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डेली न्यूज़

  • 23 Jan, 2021
  • 59 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की वैक्सीन कूटनीति

चर्चा में क्यों?

भारत ने अपने पड़ोसी और प्रमुख साझेदार देशों को कोरोना वायरस (COVID-19) वैक्सीन प्रदान करने का निर्णय लिया है।

  • वैक्सीन की शुरुआती खेप को विशेष विमानों द्वारा भूटान एवं मालदीव भेजा जा चुका है।

भारत की कोरोना वायरस वैक्सीन

  • हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने देश में कोरोना वायरस के विरुद्ध वैक्सीन के सीमित उपयोग के लिये ‘कोविशील्ड’ और ‘कोवैक्सीन’ को मंज़ूरी दी है।
    • कोविशील्ड (Covishield): यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोरोना वायरस वैक्सीन को दिया गया नाम है, जिसे तकनीकी रूप से AZD1222 या ChAdOx 1 nCoV-19 कहा जाता है।
    • कोवैक्सीन (Covaxin): यह भारत की एकमात्र स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है, जिसे रोग पैदा करने वाले जीवित सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय कर विकसित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

वैक्सीन कूटनीति

  • अर्थ: वैक्सीन कूटनीति वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति का हिस्सा है, जिसमें एक राष्ट्र अन्य देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये टीकों के विकास या वितरण का उपयोग करता है।
  • सहयोगात्मक प्रयास: इसमें जीवन रक्षक टीकों और संबंधित तकनीकों का संयुक्त विकास किया जाना भी शामिल है, जहाँ विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, संबंधित देशों के बीच राजनयिक संबंधों को महत्त्व दिये बिना सहयोग के लिये एक साथ आते हैं।
  • भारत के लिये लाभप्रद: यह भारत को पड़ोसी देशों और संपूर्ण विश्व के साथ अपनी विदेश नीति तथा राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने का एक अभिनव अवसर प्रदान कर सकता है।
    • ज्ञात हो कि इससे पूर्व भारत ने बड़ी संख्या में देशों को महामारी से निपटने के लिये हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, रेमेडिसविर और पैरासिटामोल दवाइयाँ तथा साथ ही डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर, मास्क, दस्ताने और अन्य मेडिकल उपकरण प्रदान किये थे।
    • भारत ने कई पड़ोसी देशों के लिये क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यशालाओं का भी आयोजन किया है। 

भारत की वैक्सीन कूटनीति योजना:

  • मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल में वैक्सीन की शिपमेंट पहुँचनी शुरू हो गई है, जबकि म्याँमार और सेशेल्स को जल्द ही वैक्सीन की शिपमेंट प्राप्त हो जाएगी।
  • श्रीलंका, अफगानिस्तान और मॉरीशस के मामलों में भारत आवश्यक नियामक मंज़ूरी की पुष्टि का इंतज़ार कर रहा है।
  • भारत की क्षेत्रीय वैक्सीन कूटनीति का एकमात्र अपवाद पाकिस्तान होगा; जिसने एस्ट्रोज़ेनेका वैक्सीन के उपयोग को मंज़ूरी दे दी है, किंतु अभी तक न तो उसने इस संबंध में भारत से अनुरोध किया है और न ही चर्चा की है।

भारत की वैक्सीन कूटनीति का महत्त्व

  • सामरिक महत्त्व
    • दीर्घावधिक ख्याति अर्जित करना: महामारी के कारण आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रहे पड़ोसी देशों के लिये भारत द्वारा दी जा रही वैक्सीन की खेप कई मायनों में काफी महत्त्वपूर्ण है और इससे भारत अपने निकटवर्ती पड़ोसी देशों व हिंद महासागर के देशों में दीर्घकालिक ख्याति अर्जित कर सकेगा।
      • यह भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के अनुरूप है।
    • चीन की तुलना में रणनीतिक बढ़त: हाल ही में चीन ने नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ बहुपक्षीय वार्ता करते हुए उन्हें कोरोना वायरस वैक्सीन देने की पेशकश की थी।
      • पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी देशों में भारत से जल्द वैक्सीन पहुँचने के कारण चीन की वैक्सीन और मास्क कूटनीति का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है।
    • पश्चिमी देशों की तुलना में लाभ: जहाँ एक ओर समृद्ध पश्चिमी देश, विशेष रूप से यूरोप के देश और अमेरिका अपनी विशिष्ट समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वहीं अपने पड़ोसियों और अन्य विकासशील तथा अल्प-विकसित देशों की सहायता करने के लिये भारत की सराहना की  जा रही है।
  • आर्थिक लाभ
    • वैश्विक आपूर्ति केंद्र के रूप में भारत: भारत के निकट पड़ोसियों के अलावा, दक्षिण कोरिया, कतर, बहरीन, सऊदी अरब, मोरक्को और दक्षिण अफ्रीका आदि देशों ने भी भारत से वैक्सीन खरीदने की इच्छा व्यक्त की है, जो कि आने वाले समय में भारत को वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति का एक प्रमुख केंद्र बना सकता है।
    • भारत के फार्मा विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ोतरी: यदि भारतीय टीके विकासशील देशों की तत्काल ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं, तो यह भारतीय फार्मा बाज़ार के लिये दीर्घकालिक अवसर उपलब्ध करा सकता है।
    • अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मददगार: यदि भारत दुनिया में कोरोना वैक्सीन का विनिर्माण केंद्र बन जाता है, तो इससे भारत के आर्थिक विकास पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • ‘वैक्सीन शीत युद्ध’ से बचाव
    • अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ‘शीत युद्ध’ में कोरोना वायरस वैक्सीन को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा रहा था, जिसके कारण प्रायः वैक्सीन टीकाकरण कार्यक्रम में देरी हो रही थी। इस प्रकार भारत द्वारा टीकों की शुरुआती शिपमेंट को इस द्विध्रुवी विवाद से बचाव के रूप में देखा जा सकता है।
  • नैतिक अधिकार प्राप्त करने में सहायक
    • भारत द्वारा वैक्सीन वितरण कार्यक्रम ऐसे समय में संचालित किया जा रहा है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक ने विकसित देशों के दवा निर्माताओं के नैतिक भ्रष्टाचार की आलोचना की है। ऐसे में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक-से-अधिक नैतिक अधिकार मिल सकते हैं।
  • वैक्सीन राष्ट्रवाद में बाधा
    • ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का आशय उस तंत्र से है, जिसके माध्यम से एक देश पूर्व-खरीद समझौतों का प्रयोग करते हुए अपने स्वयं के नागरिकों या निवासियों के लिये वैक्सीन की खुराक को सुरक्षित करता है और अन्य देशों को वैक्सीन देने से पूर्व अपने घरेलू बाज़ारों को प्राथमिकता देता है।
    • वैक्सीन राष्ट्रवाद का मुख्य दोष यह है कि इसके कारण प्रायः कम संसाधन वाले देशों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। ज़रूरतमंद देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराकर भारत ने ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ के तंत्र को बाधित किया है।

वैश्विक सहयोग को सक्षम बनाना: 

  • भारत द्वारा वैक्सीन की आपूर्ति WHO समर्थित कोवाक्स (COVAX) सुविधा तंत्र के माध्यम से किये जा रहे वैश्विक सहयोग को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

आगे की राह:  

  • भारत को COVID-19 वैक्सीन की घरेलू ज़रूरत और अपनी कूटनीतिक प्रतिबद्धताओं में  संतुलन स्थापित करना होगा। ज्ञात हो कि 16 जनवरी, 2021 को शुरू हुआ भारत का COVID-19 टीकाकरण अभियान विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है। भारत के लिये बड़ी चुनौती यह होगी कि वह विश्व को वैक्सीन की आपूर्ति करने के साथ ही अपने उन नागरिकों के लिये भी वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करे, जो इसकी लागत को वहन करने में सक्षम नहीं हैं।   

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

बजट सत्र के दौरान प्रश्नकाल

चर्चा में क्यों?

सरकार द्वारा मानसून सत्र के दौरान प्रश्नकाल को निलंबित कर दिया गया था, इसे संसद का बजट सत्र पूरा होने पर फिर से शुरू किया जाएगा।

  • यह निलंबन COVID-19 महामारी को देखते हुए किया गया था। सरकार ने COVID मामलों की बढ़ती संख्या का हवाला देते हुए संसद के शीतकालीन सत्र को भी रद्द कर दिया था।

प्रमुख बिंदु:

प्रश्नकाल (विवरण):

  • संसद सत्र का पहला घंटा प्रश्नकाल के लिये होता है। हालाँकि केवल वर्ष 2014 में प्रश्नकाल का समय राज्यसभा में सुबह 11 बजे की बजाय दोपहर 12 बजे से कर दिया गया था।
  • इस एक घंटे के दौरान संसद सदस्य (सांसद) मंत्रियों से सवाल पूछते हैं और अपने- अपने मंत्रालय के कामकाज से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देना मंत्रियों का उत्तरदायित्व होता है।
  • प्रश्नकाल के दौरान निजी सदस्यों (सांसद जो मंत्री नहीं हैं) से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

विनियमन: इसका विनियमन संसदीय नियमों के अनुसार किया जाता है।

  • दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) के पीठासीन अधिकारी प्रश्नकाल के संचालन के लिये अंतिम प्राधिकारी होते हैं।

प्रश्नों के प्रकार: तीन प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं-

  • तारांकित प्रश्न (तारांकन द्वारा प्रतिष्ठित): तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा इसके बाद पूरक प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • अतारांकित प्रश्न: अतारांकित प्रश्नों के मामले में लिखित रिपोर्ट आवश्यक होती है, इसलिये इनके बाद पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।
  • अल्प सूचना के प्रश्न: ये ऐसे प्रश्न होते हैं जिन्हें कम-से-कम 10 दिन का पूर्व नोटिस देकर पूछा जाता है। इनका उत्तर भी मौखिक दिया जाता है। 

आवर्ती: प्रश्नकाल का आयोजन दोनों सदनों में सत्र के सभी दिनों में किया जाता है परंतु दो दिन प्रश्नकाल नहीं होता है जो कि एक अपवाद है।

  • पहला, जब राष्ट्रपति दोनों सदनों के सांसदों को संबोधित करता है।
    • राष्ट्रपति का भाषण एक नई लोकसभा की शुरुआत और नए संसद वर्ष के पहले दिन होता है।
  • दूसरा, जिस दिन वित्त मंत्री बजट पेश करता है।

प्रश्नकाल के बिना पूर्व के सत्र:

  • पूर्व में भी राष्ट्रीय आपात स्थितियों के दौरान प्रश्नकाल को स्थगित किया जा चुका है। 

प्रश्नकाल का महत्त्व:

  • सांसद का अधिकार: प्रश्न पूछना सदस्यों का एक अंतर्निहित और अपरिवर्तित संसदीय अधिकार है।
  • सरकार को जवाबदेह बनाए रखना:
    • प्रश्नकाल के दौरान ही सदस्य प्रशासन और सरकारी गतिविधि के हर पहलू के संबंध में प्रश्न पूछ सकते हैं।
      • इस दौरान राष्ट्रीय के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में सरकार की नीतियों पर ज़ोर दिया जाता है।
    • ट्रायल की तरह प्रश्नकाल के दौरान प्रत्येक मंत्री को प्रशासनिक गलती और अपने कार्यों के लिये जवाबदेह होना होगा।
  • नीतियों का अनुकूलन: प्रश्नकाल के माध्यम से सरकार राष्ट्र की आवश्यकता को तुरंत समझ सकती है और उसके अनुसार अपनी नीतियों तथा कार्यों को अनुकूलित कर सकती है।
  • आयोग का गठन: कभी-कभी प्रश्नकाल एक आयोग की नियुक्ति, कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी या यहाँ तक कि विधान के निर्माण के लिये भी उत्तरदायी हो सकता है यदि सदस्य द्वारा उठाए गए मामले व्यापक सार्वजनिक महत्त्व के हों।

संसद सत्र:

  • संसद सत्र आहूत करना:
    • संसद सत्र आहूत करने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-85 में निर्दिष्ट है।
    • यह निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है, तथा सांसदों को सत्र के लिये बुलाया जाता है।

सत्रों का आयोजन:

  • भारत में कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। संसद के एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं।
  • सत्र आहूत करने के लिये राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन को समय-समय पर सम्मन जारी करता है, परंतु संसद के दोनों सत्रों के मध्य अधिकतम अंतराल 6 माह से ज़्यादा का नही होना चाहिये। अर्थात् संसद को कम-से-कम वर्ष में दो बार मिलना चाहिये।
  • बजट सत्र: सबसे लंबा बजट सत्र (पहला सत्र) जनवरी के अंत में शुरू होता है और अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाता है। बजट सत्र के दौरान एक अवकाश होता है ताकि संसदीय समितियाँ बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।
  • मानसून सत्र: दूसरा सत्र तीन सप्ताह का मानसून सत्र होता है, जो आमतौर पर जुलाई माह में शुरू होता है और अगस्त में खत्म होता है।
  • शीतकालीन सत्र: शीतकालीन सत्र यानी तीसरे सत्र का आयोजन नवंबर से दिसंबर तक किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

रतले पनबिजली परियोजना

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में चिनाब नदी पर स्थित 850 मेगावाट की रतले पनबिजली परियोजना (Ratle Hydropower Project) हेतु 5281.94  करोड़ रुपए के निवेश की मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

रतले पनबिजली परियोजना:

  • विशेषताएँ: इसमें 133 मीटर लंबा बाँध और एक-दूसरे से सटे दो बिजली स्टेशन शामिल हैं।
    • दोनों पावर स्टेशनों की स्थापित क्षमता 850 मेगावाट होगी।
  • पृष्ठभूमि: तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने जून 2013 में  इस बाँध की आधारशिला रखी थी।
    • पाकिस्तान अक्सर आरोप लगाता रहता है कि यह परियोजना सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty), 1960 का उल्लंघन करती है।
  • हाल की स्वीकृति: इसके तहत लगभग 5282 करोड़ रुपए के निवेश की परिकल्पना की गई है और इस परियोजना को 60 महीने के भीतर चालू किया जाएगा।

पाकिस्तान की आपत्तियाँ और सिंधु जल संधि:

  • पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 2013 में बाँध के निर्माण पर आपत्ति जताते हुए दावा किया था कि यह सिंधु जल संधि के अनुरूप नहीं है।
  • भारत को बाँध बनाने की अनुमति विश्व बैंक (World Bank) ने अगस्त 2017 में दे दी थी।
  • पाकिस्तान ने विश्व बैंक में अपनी इस आपत्ति को उठाया, लेकिन अब केंद्र ने निर्माण को जारी रखने का फैसला लिया है।
    • विश्व बैंक की मदद से भारत और पाकिस्तान के बीच नौ साल तक चली  बातचीत के बाद वर्ष 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे। विश्व बैंक इस संधि का एक हस्ताक्षरकर्त्ता भी है।
    • यह संधि भारत को पूर्वी नदियों के पानी पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करती है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों के पानी को बिना रोके उपयोग करने का अधिकार देती है।
    • पूर्वी नदियों में रावी, व्यास और सतलज शामिल हैं तो पश्चिमी नदियों में  चिनाब, झेलम और सिंधु  शामिल हैं।

लाभ:

  • रणनीतिक:
    • भारत सरकार जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने से पहले ही यहाँ  रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलविद्युत परियोजनाओं में तेज़ी लाने पर विचार कर रही थी, यह परियोजना भी इसी पृष्ठभूमि में आती है। भारत सरकार सिंधु जल संधि के तहत अपने हिस्से के पानी का पूरी तरह से उपयोग करना चाहती है।
    • इस कार्य को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China-Pakistan Economic Corridor)  के संदर्भ में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास: इस परियोजना की निर्माण संबंधी गतिविधियों के परिणामस्वरूप लगभग 4000  व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिलेगा और साथ ही यह परियोजना केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास में अहम योगदान देगी।
  • सस्ती दरों पर बिजली: इससे केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को 5289 करोड़ रुपए की मुफ्त बिजली मिलेगी।
  • अधिशेष बिजली: इस परियोजना से उत्पन्न बिजली ग्रिड (Grid) को संतुलन प्रदान करने में मदद करेगी और साथ ही इससे बिजली आपूर्ति की स्थिति में सुधार होगा।
    • ग्रिड के संतुलन के लिये मौजूदा बिजली उत्पादन के बुनियादी ढाँचे को विकसित करना होगा।
  • सरकारी राजस्व: जम्मू-कश्मीर को रतले पनबिजली परियोजना (40 वर्ष जीवन चक्र) से 9581 करोड़ रुपए का लाभ होगा।

चिनाब बेसिन पर अन्य परियोजनाएँ:

  • कीरू पनबिजली परियोजना:
    • कीरू महा परियोजना की कुल क्षमता 624 मेगावाट है जो चिनाब नदी (किश्तवाड़ ज़िला) पर प्रस्तावित है।
  • पकल डल पनबिजली परियोजना:
    • यह जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में चिनाब नदी की सहायक मारुसुदर (Marusudar) नदी  पर प्रस्तावित एक जलाशय आधारित योजना है।
  • दुलहस्ती पावर स्टेशन:
    • यह पावर स्टेशन 390 मेगावाट क्षमता वाली रन आफ द रिवर(Run-of-the-River) स्कीम है, जो चिनाब नदी की जलविद्युत क्षमता का दोहन करती है।
  • सलाल पावर स्टेशन:
    • यह एक रन-ऑफ-द-रिवर स्कीम है। इसके तहत 690 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ चिनाब नदी की जल विद्युत क्षमता का उपयोग किया जाता है। यह जम्मू-कश्मीर के रियासी (Reasi) ज़िले में स्थित है।

चिनाब नदी:

  • चिनाब नदी भारत-पाकिस्तान होकर बहने वाली एक प्रमुख नदी है और पंजाब क्षेत्र की 5 प्रमुख नदियों में शामिल है।     

उद्गम:

  • इसका उद्गम भारत के हिमाचल प्रदेश के लाहुल एवं स्पीति ज़िले में ऊपरी हिमालय के बारालाचा-ला दर्रे के पास से होता है। इसके बाद चिनाब नदी जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र से बहती हुई पाकिस्तान के पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है और आगे चलकर सतलज नदी में मिल जाती है।
  • चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहुल एवं स्पीति ज़िले के तांडी में दो नदियों चंद्र एवं भागा के संगम से बनती है। 
    • भागा नदी सूर्या ताल झील से निकलती है जो हिमाचल प्रदेश में बारालाचा-ला दर्रे के पास अवस्थित है।
    • चंद्र नदी का उद्गम बारालाचा-ला दर्रे (चंद्र ताल के पास) के पूर्व के ग्लेशियरों से होता है।

Chenab-river

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

वैकल्पिक कैंसर-रोधी चिकित्सा

चर्चा में क्यों?

डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Department of Science & Technology- DST) से जुड़ी ‘इंस्पायर’ (Innovation in Science Pursuit for Inspired Research- INSPIRE) फैकल्टी द्वारा ट्रांसजेनिक ज़ेब्राफिश (Transgenic Zebrafish) का उपयोग कर एक वैकल्पिक  कैंसर-रोधी चिकित्सा (एंटी-एंजियोजेनिक) पर कार्य किया जा रहा है।

  • INSPIRE एक अभिनव/प्रगतिशील कार्यक्रम है जिसे विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाओं को आकर्षित करने के उद्देश्य से DST द्वारा प्रायोजित और प्रबंधित किया जाता है। इसे वर्ष 2008 में शुरू किया गया।
  • NSPIRE का उद्देश्य देश के युवाओं को विज्ञान की रचनात्मक खोज के लिये प्रोत्साहित करना, कम उम्र की प्रतिभा को विज्ञान के अध्ययन हेतु आकर्षित करना तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रणाली को मज़बूत एवं विस्तारित करने के उद्देश्य से आवश्यक महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल का निर्माण कर अनुसंधान एवं विकास तंत्र के आधार का विस्तार करना है।

प्रमुख बिंदु:

एंजियोजेनेसिस:

  • यह एक शारीरिक प्रक्रिया है जिसमें पहले से मौजूद वाहिकाओं (Vessels) में नई रक्त वाहिकाओं का निर्माण होता है ।
  • कैंसर (Cancer ) की वृद्धि में एंजियोजेनेसिस की अहम भूमिका होती है क्योंकि ट्यूमर (Tumors) को आकार में बड़ा होने के लिये रक्त आपूर्ति की ज़रूरत होती है। ट्यूमर रासायनिक संकेतों (Chemical Signals) को बंद करके उन रक्त कोशिकाओं के विकास को गति प्रदान करता है जो एंजियोजेनेसिस को उत्तेजित करती हैं।
  • कीमोथेरेपी (Chemotherapy) के बाद ट्यूमर एंजियोजेनेसिस (Tumor Angiogenesis)  को रोकने में कैंसर-रोधी चिकित्सा एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है।
    • एंजियोजेनेसिस अवरोधक (Angiogenesis Inhibitors) कैंसर के विरुद्ध प्रयोग होने वाले अद्वितीय एजेंट हैं क्योंकि ये स्वयं ट्यूमर कोशिकाओं के विकास को रोकने के बजाय उन रक्त वाहिकाओं के विकास को ही अवरुद्ध करने का कार्य करते हैं जो ट्यूमर कोशिकाओं को विकसित करती हैं।
  • एंटी-एंजियोजेनिक दवाओं की सीमा:
    • हालांँकि नैदानिक ​​रूप से स्वीकृत एंटी-एंजियोजेनिक दवाएँ (Anti-Angiogenic Drugs) अणुओं के प्रवाह का समावेश करने वाले विभिन्न प्रतिपूरक प्रक्रियाओं, जो कि ट्यूमर एंजियोजेनेसिस को सहायता प्रदान करती हैं, के समानांतर सक्रिय होने के कारण प्रभावहीन साबित होती हैं।

वैकल्पिक कैंसर-रोधी चिकित्सा:

  • वैज्ञानिक एक वैकल्पिक एंटी-कैंसर चिकित्सा की खोज कर रहे हैं, जिसमें नई रक्त वाहिकाएँ जो कि शरीर के ऊतकों के लिये ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं, में ट्यूमर के कारण उत्पन्न होने वाली गाँठ को लक्षित किया जाना शामिल है।
  • INSPIRE फैकल्टी कैंसर चिकित्सा के प्रमुख लक्ष्य के रूप में एंजियोजेनेसिस का संकेत देने वाले प्रतिपूरक तंत्र संकेतकों (Compensatory Mechanisms  Signaling) की भूमिका के बारे में खोज कर रही है।
  • INSPIRE फैकल्टी द्वारा इस बात का भी पता लगाया गया है कि ट्यूमर माइक्रोएन्वायरनमेंट (Microenvironment) के तहत नाइट्रिक ऑक्साइड (Nitric Oxide- NO) एंजियोजेनेसिस को बंद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और मेलाटोनिन हार्मोन (Melatonin Hormone) ट्यूमर एंजियोजेनेसिस (Tumor Angiogenesis) को दबा/रोक देता है।
  •  प्रतिपूरक प्रक्रियाएंँ प्रभावी कैंसर-रोधी उपचार के विकास में एक संभावित चिकित्सीय लक्ष्य हो सकती हैं।

ट्रांसजेनिक ज़ेब्राफिश प्लेटफॉर्म (TZP):

Zebrafish

  • INSPIRE फैकल्टी ट्यूमर माइक्रोएन्वायरनमेंट में प्रतिपूरक एंजियोजेनेसिस प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के उद्देश्य से सीआरआईएसपीआर/सीएएस 9 जीन-एडिटिंग टूल का उपयोग कर ट्रांसजेनिक ज़ेब्राफिश (जिनके जीनोम में एक्सोजेनस जीन को जोड़ा गया है) को विकसित करने के लिये कार्य कर रही है।
  • ज़ेब्राफिश मॉडल का उपयोग करने का कारण:
    • ट्रांसजेनिक ज़ेब्राफिश मॉडल को इसके तीव्र विकास, पारदर्शी होने, वंशजों में इसकी उच्च वृद्धि एवं फॉरवर्ड एंड रिवर्स जीन मैनीपुलेशन के लिये एक आसान तकनीक होने के कारण इंट्यूससेप्टिव एंजियोजेनेसिस अध्ययन के लिये चुना गया है।

कैंसर

कैंसर के बारे में:

  • यह बीमारियों का एक बड़ा समूह है जिसकी शुरुआत शरीर के किसी भी अंग या ऊतक में हो सकती है। इसमें असामान्य कोशिकाएंँ अनियंत्रित रूप से बढ़कर शरीर के आस-पास के हिस्सों पर आक्रमण करने और/या शरीर के अन्य अंगों में विस्तार के लिये अपनी सामान्य सीमा से परे वृद्धि करती हैं।  इसी प्रक्रिया को बाद में मेटास्टेसिंग कहा जाता है जो कैंसर से मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
  • नियोप्लाज़्मा  (Neoplasm) और मैलिग्नैंट ट्यूमर (Malignant Tumor) कैंसर के अन्य सामान्य नाम हैं।
  • फेफड़े, प्रोस्टेट, कोलोरेक्टल, पेट और यकृत कैंसर पुरुषों में, जबकि स्तन, कोलोरेक्टल, फेफड़े, ग्रीवा और थायरॉयड कैंसर महिलाओं में पाए जाने वाले कैंसर के सबसे आम प्रकार हैं।

कैंसर का भार:

  • भारत एवं विश्व में कैंसर पुराने और गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases- NCD) सहित वयस्कों में  बीमारियों और मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण कैंसर है तथा वर्ष 2018 में विश्व स्तर पर कैंसर से मृत्यु के लगभग 18 मिलियन मामले देखे गए जिनमें अकेले भारत में 1.5 मिलियन मामले शामिल थे।

रोकथाम और निवारण

  • कैंसर के प्रमुख कारकों को नियंत्रित कर 30-50 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है। प्रमुख कैंसर जोखिम कारकों में तंबाकू का उपयोग, शराब का उपयोग, आहार, पराबैंगनी विकिरण के संपर्क और प्रदूषण आदि शामिल हैं।

उपचार:

  • कैंसर के लिये उपलब्ध उपचार में सर्जरी, कैंसर की दवाएँ और/या रेडियोथेरेपी आदि शामिल हैं।
  • उपशामक देखभाल (Palliative Care) जो रोगियों एवं उनके परिवारों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केंद्रित है, कैंसर देखभाल का एक अनिवार्य घटक है।

स्रोत: पी.आई.बी. 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कतर और मिस्र के संबंधों की पुनर्बहाली

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में मिस्र ने कतर के साथ अपने राजनयिक और आर्थिक संबंधों को पुनः बहाल करने की घोषणा की है।  

  • मिस्र उस अरब चौकड़ी या अरब क्वार्टेट (इसके अन्य सदस्य सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन थे) का हिस्सा था, जिसने कतर पर आतंकवाद का समर्थन करने और ईरान के अत्यधिक निकट होने का आरोप लगाया था तथा इसके कारण उन्होंने वर्ष 2017 में कतर की भू, वायु और जलीय/नौसैनिक नाकेबंदी कर दी थी। 

Egypt

प्रमुख बिंदु: 

संबंधों की पुनर्बहाली का कारण:  

  • ‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौता: 
    • हाल ही में खाड़ी देशों ने 41वें खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) शिखर सम्मेलन के दौरान 'एकजुटता और स्थिरता’समझौते पर हस्ताक्षर किये।
      • गौरतलब है कि बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य हैं।
    • इस शिखर सम्मेलन में खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्यों ने कतर पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटा दिया और कतर के लिये अपनी भूमि, समुद्री और हवाई सीमा को पुनः खोल दिया
    • अरब चौकड़ी (जिसके तीन सदस्य जीसीसी के सदस्य हैं) के साथ एकजुटता दिखाते हुए मिस्र ने भी कतर के साथ अपने संबंधों को फिर से बहाल कर दिया है।
  • ईरान के खिलाफ एकजुटता: 
    • मिस्र ने कतर के साथ यह समझौता इसलिये किया है ताकि ईरान सरकार के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के खतरों के खिलाफ खाड़ी क्षेत्र को मज़बूत किया जा सके, गौरतलब है कि ईरान के इन मिसाइल कार्यक्रमों का अमेरिका और  जीसीसी सदस्यों ने हमेशा विरोध किया है।
  • कतर की बढ़ती शक्ति: 
    • कतर विश्व में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ ही विश्व में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में से एक है और यह वर्ष 2022 के फुटबॉल विश्व कप के मेज़बानी भी करेगा।
    • मोहम्मद मोर्सी (वर्ष 2012-13) की सरकार के दौरान कतर, मिस्र का सबसे बड़ा निवेशक था।
  • अमेरिकी समर्थन: 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और कतर के बीच व्यापक आर्थिक संबंध हैं। अमेरिका, कतर का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक के साथ ही कतर में सबसे बड़ा निर्यातक भी है।
    • कतर और यूएसए के बीच अच्छे आपसी संबंधों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान के खिलाफ सभी खाड़ी देशों को एकजुट करने के लिये एकजुटता और स्थिरता समझौते की मध्यस्थता की, जिसने मिस्र के साथ सुलह के लिये भी प्रोत्साहित किया।

पूर्व मतभेद का कारण: 

  • मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ संबंध: 
    • अरब स्प्रिंग और मोहम्मद मोर्सी (मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति जिन्हें कतर का समर्थन प्राप्त था) के पतन के बाद कतर ने मिस्र में अपने प्रभुत्व को बढ़ाने और साथ ही घरेलू स्तर पर अन्य इस्लामी समूहों का समर्थन प्राप्त करने के लिये मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन किया।
    • हालाँकि मुस्लिम ब्रदरहुड को अब्देल फत्ताह अल-सिसी के नेतृत्व में वर्तमान प्रशासन द्वारा परास्त कर दिया गया था, गौरतलब है कि अल-सिसी सरकार को अरब क्वार्टेट का करीबी माना जाता है। 
      • खाड़ी देशों के सम्राट और तानाशाह मुस्लिम ब्रदरहुड के नेतृत्त्व में संचालित इस्लामवादी आंदोलनों के खिलाफ हैं क्योंकि ये राजनीतिक सुधारों की मांग करते हैं जो उनके शासन को खतरे में डाल सकता है।
  • स्वतंत्र विदेश नीति दृष्टिकोण: 
    • पूर्व में कतर पर लंबे समय तक सऊदी अरब का प्रभुत्व रहा है। वर्ष 1995 के बाद से कतर ने एक स्वतंत्र विदेश नीति की शुरुआत की और इसने न केवल अमेरिका, यूरोप, इज़राइल व ईरान जैसे अन्य देशों के साथ बल्कि फिलिस्तीनी, हमास और इस्लामवादी दलों के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये।
    • क्षेत्रीय मध्यस्थता और सहयोग में कतर की इस तरह की हाई-प्रोफाइल भूमिका से जीसीसी सदस्य और मिस्र खुश नहीं थे।
  • ईरान के साथ अच्छे संबंध: 
    • ईरान के साथ कतर एक विशाल गैस फील्ड साझा करता है, जो इसे ईरानी प्रशासन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने का एक और कारण प्रदान करता है।

भारत के लिये महत्त्व: 

  • मिस्र के साथ-साथ कतर सहित जीसीसी समूह के सभी देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। मध्य-पूर्व के देशों के बीच इस तरह की सुलह और मैत्री भारत के लिये अवसरों का विस्तार कर सकती है।
  • खाड़ी क्षेत्र भारतीय वस्तुओं के लिये सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है और यह हमारी  अर्थव्यवस्था के लिये हाइड्रोकार्बन का सबसे महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता है। इन गैस और तेल भंडार से समृद्ध देशों के बीच शांतिपूर्ण संबंध भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अनुकूल हैं।
  • खाड़ी देशों में कई लाख प्रवासी भारतीय रहते या रोज़गार करते हैं, इनमें ज़्यादातर श्रमिक हैं जो विकास गतिविधियों में शामिल होते हैं और भारत को प्रेषित धन (Remittances) का प्रमुख स्रोत हैं।  
  • खाड़ी देशों और मिस्र के साथ बेहतर संबंध भारत  को खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संस्कृति, रक्षा और सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार तथा निवेश के अवसर प्रदान कर सकता है।

स्रोत:   इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

दया याचिका पर निर्णय में देरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि वर्ष 1991 के राजीव गांधी हत्याकांड मामले में दोषी की दया याचिका पर तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा अगले तीन-चार दिनों में निर्णय लिया जाएगा।

  • दया याचिका की अवधारणा का अनुसरण भारत सहित अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे कई देशों में किया जाता है।
  • भारत में क्षमा प्रदान करने की शक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद-72 और अनुच्छेद-161 के तहत क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को सौंपी गई है। यह देश की न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत क्षमा करने या मृत्यु की सज़ा प्राप्त अपराधियों के प्रति दया दिखाने के लिये शक्तियों का हवाला देकर एक मानवीय पक्ष जोड़ता है। 
    • क्षमा प्रदान करने या अपराधियों के प्रति दया दिखाने संबंधी शक्तियाँ भारत की न्यायिक प्रक्रिया में एक मानवीय पक्ष को शामिल करती हैं।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • सर्वप्रथम वर्ष 2015 में  दोषी द्वारा दिये गए एक माफीनामे पर राज्य के राज्यपाल द्वारा विचार नहीं किया गया था, हालाँकि सितंबर 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि क्षमादान पर निर्णय लेने हेतु राज्यपाल पूर्णतः उपयुक्त है।
  • इसके पश्चात् राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुच्छेद 161 का हवाला देकर आरोपी की उम्रकैद की सज़ा को रद्द करने की सिफारिश की गई थी।
  • हालाँकि राज्यपाल का निर्णय अभी भी लंबित है।

केंद्र सरकार का पक्ष

  • केंद्र सरकार का पक्ष है कि दया याचिका को राज्यपाल के बजाय राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिये, क्योंकि इस मामले की सुनवाई एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा की जा रही है।

याचिकाकर्त्ता का पक्ष

  • अपराधी क्षमादान के लिये राष्ट्रपति या राज्यपाल का चयन करने हेतु स्वतंत्र है। 
  • याचिकाकर्त्ता ने भारत संघ बनाम श्रीहरन वाद (वर्ष 2015) में संवैधानिक पीठ के निर्णय को संदर्भित किया, जिसमें कहा गया था कि ‘कार्यकारी क्षमादान की शक्ति’ ‘राष्ट्रपति एवं राज्यपाल में निहित है।’
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 432 के तहत दोषियों की सज़ा को रद्द करने के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव पर वर्ष 2018 में केंद्र की अस्वीकृति, अनुच्छेद 161 के तहत क्षमा के लिये राज्यपाल को अलग से याचिका देने हेतु बाधा नहीं है।
    • CrPC की धारा 432: इसके मुताबिक, उपयुक्त सरकार किसी भी समय, बिना किसी शर्त के या किसी विशिष्ट शर्त के आधार पर किसी भी व्यक्ति की सज़ा को रद्द कर सकती है अथवा सज़ा के किसी भी हिस्से को समाप्त कर सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा की गई देरी को ‘असाधारण’ करार दिया है। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार की सिफारिश के बावजूद राज्यपाल द्वारा कोई निर्णय क्यों नहीं लिया जा रहा है। 
    • ज्ञात हो कि राज्यपाल, राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को अस्वीकार नहीं कर सकता है, हालाँकि निर्णय देने को लेकर कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
    • राज्यपाल ने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिये पहले ही राज्य सरकार को फाइल लौटा दी गई थी, लेकिन सरकार अब भी अपने निर्णय पर बरकरार है।

क्षमादान की शक्ति:

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति:

  • संबंधित प्रावधान:
    • संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्राप्त है, जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिये दोषी करार दिये गए हों।
      • संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध के संदर्भ में दिये गए दंड में,
      • सैन्य न्यायालय द्वारा दिये गए दंड में,
      • यदि मृत्युदंड की सज़ा दी गई हो।
  • सीमाएँ:
    • राष्ट्रपति क्षमादान की अपनी शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना नहीं कर सकता।
    • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कई मामलों में निर्णय दिया है कि राष्ट्रपति को दया याचिका का फैसला करते हुए मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्रवाई करनी है। इनमें वर्ष 1980 में मारू राम बनाम भारत संघ और वर्ष 1994 में धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य वाद शामिल हैं।
  • प्रक्रिया:
    • राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका को मंत्रिमंडल की सलाह लेने के लिये गृह मंत्रालय के पास भेजा जाता है।
    • मंत्रालय याचिका को संबंधित राज्य सरकार को भेजता है, जिसका उत्तर मिलने के बाद मंत्रिपरिषद अपनी सलाह देती है।
  • पुनर्विचार:
    • यद्यपि राष्ट्रपति के लिये मंत्रिमंडल की सलाह बाध्यकारी होती है, किंतु अनुच्छेद 74 (1) उसे मंत्रिमंडल के पुनर्विचार हेतु याचिका को वापस करने का अधिकार देता है। यदि मंत्रिमंडल बिना किसी भी बदलाव के इसे राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति के पास इसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य के राज्यपाल को भी क्षमादान की शक्तियाँ प्राप्त हैं। 

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों के मध्य अंतर:

  • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक है, जो निम्नलिखित दो तरीकों से भिन्न है:
    • सैन्य मामले: राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सज़ा को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं।
    • मृत्युदंड: राष्ट्रपति मृत्युदंड से संबंधित सभी मामलों में क्षमादान दे सकता है, परंतु राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति मृत्युदंड के मामलों तक विस्तारित नहीं है।

शब्दावली:

  • क्षमा (Pardon)- इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी को दंड, दंडादेशों एवं निर्हर्ताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है। 
  • लघुकरण (Commutation)- इसका अर्थ है सज़ा की प्रकृति को बदलना जैसे-मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना।
  • परिहार (Remission) - सज़ा की अवधि में बदलाव जैसे- 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।
  • विराम (Respite) - विशेष परिस्थितियों की वजह से सज़ा को कम करना। जैसे- शारीरिक अपंगता या महिलाओं की गर्भावस्था के कारण।
  • प्रविलंबन (Reprieve) - किसी दंड को कुछ समय के लिये टालने की प्रक्रिया। जैसे- फाँसी को कुछ समय के लिये टालना।

स्रोत : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अल्ट्रावायलेट–चमकीले तारे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों ने मिल्की वे गैलेक्सी (आकाशगंगा) में बड़े पैमाने पर जटिल गोलाकार क्लस्टर (NGC 2808) के अन्वेषण के दौरान उसमें अल्ट्रा वायलेट (Ultra Violet- UV) चमकीले तारों को देखा।

  •  खगोलविदों द्वारा इस कार्य को भारत के पहले मल्टी-वेवलेंथ स्पेस सैटेलाइट  (Multi-Wavelength Space Satellite) एस्ट्रोसैट (AstroSat) की सहायता से किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

डेटा: 

  • वैज्ञानिकों ने अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप ( एस्ट्रोसैट पटल से ) के डेटा को अन्य अंतरिक्ष मिशनों जैसे-हबल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) और गैया टेलीस्कोप (Gaia Telescope) के साथ-साथ ज़मीन आधारित ऑप्टिकल पर्यवेक्षण से प्राप्त डेटा के साथ मिलाकर प्राप्त किया है।
    • हबल स्पेस टेलीस्कोप: HST या हबल एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे वर्ष 1990 में पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित किया गया था जो अभी भी कार्यरत है। यह अब तक की सबसे बड़ी अंतरिक्ष दूरबीनों में से एक है तथा बहुमुखी उद्देश्यों के लिये प्रयोग की जाती है ।
    • गैया यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की एक अंतरिक्ष वेधशाला है, जिसे वर्ष 2013 में स्थापित किया गया था तथा वर्ष 2022 तक इसके संचालित होने की उम्मीद है। इस अंतरिक्ष वेधशाला को अभूतपूर्व सटीकता के साथ सितारों की स्थिति, दूरी और गति को मापने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। 

खोज से प्राप्त परिणाम: 

  • लगभग 34 अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों का गोलाकार क्लस्टर पाया गया है। अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों में से एक सूर्य से लगभग 3000 गुना अधिक चमकीला है जिसकी सतह का तापमान लगभग 100,000 केल्विन है।
  • गर्म अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों को वैज्ञानिकों ने अपेक्षाकृत शीतल लाल विशाल (Relatively Cooler Red Giant) और मुख्य-अनुक्रम वाले तारों (Main-Sequence Stars) के रूप में अलग किया।
  • अधिकतर तारे जिन्हें क्षैतिज शाखा तारे (horizontal Branch Stars) कहा जाता है तथा जिन पर शायद ही कोई बाहरी आवरण/परत होती है, सौरमंडल में विकसित अवस्था में पाए गए। इस प्रकार वे अपने जीवन के अंतिम प्रमुख चरण, जिसे अनंतस्पर्शी विशाल चरण (Asymptotic Giant Phase) कहा जाता है, को छोड़ देने के लिये बाध्य होते हैं जो सीधे सफेद वामन (white dwarfs) में परिवर्तित हो जाते हैं।
    • क्षैतिज शाखा (HB) तारे के विकास का एक चरण है जो शीघ्र ही तारे की लाल वामन शाखा (Red Giant Branch) में परिवर्तित हो जाती है।

महत्त्व:

  • तारों के गुण: प्राप्त निष्कर्षों से इन तारों के गुणधर्मों जैसे-उनकी सतह का तापमान, प्रकाश और किरणों के निर्धारण में मदद मिलेगी।
  • तारकीय विकास में सहायक: वर्तमान में उत्कृष्ट प्रयोगशालाएँ विद्यमान हैं जहाँ खगोलविद् इस बात को समझ सकते हैं कि किस प्रकार तारों में उनके जन्म और मृत्यु के मध्य विभिन्न चरणों विकसित होते हैं।
    • तारे की मृत्यु: अभी तक यह बात पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि तारों का जीवन चक्र किस प्रकार समाप्त होता है क्योंकि उनमें से कई का पता इनके तेज़ी से विकसित होने वाले चरणों में नहीं लग पता है। अत: तारे की मृत्यु के कारणों का पता लगाने की दिशा में यह अध्ययन महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • अल्ट्रा वायलेट विकिरण: अल्ट्रा वायलेट विकिरण को चमकीले सितारों की पुरानी तारकीय प्रणालियों से प्राप्त होने वाले पराबैंगनी विकिरण का कारण माना जा सकता है।

NGC 2808 के बारे में:

  • NGC 2808  तारा समूह कैरिना (constellation Carina) एक गोलाकार क्लस्टर है जो आकाशगंगा में स्थित है तथा हमारी आकाशगंगा के सबसे विशाल तारा समूहों में से एक है। इसमें लाखों सितारे विद्यमान हैं।
  •  इस क्लस्टर में तारे की कम-से-कम पांँच पीढ़िया विद्यमान हैं। 

तारकीय विकास:

  • निहारिका/नेबुला:
    • नेबुला अंतरिक्ष में धूल और गैस (ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम) का एक बादल है ।
    • नेबुला सितारों की जन्मस्थली है।
  • मुख्य-अनुक्रम वाले तारे:
    • मुख्य अनुक्रम वाले तारे (Main Sequence Stars) वे हैं जिनका निर्माण धूल और गैस के परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण केंद्र में हाइड्रोजन परमाणुओं के हीलियम परमाणु के साथ संलयन के कारण होता है।
    • ब्रह्मांड के अधिकांश अर्थात् लगभग 90% तारे मुख्य अनुक्रम तारे हैं। सूर्य भी एक मुख्य अनुक्रम तारा है।
    • अपने विकास क्रम की अंतिम अवस्था में सूर्य के समान एक विशाल तारा रक्त दानव (Red Giant) में परिवर्तित हो जाता है तथा नेबुला अपनी बाहरी परतों की नाभिकीय ऊर्जा को खोकर अंत में यह एक श्वेत वामन (White Dwarf) में बदल जाता है।
  • लाल वामन :
    • कमज़ोर/क्षीण (जिनकी चमक सूर्य की चमक से 1/1000 कम होती है ) मुख्य अनुक्रम तारों को लाल वामन कहा जाता है।
  • प्रॉक्सिमा सेंचुरी (Proxima Centauri) जो कि सूर्य का सबसे निकटतम तारा है, एक लाल वामन है।

रक्त दानव:

  • रक्त दानव का  व्यास  सूर्य की तुलना में 10 से 100 गुना अधिक होता है।
  • ये अत्यधिक चमकीले होते हैं, हालाँकि उनकी सतह का तापमान सूर्य की तुलना में कम होता है।
  • रक्त दानव का विकास तारकीय विकास क्रम के अंत में होता है जिसमें तारे के केंद्र में हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है।
  • एक विशाल आकार वाले रक्त दानव को सामान्यत:  रेड महावामन (Red Supergiant) कहा जाता है।

निहारिका:

  • निहारिका (Nebula) गैस और धूल की एक बाह्य परत होती हैजो  एक तारे को रक्त दानव (Red Giant) से श्वेत वामन  (White Dwarf) में परिवर्तित करने पर लुप्त हो जाती है।

श्वेत वामन :

  • श्वेत वामन (White Dwarf)  तारे के विकास क्रम का अंतिम चरण होता है जो बहुत छोटा और गर्म होता है।
  • श्वेत वामन सामान्य तारों के अवशेष हैं, इसमें उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से समाप्त हो जाती है।
  • श्वेत वामन गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण बहुत उच्च घनत्व का विकृत (Degenerate) पदार्थ उत्सर्जित करता है ।

नोवा:

  • नोवा (Nova) श्वेत वामन तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने के बाद उसमें होने वाला एक तीव्र विस्फोट है। 
  • इस विस्फोट में अनियंत्रित गति से नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) की प्रक्रिया होती है जिस कारण तारे की चमक में अस्थायी रूप से वृद्धि होती है।
  • सुपरनोवा के विपरीत तारा विस्फोट के बाद अपनी पूर्व अवस्था में वापस लौट आता है।

सुपरनोवा:

  • सामान्य शब्दों में सुपरनोवा (Supernova) का अर्थ अंतरिक्ष में किसी भयंकर और चमकीले विस्फोट से है। खगोलविदों के अनुसार, जब एक सितारा अपने जीवन काल के अंतिम चरण में होता है तो वह एक भयंकर विस्फोट के साथ समाप्त हो जाता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं।

न्यूट्रॉन तारे (Neutron Star), सुपरनोवा घटना के बाद एक तारे के मृत अवशेष होते हैं जो लगभग पूरी तरह से न्यूट्रॉन से बने होते हैं।

Neutron-Star

एस्ट्रोसैट

  • एस्‍ट्रोसैट (AstroSat) भारत की बहु-तरंगदैर्ध्‍य दूरबीन (India’s Multi-Wavelength Space Telescope) है।
  • लॉन्च: इसे ISRO द्वारा वर्ष 2015 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (श्रीहरिकोटा) से PSLV द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • यह भारत का पहला समर्पित खगोल विज्ञान मिशन है। इस मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
  • न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल युक्त द्वि-आधारी स्टार सिस्टम में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना।
    • न्यूट्रॉन तारे का चुंबकीय क्षेत्र का अनुमान लगाना।
    • हमारी आकाशगंगा के बाहर स्थित तारों के उद्भव क्षेत्रों और तारा प्रणाली में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना।
    • आकाश में नए अल्पावधि उज्ज्वल एक्स-रे स्रोतों का पता लगाना।
    • पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड के सीमित क्षेत्र का सर्वेक्षण करना।
  • एस्ट्रोसैट मिशन की अनूठी विशेषताओं में से एक यह भी है कि यह उपग्रह विभिन्न खगोलीय वस्तुओं का एक ही समय में बहु-तरंगदैर्ध्य (Multi-Wavelength) अवलोकन करने में सक्षम है।
  • ASTROSAT के लिये ग्राउंड कमांड और कंट्रोल सेंटर बंगलूरू में स्थित इसरो दूरमिति अनुवर्तन तथा आदेश नेटवर्क (ISTRAC) में स्थित है।
  • इसने भारत को उन देशों की श्रेणी में ला दिया है जिनके पास मल्टी वेवलेंथ स्पेस वेधशालाएँ हैं।

एस्ट्रोसैट मिशन का न्यूनतम जीवनकाल 5 वर्ष होने की उम्मीद थी।

स्रोत: पी.आई.बी.


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