डेली न्यूज़ (25 Jun, 2019)



मलेरिया के लिये नए बायोमार्कर की पहचान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research’s- ICMR) के जबलपुर स्थित राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (National Institute of Research in Tribal Health- NIRTH) के शोधकर्त्ताओं ने मलेरिया परजीवी के शरीर में एक आनुवांशिक अनुक्रम की पहचान की है।

  • इसके माध्यम से बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील नैदानिक/चिकित्सकीय परीक्षण विकसित करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में मलेरिया के निदान के लिये एक जीन, हिस्टिडीन-समृद्ध प्रोटीन 2 (Histidine-rich Protein 2- HRP2) पर आधारित परीक्षण का उपयोग किया जाता है। हालाँकि यह जीन अक्सर मलेरिया परजीवी के कुछ स्ट्रेन में अनुपस्थित होता है।
  • NIRTH के वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लूटामेट डिहाइड्रोजनेज़ (Glutamate Dehydrogenase) नामक एक एंजाइम का प्रयोग मलेरिया के निदान हेतु एक संभावित बायोमार्कर के रूप में किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रत्येक परजीवी में अनेक विशिष्ट जीन उपस्थित होते हैं जिन्हें परजीवी को पहचानने या समाप्त करने के लिये लक्षित किया जा सकता है। हालाँकि ये जीन एक परजीवी के सभी स्ट्रेन्स (Strains) में समान रूप में उपस्थित नहीं होते।
  • नैदानिक या चिकित्सकीय उद्देश्यों हेतु जीन या प्रोटीन की पहचान करते समय वैज्ञानिक किसी ऐसे विशेष जीन या प्रोटीन का चयन करते हैं जो किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित रहता है ताकि इसका उपयोग किसी एक क्षेत्र में व्यापक रूप से किया जा सके। इस तरह के जीन को अच्छी तरह से संरक्षित माना जाता है।

जैवसूचक (Biomarker)

  • जैवसूचक/बायोमार्कर एक प्रमुख आणविक या कोशिकीय घटनाएँ हैं जो किसी विशिष्ट पर्यावरणीय आवरण को स्वास्थ्य के लक्षणों से जोड़ते हैं।
  • पर्यावरणीय रसायनों के संपर्क में आने, पुरानी मानव बीमारियों के विकास और रोग के लिये बढ़ते खतरे के बीच उपसमूहों की पहचान करने में जैवसूचक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Biomarker

परीक्षण

  • वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में तीन जीनों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया-

1. ग्लूटामेट डिहाइड्रोजनेज (Glutamate dehydrogenase)

2. लैक्टेट डिहाइड्रोजनेज (Lactate dehydrogenase)

3. प्लास्मोडियम फाल्सीपेरियम के एल्डोलेज (Aldolase of Plasmodium falciparium)

ये सभी जानलेवा मलेरिया परजीवी की एक किस्म हैं।

  • आठ राज्यों जहाँ मलेरिया एक स्थानिक बीमारी है, से मलेरिया-संक्रमित 514 रोगियों के रक्त के नमूने एकत्र किये। नमूनों में उपस्थित तीनों जीनों में ग्लूटामेट डिहाइड्रोजनेज की न्यूक्लियोटाइड संरचना लगभग समान थी।
  • इस जीन की प्रोटीन संरचना के विश्लेषण के अनुसार, रक्त के नमूनों की प्रोटीन संरचना में एक समान परिवर्तन पाया गया, तथा निष्कर्ष निकाला गया कि यह मलेरिया के लिये एक संभावित बायोमार्कर/जैवसंकेतक (Biomarker) हो सकता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Medical Research’s- ICMR)

  • जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्धन के लिये भारत का यह शीर्ष निकाय दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।
  • इसे भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Department of Health Research, Ministry of Health & Family Welfare) के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।

राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान

(National Institute of Research in Tribal Health- NIRTH)

  • यह भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, परिवार कल्याण मंत्रालय (Department of Health Research, Ministry of Health of Family Welfare) के तहत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) का एक स्थायी संस्थान है।
  • इसकी स्थापना 1 मार्च, 1984 को जबलपुर में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा किया गया।
  • इसका मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य में सुधार लाना एवं परिचालन अनुसंधान के माध्यम से आदिवासियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
  • इस संस्थान को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वदेशी जनसंख्या के स्वास्थ्य के लिये सहयोगी केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इस संस्थान में मलेरिया, फाइलेरिया, तपेदिक, डायरिया, वायरोलॉजी, फ्लोरोसिस और सामाजिक विज्ञान आदि पर महत्त्वपूर्ण शोध किये जाते हैं।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


सुपरबग का प्रसार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक शोध के अनुसार, पादप-आधारित खाद्य पदार्थों के माध्यम से मनुष्य के शरीर में एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोधी बैक्टीरिया (Anti-microbial resistant bacteria) या सुपरबग्स (superbugs) का संचार हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि शोधकर्त्ताओं ने चूहों पर प्रयोग किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये लेट्यूस-माउस मॉडल (Lettuce–Mouse Model) नामक एक विधि का इस्तेमाल करके सुपरबग ई-कोलाई (E-coli) पर अध्ययन किया गया।

superbugs

प्रमुख बिंदु

  • एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमण (Antibiotic-Resistant Infections) सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्र के लिये वैश्विक रूप से एक बड़ा खतरा है।
  • अतः इस प्रकार के संक्रमणों को रोकने के लिये बैक्टीरिया के संचरण की प्रक्रिया को समझना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार, पादप-आधारित खाद्य पदार्थ एंटीबायोटिक प्रतिरोध को आँतों के माइक्रोबायोम तक पहुँचाने के लिये माध्यम के रूप में काम करते हैं।
  • हालाँकि पादपों/पौधों से मनुष्यों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सुपरबग्स के प्रसार का प्रभाव दूषित सब्जियों को खाने के तुरंत बाद होने वाली डायरिया जैसी बीमारियों के प्रभाव से भिन्न है।
  • सुपरबग आँतों में महीनों या वर्षों तक छिपे रह सकते हैं और शरीर से बाहर निकलते समय संक्रमण कर सकते हैं।

सुपरबग (Superbugs)

  • सुपरबग एक ऐसा सूक्ष्मजीव है, जिस पर एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स का प्रभाव नहीं पड़ता। एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को ‘सुपरबग’ के नाम से जाना जाता है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग बहुतायत मात्रा में किये जाने के कारण बैक्टीरिया में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई है जिससे उन पर दवाओं का असर न के बराबर हो रहा है।
  • यही प्रभाव अन्य सूक्ष्मजीवियों (Micro-Organism) के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, यानी एंटीफंगल (Antifungal), एंटीवायरल (Antiviral) और एंटीमलेरियल (Antimalarial) दवाओं का असर भी कम होने लगा है।
  • अतः एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) ही नहीं बल्कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) भी आज समस्त विश्व के लिये एक बड़ा खतरा बना हुआ है, क्योंकि इसके कारण सामान्य बीमारियों के चलते भी मौत हो सकती है।

स्रोत- द हिंदू


भारत में धार्मिक स्वतंत्रता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित अमेरिकी विदेश मंत्रालय के राज्य विभाग की एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत सरकार अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने में विफल रही है। इसके प्रत्युत्तर में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि किसी भी देश को भारत के जीवंत लोकतंत्र और विधि के शासन के बारे में आलोचना करने का कोई अधिकार नही है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह रिपोर्ट इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस रिपोर्ट को व्यक्तिगत रूप से जारी करने वाले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की हाल ही में आधिकारिक यात्रा भी प्रस्तावित है। इसको जारी करने के दौरान धार्मिक स्वतंत्रता को ‘बेहद व्यक्तिगत’( deeply personal) प्राथमिकता के रूप में संदर्भित किया गया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र और विभिन्न राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने मुस्लिम समुदाय को परेशान करने वाले कदम उठाए।
  • गाय के संबंध में भीड़ द्वारा हिंसा और हत्याओं के साथ ही अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थानों को कमज़ोर करने,इलाहाबाद जैसे शहरों के नाम परिवर्तित कर प्रयागराज करने से भारतीय बहुलवादी संस्कृति को चोट पहुँची है, जैसे बिंदुओं को रिपोर्ट ने प्रमुखता से प्रस्तुत किया है।
  • रिपोर्ट में भाजपा और उसके कई नेताओं को अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण, असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizen- NRC) और राज्यों में मुस्लिम समुदाय को लक्षित करने संबंधी विशिष्ट बिंदुओं का भी उल्लेख किया गया है।
  • सरकार ने इसके जबाब देते हुए कहा है कि “भारत एक जीवंत लोकतंत्र है,जहाँ संविधान धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है तथा मौलिक अधिकारों के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करता है और साथ ही लोकतांत्रिक शासन और विधि के शासन को बढ़ावा भी देता है।”

भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी प्रावधान

  • भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि संविधान किसी धर्म विशेष को मान्यता नही देता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है क्योंकि पश्चिम की पूर्णतया अलगाववादी नकारात्मक अवधारणा के बजाय भारत में समग्र रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की संवैधानिक मान्यता प्रचलित है।
  • भारत के मूल संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग नही था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन 1976 के माध्यम से धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किया गया।
  • किसी भी व्यक्ति को क़ानून के समक्ष समान समझा जायेगा (अनु 14 ),साथ ही किसी भी व्यक्ति से धार्मिक आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता है। (अनु.15)
  • सार्वजनिक सेवाओं में सभी नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे (अनु.16) ।
  • प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म के अनुपालन की स्वतंत्रता है और इसमें पूजा अर्चना की भी व्यवस्था शामिल है। (अनु 25)
  • किसी भी सरकारी शैक्षणिक संस्थान में किसी भी प्रकार के धार्मिक निर्देश नही दिये जा सकते हैं। (अनु 28)
  • राज्य सभी नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बनाने का प्रयास करेगा। (अनु 44)
  • इसके अतिरिक्त मूल अधिकारों को अनुच्छेद 32 के तहत विशेष रूप से संरक्षित किया गया है।

स्रोत- द हिंदू


जल संकट वाले विश्व के शीर्ष 20 शहरों की सूची में चार भारतीय शहर

संदर्भ

भारत का छठा सबसे बड़ा राज्य चेन्नई वर्तमान में भारी जल संकट से जूझ रहा है जोकि समय के साथ और अधिक विकराल रूप धारण करता जा रहा है।

  • चेन्नई का जल संकट यह स्पष्ट करता है कि यदि आपका शहर बाढ़ से प्रभावित होता है तो यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं कि वह जल संकट से प्रभावित नहीं हो सकता, क्योंकि कुछ ही वर्षों पहले चेन्नई ने विनाशकारी बाढ़ का सामना किया था, जिसके कारण कई लोगों की मृत्यु हुई थी तथा लगभग 1.8 मिलियन लोग विस्थापित हुए थे और इन सब के प्रभाव से अर्थव्यवस्था को कुल 3 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था।

मुख्य बिंदु:

  • विशेषज्ञों का मानना है कि चेन्नई का यह जल संकट बीते वर्ष साउथ अफ्रीका की राजधानी केप टाउन के जल संकट से भी अधिक भयानक है। ज्ञातव्य है कि केप टाउन के जल संकट में जलाशयों का स्तर काफी नीचे चला गया था और इस स्थिति से निपटने के लिये सरकार को आपातकालीन सुरक्षा उपाय अपनाने पड़े थे।
  • परंतु चेन्नई की यह स्थिति आश्चर्यचकित करने वाली नहीं है, क्योंकि जब वर्ष 2018 में जल संकट के उच्च स्तर का सामना कर रहे विश्व के 400 महानगरों का मूल्यांकन किया गया था तब उस सूची में चेन्नई को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था।
  • चेन्नई के अलावा भारत के 4 अन्य महानगरों को भी इस सूची के शीर्ष 20 महानगरों में शामिल किया गया था। सूची में कोलकाता को दूसरा और मुंबई तथा दिल्ली को क्रमशः 11वाँ तथा 15वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।

Chennai Water Risk

  • नदियों के किनारों पर बसे बड़े शहर जल संकट की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हैं क्योंकि नदियों का लगभग सारा पानी ‘अत्यधिक आवंटित और कुप्रबंधित’ है।
  • कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 1970 से अब तक विश्व ने कुल आर्द्रभूमियों (Wetlands) का 35 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है और हम इसे जंगलों की तुलना में तीन गुना अधिक तेज़ी से खो रहे हैं।
  • आर्द्रभूमि किसी भी शहर के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है, परंतु जैसे-जैसे आर्द्रभूमि सिकुड़ती जा रही है वैसे-वैसे हम अपने प्राकृतिक अपशिष्ट जल प्रबंधन के स्थानों को भी खो रहे हैं और इन स्थान के अभाव में वह अपशिष्ट जल बिना किसी उपचार के नदियों में जा रहा है जो नदी प्रदूषण का प्रमुख कारण है।

स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया


समुद्री कचरे के निपटान हेतु आसियान देशो की प्रतिबद्धता

चर्चा में क्यों?

आसियान (ASEAN) देशो ने समुद्री कचरों से निपटने के लिये एक साझा रूपरेखा 'बैंकॉक घोषणा' तैयार की है जिस पर आसियान देशों की आगामी बैठक के दौरान हस्ताक्षर किये जा सकते हैं।

Asian waste

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2017 की महासागरीय संरक्षण रिपोर्ट (Ocean Conservancy Report) के अनुसार, केवल पाँच एशियाई देश (चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और थाईलैंड) हर साल महासागरों में लगभग आठ मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरा गिराते हैं।
  • अपनी आगामी बैठक (जिसकी मेज़बानी थाईलैंड करेगा) में आसियान देशों ने समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिये 'बैंकॉक घोषणा' का प्रस्ताव रखा है। साझी रणनीति के तहत इस प्रकार की यह पहली घोषणा है।
  • थाईलैंड में ग्रीनपीस के विशेषज्ञ के अनुसार, जब तक उत्पादन प्रक्रिया में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को कम नहीं किया जाएगा तब तक 'बैंकॉक घोषणा' सफल नही होगी।
  • फिलीपींस में प्रदूषित नहरों की भयावह स्थिति, प्लास्टिक से भरे वियतनाम के समुद्र तट, आदि के कारण समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण लगातार चर्चा में रहा है। थाईलैंड और वियतनाम की कुछ निजी कंपनियों ने प्लास्टिक उत्पादों को पुनः प्रयोज्य (Recycled) सामग्रियों के साथ रूपांतरित करना शुरू किया है, लेकिन सरकार की नीतियों से अभी तक इनका समन्वय नही हो पाया है।

आसियान क्षेत्रो में समुद्री कचरे की अधिकता के कारण

  • अधिकांशतः समुद्री कचरा,नदियों के द्वारा अप्रबंधित कचरे के रूप में आता है। हेल्महोल्त्ज़ सेंटर फ़ॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च (Helmholtz Centre for Environmental Research) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, महासागरों तक पहुँचने वाले 90% प्लास्टिक की उत्पत्ति केवल 10 नदियों से हुई, जिनमें से आठ एशिया में हैं। यह क्षेत्र नदियों द्वारा लाये गये प्रदूषको से विशेष रूप प्रभावित है।
  • जनसँख्या घनत्व की अधिकता और तटीय क्षेत्रों में इनका सघन वितरण समुद्री प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • उद्योगप्रधान अर्थव्यवस्था से निकलने वाला कचरा भी प्रदूषण के संकेंद्रण का कारण है साथ ही इस क्षेत्र से बड़ी मात्रा में समुद्री प्रदूषण उत्पादों को निर्यात भी किया जाता है।
  • व्यस्त समुद्री जलमार्ग की उपस्थिति से भी प्रदूषण बढ़ता है। इस क्षेत्र से हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर क सम्पर्क मार्ग के साथ, जापान, दक्षिण-कोरिया और चीन जैसी अर्थव्यवस्थायओं को तेल की आपूर्ति भी इसी क्षेत्र से होती है।
  • समुद्र तट के आस-पास विनिर्माण गतिविधियों की अधिकता और शहरीकरण भी प्रदूषण की मात्रा में योगदान देता है।
  • अत्यधिक पर्यटन से भी समुद्री प्रदूषण में वृद्धि होती है।
  • कृषि गतिविधियों और रसायनो के प्रयोग की अधिकता भी समुद्री विषाक्ता का एक प्रमुख कारक है।

वैश्विक स्तर पर समुद्री प्रदूषण को रोकने के लिय किये गये प्रयास

  • UN पर्यावरण द्वारा प्रारंभ क्लीन सी अभियान (Clean Sea Campaign) प्रारंभ किया गया है। इसका उद्देश्य वर्ष 2002 तक समुद्री प्रदूषणों के प्रमुख स्रोतों सौंदर्य प्रसाधनो, माइक्रो प्लास्टिक और एकल प्लास्टिक के इस्तेमाल को सीमित करना है।
  • बेसल अभिसमय (Basel Convention) द्वारा समुद्र में प्रवाहित कचरे की रोकथाम के प्रयास किये गये है।
  • होनोलूलू रणनीति: यह व्यापक और वैश्विक सहयोगात्मक प्रयास हेतु एक कार्ययोजना है। जिसका उद्देश्य विश्व भर में समुद्री मलबे के पारिस्थिक, आर्थिक और मानव स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों को कम करना है।
  • ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच की सफाई के लिये प्रशांत महासागर में ओशन क्लीनअप (Ocean CleanUp) परियोजना प्रारंभ की गई। इसके अंतर्गत हवाई से कैलिफोर्निया तक के प्रदूषण को दूर करने का लक्ष्य रखा गया।
  • प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये सहयोग (Alliance to end Plastic Waste) को हाल में ही शुरू किया गया है। यह एक गैर लाभकारी संगठन है, जिसमे विश्व की कई कंपनियाँ शामिल हैं। भारत से रिलायंस कंपनी इसमें भाग लेगी।
  • कोपेनहेगन स्थित पर्यावरण शिक्षा फाउंडेशन (Foundation For Environment Education-FEE) द्वारा ब्लू फ्लैग कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम के तहत समुद्री तटों की सफाई को प्रोत्साहित किया गया।

आगे की राह

  • नदियों में प्रवाहित कचरों का इनके प्रारंभिक स्रोतों पर ही उपचार किया जाना चाहिये।
  • प्लास्टिक उत्पादों को पुनः प्रयोज्य प्लास्तिस के साथ स्थानांतरित किया।
  • समुद्री तटों पर पर्यावरण के अनुकूल इमारतों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए।
  • समुद्री तटों पर पर्यटन के लियी विशेष नियामक बनाये जाने चाहिये साथ ही इनके अनुपालन की सुनिश्चितता भी निर्धारित की जाए।
  • तटों पर निवास करने वाले लोगो को विशेष रूप से पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रशिक्षित किया जाए क्योंकि यही लोग विशेष रूप से तटों के आस-पास कृषि,पर्यटन और अन्य गतिविधियों में संलग्न रहते है।
  • निजी कंपनियों और सरकार के मध्य नीति, निर्माण और क्रियान्वयन के लिये बेहतर समन्वय तंत्र स्थापित किये जाने चाहिये।

स्रोत : द हिंदू


द इंडिया सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट- 2018

संदर्भ

आर्थिक समृद्धि और सामाजिक विकास के मध्य बढ़ते अंतराल और असमानता के सामाजिक प्रभावों पर हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome - AES) जैसी आपदाओं के लिये राज्य की नीतियों (State policies) को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

  • ‘द इंडिया सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट-2018’ नाम से यह अध्ययन ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा सामाजिक विकास परिषद (Council for Social Development - CSD) की ओर से प्रकाशित की गई है।
  • यह रिपोर्ट कुल 7 खंडों में विभाजित है जिसमें कुल 22 शोध-पत्र शामिल हैं। रिपोर्ट का संपादन कृषि लागत और मूल्य आयोग(Commission for Agricultural Costs and Prices) के पूर्व अध्यक्ष टी हक (T Haque) और स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस के पूर्व डीन नरसिंह रेड्डी (Narasimha Reddy) द्वारा किया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु :

  • ‘बहुआयामी असमानता’ पर केंद्रित इस रिपोर्ट में 6 आयामों और 28 सूचकों के आधार एक सामाजिक विकास सूचकांक (Social Development Index - SDI) तैयार किया गया है।
  • प्रस्तुत सूचकांक का निष्कर्ष यह है कि जो राज्य आर्थिक रूप से प्रगतिशील हैं उनके लिये यह आवश्यक नहीं है कि सामाजिक विकास में भी शीर्ष पर हों।
  • रिपोर्ट के अनुसार “केरल, मिज़ोरम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और मेघालय जैसे राज्य उन राज्यों में आते हैं जहाँ सामाजिक विकास तो बहुत अधिक है, परंतु प्रति व्यक्ति आय की कमी है।”
  • इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश और हरियाणा उन राज्यों में शामिल हैं जहाँ प्रति व्यक्ति आय तो अधिक है लेकिन सामाजिक विकास की कमी है।
  • रिपोर्ट में स्वास्थ और शिक्षा के क्षेत्रों में हुई महत्त्वपूर्ण सफलताओं की भी चर्चा की गई है।
  • रिपोर्ट के एक शोध-पत्र में ग़रीबों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिये बनाई गई केंद्र और राज्यों की भिन्न-भिन्न नीतियों को पूर्णतः असफल बताया गया है।
  • यह रिपोर्ट भी ऐसे समय में आई है जब इंसेफलाइटिस के मरीज़ो पर कराया गया बिहार सरकार का ही एक सर्वे यह दिखता है कि इस बीमारी से प्रभावित होने वाले दो-तिहाई मरीज़ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
  • रिपोर्ट के एक अन्य शोध-पत्र में भारतीय शिक्षा प्रणाली पर गहरे प्रश्न चिन्ह लगाए गए हैं। शोधकर्ता ने यह तर्क दिया है कि वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के अनुसार भारत के 36 प्रतिशत ग्रामीण लोग अशिक्षित हैं, 14 प्रतिशत लोगों के पास प्राथमिक शिक्षा से भी कम ज्ञान है और 18 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने प्राथमिक कक्षाएँ पास की हैं। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि 21वीं सदी में भी हमारी शिक्षा नीति में कई कमी हैं।

स्रोत- द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


स्पेसएक्स का फॉल्कन हैवी रॉकेट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स (Spacex) ने 24 प्रायोगिक उपग्रहों के साथ अपने शक्तिशाली ‘फॉल्‍कन हेवी’ रॉकेट को पुनः लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके नीतभार/पेलोड्स को विभिन्न सहयोगियों के माध्यम से संकलित किया गया है, जिसमें विश्वविद्यालय अनुसंधान परियोजनाओं के अलावा राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) और नासा (NASA) शामिल हैं।
  • फॉल्‍कन हेवी, को अमेरिकी स्पेसएक्स कंपनी दुनिया का सबसे शक्तिशाली परिचालन रॉकेट मानती है। क्योंकि यह दो दर्ज़न अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष के तीन अलग-अलग कक्षाओं में ले जाने में सक्षम है।
  • कंपनी एक साथ फॉल्‍कन हैवी के दो बूस्टरों को पृथ्वी पर वापस लाने का प्रयास करेगी। रॉकेट के पहले चरण के अंतर्गत समुद्र में एक ड्रोन जहाज़ पर उतारेगा, जो इसके प्रक्षेपण स्थल से लगभग 770 मील की दूरी पर स्थित है।
  • स्पेसएक्स ने पहली बार फरवरी 2018 में 230-फुट लंबे (70-मीटर) फॉल्‍कन हैवी को अंतरिक्ष में भेजा था। इसके पश्चात वर्ष 2019 के अप्रैल माह में, उसने अपने पहले ग्राहक, सऊदी अरब के वाणिज्यिक उपग्रह ऑपरेटर अरबसैट (Arabsat) के लिये फॉल्‍कन हैवी लॉन्च किया।
  • स्पेसएक्स एक निजी कंपनी है,जिसकी स्थापना वर्ष 2002 में एलन मस्क ने की थी। इसका मुख्यालय हॉथोर्न, कैलिफोर्निया (U.S.A) में स्थित है।

फॉल्‍कन हैवी में नासा के प्रमुख प्रौद्योगिकी मिशन और महत्त्वपूर्ण पेलोड्स

  • डीप स्पेस एटॉमिक क्लॉक (Deep Space Atomic Clock): यह अंतरिक्षयान में प्रयुक्त ऐसी प्रौद्योगिकी है जो यान को अंतरिक्ष में स्वायत्त तरीके से दिशा-निर्देशों के पालन में मदद करेगा।
  • ग्रीन प्रोपेलेंट इन्फ्यूज़न मिशन (Green Propellant Infusion Mission): रॉकेट ईंधन का परीक्षण करने के लिये एक छोटा उपग्रह जो पर्यावरण के अनुकूल है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


ल्यूकोडर्मा से निजात के लिये हर्बल औषधि

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय विटिलिगो दिवस (International Vitiligo Day) के अवसर पर रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) ने ल्यूकोडर्मा (सफ़ेद दाग़) के उपचार हेतु एक हर्बल औषधि विकसित की है।

  • इस अविष्कार ने ल्यूकोडर्मा से पीड़ित लोगों को नई आशा प्रदान की है।

ल्यूकोडर्मा

  • ल्यूकोडर्मा (Leucoderma) एक त्वचा संबंधी बीमारी है जिसमें त्वचा पर सफेद धब्बे हो जाते हैं, यह कुष्ठ रोग (Leprosy) से भिन्न है।
  • ल्यूकोडर्मा को विटिलिगो भी कहा जाता है। यह पीड़ित व्यक्ति को अवसाद और तनाव की स्थिति में पहुँचा देता है और लोग इसे सामाजिक कलंक के रूप में देखते हैं।
  • विटिलिगो संक्रामक रोग नहीं है और न ही यह असाध्य या जानलेवा है। ल्यूकोडर्मा की विश्वव्यापी संभावना 1-2 प्रतिशत बताई गई है। भारत में राजस्थान के कुछ हिस्सों में इससे संबंधित मामलों की संख्या लगभग 4-5 प्रतिशत है। गुजरात में यह 5-8 प्रतिशत से अधिक है।

ज्ञातव्य है कि हाल ही में सरकार ने DRDO के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, हेमंत पांडे को प्रतिष्ठित सामाजिक विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह सम्मान इस बीमारी का इलाज करने के लिये 'ल्यूकोस्किन' के विकास हेतु प्रदान किया गया था।

विटिलिगो के विभिन्न उपचार

  • वर्तमान में एलोपैथिक, शल्य चिकित्सा जैसे विटिलिगो के विभिन्न उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन किसी भी चिकित्सा पद्धति ने इस बीमारी को पूर्णतः ठीक नहीं किया है।
  • इसके अतिरिक्त ये उपचार या तो महंगे हैं या एकल अणु आधारित हैं तथा इनका प्रभाव भी सीमित है जबकि विटिलिगो के उपचार की यह दवा( ल्यूकोस्किन) मरहम और तरल के रूप में उपलब्ध है।
  • इस मरहम में सात हर्बल अवयव हैं, जिनमें त्वचा की फोटो सेंसिटाइज़र, एंटी-ब्लिस्टर, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-सेप्टिक, घाव भरने और तांबे के पूरक गुण होते हैं, जबकि नए दाग की के लिये मौखिक खुराक तैयार की गई है।

विश्व विटिलिगो दिवस: यह प्रतिवर्ष 25 जून को मनाया जाता है जो कि विटिलिगो के बारे में वैश्विक जागरूकता के लिये एक पहल है।

ल्युकोस्किन : यह विटिलिगो के उपचार में काम आने वाली औषधि है, जिसे हाल ही में DRDO ने विकसित किया है। वर्तमान में दिल्ली स्थित AIMIL Pharma Ltd. द्वारा यह बनाई और बेची जा रही है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (25 June)

  • 21 जून को तेलंगाना के जयशंकर भूपालपल्ली ज़िले के मेडिगड्डा में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने दुनिया की सबसे बड़ी कालेश्वरम मल्‍टी-स्‍टेज लिफ्ट सिंचाई परियोजना का लोकार्पण किया। इस परियोजना के तहत गोदावरी नदी का पानी समुद्रतल से 100 मीटर लिफ्ट कर मेडिगड्डा बांध तक पहुँचाया जाएगा। यहाँ से पानी को 6 स्टेज तक लिफ्ट करके कोंडापोचम्मा सागर तक पहुँचाया जाएगा, जिसकी ऊँचाई 618 मीटर है। इस योजना से लगभग 45 लाख एकड़ ज़मीन पर दो फसलों के लिये सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। इसके अलावा परियोजना से मिशन भागीरथ पेयजल आपूर्ति परियोजना के तहत 40 TMC पानी मिलेगा। इससे हैदराबाद महानगर में पीने के पानी की सप्लाई में मदद मिलेगी तथा राज्य के उद्योगों को भी 16 TMC पानी मिलेगा। इस परियोजना में 139 Mw अधिकतम क्षमता वाले 19 पंपों का इस्तेमाल किया जाना है तथा 149 किलोमीटर लंबे दुनिया के सबसे बड़े टनल रूट का निर्माण किया जाना है। यह परियोजना BHEL और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड मिलकर तैयार कर रहे हैं। इस परियोजना से जलविद्युत उत्पादन का लक्ष्य भी रखा गया है, जिसके लिये 141 TMC क्षमता वाले 16 जलाशयों का निर्माण किया जाना है।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मार्क एस्पर को नया रक्षा सचिव (मंत्री) नियुक्त किया है। मार्क एस्पर पूर्व सैनिक हैं और पहले इराक युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं। वह कैपिटल हिल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रक्षा उद्योग के लॉबिस्ट के तौर पर भी काम कर चुके हैं। मार्क एस्पर फिलहाल रक्षा विभाग के अस्थायी प्रमुख होंगे। गौरतलब है कि अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन DC (पूर्व में District of Colombia कहा जाता था) में संसद कैपिटल हिल पर ही स्थित है।
  • चीन के कृषि उपमंत्री छ्यू दोंगयू को संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का नया महानिदेशक चुना गया है। इस एजेंसी की कमान सँभालने वाले वह किसी भी कम्युनिस्ट देश के पहले व्यक्ति हैं। FAO के रोम स्थित मुख्यालय में संस्था के 194 सदस्यों ने मिलकर ब्राज़ील के जोस ग्रासियानो डे'सिल्वा के उत्तराधिकारी के रूप में दोंगयू को चार साल के कार्यकाल के लिये चुना। उन्हें 108 वोट मिले, जबकि अमेरिकी समर्थक जॉर्जिया के डेविट किर्वालिडजे को मात्र 12 वोट मिले। आपको बता दें कि FAO में 11,500 से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं और वह वर्ष 2030 तक दुनिया को भुखमरी से मुक्त कराने के लक्ष्य को लेकर संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
  • चीन ने एक मानवरहित (ड्रोन) हेलीकॉप्टर के सफल परीक्षण का दावा किया है। मानवरहित हेलीकॉप्टर AV 500 ने दक्षिणी चीन के हैनान प्रांत के समुद्री इलाके में पहली बार रात में किसी ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस परीक्षण के बाद चीन की सेना कई तरह के सैन्य ऑपरेशन्स के लिये सक्षम हो गई है। इस ड्रोन हेलीकॉप्टर से चीन अपनी सीमा की निगरानी करने के साथ-साथ दुश्मनों के ठिकानों को नष्ट करने के लिये हमले कर सकता है। इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल आतंकरोधी गतिविधियों, आग लगने की स्थिति में और अन्य आपदाओं से निपटने में भी किया जा सकता है। इसका निर्माण एविएशन इंडस्ट्री ऑफ चाइना ने किया है और परीक्षण के दौरान AV 500 ने तेज़ हवाओं और उच्च आर्द्रता जैसी समस्याओं का सामना किया। यह हेलीकॉप्टर 175 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने की क्षमता रखता है तथा लेज़र गाइडेड मिसाइल या मशीनगन लेकर 170 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है।
  • भारत की महिला हॉकी टीम ने हिरोशिमा हॉकी स्टेडियम में जापान को 3-1 से हराकर FIH महिला सीरीज़ फाइनल्स प्रतियोगिता जीत ली। इससे पहले इस प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में चिली को 4-2 से हराने के साथ ही भारत ने वर्ष 2020 में टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों के लिये क्वॉलिफायर के अंतिम चरण के लिये क्वॉलिफाई कर लिया था। फिलहाल भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान रानी रामपाल के हाथों में है।
  • 23 जून को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का आयोजन किया जाता है। प्रथम आधुनिक ओलंपिक खेल 23 जून, 1894 को पेरिस में आयोजित हुए थे और इसी की याद में हर वर्ष 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जाता है। पहला अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस 23 जून, 1948 को मनाया गया था, तब सिर्फ नौ देश ही इसमें शामिल थे- ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, ग्रीस, पुर्तगाल, स्विट्ज़रलैंड, उरुग्वे और वेनुज़ुएला। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य खेलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर वर्ग, आयु के लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना है। भारत में इसका प्रमुख आयोजक भारतीय ओलंपिक संघ है तथा वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की देखरेख में इस दिवस का आयोजन किया जाता है। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के लुसाने में है। फ्राँस के पियरे कुबर्तिन को आधुनिक ओलंपिक का जन्मदाता माना जाता है।