दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 24 Sep, 2019
  • 55 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

अजन्मे बच्चों पर ब्लैक कार्बन के दुष्प्रभाव

चर्चा में क्यों

हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन्स (Nature Communications) में प्रकाशित एक शोध में वायु प्रदूषकों के प्लेसेंटा अर्थात् गर्भनाल में जमाव के कारण गर्भस्थ शिशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु

  • शोध के अनुसार ब्लैक कार्बन की उच्च सांद्रता के संपर्क में आने वाली महिलाओं के प्लेसेंटा (Placenta) में 2.42 माइक्रोग्राम प्रति सेंटीमीटर क्यूब के औसतन आकार के ब्लैक कार्बन का उच्च स्तर पाया गया।
  • ब्लैक कार्बन जैसे वायु प्रदूषक में माता के फेफड़ों से प्लेसेंटा में स्थापित होने की क्षमता होती है जिसके शिशु पर गंभीर स्वास्थ्य परिणाम प्रदर्शित होते हैं।
  • जन्म के समय कम वज़न इनमें से प्रमुख समस्या है जिसके कारण बच्चे की मधुमेह, अस्थमा और हार्ट स्ट्रोक सहित हृदय संबंधी अन्य बीमारियों के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है।
  • शोध के अनुसार, गर्भस्थ शिशु के प्रत्यक्ष संपर्क में रहने वाली प्लेसेंटा की भीतरी सतह पर ब्लैक कार्बन के अवशेष पाए गए हैं।
  • हालाँकि भ्रूण में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति के साक्ष्य नहीं मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्लेसेंटा प्रदूषकों के आगे बढ़ने में एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
  • लेकिन शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यदि प्लेसेंटा ब्लैक कार्बन से प्रभावित होता है तो भ्रूण पर भी इसके दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं।

क्या है प्लेसेंटा?

  • प्लेसेंटा अथवा गर्भनाल महिला के शरीर का अस्थायी अंग होता है, जो संपूर्ण गर्भावस्था के दौरान माता और भ्रूण के बीच प्राकृतिक संपर्क बिंदु की तरह कार्य करता है।
  • प्लेसेंटा के द्वारा ही भ्रूण को सुरक्षा और पोषण मिलता है और वह मां के गर्भ में जीवित रहता है। प्लेसेंटा विषैले पदार्थों को भ्रूण तक नहीं पहुँचने देता है।
  • इसके अलावा प्लेसेंटा माता के शरीर में दूध बनने के लिये आवश्यक लैक्टोजन के निर्माण में भी सहायता करता है।

ब्लैक कार्बन

Black Carbon

  • ब्लैक कार्बन जीवाश्म एवं अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन, ऑटोमोबाइल तथा कोयला आधारित ऊर्जा सयंत्रों से निकलने वाला एक पार्टिकुलेट मैटर है।
  • यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो उत्सर्जन के बाद कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में बना रहता है।
  • वायुमंडल में इसके अल्प स्थायित्व के बावजूद यह जलवायु, हिमनदों, कृषि, मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डालता है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

IVF के लिये आयु सीमा के निर्धारण से सम्बंधित मुद्दे

संदर्भ

हाल ही में आंध्र प्रदेश की एक 74 वर्षीय महिला ने पात्रे निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In Vitro Fertilization-IVF) के माध्यम से जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया और IVF के माध्यम से बच्चों को जन्म देने वाली सबसे बुजुर्ग महिला बनी।

चिकित्सक समुदाय ने इस उम्र में गर्भाधान पर नैतिक और चिकित्सीय चिंताओं को व्यक्त किया है।

क्या है पात्रे निषेचन?

  • यह निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया है जिसमें किसी मादा के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इस प्रकार का निषेचन शरीर के बाहर किसी अन्य पात्र में कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को मादा के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है।

चिंता का विषय क्यों?

  • एक भारतीय महिला की औसत जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष और पुरुष की 69 वर्ष होती है ऐसे में चिकित्सा समुदाय ने इस तरह के बुजुर्ग दंपति से पैदा होने वाले बच्चों के भविष्य पर चिंता व्यक्त की है।
  • वृद्धावस्था में गर्भधारण अन्य कई जोखिमों को जन्म दे सकता है जैसे- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, ऐंठन, रक्तस्राव और हृदय संबंधी अन्य समस्याएँ।
  • एक वृद्ध महिला के गर्भ में नौ महीने तक भ्रूण को विकसित करने के लिये हार्मोन का इंजेक्शन लगाना पड़ता है, इसके अलावा इस उम्र की महिला स्तनपान भी नहीं करा सकती है।

कुछ चिकित्सक समर्थन भी करते हैं

  • बच्चे पैदा करने का सामाजिक दबाव, बुढ़ापे में बिना सहारे के जीने का डर और इकलौते बच्चे का खो जाना आदि अक्सर दंपतियों को इसके लिये प्रोत्साहित करता है।
  • बहुत से दंपति ऐसे हैं जो अपने जीवन की कमाई को सुरक्षित करने आदि के लिये ये वारिस चाहते हैं। कुछ डॉक्टरों का तर्क है कि प्रसव एक व्यक्तिगत निर्णय है और प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श के बाद उस विकल्प को अपनाने का अधिकार है।

भारत में IVF का विनियमन

  • सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2010 [Assisted Reproductive Technologies (Regulation) Bill],2010 में बच्चों को "वृद्धावस्था बीमा" के रूप संदर्भित किया गया है।
  • विधेयक में IVF प्रक्रिया के संबंध में महिलाओं की अधिकतम आयु सीमा 45 और पुरुषों के लिये अधिकतम आयु सीमा 50 वर्ष निर्धारित करने का प्रस्ताव है।
  • वर्तमान में कई केंद्र भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के वर्ष 2017 के दिशा-निर्देशों का अनुसरण करते हैं, इन दिशा-निर्देशों में भी उपरोक्त विधेयक के समान ही अधिकतम आयु सीमा निर्धारित करने की सिफारिश की गई हैं। यहाँ तक कि बच्चे को गोद लेने के लिये भी दंपति की आयु का योग 110 वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि को देखते हुए चिकित्सकों ने महिलाओं के लिये IVF हेतु अधिकतम आयु सीमा को 50-52 वर्ष तक करने के लिये सरकार से सिफारिश की है।

IVF के संबंध में अन्य देशों के कानून:

  • अधिकांश देशों में IVF के विनियमन के लिये कानून बनाए गए हैं इन कानूनों के तहत IVF के लिये अधिकतम आयु सीमा 40 से 50 वर्ष के बीच निर्धारित की गई है। उदाहरण के लिये अमेरिका में IVF के लिये अधिकतम आयु सीमा 50 और डिंब दान (Ovam Donation) के लिये 45 वर्ष है, वहीँ ऑस्ट्रेलिया में रजोनिवृत्ति की आयु (52 वर्ष) के बाद IVF प्रतिबंधित है।
  • यू.के. में महिलाओं के लिये ये राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के तहत मुफ्त बीमा प्राप्त करने की सुविधा 42 वर्ष की आयु सीमा तक उपलब्ध है, जबकि कनाडा में इसके लिये निर्धारित आयु सीमा 43 वर्ष है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्

(Indian Council Of Medical Research-ICMR)

  • जैव चिकित्सा अनुसंधान, समन्वय एवं संवर्धन के लिये भारत का यह शीर्ष निकाय दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Department of Health Research, Ministry of Health & Family Welfare) के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

एक-चौथाई भारतीय डिमेंशिया को खतरनाक मानते हैं

चर्चा में क्यों?

21 सितंबर को विश्व अल्ज़ाइमर दिवस पर लंदन स्थित गैर-लाभकारी संगठन अल्ज़ाइमर डिज़ीज़ इंटरनेशनल (Alzheimer’s Disease International-ADI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में इस रोग के प्रति लोगों के व्यवहार पर प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु

  • लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा 155 देशों में लगभग 70,000 लोगों पर किये गए इस सर्वेक्षण का उद्देश्य पीड़ित लोगों, स्वास्थ्य चिकित्सकों और देखभाल कर्मियों के बीच डिमेंशिया के प्रति दृष्टिकोण का मापन करना था।
  • रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल लगभग एक-चौथाई भारतीय, डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को "खतरनाक" मानते हैं जबकि लगभग तीन-चौथाई लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि डिमेंशिया से पीड़ित लोगों का व्यवहार आक्रामक और अप्रत्याशित होता है।
  • सर्वे के अनुसार, डिमेंशिया से प्रभावित सभी लोगों में से 50% को कभी भी औपचारिक निदान नहीं मिलता है और चीन तथा भारत में ऐसे लोगों की संख्या 70-90% तक है।
  • रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर 152 मिलियन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • जनसांख्यिकी अनुमानों के अनुसार, भारत में वर्ष 2100 तक कार्यशील आबादी के प्रत्येक 3 सदस्यों पर एक बुजुर्ग व्यक्ति होगा और इसके साथ ही वृद्धावस्था में डिमेंशिया से पीड़ित बुजुर्गों में भी वृद्धि होगी क्योंकि इंडियन जर्नल ऑफ़ साइकेट्री की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, बुजुर्गों में डिमेंशिया का प्रसार बढ़ रहा है।

क्या है अल्ज़ाइमर रोग?

  • डॉ.अलोइस अल्जाइमर (Alois Alzheimer) के नाम पर इस रोग का नामकरण किया गया है।
  • अल्ज़ाइमर रोग अपरिवर्तनीय और समय के साथ बढ़ने वाला मस्तिष्क रोग है, जो धीरे-धीरे स्मृति और सोचने की क्षमता को नष्ट कर देता है। अंततः यह रोग दैनिक जीवन के सरल कार्यों को पूरा करने की क्षमता को भी समाप्त कर देता है।

Alzheimer Disease

  • अल्ज़ाइमर रोग का सबसे सामान्य प्रकार डिमेंशिया है जिसे संज्ञानात्मक विकास की गंभीर क्षति द्वारा पहचाना जाता है।
  • डिमेंशिया एक सिंड्रोम है, न कि बीमारी। यह रोग वृद्ध व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है।
  • आमतौर पर यह वृद्धावस्था में पाया जाने वाला विकार है, लेकिन यह विकार कुछ अन्य स्थितियों में पहले से अक्षम व्यक्तियों में भी पाया जा सकता है।
  • वैज्ञानिक अभी तक अल्ज़ाइमर रोग होने के सटीक कारणों के बारे में जानकारी नहीं जुटा पाए हैं। इस प्रकार यह इडियोपैथिक रोग है।
  • वे रोग इडियोपैथिक रोग कहलाते हैं जिनकी उत्पति का कारण अथवा स्रोत अज्ञात हो।

अल्ज़ाइमर के लक्षण

  • विस्मृति।
  • भाषा संबंधी कठिनाई, जिसमें नाम याद रखने में परेशानी शामिल है।
  • योजना निर्माण और समस्या के समाधान में परेशानी।
  • पूर्व परिचित कार्यों को करने में परेशानी।
  • एकाग्रता में कठिनाई।
  • स्थानिक रिश्तों जैसे कि सड़कों और गंतव्य के लिए विशेष मार्गों को याद रखने में परेशानी।
  • सामाजिक व्यवहार में परेशानी।

अल्ज़ाइमर के चरण

  • प्राथमिक डिमेंशिया या मध्यम संज्ञानात्मक विकार - इस रोग की पहचान संज्ञानात्मक स्तर में गिरावट के आधार पर की जाती है। इस रोग में दैनिक जीवन की गतिविधियों को स्वतंत्रतापूर्ण बनाए रखने के लिये प्रतिपूरक रणनीतियों और सामजंस्य की आवश्यकता होती है।
  • मध्यम अल्ज़ाइमर डिमेंशिया - इस रोग को दैनिक जीवन की बाधित होने वाली गतिविधियों के लक्षणों द्वारा पहचाना जाता है। रोगी को जटिल कार्यों जैसे कि वित्तीय प्रबंधन के लिये पर्यवेक्षण की ज़रूरत पड़ती है।
  • गंभीर अल्ज़ाइमर डिमेंशिया - इस विकार को दैनिक जीवन की गंभीर रूप से बाधित गतिविधियों के लक्षणों द्वारा पहचाना जाता है। इसमें रोगी आधारभूत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होता है।

प्रबंधन

अल्ज़ाइमर रोग के लिये उपचार को चिकित्सा, साइकोसोशल और देखभाल में विभाजित किया जा सकता है।

1. चिकित्सा

  • कोलीनेस्टेरेस इन्हीबिटर्स-एसिटाइलकोलाइन एक रसायन है, जो कि तंत्रिका संकेतों को गतिशील बनाए रखता है तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं के भीतर संदेश प्रणाली में मदद करता है।
  • अल्ज़ाइमर के उपचार के लिये विभिन्न प्रकार की दवाओं का उपयोग किया जाता है। डोनेपेजिल, रिवाइस्टिंगमिन, गेलन्टामाइन दवाओं तथा मिमेन्टाइम केमिकल का उपयोग मध्यम अल्ज़ाइमर रोग के साथ-साथ गंभीर अल्ज़ाइमर रोग के लिये किया जा सकता है।

2. साइकोसोशल

  • साइकोसोशल इन्टर्वेन्शन के उपयोग को संयुक्त रूप से सहयोगात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहारिक दृष्टिकोण में वर्गीकृत किया जा सकता है।

3. देखभाल

  • औषधीय उपचार से अल्ज़ाइमर से पीड़ित रोगी को पूरी तरह से उपचारित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार अनिवार्य देखभाल ही उपचार है तथा इसके माध्यम से इस रोग की अवधि को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जा सकता है।

स्रोत : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टीकों के विकास के लिये नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल

चर्चा में क्यों?

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) ने एक नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल (Controlled Human Infection Model-CHIM) का उपयोग करके इन्फ्लूएंजा का नया टीका विकसित करने का प्रस्ताव दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके लिये भारतीय व यूरोपीय वैज्ञानिकों को शामिल करते हुए 135 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंज़ूरी दी जाएगी।
  • CHIM के तहत ट्रायल में स्वेच्छा से भाग लेने वाले व्यक्तियों को विशेषज्ञों की निगरानी में संक्रामक वायरस या बैक्टीरिया (Viruses or Bacteria) से संक्रमित करवाया जाएगा।
  • पूर्व में हैदराबाद स्थित बायोटेक कंपनी भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने टाइफाइड वैक्सीन (Typhoid Vaccine) विकसित करने के लिये CHIM पद्धति का उपयोग किया था।
  • पारंपरिक रूप से टीके एक रोग जनक वायरस या बैक्टीरिया के कमजोर रूप से बने होते हैं जिन्हें शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमित करने के लिये इंजेक्शन द्वारा प्रवेश करवाया जाता हैं जिससे भविष्य में शरीर इस रोग जनक के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग

(Department of Biotechnology-DBT)

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तहत आता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1986 में हुई।
  • DBT देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और DNA उत्पादों के लिये जैव सुरक्षा दिशा निर्देशों को जारी करता है और सामाजिक लाभ के लिये जैव-प्रौद्योगिकी आधारित कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है।

भारत के संदर्भ में CHIM

  • वैक्सीन के विकास में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और केन्या में किये जा रहे CHIM आधारित अध्ययनों को भारत में मान्यता दी जा रही है।
  • इन्फ्लूएंजा परीक्षणों तक सीमित रहने के बजाय भारत हैजा या टाइफाइड जैसे बैक्टीरियल या आंत्र परजीवियों का अध्ययन करने के लिये CHIM प्रोटोकॉल विकसित करेगा।

लाभ

  • CHIM संभावित वैक्सीन के लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के परीक्षण व उनके निर्धारण की प्रक्रिया को तीव्र करेगा।
  • यह उन कारकों की भी पहचान करेगा कि कुछ लोग टीकाकरण के पश्चात भी संक्रमित क्यों हो जाते हैं जबकि अन्य लोगो का टीकाकरण सफल रहता है।
  • CHIM का अनुभव टीकों के विकास में कुशल नैदानिक जॉचकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करने में सहायक हो सकता है।

चिंता के मुद्दे

  • ऐसे परीक्षणों में जान बूझकर स्वस्थ लोगों को एक सक्रिय वायरस से संक्रमित कर बीमार किया जाता है जो कि चिकित्सकीय नैतिकता (Medical Ethics) के विरुद्ध है।
  • इस प्रकार के परीक्षणों में स्वेच्छा से भाग लेने वाले व्यक्ति के जीवन पर जोखिम बना रहता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

समान भाषा उप-शीर्षक (SLS)

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 15 अगस्त, 2019 से देश के सभी 800 भारतीय टीवी चैनलों के लिये भाषा आधारित उप-शीर्षक/समान भाषा उप-शीर्षक (Same Language Subtitling-SLS) तैयार करने की अनिवार्यता लागू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत ने SLS की प्रेरणा अमेरिका से ली है ताकि मूक-बधिर लोगों तक मीडिया की आसान पहुँच हो तथा रीडिंग लिटरेसी में सुधार हो।
  • यूनाइटेड किंगडम में भारतीय अनुभवों से प्रेरित होकर बच्चों के प्रोग्रामिंग में Turn on the Subtitle के रूप में कैंपेन भी चल रहा है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (Right of Person with Disability Act), 2016 के आधार पर SLS की नीति को लागू किया गया है, जिसमें सभी TV चैनलों पर कैप्शनिंग (Captioning) की बात की गई है।
  • वर्ष 2025 के अंत तक 50% टीवी चैनलों को Same Language Subtitling (SLS) से युक्त करने का लक्ष्य रखा गया है तथा प्रतिवर्ष 10% की वृद्धि करते हुए इस लक्ष्य को प्राप्त करना निश्चित किया गया है।
  • मूक-बधिर लोगों के लिये टीवी पर कैप्शनिंग (उप-शीर्षक लिखा होना) का विचार नया नहीं है। इस क्रम में अमेरिका की पहल का अनुसरण कई देशों ने किया है। फिर भी भारत द्वारा कैप्शनिंग को अनिवार्य करना दो कारणों से महत्त्वपूर्ण है:
    • दक्षिणी देशों में कैप्शनिंग को लागू करने वाला भारत पहला प्रमुख देश है। उल्लेखनीय है कि भारत के अलावा ऐसा करने वाला एक अन्य दक्षिणी देश ब्राज़ील है।
    • भारत ऐसा पहला देश है जिसने साक्षरता के लिये कैप्शनिंग या समान भाषा उप-शीर्षक (SLS) को बड़े पैमाने पर महत्त्व दिया है।

उद्देश्य

  • सतत् विकास लक्ष्य संख्या-4 के प्रति भारत ने प्रतिबद्धता व्यक्त की है; जिसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कही गई है। चूँकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक अच्छी रीडिंग स्किल पर निर्भर होती है, अतः इसे SLS के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

लाभ: वैज्ञानिक साक्ष्य के अनुसार, SLS लागू करने से भारत को निम्नलिखित लाभ होने की संभावना है-

  • SLS के लागू होने से लगभग एक बिलियन दर्शक और 500 मिलियन कमज़ोर पाठक दैनिक व स्वचालित रूप से पढ़ने का अभ्यास कर सकेंगे।
  • इससे देश के 65 मिलियन मूक-बधिर लोगों तक मीडिया की पहुँच सुनिश्चित हो सकेगी।
  • भारतीय भाषाओं का विकास होगा।

आगे की राह

  • यद्यपि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने SLS को अनिवार्यता प्रदान करने की एक निर्णायक भूमिका अदा की है परंतु आवश्यकता है कि इसे सभी चैनलों व राज्यों में समान स्तर से क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
  • इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा भी सभी डिजिटल ओवर द टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म पर भी SLS की नीति को लागू किया जाना चाहिये।
  • मनोरंजन उद्योग को सभी भारतीय भाषाओं में ऑडियो-विज़ुअल सामग्री के लिये SLS को लागू करके अपनी भूमिका निभानी चाहिये।

निष्कर्ष:

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report-ASER) के अनुसार, भारतीय ग्रामीण क्षेत्र के पाँचवीं कक्षा के स्कूली छात्र वर्ग-2 की किताबों को पढ़ने में असमर्थ हैं। FICCI-EY Media and Entertainment Report-2019 के मुताबिक, भारत में 24% लोग फिल्म देखते हैं तथा 53% लोग सामान्य मनोरंजन के साधनों का उपयोग करते हैं। स्पष्टत: कहा जा सकता है कि SLS के माध्यम से देश की बड़ी आबादी की रीडिंग स्किल को बढ़ाया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मीथेन-संचालित रॉकेट इंजन

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) मीथेन संचालित रॉकेट इंजन विकसित करने की योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • इसरो दो एलओएक्स मीथेन (LOX Methane- Liquid Oxygen Oxidizer And Methane Fuel) इंजन आधारित परियोजनाओं को विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
  • इनमें से एक परियोजना मौजूदा क्रायोजेनिक इंजन स्थानांतरित करने से संबंधित है। इसके तहत LOX मीथेन इंजन का प्रयोग किया जायेगा, जिसमें ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है।
  • दूसरी परियोजना में 3 टन वज़न वाले छोटे इंजन का प्रयोग किया जायेगा, जो इलेक्ट्रिक मोटर युक्त होगा।

मीथेन आधारित ईंधन:

मीथेन को अंतरिक्ष में पानी और कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के साथ संश्लेषित किया जा सकता है। इसे ‘भविष्य के ईंधन’ की संज्ञा भी दी जाती है। यह तकनीक वर्तमान क्रायोजेनिक इंजन को स्थानांतरित करने में सक्षम है।

हाइपरगोलिक प्रणोदक (Hypergolic Propellant):

ये ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर स्वयं जलने लगते हैं और इन्हें किसी प्रज्जवलन स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है।

तरल ऑक्सीजन (Liquid Oxygen- LOx):

यह संक्षिप्त रूप से मौलिक ऑक्सीजन का तरल रूप है। इसका प्रयोग वर्तमान में तरल-ईंधन वाले रॉकेट में ऑक्सीडाइज़र के रूप में किया जाता है।

लाभ:

  • हाइड्राजीन आधारित ईंधन अत्यधिक विषाक्त एवं कैंसर जैसे रोगों के कारक होते हैं। इसके विपरीत मीथेन गैर-विषैला होता है, साथ ही इसमें उच्च विशिष्ट आवेग होता है।
  • ये कम भारी होते हैं, अतः इन्हें स्टोर करना आसान होता है।
  • हाइड्राजीन आधारित ईंधनों के विपरीत ये जलने पर अवशेष नहीं छोड़ते हैं।
  • इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे अंतरिक्ष में संश्लेषित किया जा सकता है।
  • बेहतर ईंधनों का प्रयोग अंतरिक्ष में अनुसंधान को बढ़ावा देगा।
  • यह उपग्रहों (Satellite) को कम खर्चीला बनाएगा।

पृष्ठभूमि

  • वर्तमान में इसरो तरल ईंधन आधारित इंजनों जैसे विकास इंजन में ऑक्सीडाइजर नाइट्रोजन टेट्रॉक्साइड के साथ अत्यधिक विषैले अनसिमेट्रिकल डाई-मिथाइल हाइड्राजीन (Unsymmetrical Di-Methyl Hydrazine-UDMH) ईंधन का उपयोग करता है।
  • इसे ‘डर्टी कॉम्बिनेशन’ (Dirty Combination) कहा जाता है। इस ईंधन का प्रयोग रॉकेट, पीएसएलवी (PSLV), जीएसएलवी (GSLV) के निचले चरणों में किया जाता है।
  • हाइड्राजीन आधारित ईंधन हाइपरगोलिक (Hypergolic) होते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

व्यय अनुपात क्या है?

चर्चा में क्यों?

सेबी ने पिछले वर्ष ओपन एंडेड इक्विटी योजनाओं के लिये अधिकतम कुल व्यय अनुपात (Total Expense Ratio) को 2.75% से कम करते हुए 2.25% कर दिया था।

प्रमुख बिंदु

  • म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) के तहत निवेश करने पर एसेट्स मैनेजमेंट कंपनी द्वारा वार्षिक निधि परिचालन व्यय (Annual Fund Operating Expense) के रूप में कुछ राशि काट ली जाती है। जिसे कुल व्यय अनुपात कहते हैं।
  • कुल व्यय अनुपात के अंतर्गत प्रबंधकीय, प्रशासनिक व अन्य खर्चों को शामिल किया जाता है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिये KYC (Know Your Client) की आवश्यकताओं पर एच.आर. खान समिति की सिफारिशों को व्यापक स्तर पर स्वीकार करते हुए सेबी ने ओपन एंडेड इक्विटी योजनाओं के लिये कुल व्यय अनुपात को कम किया था।

ओपन एंडेड इक्विटी स्कीम: म्यूचुअल फंड के तहत दो तरह की योजनाएँ शामिल की जाती हैं-

  • ओपन एंडेड इक्विटी स्कीम।
  • क्लोज़ एंडेड इक्विटी स्कीम।

जहाँ क्लोज़ एंडेड इक्विटी स्कीम की परिपक्वता अवधि (Maturity Period) निर्धारित होती है तथा निर्धारित समय-सीमा के बाद इसे तरलता (liquidity) रूप प्रदान किया जा सकता है, वहीं ओपन एंडेड स्कीम की कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है, इसे कभी भी भुनाया जा सकता है और तरलता (liquidity) के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

इस कदम के निहितार्थ

  • ‘व्यय अनुपात’ विक्रय प्रतिशत के सापेक्ष कुल व्यक्तिगत व्यय या कुल लागत को व्यक्त करता है अर्थात् कुल व्यय अनुपात जितना कम होगा, निवेशक के लाभ में उतनी ही वृद्धि होगी।
  • कुल व्यय अनुपात से सक्रीय रूप से प्रबंधित फंड और निष्क्रिय रूप से प्रबंधित फंड के मध्य अंतर को स्पष्ट किया जा सकेगा।
  • निवेशकों को निवेश करते हेतु प्रोत्साहन मिलेगा व म्यूचुअल फंड के माध्यम से पूंजी जुटाने में आसानी होगी।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की स्थिति बेहतर हो सकेगी।
  • नियामक के अनुसार व्यय अनुपात कम होने से निवेशकों को कमीशन में 1300 करोड़ से 1500 करोड़ रुपए की बचत होगी।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर उच्च स्तरीय बैठक

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र के दौरान 23 सितंबर, 2019 को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक (UN-HLM) का आयोजन किया गया। यह बैठक ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज: एक स्वस्थ दुनिया बनाने के लिये एक साथ आगे बढ़ना’ (UHC:Moving Together to Build a Healthier World) की थीम के तहत आयोजित की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • सतत् विकास के लिये एजेंडा-2030 के तहत सभी देशों ने वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • यह बैठक इस दिशा में स्वास्थ्य एजेंडे के लिये अधिकतम राजनीतिक समर्थन जुटाने और एक सामंजस्यपूर्ण तरीके से स्वास्थ्य क्षेत्र में सतत् निवेश बनाए रखने पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है।
  • इस बैठक का उद्देश्य भी वैश्विक समुदाय को वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में तेजी से प्रगति लाने के लिये राज्य और सरकार के प्रमुखों की राजनीतिक प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करना है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर संयुक्त राष्ट्र की यह उच्च स्तरीय बैठक संयुक्त राष्ट्र में इस विषय पर पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बैठक है। क्योंकि यह वर्ष 2023 (एजेंडा-2030 की मध्यावधि) से पहले सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाने का एक अंतिम अवसर है।

build a healthier world

  • सभी को स्वास्थ्य सुविधाएंँ उपलब्ध कराने के संकल्प के साथ इस उच्च स्तरीय बैठक में एक महत्त्वाकांक्षी राजनैतिक घोषणापत्र पारित किया गया है।
  • यह घोषणापत्र नागरिक समाज संगठनों और अन्य हितधारकों के सहयोग से राष्ट्रीय UHC योजनाओं के विकास एवं कार्यान्वयन के लिये एक उच्च-स्तरीय रूपरेखा निर्धारित करता है।
  • यह घोषणापत्र इस बात को मान्यता देता है कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज न केवल स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मूलभूत शर्त है बल्कि यह अन्य लक्ष्यों जैसे-गरीबी उन्मूलन (SDG-1), गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG-4), लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण (SDG-5 ), उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि (SDG-8), बुनियादी ढाँचा (SDG-9), असमानता कम करना (SDG-10 ), न्याय और शांति (SDG-16) आदि की प्राप्ति के लिये भी आवश्यक है।
  • इस घोषणापत्र से संचारी रोगों, एड्स, तपेदिक और मलेरिया जैसे रोगों के साथ ही अन्य ग़ैर-संचारी रोगों और एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस की चुनौती से भी निपटने में सहायता मिलेगी।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

(Universal Health Coverage-UHC)

Universal health coverage

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का अर्थ है- देश में रहने वाले सभी लोगों और समुदायों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक समतापूर्ण पहुँच हो।
  • UHC का उद्देश्य लोगों की जाति, धर्म, लिंग, आय स्तर, सामाजिक स्थिति की परवाह किये बिना सभी की वहनीय, उत्तरदायी, गुणवत्तापूर्ण एवं यथोचित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना है। स्वास्थ्य सेवाओं में रोगों की रोकथाम, उपचार एवं पुनर्वास देखभाल शामिल है।
  • UHC सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक उत्प्रेरक के साथ ही समता, सामाजिक न्याय और समावेशी आर्थिक विकास के लिये भी आवश्यक है। UHC स्वास्थ्य के मानव अधिकार के साथ-साथ व्यापक मानवाधिकार एजेंडे का भी संरक्षक है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (Primary Health Care-PHC) प्रणाली सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की नींव है। PHC उन्मुख स्वास्थ्य प्रणाली गुणवत्तापूर्ण, व्यापक, निरंतर, समन्वित और जन-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम हैं।

UHC सुनिश्चित करने में प्रमुख बाधाएँ

  • अवसंरचनात्मक और बुनियादी सुविधाओं की अपर्याप्तता।
  • स्वास्थ्य खर्च में आउट-ऑफ़-पॉकेट व्यय का अधिक होना।
  • दक्ष एवं योग्य मानव संसाधन की कमी और इनकी अकुशल तैनाती।
  • अच्छी गुणवत्ता वाली दवाओं और चिकित्सा उत्पादों का महँगा होना एवं सीमित रूप से उपलब्धता।
  • डिजिटल स्वास्थ्य और अभिनव प्रौद्योगिकियों तक पहुँच का अभाव आदि।

UHC: भारतीय संदर्भ

  • भारत में UHC के सूत्रीकरण के लिये दस सिद्धांतों को अपनाया गया है-
    • सार्वभौमिकता (Universality)
    • समता (Equity)
    • गैर-बहिष्कार एवं गैर-भेदभाव (Non-exclusion and Non-Discrimination)
    • तर्कसंगत एवं गुणवत्तापूर्ण व्यापक देखभाल (Rational and Comprehensive Care of Good Quality)
    • वित्तीय सुरक्षा (Financial Protection)
    • रोगियों के अधिकारों का संरक्षण (Protection of Patients’ Rights)
    • मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये प्रावधान (Provision for Strong Public Health)
    • उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता (Accountability and Transparency)
    • समुदाय की भागीदारी (Community Participation)
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुँच (Putting health in people hands)
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य के मामले में भारत ने एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है जो चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है-
    • निवारक स्वास्थ्य देखभाल।
    • सस्ती स्वास्थ्य देखभाल।
    • आपूर्ति पक्ष में सुधार।
    • मिशन मोड में कार्यान्वयन।
  • आयुष प्रणालियों पर विशेष ज़ोर एवं 125,000 से अधिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के निर्माण से निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा मिला है।
  • इससे जीवन-शैली संबंधी बीमारियों जैसे-मधुमेह, रक्तचाप, अवसाद आदि को नियंत्रित करने में सहायता मिल रही है।
  • ई-सिगरेट पर प्रतिबंध, स्वच्छ भारत अभियान और टीकाकरण अभियानों के माध्यम से जागरूकता के कारण भी स्वास्थ्य संवर्द्धन में सहायता मिल रही है।
  • सस्ती स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिये भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत शुरू की है।
  • इस योजना के तहत 50 करोड़ गरीबों को सालाना 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई है।
  • 5000 से अधिक विशेष फार्मेसियाँ हैं, जहाँ 800 से अधिक प्रकार की जीवनरक्षक दवाएँ कम कीमतों पर उपलब्ध हैं।
  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिशन मोड हस्तक्षेपों में माँ और बच्चे की पोषण की स्थिति में सुधार पर केंदित राष्ट्रीय पोषण मिशन और वैश्विक लक्ष्य 2030 से पाँच वर्ष पहले 2025 तक क्षय रोग को खत्म करने की प्रतिबद्धता उल्लेखनीय पहलें हैं।
  • इसके अलावा वायु प्रदूषण और जानवरों के माध्यम से फैलने वाली बीमारियों के खिलाफ अभियान एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहल हैं।
  • भारत ने कई अन्य देशों, विशेष रूप से अफ्रीकी देशों को टेली-मेडिसिन के माध्यम से वहनीय स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये भी प्रयास किये हैं।

सामाजिक न्याय

उम्मीद पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने नवजात शिशुओं से संबंधित आनुवंशिक बीमारियों से निपटने के लिये उम्मीद (Unique Methods of Management and Treatment of Inherited Disorders- UMMID) पहल की शुरुआत की है।

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) हेतु अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और आणविक चिकित्सा के उपयोग को नियमित करने के लिये सरकारी अस्पतालों के माध्यम से इस कार्यक्रम को लागू किया जाएगा।
  • इस पहल को रोकथाम इलाज से बेहतर है (Prevention is Better than Cure) की अवधारणा पर तैयार किया गया है।
  • भारत के शहरी क्षेत्रों में जन्म से पहले और जन्म के समय की जन्मजात विकृतियाँ तथा आनुवंशिक विकार शिशुओं की मृत्यु का कम वजन तथा संक्रमण के बाद तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
  • भारत में एक बड़ी जनसंख्या, उच्च जन्म दर और कई समुदायों में सजातीय विवाह (Consanguineous Marriage) जैसे कारक आनुवंशिक विकारों के उच्च प्रसार हेतु ज़िम्मेदार हैं।
  • उम्मीद पहल का उद्देश्य:
    • सरकारी अस्पतालों में परामर्श, प्रसवपूर्व चिकित्सा, प्रबंधन तथा सभी विषयों से संबंधित देखभाल प्रदान करने के लिये निदान (National Inherited Diseases Administration- NIDAN) केंद्रों की स्थापना करना ।
    • मानव जेनेटिक्स (Human Genetics) के क्षेत्र में कुशल चिकित्सकों को बढ़ावा देना।
    • आकांक्षी ज़िलों (Aspirational Districts) के अस्पतालों में आनुवंंशिक बीमारियों से पीड़ित गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की जांँच करना।
    • चिकित्सकों के बीच आनुवंशिक विकारों के बारे में जागरूकता फैलाना और अस्पतालों में आणविक निदान (Molecular Diagnostics) की व्यवस्था सुनिश्चित करना।

स्रोत: pib


जैव विविधता और पर्यावरण

उत्तर पूर्व जल प्रबंधन प्राधिकरण (NEWMA)

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने उत्तर पूर्वी क्षेत्र के जल संसाधनों के प्रबंधन हेतु समेकित रणनीति तैयार करने के लिये जल्द ही एक उत्तर पूर्व जल प्रबंधन प्राधिकरण (North East Water Management Authority-NEWMA) स्थापित करने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • प्राधिकरण की स्थापना चीन की महत्त्वाकांक्षी 62 बिलियन डॉलर की दक्षिण-उत्तर जल डायवर्जन योजना की पृष्ठभूमि के खिलाफ नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता में गठित एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाएगी।
  • NEWMA, क्षेत्र में पनबिजली, कृषि, जैव विविधता संरक्षण, बाढ़ नियंत्रण, अंतर्देशीय जल परिवहन, वानिकी, मत्स्य और इको-पर्यटन से संबंधित सभी परियोजनाओं को विकसित करने के लिये सर्वोच्च प्राधिकरण होगा।
  • यह चीन से निकलने वाली नदियों के जल पर पूर्व उपयोगकर्त्ता अधिकारों को स्थापित करने के लिये भारत के प्रयासों में मदद करेगा।

शीर्ष निकाय की स्थापना के उद्देश्य

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में उत्पादन, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और मिट्टी के कटाव पर ध्यान देना।
  • केंद्र-बिंदु में क्षेत्रों की जलविद्युत उत्पादन क्षमता बढाने के साथ-साथ, यह रणनीति ब्रह्मपुत्र के जल के लिये प्रथम-उपयोगकर्त्ता अधिकारों को स्थापित करने में भी मदद करेगी।

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और भूटान की कुल जलविद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 58,000 मेगावाट (MW) है। इसमें भारत का (अरुणाचल प्रदेश से) सर्वाधिक (50,328MW) योगदान है।

  • जलविद्युत परियोजनाएँ विकसित करने का उद्देश्य विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान को ध्यान में रखते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करना है।
  • भारत का लक्ष्य जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलविद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह से अपने हिस्से के पानी का उपयोग करने के लिये तेज़ करना है।

पृष्ठभूमि

  • भारत पूर्वोत्तर में फास्ट-ट्रैक परियोजनाओं के द्वारा चीन से निकलने वाली नदियों के जल पर पूर्व उपयोगकर्त्ता अधिकार स्थापित करने हेतु ज़ोर दे रहा है।
  • इसके अलावा, जापान उत्तर-पूर्व के विकास के लिये भारत-जापान समन्वय मंच की स्थापना के माध्यम से क्षेत्र में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को तेज़ी से विकसित करने में भारत की सहायता कर रहा है।
  • इन उद्देश्यों को देखते हुए राजीव कुमार समिति की स्थापना अक्तूबर 2017 में की गई थी।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन हेतु पूर्व में उठाए गए कदम

  • मेघालय मंत्रिमंडल ने जल के प्रयोग और राज्य में जल स्रोतों के संरक्षण एवं जल बचाव के मुद्दे का समाधान करने हेतु जल नीति के मसौदे को मंज़ूरी दी है।
  • इस प्रकार मेघालय जल नीति को मंज़ूरी देने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
  • इस नीति में जल के प्रयोग एवं आजीविका संबंधी तथा जल निकायों के संरक्षण जैसे सभी मुद्दों को रेखांकित किया गया है। साथ ही ग्रामीण स्तर पर जल स्वच्छता ग्राम परिषद का गठन करके इस नीति के कार्यान्वयन में सामुदायिक भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है।
  • हाल ही में मेघालय सरकार ने जल संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु जल शक्ति मिशन भी लॉन्च किया है।

स्रोत: लाइवमिंट


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (24 September)

  • बिहार का पहला महिला डाकघर राजधानी पटना में खोला गया है। इस डाकघर में पोस्टमास्‍टर से लेकर पोस्‍टमैन तक महिलाएँ हैं और भविष्य में भी केवल महिलाएँ ही होंगी। बिहार लोक सेवा आयोग (Bihar Public Service Commission- BPSC) के परिसर में स्थापित यह महिला डाकघर देश का दूसरा और बिहार का पहला महिला डाकघर है। डाक विभाग इस डाकघर को शोकेस के रूप में विकसित करेगा और देश-विदेश से आने वाले मेहमानो को यह डाकघर दिखाया जाएगा। विदित हो कि केंद्र सरकार ने महिला सशक्तीकरण हेतु सभी डाक मंडलों में एक-एक महिला डाकघर खोलने का निर्णय लिया है। देशभर के 652 डाक मंडलों में एक-एक महिला डाकघर खोला जाएगा। इसके अलावा पटना में आधार सेवा केंद्र की भी शुरुआत की गई है। यह केंद्र बिहार का पहला और देश का दसवाँ आधार सेवा केंद्र है, जहाँ लोगों की सुविधा के लिये 16 आधार पंजीकरण अपडेट काउंटर स्थापित किये गए हैं। यहाँ दिव्यांगों के आधार पंजीकरण अपडेट के लिये विशेष सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इस केंद्र में प्रतिदिन 1000 लोगों के आधार पंजीकरण अपडेट करने की क्षमता है और इसका संचालन भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की देखरेख में किया जाएगा। आपको बता दें कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा प्रथम चरण में देश के लगभग 53 शहरों में सुविधा युक्त 114 आधार सेवा केंद्र स्थापित किये जाने का प्रस्ताव है।
  • अमेरिका की प्राकृतिक गैस कंपनी टेल्यूरियन और भारत की सबसे बड़ी तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas- LNG) आयातक कंपनी पेट्रोनेट LNG लि. (PLL) ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके अंतर्गत PLL और उसकी सहयोगी कंपनियाँ अमेरिका से 50 लाख टन तक LNG का आयात कर सकेंगी। प्रतिवर्ष 2.76 करोड़ मीट्रिक टन LNG तक का उत्पादन करने के लिये ड्रिफ्टवुड LNG का डिजाइन बनाया गया है और इसका परमिट लिया गया है। ड्रिफ्टवुड होल्डिंग में पेट्रोनेट निवेश करेगा जिससे पेट्रोनेट को प्रोजेक्ट के पहले चरण या दूसरे चरण से प्रतिवर्ष 50 लाख टन LNG खरीदने का अधिकार मिल जाएगा। यह सौदा करीब 2.50 अरब डॉलर का है। दोनों कंपनियाँ इस करार को 31 मार्च 2020 तक अंतिम रूप देना चाहती हैं। इससे भारत की सबसे बड़ी LNG आयातक पेट्रोनेट स्वच्छ सस्ती और विश्वसनीय प्राकृतिक गैस ड्रिफ्टवुड से भारत में उपलब्ध करा सकेगी। विदित हो कि ह्यूस्टन अमेरिका की तेल और गैस राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है। भारत और अमेरिका ने ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये पिछले साल अमेरिका-इंडिया स्ट्रेटेजिक इनर्जी पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर किये थे। अमेरिका ने वर्ष 2017 में भारत को क्रूड ऑयल बेचना शुरू किया था और अमेरिका से आपूर्ति वित्त वर्ष 2018-19 में चार गुनी से ज्यादा बढ़कर 64 लाख टन हो चुकी है। अमेरिका से आपूर्ति के पहले सत्र वित्त वर्ष 2017-18 में सिर्फ 14 लाख टन आपूर्ति हुई थी। भारत ने नवंबर 2018 से मई 2019 तक अमेरिका से प्रतिदिन 1,84,000 बैरल तेल प्रतिदिन खरीदा है।
  • हाल ही में रबी अभियान-2019 के लिये राष्‍ट्रीय कृषि सम्‍मेलन नई दिल्ली के पूसा में आयोजित हुआ, जिसमें केंद्र प्रायोजित योजनाओं को कारगर रूप से लागू करने के लिये तौर-तरीकों पर विचार किया गया। देश में तिलहनों की कमी के मद्देनज़र खाद्य तेलों की उत्‍पादन क्षमता बढ़ाने और आयात में कमी लाने के लिये एक अलग अभियान शुरू करने का सुझाव दिया गया। राज्यों से कहा गया कि ज़िला स्‍तर पर किसान संगठनों से परामर्श के बाद ही केंद्र से उर्वरकों की मांग की जानी चाहिये। इस वर्ष खरीफ मौसम में बुवाई के समय मानसून सुस्त होने के बावजूद 1054 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में फसल की बुवाई की गई। तिलहन और दलहन की 45 जैव बायोफोर्टिफिकेशन किस्में जारी की गई हैं। इनमें प्रोटीन और पोषक तत्वों आदि की काफी मात्रा मौजूद है।
  • न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन से पहले जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कार्यक्रम में 16 साल की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने दुनियाभर के नेताओं के सामने अपनी चिंताएँ और सवाल रखे। स्वीडन की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ने संयुक्त राष्ट्र की उच्चस्तरीय क्लाइमेट ऐक्शन समिट में दुनिया के बड़े नेताओं के समक्ष जब बोलना शुरू किया तो सभी नेता अनुत्तरित रह गए। ग्रेटा ने कहा, “आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना; लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा इकोसिस्टम बर्बाद हो रहा है। आप केवल पैसे और इकोनॉमिक ग्रोथ की बात करते हैं।“ ग्रेटा के आह्वान पर 20 सितंबर को दुनियाभर में कई जगहों पर वैश्विक जलवायु हड़ताल (Global Climate Strike) का आयोजन किया गया। इसके अलावा ग्रेटा पिछले एक साल से फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर के नाम से साप्ताहिक प्रदर्शन भी चला रही हैं।
  • कारगिल से कोहिमा (K2K) अल्ट्रा मैराथन ग्लोरी रन की शुरुआत द्रास स्थित कारगिल वॉर मेमोरियल में हुई। कारगिल विजय के 20वें वर्ष के अवसर पर और भारतीय वायुसेना के आदर्श वाक्य टच द स्काई विद ग्लोरी के लिये यह अल्ट्रा मैराथन अभियान चलाया जा रहा है। पूर्वोत्तर में कोहिमा और उत्तर में कारगिल चौकियाँ स्थित हैं जहाँ क्रमशः वर्ष 1944 और वर्ष 1999 में दो बड़े युद्ध हुए थे। लगभग 15 दिन पहले शुरू हुए ‘इस ग्लोरी रन’ का समापन 6 नवंबर 2019 को होगा। इस अनूठे प्रयास में 25 वायु सैनिकों की एक टीम 45 दिनों में 4500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करेगी। इस अभियान का उद्देश्य पैदल यात्री सुरक्षा और फिट इंडिया मूवमेंट को बढ़ावा देना है। इस अल्ट्रा-मैराथन के लिये कठोर चयन परीक्षणों के बाद टीम का चयन किया गया है और इन्हें वायुसेना स्टेशन लेह में प्रशिक्षण दिया गया है। इस अभियान का नेतृत्व Su-30 विमान के पायलट स्क्वाड्रन लीडर सुरेश राजदान कर रहे हैं।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow