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डेली न्यूज़

  • 22 Jun, 2021
  • 51 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ

प्रिलिम्स के लिये 

ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ, पीकॉक सॉफ्ट-शेल्ड कछुआ 

मेन्स के लिये

हिंद महासागर समुद्री कछुआ समझौता, टर्टल सर्वाइवल अलायंस-इंडिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम वन विभाग ने दो गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं और वर्ष 2030 तक कम-से-कम 1,000 ब्लैक सॉफ्टशेल कछुओं (Black Softshell Turtles) को पालने के लिये एक विज़न दस्तावेज़ (Vision Document) अपनाया है।

Softshell-Turtle

प्रमुख बिंदु 

ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए के बारे में:

  • वैज्ञानिक नाम: निल्सोनिया नाइग्रिकन्स (Nilssonia Nigricans)
  • विशेषताएँ:
    • वे लगभग भारतीय पीकॉक सॉफ्ट-शेल्ड कछुआ (Peacock Soft-shelled Turtle) (निल्सोनिया हर्म) के समान दिखते हैं, जिसे IUCN की रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • पर्यावास:
    • भारत में ताज़े जल के कछुओं की 29 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • वे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में पाए जाते हैं। इसकी वितरण सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ भी शामिल हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:
  • संकट:
    • कछुए के मांस और अंडे का सेवन, रेत खनन (Silt Mining), आर्द्रभूमि का अतिक्रमण एवं बाढ़ के पैटर्न में बदलाव।

भारतीय जल क्षेत्र के समुद्री कछुए:

  • भारतीय जल में कछुए की पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं अर्थात् ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल्स, लॉगरहेड, हॉक्सबिल, लेदरबैक।
    • ओलिव रिडले, लेदरबैक और लॉगरहेड को IUCN रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज़ (IUCN Red List of Threatened Species) में 'सुभेद्य' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • हॉक्सबिल कछुए को 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और ग्रीन टर्टल को IUCN की खतरनाक प्रजातियों की रेड लिस्ट में 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
      • वे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, अनुसूची I के तहत संरक्षित हैं।

कछुआ संरक्षण:

  • राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना:
    • इसमें न केवल संरक्षण के लिये अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई को बढ़ावा देने के तरीके और साधन शामिल हैं बल्कि ये समुद्री स्तनधारियों के फँसे होने, उलझने, चोट लगने या मृत्यु दर के मामलों तथा समुद्री कछुओं की प्रतिक्रिया पर सरकार, नागरिक समाज एवं सभी संबंधित हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय का मार्गदर्शन भी करते हैं। 
  • हिंद महासागर समुद्री कछुआ समझौता (IOSEA):
    • भारत संयुक्त राष्ट्र समर्थित पहल, प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (Convention on Migratory Species- CMS) के हिंद महासागर समुद्री कछुआ समझौते (Indian Ocean Sea Turtle Agreement- IOSEA) का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
    • यह एक ढाँचा तैयार करता है जिसके माध्यम से हिंद महासागर एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के राज्यों के साथ ही अन्य संबंधित राज्य, घटती समुद्री कछुओं की आबादी को बचाने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं जिसके लिये वे ज़िम्मेदारी साझा करते हैं।
  • कूर्मा एप:
    • यह एक डिजिटल डेटाबेस के रूप में कार्य करता है जिसमें भारत के ताज़े जल के कछुओं सहित कछुओं की 29 प्रजातियों को शामिल किया गया है।
    • इस एप को ‘टर्टल सर्वाइवल अलायंस-इंडिया’ (Turtle Survival Alliance-India) और ‘वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सोसाइटी-इंडिया’ (Wildlife Conservation Society-India) के सहयोग से ‘इंडियन टर्टल कंज़र्वेशन एक्शन नेटवर्क’ (Indian Turtle Conservation Action Network- ITCAN) द्वारा विकसित किया गया है।
  • विश्व कछुआ दिवस प्रतिवर्ष 23 मई को मनाया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

गेहूँ और चावल में पोषक तत्त्वों की कमी

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, मध्याह्न भोजन, आँगनवाड़ी

मेन्स के लिये:

गेहूँ और चावल में पोषक तत्त्वों की कमी का कारण तथा इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के तहत विभिन्न संस्थानों के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि भारत में चावल और गेहूँ की खेती में जस्ता और लोहे के अनाज घनत्व में कमी आई है।

  • शोधकर्त्ताओं ने चावल के बीज (16 किस्में) और गेहूँ (18 किस्में) को ICAR के कल्टीवर रिपॉज़िटरी में बनाए गए जीन बैंक से एकत्र किया।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

  • यह कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • यह पूरे देश में बागवानी, मत्स्य पालन और पशु विज्ञान सहित कृषि में अनुसंधान तथा शिक्षा के समन्वय, मार्गदर्शन एवं प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है।
  • इसकी स्थापना 16 जुलाई, 1929 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। देश भर में फैले 102 ICAR से संबंधित संस्थानों और 71 कृषि विश्वविद्यालयों के साथ यह दुनिया की सबसे बड़ी राष्ट्रीय कृषि प्रणालियों में से एक है।
  • ‘कल्टीवर रिपॉज़िटरी’ नोडल संस्थान हैं जो हमारे देश की पुरानी किस्मों को संरक्षित और संग्रहीत करते हैं।

प्रमुख बिंदु:

अवलोकन:

  • चावल में सांद्रता:
    • 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों के अनाज में जिंक और आयरन की सांद्रता 27.1 मिलीग्राम/किलोग्राम और 59.8 मिलीग्राम/किलोग्राम थी। यह 2000 के दशक के भीतर क्रमशः 20.6 मिलीग्राम/किलोग्राम और 43.1 मिलीग्राम/किलोग्राम तक कम हो गई।
  • गेहूँ में सांद्रता:
    • वर्ष 1960 के दशक की गेहूँ की किस्मों में जस्ता और लोहे की सांद्रता 33.3 मिलीग्राम/ किग्रा और 57.6 मिलीग्राम/किग्रा. थी, जो 2010 के दौरान जारी की गई किस्मों में क्रमशः 23.5 मिलीग्राम/किग्रा. और 46.4 मिलीग्राम/किग्रा. तक गिर गई।

कमी का कारण:

  • मंदन प्रभाव’ के कारण अनाज की उच्च उपज के साथ पोषक तत्त्वों की सांद्रता में कमी आती है।
  • इसका मतलब यह है कि उपज में वृद्धि की दर पौधों द्वारा पोषक तत्त्व ग्रहण करने की दर के अनुकूल नहीं होती है। इसके अलावा पौधों को उपलब्ध पोषक तत्त्वों में मृदा अनुकूलित पौधों में कमी हो सकती है।

सुझाव:

  • भारतीय आबादी में जस्ता और लौह कुपोषण को कम करने के लिये चावल और गेहूँ की नई (1990 और बाद में) किस्में उगाना एक स्थायी विकल्प नहीं हो सकता है।
    • जिंक और आयरन की कमी वैश्विक स्तर पर अरबों लोगों को प्रभावित करती है तथा इसकी कमी वाले देशों में मुख्य रूप से चावल, गेहूँ, मक्का और जौ से बने आहारों का प्रयोग किया जाता है।
  • भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों में किस्मों को जारी करने में अनाज में पोषण संबंधी कमी में सुधार करके नकारात्मक प्रभावों को दूर करने की आवश्यकता है।
  • बायोफोर्टिफिकेशन जैसे अन्य विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जहाँ हम सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य फसलों का उत्पादन कर सकते हैं।

बायोफोर्टिफिकेशन:

  • बायोफोर्टिफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कृषि संबंधी प्रथाओं, पारंपरिक पौधों के प्रजनन, या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।

भारत द्वारा की गई पहल:

  • हाल ही में प्रधानमंत्री ने 8 फसलों की 17 बायोफोर्टिफाइड किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया। कुछ उदाहरण हैं:
    • चावल- CR धान 315 में जिंक की अधिकता होती है।
    • गेहूँ- HI 1633 प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर।
    • मक्का- हाइब्रिड किस्में 1, 2 और 3 लाइसिन और ट्रिप्टोफैन से समृद्ध होती हैं।
  • बायोफोर्टिफाइड गाजर की किस्म ‘मधुबन गाजर’ गुजरात के जूनागढ़ में 150 से अधिक स्थानीय किसानों को लाभान्वित कर रही है। इसमें β-कैरोटीन और आयरन की मात्रा अधिक होती है।
  • कृषि को पोषण से जोड़ने वाली खेती को बढ़ावा देने के लिये ICAR ने ‘न्यूट्री-सेंसिटिव एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज़ एंड इनोवेशन’ (NARI) कार्यक्रम शुरू किया है, पोषाहार सुरक्षा बढ़ाने के लिये न्यूट्री-स्मार्ट गाँव और स्थानीय रूप से उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं एवं विविध सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये स्थान विशिष्ट पोषण उद्यान मॉडल विकसित किये जा रहे हैं। 
  • बायो-फोर्टिफाइड फसल किस्मों के उत्पादन को बढ़ाया जाएगा और कुपोषण को कम करने के लिये उन्हें मध्याह्न भोजन, आँगनवाड़ी आदि सरकारी कार्यक्रमों से जोड़ा जाएगा।

बायोफोर्टिफिकेशन का महत्व:

  • बेहतर स्वास्थ्य:
    • बायोफोर्टिफाइड प्रधान फसलों का जब नियमित रूप से सेवन होता है तो मानव स्वास्थ्य और पोषण में औसत दर्जे का सुधार होता है।
  • उच्च लचीलापन:
    • बायोफोर्टिफाइड फसलें अक्सर कीटों, बीमारियों, उच्च तापमान, सूखे के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं और उच्च उपज प्रदान करती हैं।
  • पहुँच में वृद्धि:
    • बायोफोर्टिफिकेशन एक महत्त्वपूर्ण अंतर को भरता है क्योंकि यह आयरन सप्लीमेंट के लिये भोजन आधारित, टिकाऊ और कम खुराक वाला विकल्प प्रदान करता है। इसके लिये व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, यह समाज के सबसे गरीब वर्गों तक पहुँच सकता है और स्थानीय किसानों का समर्थन करता है।
  • प्रभावी लागत:
    • बायोफोर्टिफाइड बीज को विकसित करने के लिये प्रारंभिक निवेश के बाद इसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की सांद्रता में किसी भी कमी के बिना वितरित किया जा सकता है। जो इसे अत्यधिक लागत प्रभावी और टिकाऊ बनाता है।

भारत में बायोफोर्टिफिकेशन की चुनौतियाँ:

  • स्वीकृति की कमी:
    • रंग परिवर्तन (जैसे- गोल्डन राइस) के कारण उपभोक्ताओं की कमी और फोर्टिफाइड भोजन की अंतिम व्यक्ति तक पहुँच एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
  • लागत:
    • किसानों द्वारा अनुकूलन और फोर्टिफिकेशन की प्रक्रिया में शामिल लागत।
  • धीमी प्रक्रिया:
    • हालाँकि बायोफोर्टिफिकेशन गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित विधियों का उपयोग करके किया जा सकता है, यह आनुवंशिक संशोधन की तुलना में धीमी प्रक्रिया है।

आगे की राह:

  • देश में विविध खाद्य प्रथाओं की व्यापकता के कारण भौगोलिक दृष्टि से अलग क्षेत्रों में बायोफोर्टिफिकेशन को अपनाने और खपत की उच्च दर हासिल करने की आवश्यकता होगी।
  • बायोफोर्टिफाइड फसलों की डिलीवरी के लिये रणनीतियाँ प्रत्येक फसल-पोषक जोड़े हेतु स्थानीय संदर्भ के अनुरूप होनी चाहिये।
  • सरकार को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिये। निजी क्षेत्र की भागीदारी खाद्य सुदृढ़ीकरण पहलों को बढ़ाने हेतु तकनीकी समाधानों का लाभ उठा सकती है और समुदायों में जन जागरूकता तथा  शिक्षा अभियानों के माध्यम से सरकार के प्रयासों को पूरक बना सकती है।
  • पोषण की कमी न केवल एक मौलिक मानव अधिकार का हनन है, बल्कि यह एक खराब अर्थशास्त्र भी है। बायोफोर्टिफिकेशन एक आंशिक समाधान है, जिसे गरीबी, खाद्य असुरक्षा, बीमारी, खराब स्वच्छता स्थिति, सामाजिक और लैंगिक असमानता को कम करने के प्रयासों के साथ-साथ जारी रखा जाना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

विश्व सिकल सेल दिवस, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व सिकल सेल दिवस, सिकल सेल रोग

मेन्स के लिये:

सिकल सेल रोग तथा इसके रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

19 जून को जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs- MOTA) ने विश्व सिकल सेल रोग (World Sickle Cell Disease- SCD) दिवस मनाने के लिये झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी ज़िलों में SCD की स्क्रीनिंग एवं समय पर प्रबंधन को मज़बूत करने हेतु उन्मुक्त परियोजना के तहत मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई।

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने आधिकारिक तौर पर 22 दिसंबर, 2008 को यह घोषणा की थी कि प्रत्येक वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
  • UNGA ने SCD को पहले आनुवंशिक रोगों में से एक के रूप में भी मान्यता दी है।

प्रमुख बिंदु:

सिकल सेल रोग:

  • यह एक वंशानुगत रक्त संबंधी रोग है जो अफ्रीकी, अरब और भारतीय मूल के लोगों में सबसे अधिक प्रचलित है।
  • यह विकारों का एक समूह है जो हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का एक अणु है जो पूरे शरीर में कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।
  • इस रोग से पीड़ितों में हीमोग्लोबिन एस नामक असामान्य हीमोग्लोबिन अणु पाए जाते हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं को अर्धचंद्राकार आकार में विकृत कर सकते हैं।
    • ये रक्त के प्रवाह और ऑक्सीजन को शरीर के सभी हिस्सों तक पहुँचने से रोकते हैं।

Cell-Disease

लक्षण

  • यह गंभीर दर्द पैदा कर सकता है, जिसे सिकल सेल क्राइसिस (Sickle Cell Crises) कहा जाता है।
  • समय के साथ सिकल सेल रोग वाले लोगों के यकृत, गुर्दे, फेफड़े, हृदय और प्लीहा सहित अन्य अंगों को नुकसान पहुँच सकता है।  इस विकार की जटिलताओं के कारण मृत्यु भी हो सकती है।

उपचार 

  • औषधि, रक्त आधान और कभी-कभी अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण इसका उपचार है।

संबंधित आँकड़े:

  • अकेले भारत में SCD के लगभग 1,50,000 रोगी हैं और एशिया में लगभग 88 प्रतिशत मामले सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia- SCA) के हैं।
  • भारत में यह रोग मुख्य रूप से पूर्वी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी ओडिशा और उत्तरी तमिलनाडु तथा केरल में नीलगिरि पहाड़ियों के क्षेत्रों में व्याप्त है।
  • यह रोग आदिवासी समुदायों (बच्चों सहित) के बीच फैल रहा है।
    • मंत्रालय के अनुसार, SCD महिलाओं और बच्चों को अधिक प्रभावित कर रहा है तथा SCD पीड़ित लगभग 20% आदिवासी बच्चों की दो वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले ही मृत्यु हो जाती है एवं 30% बच्चों की मृत्यु वयस्क होने से पहले ही हो जाती है।

चुनौतियाँ: 

  • जनजातीय आबादी के बीच सामाजिक कलंक और प्रसार (जहाँ SCD की देखभाल तक पहुँच सीमित है) आदि इस रोग से निपटने हेतु चुनौतियाँ हैं।
  • स्कूल छूट जाना:
    • सिकल सेल रोग से पीड़ित बच्चों को प्रायः स्कूल छोड़ना पड़ जाता है।
  • नीति संबंधी मुद्दे: 
    • हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathies) पर 2018 मसौदा नीति का विलंबित कार्यान्वयन।
      • इस नीति का उद्देश्य रोगियों को साक्ष्य-आधारित उपचार प्रदान करना और सिकल सेल एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम, स्क्रीनिंग तथा प्रसव पूर्व निदान जैसी पहलों के माध्यम से सिकल सेल रोग वाले नवजात बच्चों की संख्या कम करना है।

भारत की पहल:

  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा पहल:
    • SCD सपोर्ट कॉर्नर- SCD सपोर्ट कॉर्नर की परिकल्पना भारत के जनजातीय क्षेत्रों में SCD से संबंधित सूचना के साथ वन स्टॉप पोर्टल के रूप में की गई। यह पोर्टल डैशबोर्ड, ऑनलाइन स्व-पंजीकरण सुविधा के माध्यम से प्रत्येक आगंतुक को वास्तविक समय डेटा तक पहुँच प्रदान करेगा और रोग तथा विभिन्न सरकारी पहलों के बारे में जानकारी के साथ एक ज्ञान भंडार के रूप में कार्य करेगा।
    • एक 'एक्शन रिसर्च' परियोजना जिसके तहत इस बीमारी से पीड़ित रोगी में जटिलताओं को कम करने के लिये योग पर निर्भर जीवन शैली को बढ़ावा दिया जाता है।
  • विस्तारित स्क्रीनिंग:
    • छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे कुछ राज्यों ने अपने स्क्रीनिंग कार्यक्रमों को अस्पताल से लेकर स्कूल-आधारित स्क्रीनिंग तक विस्तारित कर दिया है।
    • इस तरह के स्क्रीनिंग प्रयासों और कार्यान्वयन रणनीतियों को अन्य राज्यों में लागू करने से रोग की व्यापकता का पता लगाने में मदद मिलेगी।
  • दिव्यांगता प्रमाण पत्र:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने SCD  रोगियों के लिये दिव्यांगता प्रमाण पत्र की वैधता 1 वर्ष से बढ़ाकर 3 वर्ष कर दी है।

स्रोत: पी.आई.बी


कृषि

‘बायोटेक-किसान’ कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये

बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क

मेन्स के लिये

पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता, कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ‘बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क’ (बायोटेक-किसान) मिशन कार्यक्रम के हिस्से के रूप में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये एक विशेष आह्वान जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क

  • यह वर्ष 2017 में शुरू की गई एक वैज्ञानिक-किसान साझेदारी योजना है।
  • यह अखिल भारतीय कार्यक्रम है, जो हब-एंड-स्पोक मॉडल का अनुसरण करता है और किसानों में उद्यमशीलता तथा नवाचार को प्रोत्साहित करता है एवं महिला किसानों को सशक्त बनाता है।
  • बायोटेक-किसान हब के माध्यम से कृषि और जैव-संसाधन से संबंधित रोज़गार पैदा करने के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी सुनिश्चित करने और छोटे एवं सीमांत किसानों को जैव प्रौद्योगिकी लाभ प्रदान करने का कार्य किया जा रहा है।
  • साथ ही इसके माध्यम से किसानों को सर्वोत्तम वैश्विक कृषि प्रबंधन और प्रथाओं से भी अवगत कराया जाता है।

मंत्रालय

  • यह एक किसान केंद्रित योजना है जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किसानों की सहायता से विकसित किया गया है।

उद्देश्य

  • इसे कृषि नवाचार को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कृषि स्तर पर लागू होने वाले नवीन समाधानों और प्रौद्योगिकियों का पता लगाने के लिये विज्ञान प्रयोगशालाओं को किसानों से जोड़ना था।

प्रगति

  • देश के सभी 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों और 110 आकांक्षी ज़िलों को कवर करते हुए 146 बायोटेक-किसान हब स्थापित किये गए हैं।
  • इस योजना ने अब तक दो लाख से अधिक किसानों को उनके कृषि उत्पादन और आय में वृद्धि करके लाभान्वित किया है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में 200 से अधिक उद्यमिताएँ भी विकसित की गई हैं।

वर्तमान आह्वान के विषय में

  • ‘बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क’ कार्यक्रम के तहत वर्तमान आह्वान विशेष रूप से पूर्वोतर क्षेत्र पर केंद्रित है, क्योंकि यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि प्रधान है और इसका 70 प्रतिशत कार्यबल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में संलग्न है।
  • यह क्षेत्र देश के खाद्यान्न का केवल 1.5 प्रतिशत उत्पादन करता है और इसे अपनी घरेलू खपत को पूरा करने के लिये खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है।
  • पूर्वोतर क्षेत्र में स्थान विशिष्ट फसलों, बागवानी और वृक्षारोपण फसलों, मत्स्य पालन तथा पशुधन उत्पादन को बढ़ावा देकर कृषि आबादी की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है।
  • पूर्वोतर क्षेत्र में बायोटेक-किसान हब देश भर के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों के साथ-साथ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/कृषि विज्ञान केंद्रों/इस क्षेत्र में मौजूदा राज्य कृषि विस्तार सेवाओं/प्रणालियों के प्रदर्शन और प्रशिक्षण के लिये किसानों का सहयोग करेंगे। 

कृषि में जैव प्रौद्योगिकी

  • कृषि जैव प्रौद्योगिकी
    • कृषि जैव प्रौद्योगिकी पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक विशिष्ट शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों, या जीवों के कुछ हिस्सों को बदल देती है; इसमें पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास करना आदि शामिल है।
    • आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के तहत वर्तमान में आनुवंशिक इंजीनियरिंग के भी उपकरणों को भी शामिल किया गया है।
  • उदाहरण
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMOs): ये पौधे, बैक्टीरिया, कवक और जानवर होते हैं, जिनमें विद्यमान आनुवंशिक पदार्थ को प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग करके परिवर्तित किया जाता है। GM प्लांट (बीटी कॉटन) कई तरह से उपयोगी रहे हैं।
    • बायोपेस्टिसाइड: बेसिलस थुरिनजेनेसिस एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जीवाणु है जो कीटों में बीमारी का कारण बनता है। यह जैविक कृषि में स्वीकार किया जाता है और इसकी कम लागत, आसान उपयोग तथा उच्च विषाणुता के कारण कीट प्रबंधन के लिये आदर्श माना जाता है।

लाभ

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) से फसलों में कई फायदे होते हैं जिनमें कटाई के बाद कम नुकसान, मानव कल्याण हेतु  अतिरिक्त पोषक तत्त्वों हेतु फसलों को संशोधित किया जाना आदि शामिल हैं।
  • इनमें से कुछ फसलों के उपयोग से काम आसान हो सकता है और किसानों की सुरक्षा में सुधार हो सकता है। यह किसानों को कम समय में अपनी फसलों के प्रबंधन का लाभ प्रदान करेगा और अन्य लाभदायक गतिविधियों के लिये उन्हें अधिक समय मिल सकेगा।

नुकसान

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध: इस बात को लेकर चिंता है कि इसके उपयोग से नए एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया सामने आ सकते हैं, जिनसे निपटना पारंपरिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिये काफी मुश्किल होगा।
  • 'सुपरवीड्स' की संभावना: ट्रांसजेनिक पौधे अवांछित पौधों (जैसे- खरपतवार) के साथ परागण कर सकते हैं और इस तरह उनमें शाकनाशी-प्रतिरोध या कीटनाशक-प्रतिरोध के जीन को प्रसारित कर सकते हैं, जिससे वे 'सुपरवीड्स' में परिवर्तित हो सकते हैं।
  • जीवों में जैव विविधता का नुकसान: एग्रीटेक किस्मों के बीजों के व्यापक उपयोग ने कुछ कृषकों को भयभीत कर दिया है क्योंकि इससे पौधों की प्रजातियों की जैव विविधता को नुकसान हो रहा है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) वाली किस्मों का व्यापक उपयोग इस तथ्य के कारण है कि वे अधिक लाभदायक और सूखा प्रतिरोधी होती हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च

प्रिलिम्स के लिये:

गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च, SARS-CoV-2

मेन्स के लिये:

गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

कहा जा रहा है कि ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ ने कोरोनवायरस पर ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ रिसर्च किया जो संभवतः SARS-CoV-2 (कोविड -19 महामारी) के लैब-रिसाव की उत्पत्ति का कारण हो सकता है।

प्रमुख बिंदु:

‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ रिसर्च

  • वायरोलॉजी के अंतर्गत ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ रिसर्च में प्रयोगशाला में एक जीव को जान-बूझकर बदलना, एक जीन को बदलना या एक रोगज़नक में उत्परिवर्तन की शुरुआत करना शामिल है ताकि इसकी संप्रेषणीयता, विषाणु और प्रतिरक्षात्मकता का अध्ययन किया जा सके। 
  • यह कार्य वायरस को आनुवंशिक रूप से विभिन्न विकास माध्यमों में बढ़ने की अनुमति देकर किया जाता है, इस तकनीक को ‘सीरियल पैसेज’ कहा जाता है।
    • ‘सीरियल पैसेज’ से तात्पर्य बैक्टीरिया या वायरस के पुनरावृत्तियों में बढ़ने की प्रक्रिया से है। उदाहरण के लिये वायरस को एक वातावरण में उत्पन्न करना और फिर उस वायरस की आबादी के एक हिस्से को हटाकर एक नए वातावरण में रखा जाना।

महत्त्व:

  • यह शोधकर्त्ताओं को संभावित उपचारों और भविष्य में रोग को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने के तरीकों का अध्ययन करने की अनुमति देगा।
  • टीके के विकास के लिये ‘गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन’ जो ‘वायरल यील्ड’ और इम्यूनोजेनेसिटी (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से संबंधित) को बढ़ाता है, आवश्यक है।

मुद्दे:

  • ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ अनुसंधान में परिचालन भी शामिल हैं जो कुछ रोगजनक रोगाणुओं को अधिक घातक या पारगम्य बनाते हैं।
  • एक शोध का नाम 'लॉस-ऑफ-फंक्शन' भी है, जिसमें निष्क्रिय उत्परिवर्तन शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप मूल में महत्त्वपूर्ण हानि होती है या रोगजनक को कोई कार्य नहीं होता है।
    • जब उत्परिवर्तन होते हैं, तो वे वायरस की उस संरचना को बदल देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उत्परिवर्तन होता है, यह  वायरस को कमज़ोर कर सकता है या इसके कार्य करने की दर को बढ़ा सकता है।
  • गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान में कथित तौर पर निहित जैव सुरक्षा और जैव सुरक्षा जोखिम होते हैं और इस प्रकार इसे 'चिंता के दोहरे उपयोग अनुसंधान' (DURC) के रूप में संदर्भित किया जाता है।
    • यह इंगित करता है कि जहाँ अनुसंधान से मानवता के लिये लाभ हो सकता है, वहीं नुकसान की भी संभावना है - प्रयोगशालाओं से इन परिवर्तित रोगजनकों के आकस्मिक या उन्हें जान-बूझकर दूर करने से भी महामारी हो सकती है (जैसा कि कोविड -19 के मामले में कहा जाता है) 

भारत में स्थिति:

  • आनुवंशिक जीवों या कोशिकाओं और खतरनाक सूक्ष्मजीवों तथा उत्पादों से संबंधित सभी गतिविधियों को "खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात एवं भंडारण नियम, 1989" के अनुसार विनियमित किया जाता है।
  • 2020 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने 'जैव सुरक्षा प्रयोगशाला' नामक नियंत्रण सुविधाओं की स्थापना के लिये दिशा-निर्देश जारी किये।
    • अधिसूचना जैव खतरों की रोकथाम और जैव सुरक्षा के स्तर पर परिचालन मार्गदर्शन प्रदान करती है जिसका इन सूक्ष्मजीवों के अनुसंधान, विकास और प्रबंधन में शामिल सभी संस्थानों को पालन करना चाहिये।

गेन-ऑफ-फंक्शन पर बहस:

  • समर्थन में तर्क:
    • यह विज्ञान और सरकारों को भविष्य की महामारियों हेतु युद्ध के लिये तैयार करता है।
    • गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च के समर्थकों का मानना ​​है कि "प्रकृति सबसे बढ़ी जैव आतंकवादी है और हमें इससे एक कदम आगे रहने के लिये हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है"।
  • आलोचना:
    • कोविड -19 महामारी के बाद इस तरह के अनुसंधान को लेकर और अधिक चिंता जताई जा रही है।
    • यह जीवित चीज़ों के विलुप्त होने का कारण बन सकता है या उनके आनुवंशिक गुणों को हमेशा के लिये बदल सकता है।

आगे की राह:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को DURC पर गतिविधियों का नेतृत्व करना चाहिये।
  • जैव-जोखिमों और संबद्ध नैतिक मुद्दों के शमन एवं रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीव विज्ञान से संबंधित अनुसंधान का ज़िम्मेदारी के साथ उपयोग होना चाहिये।
  • देशों द्वारा अनुसरण हेतु एक वैश्विक मार्गदर्शन ढाँचा विकसित करना।
  • इस तरह के शोध के बारे में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

चिकित्सीय, ग्रामीण और MICE पर्यटन को बढ़ावा देने की रणनीति

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धी सूचकांक, चिकित्सा और स्वास्थ्य पर्यटन (MWT), MICE 

मेन्स के लिये:

चिकित्सीय, ग्रामीण और MICE पर्यटन को बढ़ावा देने की रणनीति

चर्चा में क्यों?

पर्यटन मंत्रालय ने भारत में ग्रामीण पर्यटन के विकास और MICE उद्योग को बढ़ावा देने के लिये चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर्यटन को प्रोत्साहन देने हेतु रोडमैप के साथ तीन मसौदा रणनीतियाँ तैयार की है।

  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जारी विश्व यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धी सूचकांक 2019 में भारत को 140 देशों में से 34 वें स्थान पर रखा गया है।

प्रमुख बिंदु

 चिकित्सा और स्वास्थ्य पर्यटन (MWT):

  • यह स्वास्थ्य सेवाओं की प्राप्ति हेतु अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार यात्रा करने की तेज़ी से बढ़ रही प्रवृत्ति का वर्णन करता है।
  • इसे मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है - चिकित्सा उपचार, स्वास्थ्य एवं कायाकल्प और वैकल्पिक इलाज। अब इसे प्रायः मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (MWT) के रूप में जाना जाता है।

भारत में MWT का दायरा:

  • अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ: भारत में वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय समूहों के शीर्ष चिकित्सा और नैदानिक ​​उपकरण उपलब्ध हैं।
  • प्रतिष्ठित हेल्थकेयर पेशेवर: भारत को उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा प्रशिक्षण के लिये प्रतिष्ठा प्राप्त है और साथ ही यहाँ के चिकित्सक विदेशियों के साथ अंग्रेज़ी में भी धाराप्रवाह बातचीत करने में सक्षम हैं।
  • वित्तीय बचत: भारत में चिकित्सा प्रक्रियाओं और सेवाओं की गुणवत्ता की लागत कम है।
  • वैकल्पिक इलाज: भारत में उपचार के लिये योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा जैसी वैकल्पिक सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।

प्रमुख रणनीति:

  •  "हील इन इंडिया" ब्रांड द्वारा MWT गंतव्य के रूप में भारत को बढ़ावा देना।
  • MWT फैसिलिटेटर, उद्यमों और कर्मचारियों की क्षमता का निर्माण।
  • अंतर्राष्ट्रीय रोगियों की सुविधा के लिये वन स्टॉप सॉल्यूशन प्रदान करने के लिये एक ऑनलाइन MWT पोर्टल की स्थापना।
  • स्वास्थ्य, आतिथ्य और यात्रा व्यवसायों का अभिसरण।

ग्रामीण पर्यटन:

  • पर्यटन का कोई भी रूप जो ग्रामीण स्थानों पर ग्रामीण जीवन, कला, संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करता है तथा जिससे स्थानीय समुदाय को आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभ होता है।
  • यह स्थायी और ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है।

भारत में दायरा:

  • भारत के गाँवों में आगंतुकों के समक्ष पेश करने के लिये अद्वितीय संस्कृति, शिल्प, संगीत, नृत्य और विरासत है।
  • ठहरने की सुविधा और अनुभव प्रदान करने के लिये अच्छी तरह से विकसित कृषि और खेत यहाँ उपलब्ध हैं।
  • मनोरम जलवायु स्थिति और जैव विविधता।
  • भारत में पर्यटकों के लिये तटीय, हिमालयी, रेगिस्तानी, जंगल और आदिवासी क्षेत्र हैं।

प्रमुख रणनीति:

  • क्षमता निर्माण (पंचायती राज संस्थानों सहित) के लिये एक उपकरण के रूप में राज्य मूल्यांकन और रैंकिंग।
  • ग्रामीण पर्यटन के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों को सक्षम करना; जैसे पर्यटन क्षमता वाले ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण पर्यटन के लिये क्लस्टर विकसित करना।

MICE (बैठकें, प्रोत्साहन, सम्मेलन और प्रदर्शनियाँ):

  • इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार, उद्योग, सरकार और अकादमिक समुदाय के लिये नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म बनाना और सार्थक बातचीत में संलग्न होना है।
  • MICE को 'मीटिंग इंडस्ट्री' या 'इवेंट इंडस्ट्री' के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में दायरा:

  • भारत में कोर MICE अवसंरचना सुविधाएँ अधिकांश विकसित देशों के समान हैं।
  • भारत ने विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट और WEF की ट्रैवल एंड टूरिज़्म कॉम्पिटिटिवनेस रैंक में अपनी स्थिति में लगातार सुधार किया है।
  • भारत की लगातार मज़बूत हो रही आर्थिक स्थिति।
  • भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में तेज़ी से प्रगति की है।

प्रमुख रणनीति:

  • "मीट इन इंडिया" ब्रांड द्वारा MICE उद्योग को बढ़ावा देना।
  • MICE अवसंरचना के वित्तपोषण के लिये इसे अवसंरचना का दर्जा प्रदान करना।
  • MICE उद्योग के लिये कौशल विकास करना।

महत्त्व

  • गुणक प्रभाव: पर्यटन क्षेत्र न केवल उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियाँ प्रदान करता है बल्कि यह भारत में निवेश को भी बढ़ाता है, विकास को गति भी देता है।
  • सेवा क्षेत्र का विकास: एयरलाइन, होटल, परिवहन आदि जैसे सेवा क्षेत्र में लगे व्यवसायों की एक बड़ी संख्या पर्यटन उद्योग के विकास के साथ बढ़ती है।
  • राष्ट्रीय विरासत और पर्यावरण का संरक्षण तथा सांस्कृतिक गौरव का नवीनीकरण।
  • सॉफ्ट पावर: पर्यटन सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने में मदद करता है, लोगों को जोड़ता है और इस तरह भारत तथा अन्य देशों के बीच दोस्ती एवं सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • पर्यटन के अन्य रूपों को बढ़ावा: भारत में संबंधित क्षेत्रों जैसे इको-टूरिज़्म, नेचर रिजर्व, वाइल्डलाइफ टूरिज़्म, हिमालयी टूरिज्म के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएँ हैं। भारत में 38 विश्व धरोहर स्थल हैं जिनमें 30 सांस्कृतिक धरोहर, 7 प्राकृतिक धरोहर और 1 मिश्रित धरोहर शामिल हैं।

चुनौतियाँ

  •  बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: बुनियादी ढाँचे में कमी और अपर्याप्त कनेक्टिविटी कुछ स्थानों पर पर्यटकों की यात्रा में बाधा डालती है।
  • प्रचार और विपणन: हालाँकि यह बढ़ रहा है किंतु ऑनलाइन मार्केटिंग / ब्रांडिंग सीमित है और यह समन्वित अभियान नहीं हैं।
  • पर्यटक सूचना केंद्रों का प्रबंधन खराब तरीके से किया जाता है, जिससे घरेलू और विदेशी पर्यटकों के लिये आसानी से जानकारी प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  •  कौशल की कमी: सीमित संख्या में बहुभाषी प्रशिक्षित गाइड और सीमित स्थानीय जागरूकता एवं पर्यटक विकास से जुड़े लाभों और ज़िम्मेदारियों की समझ में कमी।

 अन्य:

  •  भारत को एक बहुत स्वच्छ देश न समझे जाने की धारणा प्रचलित है। यह एक चिकित्सा गंतव्य के रूप में भारत की पसंद को प्रभावित करता है।
  •  राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण पर्यटन के लिये प्राथमिकता का अभाव।
  •  एक उद्योग के रूप में MICE पर केंद्रित दृष्टिकोण का अभाव।

 पर्यटन मंत्रालय की प्रमुख योजनाएँ 

  •  प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल पहल
  •  देखो अपना देश अभियान
  •  प्रसाद योजना
  •  स्वदेश दर्शन योजना

आगे की राह

  •  'एक भारत एक पर्यटन' दृष्टिकोण: पर्यटन कई मंत्रालयों को शामिल करता है और कई राज्यों से संबंधित होता है। अतः इसके विकास के लिये केंद्र और अन्य राज्यों द्वारा सामूहिक प्रयासों तथा सहयोग किये जाने की आवश्यकता होती है।
  • पर्यटन की सुगमता को बढ़ावा देना: वास्तव में एक निर्बाध पर्यटक परिवहन अनुभव सुनिश्चित करने के लिये हमें सभी अंतरराज्यीय सड़क करों को मानकीकृत करने और उन्हें एक ही बिंदु पर देय बनाने की आवश्यकता है जो व्यापार करने में आसानी व सुविधा प्रदान करेगा।

भूगोल

ग्रीष्म संक्रांति: 21 जून

प्रिलिम्स के लिये

ग्रीष्म संक्रांति, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, 

मेन्स के लिये 

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

21 जून उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबा दिन होता है, तकनीकी रूप से इस दिन को ग्रीष्म अयनांत या संक्रांति (Summer Solstice) कहा जाता है। दिल्ली में यह दिन लगभग 14 घंटे का होता है। 

  • ग्रीष्म संक्रांति के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध में एक विशिष्ट क्षेत्र द्वारा प्राप्त प्रकाश की मात्रा उस स्थान के अक्षांशीय स्थान पर निर्भर करती है।
  • 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

'संक्रांति' शब्द का अर्थ:

  • यह एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है “Stalled Sun” यानी “ठहरा हुआ सूर्य”। यह एक प्राकृतिक घटना है जो पृथ्वी के प्रत्येक गोलार्द्ध में वर्ष में दो बार होती है, एक बार ग्रीष्म ऋतु में और एक बार शीत ऋतु में।

Summer-Solstice

ग्रीष्म संक्रांति के बारे में:

  • यह उत्तरी गोलार्द्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
  • इस दौरान उत्तरी गोलार्द्ध के देश सूर्य के सबसे निकट होते हैं और सूर्य कर्क रेखा (23.5° उत्तर) पर ऊपर की ओर चमकता है।
    • 23.5° के अक्षांशों पर कर्क और मकर रेखाएँ भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में स्थित हैं।
    • 66.5° पर उत्तर और दक्षिण में आर्कटिक और अंटार्कटिक वृत्त हैं।
    • अक्षांश भूमध्य रेखा से किसी स्थान की दूरी का माप है।
  • संक्रांति के दौरान पृथ्वी की धुरी जिसके चारों ओर ग्रह एक चक्कर पूरा करता है।
  • आमतौर पर यह काल्पनिक धुरी ऊपर से नीचे तक पृथ्वी के मध्य से होकर गुज़रती है और हमेशा सूर्य के संबंध में 23.5 डिग्री झुकी होती है।
  • आर्कटिक सर्कल में संक्रांति के दौरान सूर्य कभी अस्त नहीं होता है।

ऊर्जा की अधिक मात्रा:

  • इस दिन सूर्य से प्राप्त ऊर्जा की अधिक मात्रा इसकी विशेषता है। नासा (राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन) के अनुसार, इस दिन पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा भूमध्य रेखा की तुलना में उत्तरी ध्रुव पर 30% अधिक होती है।
  • इस समय के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध द्वारा सूर्य के प्रकाश की अधिकतम मात्रा आमतौर पर 20, 21 या 22 जून को प्राप्त होती है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे अधिक धूप 21, 22 या 23 दिसंबर को प्राप्त होती है, जब उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबी रातें या शीतकालीन संक्रांति होती है।

भौगोलिक कारण:

  • दिनों की बदलती लंबाई के पीछे का कारण पृथ्वी का झुकाव है।
  • पृथ्वी का घूर्णन अक्ष अपने कक्षीय तल से 23.5° के कोण पर झुका हुआ है। यह झुकाव पृथ्वी की परिक्रमा और कक्षा जैसे कारकों के साथ सूर्य के प्रकाश की अवधि में भिन्नता को दर्शाता है, जिसके कारण ग्रह के किसी भी स्थान पर दिनों की लंबाई अलग-अलग होती है।
    • उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की दिशा में झुका हुआ आधा वर्ष बिताता है, लंबे गर्मी के दिनों में सीधी धूप प्राप्त करता है।
  • झुकाव पृथ्वी पर विभिन्न मौसमों के लिये भी ज़िम्मेदार है। इस घटना के कारण सूर्य की गति उत्तरी से दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर होती है और इसके विपरीत यह वर्ष में मौसमी परिवर्तन लाता है।

विषुव 

  • वर्ष में दो बार विषुव ("बराबर रातें") के दौरान पृथ्वी की धुरी हमारे सूर्य की ओर नहीं होती है, बल्कि आने वाली किरणों के लंबवत होती है।
  • इसका परिणाम सभी अक्षांशों पर "लगभग" समान मात्रा में दिन के उजाले और अंधेरे में होता है।
  • वसंत विषुव (Spring Equinox) उत्तरी गोलार्द्ध में 20 या 21 मार्च को होता है। 22 या 23 सितंबर को उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु या पतझड़ विषुव होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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