शासन व्यवस्था
जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019
प्रीलिम्स के लिये:
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
मेन्स के लिये:
जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 से संबंधित विभिन्न तथ्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा द्वारा जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 [Jallianwala Bagh National Memorial (Amendment) Bill, 2019] पारित किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- इस विधेयक को लोकसभा द्वारा 2 अगस्त, 2019 को पारित कर दिया गया था, अतः यह विधेयक अब संसद द्वारा पारित हो गया है।
- वर्ष 2019 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी है।
- इस घटना के 100 साल बीत जाने के बाद यह आवश्यक है कि जलियाँवाला बाग स्मारक को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में स्थापित किया जाए।
- यह विधेयक जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम,1951 में संशोधन का प्रावधान करता है।
विधेयक में प्रावधान:
- जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 के अनुसार इस स्मारक के न्यासियों में निम्नलिखित शामिल हैं-
- अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष
- संस्कृति मंत्रालय का प्रभारी मंत्री
- लोकसभा में विपक्ष का नेता
- पंजाब का राज्यपाल
- पंजाब का मुख्यमंत्री
- केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति
- इस विधेयक में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष को न्यास का स्थायी सदस्य बनाए जाने से संबंधित धारा को हटाकर गैर राजनीतिक व्यक्ति को इसके संचालन हेतु न्यासी बनाने का प्रयास किया गया है।
- विधेयक में यह संशोधन भी किया गया है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अथवा विपक्ष का ऐसा कोई नेता न होने की स्थिति में सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को न्यास के सदस्य के रूप में शामिल किया जाए।
- इस विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन न्यासियों को पाँच वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त किया जाएगा तथा इन्हें पुनः नामित भी किया जा सकता है।
- इस विधेयक में यह संशोधन भी किया गया है कि नामित न्यासी को पाँच साल की अवधि समाप्त होने से पहले भी केंद्र सरकार द्वारा हटाया जा सकता है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
- 9 अप्रैल, 1919 को (कुछ स्रोतों में 10 अप्रैल भी) रोलैट एक्ट का विरोध करने के आरोप में पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉ. सत्यपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।
- इनकी गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया।
- जनरल डायर ने इसे अपने आदेश की अवहेलना माना तथा सभास्थल पर पहुँचकर निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया।
- आंकड़ों के अनुसार, मरने वालों की संख्या 379 थी लेकिन वास्तव में इससे कहीं ज्यादा लोग मारे गए थे।
- इस नरसंहार के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘नाइटहुड’ की उपाधि त्याग दी।
- इस हत्याकांड की जाँच के लिये कॉन्ग्रेस ने मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की।
- ब्रिटिश सरकार ने इस हत्याकांड की जाँच के लिये हंटर आयोग गठित किया।
स्रोत- PIB, PRS
सामाजिक न्याय
छत्तीसगढ़ पंचायतों में दिव्यांग कोटा
प्रीलिम्स के लिये
छत्तीसगढ़ पंचायतों में दिव्यांग कोटा
मेन्स के लिये
सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में छत्तीसगढ़ का योगदान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य की पंचायतों में दिव्यांगों (Differently Abled) के लिये आरक्षण का प्रावधान करने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु:
- छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लिये गए इस निर्णय से प्रत्येक पंचायत में एक स्थान दिव्यांग सदस्य के लिये आरक्षित होगा।
- छत्तीसगढ़ राज्य में दिव्यांगों की संख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 6 प्रतिशत है।
- दिव्यांग सदस्यों का या तो चुनाव होगा या उन्हें नामित किया जाएगा।
- यदि दिव्यांग सदस्य का चयन चुनावी प्रक्रिया द्वारा नहीं होता, तो किसी एक पुरुष या महिला सदस्य को बतौर पंच नामित किया जाएगा।
- ब्लाक तथा ज़िला पंचायतों के लिये ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य सरकार दो दिव्यांग सदस्यों को नामित करेगी जिसमें एक महिला तथा एक पुरुष शामिल होगा।
- इस निर्णय के क्रियान्वयन के लिये छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य पंचायती राज अधिनियम, 1993 (State Panchayati Raj Act, 1993) में संशोधन करना होगा।
निर्णय का महत्त्व:
- इस प्रावधान के लागू होने के बाद राज्य में लगभग 11,000 दिव्यांग सदस्य राज्य की पंचायती व्यवस्था का हिस्सा होंगे।
- इस निर्णय के माध्यम से राज्य के दिव्यांग वर्गों की न सिर्फ सामाजिक तथा राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी बल्कि वे मानसिक रूप से सशक्त होंगे।
- इस व्यवस्था के लागू होने के बाद छत्तीसगढ़, पंचायतों में दिव्यांगों के लिये आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा।
दिव्यांगों से संबंधित संवैधानिक तथा कानूनी उपबंध:
- राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-DPSP) के अंतर्गत अनुच्छेद-41 बेरोज़गार, रोगियों, वृद्धों तथा शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को काम, शिक्षा तथा सार्वजनिक सहायता का अधिकार दिलाने के लिये राज्य को दिशा निर्देश देता है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची (State List) के विषयों में दिव्यांगों तथा बेरोज़गारों के संबंध में प्रावधान दिये गए हैं।
- दिव्यांग अधिकार कानून, 2016 (Rights of Person with Disability Act, 2016) के तहत दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में 4% तथा उच्च शिक्षा के संस्थाओं में 5% के आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
भारत में पंचायती राज व्यवस्था:
- पंचायती राज व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्वशासन (Local Self Government) का विकास करना था। इसके लिये सरकार ने वर्ष 1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत की।
- इसके अंतर्गत सभी राज्यों ने पंचायती राज व्यवस्था के विकास हेतु अधिनियम पारित किये।
- इस व्यवस्था में पंचायतों को तीन स्तर पर बाँटा गया है: ग्राम पंचायत, क्षेत्र या ब्लाक पंचायत तथा ज़िला पंचायत।
- पंचायत के सभी स्तर के प्रतिनिधियों का चुनाव स्थानीय लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है तथा इनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
- पंचायतों से संबंधित चुनाव की ज़िम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग की होती है।
- पंचायत चुनावों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग, महिला तथा अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षण का प्रावधान है।
पंचायती राज के संबंध में संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का भाग-9 तथा 11वीं अनुसूची पंचायतों से संबंधित है।
- पंचायती राज से संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-243 से 243(O) में दिये गए हैं।
- राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद-40 में स्थानीय स्वशासन की बात कही गई है।
छत्तीसगढ़ से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- स्थापना - 1 नवंबर, 2000
- राजधानी - रायपुर
- ज़िले - 27
- लोकसभा सीटें - 13
- विधानसभा सीटें - 91
- संभाग - 5 (बस्तर, दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा)
- जनसंख्या - 2,55,40,196
- लिंगानुपात - 991 (महिला प्रति 1000 पुरुष)
- जनसंख्या घनत्व - 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
- साक्षरता दर - 71.4%
- अनुसूचित जनजाति - 31.8%
- अनुसूचित जाति - 11.6%
- राजकीय पशु - जंगली भैंसा
- राजकीय पक्षी - पहाड़ी मैना
- राजकीय वृक्ष - साल
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
वैश्विक साइबर अपराध
प्रीलिम्स के लिये:
बुडापेस्ट अभिसमय
मेन्स के लिये:
साइबर सुरक्षा संबंधी मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में रूस के साइबर अपराध संबंधी प्रस्ताव का समर्थन किया।
प्रमुख बिंदु:
- इस प्रस्ताव के तहत अगस्त 2020 में न्यूयॉर्क में एक नई संधि स्थापित किये जाने योजना है जिसके तहत सभी सदस्य राष्ट्र साइबर अपराध से जुड़े आंकड़ो को साझा कर सकेंगे।
- राष्ट्रीय संप्रभुता के मुद्दे पर रूस और चीन बुडापेस्ट अभिसमय का विरोध करते रहे हैं, बुडापेस्ट अभिसमय के समकक्ष रूस ने अंतर्राष्ट्रीय साइबर अपराध से निपटने के लिए अपना प्रस्ताव पेश किया।
- भारत ने बुडापेस्ट अभिसमय हस्ताक्षर नहीं किये हैं, हाल ही में हुए इसके एक सम्मेलन में भारत ने गैर- सदस्य के रूप में अपनी यथास्थिति बनाए रखी।
- भारत लम्बे समय से डेटा सुरक्षा की समस्या से लड़ रहा है।
भारत में डेटा सुरक्षा संबंधी क़ानून:
- वर्तमान समय में भारत में डेटा सुरक्षा सम्बन्धी उपयुक्त क़ानून और नियमों का अभाव है.
- कानूनी संरचना के अंतर्गत अभी तक भारत में निम्लिखित कदम उठाये गये है-
- सूचना तकनीक अधिनियम, 2000- यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2000 में पारित किया गया।
- इस अधिनियम के 13 अध्यायों में कुल 94 अनुच्छेद हैं।
- इस अधिनियम में डेटा सुरक्षा और संरक्षण संबंधी प्रावधान हैं।
- इस अधिनियम द्वारा ई-वाणिज्य, दस्तावेज़ों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को मान्यता प्रदान की गई।
- इस अधिनियम के तहत सूचना और संचार से संबंधित अपराधों को शामिल किया गया।
- किसी भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी राष्ट्र का हो, द्वारा भारत के बाहर किये गए किसी भी साइबर अपराध पर यह अधिनियम लागू होता है।
- इस अधिनियम के तहत कंप्यूटर हैकिंग, कंप्यूटर में उपलब्ध रिकार्ड्स से छेड़छाड़, आक्रामक संदेश भेजना, संचार यंत्रों की चोरी और दुरुपयोग, अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसार, जानकारी को अवरुद्ध करना, कानूनी अनुबंध की जानकारी का खुलासा करना आदि दंडात्मक अपराधों की श्रेणी में आते हैं।
- सूचना तकनीक अधिनियम, 2000- यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2000 में पारित किया गया।
- वर्ष 2013 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 अपनाई गई।
- वर्ष 2018 में भारत सरकार ने बी.एन. श्रीकृष्णा समिति की अनुशंसा के आधार पर पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (ड्राफ्ट) बिल पेश किया।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
पत्रकार एवं पत्रकारिता संस्थान अधिनियम, 2017
प्रीलिम्स के लिये:
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स
मेन्स के लिये:
प्रेस स्वतंत्रता संबंधी मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित पत्रकार एवं पत्रकारिता संस्थान ( हिंसा और संपत्ति की क्षति की रोकथाम) 2017 को स्वीकृति दे दी।
प्रमुख बिंदु:
- इस अधिनियम में पत्रकारों या पत्रकारिता संस्थानों के मामले में नुकसान पहुँचाने वाले को 3 साल की सज़ा और 50000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
- संस्थानों को किसी भी तरह की क्षति पहुँचाने या पत्रकारों के इलाज़ का व्यय अभियुक्त द्वारा ही वहन किया जाएगा।
- इस अधिनियम के अनुसार, पत्रकारों पर हमला करना गैर- ज़मानती अपराध की श्रेणी में आएगा।
- इसके तहत संविदा पर काम करने वाले पत्रकारों को भी सुरक्षा प्रदान की गई है।
- साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिये इस तरह के कानून को पारित करने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य बन गया है।
- अधिनियम के तहत इस तरह के मामलों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक या उससे उच्च स्तर का अधिकारी द्वारा ही किये जाने का प्रावधान है।
- झूठी शिकायतों या अधिनियम का गलत इस्तेमाल किये जाने पर पत्रकारों के विरुद्ध भी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
पत्रकार सुरक्षा अधिनियम की आवश्यकता क्यों?
- हाल ही में देश भर में पत्रकारों पर हमलों की संख्या तेजी से बढ़ी है, फलस्वरूप कई पत्रकार संगठन लंबे समय से इस तरह के क़ानून की मांग कर रहे थे।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (World Press Freesom index) 2019 में भारत को 180 देशों में 140वाँ स्थान दिया गया था।
- इस सूचकांक में 2017 में भारत 136वें स्थान पर था, वहीं 2018 में इसे 138वें स्थान पर रखा गया था।
- इस सूचकांक के अनुसार नॉर्वे, फ़िनलैंड और स्वीडन क्रमशः पहले दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- पत्रकारों की सुरक्षा के इस अंतर्राष्ट्रीय सूचकांक में सबसे निचले पायदानों पर क्रमशः इरिट्रिया (178), उत्तरी कोरिया (179) और तुर्कमेनिस्तान (180) हैं।
स्रोत- द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
मेन्स के लिये:
गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किये गए ‘गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967’ से संबंधित विभिन्न आँकड़े
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Record Bureau- NCRB) द्वारा एकत्रित ‘गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967’ [Unlawful Activities Prevention Act (UAPA), 1967] से संबंधित आँकड़े प्रस्तुत किये।
मुख्य बिंदु:
- इन आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में UAPA के तहत मणिपुर में सर्वाधिक 35% से अधिक लगभग 330 मामले दर्ज किये गए तथा इन मामलों के अंतर्गत लगभग 352 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।
- वर्ष 2017 में UAPA के तहत पंजीकृत कुल मामलों के 17% (156) मामले जम्मू-कश्मीर में तथा 14% (133) मामले असम में दर्ज किये गए।
- वर्ष 2017 में UAPA के तहत पंजीकृत कुल मामलों में उत्तर प्रदेश तथा बिहार में क्रमशः 12% (109) तथा 5% (52) मामले दर्ज किये गए।
- UAPA के तहत कुल पंजीकृत मामलों में से केवल 12% उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए परंतु इस अधिनियम के अंतर्गत हुई कुल गिरफ्तारियों (1554 व्यक्ति) में से सर्वाधिक 382 गिरफ्तारियाँ उत्तर प्रदेश में हुईं।
- इसके अतिरिक्त इस अधिनियम के अंतर्गत असम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, झारखंड में क्रमशः 374, 352, 35 और 57 गिरफ्तारियाँ हुईं।
- गृह मंत्रालय या राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी को जाँच एजेंसी से संपर्क करने के बाद सात दिनों में चार्जशीट दाखिल करने की मंज़ूरी देनी होती है।
- गृह मंत्रालय द्वारा NCRB के आँकड़ों के आधार पर दी गई जानकारी के अनुसार, UAPA के तहत वर्ष 2015, 2016 और 2017 में क्रमशः 1128, 999, 1554 व्यक्तियों की गिरफ्तारी हुई।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो:
(National Crime Record Bureau- NCRB)
- NCRB की स्थापना गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में अपराध और अपराधियों की सूचना संग्रह करने के लिये की गई थी।
- वर्ष 2009 से यह अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS) योजना की देख-रेख, समन्वय तथा लागू करने का कार्य कर रहा है।
- NCRB का उद्देश्य भारतीय पुलिस को सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपराध तथा अपराधियों की जानकारी देकर कानून व्यवस्था बनाए रखने और लोगों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाना है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
सार्वजनिक उपक्रमों का रणनीतिक विनिवेश
प्रीलिम्स के लिये
रणनीतिक विनिवेश क्या है?
मेन्स के लिये
रणनीतिक विनिवेश का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertakings - PSUs) के शेयरों का रणनीतिक विनिवेश (Strategic Disinvestment) करने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु:
- सरकार ने भारत पेट्रोलियम निगम लिमिटेड (Bharat Petroleum Corporation Limited-BPCL), भारतीय नौवहन निगम लिमिटेड (Shipping Corporation of India-SCI) तथा भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड (Container Corporation of India Limited-CONCOR) के शेयरों की बिक्री की घोषणा की है। इसके द्वारा इन कंपनियों के प्रबंधन का पूर्ण अधिकार इनके खरीदारों को सौंपा जाएगा।
- इसके अलावा टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (Tehri Hydro Development Corporation of India Limited) के 74.2% शेयर तथा नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (North Eastern Electric Power Corporation Limited) के 100% शेयर तथा प्रबंधन का पूरा अधिकार नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (National Thermal Power Corporation-NTPC) को दिया जाएगा।
रणनीतिक विनिवेश क्या है?
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।
- इसके लिये सरकार अपने हिस्से के शेयर्स को किसी निजी इकाई को स्थानांतरित कर देती है किंतु उस उपक्रम पर अपना स्वामित्व अथवा मालिकाना हक बनाए रखती है।
- जबकि रणनीतिक बिक्री में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के शेयर्स के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है अर्थात् स्वामित्व और नियंत्रण को किसी निजी क्षेत्र की इकाई को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक विनिवेश एक प्रकार से निजीकरण है।
रणनीतिक विनिवेश का कारण:
- सरकारों को हमेशा कर या अन्य साधनों से प्राप्त होने वाली आय से अधिक खर्च करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की हिस्सेदारी या शेयर की बिक्री करके आय अर्जित करती हैं।
- भारत सरकार बुनियादी अवसंरचनाओं के निर्माण, शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर अपने आय का एक बड़ा भाग खर्च करती है। इससे सरकार के वित्तीय घाटे में वृद्धि होती है। अतः वित्तीय घाटे को कम करने के लिये सरकार सार्वजनिक उपक्रम की कंपनियों की हिस्सेदारी को बेचती है।
- सैद्धांतिक आधार पर कुछ राजनीतिज्ञों का मानना है कि सरकारों को व्यवसाय पर ध्यान नहीं देना चाहिये बल्कि उन्हें व्यवसाय एवं व्यापार के विकास के लिये आवश्यक वातावरण बनाना चाहिये।
रणनीतिक विनिवेश का प्रभाव:
- रणनीतिक विनिवेश से कंपनी की इक्विटी के हस्तांतरण से प्राप्त आय को आवश्यक अवसंरचनाओं के निर्माण में अधिक लाभप्रद तरीके से परिनियोजित किया जा सकता है।
- रणनीतिक विनिवेश से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के प्रशासन तथा प्रबंधन में दक्षता का विकास होता है। इसके अलावा ये प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से सक्षम होती हैं।
- रणनीतिक विनिवेश से सार्वजनिक ऋण में कमी होती है तथा यह ऋण-जीडीपी अनुपात (Debt-to-GDP Ratio) को भी कम करता है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (25 नवंबर)
NCC का 71वाँ स्थापना दिवस
- दुनिया के सबसे बड़े वर्दीधारी युवा संगठन राष्ट्रीय कैडेट कोर (National Cadet Core-NCC) ने 24 नवंबर को अपना 71 वाँ स्थापना दिवस मनाया।
- भारत में NCC की स्थापना 15 जुलाई, 1948 को राष्ट्रीय कैडेट कोर अधिनियम, 1948 के तहत हुई थी।
- NCC का उद्देश्य वाक्य - 'एकता और अनुशासन' है, जिसे वर्ष 1957 में अपनाया गया था।
- NCC तीन साल की होती है- पहले साल 'A', दूसरे साल 'B' और तीसरे साल 'C' grade का certificate मिलता है। NCC समूह का नेतृत्व 'लेफ्टिडेंट जनरल' रैंक का अधिकारी करता है और पूरे देश में ऐसे कुल 17 अधिकारी हैं।
- NCC का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- देश में इसकी कुल 788 टुकड़ियाँ हैं, इनमें से 667 सेना की, 60 नौसेना और 61 वायु सेना की हैं।
NCC अपनी बहुआयामी गतिविधियों और विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से युवाओं के समक्ष स्व-विकास के लिये अवसर प्रदान करता है। NCC युवाओं को कल के ज़िम्मेदार नागरिकों में रूपान्तारित करने की दिशा में अहम भूमिका निभाता है।
रोहतांग टनल
लेह-मनाली नेशनल हाइवे पर बनाई जा रही 8.8 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग अगले छह महीने में चालू होने की संभावना है।
- देश की सबसे लंबी सड़क सुरंगों में से एक रोहतांग सुरंग हिमालय के पूर्वी पीर पंजाल रेंज में रोहतांग दर्रे के नीचे 10,171 फुट की ऊँचाई पर बनाई जा रही है।
- यह मनाली और जनजातीय ज़िले लाहौल-स्पीति के प्रशासनिक केंद्र केलांग के बीच की दूरी को लगभग 45 किलोमीटर कम कर देगी।
- गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के टॉप टूरिस्ट डेस्टिनेशन में रोहतांग को भी गिना जाता है। जून के महीने में यहाँ भारी मात्रा में सैलानी आते हैं।
- दिसंबर में सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी के बाद इसे बंद कर दिया जाता है और जून में इसे फिर से पर्यटकों के लिये खोल दिया जाता है।
- रोहतांग दर्रा पीर पंजाल श्रृंखला पर बना एक पहाड़ी रास्ता है जो मनाली से करीब 51 किलोमीटर दूर है। यह रास्ता कुल्लू घाटी को लाहौल स्पीति से जोड़ता है।
- रोहतांग सुरंग पर लगभग 2700 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा उत्तरी और दक्षिणी नॉर्थ पोर्टल को जोड़ने वाली सड़कों, स्नो गैलरी और पुलों के निर्माण में लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च आएगा।
सामरिक महत्त्व: भारत के पूर्वी और पश्चिमी छोर पर तनाव की स्थिति के मद्देनजर रोहतांग सुरंग सामरिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात सेना तक रसद पहुँचाने का काम भी आसान हो जाएगा।
सुमात्रन गैंडा
- मलेशिया में सुमात्रा प्रजाति का अब एक भी गैंडा नहीं बचा है। बोर्नियो द्वीप स्थित मलेशिया के सबा प्रांत में हाल ही में इमान नामक अंतिम मादा गैंडे की मौत हो गई।
- 25 साल की इमान कैंसर से पीड़ित थी। गौरतलब है कि मलेशिया के अंतिम नर गैंडे की मौत छह महीने पहले ही हो चुकी है। वह मलेशिया के सबा राज्य में बोर्नियो द्वीप पर इमान के साथ उसी रिज़र्व में रहता था।
- विलुप्त होने के कगार पर पहुँची इस प्रजाति के अब सिर्फ 80 गैंडे ही बचे हैं जो इंडोनेशिया के सुमात्रा और बोर्नियो के वनों में निवास करते हैं।
- इस प्रजाति के अस्तित्व को मुख्य खतरा जलवायु परिवर्तन और पारंपरिक चीनी चिकित्सा के लिये बड़े पैमाने पर होने वाले इनके शिकार से है। ऐसे में इनकी संख्या में तेज़ी से गिरावट आ रही है और यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुँच गई है।
- गैंडों की सबसे छोटी प्रजाति सुमात्रा राइनो को वर्ष 2015 में मलेशिया में विलुप्त घोषित किया गया था। पूरे विश्व में गेंडे की 5 प्रजातियाँ हैं। दो प्रजातियाँ अफ्रीका में और तीन प्रजातियाँ एशिया में पाई जाती हैं। सुमात्राई गैंडा सबसे छोटी प्रजाति का होता है।
विश्व स्तर पर 22 सितम्बर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस विशेष रूप से गैंडे की पाँच प्रजातियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये मनाया जाता है. यह पाँच प्रजातियाँ- हैं काला, सफेद, एक सींग वाला गैंडा एवं सुमात्रा और जावा गैंडा।
राज्यपालों का 50वाँ सम्मेलन
- राज्यपालों का 50वाँ सम्मेलन नई दिल्ली में 23-24 नवंबर, 2019 को जनजातीय कल्याण एवं जल, कृषि, उच्च शिक्षा तथा जीवन की सुगमता पर बल दिये जाने के साथ संपन्न हुआ।
- राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुए इस सम्मेलन में राज्यपालों के पाँच समूहों ने इन मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट सौंपी,ऐसे बिंदुओं की पहचान तथा गहन विचार विमर्श किया जिनके संबंध में राज्यपाल मुख्य भूमिका निभा सकते हैं।
- सम्मेलन में जनजातीय कल्याण के मुद्दे पर विशेष बल दिया गया।
- गौरतलब है कि राज्यपाल का पद संघीय व्यवस्था में बेहद महत्त्वपूर्ण है और राज्यपालों को अपनी भूमिका से केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना चाहिये।
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में कहा कि वर्ष 2022 में भारत अपनी आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ और वर्ष 2047 में 100वीं वर्षगाँठ मनाएगा। ऐसे में प्रशासनिक मशीनरी को देश के लोगों के करीब लाने और उन्हें सही राह दिखाने में राज्यपाल की भूमिका कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है।