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डेली न्यूज़

  • 24 Mar, 2020
  • 57 min read
भारतीय राजव्यवस्था

वित्त विधेयक 2020

प्रीलिम्स के लिये

वित्त विधेयक, धन विधेयक, अनिवासी भारतीय, उदारीकृत प्रेषण योजना

मेन्स के लिये:

सार्वजानिक वित्त से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

कोरोनावायरस (COVID-19) के खतरे के बीच लोकसभा ने सर्वसम्मति से वित्त विधेयक, 2020 (Finance Bill, 2020) को पारित कर दिया। 

वित्त विधेयक 2020 से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • वित्त विधेयक 2020 के अनुसार, भारत में अनिवासी भारतीयों (Non-Resident Indians-NRIs) पर 15 लाख रूपए तक की आय सीमा तक टैक्स नहीं लगाया जाएगा। ध्यातव्य है कि यह सीमा तब लागू होगी जब वह वह व्यक्ति 120 दिनों या उससे अधिक समय तक भारत में रहकर एक डीम्ड रेजिडेंट (Deemed Resident) के रूप में अर्हता प्राप्त कर लेता है। 
    • इस प्रकार डीम्ड रेजिडेंट पर कर चुकाने की ज़िम्मेदारी केवल भारत में नियंत्रित व्यवसाय या भारत में स्थापित पेशे के संबंध में होगी और वह भी केवल तब जब ऐसी आय 15 लाख रुपए से अधिक हो। 
    • ध्यातव्य है कि 1 फरवरी, 2020 को प्रस्तुत किये गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आवासीय स्थिति (Residential Status) के आधार पर व्यक्तियों की कर-क्षमता का निर्धारण करने के लिये मापदंड और अवधि को संशोधित किया था। संशोधित नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति को तब भारत का साधारण निवासी (Resident) माना जाएगा, जब वह पिछले वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 120 दिनों के लिये भारत में रहा हो, यह अवधि पूर्व में 182 दिन थी। 
  • वित्त विधेयक 2020 के अनुसार, यदि वित्तीय संस्थानों से शिक्षा के लिये धन उधार लिया जाता है और उसे उदारीकृत प्रेषण योजना (Liberalised Remittance Scheme-LRS) के माध्यम से विदेश में हस्तांतरित किया जाता है तो धन के स्रोत पर लगने वाले कर संग्रह (Tax Collected at Source-TCS) की दर को 5 प्रतिशत से घटाकर 0.5 प्रतिशत कर दिया गया है।

उदारीकृत प्रेषण योजना 

(Liberalised Remittance Scheme-LRS) 

  • उदारीकृत प्रेषण योजना भारत के निवासियों को एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी दूसरे देश में निवेश तथा व्यय करने हेतु एक निश्चित राशि को प्रेषित करने की अनुमति प्रदान करती है। 
  • यह योजना RBI के तत्वावधान में फरवरी, 2004 में 25,000 डॉलर की सीमा के साथ प्रारंभ की गई थी। 
  • यदि किस व्यक्ति ने बीते तीन वर्षों में आयकर रिटर्न (Income Tax Return) दाखिल नहीं किया है, तो उसके द्वारा 20 लाख से 1 करोड़ रुपए की नकद निकासी पर 2 प्रतिशत का टीडीएस (TDS) लागू किया जाएगा। इसके अलावा यदि वह व्यक्ति 1 करोड़ रूपए से अधिक की नकद निकासी करता है तो वह 5 प्रतिशत टीडीएस (TDS) हेतु उत्तरदायी होगा।
    • TDS की संकल्पना के अनुसार एक व्यक्ति, जो किसी अन्य व्यक्ति को निर्दिष्ट प्रकार का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं, को आय के स्रोत पर कर कटौती करनी होगी तथा इसे केंद्र सरकार के खाते में प्रेषित करना होगा।
  • वित्त विधेयक 2020 के तहत सरकार ने ग्लोबल पेंशन फंड (Global Pension Fund) को भी कर छूट की सीमा में शामिल कर दिया है।
    • इससे पूर्व सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में संप्रभु धन निधि द्वारा बुनियादी ढाँचे में किये गए निवेश पर पूंजीगत लाभ, संयोजन और ब्याज पर 100 प्रतिशत कर छूट की घोषणा की थी।
  • लाभांश आय पर 15 प्रतिशत का अधिभार लगाया गया है।
  • सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Special Additional Excise Duty) को क्रमशः 18 रुपए और 12 रुपए प्रति लीटर कर दिया है। गौरतलब है कि इससे पूर्व यह पेट्रोल के लिये 10 रुपए प्रति लीटर और डीजल के लिये 4 रुपए प्रति लीटर था।

वित्त विधेयक (Finance Bill)

  • केंद्रीय बजट की प्रस्तुति के पश्चात् लोकसभा में प्रत्येक वर्ष वित्तीय विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, जो कि भारत सरकार के वित्तीय प्रस्तावों पर प्रभाव डालता है।
  • वित्त विधेयक में उन सभी विधेयकों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्यक्ष रूप से वित्त से संबंधित मामलों से संबंधित होते हैं, जैसे- सरकार के व्यय अथवा सरकार के राजस्व से संबंधित व्यय।
  • किसी भी कर को प्रत्यारोपित करने अथवा उसमें परिवर्तन करने जैसे विषय वित्त विधेयक के सामान्य विषय हैं। वित्त विधेयक मुख्यतः 3 प्रकार होते हैं:
    • धन विधेयक - अनुच्छेद 110
    • वित्त विधेयक (I) - अनुच्छेद 117 (1)
    • वित्त विधेयक (II) - अनुच्छेद 117 (2)
  • सामान्यतः यह कहा जाता है कि प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है, किंतु प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

NRC और केंद्र का मत

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर

मेन्स के लिये:

नागरिकता से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा (Affidavit) दायर करते हुए कहा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) को तैयार करना नागरिकों और गैर-नागरिकों की पहचान हेतु किसी भी संप्रभु राष्ट्र के लिये एक अनिवार्य अभ्यास है।

प्रमुख बिंदु

  • गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करना और उसके पश्चात् उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना केंद्र सरकार को सौंपी गई ज़िम्मेदारी है।
  • ध्यातव्य है कि देश के कई राज्यों ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) का विरोध करते हुए इनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये हैं।
    • उल्लेखनीय है कि नागरिकता नियम, 2003 (Citizenship Rules, 2003) के अनुसार, NPR, NRC की दिशा में पहला कदम है।
  • हालाँकि सरकार द्वारा अभी तक संशोधित NPR फॉर्म सार्वजनिक नहीं किया गया है, किंतु इसमें ‘माता-पिता के जन्म की तारीख और निवास स्थान’ जैसे विवादास्पद प्रश्न शामिल होने की संभावना है।
  • गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में तत्कालीन पुनर्वास मंत्रालय द्वारा वर्ष 1964-65 में पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से बंगाल, असम और त्रिपुरा में आने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है, रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से लोगों के पलायन का सिलसिला जनवरी 1964 में शुरू हुआ और मार्च, अप्रैल तथा मई के महीनों में यह अपने चरम पर पहुँच गया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी पाकिस्तान से 31 जनवरी, 1965 तक पलायन करने वालों की संख्या 8,94,137 थी। इन व्यक्तियों में से तकरीबन 2,61,899 लोग प्रवास प्रमाण पत्र के साथ भारत आए, जबकि 1,76,602 लोग पाकिस्तानी पासपोर्ट के साथ भारत आए। वहीं लगभग 4,55,636 व्यक्ति बिना किसी यात्रा दस्तावेज़ के साथ भारत आए।
    • हालाँकि कई लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से आने वाले सभी लोग पहले से ही भारत के नागरिक थे और वे चुनावों में मतदान करते थे।
  • गृह मंत्रालय ने वर्ष 1952 और वर्ष 2012 के मध्य गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गए 18 आदेशों का हवाला दिया, जिसमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ‘हिंदुओं और सिखों’ के लिये अधिमान्य उपचार की वकालत की गई थी, जिन्होंने वैध वीजा के साथ या बिना भारत में प्रवेश किया था।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर 

(National Register of Citizens-NRC)

  • NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
  • भारत में अब तक NRC केवल असम में लागू की गई है, जिसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया गया है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। 
  • NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।
  • वर्ष 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए, किंतु उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार किया गया था।
    • दरअसल वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 वर्ष के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे और NRC तैयार करने का निर्णय लिया गया।

निष्कर्ष

सरकार के प्रतिनिधि कई अवसरों पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार ने NRC पर अभी तक कोई स्पष्ट करने निर्णय नहीं लिया है, किंतु इसके बावजूद भी गृह मंत्रालय द्वारा NRC को लेकर हलफनामा दायर किया गया है, जो कि आम लोगों के समक्ष भ्रम उत्पन्न करता है। आवश्यक है कि सरकार इस संदर्भ में स्थिति को स्पष्ट करे और NRC को लेकर उत्पन्न हो रहे तमाम विवादों का एक संतुलित उपाय खोजने का प्रयास करे।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

औषध निर्माण को बढ़ावा देने के लिये स्वीकृत योजनाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

सक्रिय दवा सामग्री, बल्क ड्रग्स पार्क, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

मेन्स के लिये:

औषध निर्माण को बढ़ावा देने से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सामग्री/ड्रग्स इंटरमीडिएट्स (Drug Intermediates) और सक्रिय दवा सामग्री के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की मंज़ूरी दी।

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने निम्न योजनाओं की मंजूरी दी हैः

  • बल्क ड्रग्स पार्कों (Bulk Drugs Parks) को बढ़ावा देने हेतु अगले 5 वर्षों के दौरान 3,000 करोड़ रुपए से 3 बल्क ड्रग्स पार्कों में साझा अवसंरचना को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु योजनाएँ।
  • अगले 8 वर्षों के दौरान के 6,940 करोड़ रुपए की धनराशि से देश में महत्वपूर्ण ड्रग्स मध्यस्थ और APIs के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु उत्पादन आधारित छूट (Production Linked Incentive-PLI) योजना को प्रोत्साहित करना।

सक्रिय दवा सामग्री

(Active Pharmaceutical Ingredients-API):

  • किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।

बल्क ड्रग्स पार्क को बढ़ावा देना:

  • विवरण:
    • राज्यों के सहयोग से भारत में 3 बल्क ड्रग्स पार्कों को विकसित करने का निर्णय लिया गया है।
    • प्रत्येक बल्क ड्रग्स पार्क के लिये भारत सरकार राज्यों को अधिकतम 1,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
    • पार्कों में आम सुविधाएँ होंगी जैसेः- घोलक संयंत्र, आसवन संयंत्र, बिजली और भाप संयंत्र, साझा उत्सर्जन शोधन संयंत्र इत्यादि।
    • इस योजना के लिये अगले 5 वर्षों के दौरान 3,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए हैं।
  • प्रभाव:
    • इस योजना से देश में बल्क ड्रग्स के उत्पादन लागत एवं अन्य देशों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है।
  • कार्यान्वयन:
    • राज्य कार्यान्वयन एजेंसी (State Implementing Agencies-SIA) इस योजना को लागू करेगी जिसका गठन संबंधित राज्य सरकार करेगी।
    • 3 मेगा बल्क ड्रग्स पार्कों की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

(Production Linked Incentive-PLI):

  • विवरण:
    • चिह्नित 53 महत्त्वपूर्ण बल्क ड्रग्स के योग्य निर्माताओं को अगले 6 वर्षों के दौरान सहायता दी जाएगी जो उत्पादन वृद्धि पर आधारित होगी और इसके लिये वर्ष 2019 -20 को आधार वर्ष माना जाएगा।
    • 53 चिह्नित बल्क ड्रग्स में से 26 किण्वन आधारित बल्क ड्रग्स हैं और 27 रसायन संश्लेषण पर आधारित बल्क ड्रग्स हैं।
    • किण्वन आधारित बल्क ड्रग्स के लिये छूट की दर 20% (विक्रय में वृद्धि के आधार पर) एवं रसायन संश्लेषण पर आधारित बल्क ड्रग्स के लिये छूट की दर 10% होगी।
    • अगले 8 वर्षों के लिये 6,940 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी गई है।
  • प्रभाव:
    • इस योजना का उद्देश्य महत्वपूर्ण ड्रग्स इंटरमीडिएट्स और APIs में बड़े निवेश को आकर्षित करने के माध्यम से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। इससे ड्रग्स इंटरमीडिएट्स और APIs उत्पादन में अन्य देशों पर भारत की निर्भरता में कमी आएगी।
    • इससे अगले 8 वर्षों के दौरान 46,400 करोड़ रुपए मूल्य की विक्रय वृद्धि तथा अतिरिक्त रोज़गार सृजन की आशा है।
  • कार्यान्वयन:
    • इस योजना को परियोजना प्रबंधन एजेंसी (Project Management Agency-PMA) के माध्यम से लागू किया जाएगा एवं फार्मास्यूटिकल विभाग (Department of Pharmaceuticals) इस एजेंसी को नामांकित करेगा।
    • यह योजना केवल 53 चिह्नित महत्वपूर्ण बल्क ड्रग्स इंटरमीडिएट्स और APIs के उत्पादन पर ही मान्य होगी।

लाभ:

  • तीन बल्क ड्रग्स पार्क की इस योजना के अंतर्गत प्राप्त वित्तीय सहायता से साझा अवसंरचना सुविधाओं का निर्माण किया जाएगा।
  • इससे देश में उत्पादन लागत में कमी आएगी और बल्क ड्रग्स के लिये अन्य देशों पर निर्भरता भी कम होगी।

पृष्ठभूमि:

  • मात्रा के आधार पर भारतीय दवा उद्योग का विश्व में तीसरा स्थान है। 
  • हालाँकि इस उपलब्धि के बावज़ूद भारत कच्ची सामग्री (जैसे दवाओं के उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले बल्क ड्रग्स) के लिये आयात पर निर्भर है।
  • कुछ विशेष बल्क ड्रग्स के मामले में आयात पर निर्भरता 80-100% तक है।
  • नागरिकों को किफायती स्वास्थ्य देखभाल सुविधा सुनिश्चित करने के लिये दवाओं की निरंतर आपूर्ति आवश्यक है। 
  • आपूर्ति में अवरोध से दवा सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जो देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है।
  •  बल्क ड्रग्स के निर्माण में आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है।

स्रोत: पीआईबी


कृषि

पाम ऑयल: आत्मनिर्भरता के लिये सतत् दृष्टिकोण

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में तेल का उत्पादन एवं आयात

मेन्स के लिये:

तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता, सतत् कृषि

चर्चा में क्यों?

भारत में बढ़ती तेल की मांग तथा पाम ऑयल की भारत में पारिस्थितिक अनुकूलता के कारण पाम ऑयल के उत्पादन बढ़ाने पर बल दिया गया है, ताकि भारत में बढ़ती तेल मांग समस्या का स्थायी समाधान निकाल सके। 

मुख्य बिंदु:

  • भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं आयातक है।
  • भारत में पाम ऑयल की खपत वर्ष 2001 के 3 मिलियन टन से बढ़कर (300 प्रतिशत से अधिक) वर्तमान में लगभग 10 मिलियन टन हो गई है।

पाम ऑयल उत्पादन की आवश्यकता:

  • वर्तमान समय में भारत को अपनी आयात पर निर्भरता में कमी लाने तथा घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है क्योंकि इससे: 
    • स्थानीय पाम ऑयल की पैदावार को बढ़ाने से आयात में कमी आएगी तथा विदेशी मुद्रा की बचत होगी। 
    • किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने में मदद मिलेगी। 
    • देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
    • सस्ता खाद्य तेल जो देश की बढ़ती जनसंख्या की मांग की आवश्यकता पूर्ति के अनुकूल है। 

भारत में पाम ऑयल उत्पादन:

  • जब प्रमुख पाम उत्पादक देशों को कठोर पर्यावरणीय तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में भारत पाम ऑयल की कृषि के अंतर्गत अधिक-से-अधिक भूमि लाने की दिशा में स्थायी प्रगति कर रहा है। 
  • वर्तमान में पाम ऑयल को 12 राज्यों के 4 लाख वर्ग हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में  उगाया जा रहा है। 
  • आंध्र प्रदेश देश के कुल पाम ऑयल के 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन के साथ प्रथम स्थान पर है। 

Oil-Palm

पाम ऑयल सतत् कृषि पद्धति:

  • कार्बन प्रच्छादन:
    • आंध्र प्रदेश में पाम ऑयल की कृषि का अधिकतर क्षेत्र लाल मृदा (जो बालू तथा लोमीय कणों से युक्त है) तथा काली मृतिका युक्त (Black Clayish) मृदा से संबंधित है। इन मृदाओं में कार्बन की मात्रा कम होने के कारण पाम ऑयल की कृषि कार्बन भंडारण में एक महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है।
  • प्रति बूँद, अधिक फसल:
    • पाम ऑयल कृषि की सतत विधाओं में 'सूक्ष्म सिंचाई' भी महत्त्वपूर्ण पद्धति है। यह कृषि 'प्रति बूँद, अधिक फसल' के सिद्धांत को आगे बढ़ाती है।
  • प्रति इकाई अधिक उत्पादन:
    • पाम ऑयल का, अन्य खाद्य तेलों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादन अधिक होता है, इससे भारत में तेल उत्पादन में वृद्धि करने में मदद मिलेगी। 
  • दीर्घकालिक फसल की तरफ विस्थापन:
    • पिछले 25 वर्षों में, देश में पाम ऑयल क्षेत्र का विस्तार कृषि और बागवानी भूमि से फसल प्रतिरूप में बदलाव के कारण हुआ है, जिसमें किसानों ने अल्प-मध्यम अवधि की फसलों जैसे मक्का, तंबाकू, गन्ना आदि के स्थान पर दीर्घकालिक पाम ऑयल का उत्पादन करना शुरू किया है।
  • अधिक पारिस्थितिकी अनुकूल:
    • इसके अलावा बंजर तथा अवनयित भूमि को भी पाम ऑयल के बागानों के कृषि क्षेत्र में लाया गया है, नतीजतन किसानों द्वारा अपनाई गई बायोमास पुनर्चक्रण पद्धतियों के कारण इन्हें कार्बन प्रच्छादन की विधि के रूप में मान्यता मिली है।
    • भारत की पाम ऑयल की कृषि में विस्तार करते समय 'प्रकृति को कोई नुकसान नहीं' दर्शन के अनुसरण करते हुये वनों के अंतर्गत भूमि को पाम ऑयल कृषि क्षेत्र के अंतर्गत नहीं लाया गया है। भारत में पाम ऑयल के अंतर्गत औसत कृषि जोत का आकार 2 हेक्टेयर से कम है।
  • मिश्रित फसल:
    • पाम ऑयल की कृषि में किसानों द्वारा अतिरिक्त आय उत्पन्न करने के लिये मिश्रित कृषि तकनीकों को अपनाया जाता है तथा कम आय (Off Season) के दौरान अनेक फसलों को पौधों के मध्यवर्ती क्षेत्रों में बोया जाता है। 
  • सार्वजनिक निजी भागीदारी: 
    • पाम ऑयल के ताजे फलों के गुच्छों को शीघ्र उपयोग में लेने के किये संपूर्ण मूल्य श्रृंखला सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत संचालित की जाती है, जिसे निगम तथा किसानों के मध्य होने वाले अनुबंध के तहत उचित मूल्य पर किसानों से फलों को खरीदने का आश्वासन दिया जाता है।

सतत् उत्पादन की संभावना:

  • भारत दुनिया तिलहन उत्पादन में विश्व के 21 प्रतिशत क्षेत्र तथा उत्पादन के 5 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ विश्व में अमेरिका, चीन एवं ब्राज़ील के बाद चौथा बड़ा तिलहन उत्पादक देश है।
  • देश के पास तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता के पर्याप्त संसाधन हैं।  सरकार की नीतियों, सब्सिडी, आधुनिक कृषि प्रणालियों, नवीन उत्पादन तकनीकों तथा टिकाऊ कृषि प्रथाओं के माध्यम से भारत सभी हितधारकों आपस मे जोड़ सकता है तथा खाद्य तेलों के आयात को कम करते हुए आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक, 2020

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक-2020,  सार्वजनिक निजी भागीदारी, क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक, 2014

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा द्वारा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 [Indian Institutes of Information Technology (IIIT) Laws (Amendment) Bill, 2020] पारित कर दिया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) द्वारा प्रस्तुत यह विधेयक-2020, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून अधिनियम-2014 और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) अधिनियम, 2017 के प्रमुख प्रावधानों में संशोधन करता है। 
  • वर्ष 2020 का यह विधेयक IIITs को उनके नवीन और गुणवत्ता बढ़ाने के तरीकों के माध्यम से देश में सूचना और प्रौद्योगिकी के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करेगा। 
  • यह विधेयक सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership-PPP) के माध्यम से सूरत, भोपाल, भागलपुर, अगरतला और रायचूर में पाँच भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को वैधानिक दर्जा प्रदान करेगा।

सार्वजनिक निजी भागीदारी

(Public Private Partnership-PPP):

  • PPP समझौता, किसी भी परियोजना के लिये सरकार या उसकी किसी वैधानिक संस्था और निजी क्षेत्र के बीच हुआ लंबी अवधि का समझौता है। 
  • इस समझौते के तहत शुल्क लेकर ढाँचागत सेवा प्रदान की जाती है। इसमें आमतौर पर दोनों पक्ष मिलकर एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (Special Purpose Vehicle-SPV) गठित करते हैं, जो परियोजना पर अमल करने का कार्य करता है।

पृष्ठभूमि:

  • सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये IIITs की परिकल्पना की गई है। 
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 26 नवंबर, 2010 को 20 नए IIITs को सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership-PPP) के तहत स्थापित करने की योजना को स्वीकृत किया गया था। 
  • 15 IIITs पहले से ही IIIT (PPP) अधिनियम-2017 के तहत शामिल हैं, जबकि शेष 5 को अधिनियम की अनुसूची के तहत शामिल किया जाना है। 

लाभ:

  • उद्योग और अर्थव्यवस्था की उभरती कुशल तकनीकी जनशक्ति ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इन सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों से प्रशिक्षित कर्मचारी प्राप्त होने की उम्मीद है। 

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2014 

(Indian Institutes of Information Technology Act, 2014):

  • इस अधिनियम का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अंदर वैश्विक मानकों के अनुरूप मानव संसाधन की गुणवत्ता में सुधार के लिये IIITs स्थापित करना था।
  • वर्ष 2014 का अधिनियम पहले से स्थापित चार IIITs (उत्तर प्रदेश-1, तमिलनाडु-1 और मध्य प्रदेश-2) को ‘स्वायत्त और वैधानिक’ संस्थान का दर्जा देने का प्रावधान करता है। 
  • इन संस्थानों का उद्देश्य ‘सूचना प्रौद्योगिकी और संबंधित क्षेत्रों में निर्देश प्रदान करना, सूचना प्रौद्योगिकी में अनुसंधान तथा नवाचार का संचालन करना, बुनियादी ढाँचे को स्थापित करना व बनाए रखना’ है। 

भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों की उपलब्धियाँ:

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2017 में क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग-1000 (QS World University Rankings-1000) में 14 एवं वर्ष 2020 में 24 भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान शामिल थे।
  • वर्ष 2013 में टाइम्स हायर एजुकेशन ग्लोबल-1000 (Times Higher Education Global-1000) में 03 एवं वर्ष 2020 में 36 भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान शामिल थे।

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग

(QS World University Rankings):

  • QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी।
  • QS एक ऐसा वैश्विक मंच है जो महत्त्वाकांक्षी पेशेवरों को उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास को प्रोत्साहित करने हेतु एक प्रमुख वैश्विक कैरियर तथा शिक्षा नेटवर्क प्रदान करता है
  • QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय रैंकिंग का प्रकाशन करता है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना

प्रीलिम्स के लिये:

राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स नीति- 2019 

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के विकास में भारत सरकार की योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (Scheme for Promotion of manufacturing of Electronic Components and Semiconductors-SPECS) को स्वीकृति दे दी है।

मुख्य बिंदु:

  • इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (Scheme for Promotion of manufacturing of Electronic Components and Semiconductors- SPECS) का उद्देश्य देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूती प्रदान करना है। 
  • इस योजना के तहत इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद की आपूर्ति श्रृंखला का गठन करने वाली वस्तुओं के विनिर्माण के लिये पूंजीगत व्यय का 25 प्रतिशत वित्तीय प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी प्रदान की है। 
  • इस योजना की कुल अनुमानित लागत 3,285 करोड़ रुपए है।
  • जिसमें लगभग 3,252 करोड़ रुपए देश में इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के प्रोत्साहन परिव्यय के रूप में तथा 32 करोड़ रुपए योजना के क्रियान्वयन के लिये प्रशासनिक व्यय के रूप में निर्धारित किये गए है।

योजना के लाभ: 

  • इस योजना के परिणाम स्वरूप देश के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र (Electronics sector) में लगभग 20,000 करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान है
  • केंद्रीय संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के अनुसार, इस योजना से देश में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का विकास होगा
  • SPECS योजना इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और अर्धचालकों/सेमीकंडक्टरों (Semiconductor) के घरेलू विनिर्माण की वर्तमान चुनौतियों को दूर करने में सहायक होगी  
  • इस योजना के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में नई विनिर्माण इकाइयों की स्थापना से इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से  बड़ी मात्रा में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होंगे
  • एक अनुमान के अनुसार, इस योजना के तहत सहायता प्राप्त विनिर्माण इकाइयों में लगभग 1,50,000 प्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये जाएंगे
  • साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों में इस योजना के परिणामस्वरूप 4,50,000 अप्रत्यक्ष रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न किये जाने का अनुमान है
  • इस योजना के तहत बड़े पैमाने पर स्थानीय विनिर्माण से इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों की ज़रुरत को पूरा करने के लिये अन्य देशों से होने वाले आयात पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा
  • इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों की स्थानीय उत्पादन तथा आपूर्ति से देश की डिजिटल सुरक्षा (Digital Security) में वृद्धि होगी

पृष्ठभूमि:

  • देश के इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने के लिये 25 फरवरी, 2019 को राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स नीति, 2019  (National Policy on Electronics-NPE 2019) संबंधी अधिसूचना जारी की गई थी  
  • इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स नीति, 2019 (NPE-2019) ने ‘राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स नीति, 2012’ (NPE-2012) का स्‍थान लिया है
  • इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक घटकों, सेमीकंडक्टरों और चिप सेट आदि के विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और इसके लिये क्षमता विकास के माध्यम से देश में वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा योग्य औद्योगिक वातावरण तैयार करना तथा इन प्रयासों के माध्यम से भारत को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (Electronics System Design and Manufacturing- ESDM) के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है 
  • NPE 2019 के अनुसार, भारतीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र के सतत् और दीर्घकालिक विकास के लिये देश में एक व्यावसायिक इलेक्ट्रॉनिक घटक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का होना अति आवश्यक है  
  • साथ ही यह शुद्ध सकारात्मक भुगतान संतुलन (Net Positive Balance of Payment) को अर्जित करने के लिये भी बहुत महत्त्वपूर्ण है
  • NPE, 2019 में  इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र के विकास के लिये 25% पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) का प्रस्ताव किया गया है
  • इसके तहत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र के विकास के लिये संयंत्रों, मशीनरी उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक घटक तथा उपकरण विनिर्माण के लिये अनुसंधान औद्योगिक इकाइयों के विकास सहित संबद्ध उपयोगिताओं और प्रौद्योगिकी आदि को शामिल किया गया है
  • यह योजना मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स, मोटर वाहन इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार उपकरण और कंप्यूटर हार्डवेयर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण आदि क्षेत्रों के विकास में सहायता प्रदान करेगी 

निष्कर्ष:  एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक भारतीय ‘इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिज़ाइन और विनिर्माण’ बाज़ार लगभग 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जिसमें सिर्फ सेमीकंडक्टर उद्योग 26.75 की वृद्धि दर के साथ लगभग 58  बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा भारत सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर तकनीकी में दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है, परंतु उच्च कोटि के हार्डवेयर के निर्माण में भारत उतना सफल नहीं रहा है ऐसे में सरकार की इस पहल से भारत में इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र के विकास के लिये एक मज़बूत तंत्र का निर्माण किया जा सकेगा जिससे भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की लागत में कमी के साथ इस क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न किये जा सकेंगे साथ ही इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स क्षेत्र स्थानीय क्षमता के विकास से वैश्विक बाज़ार में भारत की स्थिति को मज़बूती प्रदान की जा सकेगी

स्रोत:  पीआईबी   


भारतीय अर्थव्यवस्था

एनआरआई विदेशी मुद्रा जमा तथा COVID- 19

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी मुद्रा जमा

मेन्स के लिये:

COVID-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने की दिशा में प्रोटोकॉलों की बढ़ती संख्या के बीच, निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंकों ने नोटों के माध्यम से इस महामारी के संचरण के डर से अनिवासी भारतीयों द्वारा जमा की जाने वाली विदेशी मुद्रा को स्वीकार करने से मना कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • बैंकों का मानना है कि अनिवासी भारतीय (Non-resident Indians- NRIs) खाताधारकों को सरकार ने बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करने से रोकने की दिशा में कोई उपाय नहीं किये हैं, जबकि नोटों के माध्यम से COVID-19 के संचरण का जोखिम रहता है तथा इन मुद्राओं का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है।
  • NRIs अपने निवास स्थान तथा अपने मूल देश के बीच व्यापक ब्याज दर का अंतर होने तथा इस ब्याज दर का लाभ उठाने के लिये भारतीय बैंकों में अपना फंड जमा कराते हैं।

विदेशी विनिमय दर

(Foreign Exchange Rate): 

  • विदेशी मुद्रा की प्रति इकाई की घरेलू मुद्रा में कीमत ‘विदेशी विनिमय दर’ कही जाती है। विनिमय दर दो देशों की मुद्राओं के विनिमय के अनुपात को व्यक्त करती है। 
  • कुछ अर्थशास्त्री इसे घरेलू करेंसी का बाहरी मूल्य भी कहते हैं।

NRIs जमा खाते:

  • NRIs भारतीय बैंकों में दो प्रकार के जमा खाते खोल सकते हैं-
    1. प्रत्यावर्तनीय जमा (Repatriable Deposits) 
    2. अप्रत्यावर्तनीय जमा (Non Repatriable Deposits)
  • NRIs के पास प्रत्यावर्तनीय जमा खाते के 2 विकल्प होते हैं-  

विदेशी मुद्रा- अनिवासी- बैंक खाता(Foreign Currency Non-Resident- Banks):

  • इसे संक्षिप्त में FCNR- (B) खाते के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुद्रा जोखिम बैंकों द्वारा वहन किया जाता है।  

गैर-निवासी बाह्य-रुपया- खाता (Non Resident External-Rupee-Account):

  • इसे संक्षिप्त में NRE- (RA) खाते के रूप में जाना जाता है, जहाँ विदेशी मुद्रा जोखिम जमाकर्त्ता द्वारा वहन किया जाता है।

विदेशी मुद्रा भंडार

(Foreign Exchange Reserves):

  • विदेशी मुद्रा भंडार, विदेशी मुद्रा के रूप में केंद्रीय बैंक में आरक्षित संपत्ति होती है, जिसमें बॉन्ड, ट्रेज़री बिल एवं अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं। 
  • ये परिसंपत्तियाँ कई उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं, लेकिन यदि राष्ट्रीय मुद्रा में तेज़ी से अवमूल्यन होता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक ऐसे समय में इस परिसंपत्ति का उपयोग बैकअप फंड के रूप मे करता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं: 

  • विदेशी मुद्रा आस्तियाँ (जैसे डॉलर) 
  • गोल्ड 
  • विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights)
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) में आरक्षित निधि

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विदेशी मुद्रा भंडार पर COVID- 19 का प्रभाव:

  • नवीनतम आँकड़ों (13 मार्च 2020) के अनुसार मुद्रा आरक्षित 487 बिलियन डॉलर के शिखर से गिरकर 481.9 बिलियन डॉलर हो गया है।
  • COVID-19 महामारी के परिणामस्वरूप विदेशी निवेशक उभरते बाज़ारों से निवेश को बाहर खींच रहे हैं।
  • ऐसा अनुमान है कि उन्होंने भारतीय बाजारों से करीब 9 बिलियन डॉलर की रकम निकाली है, जिससे रुपये के मुकाबले रुपये में गिरावट आई है। 
  • विदेशी मुद्रा भंडार में आगे और तेज़ी से कमी होने की आशंका है, क्योंकि प्रमुख निवेशक प्रमुख वित्तीय बाजारों से पैसा निकालकर अमेरिकी ट्रेज़री जैसे सुरक्षित स्थानों में निवेश कर रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

COVID- 19: स्वास्थ्य कर्मियों के लिये निवारक दवा को मंज़ूरी

प्रीलिम्स के लिये:

हाइड्रॉक्सिल क्लोरोक्वीन, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, USFDA

मेन्स के लिये:

भारत में दवा एवं औषधि विनियमन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research’s- ICMR) की राष्ट्रीय टास्क फोर्स ने ‘SARS-CoV-2’ (Severe Acute Respiratory Syndrome Coronavirus 2) संक्रमण के उच्च जोखिम वाली आबादी के लिये प्रोफिलैक्सिस (Prophylaxis) के रूप में ‘हाइड्रॉक्सिल क्लोरोक्विनॉन’ (Hydroxyl Chloroquine) का उपयोग करने की सिफारिश की है।

मुख्य बिंदु:

  • नेशनल टास्क फोर्स (National Task Force) द्वारा अनुशंसित प्रोटोकॉल को भारत के ‘ड्रग्स कंट्रोलर जनरल’ (Drug Controller General of India- DCGI) द्वारा आपातकालीन स्थितियों में प्रतिबंधित रूप से उपयोग (Restricted Use) करने की अनुमति प्रदान की गई है।
  • ICMR इस दवा का उपयोग COVID-19 के संदिग्ध या पुष्ट मामलों की देखभाल में शामिल एसिम्पटोमेटिक (Asymptomatic- जिनमें अभी बीमारी के लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं) वाले स्वास्थ्य तथा प्रयोगशाला कर्मियों पर करने की अनुमति देने पर विचार कर रहा है।
  • ICMR के अनुसार जिन मेडिकल किट्स के निर्माण के लिये अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (US Food and Drug Administration- USFDA) के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है, उन्हें ICMR के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी,’ पुणे (National Institute of Virology, Pune) के अनुमोदन की आवश्यकता होगी। 

भारत में प्रमुख दवा एवं औषध विनियमन निकाय:

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO): 
    • CDSCO, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य महानिदेशालय के तहत भारत सरकार का राष्ट्रीय नियामकीय प्राधिकरण (National Regulatory Authority- NRA) है, जिसके निम्नलिखित कार्य हैं-
    • देश में औषधि, प्रसाधनों, नैदानिकी एवं उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये मानदंड व उपाय निर्धारित करना। 
    • नई औषधियों के बाज़ार अनुमोदन और नैदानिक परीक्षण मानकों को नियंत्रित करना। 
    • आयात होने वाली औषधियों की निगरानी करना एवं उपरोक्त उत्पादों के निर्माण के लिये लाइसेंस की मंज़ूरी देना।
  • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority- NPPA):
    • NPPA का गठन 29 अगस्त, 1997 को रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में की गई थी। 
    • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना। निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन करना। 
    • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रखरखाव। दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना।

आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत औषधि मूल्य नियंत्रण:

  • भारत सरकार दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Orders- DPCO) तथा NPAA के माध्यम से आवश्यक औषधियों का मूल्य नियमन करती है। 
  • इस दिशा में अनिवार्य औषधियों की राष्ट्रीय सूची स्वास्थ्य एवं  परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है, जिसे भारत में स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिये अनिवार्य माना जाता है।
  • आर्थिक समीक्षा के अनुसार पूर्व स्थापित धारणा के विपरीत, नियमित औषधियों के मूल्य में अनियमित औषधियों के मूल्य की तुलना अधिक वृद्धि हुई है। 

आर्थिक समीक्षा ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त कर बाजार अनुकूल उपायों, यथा- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, बाजार का एकीकरण आदि की वकालत की है। 

यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Food and Drug Administration- FDA) ने वर्ष 2008 में भारत में अपना कार्यालय खोला, ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि भारत से अमेरिका को निर्यात किये जाने वाले खाद्य और चिकित्सा उत्पाद सुरक्षित, अच्छी गुणवत्ता वाले एवं प्रभावी हैं।
  • भारत में FDA की गतिविधियों में शामिल हैं-
    • ऐसे चिकित्सा उत्पादों एवं खाद्य पदार्थों के निरीक्षण का संचालन करना जो यू.एस. को निर्यात किये जाते हैं।
    • एक दूसरे पर विश्वास बहाली तथा गुणवत्ता मानकों को विकसित करने के लिये भारतीय नियामक अधिकारियों के साथ जुड़ना।
    • द्विपक्षीय पहलों के माध्यम से भारतीय समकक्ष एजेंसियों के साथ साझेदारी करना। 

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 मार्च, 2020

विश्‍व क्षय रोग दिवस

प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को दुनिया भर में विश्व क्षय रोग दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य आम लोगों को इस बीमारी के विषय में जागरूक करना और क्षय रोग की रोकथाम के लिये कदम उठाना है। वर्ष 2020 के लिये विश्व क्षय रोग दिवस का थीम ‘It’s Time’ है। विश्व क्षय रोग दिवस को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) जैसे संगठनों का समर्थन भी प्राप्त है। क्षय रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है, जो कि मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है। इससे बचाव अथवा इसकी रोकथाम संभव है। यह हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। आँकड़ों के अनुसार, विश्व की एक चौथाई जनसंख्या लेटेंट टीबी (Latent TB) से ग्रस्त है। लेटेंट टीबी का अर्थ है कि लोग टीबी के जीवाणु से संक्रमित तो हो जाते हैं, किंतु उन्हें यह रोग नहीं होता है और वे इसका संचरण अन्य व्यक्तियों तक नहीं कर सकते हैं। टीबी के जीवाणु से संक्रमित व्यक्ति के टीबी से ग्रसित होने की संभावना 5-15 प्रतिशत ही होती है। 

COVID-19 के रोकथाम हेतु उच्चस्तरीय समिति 

केंद्र सरकार ने देश में कोरोनावायरस (COVID-19) की रोकथाम के लिये नीति आयोग के सदस्‍य डॉ. वी.के. पॉल की अध्यक्षता में स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की 21 सदस्यों वाली एक उच्‍चस्‍तरीय तकनीकी समिति का गठन किया है। केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य सचिव और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक को समिति के सह-अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। इसके अलावा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान के महानिदेशक, दिल्‍ली के राष्‍ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के निदेशक, पुणे के संक्रामक रोग संस्‍थान के निदेशक और केरल के अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव को सदस्‍य के रूप में समिति में शामिल किया गया है। गौरतलब है कि कोरोनावायरस (COVID-19) दुनिया भर में एक वैश्विक महामारी के तौर पर तेज़ी से फैल रहा है और विश्व के तमाम क्षेत्र इसके कारण प्रभावित हुए हैं।

राज्यसभा चुनाव स्थगित

कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए चुनाव आयोग ने 26 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव स्थगित कर दिये हैं। उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, मणिपुर, मेघालय और राजस्थान में 18 सीटों पर चुनाव होने थे जिन्हें अगली तारीख तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। चुनाव आयोग द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने COVID-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया है और देश के अधिकांश क्षेत्रों में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई है जिसे देखते हुए राज्यसभा चुनाव को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा कोरोनावायरस (COVID-19) के खतरे को देखते हुए लोकसभा को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया है।

प्रोब-फ्री-डिटेक्शन एस्से तकनीक

(Probe-Free Detection Assay Technology)

IIT दिल्ली के वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस (COVID-19) जाँच के लिये सस्ती, आसान और सटीक तकनीक विकसित की है। इस तकनीक को प्रोब-फ्री-डिटेक्शन एस्से (Probe-Free Detection Assay) नाम दिया गया है। पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (National Institute of Virology) IIT दिल्ली द्वारा विकसित इस तकनीक की प्रमाणिकता की जाँच कर रहा है। IIT दिल्ली के डायरेक्टर के अनुसार, इस तकनीक को कुसुम स्कूल ऑफ बॉयोलोजिकल साइंसेज़ की लैब में विकसित किया गया है। इस तकनीक को विकसित करने वाले समूह के मुताबिक, इसके कारण जाँच का खर्च काफी कम हो सकता है।


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