भारत का निर्यात दोगुना करने की सिफारिश
चर्चा में क्यों?
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति ने भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को वर्ष 2025 तक दोगुना अर्थात् 1000 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने की सिफारिश की है। इस समिति का गठन अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला के नेतृत्व में किया गया था।
समिति की सिफारिशें
- समिति ने ‘एलिफेंट बॉण्ड्स’ जारी करने का सुझाव दिया है, जिसके अंतर्गत अघोषित आय की घोषणा करने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से उस राशि का आधा हिस्सा इन प्रतिभूतियों में निवेश करना होगा।
- ‘एलीफेंट बॉण्ड’ एक 25 साल का संप्रभु बॉण्ड है जिसमें अघोषित आय की घोषणा करने वाले लोग 50 प्रतिशत निवेश करने के लिये बाध्य होंगे।
- इस बॉण्ड से प्राप्त निधि का इस्तेमाल केवल अवसंरचना विकास से संबंधित परियोजनाओं के लिये किया जाएगा।
- कर की दरें : समित ने प्रभावी कॉर्पोरेट कर की दर कम करने, पूंजी की लागत में कमी लाने और विदेशी निवेश कोष के लिये विनियामक और कर ढाँचे को सरल बनाने की सिफारिश की है।
- समिति ने निर्यात-आयात बैंक (EXIM Bank) बैंक का पूंजीगत आधार वर्ष 2022 तक 20,000 करोड़ रुपए तक बढ़ाने की सिफारिश की है।
- मुक्त व्यापार समझौते: मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements-FTA’s) पर हस्ताक्षर करने से पहले उद्योग और MSMEs से इनपुट प्राप्त करना और उन्हें इसके लाभों के बारे में सचेत करना।
- मौजूदा समझौतों के गहन मूल्यांकन तथा भारतीय उद्योग की प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर इन समझौतों के प्रभाव की आवश्यकता।
- भविष्य में होने वाली FTA वार्ता और इस तरह के मूल्यांकन के आधार पर एक डेटाबेस को बनाए रखने के लिये उपचारात्मक उपायों पर विचार करने की सिफारिश भी की गई है।
- विश्व व्यापार संगठन के उपाय: राज्य सरकारों को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) के मानकों के अनुरूप समर्थन प्रदान कर निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करने के लिये निकटता से शामिल होने की आवश्यकता है।
- शुल्क संरचना (Tarrif Structure): शुल्क संरचना के संबंध में एक व्यापक निर्यात रणनीति तैयार करने और टैरिफ संरचना को युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की गई है।
- उद्योग-विशिष्ट सिफारिशों/सुझावों में शामिल हैं:
- कपड़ा और वस्त्र क्षेत्र: श्रम कानूनों जैसे औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act, 1947) में संशोधन, फर्म के आकार पर परिसीमन (Limitation) को हटाने और विनिर्माण फर्मों को आगे बढ़ने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- चिकित्सा पर्यटन: चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये एक अखिल भारतीय पर्यटन बोर्ड का गठन करने के साथ ही चिकित्सा वीजा व्यवस्था को सरल बनाया जाना चाहिये।
- कृषि निर्यात: कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम और कृषि उपज बाज़ार समिति (Agricultural Produce Market Committee-APMC) को समाप्त किया जाना चाहिये।
- चिकित्सा क्षेत्र : चिकित्सा उपकरणों के लिये एकल मंत्रालय और इस क्षेत्र के लिये अलग विनियमन स्थापित किया जाना चाहिये।
निर्यात में वृद्धि से लाभ
निर्यात को बढ़ावा देने से देश में रोज़गार सृजन होगा, विनिर्माण प्रोत्साहन मिलेगा और अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिलेगी।
सूखा नियंत्रक परियोजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों से देश के कई राज्यों में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee scheme-MGNREG) के अंतर्गत संचालित जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई से संबंधित बहुत सी सूखा-नियंत्रक परियोजनाएँ (Anti-Drought Projects) या तो अधूरी हैं या उनका निर्माण कार्य रुक गया हैं।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) ने मार्च और मई के बीच होने वाली मानसून-पूर्व वर्षा में 22% की कमी की भविष्यवाणी की थी। यह दर्शाता है कि मध्य, पूर्व और प्रायद्वीपीय भारत के कई जिलों में अत्यधिक शुष्क परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिस कारण से इस रिपोर्ट का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं जून-सितंबर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून पर भी एक अल नीनो का प्रभाव दिखने की आशंका जताई गई है।
अल-नीनो (EL-Nino) और भारतीय मानसून
- अल-नीनो एक जटिल मौसम तंत्र है, जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इस कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम में तेज़ी से परिवर्तन होते हैं।
- इस तंत्र में महासागरीय और वायुमंडलीय परिघटनाएँ शामिल होती हैं। पूर्वी प्रशांत महासागर में, यह पेरू के तट के निकट उष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है।
- अल-नीनो भूमध्यरेखीय उष्ण समुद्री धारा का विस्तार मात्र है, जो अस्थाई रूप से ठंडी पेरुवियन/हम्बोल्ट धारा पर प्रतिस्थापित हो जाती है। यह धारा पेरू तट के जल का तापमान 10डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है। इसके निम्नलिखित परिणाम होते हैं।
a. भूमध्यरेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण में विकृति;
b. समुद्री जल के वाष्पन में अनियमितता;
c. प्लवक की मात्रा में कमी, जिससे समुद्र में मछलियों की संख्या का घट जाना।
- अल-नीनो का शाब्दिक अर्थ ‘बालक ईसा’ है क्योंकि यह धारा दिसंबर के महीने में क्रिसमस के आसपास नज़र आती है। पेरू (दक्षिणी गोलार्द्ध ) में दिसंबर गर्मी का महीना होता है।
भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिये अल-नीनो का उपयोग होता है।
- पूरे देश में संचालित लगभग 7,90,000 सूखा-नियंत्रक कार्य जिनकी परियोजना लागत 417 करोड़ रूपए के आसपास है या तो अधूरे पड़े हैं या फिर उनका कार्य अवरुद्ध हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, अभी तक कुल 27000 कार्य ही पूर्ण हो पाए हैं। यह मंत्रालय मनरेगा के कार्यान्वयन की निगरानी भी करता है।
- कुछ ऐसे ही हालात अन्य सूखाग्रसित राज्यों में भी देखने को मिलते है। उदाहरण के लिये कर्नाटक में केवल सूखा-ग्रस्त योजना के अंतर्गत केवल 371 कार्य ही पूर्ण हो पाए है जबकि 19,965 कार्य अभी भी अपूर्ण है। महाराष्ट्र में 20 मई 2019 तक केवल 2038 कार्य ही पूर्ण हो पाए हैं जबकि 79,788 कार्य अभी भी अधूरे हैं।
- इस संदर्भ में सरकार का पक्ष यह है कि यह तय कर पाना बेहद कठिन है कि कितने (निश्चित समय) समय में किसी कार्य को पूरा किया जा सकता है, सभी कार्य प्रगति पर हैं और क्योंकि हर राज्य की भौगोलिक, राजनीतिक, और प्रशासनिक स्थितियाँ भिन्न होती है, ऐसे में समय-सीमा का निर्धारण करना कठिन है।
- ये आँकड़ें दर्शाते हैं कि मौसम विज्ञानियों द्वारा व्यक्त गंभीर पूर्वानुमानों के बावजूद जल संरक्षण, पारंपरिक जल निकायों के जीर्णोद्धार, वृक्षारोपण और सूक्ष्म सिंचाई कार्यों सहित सूखा नियंत्रक उपायों पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।उदाहरण के लिये महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत में सूखा-नियंत्रक उपायों के स्थान पर निजी-भूमि पर कार्य करने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है एवं अमरावती में केवल 89 सामुदायिक सूखा नियंत्रण कार्यों को पूरा किया गया है, जबकि 5875 कार्य या तो अपूर्ण है या तो निरस्त हो चुके हैं।
इसके विपरीत यहाँ व्यक्तिगत भूमि पर न्यूनतम 2,117 कार्य पूरे हो गए हैं और 17, 983 अपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
पिछले कुछ वर्षों में सामुदायिक भूमि पर बड़े स्तर पर बहुत कम काम हुए हैं। इसकी तुलना में व्यक्तिगत या निजी भूमि पर बहुत अधिक आधारिट संरचना विकास कार्य हुए हैं। मनरेगा जैसी रोज़गार गारंटी योजनाओं के लिये वित्त के अपर्याप्त आवंटन तथा इन योजनाओं के तहत दी जाने वाली कम मज़दूरी को सामुदायिक स्तर के कार्यों पर अधिक ध्यान नहीं दिये जाने और कई परियोजनाओं के पूरा न होने के कारणों में शामिल किया जा सकता है। स्पष्ट रूप से इस सम्बन्ध में अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ताकि देश की आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देने के साथ-साथ बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति को भी सुनिश्चित किया जा सकें।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
‘सभी जानवर इच्छा से पलायन नहीं करते’ अभियान
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण भारत और भारत के वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau- WCCB) ने एक जागरूकता अभियान ‘सभी जानवर इच्छा से पलायन नहीं करते’ शुरू किया है। गौरतलब है कि यह अभियान देश भर के प्रमुख हवाई अड्डों पर संचालित किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- अभिनेत्री, निर्माता, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की सद्भावना दूत और हाल ही में नियुक्त संयुक्त राष्ट्र महासचिव की एसडीजी दूत दीया मिर्जा ने इस अभियान की शुरूआत की।
- वन्य जीवों को दुनिया भर में खतरे का सामना करना पड़ रहा है और दुनिया भर के अवैध बाज़ारों में भारत की वनस्पति और जीव जंतुओं की मांग लगातार जारी है। वन्य जीवों के अवैध व्यापार के कारण कई प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पर है। दुनिया भर में संगठित वन्य जीव अपराध की श्रृंखलाएँ फैलती जा रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप न केवल यह उद्योग फल-फूल रहा है, बल्कि भारत में वन्य जीवों के अवैध व्यापार में काफी तेज़ी भी आई है।
- ‘सभी जानवर इच्छा से पलायन नहीं करते’ (Not All Animals Migrate by Choice) अभियान का उद्देश्य लोगों के मध्य जागरूकता का प्रसार करना और वन्य जीवों के संरक्षण तथा उनकी रक्षा, तस्करी रोकने एवं वन्य जीव उत्पादों की मांग में कटौती लाने हेतु जन समर्थन जुटाना है।
- यह अभियान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के एक वैश्विक अभियान, ‘जीवन के लिये जंगल’ (Wild for Life) के ज़रिये वन्य जीवों के गैर-कानूनी व्यापार पर रोक लगाने हेतु विश्वव्यापी कार्रवाई का पूरक है।
- अभियान के पहले चरण के अंतर्गत बाघ, पैंगोलिन, स्टार कछुआ और टाउकेई छिपकली को चुना गया है, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अवैध व्यापार के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है।
- बाघ का उसकी खाल, हडि्डयों और शरीर के अंगों के लिये, छिपकली का उसके मीट और उसकी खाल का परंपरागत दवाओं में, स्टार कछुए का मीट और पालने के लिये तथा टाउकेई छिपकली का दक्षिण-पूर्व एशिया खासतौर से चीन के बाज़ारों में परंपरागत दवाओं हेतु अवैध व्यापार किया जाता है।
- दूसरे चरण के अंतर्गत इससे अधिक खतरे वाली प्रजातियों को शामिल करते हुए तस्करी के अन्य मार्गों का पता लगाया जाएगा।
- हाल में हवाई अड्डों पर गैर-कानूनी तरीके से व्यापार करके लाई गई प्रजातियों और उनके विभिन्न अंगों को जब्त करने के संबंध में मीडिया में खबरें आती रही हैं जो इस बात का संकेत है कि वन्य जीवों की तस्करी हो रही है।
- हवाई अड्डों के रास्ते तस्करी करके लाए जाने वाले वन्य जीवों की प्रमुख प्रजातियों में स्टार कछुए, पक्षी, शहतूत, शोल, बाघ और तेंदुए के विभिन्न अंग, हाथीदांत, गैंडे के सींग, पैंगोलिन एवं पैंगोलिन की खाल, सीपियाँ, समुद्री घोड़ा, सी कुकुम्बर, रेंगने वाले जंतुओं की खालें, जीवित सांप, छिपकलियाँ, मूंगा तथा औषधीय जड़ी-बूटियाँ शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme -UN Environment) एक अग्रणी वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जो वैश्विक पर्यावरण कार्य-सूची (Agenda) का निर्धारण करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के तहत सतत् विकास के पर्यावरणीय आयाम के सुसंगत कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण के लिये एक आधिकारिक सलाहकार के रूप में कार्य करता है।
- इसकी स्थापना 5 जून, 1972 को की गई थी।
- इसका मुख्यालय नैरोबी, केन्या (Nairobi, Kenya) में है।
वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB)
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन भारत सरकार द्वारा स्थापित एक सांविधिक बहु अनुशासनिक (Multi-Disciplinary) इकाई है।
- ब्यूरो का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई एवं जबलपुर में पाँच क्षेत्रीय कार्यालय; गुवाहाटी, अमृतसर और कोचीन में तीन उप क्षेत्रीय कार्यालय और रामनाथपुरम, गोरखपुर, मोतिहारी, नाथूला एवं मोरेह में पाँच सीमा ईकाइयाँ अवस्थित हैं|
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (Wild Life Protection Act), 1972 की धारा 38 (Z) के तहत, ब्यूरो को निम्नलिखित कार्यों के लिये अधिकृत किया गया है:
- अपराधियों को गिरफ्तार करने हेतु संगठित वन्यजीव अपराध गतिविधियों से संबंधित सूचना/जानकारी इक्कठा करने, उसका विश्लेषण करने व उसे राज्यों व अन्य प्रवर्तन एजेंसियों को प्रेषित करने के लिये।
- एक केंद्रीकृत वन्यजीव अपराध डेटा बैंक स्थापित करने के लिये।
- अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के संबंध में विभिन्न एजेंसियों द्वारा समन्वित कार्रवाई करवाने के लिये।
- संबंधित विदेशी व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को वन्यजीव अपराध नियंत्रण में समन्वय व सामूहिक कार्यवाही हेतु सहायता प्रदान करने के लिये।
- वन्यजीव अपराधों में वैज्ञानिक और पेशेवर जाँच के लिये वन्यजीव अपराध प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता निर्माण एवं वन्यजीव अपराधों से संबंधित मुकदमों में सफलता सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की सहायता करने के लिये।
- भारत सरकार को वन्यजीव अपराध संबंधित मुद्दों, जिनका राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव हो, पर प्रासंगिक नीति व कानूनों के संदर्भ में सलाह देने के लिये।
- यह कस्टम अधिकारियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wild Life Protection Act), CITES और आयात-निर्यात नीति (EXIM Policy) के प्रावधानों के अनुसार वनस्पति व जीवो की खेप के निरीक्षण में भी सहायता व सलाह प्रदान करता है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- देश की पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वन्य प्राणियों, पक्षियों और पादपों के संरक्षण के लिये तथा उनसे संबंधित या प्रासंगिक या आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये यह अधिनियम बनाया गया था।
- यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू है। इस अधिनियम का उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है।
- भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्य जीवन तथा उसके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह अधिनियम लागू किया। इसे जनवरी 2003 में संशोधित किया गया तथा कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं ज़ुर्माने को और अधिक कठोर बना दिया गया।
इसमें कुल छह अनुसूचियाँ हैं:
अनसूची-1
- इस अनुसूची में 43 वन्यजीव शामिल हैं। इनमें सूअर से लेकर कई तरह के हिरण, बंदर, भालू, चिंकारा, तेंदुआ, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियाँ, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय पर पाए जाने वाले अनेक जानवर शामिल हैं। इसके अलावा इसमें कई जलीय जंतु और सरीसृप भी शामिल हैं। इस अनुसूची के चार भाग हैं और इसमें शामिल जीवों का शिकार करने पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 तथा धारा 62 के तहत दंड मिल सकता है।
अनुसूची-2
- इस अनुसूची में शामिल वन्य जंतुओं के शिकार पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 और धारा 62 के तहत सज़ा का प्रावधान है। इस सूची में कई तरह के बंदर, लंगूर, साही, जंगली कुत्ता, गिरगिट आदि शामिल हैं। इनके अलावा अन्य कई तरह के जानवर भी इसमें शामिल हैं।
- इन दोनों अनुसूचियों के तहत आने वाले जानवरों का शिकार करने पर कम-से-कम तीन साल और अधिकतम सात साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है।
- कम-से-कम ज़ुर्माना 10 हज़ार रुपए और अधिकतम ज़ुर्माना 25 लाख रुपए है।
- दूसरी बार अपराध करने पर भी इतनी ही सज़ा का प्रावधान है, लेकिन न्यूनतम ज़ुर्माना 25 हज़ार रुपए है।
अनुसूची-3 और अनुसूची-4:
- इसके तहत वन्य जानवरों को संरक्षण प्रदान किया जाता है लेकिन इस सूची में आने वाले जानवरों और पक्षियों के शिकार पर दंड बहुत कम है।
अनुसूची-5:
- इस सूची में उन जानवरों को शामिल किया गया है, जिनका शिकार हो सकता है।
अनुसूची-6:
- इसमें दुर्लभ पौधों और पेड़ों की खेती और रोपण पर रोक है।
क्या खास है इस कानून में?
- वन्यजीव ( संरक्षण) अधिनियम, 1972 के उपबंधों के अंतर्गत वन्य जीवों को शिकार और वाणिज्यिक शोषण के विरुद्ध विधिक सुरक्षा दी गई है।
- संरक्षण और खतरे की स्थिति के अनुसार वन्य जीवों को अधिनियम की विभिन्न अनुसूचियों में शामिल किया जाता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में इसके उपबंधों का अतिक्रमण करने संबंधी अपराध के लिये दंड का प्रावधान है।
- वन्यजीव अपराध हेतु प्रयोग में लाए गए किसी उपकरण, वाहन अथवा हथियार को जब्त करने का भी प्रावधान है।
- वन्य जीवों और उनके पर्यावासों की सुरक्षा के लिये देशभर में महत्त्वपूर्ण पर्यावासों को शामिल करते हुए सुरक्षित क्षेत्र अर्थात् राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व सृजित किये गए हैं।
- वन्य जीवों के अवैध शिकार और वन्यजीवों तथा उनके उत्पादों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण संबंधी कानून के प्रवर्तन के सुदृढ़ीकरण हेतु वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की गई है।
- वन्यजीव अपराधियों को पकड़ने और उन पर मुकदमा चलाने के लिये सीबीआई को अधिकार दिये गए हैं।
स्रोत- पीआईबी
सर्वोच्च न्यायालय के सभी मंज़ूर पदों पर नियुक्ति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चार न्यायाधीशों के नाम को मंज़ूरी देते हुए न्यायालय में न्यायाधीशों की रिक्तियों (30+1) को पूर्ण करने के आदेश दिये हैं।
प्रमुख बिंदु
- सरकार द्वारा न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, ए. एस. बोपन्ना, बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नामों को मंज़ूरी दी गई है ।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 124 (Article 124) भारत के राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के कोलेज़ियम द्वारा सरकार के पास वरिष्ठ न्यायाधीशों के नाम भेजे जाते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया जाता है। अंतिम बार वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को 25 से बढ़ाकर 31 किया गया था। जिसमें मुख्य-न्यायाधीश भी शामिल था।
भारतीय संविधान में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना से सम्बंधित प्रावधान
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है। इसी तरह अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी होती है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश का परामर्श आवश्यक है।
- राष्ट्रपति के आदेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो। इस आदेश को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत (यानी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन में उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। उसे हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या सिद्ध कदाचार होना चाहिये।
भारत में कोलेजियम प्रणाली (Collegium system in India)
- कोलेजियम में सदस्यों की संख्या 5 होती है।
- पाँच सदस्यों में से एक भारत के मुख्य-न्यायाधीश और चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में इस मंडल की आम सहमति होनी चाहिये। यदि कोलेजियम के के दो न्यायाधीश किसी न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध हैं, तो राष्ट्रपति के समक्ष नियुक्ति की सलाह नहीं दी जाएगी। कोलेजियम के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का निर्णय सदैव शामिल होना चाहिये।
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स।
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (23 May)
- 21 और 22 मई को किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक हुई। इस बैठक में आतंकवाद सहित विभिन्न सामयिक मुद्दों पर चर्चा करने के अलावा विदेश मंत्रियों की परिषद ने अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महत्त्व के शीर्ष मुद्दों पर भी विचार किया। इसके अलावा बिश्केक में 13-14 जून को होने जा रहे SCO शिखर सम्मेलन की तैयारियों की समीक्षा भी की गई। ज्ञातव्य है कि भारत 2017 में इस समूह का पूर्णकालिक सदस्य बना था और उसके साथ पाकिस्तान को भी SCO की सदस्यता प्रदान की गई थी। भारत SCO तथा इसके क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी ढाँचे (RATS) के साथ सुरक्षा संबंधी सहयोग को और मजबूत करना चाहता है, क्योंकि इसके दायित्वों में सुरक्षा एवं रक्षा संबंधी मुद्दों का समाधान करना शामिल है। गौरतलब है कि पिछले महीने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिश्केक में SCO के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया था। SCO की स्थापना वर्ष 2001 में शंघाई में संपन्न एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिस्तान, कज़ाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने की थी।
- रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल ने विशेषीकृत पर्यवेक्षी और नियामकीय कैडर (Specialised Supervisory & Regulatory Cadre) सृजित करने का फैसला किया है। इसका उद्देश्य वाणिज्यिक बैंकों, शहरी सहकारी बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निगरानी तथा नियमन व्यवस्था को मज़बूत करना है। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक में इस आशय का निर्णय किया गया। रिज़र्व बैंक के निदेशक मंडल ने मौजूदा आर्थिक स्थिति, वैश्विक तथा घरेलू चुनौतियों तथा विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रीय बैंक के कामकाज की समीक्षा करने के दौरान यह निर्णय लिया।
- केंद्र सरकार ने नए मत्स्य मंत्रालय का गठन कर दिया गया है। वर्तमान वर्ष के आम बजट में इसके गठन का ऐलान किया गया था। हरियाणा कैडर की IAS अधिकारी रजनी सेखरी सिब्बल को इसका सचिव नियुक्त किया गया है। ज्ञातव्य है कि अब तक मत्स्य पालन विभाग कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आता था। इस मंत्रालय के पशुपालन और डेयरी विभाग के सचिव के तहत मत्स्य विभाग काम करता था। केंद्र सरकार ने मत्स्य पालन में अपार संभावनाओं के मद्देनज़र इसके लिये एक अलग मंत्रालय गठित करने का फैसला किया था। वैसे भी भारत वैश्विक स्तर पर समुद्री उत्पादों के निर्यात में अग्रणी देशों में शामिल है। भारत की लगभग 7500 किमी. लंबी समुद्री सीमा है, जिसमें मत्स्य पालन की वृहद् संभावनाएँ हैं।
- इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को विश्व के इस तीसरे बड़े लोकतंत्र का फिर से राष्ट्रपति चुना गया है। इंडोनेशिया के निर्वाचन आयोग के अनुसार इंडोनेशियन डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल के सदस्य जोको विडोडो ने अपने प्रतिद्वंद्वी एवं सेवानिवृत्त जनरल प्राबोवो सुबियांतो को हराया। गौरतलब है कि इंडोनेशिया में 17 अप्रैल को राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक साथ कराए गए थे। एक दिन में 19.2 करोड़ से भी अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसे एक दिन में संपन्न होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव माना गया था। इससे पहले जोको विडोडो जुलाई 2014 में हुए चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए थे। वह जकार्ता के गवर्नर रह चुके हैं और इंडोनेशिया के ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिनकी पृष्ठभूमि राजनीति और सेना से नहीं है।
- 22 मई को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया गया। सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता को जैव विविधता कहा जाता है। 1992 में ब्राज़ील के रियो डि जेनेरियो में हुए जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार जैव विविधता की परिभाषा इस प्रकार है: "धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकीय तंत्रों में मौजूद अथवा उससे संबंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच विभिन्नता ही जैव विविधता है।" विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी शामिल है, जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता पाई जाती है। आपको बता दें कि वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस के रूप में घोषित किया था। वर्ष 2019 के लिये इस दिवस की थीम Our Biodiversity, Our Food, Our Health रखी गई है।
- ब्रिटेन के सेंटर फॉर पोलर ऑब्जर्वेशन एंड मॉडलिंग ने यूरोपीय स्पेस एजेंसी के सैटेलाइट आकलनों और क्षेत्रीय जलवायु के एक मॉडल के ज़रिये पूरे बर्फ आच्छादित क्षेत्र में हुए बदलावों पर अध्ययन करने से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वज़ह से अंटार्कटिक क्षेत्र बर्फ तेज़ी से पिघल रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कई स्थानों पर बर्फ की परत 122 मीटर तक पतली हो गई है, जबकि पश्चिमी अंटार्कटिक में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। इस बदलाव के कारण बर्फ पिघलने से अधिकांश ग्लेशियरों का संतुलन बिगड़ रहा है और वे अस्थिर हो गए हैं। गौरतलब है कि 1992 के बाद से पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ पिघलने वाले क्षेत्र का दायरा बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया।