डेली न्यूज़ (25 Mar, 2020)



IPC की धारा 188

प्रीलिम्स के लिये 

भारतीय दंड की संहिता की धारा 188 

मेन्स के लिये

महामारी प्रबंधन से संबंधित विषय 

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये 21 दिवसीय देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • आदेशानुसार, लॉकडाउन के आदेशों का उल्लंघन करने वालों को महामारी रोग अधिनियम, 1897 (Epidemic Diseases Act, 1897) के तहत कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है, जो कि इस तरह के आदेशों का पालन न करने पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188 के तहत सजा का प्रावधान करता है। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 188

  • महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3, अधिनियम के तहत किये गए किसी भी विनियमन या आदेश की अवज्ञा करने के लिये दंड का प्रावधान करती है। यह दंड भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दिया जाता है, जो कि लोकसेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन करने से संबंधित है। 
  • IPC की धारा 188 के अनुसार, जो कोई भी किसी लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश, जिसे प्रख्यापित करने के लिये लोक सेवक विधिपूर्वक सशक्त है और जिसमें कोई कार्य करने से बचे रहने के लिये या अपने कब्ज़े या प्रबंधाधीन किसी संपत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिये निर्दिष्ट किया गया है, की अवज्ञा करेगा तो;
    • यदि इस प्रकार की अवज्ञा-विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम कारित करे या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक निश्चित अवधि के लिये कारावास की सजा दी जाएगी जिसे एक मास तक बढ़ाया जा सकता है अथवा 200 रुपए तक के आर्थिक दंड अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा; और यदि इस प्रकार की अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट उत्पन्न करे, या उत्पन्न करने की प्रवॄत्ति रखती हो, या उपद्रव अथवा दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक निश्चित अवधि के लिये कारावास की सजा दी जाएगी जिसे 6 मास तक बढ़ाया जा सकता है, अथवा 1000 रुपए तक के आर्थिक दंड अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
    • ध्यातव्य है कि यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय क्षति उत्पन्न करने का ही हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से क्षति होना संभाव्य है। 

इसकी आवश्यकता  

  • कोरोनवायरस (COVID-19) जो कि मुख्य रूप से व्यक्ति-से-व्यक्ति में फैलता है, पहली बार चीन के वुहान शहर में वर्ष 2019 के अंत में सामने आया था और तब से अब तक इसके कारण कम-से-कम 177 देश प्रभावित हुए हैं और लाखों लोग इसकी चपेट में हैं।
  • इस महामारी का मुकाबला करने के लिये भारत में कई राज्यों ने सार्वजनिक सभाओं को कम करने के उद्देश्य से ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ (Social Distancing) जैसे उपायों को लागू किया है। देश के लगभग सभी राज्यों में कार्यालयों, स्कूलों, संगीत, सम्मेलनों, खेल आयोजनों और शादियों आदि पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने भी दुनिया भर के राष्ट्रों की सरकारों से महामारी को कम करने के लिये सामुदायिक स्तर पर संचरण को रोकने हेतु कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
  • COVID-19 महामारी को देखते हुए देश में 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ (Janata Curfew) की घोषणा की गई और इसके परिणामस्वरूप कई राज्यों ने लॉकडाउन की भी घोषणा कर दी।
  • हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है और भारतीय जनता से सख्ती से इस लॉकडाउन का पालन करवाने के लिये धारा 188 काफी आवश्यक है।

लॉकडाउन का उल्लंघन:

भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत दो प्रकार के अपराध दिये गए हैं:

  • यदि किसी लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक दिये गए आदेश की अवज्ञा करने से विधिपूर्वक नियोजित व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति पहुँचती है तो इसके लिये व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिये कारावास अथवा 200 रूपए जुर्माना अथवा दोनों दिया जा सकता है।
  • यदि किसी लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक दिये गए आदेश की अवज्ञा करने से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा आदि के लिये खतरा उत्पन्न होता है तो इसके लिये व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिये कारावास अथवा 1000 रूपए जुर्माना अथवा दोनों दिया जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हंतावायरस

प्रीलिम्स के लिये

हंतावायरस

मेन्स के लिये

हंतावायरस के लक्षण तथा इसके संक्रमण को रोकने के उपाय

चर्चा में क्यों?

दुनिया भर में कोरोनावायरस (COVID-19) का प्रसार काफी तेज़ी से हो रहा है और विश्व के अधिकांश देश इसकी चपेट में आ गए हैं, हालाँकि चीन, जहाँ से इस वायरस की शुरुआत हुई थी, में अब कोरोनावायरस (COVID-19) का प्रभाव काफी सीमित हो गया है, किंतु चीन में हंतावायरस (Hantavirus) नामक वायरस का पता लगा है। 

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि चीन के शानदोंग प्रांत (Shandong Province) से लौटते हुए युन्नान प्रांत (Yunnan Province) के एक व्यक्ति की इस वायरस के कारण मृत्यु हो गई है। 

क्या है हंतावायरस?

  • सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (Center for Disease Control and Prevention) के अनुसार, हंतावायरस मूल रूप से मूषकों (Rodents) से फैलता है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से मूषकों के मूत्र, मल और लार के संपर्क में आता है, तो यह वायरस मूषकों से मनुष्यों में फैल जाता है।
  • हालाँकि आमतौर पर हंतावायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसारित नहीं होता है। शोधकर्त्ताओं के अनुसार, हंतावायरस के संक्रमण के लक्षण सामने आने में एक से आठ हफ्तों का समय लग सकता है।
  • इस वायरस के संपर्क में आने से लोगों को हंतावायरस पल्मोनरी सिंड्रोम (Hantavirus Pulmonary Syndrome-HPS) और हेमोरेजिक फीवर विद रीनल सिंड्रोम (Haemorrhagic Fever with Renal Syndrome-HFRS) हो सकते हैं। 
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, दुनिया की आबादी को नियंत्रित करना इस वायरस को रोकना का सर्वाधिक प्रभावी उपाय है।

लक्षण

  • थकान, बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना, ठंड लगना और पेट दर्द HPS के शुरुआती लक्षण हैं। 
  • गंभीर संक्रमण में खाँसी और साँस की तकलीफ जैसी शारीरिक समस्याएँ हो सकती हैं।
  • सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, यह वायरस काफी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इसमें मृत्यु दर लगभग 38 प्रतिशत है।
  • इसके अलावा HFRS में भी HPS के समान ही लक्षण होते हैं, किंतु इसमें कुछ गंभीर समस्याएँ जैसे- निम्न रक्तचाप, तीव्र आघात और किडनी फेल आदि भी हो सकती हैं।

इतिहास तथा मौज़ूदा स्थिति: 

  • कुछ लोग हंतावायरस को एक नए वायरस के रूप में देख रहे हैं, किंतु यह नया वायरस नहीं है। हंतावायरस को पहली बार 1950 के दशक की शुरुआत में एक संक्रामक बीमारी के रूप में खोजा गया था जब कोरिया में तैनात 3,000 संयुक्त राष्ट्र के सैनिकों की एक रहस्यमय बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी। 
  • जनवरी 2019 में हंतावायरस के कारण अमेरिका के पेटागोनिया (Patagonia) में 9 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, हंतावायरस से संक्रमित लोगों के 60 मामले सामने आए थे, जिनमें 50 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया था।
  • भारत में भी हंतावायरस नया नहीं है। सर्वप्रथम वर्ष 2011 में कर्नाटक में हंतावायरस के कारण कुछ लोगों की मृत्यु हो गई थी, हालाँकि इसके बाद अब तक कोई मामला सामने नहीं आया है।

स्रोत: बिज़नेस टुडे


खेलों को बढ़ावा देने हेतु सामाजिक नवाचार

प्रीलिम्स के लिये:

मदर्स फॉर स्पोर्टस एंड फिटनेस ऐप, राष्ट्रमंडल खेल

मेन्स के लिये:

खेलों को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा किये गये विभिन्न प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिये माताओं के सहयोग से सामाजिक नवाचार की शुरुआत की है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इन नवाचारों के तहत युवा माताओं की सहायता लेने की योजना है ताकि उनके बच्चों को हर प्रकार की खेल गतिविधियों के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • इस सामाजिक नवाचार को एक नई दिशा प्रदान करने हेतु खेल, महिला और बाल विकास सहित सात विभाग कार्य कर रहे हैं।
  • विभाग से जुड़े अधिकारियों का मानना ​​है कि अगर माताएँ अपने बच्चों को खेल के मैदानों में ले जाती हैं, तो आने वाले वर्षों में खिलाड़ियों की संख्या में काफी वृद्धि हो सकती है।
  • सरकार जल्द ही ‘मदर्स फॉर स्पोर्टस एंड फिटनेस (Mothers for Sports and Fitness)’ नामक एक एप भी लॉन्च करेगी।
  • हरियाणा सरकार अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्द्धाओं में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को उच्च नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरियों की पेशकश पहले से ही कर रही है जिससे राज्य में खेल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
  • राज्य के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त आँकड़ों से पता चलता है कि प्रत्येक बड़े गाँव के 100 से 200 युवा विभिन्न खेलों से जुड़े हैं। 

उपलब्धियाँ 

  • भारत की जनसंख्या का मात्र 2% और भौगोलिक क्षेत्र का 2% से भी कम होने के बावज़ूद हरियाणा के युवा अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत में आये सभी पदकों का लगभग एक-तिहाई पदक हासिल करते हैं। 
  • वर्ष 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों (Commonwealth Games-CWG) में भारत के 66 पदकों में से 22 पदक एवं देश के कुल 26 स्वर्ण पदकों में से 9 स्वर्ण पदक हरियाणा के एथलीटों ने जीते थे।
  • उल्लेखनीय है कि फोगाट बहनों सहित देश के कुछ सर्वश्रेष्ठ पहलवान हरियाणा राज्य से ही संबंधित है।

राष्ट्रमंडल खेल

(Commonwealth Games):

  • पहला राष्ट्रमंडल खेल वर्ष 1930 में हैमिल्टन, कनाडा में आयोजित किया गया था, जहाँ 11 देशों ने छह खेलों और 59 कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये 400 एथलीटों को भेजा था।
  • वर्ष 1930 से हर चार वर्षों में (द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वर्ष 1942 और वर्ष 1946 को छोड़कर) इन खेलों का आयोजन किया जाता है।

मदर्स फॉर स्पोर्ट्स एंड फिटनेस ऐप

(Mothers For Sports And Fitness App):

  • इस ऐप में सभी खेल के मैदानों एवं मैदानों से संबंधित कर्मचारियों का विवरण होगा।
  • यह कोच से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी और सरकार द्वारा संचालित खेल के मैदानों में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में सूचना प्रदान करेगा।
  • यह ऐप खेल के मैदानों की अवस्थिति को प्रदर्शित करेगा ठीक वैसे ही जैसे टैक्सी ऐप (ओला, उबर आदि) उपलब्ध टैक्सी की अवस्थिति को प्रदर्शित करते है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


प्रदूषण निगरानी के लिये स्टार रेटिंग कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

प्रदूषण निगरानी के लिये स्टार रेटिंग कार्यक्रम   

मेन्स के लिये:

प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में सरकार के प्रयास, औद्योगिक प्रदूषण से संबंधित प्रश्न   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में झारखंड राज्य में औद्योगिक प्रदूषण की निगरानी हेतु जून, 2020 से कई उद्योगों के लिये स्टार रेटिंग कार्यक्रम (Star Rating Program) को अनिवार्य किये जाने की घोषणा की गई है  

मुख्य बिंदु:

  • इस कार्यक्रम के तहत राज्य के अलग-अलग उद्योगों/फैक्टरियों से उनके उत्सर्जन के आँकड़े एकत्रित किये जाएंगे और प्राप्त आँकड़ों तथा उत्सर्जन नियमों के अनुपालन के आधार पर उनकी रेटिंग (Rating) की जाएगी
  • वर्तमान में झारखंड में इस कार्यक्रम को प्रायोगिक स्तर पर चलाया जा रहा है। 5 जून,  2020 से इस कार्यक्रम को पूरे राज्य में लागू किया जायेगा।
  • इससे पहले ओडिशा और महाराष्ट्र में ऐसी ही स्टार रेटिंग प्रणाली को लागू किया गया है।
  • झारखंड ऐसा पहला राज्य होगा जिसमें इस कार्यक्रम के अंतर्गत सल्फर और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन मात्रा की भी जाँच की जाएगी। 

निगरानी की प्रक्रिया:

  • इस कार्यक्रम के तहत ‘अत्यधिक प्रदूषणकारी’ (Highly Polluting) उद्योगों के ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (Particulate Matter-PM) उत्सर्जन की 17 श्रेणियों में निगरानी की जाएगी और इस कार्यक्रम में प्रत्येक वर्ष नए मानकों को जोड़ा जाएगा।
  • इस कार्यक्रम में जिन उद्योगों/फैक्टरियों की उत्सर्जन मात्रा नियामकों द्वारा निर्धारित अधिकतम उत्सर्जन सीमा से 50% से कम होगी उन्हें 5 स्टार (5 Star) दिये जाएंगे।
  • जबकि जिन उद्योगों/फैक्टरियों की उत्सर्जन मात्रा नियामकों द्वारा निर्धारित अधिकतम उत्सर्जन सीमा 25% से अधिक होगी उन्हें एक स्टार (1 Star) दिया जाएगा।

कार्यक्रम का संचालन: 

  • इस कार्यक्रम का संचालन झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Jharkhand State Pollution Control Board- JSPCB) और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ट्रस्ट (University of Chicago Trust- UC Trust) के सहयोग से किया जा रहा है।
  •  इस कार्यक्रम की शुरुआत JSPCB और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ट्रस्ट के एक नाॅलेज पार्टनर (Knowledge Partner) के रूप में जुड़ने के बाद हुई।

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

(Jharkhand State Pollution Control Board- JSPCB): 

  • JSPCB का गठन जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा-4 के तहत वर्ष 2001 में किया गया था।
  • इसका मुख्यालय राँची में स्थित है। साथ ही इसके चार क्षेत्रीय कार्यालय सह प्रयोगशालाएँ धनबाद, जमशेदपुर, हज़ारीबाग और देवघर में स्थित हैं।
  • JSPCB निम्नलिखित कार्य करती है-
    • उद्योगों और प्रदूषण के मामलों में राज्य सरकार को सलाह देना।
    • प्रदूषण नियंत्रण के लिये कार्यक्रम की योजना बनाना।
    • उत्सर्जन मानकों का निर्धारण करना।
    • निर्धारित उत्सर्जन मानकों के अनुपालन का निरीक्षण करना आदि।
  • JSPCB अध्यक्ष के अनुसार, पिछले लगभग 18 महीनों में इस कार्यक्रम के तहत आँकड़ों की मात्रा पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रायोगिक कार्यक्रम के तहत ‘सतत् उत्सर्जन निगरानी प्रणाली’ (Continuous Emission Monitoring System-CEMS) के माध्यम से वर्तमान में प्रत्येक 15 मिनट पर उत्सर्जन के आँकड़े JSPCB सर्वर पर उपलब्ध हैं।

कार्यक्रम का उद्देश्य:   

  • उत्सर्जन मानकों के अनुपालन और विनियमन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना।
  • समाज और पर्यावरण के प्रति उद्योगों के उत्तरदायित्त्वों को सुनिश्चित करना।

स्टार रेटिंग कार्यक्रम के लाभ: 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, कार्यक्रम के संचालन के बाद उत्सर्जन से जुड़े आँकड़ों को आसानी से प्राप्त किया जा सकेगा और आँकड़ों की सटीकता और विश्वसनीयता की भी जाँच की जा सकेगी, जिससे इस प्रक्रिया में व्याप्त कमियों को आसानी से दूर किया जा सकेगा।
  • इस प्रक्रिया के माध्यम से लोगों को औद्योगिक प्रदूषण के संबध में बेहतर जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी।
  • जन-जागरूकता और उत्सर्जन के विश्वसनीय आँकड़ों को उपलब्ध करा कर उद्योगों पर मानकों के अनुपालन के संदर्भ में दबाव बनाया जा सकेगा।

निष्कर्ष: स्वतंत्रता के पश्चात् देश के औद्योगिक क्षेत्र के शीघ्र विकास के लिये उद्योगों को अन्य सहयोगों के साथ बहुत से महत्त्वपूर्ण मानकों के अनुपालन में भी कुछ छूट प्रदान की गई थी। परंतु समय के साथ इस व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन नहीं किये गए। सशक्त नियमों और पारदर्शी विनियमन प्रक्रिया के अभाव में औद्योगिक केंद्रों द्वारा इस छूट का गलत इस्तेमाल किया गया जिससे वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण के साथ अन्य क्षेत्रों में भी भारी क्षति देखने को मिली है। स्टार रेटिंग कार्यक्रम से इस प्रक्रिया में अधिक प्रदर्शित लाई जा सकेगी जिससे उत्सर्जन मानकों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकेगा।               

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


समुद्री जैव विविधता के पोषण करने वाले ‘वंडर ट्री’

प्रीलिम्स के लिये:

मैंग्रोव वन,  ब्लू फॉरेस्ट, ब्लू कार्बन, GEF, ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट, GEF- IW

मेन्स के लिये:

समुद्रीय जैव विविधता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 21 मार्च, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस मनाया गया, जिसमें मैंग्रोव वनों के महत्त्व को स्वीकार कर तत्काल संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया।   

मुख्य बिंदु:

  • वन दिवस वर्ष 2020 का विषय था- ‘वन और जैव विविधता’ (Forests and Biodiversity)।
  • स्थलीय जैव विविधता में 80 प्रतिशत योगदान वनों का है, परंतु मैंग्रोव एक ऐसा वृक्ष है जो स्थलीय जैव-विविधता के साथ-साथ समुद्री जैव-विविधता को भी संरक्षण प्रदान करता है।
  • मैंग्रोव वनों द्वारा प्रकृति एवं मनुष्यों को दिये जाने वाले अमूल्य योगदान के कारण वर्तमान में उष्णकटिबंधीय देशों में सरकारों तथा तटीय समुदायों के बीच इसे लेकर जागरूकता लगातार बढ़ रही है।

मैंग्रोव वन: 

  • मैंग्रोव वन पेड़ों और झाड़ियों का एक समूह होता है जो अंत: ज्वारीय भागों में पाए जाते हैं।
  • मैंग्रोव पेड़ों की लगभग 80 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये सभी पेड़ कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी के क्षेत्रों में उगते हैं, जहां धीमी गति से चलने वाले जल में तलछट जमाव पाया जाता है। 
  • मैंग्रोव वन  मुख्यत: केवल भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशों पर मुख्यत: पाए जाते हैं, क्योंकि ये ठंड तापमान का सामना नहीं कर सकते हैं।
  • कई मैंग्रोव वनों को उनकी मूल जड़ों से पहचाना जा सकता है, जहाँ इन वृक्षों की जड़ें जल के बाहर निकली दिखाई देती हैं।  

Global-mangroves

मैंग्रोव वनों का बढ़ता महत्त्व:

  • सामुदायिक प्रबंधन:
    • मैंग्रोव वनों की ‘सामुदायिक प्रबंधन आधारित’ संरक्षण प्रणाली के माध्यम से पारिस्थितिकी संरक्षण तथा सतत प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • नौका-पर्यटन, कयाकिंग, बर्ड वॉचिंग, रात्रि में मत्स्यन पकड़ना, आदि गतिविधियों के माध्यम से पर्यटकों को मैंग्रोव जंगलों की जैव विविधता का अनुभव करने जैसे कई विकल्प हैं।
  • पारिस्थितिक संरक्षण:
    • मैंग्रोव वन का एक महत्त्वपूर्ण लाभ जैव विविधता का संरक्षण है। मेडागास्कर में ‘मैंग्रोव लेमर्स (Lemurs)’ पाए जाते हैं, जो पृथ्वी पर स्तनधारियों में सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक हैं। इन 'दलदल लीमर्स' (Swamp Lemurs) को इन क्षेत्रों में पहली बार कुछ वर्ष पूर्व पहले प्रलेखित (Documented) किया गया था।
  • पारिस्थितिकी सेवाएँ:
    • ये वन तूफान लहरों से सुरक्षा प्रदान करके, मत्स्य के लिये प्रजनन सतह उपलब्धता, सागरीय जानवरों के लिये मेजबान स्थल, प्रभावी निस्यंदन सिस्टम, खारे जल प्रवाह को रोककर कृषि के क्षेत्र की मिट्टी को लवणीयता से बचाना आदि कार्यों द्वारा तटीय समुदायों की सुरक्षा करते हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रयास:

  • वर्ष 2019 में, संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक हितधारकों को निर्वनित तथा अवक्रमित भूमि के पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली के लिये आवश्यक राजनीतिक और वित्तीय सहायता जुटाने की कार्रवाई करने को आमंत्रित किया था।  
  • पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (The United Nations Decade on Ecosystem Restoration) द्वारा वर्ष 2021-2030 की अवधि में समुद्री नीले मैंग्रोव सहित गंभीर रूप से अवनयित भू-परिदृश्य (Landscapes) तथा वनों की पुनर्बहाली से संबंधित कार्यों को बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा। 

ब्लू फॉरेस्ट (Blue Forests):

  • तटीय एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र जिसमें, मैंग्रोव वन, समुद्री घास तथा लवणीय जल  के दलदल- जो दुनिया भर में आजीविका और भलाई (Wellbeing) का समर्थन करते हैं, को नीले वन कहा जाता है। 

ब्लू कार्बन (Blue Carbon): 

  • मैंग्रोव वन अन्य वनों की तुलना में मृदा में अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं। वैश्विक तापन से लड़ने में मैंग्रोव वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका, इन वनों को एक मूल्यवान संपत्ति बनाता है। इस अवधारणा को ब्लू कार्बन भी कहा जाता है। 

GEF ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट (GEF Blue Forests Project):

  • ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट का जनवरी 2015 में 4 वर्ष के लिये कार्यान्वयन शुरू किया गया। 
  • यह परियोजना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) की एक पहल है, जो वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) द्वारा वित्त पोषित है। भागीदार देश इसे सह-वित्तपोषित कर रहे हैं तथा ग्रिड अरेंडल (GRID-Arendal) संगठन द्वारा प्रबंधित हैं। 
  • ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से सर्वप्रथम बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन की दिशा में तटीय कार्बन एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का वैश्विक पैमाने पर मूल्यांकन किया जाएगा।
  • यह प्रोजेक्ट सभी हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाने तथा वैश्विक उपयोगिता की दिशा में अधिक-से-अधिक वैश्विक अनुभव तथा उपकरणों को साझा करने पर बल देता है।

ग्लोबल एन्वायरनमेंट फेसिलिटी

(Global Environment Facility)

  • इसका गठन वर्ष 1991 में किया गया था। 
  • यह विकासशील व संक्रमणशील अर्थव्यवस्थाओं को जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय जल, भूमि अवमूल्यन, ओजोन क्षरण, पर्सिसटेन्ट आर्गेनिक प्रदूषकों के संदर्भ में परियोजनाएँ चलाने के लिये वित्तपोषित करता है। 
  • इससे प्राप्त धन अनुदान व रियायती फंडिंग के रूप में आता है।

GEF इंटरनेशनल वाटर्स (GEF- IW):

  • GEF के विशेष प्रोजेक्ट GEF- IW के माध्यम से परियोजनाओं में भाग लेने वाले देशों ने ताजा जल संसाधनों से लेकर समुद्री संसाधनों से संबंधित समझौतों, संधियों और प्रोटोकॉल पर बातचीत करके सहमति व्यक्त की है। IW में GEF निवेश के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं:
    • राष्ट्रीय नीली अर्थव्यवस्था के अवसरों को मजबूत करना। 
    • पारिस्थितिकी प्रबंधन की दिशा में राष्ट्रीय सीमा से आगे बढ़कर कार्य करना।
    •  ताजे जल के पारिस्थितिक तंत्र में जल सुरक्षा को बढ़ाना। 

हमें इस अमूल्य धरोहर को बचाने की दिशा में तुरंत कारगर कदम उठाने चाहिये। इसके लिये भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर इस क्षेत्र के धारणीय विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। इन प्रयासों से एक तरफ जहाँ स्थानीय समुदायों को गरीबी जैसी समस्याओं से उभरने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को भी कम किया जा सकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 मार्च, 2020

एबेल पुरस्कार (Abel Prize)

नॉर्वेजियन एकेडमी ऑफ साइंस एंड लेटर (Norwegian Academy of Science and Letters) ने हाल ही में वर्ष 2020 के एबेल पुरस्कार (Abel Prize) देने की घोषणा की है। इस वर्ष यह पुरस्कार दो गणितज्ञों इजरायल के हिलेल फुरस्टेनबर्ग (Hillel Furstenberg) एवं रूसी-अमेरिकी ग्रेगरी मारगुलिस (Gregory Margulis) को दिया जाएगा। दोनों ही लोगों को गणित के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए सम्मानित किया गया है, ध्यातव्य है कि उन्होंने उन्होंने गणित के विविध क्षेत्रों में गहरी समस्याओं को हल करने के लिये संभाव्य तरीकों (Probabilistic Methods) का उपयोग किया है। एबेल पुरस्कार 1 जनवरी, 2002 को स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य गणित के क्षेत्र में उत्कृष्ट वैज्ञानिक कार्यों को करना है। इस पुरस्कार के तहत 7.5 मिलियन नॉर्वेजियन क्रोनर (625000 अमेरिकी डॉलर) की राशि प्रदान की जाती है। उल्लेखनीय है कि गणित के क्षेत्र में कोई नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता है। गणित का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘फील्ड मेडल’ (Fields Medal) है जो कि 40 वर्ष तक के गणितज्ञों को प्रत्येक 4 वर्ष पर प्रदान किया जाता है।

मनु डिबंगो (Manu Dibango)

प्रसिद्ध अफ्रीकी गायक और सैक्सोफोन वादक (Saxophone Player) मनु डिबंगो का कोरोनोवायरस (COVID-19) के कारण 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। मनु डिबंगो का जन्म 12 दिसंबर, 1933 को फ्रेंच कैमरून (French Cameroon) में हुआ था। मनु डिबंगो को वर्ष 1972 में जारी उनके गाने ‘सोल मकोसा’ (Soul Makossa) के लिये जाना जाता था। सोल मकोसा वैश्विक संगीत परिदृश्य में सबसे शुरुआती हिट गानों में से एक था। मनु डिबंगो इस बात के लिये भी काफी प्रसिद्ध है कि उन्होंने वर्ष 2009 में माइकल जैक्सन और रिहाना के खिलाफ संगीत चोरी करने का मुकदमा दायर किया था।

भारत-फ्रांँस संयुक्त गश्त

भारतीय और फ्रांसीसी नौसेना ने रीयूनियन द्वीप (Reunion Island) से पहली बार संयुक्त गश्त का आयोजन किया। भारतीय दृष्टिकोण से इसके आयोजन का मुख्य लक्ष्य हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना और विदेशी भागीदारों के साथ साझेदारी में सुधार करना था। यह अभ्यास पूर्वी अफ्रीकी तटरेखा से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य तक किया गया। भारत ने अब तक इस प्रकार की संयुक्त गश्त का आयोजन केवल अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ किया है, इससे पूर्व भारत ने अमेरिका के साथ इसी प्रकार के एक अभ्यास में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। संयुक्त गश्त भारतीय नौसेना के क्षमता निर्माण की महत्त्वपूर्ण गतिविधि है।

भारत का पहला कोरोनावायरस समर्पित अस्पताल

हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) ने 100 बेड की क्षमता वाले भारत के पहले कोरोनावायरस (COVID-19) समर्पित अस्पताल की स्थापना की है। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड ने सरकार की मदद के लिये महाराष्ट्र के मुंबई में एक अस्पताल का निर्माण करवाया है जो पूर्ण रूप से कोरोनावायरस के मरीज़ों के लिये समर्पित है। यह अस्पताल कोरोनावायरस से निपटने के लिये सभी तरह की आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। इसके अलावा रिलायंस फाउंडेशन कोरोनावायरस (COVID-19) की जाँच हेतु टेस्‍ट किट भी आयात कर रहा है।