डेली न्यूज़ (24 Aug, 2018)



2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5% की वृद्धि की उम्मीद : मूडीज़

चर्चा में क्यों?

मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस ने कहा कि 2018 और 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5% की वृद्धि होने की उम्मीद है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था तेल की उच्च कीमतों की तरह अन्य बाहरी दबावों को झेलने के लिये काफी हद तक लोचशील है।

प्रमुख बिंदु

  • 2018-19 के लिये अपने ग्लोबल मैक्रो आउटलुक में मूडीज़ ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी से अस्थायी रूप से हेडलाइन मुद्रास्फीति बढ़ेगी लेकिन मज़बूत शहरी और ग्रामीण मांग तथा बेहतर औद्योगिक गतिविधियों द्वारा समर्थित होने की वज़ह से संवृद्धि की गति बरकरार रहेगी।
  • जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में से कई के लिये संवृद्धि की संभावनाएँ मज़बूत बनी हुई हैं, लेकिन संकेत हैं कि 2018 में होने वाली संवृद्धि में अब विचलन प्रवृत्तियाँ आ सकती हैं।
  • अमेरिकी व्यापार संरक्षणवाद के बढ़ने, बाहरी तरलता की स्थिति को कठोर करने और तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण कठिन परिस्थितियों का सामना करने वाली कुछ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की कमज़ोर स्थिति के विपरीत उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिये निकट अवधि का वैश्विक दृष्टिकोण व्यापक रूप से लचीला बना हुआ है।
  • मूडीज़ ने 2018 में जी-20 देशों की संवृद्धि दर 3.3% और 2019 में 3.1% अनुमानित की है। विकसित अर्थव्यवस्थाएँ 2018 में 2.3% और 2019 में 2% के दर से बढ़ेंगी।
  • मूडीज़ के अनुमान के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था 2018 और 2019 में लगभग 7.5% की दर से बढ़ेगी।

मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस

  • मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस क्रेडिट रेटिंग, शोध और जोखिम विश्लेषण प्रदान करने वाली अग्रणी संस्था है। मूडीज़ की प्रतिबद्धता और विशेषज्ञता पारदर्शी और एकीकृत वित्तीय बाज़ारों में योगदान देती है। 
  • मूडीज़ द्वारा की जाने वाली रेटिंग और विश्लेषण 135 से अधिक संप्रभु राष्ट्रों, लगभग 5,000 गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट जारीकर्त्ताओं, 4,000 वित्तीय संस्थान जारीकर्त्ताओं, 18,000 सार्वजनिक वित्त जारीकर्त्ताओं, 11,000 संरचित वित्त लेनदेन और 1,000 आधारभूत संरचना एवं परियोजना वित्त जारीकर्त्ताओं के ऋणों के लेनदेन पर आधारित होती है। 
  • मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस, मूडीज़ कॉर्पोरेशन (एनवाईएसई: एमसीओ) की सहायक कंपनी है, जिसने 2017 में 4.2 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त किया, यह दुनिया भर में लगभग 12,300 लोगों को रोज़गार प्रदान करती है और इसकी उपस्थिति 42 देशों में है।
  • ज्ञातव्य है कि मूडीज़ वैश्विक पूंजी बाज़ार का एक अनिवार्य घटक है, जो क्रेडिट रेटिंग, शोध, टूल्स और विश्लेषण प्रदान करने के माध्यम से पारदर्शी और एकीकृत वित्तीय बाज़ारों में योगदान देता है।

ट्राइब्स इंडिया ने दी अहमदाबाद, उदयपुर और कोलकाता हवाई अड्डों पर आउटलेट खोलने की मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण ने ट्राइब्स इंडिया के आउटलेट खोलने के लिये अहमदाबाद, उदयपुर और कोलकाता हवाई अड्डे पर जगह आवंटित की है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके अलावा देहरादून, वाराणसी, पुणे, गोवा, कोयंबटूर, लखनऊ, अमृतसर और गंगटोक में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर ट्राइब्स इंडिया के आउटलेट की स्थापना के लिये जगह की पेशकश की गई है।
  • इन हवाई अड्डों पर जनजातियों के लिये ट्राइब्स इंडिया की उपस्थिति न केवल जनजातीय उत्पादों का विपणन करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करेगा बल्कि लक्षित ग्राहकों के बीच एक ब्रांड के रूप में "ट्राइब्स इंडिया" को पहचान दिलाने में भी सहायक होगा।
  • गौरतलब है कि जुलाई 2017 की तुलना में ट्राइफेड ने अब तक 89 आउटलेट्स का नेटवर्क स्थापित किया है जिसमें उसके स्वयं के 42 बिक्री आउटलेट्स, 33 माल बिक्री आउटलेट्स और देश भर में स्थित 14 फ़्रैंचाइजी आउटलेट्स शामिल हैं।

ट्राइफेड (TRIFED)

  • बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत राष्ट्रीय स्तर के शीर्षस्थ निकाय के रूप में वर्ष 1987 में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास ‘ट्राइफेड’ (Tribal Co-Operative Marketing Development Federation of India Ltd. - TRIFED) की स्थापना की गई।
  • बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2007 के अधिनियमित होने के बाद ट्राइफेड को इस अधिनियम में पंजीकृत कर इसे राष्ट्रीय सहकारी समिति के रूप में अधिनियम की दूसरी अनुसूची में अधिसूचित किया गया।
  • यह संगठन विपणन विकास और उनके कौशल तथा उत्पादों के निरंतर उन्नयन के माध्यम से देश के जनजातीय समुदायों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
  • इसके मुख्य साधनों में क्षमता निर्माण, आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण प्रदान करना, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में ब्रांड निर्माण और सतत आधार पर विपणन के अवसरों के लिये विपणन संभावनाओं की खोज करना शामिल है।
  • अतः कहा जा सकता है कि ट्राइफेड का एकमात्र उद्देश्य जनजातीय समाज के बहु-आयामी परिवर्तन और उनकी मौजूदा छवि की धारणा में बदलाव लाना है।

जनजातीय कारीगर मेला (टीएएम) क्या है?

  • ट्राइफेड द्वारा टीएएम का आयोजन जनजातीय उत्पादकों के माध्यम से तैयार किये गए उत्पादों को विस्तार देने के लिये राज्यों/ ज़िलों/ गाँवों में सोर्सिंग स्तर पर नए कारीगरों की पहचान के लिये किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि जुलाई 2018 में उदयपुर (राजस्थान) और क्योझर(ओडिशा) में 2 टीएएम आयोजित किये गए थे, जहाँ  120 कारीगरों ने भाग लिया और अपने शिल्प का प्रदर्शन किया था।

2020 तक शुरू हो जाएंगी 5जी सेवाएँ : 5जी स्पेक्ट्रम रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

टेलीकॉम विभाग द्वारा गठित परिचालन समिति ने देश में 2020  से 5जी स्पेक्ट्रम सेवा शुरू करने की रूपरेखा पर रिपोर्ट दूरसंचार मंत्रालय को सौंप दी है। समिति ने ‘मेकिंग इंडिया 5जी रेडी’ रिपोर्ट में उम्मीद जताई है कि 5जी सेवा शुरू होने से देश की अर्थव्यवस्था को एक लाख करोड़ डॉलर का फायदा हो सकता है। ए.जे. पॉलराज की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय स्टीयरिंग कमेटी ने 5जी सेवाओं के लिये अतिरिक्त स्पेक्ट्रम जारी करने की सिफारिश की।

समिति की प्रमुख सिफारिशें 

  • समिति ने डिजिटल ढाँचा तैयार करने के लिये खासतौर पर सार्वजनिक वायरलेस सेवाओं का विस्तार और अनुकूल स्पेक्ट्रम नीति बनाने को कहा है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि 5जी सेवाओं का 2035 तक 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का संचयी आर्थिक प्रभाव होगा।
  • हालाँकि अमेरिका में इस वर्ष के अंत तक या 2019 की पहली तिमाही तक 5जी सेवाओं के शुरू होने की संभावना है वहीं, भारत में यह सेवा 2020 तक शुरू होने की उम्मीद है।
  • विश्व स्तर पर 5जी प्रौद्योगिकी की सभी सेवाओं का 2024 तक सभी रेंज में विकसित होने की उम्मीद है| रिपोर्ट में कहा गया है कि 5जी अवसर का लाभ उठाने के लिये जल्द-से-जल्द कार्य किये जाने की आवश्यकता है जिससे  भारत लाभांश में तेज़ी ला सकता है और संभावित रूप से एक नवप्रवर्तक भी बन सकता है।
  • दूरसंचार सचिव अरुणा सुंदराजन को समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में व्यवसाय, सुरक्षा और संरक्षण के लिये विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफारिश की गई है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि 5जी सेवा शुरू होने से देश में विभिन्न प्रकार की औद्योगिक एवं शोध-विकास की क्षमता बढ़ेगी।
  • 5जी स्पेक्ट्रम को लागू करने के लिये प्रस्तावित संगठनात्मक रूपरेखा को लेकर रिपोर्ट में एक ओवरसाइट समिति गठित करने की सिफारिश की गई है। इसमें सरकार, औद्योगिक संस्थानों, बुद्धिजीवियों और शोध व विकास कार्य करने वाले प्रतिनिधियों को शामिल करने की बात कही गई है।
  • वित्तीय पक्ष पर  समिति ने पहले वर्ष के लिये 300 करोड़ रुपए, दूसरे वर्ष के लिये 400 करोड़, तीसरे वर्ष के लिये 500 करोड़ रुपए और चौथे वर्ष के लिये 400 करोड़ रुपए का एक व्यापक प्लानिंग का सुझाव दिया है।
  • 5जी कार्यक्रमों को सरकार द्वारा वित्तपोषित किये जाने की आवश्यकता होगी। वर्तमान में  केवल राष्ट्रीय आँकड़े उपलब्ध हैं। समिति ने कहा है कि वास्तविक रूप में वित्तपोषण की आवश्यकताओं के बारे में तभी अंतिम रूप से फैसला किया जा सकता है जब एक बार अच्छी तरह से परिभाषित परियोजना प्रस्तावों को बजटीय औचित्य के साथ टेलीकम्युनिकेशन विभाग को प्रस्तुत किया जाता है।
  • गौरतलब है कि सितंबर 2017 में सरकार द्वारा 5जी सेवा शुरू करने की दिशा में रूपरेखा तैयार करने के लिये इस उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था, इसके बाद एक संचालन समिति भी गठित की गई थी।
  • समिति ने नियामकीय नीति पर सुझाव भी दिये हैं जैसे- शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा तथा प्रयोगशालाओं का उपयोग, अंतर्राष्ट्रीय मानकों में भागीदारी, अनुप्रयोग के मानकों का विकास तथा प्रमुख 5जी परीक्षण।

नियमन संबंधी दिशा-निर्देश 

  • मंत्रालय को सौंपी गई उच्च स्तरीय रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार 5जी को जल्द लागू करने के लिये अक्तूबर 2019  तक नियमन संबंधी दिशा-निर्देश जारी कर सकती है। 
  • इसके बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करने के लिये पूर्णकालिक कार्यक्रम समन्वयक नियुक्त करने को कहा गया है। साथ ही, देश भर में विभिन्न संस्थानों से संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी समन्वयकों को सौंपने को भी कहा गया है।
  • इसके अलावा, सी-डॉट के साथ मिलकर टास्क फोर्स द्वारा जारी की जाने वाली सिफारिशों को लागू कराने का ज़िम्मा भी उन्हें सौंपने के लिये कहा गया है। 
  • पूरे देश में गुणवत्तापूर्ण 5जी सेवाएँ लागू करने के लिये सरकार से एक विशेषज्ञ समिति गठित करने को कहा गया है जो इस संबंध में स्पष्ट सिफारिशें दे। साथ ही, ट्रायल के लिये ओवरसाइट समितियों का गठन करने के लिये कहा गया है  जो 5जी कार्यक्रम कार्यालय को रिपोर्ट करेगा। 

अतिरिक्त मुफ्त स्पेक्ट्रम

  • स्पेक्ट्रम नीति के तहत समिति ने सुझाव दिया है कि डिजिटल वायरलेस सेवाओं के लिये मूल उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढाँचे को समझने के लिये सार्वजनिक वायरलेस सेवाओं हेतु भारत के स्पेक्ट्रम आवंटन को विभिन्न सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा, प्रति व्यक्ति जीडीपी के सापेक्ष स्पेक्ट्रम की लागत अधिक है और यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत 5जी युग में एक और अधिक अनुकूल स्पेक्ट्रम नीति बनाए।
  • समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार 31 दिसंबर तक अपनी नीति की घोषणा करेगी  और आवश्यक अधिसूचनाएँ जारी करेगी।
  • समिति ने स्पेक्ट्रम प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर सलाह देने के लिये पाँच साल की अवधि के साथ एक स्थायी समिति की स्थापना की भी सिफारिश की है।
  • समिति ने कहा है कि 5जी सेवा देश में चौथी औद्योगिक क्रांति लाने में उत्प्रेरक का काम करेगी और भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने में मददगार साबित होगी।

नीति आयोग ने लॉन्च की हिमालयन क्षेत्र में सतत विकास हेतु पाँच थीमेटिक रिपोर्टें

चर्चा में क्यों?

हिमालय की विशिष्टता और निरंतर विकास की चुनौतियों को समझते हुए नीति आयोग ने जून, 2017 में पाँच कार्य दलों का गठन किया, ताकि विषय संबंधी पाँच थीमेटिक क्षेत्रों में कार्य करने के लिये एक रोडमैप तैयार किया जा सके।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • इन पाँच थीमेटिक विषयों में - जल सुरक्षा के लिये नवाचार और हिमालय क्षेत्र में झरनों को फिर से चालू करना, भारतीय हिमालय क्षेत्र में सतत पर्यटन, कृषि की ओर बढ़ने के लिये परिवर्तनीय दृष्टिकोण, हिमालय क्षेत्र में कौशल और उद्यमिता परिदृश्य को मज़बूत बनाना तथा सुविज्ञ फैसले लेने के लिये  डेटा/जानकारी उपलब्ध कराना शामिल हैं।
  • हालाँकि, विषय संबंधी इन क्षेत्रों का हिमालय के लिये काफी महत्त्व है।
  • इस पर्वत की विशिष्टता को बनाए रखने के लिये अनुकूल भवन निर्माण जैसे विशेष प्रयासों की आवश्यकता है जिससे वहाँ सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके।
  • पाँच कार्य दलों की रिपोर्टों में इसके महत्त्व, चुनौतियों, वर्तमान कार्यों और भविष्य के रोडमैप के बारे में चर्चा की गई।
  • रिपोर्ट में विषय संबंधी सभी पाँच क्षेत्रों की चुनौतियाँ बताई गई हैं।
  • गौरतलब है कि जल सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण करीब 30 प्रतिशत झरने सूख रहे हैं और 50 प्रतिशत में बहाव कम हुआ है।
  • हिमालय क्षेत्र में हर वर्ष पर्यटन 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और उसके कारण ठोस कचरा, पानी, यातायात, जैव-संस्कृति विविधता के नुकसान के कारण बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं।
  • भारत के हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में 2025 तक पर्यटकों की संख्या दोगुनी होने का अनुमान लगाया गया है, कचरा प्रबंधन और जल संकट जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों के साथ-साथ पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों से संबंधित अन्य विषयों के समाधान के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में हज़ारों परिवार अभी भी स्थानांतरित/झूम कृषि  की प्रक्रिया को जारी रखे हुए है, अतः पर्यावरण, खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा को देखते हुए इसका समाधान किया जाना ज़रूरी है।
  • पहाड़ों में अकुशल कार्य बल भी एक चुनौती बनी हुई है, युवकों के पलायन की समस्या को दूर करने के लिये उच्च प्राथमिकता देनी की आवश्यकता है।
  • साथ ही आँकड़ों की उपलब्धता, प्रामाणिकता, संगतता, गुणवत्ता, वैधता तथा हिमालयी राज्यों के लिये यूजर्स चार्जेज से जुड़ी चुनौतियों से निपटना भी ज़रूरी है ताकि शासन के विभिन्न स्तरों पर सुविज्ञ निर्णय लिये जा सकें।
  • रिपोर्टों में प्रमुख संदेशों को शामिल किया गया है जिसमें झरनों की मैपिंग और उन्हें दोबारा शुरू करना, हिमालयी राज्यों में विभिन्न चरणों में 8 चरणीय प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
  • इसके साथ ही सभी प्रमुख पर्यटन स्थलों में सामान ले जाने की सीमा निर्धारित करना; पर्यटन क्षेत्र के मानकों को लागू करना और उनकी निगरानी तथा उन राज्यों के लिये कार्य निष्पादन आधारित प्रोत्साहन जैसे मानकों का पालन करना भी प्रमुख है।
  • हिमालयी क्षेत्रों में प्रकृति का आकलन और कृषि क्षेत्र में बदलाव की सीमा, बेहतर नीतिगत सामंजस्य, एक निर्धारित समय तक सुरक्षा और संबंधित कार्यक्रमों/योजनाओं तक बेहतर पहुँच आदि प्रमुख सिफारिशें की गई हैं।
  • उल्लेखनीय है कि कौशल और उद्यमिता को मज़बूती प्रदान करने के लिये चिन्हित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों, लाभ वाले क्षेत्रों, प्रशिक्षकों के लिये निवेश, उद्योग साझेदारी में प्रशिक्षण केंद्र पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 24 अगस्त, 2018

छठा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन

23 अगस्त, 2018 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नई दिल्ली में छठे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का आयोजन पर्यटन मंत्रालय ने महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारों के सहयोग से किया है।

  • पर्यटन मंत्रालय द्वाराआयोजित छठे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन की थीम - “बुद्ध मार्ग – सजीव विरासत” है। 
  • सम्मेलन का उद्देश्य भारत में बौद्ध विरासत को प्रदर्शित करना तथा देश के बौद्ध स्थलों में पर्यटन को बढ़ावा देना है। इसके जरिये बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले समुदायों और देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध भी विकसित होते हैं।
  • इस सम्मेलन में धार्मिक/आध्यात्मिक,अकादमिक और राजनयिक व व्यापारिक आयाम शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में इन 29 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं - ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राज़ील, कंबोडिया, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, हॉन्गकॉन्ग, इंडोनेशिया, जापान, लाओ पीडीआर, मलेशिया, मंगोलिया, म्याँमार, नेपाल, नॉर्वे, रूस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, स्लोवाक गणराज्य, स्पेन, श्रीलंका, ताइवान, थाईलैंड, इंग्लैंड, अमेरिका और वियतनाम।

पृष्ठभूमि

  • पर्यटन मंत्रालय प्रत्येक दो वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित करता है। पिछला सम्मेलन (अक्टूबर, 2016) सारनाथ/वाराणसी और बोधगया में आयोजित किया गया था। 
  • पर्यटन मंत्रालय ने उन देशों को भी आमंत्रित किया है, जहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इसमें आसियान देश और जापान शामिल है। आसियान, आईबीसी-2016 का विशिष्ट अतिथि था, जबकि जापान आईबीसी – 2018 का ‘सहयोगी देश’ है।

खो-खो को एशियाई ओलंपिक परिषद की मान्यता

हाल ही में एशियाई ओलंपिक परिषद (ओसीए) ने भारत के पारंपरिक खेल खो-खो को मान्यता प्रदान की है. इस निर्णय के प्रभाव में आने के बाद खो-खो को एशियन इंडोर गेम्स में प्रदर्शनी खेल के तौर पर शामिल किया जाएगा|

एशियाई ओलंपिक परिषद

  • यह एशिया में खेलों की सर्वोच्च संस्था है और एशिया के 45 देशों की राष्ट्रीय ओलंपिक समितियाँ इसकी सदस्य हैं|
  • इसका मुख्यालय कुवैत में है|
  • इसके वर्तमान अध्यक्ष शेख फहद अल-सबा हैं|

खो-खो खेल

  • खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका शुरुआत प्रागैतिहासिक भारत में हुई मानी जाती है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
  • सन् 1914 में डेक्कन जिमखाना पूना द्वारा इस खेल में प्रारंभिक नियमों का प्रतिपादन किया गया था। ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र से हुई|

विश्व बैंक ने विश्व का पहला ब्लॉकचेन बॉण्ड लॉन्च किया

विश्व बैंक ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की दुनिया में सबसे क्रांतिकारी कदम उठाते हुए पहली बार ब्लॉकचेन जारी किये हैं। पब्लिक के लिये जारी होने वाला यह अपनी तरह का पहला बॉण्ड है, जिसका पूरा संचालन ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होगा। 

  • योजना का प्रबंधन करने वाले कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया के मुताबिक इन बॉण्ड को दो वर्षों के लिये जारी किया जाएगा।
  • विश्व बैंक ने इस डिजिटल बॉण्ड को ‘बॉन्डी’ नाम दिया है।

 क्रिप्टोकरेंसी (बिटकॉइन) की तरह होगी ब्लॉकचेन बॉण्ड तकनीक

  • ब्लॉकचेन बॉण्ड की तकनीक काफी हद तक क्रिप्टोकरेंसी (बिटकॉइन) से मिलती जुलती है । 
  • लेकिन ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक की मदद से जारी होने वाला ब्लॉकचेन बॉण्ड बाकायदा असली मुद्रा ऑस्ट्रेलियन डॉलर का होगा।
  • पूरी तरह विकसित वित्तीय ढ़ाँचे वाले ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार में इस बॉण्ड का परीक्षण सबसे मुफीद माना जा रहा है। 
  • यहाँ विदेशी निवेशक पैसे लगाने में सहज भी महसूस करते हैं और ऑस्ट्रेलियन डॉलर में खरीद-फरोख्त पर भरोसा भी रखते हैं, जो दुनिया की सबसे ज़्यादा व्यापार की जाने वाली करेंसी में से एक है।
  • वैसे तो इस बॉण्ड को ब्लॉकचेन तकनीक पर जारी किया गया है, लेकिन इसके लिये भुगतान अभी चल रहे स्विफ्ट सिस्टम से भी किया जा सकता है।

यूरोप का नया वायु मानचित्रण उपग्रह एओलस लॉन्च

यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) एओलस (aeolus) उपग्रह दुनिया भर में वायु की निगरानी के लिये तीन साल के मिशन हेतु 22 अगस्त को अंतरिक्ष में भेजा गया।

  • एओलस दुनिया का पहला पवन मानचित्रण उपग्रह है और फ्रेंच गुयाना के कोरू में गुयाना स्पेस सेंटर से वेगा रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया।
  • कक्षा में एओलस शक्तिशाली लिडार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए समताप मंडल तक पृथ्वी की सतह से हवाओं की माप करेगा, जो वैश्विक स्तर पर होगा।
  • एओलस द्वारा एकत्रित आँकड़ों से मौसम पूर्वानुमान में सुधार और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के लिये मूल्यवान जानकारी प्रदान करने में मदद मिलेगी।
  • ESA ने 1999 में एओलस मिशन को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन उपग्रह के उपकरणों के विकास में अपेक्षाकृत अधिक समय लगा क्योंकि एक शक्तिशाली पराबैंगनी लेज़र बनाने की जटिलता जो वैक्यूम में काम कर सकती है, मुख्य समस्या बनी हुई थी।

अत्यधिक वर्षा के कारण जलाशयों का संचालन करना गंभीर चुनौती

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर किये गए अध्ययन में बताया गया है कि औसत वार्षिक वर्षा में हुई वृद्धि के कारण निकट भविष्य (2020-2030) में तथा सदी के मध्य और अंत (2070-2099) में भारत के जलविद्युत उत्पादन करने वाले शीर्ष सात बड़े जलाशयों की जलग्रहण क्षमता में कमी की के चलते भविष्य में भारत को गंभीर आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि यह अध्ययन आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्र्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया था।
  • इस अध्ययन के मुताबिक, यदि कार्बन उत्सर्जन कम हो तो सदी के अंत तक औसत वार्षिक वर्षा में 6-11% की वृद्धि और औसत वार्षिक तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है।
  • वहीं उच्च कार्बन उत्सर्जन के मामले में सदी के अंत तक औसत वार्षिक वर्षा में 13-18% तक वृद्धि हो सकती है, जबकि वार्षिक तापमान 6.25 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है।

प्रमुख सात जलाशय

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये भारत में जलविद्युत उत्पादन करने वाले सात बड़े जलाशयों  का अध्ययन किया गया था।
  • इन सात जलाशयों  में नाथपा झाकरी, भाखड़ा-नांगल, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर, हीराकुंड, सरदार सरोवर और इंदिरा सागर शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि नाथपा झाकरी, भाखड़ा-नांगल सतलुज नदी पर स्थित जलाशय/बांध हैं और बर्फ का पिघला पानी इनका प्रमुख स्रोत है, जो भविष्य में जलवायु के कारण बदल सकता है।
  • जबकि अन्य पाँच जलाशय मुख्य रूप से भारत के मध्य-दक्षिण मानसून-वर्चस्व वाले जलवायु क्षेत्र में स्थित हैं।
  • अध्ययन में बताया गया है कि यदि इसी प्रकार से औसत वार्षिक वर्षा में वृद्धि दर्ज की गई तो इन जलाशयों का कार्यान्वयन एक गंभीर चुनौती का कारण बन सकती है।
  • दरअसल,जलाशय में अतिरिक्त जल प्रवाह की दशा में इनके जल को छोड़ा जाता है और यह अतिरिक्त्त जल आस-पास के इलाकों में पहुँचकर बाढ़ का कारण बनता है।
  • ऐसी दशा में जलविद्युत उत्पादन से ध्यान हटाकर बाढ़ या आपदा शमन पर केंद्रित किया जाएगा।
  • हाल ही में केरल में आई भयावह बाढ़ को भी उपर्युक्त कारणों का ही परिणाम माना जा रहा है।