यथासंभव संतुलित उपाय खोजने का प्रयास करें।
स्रोत: द हिंदू
वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2019
प्रीलिम्स के लिये:वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2019 मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलू |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2019 (World Air Quality Report) के अनुसार, वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे गंभीर खतरों में से एक है और विश्व की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी असुरक्षित वायु में साँस लेने के लिये विवश है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट में दी गई रैंकिंग के अनुसार, वर्ष 2019 में बांग्लादेश विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में पहले स्थान पर था। हालाँकि बांग्लादेश के समग्र प्रदूषण में तो कमी हुई है, किंतु वह अपेक्षाकृत काफी कम है।
- बांग्लादेश के पश्चात् इस रैंकिंग में पाकिस्तान (दूसरा), मंगोलिया (तीसरा) और अफगानिस्तान (चौथा) का स्थान आता है।
- चीन को इस रैंकिंग में 98 देशों में 11वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। हालाँकि अभी भी चीन के 98 प्रतिशत शहरों में PM2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित मापदंडों से अधिक है।
- भारत के अन्य पड़ोसी देशों में नेपाल 8वें स्थान पर और म्याँमार 20वें स्थान पर है।
PM2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से होता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000001 मीटर) या उससे कम होता है और इसीलिये इसे PM2.5 के नाम से भी जाना जाता है।
- 98 देशों की इस रैंकिंग में बहामास (Bahamas) को वायु प्रदूषण के मामले में सबसे स्वच्छ देश का स्थान प्राप्त हुआ है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, मलेशिया और चीन जैसे देशों में वनाग्नि और खुले में कृषि अवशेषों को जलाने जैसी प्रथाओं का वायु की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
- इसके अलावा मध्य पूर्व और पश्चिम चीन में मरुस्थलीकरण तथा सैंडस्टॉर्म (Sandstorms) बड़ी भूमिका निभाते हैं।
भारत से संबंधित बिंदु
- इस रिपोर्ट में प्रदूषण को लेकर दी गई रैंकिंग में भारत 5वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में गाज़ियाबाद विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर था।
- हालाँकि भारत के समग्र वायु प्रदूषण में वर्ष 2018 के मुकाबले वर्ष 2019 में कमी देखने को मिली है, किंतु अभी भी विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 30 शहरों में से 21 शहर भारत के हैं। भारतीय शहरों को लेकर वायु प्रदूषण के उक्त आँकड़े चौंकाने वाले हैं।
रिपोर्ट के निहितार्थ
- वर्ष 2019 के वायु गुणवत्ता संबंधी आँकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन प्रत्यक्ष तौर पर वनाग्नि और सैंडस्टॉर्म आदि के माध्यम से वायु प्रदूषण के जोखिम को बढ़ा सकता है।
- इसी प्रकार कई क्षेत्रों में वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण, जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना आदि आपस में जुड़े हुए हैं।
वायु प्रदूषण और उसका प्रभाव
- वायुमंडल की गैसों के विभिन्न घटकों की आदर्श स्थिति में रासायनिक रूप से होने वाला अवांछनीय परिवर्तन जो वातावरण/पर्यावरण को किसी-न-किसी रूप में दुष्प्रभावित करता है, वायु प्रदूषण कहलाता है।
- जून 2015 में चिली ने वायु प्रदूषण की खतरनाक स्थिति को देखते हुए सेंटियागो में पर्यावरणीय आपातकाल घोषित कर दिया था। इसी तरह दिसंबर 2015 और दिसंबर 2016 में चीन की राजधानी बीजिंग में वायु प्रदूषण के कारण दो बार रेड अलर्ट घोषित किया जा चुका है।
- हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी, अंधापन, श्रवण शक्ति कमज़ोर होना, त्वचा रोग आदि बीमारियाँ पैदा होती हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ गया है, जिसके कारण बारिश के पानी में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड आदि ज़हरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है इससे पेड़-पौधे, भवनों व ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचता है।
आगे की राह
- वायु प्रदूषण वैश्विक समाज के समक्ष एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरा है। हालाँकि वैश्विक स्तर पर इसे लेकर कई सराहनीय प्रयास भी किये गए हैं, किंतु इसके बावजूद यह विश्व की अधिकांश आबादी को प्रभावित कर रहा है।
- मानव सभ्यता व समाज को प्रकृति एवं औद्योगीकरण के बीच सामंजस्य स्थापित करना अति आवश्यक है।
- अतः हमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिये पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गैर सरकारी संगठनों, नागरिक समाज व आम आदमी की भागीदारी को प्रोत्साहित करना होगा।
स्रोत: द हिंदू
दीर्घावधि रेपो परिचालन
प्रीलिम्स के लिये:LTRO, ऑपरेशन ट्विस्ट मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति से संबंधित मुद्दे, अर्थव्यवस्था में RBI का योगदान |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति संबंधी कार्रवाइयों के प्रसारण और अर्थव्यवस्था में ऋण के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिये दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long Term Repo Operation- LTRO) शुरू करने का निर्णय लिया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- RBI द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) के साथ यह नया उपाय केंद्रीय बैंक द्वारा बॉण्ड यील्ड के प्रबंधन और ब्याज दर में कटौती का लाभ जनता तक पहुँचाने का एक प्रयास है।
- ध्यातव्य है कि RBI ने इसके पहले ब्याज दरों को नीचे लाने के लिये यूएस-स्टाइल के आधार पर ऑपरेशन ट्विस्ट को शुरू किया है।
क्या है दीर्घावधि रेपो परिचालन?
- LTRO एक ऐसा उपकरण है जिसके तहत केंद्रीय बैंक प्रचलित रेपो दर पर बैंकों को एक साल से तीन साल की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए तक का ऋण प्रदान करेगा तथा कोलेटरल के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों को लंबी अवधि के लिये स्वीकार करेगा।
- RBI तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के माध्यम से बैंकों को उनकी तत्काल ज़रूरतों हेतु 1 से 28 दिनों के लिये ऋण मुहैया कराता है, जबकि LTRO के माध्यम से RBI द्वारा रेपो रेट पर ही उनको 1 से 3 वर्ष के लिये ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
LTRO महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- RBI ने बाज़ार की मौजूदा परिस्थितियों में उचित लागत पर टिकाऊ तरलता उपलब्धता के बारे में बैंकों को आश्वस्त करने के उद्देश्य से LTRO की शुरुआत की है।
- देश में आर्थिक मंदी से निपटने के लिये RBI आसान ऋण नीतियों के माध्यम से लगातार प्रयास कर रहा है। RBI बाज़ार में आसान ऋण उपलब्ध करवाकर देश के उपभोग में वृद्धि करना चाहता है।
- जनवरी 2019 से रेपो रेट (जिस दर पर बैंक RBI से त्वरित ऋण लेते हैं) में 139 आधार अंकों की कटौती की गई है। लेकिन इन दरों में कटौती के केवल एक हिस्से का लाभ ही अभी तक बैंकों द्वारा ऋण प्राप्तकर्ताओं को प्रदान किया गया है।
- RBI का मानना है कि रेपो दर (5.15 फीसदी) पर बैंकों को लंबी अवधि के लिये धन उपलब्ध कराने से बैंकों को अपने मार्जिन को बनाए रखते हुए खुदरा और औद्योगिक ऋणों पर ब्याज दरों को कम करने में मदद मिलेगी।
- LTRO बॉण्ड मार्केट में अल्प अवधि की प्रतिभूतियों (1-3 वर्ष की अवधि) के लिये यील्ड (Yield) कम करने में भी मदद करेगा।
LTRO से संभावित लाभ
- RBI द्वारा रेपो रेट में कमी किये जाने के बावजूद बैंक उसका लाभ ऋण प्राप्तकर्त्ताओं को नहीं दे रहे थे किंतु अब दीर्घ अवधि के लिये ऋण प्राप्त होने से बैंक आसानी से एवं कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान कर सकते हैं।
- ऋण तक आसान पहुँच के कारण उपभोग में वृद्धि की जा सकेगी जो कि वर्तमान आर्थिक सुस्ती का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है।
- यह एक ऐसा उपाय है जिससे बाज़ार सहभागियों को उम्मीद है कि बैंक अल्पकालिक ब्याज दरों को काम करेंगे तथा कॉर्पोरेट बॉण्ड में निवेश को भी बढ़ावा देंगे।
ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) :
- ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ के अंतर्गत केंद्रीय बैंक दीर्घ अवधि के सरकारी ऋण पत्रों को खरीदने के लिये अल्पकालिक प्रतिभूतियों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है, जिससे लंबी अवधि के ऋणपत्रों पर ब्याज दरों के निर्धारण में आसानी होती है।
- ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) पहली बार वर्ष 1961 में अमेरिकी डॉलर को मज़बूत करने और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिये लाया गया था।
- इसके तहत RBI द्वारा ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के तहत 10,000 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों की एक साथ खरीद और बिक्री की जाएगी।
- इसके अंतर्गत RBI द्वारा दीर्घ अवधि की परिपक्वता वाले (2029 तक परिपक्व होने वाले) 10,000 करोड़ रुपये के सरकारी बॉण्ड खरीदे जाएंगे और साथ ही 10,000 करोड़ रुपये के कम अवधि की परिपक्वता (वर्ष 2020 में परिपक्व होने वाले) वाले सरकारी बॉण्ड बेंचे जाएंगे।
- पात्र प्रतिभागी आरबीआई के कोर बैंकिंग समाधान (ई-कुबेर) पर इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में बोली लगा सकते हैं या ऑफर जमा कर सकते हैं।
आगे की राह
- वर्तमान समय में व्याप्त आर्थिक सुस्ती से निपटने एवं उपभोग बढ़ाने के लिये व्यापक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- अर्थव्यवस्था में व्याप्त खामियों को दूर कर आर्थिक चुनौतियों से निपटने का प्रयास किया जाना चाहिये।
स्त्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
तटीय आपदा प्रबंधन
प्रीलिम्स के लिये:तटीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण और लोचशीलता पर राष्ट्रीय सम्मेलन मेन्स के लिये:तटीय आपदा प्रबंधन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘तटीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण और लोचशीलता पर राष्ट्रीय सम्मेलन: 2020’ (National Conference on Coastal Disaster Risk Reduction and Resilience: 2020- CDRR&R) का आयोजन नई दिल्ली में किया गया।
मुख्य बिंदु:
- इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management- NIDM) द्वारा नई दिल्ली में किया गया।
- इस सम्मेलन में केंद्रीय और राज्य संगठनों/विभागों के 175 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- सम्मेलन का उद्घाटन ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (National Disaster Management Authority- NDMA) के अध्यक्ष द्वारा किया गया।
सम्मेलन का उद्देश्य:
- तटीय आपदा जोखिमों के बारे में बेहतर समझ विकसित करने के लिये मानव क्षमता को बढ़ाना ताकि आपदा जोखिम को कम करने में मदद मिल सके तथा आपदा से निपटने में लोचशीलता (Resilience) बढ़ सके।
- इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आपदा प्रबंधन पर ‘प्रधानमंत्री का 10-सूत्री एजेंडा’ (Prime Minister’s 10-point Agenda) और ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क’ (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction) को लागू करना है।
आपदा प्रबंधन पर प्रधानमंत्री का 10-सूत्री एजेंडा:
- नवंबर 2016 में नई दिल्ली में आपदा जोखिम को कम करने के विषय पर आधारित ‘एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ में प्रधानमंत्री ने सेंदाई फ्रेमवर्क के 10 सूत्री एजेंडे को लागू करने की रूपरेखा पेश की, जिसके तहत आपदा प्रबंधन में महिला-बलों की संख्या में बढ़ोतरी और आपदा से निपटने एवं इसे रोकने के लिये देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया।
चर्चा के मुख्य विषय:
- आपदा पर राष्ट्रीय और स्थानीय रणनीतियों से संबंधित सूचना के प्रसार को बढ़ाना ताकि तटीय आपदा जोखिम को कम करने में सहयोग तथा लोचशीलता में वृद्धि हो सके और इस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में विभिन्न संस्थानों, शोधकर्त्ताओं एवं विशेषज्ञों के साथ जुड़कर सूचना अंतराल को कम करने हेतु रोडमैप विकसित करना।
- तटीय आपदा प्रबंधन में नैतिक दृष्टिकोण अपनाकर आपदा प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं की पहचान करना।
- देश की समग्र अर्थव्यवस्था के विकास पर तटीय आपदाओं के प्रभाव का विश्लेषण करना।
- सम्मेलन में पहचाने गए विभिन्न अंतराल के क्षेत्रों में अनुसंधान और प्रशिक्षण का कार्य करना।
प्रमुख तटीय आपदाएँ:
चक्रवात:
- भारतीय उपमहाद्वीप विश्व में चक्रवात से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। भारत की 8041 किलोमीटर की लंबी तटरेखा उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित है।
- इनमें से अधिकांश चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं और भारत के पूर्वी तट को प्रभावित करते हैं। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न चक्रवातों का अनुपात लगभग 1 : 4 है।
- अधिकांश उष्णकटिबंधीय चक्रवात मई-जून और अक्तूबर-नवंबर के महीनों में उत्पन्न होते हैं।
सूनामी:
- भारतीय तटीय भाग सूनामी के प्रति सुभेद्य है। वर्ष 2004 में सूनामी के समय अंडमान में आए भूकंप की तीव्रता 9.3 थी, जो मुख्य रूप से आंतरिक प्लेटों में थ्रस्ट (Thrust) के कारण सागर-नितल (Seafloor) के ऊर्ध्वाधर विस्थापन से उत्पन्न हुआ था।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय सागरीय सूचना सेवा केंद्र (Indian National Center for Ocean Information Services- INCOIS), हैदराबाद ऐसी महासागरीय आपदाओं के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System- EWS) प्रदान करने का कार्य कर रहा है।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD), भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है, यह मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
आगे की राह:
- राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तर पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को कुशल प्रबंधन के तहत मज़बूत बनाने तथा आपदा प्रतिक्रिया, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के लिये आवश्यक तैयारी व राष्ट्रीय समन्वय में सुधार करने पर बल दिया जाना चाहिये।
स्रोत: पीआईबी
अशांत क्षेत्र अधिनियम
प्रीलिम्स के लिये:अशांत क्षेत्र अधिनियम मेन्स के लिये:आतंरिक सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गुजरात सरकार ने राज्य के आनंद ज़िले के खम्भात शहर में सामुदायिक हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए शहर के संवेदनशील हिस्सों को अशांत क्षेत्र अधिनियम (Disturbed Areas Act) के तहत सूचीबद्ध करने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु:
23 फरवरी, 2020 को आनंद ज़िले के अकबरपुर क्षेत्र में भूमि-विवाद के एक मामले में दो समुदायों के लोगों के बीच हिंसा बढ़ गई जिसमें कई लोग घायल हुए।
इसके साथ ही ज़िले के कुछ अन्य हिस्सों में भी हिंसा के मामले दर्ज किये गए ।
क्या है अशांत क्षेत्र अधिनियम-1991?
- राज्य में सामुदायिक हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य के अशांत क्षेत्रों को चिह्नित करने तथा इन क्षेत्रों में तनाव को कम करने के लिये वर्ष 1986 में इस संबंध में एक अध्यादेश जारी किया गया।
- गुजरात सरकार द्वारा अशांत क्षेत्र अधिनियम को वर्ष 1991 में लागू किया गया था।
- वर्ष 2010 में इस अधिनियम में कुछ संशोधन किये गए तथा इसका नाम बदल कर ‘अशांत क्षेत्रों में अचल संपत्तियों के हस्तांतरण पर प्रतिबंध और परिसर से बेदखली से किरायेदारों के संरक्षण के लिये प्रावधान अधिनियम’ कर दिया गया।
- इस अधिनियम के तहत कलेक्टर द्वारा शहर या जिले के किसी भाग को अशांत घोषित किये जाने के बाद संबंधित क्षेत्र में अचल संपत्ति (घर,प्लाट आदि) की बिक्री, अनुबंध, पुनर्निर्माण आदि के लिये दोनों पक्षों को कलेक्टर की विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है।
- अधिनियम में निर्धारित प्रावधानों के तहत किसी अशांत क्षेत्र में अचल संपत्ति की बिक्री की अनुमति के लिये विक्रेता को प्रमाण-पत्र यह लिखकर देना होता है कि वह स्वेच्छा से अपनी संपत्ति बेच रहा है तथा उसे इसके लिये उसे सही मूल्य प्राप्त हुआ है।
- संपत्ति के हस्तांतरण में अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना करने की स्थिति में आरोपी व्यक्ति पर 6 माह के कारावास के साथ 1000 रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
- इस अधिनियम के तहत राज्य के अहमदाबाद, बड़ोदरा, सूरत, हिम्मतनगर, गोधरा आदि शहरों के विभिन्न क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है।
अधिनियम का उद्देश्य:
- इस अधिनियम का उद्देश्य राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर नियंत्रण करना था।
- इसके साथ ही इस अधिनियम के माध्यम से अचल संपत्ति के हस्तांतरण के दौरान लोगों के शोषण को कम करना था।
अधिनियम की आलोचना:
- विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने इस अधिनियम को सामाजिक सद्भाव की भावना के विपरीत बताकर इसकी आलोचना की है।
- इस अधिनियम के माध्यम से सरकार पर अनावश्यक बल प्रयोग के आरोप लगते रहते हैं।
- संपत्ति के विवादों का निपटारा अन्य कानूनों से भी किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
अशांत क्षेत्र अधिनियम में स्पष्टता की कमी के कारण इस अधिनियम के क्रियान्वयन में भ्रम की स्थिति बनी रहती है। अतःअधिनियम अधिनियम के संदर्भ में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए अधिनियम उपयुक्त संशोधन किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 फरवरी, 2020
कॉमनवेल्थ निशानेबाज़ी और तीरंदाज़ी चैंपियनशिप
जनवरी 2022 में कॉमनवेल्थ निशानेबाज़ी और तीरंदाज़ी चैंपियनशिप की मेजबानी के लिये चंडीगढ़ (भारत) को चुना गया है। इन दो प्रतिस्पर्द्धाओं का आयोजन अलग से भारत में किया जाएगा। बर्मिंघम में होने वाले खेलों में इसके पदकों को ‘प्रतिस्पर्द्धी देशों की रैंकिंग’ के लिये शामिल किया जाएगा। कॉमनवेल्थ गेम्स महासंघ (Commonwealth Games Federation-CGF) ने इसकी जानकारी देते हुए कहा है कि इन दोनों प्रतिस्पर्द्धाओं के पदकों को कॉमनवेल्थ गेम्स के समापन के एक सप्ताह बाद अंतिम तालिका में जोड़ा जाएगा। CGF के इस फैसले को भारत की जीत के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि भारत ने निशानेबाज़ी को कॉमनवेल्थ गेम्स से हटाए जाने के बाद वर्ष 2022 में होने वाले बर्मिंघम गेम्स के बहिष्कार की चेतावनी दी थी। ध्यातव्य है कि इन दोनों स्पर्द्धाओं का आयोजन कॉमनवेल्थ गेम्स से 6 महीने पहले जनवरी 2022 में भारत में होगा, जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन 27 जुलाई से 7 अगस्त तक बर्मिंघम में होगा।
बिहार विधानसभा में NRC के विरुद्ध प्रस्ताव पारित
बिहार विधानसभा में बजट सत्र के दौरान राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया गया है। साथ ही वहीं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) में संशोधन के लिये भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है। NPR को लेकर पारित प्रस्ताव के तहत वर्ष 2010 के आधार पर NPR बनाने का निर्णय लिया गया है, यानी इसमें माता-पिता संबंधी विवरण देना ज़रूरी नहीं होगा। NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे। वहीं NPR ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है। गृह मंत्रालय के अनुसार, ‘देश का सामान्य निवासी’ वह व्यक्ति है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या अगले छह महीनों के लिये किसी विशिष्ट स्थान पर रहने का इरादा रखता है।
नेशनल वॉर मेमोरियल की पहली वर्षगाँठ
25 फरवरी, 2020 को नेशनल वॉर मेमोरियल (National War Memorial) की पहली वर्षगाँठ मनाई गई। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने सशस्त्र सेवाओं के सभी तीनों विंग्स के अधिकारियों के साथ शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ज्ञात हो कि नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन 25 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। यह स्मारक देश के लिये शहीद होने वाले सैनिकों के सम्मान में समर्पित है। नेशनल वॉर मेमोरियल में उन 25,942 सैनिकों के नाम उकेरे गए हैं, जो आज़ादी के पश्चात् शहीद हुए हैं। यह मेमोरियल उन सभी सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने भारत-चीन युद्ध (1962), भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947-48, 1965, 1971 और 1999) तथा श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के संचालन के दौरान अपने प्राण न्योछावर कर दिये।
मोहम्मद होस्नी मुबारक
मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति और तीस वर्ष तक सत्ता में रहे मोहम्मद होस्नी मुबारक का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। मिस्र के पूर्व वायुसेना अध्यक्ष मोहम्मद होस्नी मुबारक 14 अक्तूबर, 1981 को देश के उपराष्ट्रपति बने और मात्र 8 दिन बाद एक सैन्य परेड के दौरान पूर्व राष्ट्रपति अनवर सादात की इस्लामी विद्रोहियों द्वारा हत्या किये जाने के पश्चात् उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली। लगभग तीन दशक तक सत्ता में बने रहने के बाद मोहम्मद होस्नी मुबारक को देश भर में 18 दिन चले विरोध प्रदर्शनों के पश्चात् 11 फरवरी, 2011 को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में मुबारक को गिरफ्तार कर लिया गया और 18 दिन चले विद्रोह के दौरान प्रदर्शनकारियों की मौत तथा भ्रष्टाचार के मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्हें 2012 में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई किंतु वर्ष 2017 तक उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। मोहम्मद होस्नी मुबारक का जन्म 4 मई, 1928 को मिस्र के एक गाँव में हुआ था।