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डेली न्यूज़

  • 23 Nov, 2019
  • 44 min read
भूगोल

विद्युत उत्पादन के लिये परमाणु ऊर्जा संयंत्र

प्रीलिम्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा संयंत्र

मेन्स के लिये:

ऊर्जा संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021-22 के लिये अनुमानित ऊर्जा की आवश्यकता 15,66,023 मिलियन यूनिट है जो वर्ष 2018-19 के लिये 12,74,595 मिलियन यूनिट थी।

  • अर्थात् वर्ष 2021-22 के लिये कुल उर्जा की मांग में 22.86% की वृद्धि हुई है।

Electricity Generation

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में देश में स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता के विकास में 22 परमाणु संयंत्र शामिल हैं, जिनकी कुल क्षमता 6780 मेगावाॅट है। इनमें से एक संयंत्र, आरएपीएस -1 (100 मेगावाॅट) तकनीकी-आर्थिक मूल्यांकन के कारण बंद ( Shutdown) है।
  • देश में उत्पन्न कुल विद्युत क्षमता में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का लगभग 3% का योगदान है।

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का क्रियान्वयन:

  • भारत में परमाणु विद्युत संयंत्रों का प्रचालन एवं इनसे संबंधित परियोजनाओं का क्रियान्वयन न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Nuclear Power Corporation of India Limited- NPCIL) द्वारा किया जाता है।

न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड

(Nuclear Power Corporation of India Limited- NPCIL)

  • NPCIL एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है जो भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
  • इसे सितंबर, 1987 को कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था।

परमाणु ऊर्जा विभाग

(Department of Atomic Energy- DAE):

  • DAE की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश द्वारा प्रधानमंत्री के सीधे प्रभार के तहत 3 अगस्त, 1954 को की गई थी।
  • परमाणु ऊर्जा विभाग का उद्देश्य प्रौद्योगिकी, अधिक संपदा के सृजन और अपने नागरिकों को बेहतर गुणवत्ता युक्त जीवन स्तर प्रदान कर भारत को और शक्ति संपन्न बनाना है।

निर्माणाधीन परमाणु ऊर्जा संयंत्र:

राज्य स्थान परियोजना क्षमता (मेगावाॅट)
गुजरात काकरापुर KAPP-3&4 2 x 700
राजस्थान रावतभाटा RAPP-7&8 2 X 700
हरियाणा गोरखपुर GHAVP-1&2 2 X 700
तमिलनाडु कुडनकुलम KKNPP– 3&4 2 X 1000
तमिलनाडु कलपक्कम PFBR 500

प्रशासनिक स्वीकृति और वित्तीय मंजूरी प्राप्त परियोजनाएँ:

राज्य स्थान परियोजना क्षमता (मेगावाॅट)
मध्य प्रदेश चुटका Chutka - 1&2 2 X 700
कर्नाटक कैगा Kaiga - 5&6 2 X 700
राजस्थान बांसवाड़ा Mahi Banswara - 1&2
Mahi Banswara - 3&4
2 X 700
2 X 700
हरियाणा गोरखपुर GHAVP - 3&4 2 X 700
तमिलनाडु कुडनकुलम KKNPP - 5&6 2 X 1000

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण

प्रीलिम्स के लिये:

FSSAI, WHO

मेन्स के लिये:

खाद्य पदार्थों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने फास्ट-फूड कंपनी मैकडॉनल्ड्स (McDonald’s) को एक विज्ञापन के संदर्भ में एक सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देने के लिये कहा है।

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने मैकडॉनल्ड्स को खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 {Food Safety and Standards (Advertising and Claims) Regulations, 2018} के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारण बताओ नोटिस भेजा है।

प्रमुख बिंदु:

  • FSSAI के अनुसार, इस तरह के विज्ञापन पौष्टिक और सही खान-पान को बढ़ावा देने के राष्ट्रीय प्रयासों के (विशेषकर कम उम्र के बच्चों) हैं।
  • हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) ने लोगों को स्वास्थ्यप्रद भोजन विकल्पों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से “ईट राइट अभियान” (Eat Right campaign) शुरू किया है।
  • इसी प्रकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने भी बच्चों के लिये खाद्य और गैर-मादक पेय पदार्थों के विपणन को लेकर अपने एक संकल्प के माध्यम से परामर्श जारी किया है।
  • WHO के परामर्श के साथ ही FSSAI ने हाल ही में खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 को अंतिम रूप प्रदान किया
  • इस विनियमन के तहत स्वस्थ जीवन शैली के महत्त्व को कम किये बिना विज्ञापन किया जाना चाहिये, साथ ही इसके विज्ञापन हेतु FSSAI की अनुमति अनिवार्य करना चाहिये।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के बारे:

  • केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का गठन किया।
  • इसका संचालन भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत किया जाता है।
  • इसका मुख्‍यालय दि‍ल्ली में है, जो राज्‍यों के खाद्य सुरक्षा अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों को लागू करने का कार्य करता है।
  • FSSAI मानव उपभोग के लिये पौष्टिक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात की सुरक्षित व्यवस्था सुनिश्चित करने का कार्य करता है।
  • इसके अलावा यह देश के सभी राज्‍यों, ज़िला एवं ग्राम पंचायत स्‍तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के निर्धारित मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है।
  • यह समय-समय पर खुदरा एवं थोक खाद्य-पदार्थों की गुणवत्ता की भी जाँच करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

मौलिक कर्त्तव्य

प्रीलिम्स के लिये:

मौलिक कर्त्तव्य

मेन्स के लिये:

संविधान से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने संविधान दिवस की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘संविधान से समरसता’ कार्यक्रम के तहत मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता फैलाने का निश्चय किया है।

मौलिक कर्त्तव्य (Fundamental Duties):

fUNDAMENTAL DUTIES

  • स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया।
  • इसके तहत संविधान में एक नए भाग IV को जोड़ा गया। संविधान के इस नए भाग में अनुच्छेद 51 क जोड़ा गया जिसमें 10 मौलिक कर्त्तव्यों को रखा गया था। वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा एक और मौलिक कर्त्तव्य को जोड़ा गया-
  1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
  2. स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
  3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
  4. देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते हैं, रक्षा करें और संवर्द्धन करें त्तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  11. 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्त्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।

42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1976:

  • यह संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन माना जाता है। इसे लघु संविधान के रूप में जाना जाता है। इसके तहत कुछ अन्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए-
  • इस संशोधन के तहत भारतीय संविधान में तीन नए शब्द ‘समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता’ जोड़े गए।
  • इसमें राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह की लिये बाध्यता का उपबंध शामिल किया गया।
  • इसके तहत संवैधानिक संशोधन को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर किया गया और नीति निर्देशक तत्त्वों को व्यापक बनाया गया।
  • शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन तथा उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों के गठन और संगठन के विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।

संविधान दिवस:

संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित किया गया, इस दिन को भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट, कार्बन कैप्चर, IPCC

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण (United Nations Environment) द्वारा जारी प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट (Production Gap Report) जीवाश्म ईंधन अप्रसार (Non-Proliferation) की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण नेतृत्व वाले अनुसंधान गठबंधन ने प्रोडक्शन गैप पर 20 नवंबर, 2019 को अपनी पहली रिपोर्ट जारी की।
  • इस रिपोर्ट में पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत वैश्विक तापन के 1.5 तथा 2°C तक के लक्ष्यों और जीवाश्म ईंधन उत्पादन के प्रयोग के मध्य के अंतर को मापा गया है।
  • प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को रेखांकित किया है-
  1. जलवायु प्रतिबद्धताओं और नियोजित उत्पादन के बीच असंतुलन
  2. कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसे समाधानों को लेकर अनिश्चितता
  3. जीवाश्म ईंधन उत्पादन समस्या की सामूहिक कार्रवाई प्रकृति
  • पिछले वर्ष प्रकाशित IPCC की ग्लोबल वार्मिंग 1.5°C रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक वार्मिंग के 1.5°C से नीचे रहने के लिये वर्ष 2030 तक कोयले से संचालित 66% विद्युत संयंत्रों को बंद करना होगा। इसके अतिरिक्त IPCC ने कहा कि वर्ष 2050 तक विद्युत उत्पादन में प्राकृतिक गैस का उपयोग दसवें हिस्से से कम होगा।
  • प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट के अनुसार विश्व के देश वर्ष 2030 तक अत्यधिक कोयला उत्पादन की राह पर अग्रसर हैं। विभिन्न देशों द्वारा उत्पादित कुल कोयला वैश्विक स्तर पर तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°C से नीचे रखने की तुलना में 150 प्रतिशत अधिक तथा तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने के लक्ष्य की तुलना में 280 प्रतिशत अधिक होगा।
  • वैश्विक स्तर पर तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°C से नीचे रखने के लिये वर्ष 2030 में तेल का उत्पादन 16 प्रतिशत निर्धारित किया गया है जबकि तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने के लिये तेल उत्पादन को 59 प्रतिशत तक निर्धारित किया गया था। गैस के लिये, ओवरशूट के आंकड़े 2°C के लिये 14 प्रतिशत और 1.5°C के लिये 70 प्रतिशत थे।
  • IPCC ने जीवाश्म ईंधन के स्थान पर नवीनीकरण ऊर्जा के साथ-साथ अन्य स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन के प्रयास किये जाने की आवश्यकता को इंगित किया है।
  • IPCC की योजना वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन तथा इसके बाद शेष शताब्दी के लिये शुद्ध नकारात्मक उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र (Net Negative Emissions Trajectory) लक्ष्य पर आगे बढ़ना है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

सर्कस में जंगली जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

वन्यजीवों के समक्ष विभिन्न खतरे, भारत में वन्यजीव संरक्षण के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पेरिस शहर ने सर्कस में जंगली जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।

प्रमुख बिंदु

wild animals from circuses

  • यद्यपि पेरिस शहर ने सर्कस में जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन फ्राँस अभी भी जंगली जानवरों के उपयोग पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लागू करने पर विचार कर रहा है।
  • वर्ष 2020 से लागू होने वाले इन प्रस्तावों के अनुसार, यदि किसी सर्कस को जंगली जानवरों का उपयोग करते हुए पाया गया तो उनके संचालन परमिट को रद्द कर दिया जाएगा।

क्यों लगाया गया है प्रतिबंध?

  • जानवरों के अधिकारों, उनके साथ क्रूरता और खराब परिस्थितियों में रहने और प्रदर्शन करने के लिये मज़बूर किये जाने से संबंधित मुद्दे लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं।
  • हालाँकि विश्वभर में सर्कस में प्रदर्शन करने के लिये मज़बूर किये जाने वाले जंगली जानवरों की संख्या में अभूतपूर्व कमी आई है (विशेष रूप से विगत दो दशकों के दौरान) लेकिन अब भी कुछ देशों के सर्कस में जंगली जानवरों को इस्तेमाल किया जाता है।

सर्कस में प्रयोग होने वाले जानवरों की स्थिति

  • सर्कस में प्रदर्शन करने वाले अधिकाँश जानवरों को पिंजरे में रखा जाता है। जानवरों के आकार की तुलना में ये पिंजरे बहुत ही छोटे और गंदे होते हैं।
  • सर्कस में जानवरों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार और शारीरिक शोषण सामान्य बात है, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब इन्हें सर्कस में प्रदर्शन करने के लिये मजबूर किया जाता है। इन जानवरों द्वारा किये जाने वाले अधिकाँश प्रदर्शन अस्वाभाविक होते हैं। उदाहरण के लिये हाथियों को लंबे समय तक केवल एक पैर पर खड़े रहने के लिये मज़बूर करना।
  • सर्कस में बजने वाले तेज़ संगीत और दर्शकों के शोर के कारण भी जानवरों को परेशानी होती है।
  • कई वर्षों तक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दबाव में कार्य करने के कारण ये दीर्घावधिक शारीरिक तथा मानसिक विकारों से ग्रस्त हो सकते हैं।

पृष्ठभूमि

  • पेरिस ने दिसंबर 2017 में एक योजना की घोषणा की थी ताकि फ्राँस की राजधानी में होने वाले सर्कसों में जंगली जानवरों के उपयोग को प्रतिबंधित किया जा सके।
  • AFP (Agence France-Presse) की रिपोर्ट के अनुसार, फ्राँस की 65 नगरपालिकाओं ने पहले ही जंगली जानवरों को सर्कस से प्रतिबंधित कर दिया है, जबकि फ्राँस राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध को लागू करने पर विचार कर रहा है।

कैद में जंगली जानवरों पर फ्राँस का रुख

  • सर्कस के जानवरों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध पर विचार करने की बावजूद फ्राँसीसी सरकार ने मई 2017 में डॉल्फ़िन और व्हेल के कैप्टिव वंशवृद्धि (Captive Breeding) पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • AFP के अनुसार, लगभग दो-तिहाई फ्राँसीसी लोग सर्कस में जंगली जानवरों के उपयोग पर आपत्ति करते हैं।

अन्य देशों में जंगली जानवरों पर प्रतिबंध

  • एनिमल डिफेंडर्स इंटरनेशनल (Animal Defenders International- ADI) नामक पशु अधिकार समूह जो मानव मनोरंजन के लिये जानवरों के उपयोग की निगरानी करता है, के आँकड़ों के अनुसार, अधिकाँश यूरोपीय देशों ने सर्कस में जंगली जानवरों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया है।
  • ADI के अनुसार, फ्राँस, जर्मनी, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, अर्जेंटीना, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया ऐसे राष्ट्र हैं, जहाँ वर्तमान में केवल स्थानीय प्रतिबंध प्रभावित हैं और जंगली जानवरों उपयोग पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध का अभाव है।

भारत का रुख

  • भारत में दशकों से सर्कस में जंगली जानवरों का उपयोग किया जाता है, लेकिन नवंबर 2018 में, केंद्र सरकार ने मसौदा नियम जारी किये, जिसमें सर्कस में सभी जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया दिया गया था।
  • पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1960 (1960 का अधिनियम संख्याक 59) [Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960] की धारा 38 के तहत, भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने 'पशु प्रदर्शन (पंजीकरण) संशोधन नियम, 2018' [Performing Animals (Registration) (Amendment) Rules, 2018] प्रस्तावित किया और "पशुओ के प्रदर्शन तथा निर्दिष्ट प्रदर्शन के लिये जानवरों के प्रशिक्षण को निषेध" घोषित किया।
  • मसौदा नियमों के तहत, "किसी भी सर्कस या गतिशील/चलनशील मनोरंजन सुविधा में प्रदर्शन के लिये जानवरों का उपयोग नहीं किया जाएगा।"
  • इसका तात्पर्य यह है कि ऐसे सर्कस जिनकी मान्यता को रद्द कर दिया गया है, को बिना अनुमति प्राप्त किये या केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority) के आदेशों में संशोधन के बिना अपने प्रदर्शन कार्यक्रमों में जंगली जानवरों के उपयोग की अनुमति नही है। ध्यातव्य है कि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण एक राष्ट्रीय सरकारी निकाय है जो भारत में सर्कस और मनोरंजन और चिड़ियाघर में इस्तेमाल होने वाले जानवरों की स्थितियों की देखरेख करता है।
“भारत में सर्कस खेल एवं युवा मामलों के विभाग की परिधि में आता है।”

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2019

प्रीलिम्स के लिये

औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2019 क्या है?

मेन्स के लिये

भारत में श्रम सुधारों की दिशा में औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2019 का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2019 को संसद में पारित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • औद्योगिक संबंध संहिता के इस प्रस्ताव में ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Union Act of 1926), औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 (Industrial Employment (Standing Order) Act of 1946) तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act of 1947) के प्रासंगिक प्रावधानों को मिश्रित, सरलीकृत तथा तर्कसंगत बना कर समाहित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में सरकार ने विभिन्न केंद्रीय श्रमिक कानूनों को चार संहिताओं (Codes) में संहिताबद्ध करने का प्रस्ताव किया था जो इस प्रकार हैं।
    • वेतन संहिता (Code on Wages)
    • औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code)
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code)
    • पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code)
  • सरकार ने पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता को जुलाई 2019 में लोक सभा में प्रस्तुत किया, जबकि हाल ही में वेतन संहिता, 2019 को संसद ने पारित किया है। सामाजिक सुरक्षा संहिता के मसौदे को विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रिया हेतु जारी किया गया है।

विधेयक के मुख्य प्रावधान:

  • इस विधेयक में ‘निश्चित अवधि के रोज़गार’ (Fixed Term Employment) की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। इस विधेयक के लागू होने के बाद कंपनियाँ श्रमिकों को प्रत्यक्ष तौर पर एक निश्चित अवधि के लिये अनुबंधित कर सकेंगी।
  • ‘निश्चित अवधि के रोज़गार’ के तहत अनुबंधित कर्मचारियों को नोटिस अवधि की कोई सुविधा नहीं दी जाएगी तथा छँटनी होने पर मुआवज़े का भुगतान भी नहीं किया जाएगा।
  • किसी कंपनी, जिसमें 100 या उससे अधिक कर्मचारी कार्य कर रहे हों, को कर्मचारियों की संख्या में छँटनी के लिये सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक होगी।
  • हालाँकि, इसमें जोड़े गए एक प्रावधान के तहत कर्मचारियों की इस संख्या को सरकार अधिसूचना के माध्यम से बदल सकती है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक के प्रस्तावित मसौदे में यह सीमा 300 कर्मचारी थी।
  • इसके तहत दो सदस्यीय न्यायाधिकरण की स्थापना की जाएगी जो किसी महत्त्वपूर्ण मामले पर संयुक्त रूप से निर्णय लेगा, जबकि शेष मामलों पर एकल सदस्य द्वारा अधिनिर्णय लिया जाएगा।
  • ऐसे विवाद जिनमें दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है, न्यायाधिकरण पर बोझ कम करने के लिये उन पर निर्णय लेने का अधिकार सरकारी अधिकारियों को दिया जाएगा।

विधेयक का महत्त्व:

  • इस विधेयक की महत्त्वपूर्ण विशेषता निश्चित अवधि के रोज़गार की अवधारणा को वैधानिकता प्रदान करना है।
  • वर्तमान में कंपनियाँ अनुबंधित श्रमिकों (Contract Workers) से कार्य कराने के लिये ठेकेदारों पर आश्रित होती हैं, जबकि इस विधेयक के लागू होने के बाद वे श्रमिकों को प्रत्यक्ष तौर पर एक निश्चित अवधि के लिये अनुबंधित कर सकेंगी।
  • अपने अनुबंध अवधि के दौरान इन श्रमिकों को स्थायी कर्मचारियों की तरह ही सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाएगा।
  • इसके तहत दो सदस्यीय न्यायाधिकरण की स्थापना करने तथा आंशिक मामलों को सरकारी अधिकारियों के अधिकार में लाने से मामलों का तेज़ी से निपटारा किया जा सकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक गलियारे

प्रीलिम्स के लिये:

औद्योगिक गलियारे, DPIIT

मेन्स के लिये:

अवसंरचना से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने पाँच औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं के विकास को मंज़ूरी दे दी है,जिन्हें राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (National Industrial Corridor Development and Implementation Trust- NICDIT) के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • NICDIT भारत में 5 औद्योगिक गलियारों के समन्वित व एकीकृत विकास के लिये केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) के प्रशासनिक नियंत्रण में एक सर्वोच्च निकाय है।
  • वर्ष 2017 में दिल्ली-मुंबईऔद्योगिक गलियारा परियोजना कार्यान्वयन ट्रस्ट फंड {Delhi Mumbai Industrial Corridor Project Implementation Trust Fund- (DMIC-PITF)} को NICDIT के रूप में परिवर्तित किया गया था।
  • NICDIT विकास परियोजनाओं से संबंधित गतिविधियों का समर्थन तथा अन्य परियोजनाओं का मूल्यांकन, अनुमोदन तथा उन्हें मंज़ूरी प्रदान करती है। यह निकाय औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं के विकास के लिये किये गए सभी केंद्रीय प्रयासों का समन्वय और निगरानी कार्य भी करता है।

पाँच औद्योगिक गलियारे

क्र.सं. औद्योगिक गलियारे राज्य
1. दिल्ली-मुंबईऔद्योगिक गलियारा (DMIC) उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र
2. अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC) पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल
3. चेन्नई-बंगलूरू औद्योगिक गलियारा (CBIC) आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल
4. पूर्वी तट आर्थिक गलियारा (ECEC) के साथ विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC) चरण-1 के रूप में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु
5. बंगलूरू-मुंबई औद्योगिक गलियारा (BMIC) कर्नाटक, महाराष्ट्र

औद्योगिक गलियारे

  • औद्योगिक गलियारे उद्योग और बुनियादी ढाँचे का प्रभावी एकीकरण करते हैं, जिससे समग्र आर्थिक और सामाजिक विकास होता है।
  • औद्योगिक गलियारों का गठन:
    • उच्च गति परिवहन नेटवर्क - रेल और सड़क
    • अत्याधुनिक कार्गो अनुकूलित उपकरण के साथ पोर्ट
    • आधुनिक हवाई अड्डे
    • विशेष आर्थिक क्षेत्र / औद्योगिक क्षेत्र
    • लॉजिस्टिक पार्क/परिवहन केंद्र
    • खाद्यान केंद्रित औद्योगिक आवश्यकताओं के लिये ‘नॉलेज पार्क’
    • पूरक बुनियादी ढाँचे जैसे- टाउनशिप/रियल एस्टेट
    • नीतिगत ढाँचे को सक्षम करने के साथ-साथ अन्य शहरी बुनियादी ढाँचों का निर्माण
  • औद्योगीकीकरण और योजनाबद्ध शहरीकरण को बढ़ावा देने तथा समावेशी विकास पर रणनीतिक ध्यान केंद्रित करने के लिये उपर्युक्त 5 औद्योगिक गलियारे पूरे भारत में फैले हुए हैं।
  • विनिर्माण प्रत्येक परियोजना के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उत्प्रेरक है। इन औद्योगिक गलियारों की सहायता से वर्ष 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 16% से 25% तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • इन गलियारों के साथ स्मार्ट सिटी विकसित की जा रही है।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम

प्रीलिम्स के लिये:

जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम

मेन्स के लिये:

बैंक की विफलता से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (Punjab and Maharashtra Co-operative- PMC) बैंक की विफलता के बाद भारतीय बैंकों में ग्राहकों की जमा राशि (Deposits) के बीमा की निम्न राशि का मुद्दा दोबारा चर्चा में आ गया।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में बैंक विफलता (Bank Collapse) के मामले में जमाकर्त्ता बीमा कवर के रूप में अधिकतम 1 लाख रुपए प्रति खाते तक की राशि का दावा कर सकता है (भले ही उसके खाते में जमा 1 लाख से अधिक हो)।
  • बैंक की विफलता के मामले में खाते में 1 लाख रुपए से अधिक की राशि रखने वाले जमाकर्त्ताओं के पास कोई कानूनी उपाय नहीं है।
  • जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation- DICGC) द्वारा प्रति जमाकर्त्ता को 1 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जाता है।

जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम

  • वर्ष 1978 में जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
  • यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
  • यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
  • 1 लाख रुपए का कवर वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs), स्थानीय क्षेत्र बैंकों (LABs) और सहकारी बैंकों में जमा के लिये है।
  • DICGC के आँकड़ों के अनुसार, बीमित जमा का स्तर 2007-08 के 60.5% के उच्च स्तर से घटकर 2018-19 में 28.1% हो गया है।
  • मार्च 2019 के अंत में DICGC के साथ पंजीकृत बीमाकृत बैंकों की संख्या 2,098 थी, जिसमें 103 वाणिज्यिक बैंक, 1,941 सहकारी बैंक, 51 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और 3 स्थानीय क्षेत्र के बैंक शामिल थे।
  • DICGC ने वर्ष 1980 के 30,000 रुपए के जमा बीमा कवर को 1 मई, 1993 में संशोधित करके 1 लाख रुपए कर दिया था।
  • DICGC एक बैंक द्वारा जमा किये गए 100 रुपए पर 10 पैसे का शुल्क लेता है। बीमित बैंकों द्वारा निगम को भुगतान किया गया प्रीमियम, जमाकर्त्ताओं के बजाय बैंकों द्वारा वहन किया जाना आवश्यक होता है।
  • DICGC के अनुसार, वर्ष 2018-19 में वाणिज्यिक बैंकों ने कुल 11,190 करोड़ रुपए का भुगतान किया, जबकि सहकारी बैंकों ने 850 करोड़ रुपए का भुगतान किया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (23 नवंबर)

SCO स्‍थायी कार्य समूह की 5वीं बैठक

शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) के सदस्‍य देशों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं विभागों तथा विज्ञान एवं टेक्‍नालॉजी सहयोग पर स्‍थायी कार्य समूह की 5वीं बैठक रूस के मॉस्‍को में आयोजित हुई।

  • SCO के 8 सदस्‍य देशों के प्रति‍निधिमंडल के प्रमुखों ने 3 दिन की बैठक के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी की 5वीं बैठक के प्रोटोकॉल पर हस्‍ताक्षर किये।
  • SCO के युवा वैज्ञानिकों तथा अन्‍वेषकों की बैठक वर्ष 2020 में आयोजित करने के भारत के प्रस्‍ताव पर सहमति व्‍यक्‍त की गई।
  • वर्ष 2020 के अंत तक SCO बहुपक्षीय अनुसंधान और विकास परियोजनाओं के लिये संयुक्‍त प्रतिस्पर्द्धाआयोजित करने की भी मंज़ूरी दी।
  • संयुक्‍त प्रतिस्पर्द्धा तथा निधि और वित्‍तीय समर्थन व्‍यवस्‍था बाद में तैयार की जाएगी।
  • गौरतलब है कि भारत वर्ष 2020 में SCO सदस्‍य देशों के शासनाध्‍यक्षों की परिषद की बैठक की मेज़बानी करेगा।
  • इस शिखर बैठक में वर्ष 2021-2023 के लिये SCO सदस्‍य देशों के अनुसंधान संस्‍थानों के बीच सहयोग के प्रारूप रोडमैप को मंजूरी दी जाएगी।

SCO एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसकी स्थापना चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान द्वारा 15 जून, 2001 को शंघाई (चीन) में की गई थी। उज़्बेकिस्तान को छोड़कर बाकी देश 26 अप्रैल, 1996 में गठित ‘शंघाई पाँच’ समूह के सदस्य हैं। वर्ष 2005 में भारत और पाकिस्तान इस संगठन में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुए थे। भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में इस संगठन के पूर्ण सदस्य का दर्जा प्रदान किया गया। सदस्य देशों के मध्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने पर भी ध्यान देना SCO का प्रमुख उद्देश्य है।


जम्मू-कश्मीर में ‘मिशन हिमायत’

  • जम्मू-कश्मीर प्रशासन में वहाँ के 68 हजार से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण और रोज़गार देने के लिये हिमायत मिशन के अन्‍तर्गत 42 परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने पर काम चल रहा है।
  • इन युवाओं को 3 से 12 महीने की अवधि वाला कौशल विकास का निशुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाता है।
  • प्रशिक्षण के बाद सभी को रोज़गार देने की व्यवस्था भी की जा रही है।
  • जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में तथा इसके बाहर इस तरह के 63 प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाएंगे।
  • अब तक इन केंद्रों में लगभग 6 हज़ार लोगों ने पंजीकरण कराया है।
  • लगभग 4 हज़ार लोगों को अब तक निजी क्षेत्र में रोज़गार उपलब्ध कराया जा चुका है।

गाँव वापसी कार्यक्रम का दूसरा चरण: इसके साथ ही जम्‍मू-कश्‍मीर प्रशासन गाँव वापसी कार्यक्रम का दूसरा चरण शुरू करने जा रहा है। 25 से 30 नवंबर तक आयोजित किये जाने वाले इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का उद्देश्‍य पंचायतों का सशक्तीकरण और विकास करना है। इसके तहत श्रम शक्ति कल्‍याण, शत- प्रतिशत लाभा‍र्थियों को लाभान्‍वित करना और ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को प्रोत्‍साहन देते हुए ग्रामीणों की आय दुगुनी करने में पंचायतों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।

प्रशासनिक परिषद का गठन: केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सरकारी कामकाज निपटाने के लिये प्रशासनिक परिषद गठित की गई है। उपराज्यपाल गिरीश चन्द्र मुर्मू इस परिषद के अध्यक्ष हैं। मुख्य सचिव प्रशासनिक परिषद के सचिव होंगे। इसके अलावा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल के दो सलाहकारों को विभिन्न सरकारी विभागों का प्रभार सौंपा गया है। विदित हो कि के.के. शर्मा और फारूख खान को 14 नवंबर को उपराज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया था।


गोंडावन के आवास स्थलों का संरक्षण

राजस्थान के राज्य पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) को संरक्षित करने के लिये भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड ने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के प्राणिशास्त्र विभाग के नेतृत्व में तीन वर्षीय परियोजना को मंजूरी प्रदान की है। इस परियोजना पर 26 लाख रुपए खर्च किये जाएंगे।

  • गोडावण की प्रमुख आश्रय स्थली माने जाने वाले बाड़मेर जैसलमेर के राष्ट्रीय मरु उद्यान के कुल 3162 वर्ग किमी. क्षेत्र में गोडावण पर खतरा लगातार बढ़ रहा है।
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों की टीम ने गोडावण संरक्षण व स्टेटस के लिये डीएनपी क्षेत्र के 34 आवास क्षेत्रों में सेम्पल आधारित सर्वे किया।
  • सर्वे के अनुसार गोडावण की संख्या का घनत्व क्षेत्र में 0.86 प्रति 100 वर्ग किमी में एक से भी कम है। इसमें गोडावण की संख्या 70 से 169 तक संभावित मानी गई है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त जातियों की रेड डाटा लिस्ट में गोडावण को गंभीर रूप से विलुप्तप्राय की श्रेणी में रखा गया है।
  • इस प्रकार के विलुप्त हो रहे वन्यजीव पर शोध और संरक्षण की जिम्मेदारी पहली बार किसी स्थानीय विश्वविद्यालय को सौपी गई है।
  • गोडावण मुख्य रूप जैसलमेर जिले के डीएनपी सेंचुरी के सुदासरी, गजेई माता व आसपास के इलाकों में से चांधन, खेतोलाई, पोकरण व रामदेवरा में विचरण करते हैं। यहाँ भी उनकी संख्या दिनोंदिन घटते जाना चिंता का विषय है।

इस नए प्रोजेक्ट के तहत जैसलमेर में वर्तमान में गोडावण की संख्या का विवरण और स्टेटस, रिमोट सेंसिंग और GIS का प्रयोग करते हुए सैटेलाइट इमेज़ की सहायता से गोडावण के लिये उपयुक्त आवास स्थल का मैप तैयार किया जाएगा। संभावित खतरों की पहचान और उनके समाधान पर शोध किया जाएगा। ये शोध गोडावण के संरक्षण में सहायक होंगे।


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