प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ब्याज सब्सिडी
प्रीलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री मुद्रा योजना मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री मुद्रा योजना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) ने 'प्रधानमंत्री मुद्रा योजना' (Pradhan Mantri Mudra Yojana- PMMY) के तहत सभी शिशु ऋण (Shishu Loan) खातों पर 12 माह की अवधि के लिये 2% की ‘ब्याज सब्सिडी योजना’ (Scheme of Interest Subvention) को मंज़ूरी प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु:
- ऋण सब्सिडी योजना का उद्देश्य COVID- 19 महामारी के कारण छोटे व्यापारियों को हुए नुकसान से राहत प्रदान करना है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत प्रदान किये जाने वाले शिशु (Shishu) ऋण का उद्देश्य सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों की आर्थिक मदद करना है।
ब्याज सब्सिडी योजना के मानदंड:
- योजना उन ऋणों पर लागू की जाएगी जो निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करते हैं:
- प्रथम, जिन ऋणों का भुगतान 31 मार्च, 2020 तक बकाया था।
- द्वितीय, 31 मार्च, 2020 को तथा योजना की परिचालन अवधि के दौरान ऋण को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया हो।
- इसमें वे ऋण भी शामिल किये जाएंगे जिन्हे पूर्व में ‘गैर-निष्पादन परिसंपत्ति’ (Non Performing Assets- NPA) के रूप में वर्गीकृत किया गया था परंतु बाद में उन्हे निष्पादित परिसंपत्ति के रूप शामिल किया गया हो।
- योजना की अनुमानित लागत लगभग 1,542 करोड़ रुपए होगी जिसे भारत सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
'प्रधानमंत्री मुद्रा योजना'
(Pradhan Mantri Mudra Yojana- PMMY):
- प्रधान मंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत 8 अप्रैल, 2015 को गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु / सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक का ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है।
- PMMY के तहत ऋणों को MUDRA ऋण के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- ये ऋण वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंक, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों की व्यवस्था की गई:
- शिशु (Shishu) - 50,000 रुपए तक के ऋण,
- किशोर (Kishor) - 50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण,
- तरुण (Tarun) - 500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण।
- मुद्रा कंपनी को 100% पूंजी का योगदान के साथ ‘भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक’ (Small Industries Development bank of India- SIDBI) के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया है। वर्तमान में मुद्रा कंपनी की अधिकृत पूंजी 1000 करोड़ है और भुगतान की गई पूंजी (Paid Up Capital) 750 करोड़ है।
‘शिशु’ ऋण राहत योजना की आवश्यकता:
- COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण 'सूक्ष्म और लघु उद्यमों' का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इससे इन उद्यमों की ऋण अदायगी क्षमता बहुत प्रभावित हैं । अत: इन कारोबारियों के ऋण के डिफॉल्ट होने तथा NPA में बदलने की बहुत अधिक संभावना है। इसके परिणामस्वरूप भविष्य में संस्थागत ऋणों तक उनकी पहुँच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- 31 मार्च, 2020 तक की स्थिति के अनुसार, PMMY के तहत कुल 9.37 करोड़ रुपए की ऋण राशि बकाया थी।
योजना की रणनीति:
- योजना का क्रियान्वयन भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) के माध्यम से किया जाएगा जिसकी परिचालन अवधि 12 माह होगी।
- जिन ऋणों को RBI के ‘COVID-19 विनियामक पैकेज’ के तहत प्रदान किया गया है, उनके लिये योजना की परिचालन अवधि 01 सितंबर, 2020 से 31 अगस्त, 2021 तक होगी। जबकि अन्य उधारकर्त्ताओं के लिये योजना की परिचालन अवधि 01 जून, 2020 से 31 मई, 2021 तक होगी।
योजना का महत्त्व:
- योजना के क्रियान्वयन से सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों को COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न वित्तीय परेशानियों से निपटने में मदद मिलेगी।
- छोटे कारोबारियों को महामारी के समय धन की कमी का सामना करना पड़ रहा है अत: उनके द्वारा कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है। योजना छोटे कारोबारियों को कर्मचारियों की छंटनी किये बिना ही अपना कामकाज निरंतर जारी रखने में मदद करेगी।
निष्कर्ष:
- COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न संकट के समय मुद्रा योजना के तहत प्रदान की जाने वाली ऋण राहत योजना MSMEs को अपना कामकाज निरंतर जारी रखने में मदद करेगा जिससे अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा तथा देश के आर्थिक पुनरुत्थान को बल मिलेगा।
स्रोत: पीआईबी
निजी क्षेत्र और भारतीय अंतरिक्ष उद्योग
प्रीलिम्स के लियेभारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र मेन्स के लियेअंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भूमिका: लाभ और जोखिम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान संस्थानों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये एक नए निकाय के गठन को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र’ (Indian National Space Promotion and Authorization Centre-IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के माध्यम से दूरगामी सुधार सुनिश्चित करेगा।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह निर्णय भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किये गए सुधारों का एक हिस्सा है।
प्रस्तावित निकाय के कार्य
- सरकार द्वारा प्रस्तावित यह निकाय, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) एवं उस प्रत्येक व्यक्ति तथा संस्था के मध्य एक कड़ी का कार्य करेगा, जो अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं अथवा भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करना चाहते हैं।
- प्रस्तावित निकाय अंतरिक्ष परिसंपत्तियों एवं गतिविधियों के सामाजिक-आर्थिक उपयोग को बढ़ावा देने का कार्य भी करेगा।
- इन-स्पेस (IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों को समान अवसर उपलब्ध कराएगा।
उद्देश्य
- इस निकाय के गठन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी आवश्यक गतिविधियों जैसे- अनुसंधान एवं विकास, ग्रहों के अन्वेषण और अंतरिक्ष के रणनीतिक उपयोग आदि पर ध्यान केंद्रित कर सके और अन्य सहायक कार्यों को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाए।
- इसके अतिरिक्त यह निकाय छात्रों और शोधकर्त्ताओं आदि को भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियों तक अधिक पहुँच प्रदान करेगा, जिससे भारत के अंतरिक्ष संसाधनों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा।
लाभ
- विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार का यह ऐतिहासिक निर्णय ISRO को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देगा।
- ये सुधार ISRO को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों, नई प्रौद्योगिकियों, खोज मिशनों तथा मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान करने में सक्षम बनाएंगे। उल्लेखनीय है कि सरकार कुछ ग्रह संबंधी खोज मिशनों को भी निजी क्षेत्र के लिये खोलने पर विचार कर रही है।
- विदित हो कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में उन्नत क्षमताओं वाले कुछ प्रमुख देशों में शामिल है और इन सुधारों से देश के अंतरिक्ष क्षेत्र को नई ऊर्जा तथा गतिशीलता प्राप्त होगी जिससे भारत को अंतरिक्ष गतिविधियों के आगामी चरण में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
- इससे न केवल भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में तेज़ी आएगी बल्कि भारतीय अंतरिक्ष उद्योग विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इसके साथ ही इस निर्णय से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोज़गार की संभावनाएं बनेंगी।
निजी क्षेत्र और भारत
- भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका अब तक काफी सीमित रही है। सिर्फ कम महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये ही निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली जाती रही हैं। उपकरणों को बनाना और जोड़ना तथा परीक्षण (Assembly, Integration and Testing-AIT) जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य अब तक ISRO द्वारा ही किये जाते रहे हैं।
- उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited- NSIL) का आधिकारिक रूप से बंगलूरु में उद्घाटन किया गया था, जो कि ISRO की एक वाणिज्यिक शाखा है। NSIL का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना था।
- बीते दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि आगामी समय भारत का निजी क्षेत्र भारत के अंतरिक्ष संबंधी कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया था कि सरकार ISRO की सुविधाओं को निजी क्षेत्र के साथ साझा करने पर विचार कर रही है।
अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र- लाभ
- लगातार बढ़ती मांग: हाल के कुछ वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वार्षिक बजट में कुछ वृद्धि हुई है, जो कि ISRO के विकास को दर्शाता है, हालाँकि देश में अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की मांग भी काफी तेज़ी से बढ़ रही है, जिसके कारण ISRO इन मांगों को पूरा करने में समर्थ नहीं है। ऐसे में मांग को पूरा करने के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास: कई विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यदि भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास करना है तो उसे निजी क्षेत्र के लिये एक अनुकूल वातावरण निर्मित करना होगा।
- मानव पूंजी का यथोचित उपयोग: ध्यातव्य है कि अंतरिक्ष गतिविधियों को केवल ISRO तक सीमित करने से, देश में मौजूद मानव पूंजी का यथोचित उपयोग संभव नहीं हो पाता है। इस प्रकार अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिये खोलने से देश में उपलब्ध मानव पूंजी संसाधन का पूर्ण उपयोग संभव हो सकेगा।
- प्रौद्योगिक उन्नति: अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने से बेहतर और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास संभव हो सकेगा। इससे अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी कई अन्य तकनीकों के एकीकरण हो सकेगा।
- जोखिम में कमी: अंतरिक्ष संबंधी प्रत्येक लॉन्च में विभिन्न प्रकार के जोखिम निहित होते हैं, ऐसे में निजी क्षेत्र लागत कारक के जोखिम को साझा करने में मदद कर सकता है।
अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र- जोखिम
- डेटा संबंधी जोखिम: निजी क्षेत्र को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल करने से ISRO और भारत की सुरक्षा से संबंधी डेटा की संवेदनशीलता और इस प्रकार के डेटा के दुरुपयोग तथा अनुचित उपयोग का खतरा काफी अधिक बढ़ जाएगा।
- विनियमन की चुनौती: हालाँकि निजी क्षेत्र को भारत के अंतरिक्ष उद्योग में शामिल करना एक लाभदायक निवेश होगा, किंतु निजी क्षेत्र की भागीदारी का नियमन करना सरकार के लिये सबसे बड़ी चुनौती होगी, जो कि किसी भी प्रकार से सरल कार्य नहीं है।
- राजस्व का नुकसान: निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल करने से ISRO के राजस्व पर भी काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा, जिसका स्पष्ट प्रभाव सरकार के राजस्व पर देखने को मिलेगा।
- अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा- निजी क्षेत्र को इस उद्योग में अनुमति देना एक प्रकार से इस उद्योग में अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा देना होगा, इससे न केवल भारतीय अंतरिक्ष मिशन प्रभावित होगा बल्कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की साख में भी कमी होगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
समुद्र तल की मैपिंग
प्रीलिम्स के लिये:‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ के बारे में मेन्स के लिये:‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ का जलवायु परिवर्तन एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापान के ‘निप्पॉन फाउंडेशन’ (Nippon Foundation) तथा ‘जनरल बेथमीट्रिक चार्ट ऑफ द ओसियनस’ (General Bathymetric Chart of the Oceans-GEBCO) के सहयोग से संचालित ‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ (Seabed 2030 Project) के अंतर्गत संपूर्ण विश्व के समुद्र तल के लगभग पांचवें (⅕) हिस्से की मैपिंग का कार्य पूर्ण किया जा चुका है।
प्रमुख बिंदु:
- वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे (World Hyderography day) के अवसर पर निप्पॉन फाउंडेशन द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है कि GEBCO सीबेड 2030 प्रोजेक्ट के तहत नवीनतम ग्रिड में 1.45 करोड़ वर्ग किलोमीटर के बाथिमेट्रिक डेटा (Bathymetric Data) को शामिल किया जा चुका है।
वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे:
- 21 जून, 2020 को विश्व भर में ‘वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे’ (World Hyderography day) मनाया गया है।
- वर्ष 2020 के लिये वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे की थीम- ‘ऑटोनोमस टेक्नोलॉजीज़ को सक्षम करना’ (Enabling Autonomus Technologies) थी।
- इसका उद्देश्य-हाइड्रोग्राफी अर्थात जल विज्ञान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है।
- इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में संकल्प पारित करके की गई थी।
- निप्पॉन फाउंडेशन-GEBCO के सीबेड 2030 प्रोजेक्ट, के अंतर्गत वर्ष 2030 तक संपूर्ण विश्व के समुद्र तल की मैपिंग का कार्य पूर्ण किया जाना है।
- वर्ष 2017 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई तब से लेकर अब तक आधुनिक मानकों के अनुसार समुद्र तल सर्वेक्षण का लगभग 6 प्रतिशत से 19 प्रतिशत कार्य किया जा चुका है।
सीबेड 2030 प्रोजेक्ट:
- इस परियोजना की घोषणा वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में की गई थी।
- परियोजना की वैश्विक पहल जापान के निप्पॉन फाउंडेशन तथा ‘जनरल बेथमीट्रिक चार्ट ऑफ द ओसियनस’ (GEBCO) के माध्यम से वर्ष 2017 में की गई।
- GEBCO एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है।
- GEBCO को संपूर्ण विश्व के समुद्र तल के नक्शे तैयार करने का आदेश प्राप्त है।
- इस परियोजना के द्वारा महासागर के विभिन्न हिस्सों से स्थित GEBCO ग्रिड के पाँच केंद्रों की सहायता से प्राप्त बाथमीट्रिक डेटा की सोर्सिंग एवं संकलन का कार्य किया जाता है।
समुद्र तल अध्ययन का महत्त्व:
- बाथिमेट्री (Bathymetry ) के माध्यम से महासागर तल के आकार और गहराई की माप की जा सकती है।
- बाथिमेट्री के माध्यम से झीलों, समुद्रों या महासागरों में मौज़ूद पानी की गहराई के स्तर को मापा जाता है।
- बाथिमेट्री डेटा द्वारा गहराई एवं पानी के नीचे की स्थलाकृति के आकार के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है।
- यह अध्ययन समुद्र के संचलन, ज्वार एवं जैविक आकर्षण के केंद्र सहित कई प्राकृतिक घटनाओं को समझने में सहायक है।
- इस अध्य्यन के माध्यम से नेविगेशन के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी, सुनामी की पूर्वसूचना, तेल एवं गैस क्षेत्रों की खोज, अपतटीय पवन टर्बाइन के निर्माण, मछली पकड़ने के संसाधन एवं केबल तथा पाइपलाइन बिछाने से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- आपदा स्थितियों का आकलन करने के लिये भी समुद्र तल का अध्ययन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2011 में जापान के तोहोकू में आए विनाशकारी भूकंप के पीछे के कारणों की पता लगाने में वैज्ञानिकों द्वारा समुद्र अध्ययन से प्राप्त डाटाओं का प्रयोग किया गया था ।
- संपूर्ण वैश्विक महासागरीय तल का एक मानचित्र महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं इनके निरंतर उपयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
- ये मानचित्र महत्वपूर्ण रूप से जलवायु परिवर्तन की बेहतर समझ विकसित करेंगे, क्योंकि घाटी और पानी के नीचे के ज्वालामुखी एवं सतह की विशेषताएँ समुद्री जलके ऊर्ध्वाधर मिश्रण (vertical mixing of ocean water)एवं समुद्र की धाराओं जैसे घटना को प्रभावित करती हैं - जो गर्म और ठंडे पानी के कन्वेयर बेल्ट के रूप में कार्य करती हैं, जलवायु परिवर्तन ने इन धाराओं के प्रवाह को भी प्रभावित किया है।
- ये समुद्री धाराएँ मौसम और जलवायु दशाओं को प्रभावित करती हैं। समुद्री धारााओं के बारे में प्राप्त अधिकाधिक जानकारी वैज्ञानिकों को भविष्य में जलवायु के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने वाले मॉडल विकसित करने में सहायक होगी , जिसमें समुद्र-स्तर की वृद्धि भी शामिल है।
- इस परियोजना के माध्यम से विश्व को समुद्री संसाधनों के बारे में नीतिगत निर्णय लेने, महासागर की सही स्थिरता की जानकारी एवं वैज्ञानिक अनुसंधान से संबंधित गतिविधियों को नई दिशा मिलेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
एक्सट्रीम हीलियम तारा
प्रीलिम्स के लिये:एक्सट्रीम हीलियम तारा, श्वेत वामन मेन्स के लिये:एक्सट्रीम हीलियम तारे तथा इनके वायुमंडल में एकल आयन फ्लोरीन की उपस्थित का महत्त्व |
चर्चा में क्यों:
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के स्वायत्त संस्थान, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics-IIA) द्वारा किये गए अध्ययन में गर्म एक्सट्रीम हीलियम स्टार्स (Extreme Helium Star- EHe) के वायुमंडल में पहली बार एकल आयन फ्लोरीन की उपस्थिति का पता चला है।
प्रमुख बिंदु
- यह अध्ययन एस्ट्रोफिज़िकल जर्नल (Astrophysical Journal) में प्रकाशित हुआ है।
- इस शोध/अध्ययन के लिये हानले, लद्दाख में स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला (Indian Astronomical Observatory-IAO) में संचालित 2-मी. हिमालयी चंद्र टेलीस्कोप (Himalayan Chandra Telescope) पर लगे हुए हानले ऐशेल स्पेक्टोग्राफ (Hanle Echelle Spectrograph- HESP) से 10 गर्म EHes के उच्च-रिज़ॉल्यूशन ऐशेल स्पेक्ट्रा प्राप्त किये गए।
- इस वेधशाला का संचालन दूरस्थ रूप से भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा मैकडॉनल्ड्स वेधशाला (McDonald Observatory), अमेरिका और यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (European Southern Observatory-ESO) के डेटा के साथ किया जाता है।
एक्सट्रीम हीलियम तारा क्या है?
Extreme Helium Star (EHe)
- एक एक्सट्रीम हीलियम तारा या EHe कम द्रव्यमान वाला सुपरजायंट (बहुत बड़े व्यास और कम घनत्व का एक अत्यंत चमकीला तारा) है जिसमें हाइड्रोजन मौजूद नहीं होता है। जबकि हाइड्रोजन ब्रह्मांड का सबसे आम रासायनिक तत्त्व है।
- हमारी आकाशगंगा में अब तक ऐसे 21 तारों का पता लगाया गया है। इन हाइड्रोजन रहित पिंडों की उत्पत्ति और विकास एक रहस्य है। इनकी रासायनिक विशिष्टताएँ विकास के स्थापित सिद्धांत को चुनौती देती हैं,क्योंकि इनकी रासायनिक संरचना कम द्रव्यमान वाले विकसित तारों के समान नहीं होती है।
अध्ययन का महत्त्व
- यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि EHe के निर्माण में मुख्य रूप से में कार्बन-ऑक्सीजन (CO) और एक हीलियम (He) श्वेत वामन तारों (White Dwarfs) का विलय शामिल होता है।
श्वेत वामन (White Dwarfs)
- एक श्वेत वामन या सफेद बौने तारे का निर्माण तब होता है जब सूर्य जैसा कोई तारा अपने परमाणु ईंधन को समाप्त कर देता है।
- अपने परमाणु ईंधन के जलने के अंतिम चरण तक, इस प्रकार का तारा अपने बाह्य पदार्थों का सर्वाधिक निष्कासन करता है, जिसके परिणामस्वरूप निहारिका (nebula) का निर्माण होता है।
- तारे का केवल गर्म कोर शेष रहता है। यह कोर एक बहुत गर्म सफेद बौना तारा बन जाता है, जिसका तापमान 100,000 केल्विन से अधिक होता है।
- यद्यपि इनका आकार सूर्य के आकार का लगभग आधा होता है फिर भी ये पृथ्वी से बड़े होते हैं।
- Ehe तारों के विकास के बारे में जानने के लिये उनकी रासायनिक संरचना के सटीक निर्धारण की आवश्यकता होती है और यदि कोई विशिष्टता हो, तो बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
- हाइड्रोजन रहित इन पिंडों के विकास को समझने में फ्लोरीन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्म एक्सट्रीम हीलियम तारों में फ्लोरीन की खोज से उनके विकास के रहस्य के बारे में पता चल सकता है।
- ठंडे EHe तथा ठंडे चिरसम्मत हाइड्रोजन रहित पिंडों (Classical Hydrogen Deficient Stars) में सामान्य तारों (800- 8000 के क्रम का) की तुलना में उच्च फ्लोरीन संवर्द्धन पाया गया। RCB परिवर्तक यानी उत्तरकीरीट तारामंडल (Coronae Borealis) में उपस्थित तारे इन दोनों के बीच निकट विकासवादी संबंध को इंगित करते हैं।
निष्कर्ष
- यह अध्ययन गर्म EHe के विकास क्रम में ठंडे Ehe और अन्य हाइड्रोजन-रहित तारों के विकासवादी परिदृश्य- जिसमें दो श्वेत वामन तारों का विलय शामिल है, के बारे में जानकारी प्रदान करता है। गर्म EHe के वायुमंडल में अधिक फ्लोरीन प्रचुरता के बारे में जानकारी प्राप्त होने से उनके निर्माण के बारे में दशकों पुराना रहस्य हल हो सकता है।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान
(Indian Institute of Astrophysics-IIA)
- यह देश का एक प्रमुख संस्थान है, जो खगोल ताराभौतिकी एवं संबंधित भौतिकी में शोधकार्य को समर्पित है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department Of Science & Technology- DST) के अवलंब से संचालित यह संस्थान आज देश में खगोल एवं भौतिकी में शोध एवं शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है।
- संस्थान की प्रमुख प्रेक्षण सुविधाएँ कोडैकनाल (तमिलनाडु), कावलूर (कर्नाटक), गौरीबिदनूर (कर्नाटक) एवं हानले (लद्दाख) में स्थापित हैं।
पृष्ठभूमि
- इसका उद्गम मद्रास (चेन्नई) में वर्ष 1786 में स्थापित की गई एक निजी वेधशाला से जुड़ा है, जो वर्ष 1792 में नुंगमबक्कम (Nungambakkam) में मद्रास वेधशाला के रूप में कार्यशील हुई। वर्ष 1899 में इस वेधशाला को कोडैकनाल में स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1971 में कोडैकनाल वेधशाला ने एक स्वायत्त संस्था भारतीय ताराभौतिकी संस्थान का रूप ले लिया।
- वर्ष 1975 में संस्थान का मुख्यालय कोरमंगला, बंगलूरू में स्थानांतरित हुआ।
स्रोत: पी.आई.बी.
आईएमएफ: वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में तीव्र गिरावट
प्रीलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बारे में मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वार जारी रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 महामारी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई स्थिरता के कारण ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ ( International Monetary Fund- IMF) द्वारा वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.5% तक की गिरावट आने का अनुमान लगाया है। जो अपने आप में एक ऐतिहासिक गिरावट हो सकती है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ के अनुसार वर्ष 2020 के लिये वैश्विक विकास दर 4.9% रहने का अनुमान लगाया जा रहा है, जो कि अप्रैल 2020 में वर्ल्ड इकोनॉमी आउटलुक (World Economic Outlook-WEO) में जारी अनुमान से 1.9 % कम है।
- COVID-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 की पहली छमाही में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अधिक नकारात्मक प्रभाव दिखा है जो सभी क्षेत्रों में देखा गया है।
- चीन में हालांकि पहली तिमाही में आई गिरावट के बाद से अर्थव्यवस्था में सुधार प्रक्रिया जारी है, अतः चीन में वर्ष 2020 में विकास दर 1 प्रतिशत अनुमानित की गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में वैश्विक विकास दर 5.4 फीसदी अनुमानित की गई है।
भारत की स्थिति:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ के अनुसार, लंबे समय तक चली लॉकडाउन की स्थिति एवं धीमी आर्थिक गतिविधयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.5 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है।
- अर्थव्यवस्था में यह गिरावट वर्ष 1961 के बाद से अब तक की सबसे निम्न विकास दर को दर्शाती है।
- हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः वापसी के साथ 6 % की विकास दर हासिल कर लेगी।
- वर्ष 2019 में भारत की वृद्धि दर 4.2 % पर रही थी।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ द्वार भारत की वर्ष 2020 की स्थित का यह अनुमान अप्रैल के अनुमान से बेहतर है. क्योंकि अप्रैल में अनुमान था कि वर्ष 2020 में यह गिरावट 6.4% तक रह सकती है।
- वर्ष 2021 में 6 % वृद्धि का अनुमान अप्रैल में आई रिपोर्ट की तुलना में 1.4 % कम है।
महामारी का वैश्विक अर्थव्यस्था पर प्रभाव:
- वर्ष 2020 में विकसित, उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी।
- विकसित अर्थव्यवस्था में जहाँ वृद्धि दर में 8% की गिरावट देखी जाएगी वहीं उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मामले में वृद्धि दर 3 % तक घटेगी और अगर चीन को हटा दिया जाए तो यह गिरावट 5 प्रतिशत होगी।
- वर्ष 2020 में 95% से अधिक देशों में प्रति व्यक्ति आय में भी नकारात्मक वृद्धि देखने को मिलेगी।
वर्तमान परिदृश्य:
- 75 % से अधिक देश अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ खोल रहे हैं तो दूसरी तरफ कई उभरते बाज़ारों में इस महामारी के तेज़ी से फैलने के कारण तथा चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण रिकवरी की अनिश्चिता की स्थिति बनी हुई है।
- इन अनिश्चिताओं के चलते विभिन्न क्षेत्रों एवं देशों की अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर इसका प्रभाव अलग-अलग देखा जा रहा है।
- अगर संक्रमण के बढ़ने की दर तीव्र होती है तो खर्च और बढ़ेंगे तथा वित्तीय स्थिति और ख़राब होगी।
- इसके अलावा वर्तमान भू-राजनीतिक एवं व्यापार तनाव वैश्विक अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुँचा सकते है जब व्यापार में करीब 12 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 जून, 2020
कुशीनगर हवाई अड्डा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश में कुशीनगर हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में घोषित किये जाने को स्वीकृति दे दी है। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के काफी नज़दीक होने के कारण यह हवाई अड्डा सामरिक दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से कुशीनगर न केवल आर्थिक, सामरिक और व्यापारिक योगदानों के लिये दुनिया भर में जाना जाएगा बल्कि यह पर्यटन का हब भी बनेगा। कुशीनगर उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित है और गोरखपुर से 50 किलोमीटर पूर्व में है। साथ ही यह प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक भी है। इसके पास ही लुंबिनी, श्रावस्ती, कपिलवस्तु जैसे प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल हैं जबकि थोड़ी दूरी पर सारनाथ और गया जैसे स्थान भी मौजूद हैं। महत्त्वपूर्ण बौद्ध स्थल होने के कारण थाईलैंड, कंबोडिया, जापान, म्याँमार जैसे देशों से लगभग प्रति सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में कुशीनगर के हवाई अड्डे को एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा घोषित करने से यहाँ से हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों को प्रतिस्पर्द्धात्मक लागत पर अधिक विकल्प मिल सकेंगे तथा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा। इसके साथ ही क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी गति मिलेगी।
जम्मू और कश्मीर में देविका और पुनेजा पुल
हाल ही में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने आभासी मंच के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में ऊधमपुर और डोडा ज़िलों में दो अहम सेतु क्रमशः देविका और पुनेजा का शुभारम्भ किया है। तकरीबन 10 मीटर लंबा देविका पुल जम्मू-कश्मीर में ऊधमपुर ज़िले में स्थित है, ध्यातव्य है कि आज़ादी के बाद से ही इस ज़िले में एक पुल की मांग की जा रही थी, यह पुल इस क्षेत्र में यातायात की समस्या के लिये परिवर्तनकारी साबित होगी। इसके अतिरिक्त देविका सेतु के माध्यम से सेना के काफिलों और वाहनों की सुगम आवाजाही में भी सहायता मिलेगी। इस पुल का निर्माण सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation-BRO) द्वारा 75 लाख रुपए की लागत से एक वर्ष की अवधि में किया गया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में स्थित पुनेजा पुल का निर्माण भी सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा लगभग 4 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है और इसकी लंबाई तकरीबन 50 मीटर है। सीमा सड़क संगठन (BRO) रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख सड़क निर्माण एजेंसी है। इसकी स्थापना 07 मई, 1960 को की गई थी। यह संगठन सीमा क्षेत्रों में सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यह पूर्वी और पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में सड़क निर्माण और इसके रखरखाव का कार्य करता है ताकि सेना की रणनीतिक ज़रूरतें पूरी हो सकें। गौरतलब है कि सीमा सड़क संगठन ने भूटान, म्याँमार, अफगानिस्तान आदि मित्र देशों में भी सड़कों का निर्माण किया है।
पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास फंड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 15,000 करोड़ रुपए के पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास फंड (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund-AHIDF) की स्थापना को मंज़ूरी दे दी है। इस फंड का उद्देश्य डेयरी, माँस प्रसंस्करण और पशु चारा संयंत्रों में निजी कारोबारियों और MSMEs के निवेश को प्रोत्साहित करना है। सरकार के अनुमान के अनुसार, इस पहल के कारण तकरीबन 35 लाख रोज़गार सृजित होने की संभावना है। ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा गठित यह फंड COVID-19 वायरस की रोकथाम के लिये लागू किये गये लॉकडाउन से प्रभावित लोगों की मदद करने के उद्देश्य से मई माह में घोषित 20 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज का हिस्सा है। इस सरकारी फंड के माध्यम से डेयरी, माँस प्रसंस्करण और पशु चारा संयंत्रों की स्थापना के लिये किसान उत्पादक संगठनों, MSMEs और निजी कंपनियों को 3-4 प्रतिशत की ब्याज़ सहायता दी जाएगी। गौरतलब है कि किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organisations-FPO), MSMEs, कंपनी अधिनियम की धारा-8 के तहत आने वाली कंपनियाँ, निजी कंपनियाँ और व्यक्तिगत उद्यमी इस फंड से लाभ प्राप्त करने के पात्र होंगे। आधिकारिक सूचना के अनुसार, ऋण चुकाने के लिये दो वर्ष की अवकाश अवधि होगी और उसके बाद छह साल में ऋण का पुनर्भुगतान करना होगा।
अमर्त्य सेन
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को सामाजिक न्याय के प्रश्न पर उनके द्वारा किये गए कई दशक लंबे कार्य को मान्यता देने के लिये जर्मन बुक ट्रेड (German Book Trade) के शांति पुरस्कार (Peace Prize) से सम्मानित किया गया है। जर्मन बुक ट्रेड द्वारा वर्ष 1950 से लगातार प्रतिवर्ष यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। शांति पुरस्कार के माध्यम से, जर्मन बुक ट्रेड का उद्देश्य उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जिन्होंने साहित्य, विज्ञान और कला के क्षेत्र में अपनी गतिविधियों के माध्यम से शांति के विचार को साकार करने में उत्कृष्ट योगदान दिया है। उल्लेखनीय है कि अमर्त्य सेन से पूर्व भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दर्शनशास्त्र के विकास में उनके योगदान के लिये वर्ष 1961 में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, इस पुरस्कार को पाने वाले वे पहले भारतीय थे। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अमर्त्य सेन को वर्ष 1998 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया है। अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवंबर, 1933 को पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन (Santiniketan) में हुआ था।