डेली न्यूज़ (23 Jul, 2019)



मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

22 जुलाई, 2019 को राज्यसभा ने मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 [The Protection of Human Rights (Amendment) Bill] पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • हालिया संशोधन के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।
  • राज्य आयोग के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 2 से 3 किया जाएगा, जिसमें एक महिला सदस्य भी होगी।
  • मानवाधिकार आयोग में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को भी सदस्यों के रूप में सम्मिलित किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से कम करके 3 वर्ष किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के भी पात्र होंगे।
  • दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र से भिन्न अन्य संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा निर्वहन किये जा रहे मानवाधिकारों संबंधी मामलों को राज्य आयोगों को प्रदत्त किया जा सके, दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में आयोग द्वारा कार्यवाही की जाएगी।

विस्तार में पढ़िये..

स्रोत: पी.आई.बी.


चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण

चर्चा में क्यों?

22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre SHAR: SDSC-SHAR) से चंद्रयान-2 अंतरिक्षयान को भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV) मार्क III से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • यह अंतरिक्षयान इस समय धरती के निकटतम बिंदु 169.7 किलोमीटर और धरती से दूरस्‍थ बिंदु 45,475 किलोमीटर पर पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगा रहा है।
  • यह उड़ान GSLV मार्क III की प्रथम परिचालन उड़ान है।
  • उल्लेखनीय है कि इसका प्रक्षेपण 15 जुलाई, 2019 को ही किया जाना था लेकिन कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण प्रक्षेपण के कुछ घंटे पहले इसे रोक दिया गया।
  • अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण यान से पृथक होने के तुरंत बाद अंतरिक्ष यान की सौर शृंखला यानी सोलर ऐरे (Solar Array) स्‍वचालित रूप से तैनात हो गई तथा बंगलुरु स्थित इसरो टेलिमिट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISRO Telemetry, Tracking and Command Network- ISTRAC) ने अंतरिक्ष यान पर सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • आने वाले दिनों में चंद्रयान-2 की ऑनबोर्ड प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करते हुए सिलसिलेवार ढंग से ऑर्बिट में प्रक्रिया संचालित की जाएगी।

Mission Sequence

GSLV मार्क- III

  • GSLV मार्क III इसरो द्वारा विकसित किया गया उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। इसके द्वारा भारत के 4 टन श्रेणी के भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा। इस प्रकार भारत उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में पूर्णतः आत्मनिर्भर हो जाएगा।
  • GLSV मार्क III की ऊँचाई 43.43 मी. और लिफ्ट ऑफ मास 640 टन है। इसमें तीन चरण हैं जिनमें स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन ‘CE-20’ का प्रयोग किया जाएगा।
  • हाल ही में नवंबर 2018 में GSAT-29 संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये GSLV मार्क-III D2 प्रक्षेपण यान का उपयोग किया गया था।
  • इसरो के पास वर्तमान में केवल 2.2 टन वज़न तक के पेलोड को लॉन्च करने की क्षमता है और इससे ज़्यादा वज़न के प्रक्षेपण हेतु उसे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • GSLV मार्क-3 भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचन यान होगा जो चार टन वज़नी संचार उपग्रहों को 36,000 किलोमीटर ऊँचाई वाली भू-स्थिर (Geosynchronous) कक्षा में स्थापित कर सकेगा। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में GSLV मार्क-II की क्षमता लगभग 2 टन है।
  • GSLV मार्क III की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें भारतीय क्रायोजेनिक इंजन के तीसरे चरण का उपयोग किया गया है तथा वर्तमान GSLV की तुलना में इसमें उच्च पेलोड ले जाने की क्षमता है।

GSLV Mk

चंद्रयान-2 अभियान

  • यह भारत का चंद्रमा पर दूसरा मिशन है।
  • इसमें पूरी तरह से स्वदेशी ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) का इस्तेमाल किया गया है। रोवर (प्रज्ञान) लैंडर (विक्रम) के अंदर स्थित है।

Vikram lander

  • चंद्रयान-2 मिशन का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को विकसित करना तथा इसका प्रदर्शन करना है। इसमें चंद्रमा मिशन क्षमता, चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग और चंद्रमा की सतह पर चलना शामिल हैं।
  • इस मिशन द्वारा प्राप्त जानकारी से चंद्रमा की भौगोलिक स्थिति, खनिज, सतह की रासायनिक संरचना, ताप, भौगोलिक गुण तथा परिमण्डल के अध्ययन से चंद्रमा की उत्पत्ति एवं विकास की समझ बेहतर होगी।

Pragyan Rover

  • पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने तथा चंद्रमा के प्रभाव वाले क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद चंद्रयान-2 की प्रणोदन प्रणाली प्रज्ज्वलित हो जाएगी ताकि यान की गति को कम किया जा सके। इससे यह चंद्रमा की प्राथमिक कक्षा में प्रवेश करने में सक्षम होगा। इसके बाद कई तकनीकी कार्यों के अंतर्गत चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर चंद्रयान-2 की वृत्ताकार कक्षा स्थापित हो जाएगी।
  • इसके बाद लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो कर 100 कि.मी. x 30 कि.मी. की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। कई जटिल तकनीकी प्रक्रियाओं के बाद लैंडर 07 सितंबर, 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करेगा।
  • इसके बाद रोवर, लैंडर से अलग हो जाएगा और चंद्रमा की सतह पर एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक परीक्षण करेगा। लैंडर का कार्यकाल भी एक चंद्र दिवस के बराबर है। ऑर्बिटर एक साल की अवधि के लिये अपना मिशन जारी रखेगा।

Orbiter

अन्य स्मरणीय तथ्य

  • ऑर्बिटर का वज़न लगभग 2,369 किलोग्राम, जबकि लैंडर तथा रोवर के वज़न क्रमशः 1,477 किलोग्राम एवं 26 किलोग्राम है।
  • रोवर 500 मीटर तक की यात्रा कर सकता है। इसके लिये यह रोवर में लगे सोलर पैनल से ऊर्जा प्राप्त करेगा।
  • चंद्रयान-2 में कई पैलोड भी लगे हैं जो चंद्रमा की उत्पत्ति एवं विकास के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
  • ऑर्बिटर में 8, लैंडर में 3 तथा रोवर में 2 पैलोड लगे हैं। ऑर्बिटर पैलोड 100 किलोमीटर की कक्षा से रिमोर्ट सेंसिंग करेगा, जबकि लैंडर एवं रोवर पैलोड लैंडिंग साइट के निकट मापन कार्य करेंगे।
  • चंद्रयान-2 मिशन का तीसरा महत्त्वपूर्ण आयाम पृथ्वी पर स्थापित तकनीकी हैं। इनके माध्यम से अंतरिक्ष यान से वैज्ञानिक आँकड़ों एवं सभी उपकरणों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। ये अंतरिक्ष यान को रेडियो कमांड भी भेजेंगी।
  • चंद्रयान-2 के पृथ्वी पर स्थित तकनीकी सुविधाओं में शामिल हैं- इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (Indian Deep Space Network), अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र (Spacecraft Control Centre) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा केंद्र (Indian Space Science Data Centre)।

स्रोत: PIB


भारत में काला धन और उसके निर्धारण की कठिनाइयाँ

संदर्भ

हाल ही में वित्त पर स्थाई समिति (Standing Committee on Finance) ने देश के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर काले धन से संबंधी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें निष्कर्ष के तौर पर यह बताया गया है कि हमारे पास भारत या विदेश में उपलब्ध काले धन की मात्रा को निर्धारित करने का कोई विश्वसनीय तरीका मौजूद नहीं है।

क्या होता है काला धन?

अर्थशास्त्र में काले धन की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, कुछ लोग इसे समानांतर अर्थव्यवस्था के नाम से जानते हैं तो कुछ इसे काली आय, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था जैसे नामों से भी पुकारते हैं। यदि सरल शब्दों में इसे परिभाषित करने का प्रयास करें तो कहा जा सकता है कि संभवतः काला धन वह आय होती है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है। काले धन को मुख्यतः दो श्रेणियों से प्राप्त किया जा सकता है:

1. गैर कानूनी गतिविधियों से, और

2. कानूनी परंतु असूचित गतिविधियों से।

उपरोक्त दोनों श्रेणियों में पहली श्रेणी ज़्यादा स्पष्ट है, क्योंकि जो आय गैर-कानूनी गतिविधियों से कमाई जाती है। वह सामान्यतः कर अधिकारियों से छुपी होती है और इसलिये उसे काला धन कहा जाता है। दूसरी श्रेणी में उस आय को सम्मिलित किया जाता है जो कमाई तो कानूनी गतिविधियों से जाती है, परंतु उसके बारे में कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिये मान लेते हैं कि यदि ज़मीन के एक टुकड़े को बेचा जाता है और उसका 60 प्रतिशत भुगतान चेक के माध्यम से किया जाता है तथा शेष 40 प्रतिशत भुगतान नकद, ऐसी स्थिति में यदि यह राशि प्राप्त करने वाला व्यक्ति कर विभाग को मात्र 60 प्रतिशत की ही जानकारी देता है और शेष 40 प्रतिशत को छुपा लेता है तो इसे दूसरी श्रेणी से प्राप्त काला धन कहा जाएगा। देश भर में लगभग सभी छोटी दुकानें नकद में ही व्यापार करती हैं, जिसके कारण पारदर्शी रूप से उनके लाभ की गणना करना काफी कठिन होता है।

इसे मापना इतना कठिन क्यों है?

  • समिति की रिपोर्ट के अनुसार रियल एस्टेट, खनन, औषधीय, तंबाकू, फिल्म तथा टेलीविज़न कुछ ऐसे प्रमुख उद्योग हैं जहाँ काले धन की अधिकता पाई जाती है। रिपोर्ट में ज़ोर देते हुए कहा गया है कि भारत के पास काले धन का अनुमान लगाने के लिये कोई भी सटीक और विश्वसनीय पद्धति नहीं है।
  • काले धन को मापने के लिये जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है वे मान्यताओं पर आधारित होती हैं और भारत में अभी तक इस संदर्भ में कार्यरत सभी एजेंसियों की मान्यताओं में एकरूपता नहीं आ पाई है।

प्रयोग की जाने वाली कुछ प्रमुख विधियाँ:

भारत में काले धन को मापने की दो प्रमुख विधियाँ विद्यमान हैं:

  • मौद्रिक विधि:

यह विधि भारत में काले धन को मापने की सबसे लोकप्रिय विधि है। इसके अंतर्गत यह माना जाता है कि काले धन की उपलब्धता तथा उसमें आने वाला परिवर्तन, किसी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत मुद्रा के प्रवाह और भंडारण को प्रतिबिंबित या प्रभावित करता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इस विधि के अंतर्गत काले धन को मापने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह पर नज़र रखना आवश्यक है।

  • इनपुट आधारित विधि:

इस विधि के अंतर्गत यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कितना पैसा जनरेट किया जाना चाहिये था और असल में कितना हुआ है। इन्हीं दोनों के अंतर को काला धन कहा जाता है। उदाहरण के लिये सबसे पहले एक शहर में निर्मित सभी घरों की गणना करें और यह अनुमान लगाएँ कि इन सभी के निर्माण में कितने सीमेंट की आवश्यकता होगी, इसके बाद यह जाँच करें कि कर रिकॉर्ड के अनुसार शहर में कितना सीमेंट बेचा गया है। यदि इन दोनों के मध्य अंतर आता है तो इसका अर्थ है कि कुछ धन कर अधिकारियों से छुपाया गया है और वह काला धन है।

काले धन पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयास:

  • विधायी कार्यवाही:

सरकार ने पहले ही इस संदर्भ में कई कानून बनाए हैं जो अर्थव्यवस्था में काले धन पर अंकुश लगाने और आर्थिक लेन-देन की सूचना देने को अनिवार्य बनाते हैं। इसमें वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) तथा कर आरोपण अधिनियम 2015, बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, एवं भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, आदि शामिल हैं।

  • पैन रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाना:

सरकार ने 2.5 लाख रुपए से अधिक के लेन-देन के लिये पैन (PAN) को अनिवार्य बना दिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य कर अधिकारियों से छुपाए जाने वाले लेन-देन को नियंत्रित करना है।

  • आयकर विभाग की कार्यवाही:

आयकर विभाग ने भी ऐसे लोगों की पहचान करना शुरू कर दिया है जो एक वित्तीय वर्ष में उच्च मूल्य के आर्थिक लेन-देन तो करते हैं, परंतु अपना रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं।

काला धन अर्थव्यवस्था के लिये किस प्रकार घातक है:

  • अर्थव्यवस्था में काले धन की अधिकता से देश में एक ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ (Parallel economy) सृजित हो जाती है जिसकी पहचान एवं नियमन अत्यंत मुश्किल होता है। इस प्रकार यह समानांतर अर्थव्यवस्था देश के आर्थिक विकास को चौपट कर देती है।
  • काला धन भूमिगत अर्थव्यवस्था सृजित करता है जिससे राष्ट्रीय आय एवं GDP से संबंधित आँकड़ों का सही आकलन कर पाना मुश्किल हो जाता है और अर्थव्यवस्था की गलत तस्वीर प्रस्तुत होती है। इससे नीति निर्माण में सटीकता नहीं आ पाती है।
  • काले धन के सृजन के दौरान कर वंचना (Tax Evasion) होती है जिससे सरकार को राजस्व हानि होती है। परिणामस्वरूप सरकार को उच्च करारोपण एवं ‘घाटे का वितपोषण’ (deficit financing) का सहारा लेना पड़ता है जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है।
  • काले धन का खर्च मनोरंजन, विलासिता, भ्रष्टाचार, चुनावों के वित्त पोषण, सट्टेबाजी अथवा आपराधिक गतिविधियों में किया जाता है जिससे एक तरफ अपराध एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है तो दूसरी तरफ उपयोग पैटर्न बिगड़ने से दुर्लभ संसाधनों का अपव्यय होता है।

आगे की राह:

  • आयकर विभाग को आय के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में व्यय की सीमा भी निर्धारित करनी चाहिये ताकि इससे अधिक व्यय करने पर वह स्वयमेव जाँच के दायरे में आ जाए।
  • शिक्षण संस्थाओं की कैपिटेशन फीस पर नज़र रखनी चाहिये। धर्मार्थ संस्थाओं के लिये वार्षिक रिटर्न अनिवार्य बनाना, इन संस्थाओं का पंजीकरण एवं विभिन्न एजेंसियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान की व्यवस्था होनी चाहिये।
  • एक मज़बूत रियल एस्टेट कानून बनाकर इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले काले धन पर रोक लगाई जा सकती है। (सरकार ने एक मज़बूत रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट पारित कर दिया है।)
  • चुनावों में काले धन का प्रयोग रोकने के लिये व्यापक कार्य योजना बनानी चाहिये क्योंकि यहाँ काला धन खपाना काफी आसान है जो काला धन के सृजन को प्रेरित करता है। राजनीतिक दलों को ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) के दायरे में लाना चाहिये एवं इनके बही-खातों की नियमित ऑडिटिंग करनी चाहिये।
  • हवाला करोबार पर अंकुश लगाना चाहिये।
  • आयकर विभाग के अधिकारों एवं स्वायत्तता में वृद्धि की जानी चाहिये।

यद्यपि वर्तमान में सरकार काला धन अधिनियम, बेनामी लेनदेन (संशोधन) अधिनियम, आय घोषणा योजना, विमुद्रीकरण, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसे कदमों के माध्यम से काला धन सृजन रोकने के प्रयास कर रही है, फिर भी उपर्युक्त सुझावों पर ध्यान देकर इन प्रयासों को और गति दी जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिये ट्रामा केयर सेंटर

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रामा केयर सुविधाओं के विकास के लिये क्षमता निर्माण’ (Capacity Building for Developing Trauma Care Facilities on National highways) योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रामा केयर सुविधाएँ (Trauma Care Facilities) स्थापित करने की दिशा में पहल की है।

प्रमुख बिंदु

  • इस योजना का समग्र उद्देश्य अखिल भारतीय स्तर पर ट्रामा केयर नेटवर्क विकसित करके सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों को कम करना है।
  • इस योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रत्येक 100 किमी पर एक ट्रामा सेंटर स्थापित किया जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान, लगभग 200 ट्रामा केयर सुविधाओं (Trauma Care Facilities-TCFs) की पहचान की गई थी और उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज़ प्रोजेक्ट

(WHO’s Global Burden of Disease Project)

  • इस परियोजना/प्रोजेक्ट के अनुसार, सड़क यातायात दुर्घटनाओं (Road Traffic Accidents-RTA) के कारण एक वर्ष में 1.27 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं।
  • सड़क यातायात के दौरान लगने वाली चोटें 5 से 44 वर्ष के लोगों की मौत के शीर्ष तीन कारणों में से एक हैं।
  • ऐसा अनुमान लगाया गया है कि यदि इस मामले में कोई तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है तो वर्ष 2030 तक मृत्यु का पाँचवाँ प्रमुख कारण सड़क दुर्घटनाएँ होंगी, जिससे प्रति वर्ष अनुमानतः 2.4 मिलियन लोगों की मृत्यु होगी।
  • पूरी दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मौतों में से 90% से अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, जिनके पास दुनिया के केवल 48% वाहन हैं।
  • भारत में भी आकस्मिक लगने वाली चोटें मृत्यु और रुग्णता (Morbidity) के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • यद्यपि भारत में दुनिया के कुल वाहनों का सिर्फ एक प्रतिशत ही है, लेकिन वैश्विक रूप से घटित कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 6% भारत में घटित होती हैं।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति

वर्ष 2017 के दौरान भारत में कुल 4,70,975 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं। इन दुर्घटनाओं में 4,64,910 लोग घायल हुए, जबकि 1,47,913 लोगों की मृत्यु हो गई।

  • भारत में प्रत्येक 1 मिनट में एक सड़क दुर्घटना होती है तथा इन दुर्घटनाओं के कारण प्रत्येक 3.5 मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
  • प्रत्येक एक घंटे में लगभग 17 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना के कारण होती है।\
  • सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारत को हर साल लगभग 4.07 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
  • भारतीय सड़कों पर प्रतिदिन 46 बच्चों की मौत हो जाती है।
  • पिछले दशक में सड़क दुर्घटना के कारण 50 लाख से अधिक लोगों को गंभीर चोटें आईं या वे दुर्घटना के कारण अपंग हो गए तथा 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
  • सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली इन मौतों को 50% तक कम किया जा सकता था यदि घायलों को त्वरित सहायता मिल पाती।

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भारत की खतरनाक सड़कें

स्रोत: पी.आई.बी.


दक्षिण अफ्रीका का कार्बन टैक्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण अफ्रीका ने कार्बन टैक्स (Carbon Tax) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु :

  • दक्षिण अफ्रीका द्वारा यह टैक्स 1 जून, 2019 को लागू किया गया था।
  • इसे लागू करने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
    • ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करना, और
    • कम कार्बन वाले विकल्पों पर निवेश को बढ़ावा देना है।
  • इसके उपयोग से कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) में वर्ष 2020 तक 34 प्रतिशत और वर्ष 2025 तक 42 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • दक्षिण अफ्रीका ने प्रदूषण के मामले में यूनाइटेड किंगडम और फ्राँस को भी पीछे छोड़ दिया है और वहाँ के लैंडफिल जल्द ही भरने वाले हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसे इस प्रकार के सख्त और महत्त्वपूर्ण कदमों की कितनी ज़्यादा आवश्यकता है।

carbon tax

क्या है कार्बन टैक्स?

  • कार्बन टैक्स प्रदूषण पर नियंत्रण करने का एक साधन है, जिसमें कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं उपयोग पर शुल्क लगाया जाता है।
  • सरकार कार्बन के उत्सर्जन पर प्रतिटन मूल्य निर्धारित करती है और फिर इसे बिजली, प्राकृतिक गैस या तेल पर टैक्स के रूप में परिवर्तित कर देती है। क्योंकि यह टैक्स अधिक कार्बन उत्सर्जक ईंधन के उपयोग को महँगा कर देता है। अतः यह ऐसे ईंधनों के प्रयोग को हतोत्साहित करता है एवं ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देता है।

दक्षिण अफ्रीका का कार्बन टैक्स मॉडल:

  • वर्ष 2030 तक के लिये तैयार किया गया यह मॉडल दो चरणों में प्रभावी रूप से लागू होगा। इसका पहला चरण लागू होने की तिथि से 1 दिसंबर, 2022 तक चलेगा और दूसरा चरण वर्ष 2023 से वर्ष 2030 तक चलेगा।
  • आरंभिक स्तर पर कर की दर 120 रेंड (दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा) अर्थात् 8.34 डॉलर प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड निर्धारित की गई है।
  • अपने कर के बोझ को कम करने के लिये कंपनियाँ नवीकरणीय ऊर्जा, बायो गैस और अन्य विकल्पों पर निवेश कर सकती हैं।

कार्बन टैक्स का आधार

  • कार्बन टैक्स, नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के आर्थिक सिद्धांत (The Economic Principle of Negative Externalities) पर आधारित है।
  • एक्सटर्नलिटीज़ (Externalities) वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से प्राप्त लागत या लाभ (Costs or Benefits) हैं, जबकि नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ वैसे लाभ हैं जिनके लिये भुगतान नहीं किया जाता है।
  • जब जीवाश्म ईंधन के दहन से कोई व्यक्ति या समूह लाभ कमाता है तो होने वाले उत्सर्जन का नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है।
  • यही नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ है, अर्थात् उत्सर्जन के नकारात्मक प्रभाव के एवज़ में लाभ तो कमाया जा रहा है लेकिन इसके लिये कोई टैक्स नहीं दिया जा रहा है।
  • नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ का आर्थिक सिद्धांत मांग करता है कि ऐसा नहीं होना चाहिये और नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के एवज़ में भी टैक्स वसूला जाना चाहिये।

आगे की राह:

  • कार्बन टैक्स एक ऐसा विचार है जो अमीरों के लिये कम लेकिन गरीबों के लिये अधिक चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि इससे महँगाई बढ़ेगी। लेकिन इसका समाधान है ‘कर एवं लाभांश’ (Tax and Dividend) की नीति। पश्चिम में अर्थशास्त्रियों के मध्य
  • प्रचलित इस नीति में कहा गया है कि इस प्रकार के टैक्स से प्राप्त राशि से सरकार का खज़ाना भरने के बजाय समाज के वंचित लोगों में वितरित कर दी जानी चाहिये।
  • यदि नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग सस्ता एवं वहनीय होगा तो लोग स्वयं इसके उपयोग हेतु प्रोत्साहित होंगे। चूँकि जलवायु परिवर्तन वैश्विक तौर पर जन-जीवन को प्रभावित करता है, इसलिये विभिन्न देशों को अपने नीतिगत अनुभवों एवं
  • अनुसंधानों को साझा करना चाहिये, ताकि शमन नीति (Mitigation Policy) पर पर्याप्त चर्चा की जा सके।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


ओज़ोन प्रदूषण में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र नामक गैर-सरकारी संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली के वातावरण में पिछले एक साल के दौरान ओज़ोन के प्रदूषक कणों की मात्रा में लगभग डेढ़ गुना वृद्धि हुई है।

ओज़ोन क्या है?

  • ओज़ोन (Ozone-O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में बेहद कम मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी की सतह से 30-32 किमी. की ऊँचाई पर इसकी सांद्रता अधिक होती है। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस है।
  • वायुमंडल में ओज़ोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत ही कम है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओज़ोन अणु होते हैं।
  • जर्मन वैज्ञानिक क्रिश्चियन फ्रेडरिक श्योनबाइन ने 1839 में ओज़ोन गैस की खोज की थी।
  • इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे तीव्र गंध आती है। इस तीखी विशेष गंध के कारण इसका नाम ग्रीक शब्द 'ओजिन' से बना है, जिसका अर्थ है सूंघना।
  • यह अत्यधिक अस्थायी और प्रतिक्रियाशील गैस है। वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है।

अच्छी और बुरी ओज़ोन

ओज़ोन गैस पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल और सतही स्तर दोनों पर पाई जाती है। ओजोन अच्छी या बुरी दोनों प्रकार की हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कहाँ पाई जाती है।

  • ओज़ोन गैस समतापमंडल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है। यह वायुमंडल में मौज़ूद समस्त ओज़ोन का कुल 90 प्रतिशत है, इसे अच्छा ओज़ोन माना जाता है। यह एक सुरक्षा कवच के रूप में पाई जाती है जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। इसलिये इसे अच्छी ओज़ोन भी कहते हैं।
  • वायुमंडल के निम्नतम स्तर में पाई जाने वाली अर्थात् क्षोभमंडलीय ओज़ोन को ‘बुरी ओज़ोन’ (Bad Ozone) भी कहा जाता है।
  • यह ओज़ोन मानव निर्मित कारकों जैसे आंतरिक दहन इंजनों, औद्योगिक उत्सर्जन और बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण का परिणाम है। यह एक खतरनाक वायु-प्रदूषक के रूप में कार्य करती है, इसलिये इसे बुरी ओज़ोन कहते हैं।
  • रासायनिक रूप से समान होने पर भी दोनों स्थानों पर ओज़ोन की भूमिका अलग-अलग है।
  • समतापमंडल में यह पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (Utra-violet Radiation) से बचाती है। वहीँ क्षोभमंडल में ओज़ोन हानिकारक संदूषक (Pollutants) के रूप में कार्य करती है और बहुत कम मात्रा में होने के बावजूद मानव के फेफड़ों, तंतुओं तथा पेड़-पौधों को नुकसान पहुँचा सकती है।

कैसे निर्मित होती है सतही ओज़ोन

  • सतही ओज़ोन प्राथमिक प्रदूषक नहीं है बल्कि यह सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड), CO (कार्बन मोनोऑक्साइड) की रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण उत्पन्न होती है। जब तापमान में वृद्धि होती है, तो ओज़ोन के उत्पादन की दर भी बढ़ जाती है।

ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव

मानव स्वास्थ्य पर

Ozone Pollution effect

  • ओज़ोन के अंत:श्वसन पर सीने में दर्द, खाँसी और गले में दर्द सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • यह ब्रोन्काइटिस (Bronchitis), वातस्फीति (Emphysema) और अस्थमा की स्थिति को और बद्दतर सकता है।
  • इससे फेफड़ों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है और ओज़ोन के बार-बार संपर्क में आने से फेफड़ों के ऊतक स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते है।

पर्यावरण पर:

  • जब किसी संवेदनशील पौधे की पत्तियों में ओज़ोन अत्यधिक मात्र में प्रवेश करती है तो यह उस पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित कर सकती है तथा पौधे की वृद्धि को मंद कर सकती है।
  • ओजोन वनों, उद्यानों, वन्यजीवन इत्यादि सहित वनस्पति और पारिस्थितिक तंत्र को भी नुकसान पहुँचाती है।

ओज़ोन प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु किये प्रयास

भारत के प्रयास:

  1. राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक: इसके अंतर्गत ओज़ोन को आठ प्रमुख प्रदूषकों के रूप में चिह्नित किया गया है।
  2. वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR): जून 2015 में दिल्ली और मुंबई के लिये इसकी शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत भी ओज़ोन की निगरानी एक प्रदूषक के रूप में की जाती है।
  3. ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान/ग्रेप (Graded Response Action Plan-GRAP) दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region- NCR) के लिये की शुरुआत की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास

  • गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल (GothenBurg Protocol): इसका लक्ष्य अम्लीकरण (Acidification), सुपोषण (Eutrophication) और भू-स्तरीय ओज़ोन (Ground Level Ozone) को कम करना है और यह कन्वेंशन ऑन लॉन्ग-रेंज ट्रांस बाउंड्री एयर पॉल्यूशन का एक हिस्सा है।

निष्कर्ष:

  • ओज़ोन मानव स्वास्थ्य के लिये कितनी ज़्यादा हानिकारक है। ओज़ोन प्रदूषण लगातार हमारे वायुमंडल में अपने पैर पसारता जा रहा है और हमारे पास अब तक ओज़ोन प्रदूषण और मृत्यु दर के बीच संबंध ज्ञात करने ली लिये कोई निश्चित पद्धति भी नहीं है। ओज़ोन प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये इस विषय पर अधिक-से-अधिक अनुसंधान और महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय अपनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


JATAN: वर्चुअल म्यूज़ियम सॉफ्टवेयर

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) विभाग के तहत पुरातात्विक स्थल संग्रहालयों को JATAN सॉफ्टवेयर के माध्यम से डिजिटलीकृत करने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • JATAN एक सॉफ्टवेयर है, जो भारतीय संग्रहालयों के लिये डिजिटल संग्रह प्रबंधन प्रणाली (Digital Collection Management System) के निर्माण को सक्षम बनता है। यह पूरे देश भर के कई राष्ट्रीय संग्रहालयों में संचालित है।
  • इस सॉफ्टवेयर का मुख्य उद्देश्य संग्रहालयों में संरक्षित सभी वस्तुओं की डिजिटल छाप तैयार करना और शोधकर्त्ताओं तथा इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले अन्य लोगों को सहायता प्रदान करना है।
  • यह सॉफ्टवेयर पुणे स्थित सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (Centre for Development of Advanced Computing-C-DAC) द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
  • JATAN का उपयोग करके वस्तुओं और स्मारकों की जो डिजिटल छाप बनाई जाएगी उन्हें आसानी से लोगों तक पहुँचाने के लिये JATAN सॉफ्टवेयर को राष्ट्रीय डिजिटल कोष और पोर्टल (National Digital Repository and Portal) के साथ भी एकीकृत किया जाएगा।
  • C-DAC ने ‘दर्शक’ नामक एक मोबाइल आधारित एप्लिकेशन का भी निर्माण किया है जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों के मध्य संग्रहालय यात्रा के अनुभव को बेहतर बनाना है।
    • यह संग्रहालय की यात्रा करने वाले आगंतुकों को वस्तु के पास रखे क्यू.आर. (QR) कोड को स्कैन करके वस्तुओं या कलाकृतियों के बारे में सभी विवरण एकत्र करने की अनुमति देता है।

सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग

(Centre for Development of Advanced Computing-C-DAC)

  • C-DAC सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) का प्रमुख एक संगठन है।
  • भारत का पहला स्वदेशी सुपर कंप्यूटर, परम (PARAM) 8000 वर्ष 1991 में C-DAC द्वारा ही बनाया गया था।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण

(Archaeological Survey of India- ASI)

  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण राष्‍ट्र की सांस्‍कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्‍ट्रीय महत्व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्त्वीय स्‍थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है।
  • इसके अतिरिक्‍त प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्त्वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है।
  • यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है।
  • भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (23 July)

  • हाल ही में श्रीलंका के कोलंबो में संपन्न हुए नौवें सार्क फिल्म समारोह में बांग्ला फिल्म निर्माता कौशिक बसु की फिल्म नगरकीर्तन को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार से नवाज़ा गया। इसके अलावा इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक तथा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिला। भारतीय फिल्मों को कुल 6 पुरस्कार मिले। सार्क या दक्षेस का पूरा नाम दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation -SAARC) है और यह आठ दक्षिण एशियाई देशों का एक आर्थिक-भू-राजनीतिक संगठन है। इसके सदस्य देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं। सार्क की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के बीच सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, एक-दूसरे की समस्याओं को सुलझाने के लिये आपसी विश्वास और समझ विकसित करना है। सार्क का सचिवालय काठमांडू, नेपाल में है।
  • 23 जुलाई को देशभर में राष्ट्रीय प्रसारण दिवस का आयोजन किया जाता है। इसी दिन वर्ष 1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने मुंबई स्टेशन से रेडियो का प्रसारण शुरू किया था। इसे ऑल इंडिया रेडियो (AIR) के नाम से भी जाना जाता है और यह भारत की सरकारी रेडियो सेवा है। भारतीय प्रसारण सेवा को वर्ष 1935 तक इसी नाम से जाना जाता था, लेकिन वर्ष 1936 में इसका नाम परिवर्तित कर ऑल इंडिया रेडियो रखा गया। वर्ष 1957 में ऑल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी के नाम से पुकारा जाने लगा। आकाशवाणी के देशभर में करीब 414 स्टेशन हैं और देश के 99.19% हिस्से में इसकी पहुँच है। ऑल इंडिया रेडियो में 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण होता है।
  • भारत की कम दूरी की धाविका हिमा दास ने चेक गणराज्य के नोवो मेस्तो में 400 मीटर की दौड़ में सीज़न का अपना श्रेष्ठ समय 52.09 सेकंड निकालते हुए इस महीने में अपना पाँचवां स्वर्ण पदक जीता। वैसे 400 मीटर दूरी की रेस में उनका सर्वश्रेष्ठ समय 50.79 सेकंड है, जो उन्होंने जकार्ता ओलंपिक में निकाला था। गौरतलब है कि ढिंग एक्सप्रेस नाम से प्रसिद्ध हिमा दास ने इस महीने अपना पहला स्वर्ण पदक 2 जुलाई को पोलैंड में पोजवान एथलेटिक्स ग्रां प्री में 200 मीटर दौड़ में जीता था। इसके बाद पोलैंड में ही कुटनो मीट में 200 मीटर दौड़ में दूसरा स्वर्ण पदक जीता। 13 जुलाई को चेक गणराज्य में क्लादनो मीट में इसी दूरी को तय करते हुए तीसरा स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद उन्होंने चेक गणराज्य में ताबोर मीट में 200 मीटर की दूरी तय करते हुए चौथा स्वर्ण पदक जीता।
  • अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने भारत के सचिन तेंदुलकर को उनकी महान उपलब्धियों के लिये सम्मानित करते हुए हॉल ऑफ फेम में शामिल किया इस सम्मान को पाने वाले सचिन तेंदुलकर छठे भारतीय क्रिकेटर हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन के नाम कई रिकॉर्ड हैं जिनमें कुल 34357 रन और 100 शतक शामिल हैं। साथ ही उनके नाम 330 टेस्ट विकेट और 272 वनडे विकेट भी दर्ज हैं। उनसे पहले भारत की तरफ से यह सम्मान बिशन सिंह बेदी, कपिल देव, सुनील गावस्कर, अनिल कुंबले और राहुल द्रविड़ को मिल चुका है। इस वर्ष सचिन के अलावा ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेट टीम की पूर्व गेंदबाज़ कैथरीन फिट्जपैट्रिक और साउथ अफ्रीका के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ एलन डोनाल्ड को भी यह सम्मान दिया गया। ICC हॉल ऑफ फेम में उन्हीं खिलाड़ियों को शामिल करता है जिन्हें क्रिकेट को अलविदा किये कम-से-कम पाँच वर्ष हो चुके हैं। सचिन ने भारत के लिये अपना आखिरी टेस्ट मैच वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ नवंबर 2013 में खेला था।
  • भारत के पृथु गुप्ता देश के 64वें ग्रैंडमास्‍टर बन गए हैं। उन्‍होंने पुर्तगाल लीग-2019 के पाँचवें दौर में लेव यानकेलेविक को मात देकर 2500 अंकों को पार किया और यह कामयाबी हासिल की। पृथु गुप्ता ने यह कीर्तिमान 15 साल, 4 महीने और 10 दिन की उम्र में हासिल किया। ज्ञातव्य है कि डी. गुकेश भारत के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर हैं, वह 12 साल, सात महीने और 17 दिन की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने थे। विश्‍वनाथन आनंद भारत के पहले ग्रैंडमास्‍टर थे, जो 31 साल पहले वर्ष 1988 में इस मुकाम तक पहुँचे थे। लेकिन अगले 11 साल में केवल दो भारतीय- दिब्‍येंदु बरुआ और प्रवीण थिप्‍से ही ग्रैंडमास्‍टर का दर्जा हासिल कर पाए। इसके बाद यह संख्‍या तेज़ी से बढ़ी और नई सदी के पहले 19 वर्षों में 59 भारतीयों ने ग्रैंडमास्‍टर का दर्जा हासिल किया। वर्ष 2019 में अब तक 6 भारतीय ग्रैंडमास्‍टर बन चुके हैं। किसी खिलाड़ी को ग्रैंडमास्टर का खिताब शतरंज की सर्वोच्च संस्था विश्व शतरंज महासंघ द्वारा दिया जाता है। किसी शतरंज खिलाड़ी को ग्रैंडमास्टर बनने के लिये न्यूनतम 2500 अंक प्राप्त करने आवश्यक होते हैं।