शासन व्यवस्था
नागपुर संकल्प
प्रीलिम्स के लिये:
नागपुर संकल्प
मेन्स के लिये:
भारत सरकार द्वारा सुशासन हेतु की गई पहलें
चर्चा में क्यों?
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions) के तहत कार्यरत प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा नागपुर में आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन के दौरान नागपुर संकल्प (Nagpur Resolution)- नागरिकों के सशक्तिकरण के लिये एक समग्र दृष्टिकोण को अपनाया।
प्रमुख बिंदु:
- इस सम्मेलन का आयोजन प्रशासनिक सुधार और जन शिकायतें विभाग (Department of Administrative Reforms and Public Grievances- DARPG) और महाराष्ट्र सरकार तथा जन सेवा अधिकार के लिये महाराष्ट्र राज्य आयोग के सहयोग से किया गया।
- सरकार का बल शासन में पारदर्शिता, नागरिक केंद्रितता और भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन पर है।
- इससे पहले भी सुशासन के लिये, शिलांग घोषणा (Shillong Declaration) और जम्मू संकल्प (Jammu Resolution) को अपनाया गया है।
- इस सम्मेलन में छह तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया:
- सेवा का अधिकार कानून के लागू होने से किस प्रकार सार्वजनिक सेवाओं की प्रदायिगी के सुधार में सहायता मिली है।
- सार्वजनिक सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक प्रदायिगी।
- सार्वजनिक सेवाओं के अधिकार के संबंध में समाज में जागरूकता पैदा करना।
- केंद्रीकृत सार्वजनिक शिकायतें- निवारण और निगरानी प्रणाली।
- सार्वजनिक सेवाओं की प्रदायिगी के बारे में नवोन्मेषी प्रचलन।
- एक भारत-श्रेष्ठ भारत पर फोकस के साथ महाराष्ट्र और ओडिशा के ज़िलों में सार्वजनिक सेवा प्रदायिगी में सुधार करना।
नागपुर संकल्प का उद्देश्य:
- बेहतर सेवा वितरण (Better Service Delivery):
- नागरिक चार्टर का समय पर उन्नयन, लगातार सुधार के लिये अधिनियमों और आधारभूत मानकों के माध्यम से बेहतर सेवा प्रदायिगी के लिये नीतिगत प्रयासों द्वारा नागरिकों को सशक्त बनाना।
- शिकायतों का सुधार (Grievance Redressal):
- शिकायत निवारण की गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर सुधार लाने और शिकायत निवारण में लगने वाले समय को कम करने के लिये उचित दृष्टिकोण अपनाकर नागरिकों को सशक्त बनाना।
- उन्नत मैपिंग, निगरानी प्रणाली के गठन, आँकड़े संग्रह और शिकायत निवारण की गुणवत्ता के मूल्यांकन के माध्यम से प्रणालीगत समग्र दृष्टिकोण को अपनाना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग (Use of Technology):
- वेब पोर्टलों (Web Portals) के निर्माण और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेहतर सेवा प्रदायिगी के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाने हेतु राज्यों, भारत सरकार के मंत्रालयों ओर विभागों में सक्षम वातावरण उपलब्ध कराना।
- गतिशील नीति बनाना (Dynamic Policy Making):
- गतिशील नीति निर्माण और रणनीतिक निर्णय, कार्यान्वयन की निगरानी, प्रमुख कर्मियों की नियुक्ति, समन्वय तथा मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करना।
- तकनीकी विशेषज्ञता का आदान-प्रदान (Exchange of Technical Expertise):
- ‘एक भारत - श्रेष्ठ भारत’ के तहत युग्मित राज्यों के बीच बेहतर सेवा प्रदायिगी के क्षेत्रों में तकनीकी विशेषज्ञता के आदान-प्रदान द्वारा सामान्य पहचान (Common Identity) की भावना को विकसित करना।
- सुशासन सूचकांक(Good Governance Index):
- 10 क्षेत्रों, विशेष रूप से केंद्र, राज्य और ज़िला स्तर पर कल्याण और बुनियादी ढाँचे से संबंधित क्षेत्रों में, शासन की गुणवत्ता की पहचान के लिये सुशासन सूचकांक के प्रकाशन को समय पर सुनिश्चित करना।
स्रोत: PIB
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण से संबंधित विभिन्न तथ्य तथा वर्तमान विषय
चर्चा मे क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) ने वर्ष 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस लिमिटेड (Tata Sons Limited) कंपनी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटाने को गैर-कानूनी बताते हुए उनकी बहाली का आदेश दिया है।
मुख्य बिंदु:
- NCLAT ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal- NCLT) की मुंबई पीठ के उस फैसले को रद्द कर दिया है है, जिसमें साइरस मिस्त्री को टाटा संस लिमिटेड और अन्य कंपनियों के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटा दिया था।
- NCLAT ने ‘रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़’ (Registrar of Companies) द्वारा 'टाटा संस लिमिटेड' को 'पब्लिक कंपनी' (Public Company) से 'प्राइवेट कंपनी' (Private Company) में परिवर्तित करने को भी अवैध घोषित कर दिया।
- NCLAT ने कहा कि कंपनी को ‘प्राइवेट कंपनी’ में बदलने का निर्णय अल्पसंख्यक शेयरधारकों के लिये पूर्वाग्रही तथा कठोर था।
अल्पसंख्यक शेयरधारक (Minority shareholders)
किसी कंपनी या फर्म के ऐसे शेयरधारक जो उस कंपनी या फर्म की इक्विटी पूंजी (Equity Capital) में 50% से कम की हिस्सेदारी तथा कंपनी से संबंधित निर्णयों के संबंध में मतदान की शक्ति नहीं रखते हैं।
स्वतंत्र निदेशक (Independent Director)
स्वतंत्र निदेशक एक कंपनी का गैर-कार्यकारी निदेशक होता है जो कॉर्पोरेट विश्वसनीयता और शासन मानकों (Corporate Credibility and Governance Standards) को बेहतर बनाने में कंपनी की मदद करता है। स्वतंत्र निदेशक कंपनी के साथ ऐसा कोई भी संबंध नहीं रखते हैं, जो उनके निर्णय लेने की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
‘पब्लिक’ और ‘प्राइवेट’ कंपनियों में अंतर (Public and Private Companies)
कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) के तहत किसी कंपनी को किसी भी वैध उद्देश्य के लिये गठित किया जा सकता है-
- प्राइवेट कंपनी में न्यूनतम सदस्यों की संख्या दो तथा 200 से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- पब्लिक कंपनी में न्यूनतम सात सदस्य होने चाहिये, जबकि अधिकतम सदस्यों की संख्या पर कोई रोक नहीं है।
- प्राइवेट कंपनी में प्रदत्त पूंजी कम से कम एक लाख तथा पब्लिक कंपनी में पाँच लाख रुपए होनी चाहिये।
रजिस्ट्रार्स ऑफ कंपनीज़ (Registrars of Companies- ROC)
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 609 के तहत ROC की नियुक्ति राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कंपनियों के पंजीकरण एवं सीमित देयता भागीदारी (Limited Liability Partnerships-LLPs) को सुनिश्चित करने के प्राथमिक कर्त्तव्य के साथ होती है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण
- NCLAT का गठन NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिये कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत किया गया था।
- NCLAT एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो कंपनियों से संबंधित विवादों का निर्णय करता है।
- NCLAT 1 दिसंबर, 2016 से प्रभावी, दिवाला और दिवालियेपन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016-IBC) की धारा 61 के तहत NCLT द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिये एक अपीलीय अधिकरण भी है।
- NCLAT, दिवाला और दिवालियेपन संहिता, 2016 की धारा 202 और 211 के तहत पारित आदेशों के खिलाफ भी एक अपीलीय अधिकरण है।
- NCLAT के किसी भी आदेश से असहमत व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है।
- NCLAT, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India) द्वारा दिये गए निर्णयों से असहमत पक्ष के लिये भी अपीलीय निकाय के रूप में भी कार्य करता है।
NCLAT में अपील करने की प्रक्रिया:
- NCLT के किसी निर्णय से असहमत पक्ष 45 दिन के भीतर दिये गए निर्णय की एक प्रति को प्रस्तुत करके NCLAT में अपील कर सकता है।
- अगर NCLAT संतुष्ट है कि अपीलकर्त्ता के पास पर्याप्त कारण है, तो वह अपीलकर्त्ता को अपील के लिये निश्चित 45 दिन की निर्धारित अवधि से छूट प्रदान करता है।
- NCLAT के किसी भी आदेश से असहमत पक्ष निर्णय के 60 दिनों के अंदर सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के इस निर्णय से कंपनियों में अल्पसंख्यक शेयरधारक सशक्त होंगे तथा स्वतंत्र निदेशकों के समक्ष अपनी आपत्तियों को अधिक स्वतंत्रता से रख सकेंगे।
स्रोत- द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
शीत अयनांत
प्रीलिम्स के लिये
अयनांत, विषुव
मेन्स के लिये
पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन, अयनांत तथा विषुव के लिये उत्तरदायी कारक
चर्चा में क्यों?
22 दिसंबर को उत्तरी गोलार्द्ध में वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है और भूगोल की शब्दावली में इसे शीत अयनांत कहा जाता है।
पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन:
- पृथ्वी अपने अक्ष पर लंबवत (Perpendicular) से 23.5o का कोण बनाती हुई झुकी है।
- इसके अलावा पृथ्वी अपने स्थान पर घूर्णन एवं सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है।
- पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुकाव तथा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के कारण ऋतु परिवर्तन और पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर दिन की अवधि में भिन्नता पाई जाती है।
- जब पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध छह महीने तक सूर्य की तरफ झुका होता है तथा इस पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। तब उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु और दिन की अवधि लंबी होती है।
- इसके विपरीत उसी समय पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं जिसकी वजह से वहाँ शीत ऋतु तथा दिन की अवधि छोटी होती है।
जब उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है।
- ऋतुओं के इस परिवर्तन के क्रम में चार विशेष स्थितियाँ बनती हैं जिसे शीत अयनांत, ग्रीष्म अयनांत, बसंत विषुव तथा शरद विषुव कहते हैं।
- अयनांत उस स्थिति को कहते हैं जब सूर्य कर्क या मकर रेखा पर लंबवत होता है। विषुव उस स्थिति को कहते हैं जब सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत होता है।
शीत अयनांत (Winter Solstice):
- 22 दिसंबर को सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित मकर रेखा पर लंबवत होती हैं।
- इस वजह से पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य से सबसे अधिक दूर होता है तथा इस क्षेत्र में शीत ऋतु होती है।
- अतः यह उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन होता है और दिन की अवधि 10 घंटे 19 मिनट होती है।
- इसे उत्तरी गोलार्द्ध में शीत अयनांत कहते हैं।
ग्रीष्म अयनांत (Summer Solstice):
- 21 जून को सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित कर्क रेखा पर लंबवत होती है।
- इस वजह से पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य के सबसे निकट होता है तथा इस क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु होती है।
- अतः यह उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन होता है और दिन की अवधि 14 घंटे 47 मिनट होती है।
- इसे उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म अयनांत कहते हैं।
जब उत्तरी गोलार्द्ध में शीत अयनांत होता है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म अयनांत होता है।
बसंत विषुव (Spring Equinox):
- 21 मार्च को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर लंबवत होती हैं और दिन एवं रात की अवधि समान होती है।
- इस तिथि को बसंत विषुव कहते हैं।
शरद विषुव (Autumn Equinox):
- 23 सितंबर को भी सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर लंबवत होती हैं और दिन एवं रात की अवधि समान होती है।
- इस तिथि को शरद विषुव कहते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
उदय योजना
प्रीलिम्स के लिये
उदय योजना
मेन्स के लिये
देश में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने में उदय योजना की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन
संदर्भ:
वर्ष 2015 में लॉन्च की गई उदय योजना (Ujwal Discom Assurance Yojana- UDAY) अपनी प्रारंभिक सफलताओं के बाद डिस्कॉम्स (Electricity Distribution Companies- Discoms) या विद्युत वितरण कंपनियों के लिये अब लाभप्रद साबित नहीं हो रही है।
मुख्य बिंदु:
- नवंबर 2015 में उदय योजना लागू होने के बाद वित्तीय वर्ष 2016 में डिस्कॉम्स का घाटा 51,562 करोड़ रुपए था, जबकि वित्तीय वर्ष 2018 में यह घाटा 15,132 करोड़ रुपए रह गया।
- लेकिन वित्तीय वर्ष 2019 के सितंबर महीने तक के प्राप्त आँकड़ों के अनुसार यह 28,036 करोड़ रुपए हो गया।
- यह आँकड़ा प्रदर्शित करता है कि डिस्कॉम्स अपनी औसत आपूर्ति लागत (Average Cost of Supply) तथा औसत राजस्व प्राप्ति (Average Realisable Revenue) के अंतर को कम करने में असफल रही हैं।
- इसके अलावा ये कंपनियाँ वित्तीय वर्ष 2019 के कुल तकनीकी तथा वाणिज्यिक (Aggregate Technical and Commercial- AT&C) नुकसान के लक्ष्य को 15% से कम करने में भी असफल रही हैं।
- 28 राज्यों में से केवल सात राज्य ही AT&C नुकसान में कमी के लक्ष्य को प्राप्त कर सके हैं।
- हालाँकि इस योजना का सकारात्मक पक्ष यह था कि देश के 28 राज्यों ने उदय योजना को लागू किया लेकिन वित्तीय वर्ष 2019 में केवल 10 राज्यों ने इस घाटे में कमी की है अथवा लाभ प्राप्त किया है। इसके अलावा अन्य राज्य भी ACS और ARR अंतर को कम करने में सफल रहे हैं परंतु वे निर्धारित लक्ष्यों से काफी पीछे हैं।
- डिस्कॉम्स की विद्युत आपूर्ति की लागत तथा उपभोक्ताओं से प्राप्त बिलों में 1.5 लाख करोड़ रुपए का अंतर है। राज्यों द्वारा वितरण सुविधाओं में लगभग 85,000-90,000 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता देने के बावजूद भी यह अंतर लगातार बढ़ रहा है।
- दिसंबर 2017 तक केवल चार राज्य- हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक ही ACS और ARR के अंतर को शून्य से कम कर सके, जबकि अन्य राज्यों का अंतर 0.01 रुपए प्रति यूनिट से 2.13 रुपए प्रति यूनिट के बीच दर्ज़ किया गया।
- सरकार के ‘प्राप्ति’ वेब पोर्टल (Payment Ratification and Analysis in Power Procurement for bringing Transparency in Invoicing of Generators- PRAAPTI) के अनुसार, विद्युत उत्पादक कंपनियों के पास डिस्कॉम्स का बकाया वर्ष 2019 में 81,964 करोड़ रुपए हो गया जो कि वर्ष 2018 में 54,664 करोड़ रुपए था।
योजना की विफलता के कारण:
- राज्यों द्वारा टैरिफ वृद्धि में देरी की वजह से डिस्कॉम्स ACS और ARR के अंतर को समाप्त नहीं कर सके।
- उदय योजना की असफलता का कारण इस योजना में दक्षता का अभाव था क्योंकि इसके प्रारंभिक चरण में वित्तीय मदद तथा वित्तीय अनुप्रयोगों के माध्यम से कुछ लक्ष्य प्राप्त किये गए परंतु लंबी अवधि तक इस सफलता को बनाए रखने में यह योजना विफल रही।
- इसकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि शुरूआती कुछ समय तक डिस्कॉम्स के बकाये की राशि में कुछ कमी हुई लेकिन उसके बाद इसमें तीव्र वृद्धि होती गयी। जिससे स्पष्ट हो गया कि यह योजना प्रारंभिक सफलताओं के बाद इसका प्रभाव कम होता जा रहा है।
- उदय योजना की समस्या यह भी है कि डिस्कॉम्स विद्युत खरीद की अपनी कुल लागत की वसूली करने में असमर्थ रहीं।
- उदय योजना मार्च 2020 में समाप्त हो रही है और उदय योजना के तहत ज़ारी बॉण्ड पर देय ब्याज दर (Coupon Rate), राज्यों द्वारा विकास कार्यों हेतु लिये गए ऋणों पर ब्याज दर की तुलना में अधिक होने की वजह से उदय योजना अपनाने वाले राज्यों के लिये ऋण शोधन (Debt Servicing) की लागत में अधिक वृद्धि हुई है।
राज्य विकास ऋण बॉण्ड (State Development Loan Bond):
- राज्यों द्वारा विकास कार्यों के वित्तपोषण हेतु बाज़ार में जारी किये गए बॉण्ड को SDL बॉण्ड कहते हैं। SDL बॉण्ड एक दिनांकित प्रतिभूति (Dated Securities) है जिसे सामान्य नीलामी प्रक्रिया के तहत जारी किया जाता है।
इसके प्रभाव:
- वर्तमान में अधिकांश राज्य मंदी के दौर से गुज़र रहे हैं। इस परिस्थिति में उदय बॉण्डों पर दिये जाने वाले ब्याज की भुगतान तथा इन बॉण्डों के शोधन के कारण राज्यों की वित्तीय स्थिति पर वर्ष 2020 के बाद भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2015-16 से राज्यों के ऋणों में वृद्धि दर लगातार दहाई अंक में बनी हुई है जिससे ऋण-जीडीपी अनुपात (Debt-GDP Ratio) में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा वर्ष 2019-20 के दौरान 16 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में ऋण-जीएसडीपी अनुपात (Debt-GSDP Ratio) में और अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
उदय (UDAY) योजना क्या है?
- 05 नवंबर, 2015 को भारत सरकार के विद्युत् मंत्रालय (Ministry of Power) द्वारा उज्ज्वल डिस्कॉम्स एश्योरेंस योजना या ‘उदय’ प्रारंभ की गई।
- उदय को डिस्कॉम्स की वित्तीय तथा परिचालन क्षमता में सुधार लाने के लिये शुरू किया गया था।
- इस योजना में ब्याज भार, विद्युत लागत और AT&C को कम करने का प्रावधान किया गया ताकि डिस्कॉम्स लगातार 24 घंटे पर्याप्त तथा विश्वसनीय विद्युत की आपूर्ति में समर्थ हों।
- उदय योजना के निम्नलिखित चार उद्देश्य हैं–
- बिजली वितरण कंपनियों की परिचालन क्षमता में सुधार।
- बिजली की लागत में कमी।
- वितरण कंपनियों की ब्याज लागत में कमी।
- राज्य वित्त आयोग के साथ समन्वय के माध्यम से डिस्कॉम्स पर वित्तीय अनुशासन लागू करना।
आगे की राह:
- उदय या किसी अन्य योजना की सफलता के लिये आवश्यक है कि इसके निर्माण में दक्षता हो ताकि लंबी अवधि तक उसकी धारणीयता बनी रहे।
- उदय योजना के तहत अधिक लाभ प्राप्त करने या घाटे को कम करने के लिये टैरिफ में वृद्धि की गई जिससे योजना के सफल क्रियान्वयन में समस्या उत्पन्न हुई। अतः टैरिफ में वृद्धि के स्थान पर डिस्कॉम्स की AT&C में कमी करने की कोशिश की जाए, बिलिंग तथा वसूली प्रक्रिया में सुधार किया जाए ताकि ये लाभ की स्थिति में रहें।
- वित्तीय वर्ष 2019 में डिस्कॉम्स को हुए घाटे की वजह से यह आवश्यक है कि इसके स्थान पर एक नई योजना लागू की जाए जिसमें उदय योजना में निहित कमियों को दूर किया जा सके।
- यदि डिस्कॉम्स अपने घाटे को नियंत्रित करने में सक्षम हैं तो उन्हें सरकारी क्षेत्र में रखा जाए अथवा निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ाने के लिये उन्हें पीपीपी (Public Private Partnership- PPP) मॉडल के तहत लाया जाए।
- उदय योजना के स्थान पर किसी नई योजना के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक है कि उसे केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय मदद दी जाए जिसका प्रावधान उदय योजना के तहत नहीं था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति की बैठक
प्रीलिम्स के लिये:
CCIG, CCESD
मेन्स के लिये:
मंदी और रोज़गार से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में निवेश और विकास पर गठित कैबिनेट समिति की पहली बैठक हुई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य मंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ाने हेतु व्यय पर विशेष ध्यान देना है।
निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति की संरचना:
- इस समिति का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री है, इसके अतिरिक्त सदस्यों के रूप में केंद्रीय गृह मंत्री, वित्त मंत्री, सूक्ष्म लघु एवं मझोले उद्यम मंत्री और वाणिज्य मंत्री शामिल हैं।
- नई सरकार बनने के बाद निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Investment & Growth- CCIG) का गठन मई 2019 में किया गया था। समिति के गठन के बाद यह इसकी पहली बैठक है।
इस बैठक की प्रासंगिकता:
- यह बैठक जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर के छह वर्षों के निचले स्तर 4.5% की पृष्ठभूमि में हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर कई तिमाहियों से काफी धीमी हो गई है। इस प्रकार की स्थिति से अर्थव्यवस्था को उबारने हेतु व्यय को बढ़ाने की बात की जा रही है।
- फिच रेटिंग (Fitch Rating) ने पिछले कुछ तिमाहियों में मंदी के कारण भारत के लिये वित्त वर्ष 2019-20 में विकास दर का अनुमान घटाकर 4.6% कर दिया है। फिच के अतिरिक्त मूडीज़ और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भी वर्ष 2019-20 के लिये भारत की विकास दर क्रमशः 4.9% और 5.1% अनुमानित की है।
- ऐसी परिस्थितियों में भारत की विकास दर बढ़ाने के लिये कुछ संरचनात्मक कार्य अति महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। इस प्रकार की कैबिनेट कमेटी के माध्यम से अर्थव्यवस्था में विकास दर को बढ़ाने के लिये आवश्यक परिस्थितियों का भी सृजन किया जाएगा।
वर्तमान मंदी से निपटने के लिये सरकार के प्रयास:
- वर्तमान आर्थिक मंदी के दौरान विकास दर बढ़ाने के लिये सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती, बैंक पुनर्पूंजीकरण, बुनियादी ढाँचा खर्च की योजना, ऑटो क्षेत्र के लिये समर्थन और अन्य कई वित्तीय उपायों की घोषणा की है।
- इन प्रयासों के बावजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह उपभोग की मांग (Consumption Demand) में व्यापक कमज़ोरी को सीधे संबोधित (Address) नहीं किया जा सकेगा।
- उपभोग की मांग अर्थव्यवस्था का मुख्य चालक (Chief Driver of the Economy) है, इसलिये सरकार अब व्यय बढ़ाने की रणनीति पर कार्ययोजना बनाने के लिये प्रयासरत है।
रोजगार और कौशल विकास पर कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Employment & Skill Development- CCESD)
- CCIG के अतिरिक्त प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रोज़गार और कौशल विकास पर एक कैबिनेट समिति भी जून 2019 में गठित की गई थी।
- इस समिति में 10 सदस्य (कैबिनेट मंत्री) शामिल हैं। इस समिति का मुख्य उद्देश्य विकास दर और रोज़गार में वृद्धि करना है।
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office) के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) के आँकडों के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3% और शहरी क्षेत्रों में 7.8% तथा भारत में समग्र बेरोज़गारी दर 6.1% थी।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
धारा 144
प्रीलिम्स के लिये:
धारा 144, आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता
मेन्स के लिये:
आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता से संबंधित मुद्दे, धारा 144 का अनुपालन और व्यक्ति के संवैधानिक अधिकार से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act- 2019) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लोक व्यवस्था को बनाए रखने हेतु आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 144 (Section 144) के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई।
धारा 144 क्या है?
- धारा 144 आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत एक कानून है जो औपनिवेशिक काल से बना हुआ है। धारा 144 ज़िला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को हिंसा या उपद्रव की आशंका और उसे रोकने से संबंधित प्रावधान लागू करने का अधिकार देता है।
- मजिस्ट्रेट को एक लिखित आदेश पारित करना होता है, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष या क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों या आमतौर पर किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में आने-जाने के संबंध में लोगों को निर्देशित किया जा सकता है। आपातकालीन मामलों में मजिस्ट्रेट बिना किसी पूर्व सूचना के भी इन आदेशों को पारित कर सकता है।
इस कानून के तहत प्रशासन के पास क्या अधिकार हैं?
- इसमें आमतौर पर आंदोलन पर प्रतिबंध, हथियार ले जाने और गैरकानूनी रूप से असेंबलिंग पर प्रतिबंध शामिल हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि धारा 144 के तहत तीन या अधिक लोगों की सभा निषिद्ध है।
- धारा 144 के तहत पारित कोई भी आदेश उसके जारी होने के दिनांक से दो महीने तक ही लागू रह सकता है किंतु यदि राज्य सरकार चाहती है तो इसे 6 महीने तक बढाया जा सकता है। किसी भी परिस्थिति में धारा 144 के अंतर्गत जारी किया गया आदेश 6 महीने से ज़्यादा प्रभावी नहीं रह सकता है।
- धारा 144 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति विशेष को भी प्रतिबंधित करने का प्रावधान कर सकता है। गौरतलब है कि मजिस्ट्रेट यह आदेश किसी व्यक्ति को विधिवत रूप से नियोजित करने या मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के खतरे, सार्वजनिक सुरक्षा में गड़बड़ी को रोकने, दंगे रोकने इत्यादि संदर्भों में जारी कर सकता है।
धारा 144 के उपयोग पर प्रशासन की आलोचना क्यों की जाती है?
- ज़िला मजिस्ट्रेट के पास इस कानून के तहत प्राप्त अत्यधिक शक्ति संकेंद्रण के कारण इसकी आलोचना की जाती है। ध्यातव्य है कि इस कानून के क्रियान्वयन में ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी शक्ति के दुरुपयोग की आशंका के कारण भी इस कानून की आलोचना की जाती है।
- इस कानून के अंतर्गत व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, इसलिये भी इस कानून की आलोचना की जाती है। यद्यपि मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय जाने का विकल्प सदैव रहता है।
धारा 144 के संदर्भ में न्यायालय की राय:
- वर्ष 1939 में बम्बई उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि धारा 144 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट स्वतंत्रता को बाधित करता है किंतु उसे यह तभी करना चाहिये जब तथ्य सार्वजनिक सुरक्षा के संदर्भ में ऐसा करने को प्रमाणित करते हों तथा उसे ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिये जो मामले की आवश्यकताओं से परे हो।
- वर्ष 1961 के बाबूलाल परते बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने इस कानून की संवैधानिकता को बरक़रार रखा।
- वर्ष 1967 में राम मनोहर लोहिया मामले में इस कानून को पुनः न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया और इस कानून के पक्ष में कहा कि “कोई भी लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता यदि उस देश के किसी एक वर्ग के लोगों को आसानी से लोक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाने दिया जाए”।
- वर्ष 1970 में मधुलिमये (Madhu Limaye) बनाम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 7 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने धारा 144 में मजिस्ट्रेट की शक्ति के संदर्भ में कहा कि “मजिस्ट्रेट की शक्ति प्रशासन द्वारा प्राप्त आम शक्ति नहीं है बल्कि यह न्यायिक तरीके से उपयोग की जाने जाने वाली शक्ति है जिसकी न्यायिक जाँच भी की जा सकी है।”
- न्यायालय ने कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा 144 के अंतर्गत लगे प्रतिबंधों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है।
- वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह के प्रावधान का उपयोग केवल सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिये गंभीर परिस्थितियों में किया जा सकता है और इस प्रावधान का उद्देश्य केवल हानिकारक घटनाओं को घटित होने से रोकना है।
क्या धारा 144 दूरसंचार व्यवस्था पर भी प्रतिबंध लगाती है?
- दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन ( लोक आपात या लोक सुरक्षा ) नियम, 2017 के अंतर्गत देश के गृह मंत्रालय के सचिव या राज्य के सक्षम पदाधिकारी को दूरसंचार सेवाओं के निलंबन का अधिकार दिया गया है।
- यह कानून भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम,1885 से शक्ति प्राप्त करता है। ध्यातव्य है कि भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम,1885 की धारा 5(2) के तहत केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे लोक संकट या जन सुरक्षा या भारत की संप्रभुता और अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संदेश सेवा (Messaging) को प्रतिबंधित कर सकती हैं।
- हालाँकि भारत में शटडाउन हमेशा सुरक्षा उपायों और प्रक्रियाओं के निर्धारित नियमों के तहत नहीं होते हैं। धारा 144 का इस्तेमाल अक्सर दूरसंचार सेवाओं पर रोक लगाने और इंटरनेट बंद करने के आदेश के लिये किया जाता रहा है।
- उत्तर प्रदेश में ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 144 के तहत इंटरनेट सेवाएँ निलंबित कर दी गईं। पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक तनाव के कारण मोबाइल इंटरनेट, केबल सेवाओं और ब्रॉडबैंड को ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 144 के तहत बंद कर दिया गया।
आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता :
- आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है। यह सन् 1973 में पारित हुआ तथा 1 अप्रैल, 1974 से लागू हुआ।
- CrPC आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम है। जब कोई अपराध किया जाता है तो सदैव दो प्रक्रियाएँ होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जाँच करने में अपनाती हैं।
- एक प्रक्रिया पीड़ित के संबंध में और दूसरी आरोपी के संबंध में होती है। CrPC में इन प्रक्रियाओं का ब्यौरा दिया गया है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की कुछ प्रमुख धाराएँ :
- धारा 41 (b): गिरफ्तारी की प्रक्रिया तथा गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के कर्त्तव्य
- धारा 41 (d): इस धारा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तथा पुलिस द्वारा उससे परिप्रश्न किये जाते हैं, तो परिप्रश्नों के दौरान उसे अपने पसंद के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार होगा किंतु पूरे परिप्रश्नों के दौरान नहीं।
- धारा 46: गिरफ्तारी कैसे की जाएगी?
- धारा 51: गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी लेने की प्रक्रिया।
- धारा 52: आक्रामक आयुध का अधिग्रहण - गिरफ्तार व्यक्ति के पास यदि कोई आक्रामक आयुध पाए जाते है तो उन्हें अधिग्रहीत करने के प्रावधान हैं।
- धारा 55 (a): इसके अनुसार अभियुक्त को अभिरक्षा में रखने वाले व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह अभियुक्त के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की युक्तियुक्त देख-रेख करे।
इस प्रकार धारा 144 आपातकालीन स्थिति में कानून व्यवस्था को सुचारु रूप से क्रियान्वित करने के लिये एक अच्छा उपकरण है किंतु इसका गलत प्रयोग इसके संबंध में चिंता उत्पन्न करता है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (24 दिसंबर, 2019)
त्रिपुरा में पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने त्रिुपरा में अभी तक का पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) बनाने का निर्णय लिया है। प्रस्तावित SEZ त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 130 किलोमीटर दूर दक्षिणी त्रिपुरा के सबरूम ज़िले के पश्चिम जलेफा में बनाया जा रहा है। यह विशेष रूप से कृषि उत्पादों से जुड़े प्रसंस्करण उद्योग पर केंद्रित होगा, त्रिपुरा औद्योगिक विकास निगम की ओर से विकसित इस SEZ परियोजना पर करीब 1550 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत आएगी। इसमें विशेष कौशल आधारित करीब 12 हज़ार नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। इस विशेष आर्थिक क्षेत्र में रबड़, कपड़ा, वस्त्र उद्योग, बांस तथा कृषि उत्पादों से जुड़ी प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी। SEZ बनने के बाद पहले पाँच वर्षों तक यहाँ लगाई जाने वाली इकाइयों को आयकर अधिनियम की धारा 10AA के तहत निर्यात आय पर 100 फीसदी की छूट दी जाएगी। इसके अलावा उससे अगले पाँच वर्षों के लिये छूट की यह सीमा 50 प्रतिशत होगी।
मैनुअल मार्रेरो/मरेरो
अमेरिका के लिये बराबर परेशानी का सबब बने रहने वाले वाले कम्युनिस्ट देश क्यूबा को बीते 40 सालों में पहली बार प्रधानमंत्री मिला है। क्यूबा के लंबे समय से पर्यटन मंत्री रहे मैनुअल मार्रेरो ने देश के प्रधानमंत्री के तौर पर अपना पदभार संभाला। सरकार के प्रमुख के तौर पर मार्रेरो की नियुक्ति रेवोल्यूशनरी ओल्ड गार्ड से पीढ़िगत बदलाव और विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है जिसका ऊद्देश्य कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की रक्षा करना है। क्यूबा के राष्ट्रपति मिग्वेल डियाज कैनल और वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक ब्यूरो ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है। मार्रेरो क्यूबा के क्रांतिकारी नायक फिदेल कास्त्रो के प्रशासन में वर्ष 2004 से अब तक पर्यटन मंत्री रहे थे। फिदेल के भाई राउल और राष्ट्रपति डियाज कैनल के शासन में भी वह इस पद पर बने रहे। मैनुअल मार्रेरो ने वर्ष 1999 में क्यूबा सरकार में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। वर्ष 1999 में मैनुअल क्यूबा के ताकतवर गाविओता होटल ग्रुप के उपाध्यक्ष चुने गए थे। यह ग्रुप क्यूबा के सुरक्षा बलों का है। इसके एक साल बाद ही मैनुअल मार्रेरो इस ग्रुप के अध्यक्ष बन गए।
रोहित शर्मा
भारतीय क्रिकेटर रोहित शर्मा ने सभी प्रारूपों में सलामी बल्लेबाज के तौर पर एक कैलेंडर वर्ष में सबसे अधिक रन बनाने के श्रीलंकाई बल्लेबाज सनथ जयसूर्या का 22 साल पुराना रिकार्ड तोड़ दिया है। वेस्टइंडीज के खिलाफ कटक के बाराबती स्टेडियम में खेले गए तीसरे और अंतिम एक दिवसीय मैच में रोहित शर्मा ने 63 रन की पारी खेलकर इस साल 2442 रन बनाए। इस बल्लेबाज ने 47 पारियों में 53.08 के औसत से इस वर्ष सभी प्रारूपों में 10 शतक और इतने ही अर्द्धशतक लगाए हैं।
हनुक्का फेस्टिवल
दुनिया भर तथा इज़राइल में यहूदी समुदाय के आठ दिन तक चलने वाले हनुक्का फेस्टिवल की शुरुआत हो गई है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और रोशनी के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। आठ दिनों तक चलने वाला हनुक्का यहूदियों का एक बड़ा त्योहार है। इसे ‘फेस्टिवल ऑफ लाइट्स’ भी कहा जाता है। इस वर्ष हनुक्का का आयोजन 22 दिसंबर से 30 दिसंबर तक किया जा रहा है। मान्यता है कि दूसरी सदी में यहूदी समुदाय ने ग्रीक और सीरियाई उत्पीड़कों के विरुद्ध विद्रोह किया था। इसे मकैबियन विद्रोह नाम दिया गया। इसी की याद में यहूदी प्रत्येक वर्ष हनुक्का का आयोजन करता हैं। हिब्रू में हनुक्का का अर्थ है समर्पण। एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहूदियों के मंदिर के तेल का एक जार मंदिर के शाश्वत दीपक को पूरे आठ दिनों तक जलाए रखता था। उस रोशनी और तेल का इस त्योहार में खास महत्त्व रहा है। इसी वजह से हनुक्का में ज़्यादातर तेल से बनी चीज़ें खाई जाती हैं और लगातार आठ दिनों तक मोमबत्ती जलाई जाती है। हिब्रू कैलेंडर के अनुसार, हनुक्का किसलेव (Kislev) महीने (साल के नौवें महीने यानी सितंबर) से शुरू हो जाता है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, हनुक्का दिसंबर के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाता है।
वर्नन फिलेंडर
दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के खिलाड़ी वर्नन फिलेंडर ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की है। फिलेंडर इंग्लैंड के विरुद्ध खेली जानी वाली आगामी टेस्ट सीरीज़ के बाद संन्यास ले लेंगे। वर्नन फिलेंडर ने अपने टेस्ट करियर में 60 मैच में कुल 216 विकेट और वनडे में 30 मैच खेलकर 41 विकेट लिये हैं।