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डेली न्यूज़

  • 22 Sep, 2018
  • 19 min read
भूगोल

चक्रवाती तूफान ‘डे’ (DAYE)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बंगाल की खाड़ी से उत्पन्नचक्रवाती तूफान ओडिशा के तट पर पहुँचा। उल्लेखनीय है कि ‘डे’ (DAYE) नामक यह चक्रवाती तूफ़ान इस साल बंगाल की खाड़ी में उठने होने वाला पहला तूफान है जिसका नामकरण किया गया है और इसका यह नाम म्यांमार ने रखा है।

चक्रवात

  • चक्रवात कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज़ आँधी को कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise)  में चलते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।

भारत में आते हैं उष्णकटिबंधीय चक्रवात 

  • भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
  • भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास उठने वाले तूफान घड़ी चलने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान है जो विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावतों के साथ आता है और तीव्र हवाओं व घनघोर वर्षा की स्थिति उत्पन्न करता है। 
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है। 
  • ऐसे चक्रवात मुख्यतः 30° उत्तरी एवं 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य आते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति हेतु उपरोक्त दशाएँ यहाँ मौजूद होती हैं। 
  • भूमध्य रेखा पर निम्न दाब के बावजूद नगण्य कोरिओलिस बल के कारण पवनें वृत्ताकार रूप में नहीं चलतीं, जिससे चक्रवात नहीं बनते। 
  • दोनों गोलार्द्धों में 30° अक्षांश के बाद ये पछुआ पवन के प्रभाव में स्थल पर पहुँचकर समाप्त हो जाती हैं।
  • वृहद् समुद्री सतह जहाँ तापमान 27°C से अधिक हो, कोरिओलिस बल का होना, उर्ध्वाधर वायु कर्तन (Vertical Wind Shear) का क्षीण होना, समुद्री तल तंत्र का ऊपरी अपसरण आदि इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ हैं।

चक्रवातों का नामकरण

  • हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाइलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं।
  • जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है।
  • इस प्रक्रिया के चलते तूफ़ान को आसानी से पहचाना जा सकता है और बचाव अभियानों में भी मदद मिलती है। किसी नाम का दोहराव नहीं किया जाता है।
  • नामकरण करने वाला शासी निकाय क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (Regional Specialised Meteorological Centre- RSMC), नई दिल्ली में स्थित है।
  • प्रत्येक देश उन दस नामों की एक सूची तैयार करता है जो उन्हें चक्रवात के नामकरण के लिये उपयुक्त लगते हैं। शासी निकाय अर्थात् RSMC प्रत्येक देश द्वारा सुझाए गए नामों में आठ नामों को चुनता है और उसके अनुसार आठ सूचियाँ तैयार करता है जिनमें शासी निकाय द्वारा अनुमोदित नाम शामिल होते हैं।
  • वर्ष 2004 से चक्रवातों को RSMC द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार नामित किया जाता है।

चक्रवातों के नामकरण का इतिहास

  • 1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को समय रहते सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुँचाया जा सके तथा सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियाँ कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिये इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है।
  • 1950 के मध्य में नामकरण के क्रम को और भी क्रमवार ढंग से सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों ने इसकी बेहतर पहचान के लिये इनके नामों को पहले से क्रमबद्ध तरीके से रखने हेतु अंग्रेज़ी वर्णमाला के शब्दों के प्रयोग पर ज़ोर दिया।
  • 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता आ रहा है। WMO जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक संस्था है।
  • पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था क्योंकि ऐसा करना विवादास्पद काम था। इसके पीछे कारण यह था कि जातीय विविधता वाले इस क्षेत्र में सावधान और निष्पक्ष रहने की जरूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उपराष्ट्रपति की तीन यूरोपीय देशों की यात्रा

चर्चा में क्यों?

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू 14 से 20 सितंबर, 2018 तक तीन देशों- सर्बिया, माल्टा और रोमानिया की आधिकारिक यात्रा पर रहे। उल्लेखनीय है कि इस यात्रा के दौरान उपराष्ट्रपति ने विश्व स्तर पर भारत के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित किया।

उद्देश्य

इस यात्रा के दौरान उक्त देशों की सरकारों के प्रमुखों, प्रधानमंत्रियों और अन्य वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं के साथ अत्यंत सौहार्द्रपूर्ण माहौल में वार्ता हुई। इस यात्रा से इन तीनों देशों में से प्रत्येक देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को गहरा बनाने में काफी मदद मिली।

प्रमुख बिंदु

तीनों देशों ने यूएनएससी में भारत की दावेदारी और साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने का समर्थन किया।

  • तीनों देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के व्यापक सम्मेलन को प्रारंभिक तौर पर अपनाने और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन किया गया।
  • तीनों देशों ने योग और आयुर्वेद में काफी रुचि दिखाई तथा रोमानिया में उपराष्ट्रपति ने आयुर्वेद पर दो पुस्तकों का विमोचन भी किया और एक आयुर्वेद सूचना केंद्र का उद्घाटन किया।
  • भारत ने तीनों देशों के साथ संयंत्र संरक्षण, पर्यटन, वायु सेवाओं, तेल अनुसंधान, राजनयिक प्रशिक्षण और समुद्री सहयोग से संबंधित क्षेत्रों में एमओयू पर हस्ताक्षर किये।
  • सभी देशों के नेताओं ने भारत के आर्थिक विकास की प्रशंसा की और राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से भारत के साथ जुड़ने और साझेदारी करने के लिये उत्सुकता दिखाई।

उपराष्ट्रपति की सर्बिया यात्रा

  • अपने तीन राष्ट्रों के दौरे के पहले चरण में भारतीय उपराष्ट्रपति ने 14-16 सितंबर 2018 तक सर्बिया का दौरा किया।
  • भारत और सर्बिया के बीच ऐतिहासिक और गुट निरपेक्ष आंदोलन के सह-संस्थापक के रूप में विशेष संबंध हैं। दोनों देश परस्पर हितों के मुद्दों पर एक-दूसरे का समर्थन भी करते हैं।
  • इस वर्ष, भारत और सर्बिया भी राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं। भारत और सर्बिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • सर्बिया और भारत के बीच कृषि उत्पादों के व्यापार में वृद्धि हेतु संयंत्र संरक्षण और संयंत्र संगरोध में सहयोग पर समझौता तथा वायु सेवा समझौता पर हस्ताक्षर किये गए।

उपराष्ट्रपति की माल्टा यात्रा

  • उपराष्ट्रपति 16-18 सितंबर, 2018 तक माल्टा की यात्रा पर रहे। भारत 1964 में माल्टा को मान्यता देने और माल्टा की आज़ादी के तुरंत बाद राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले प्रमुख देशों में एक था। भारत-माल्टा वार्षिक व्यापार लगभग 212 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • इस यात्रा के दौरान माल्टा ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की।
  • उपराष्ट्रपति की इस यात्रा के दौरान भारत और माल्टा के बीच तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए- (i) समुद्री सहयोग पर जहाज़रानी मंत्रालय, भारत सरकार तथा परिवहन, बुनियादी ढाँचा और पूंजी परियोजना मंत्रालय, माल्टा सरकार के बीच समझौता ज्ञापन (ii) विदेश सेवा संस्थान, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार और भूमध्यसागरीय एकेडमी ऑफ डिप्लोमैटिक स्टडीज़, माल्टा विश्वविद्यालय के बीच परस्पर सहयोग पर समझौता ज्ञापन (iii) भारत और माल्टा के बीच पर्यटन सहयोग के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन।

उपराष्ट्रपति की रोमानिया यात्रा

  • उपराष्ट्रपति ने 18-20 सितंबर, 2018 तक रोमानिया का दौरा किया। भारत और रोमानिया गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध साझा करते हैं- रोमानियाई भाषाविज्ञानी, दार्शनिक और कवि भारतीय विचारों से प्रभावित थे और इसका प्रभाव उनके कार्यों में भी पाया गया।
  • आधुनिक समय में रोमानिया के साथ भारत के राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुए थे। वर्तमान में दोनों देश उच्च स्तरीय और मंत्रिस्तरीय यात्राओं का नियमित आदान-प्रदान कर रहे हैं। भारत-रोमानिया वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार लगभग 810 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • इस यात्रा के दौरान भारत और रोमानिया ने पर्यटन क्षेत्र में सहयोग को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। इसके आलावा, पेट्रोलियम-गैस विश्वविद्यालय, प्लोएस्टी और पंडित दीनदयाल पेट्रोलियम विश्वविद्यालय, गांधीनगर के मध्य समझौता ज्ञापन और बुखारेस्ट चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा सीआईआई, एसोचैम और पीएचडीसीसीआई के साथ तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए।
  • रोमानिया के यूरोपीय संघ के अध्यक्ष बनने के बाद यूरोपीय संघ-भारत व्यापार समझौते को फिर से शुरू करने के लिये मज़बूत समर्थन प्राप्त हुआ।

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 22 सितंबर 2018

बैलिस्टिक मिसाइल ‘प्रहार’

हाल ही में भारत ने भारी वर्षा के बीच ओडिशा के चांदीपुर परीक्षण स्थल स्थित लॉन्चिंग कॉम्पलेक्स-III से ज़मीन से ज़मीन पर मार करने वाली मिसाइल ‘प्रहार’ का सफल परीक्षण किया।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी 350 किमी. से 500 किमी. तक मारक क्षमता वाले प्रहार मिसाइल का सफलता पूर्वक परीक्षण किया जा चुका है।

प्रहार की विशेषताएँ

  • इसकी लंबाई 7.32 मीटर और व्यास 420 मिमी. है।
  • इसका वज़न लगभग 1.28 टन है।
  • 200 किग्रा. तक हथियार ले जाने में सक्षम है।
  • इसमें ठोस प्रणोदक का प्रयोग हुआ है और इसकी गति 2 मैक है।
  • बेहतर सटीकता।
  • लॉन्चर विभिन्न लक्ष्यों के लिए अलग-अलग प्रकार के हथियारों वाले छह मिसाइलों को ले जा सकता है
  • अलग-अलग दिशाओं में एक साथ छः मिसाइल छोड़ने की क्षमता।

नासा का बलून मिशन

हाल ही में नासा के बलून मिशन ने इलेक्ट्रिक ब्लू क्लाउड की तस्वीरें ली है।

  • बलून मिशन द्वारा ली गई तस्वीरों का वैज्ञानिकों द्वारा विशेलेषण किया जा रहा है जो वायुमंडल उत्पन्न होने वाले विक्षोभों के साथ ही महासागरों, झीलों और अन्य ग्रहों के वायुमंडल को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेंगे और इसके विश्लेषण से प्राप्त परिणाम मौसम पूर्वानुमान में सुधार करने सहायता कर सकता है।
  • 8 जुलाई, 2018 को नासा के PMS टर्बो मिशन ने सतह से 50 मील की ऊँचाई पर PMCs का अध्ययन करने के लिए एक विशाल गुब्बारे को लॉन्च किया था।
  • अपनी पाँच दिन की उड़ान के दौरान इस विशाल गुब्बारे पर लगे कैमरे ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली 6 मिलियन तस्वीरें लीं जिनमें से अधिकांश तस्वीरें में PMCs में विक्षोभों की प्रक्रियाओं को प्रकट कर रही थीं।
  • वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिये दशकों से गुब्बारों का उपयोग किया जाता है। उन्हें दुनिया के किसी भी स्थान से लॉन्च किया जा सकता है और यह वैज्ञानिक अवलोकनों के लिये एक कम लागत वाली विधि है।
  • नासा बलून कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य वैज्ञानिक और तकनीकी जाँचों के लिये उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक बलून प्लेटफॉर्म स्थापित करना है।
  • इन जाँचों में मूलभूत वैज्ञानिक खोजें शामिल हैं जो पृथ्वी, सौरमंडल एवं ब्रह्मांड को और अधिक बेहतर तरीके से समझने में योगदान देती हैं।

भारत का पहला स्वदेशी जीपीएस मॉड्यूल UTraQ

हाल ही में भारत ने अपना नया जीपीएस मॉड्यूल UTraQ लॉन्च किया है।

  • यह जीपीएस भारत की क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) और NavIC की मदद से काम करेगा तथा वास्तविक लोकेशन के बारे में बताएगा।
  • इन मॉड्यूल्स का उपयोग लोकेशन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के अलाव रेंज का पता लगाने, कमांड देने, कंट्रोल करने और समय बताने जैसे अन्य कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।

कमलेश नीलकंठ व्‍यास

हाल ही में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक कमलेश नीलकंठ व्‍यास की परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव तथा परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्‍यक्ष पद पर नियुक्ति को मंज़ूरी दी।

  • कमलेश व्‍यास 64 वर्ष की आयु (03.05.2021) तक या अगले आदेश तक, इनमें से जो भी पहले हो, इस पद पर बने रह सकते हैं।
  • नव नियुक्त अध्यक्ष कमलेश नीलकंठ व्यास ने ऑस्ट्रिया के वियना में शेखर बसु से पदभार का ग्रहण किया।

परमाणु उर्जा विभाग

  • परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना 3 अगस्त, 1954 को की गई थी।
  • परमाणु ऊर्जा विभाग में भारत सरकार का सचिव, परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission-AEC) का पदेन (ex-officio) अध्यक्ष होता है।
  • DAE नाभिकीय विद्युत/अनुसंधान रिएक्टरों के अभिकल्पन, निर्माण एवं प्रचालन तथा सहायक नाभिकीय ईंधन चक्र प्रौद्योगिकियों जिनमें नाभिकीय खनिजों का अन्वेषण, खनन एवं प्रसंस्करण, भारी पानी का उत्पादन, नाभिकीय ईंधन संविरचन, ईंधन पुनर्संस्करण तथा नाभिकीय अपशिष्ट प्रबंधन शामिल हैं, के कार्य में लगा हुआ है।
  • परमाणु ऊर्जा विभाग की स्वतंत्र इकाई के रूप में BRIT स्वास्थ्य देखभाल, उद्योग, कृषि एवं अनुसंधान क्षेत्रों के लिये विकिरण एवं आइसोटोप पर आधारित विभिन्न उत्पाद एवं सेवाएँ उपलब्ध कराता है।

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