मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन
चर्चा में क्यों?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department-IMD) के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर की शाखा सामान्य मानसून के लिये प्रभावकारी प्रमाणित होने वाली मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-Julian Oscillation- MJO) लहर की प्रतीक्षा कर रही है।
मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO)
- मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है।
- यह साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव लाने के लिये ज़िम्मेदार मानी जाती है।
- मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है।
- यह निरंतर प्रवाहित होने वाली घटना है एवं हिंद एवं प्रशांत महासागरों में सबसे प्रभावशाली है।
- इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक चलती हुई प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्य रेखा के चारों ओर घूमती है वर्षा की शुरुआत हो जाती है।
- इस घटना का नाम दो वैज्ञानिकों रोलैंड मैडेन और पॉल जूलियन के नाम पर रखा गया था जिन्होंने 1971 में इसकी खोज की थी।
मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-julian Oscillation-MJO) का भारतीय मानसून पर प्रभाव
- इंडियन ओशन डाईपोल (The Indian Ocean Dipole-IOD), अल-नीनो (El-Nino) और मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन(Madden-julian Oscillation-MJO) सभी महासागरीय और वायुमंडलीय घटनाएँ हैं, जो बड़े पैमाने पर मौसम को प्रभावित करती हैं।इंडियन ओशन डाईपोल केवल हिंद महासागर से संबंधित है, लेकिन अन्य दो वैश्विक स्तर पर मौसम को मध्य अक्षांश तक प्रभावित करती हैं।
- IOD और अल नीनो अपने पूर्ववर्ती स्थिति में बने हुए हैं, जबकि MJO एक निरंतर प्रवाहित होने वाली भौगोलिक घटना है।
- एमजेओ की यात्रा आठ चरणों से होकर गुज़रती है।
- जब यह मानसून के दौरान हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी बारिश होती है।
- दूसरी ओर, जब यह एक लंबे चक्र की समयावधि के रूप में होता है और प्रशांत महासागर के ऊपर रहता है तब भारतीय मानसूनी मौसम में कम वर्षा होती है।
- यह उष्णकटिबंध में अत्यधिक परंतु दमित स्वरूप के साथ वर्षा की गतिविधियों को संपादित करता है जो कि भारतीय मानसूनी वर्षा के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (एमजेओ-MJO) की समयावधि:
- यदि यह लगभग 30 दिनों तक बना रहता है तो मानसून के मौसम में इसके कारण अच्छी बारिश होती है।
- यदि यह 40 दिन से अधिक समय तक बना रहता है तो अच्छी बारिश नहीं होती और सूखे मानसून के रहने की स्थिति बन सकती है।
- एमजेओ का चक्र जितना छोटा होगा, भारतीय मानसून उतना ही बेहतर होगा। इसके पीछे कारण यह है कि यह चार महीने की लंबी अवधि के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र से गुजरता है।
- अल-नीनो के साथ प्रशांत महासागर के ऊपर एमजेओ की उपस्थिति मानसूनी बारिश के लिये हानिकारक होती है।
स्रोत: द हिंदू, बिजनेस लाइन
ग्रीष्म लहर (Heat Waves)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में तापमान बढ़कर 43 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच गया। चित्तूर ज़िले में आम तौर पर मई माह के पहले सप्ताह में सर्वाधिक गर्मी होती है लेकिन इस वर्ष अप्रैल माह से ही यहाँ तापमान बढ़ने लगा और प्रायः जो तापमान अप्रैल माह में 40 डिग्री सेल्सियस से कम होता था वह 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। इस तरह से बढ़ते तापमान के कारण ग्रीष्म लहर (Heat Waves) एक बार फिर से चर्चा का विषय बनी हुई है।
क्या होती है ग्रीष्म लहर?
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है।
- ग्रीष्म लहर मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है। ऐसे चरम तापमान के परिणामतः बनने वाली वातावरणीय स्थितियाँ तथा अत्यधिक आर्द्रता के कारण लोगों पर पड़ने वाले शारीरिक दबाव बेहद दुष्प्रभावी होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।
ग्रीष्म लहर से प्रभावित क्षेत्र के संबंध में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मानदंड
- ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित किये जाने के लिये किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाके के लिये कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी इलाके के लिये कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये।
- जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो, ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 5 डिग्री सेल्सियस से 6 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 7 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
- जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो, ऊष्मा तरंग का सामान्य से विचलन 4 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
- वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बने रहने पर उस क्षेत्र को ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया जाना चाहिये, चाहे अधिकतम तापमान कितना भी रहे।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
- IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
- वर्ष 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति और 1866 तथा 1871 के अकाल के बाद, मौसम विश्लेषण और डाटा संग्रह कार्य के एक ढाँचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
- ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।
- हेनरी फ्राँसिस ब्लैनफर्ड को विभाग के पहले मौसम विज्ञान संवाददाता के रूप में नियुक्त किया गया था।
- IMD का नेतृत्व मौसम विज्ञान के महानिदेशक द्वारा किया जाता है।
- IMD का मुख्यालय वर्ष 1905 में शिमला, बाद में 1928 में पुणे और अंततः नई दिल्ली में स्थानांतरित किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग 27 अप्रैल 1949 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य बना।
भारत में ग्रीष्म लहर और शीत लहर में वृद्धि
- सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Program Implementation) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान देश में ग्रीष्म लहर और शीत लहर में कई गुना वृद्धि हुई है।
- वर्ष 1970 से 2018 तक राजस्थान ने ग्रीष्म और शीत लहरों का सबसे अधिक प्रकोप झेला है।
- वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2017 में ग्रीष्म लहरों की संख्या में 14 गुना वृद्धि हुई जबकि इसी अवधि के दौरान शीत लहरों की संख्या में 34 गुना वृद्धि हुई। हालाँकि वर्ष 2018 के दौरान इनमें मामूली कमी हुई।
- राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ग्रीष्म लहरों से सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं।
- वर्ष 1970 से 2018 तक शीत लहरों का सर्वाधिक प्रभाव राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहा जबकि दक्षिण भारत शीत लहरों से ज़्यादा प्रभावित नहीं हुआ।
- नीचे दिये गए मानचित्र में इन वर्षों के दौरान राज्यों में दोनों प्रकार की लहरों की व्यापकता को दर्शाया गया है।
ग्रीष्म लहर और जलवायु परिवर्तन
- ऐसा कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन ने पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए प्राकृतिक सीमाओं को परिवर्तित कर दिया है, जिससे ग्रीष्म लहर की तीव्रता और बारंबारता अधिक हो गई है।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि से अतिशय मौसमी घटनाओं, जैसे-ऊष्मा तरंगों को और बढ़ावा मिलेगा।
- भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि अल-नीनो (El-Nino) की घटना और मानवीय क्रियाकलापों के कारण ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ही देशभर में ग्रीष्म लहर की बढ़ी हुई बारंबारता और खिचीं हुई अवधि के लिये ज़िम्मेदार है।
ग्रीष्म लहर के प्रभाव
- ग्रीष्म लहर से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में सामान्यतः पानी की कमी, गर्मी से होने वाली ऐंठन तथा थकावट और लू लगना आदि शामिल हैं।
- गर्मी से होने वाली ऐंठन (Heat cramps)- इसके लक्षण हैं- 39 डिग्री सेल्सियस (यानी 102 डिग्री फारेनहाइट) से कम ताप के हल्के बुखार के साथ सूज़न और बेहोशी।
- गर्मी से होने वाली थकान (Heat exhaustion)- थकान, कमज़ोरी, चक्कर, सिरदर्द, मितली (Nausea), उल्टियाँ, मांसपेशियों में खिचाव और पसीना आना इसके कुछ लक्षण हैं।
- लू लगना या हीट स्ट्रोक (Heat stroke)- यह एक संभावित प्राणघातक स्थिति है। जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104 डिग्री फॉरेनहाइट या उससे अधिक हो जाता है तो उसके साथ अचेतना, दौरे या कोमा भी हो सकता है।
- विनाशकारी रूप से फसल का नष्ट होना, अतिताप (Hyperthermia) से मृत्यु और बिजली की अत्यधिक कटौती आदि ग्रीष्म लहर के कुछ अन्य प्रभाव हैं।
ग्रीष्म लहर के कारण होने वाली क्षति कम करने के लिये ओडिशा मॉडल
(Heat Wave Action Plan Of Odisha)
- वर्ष 1998 में ग्रीष्म लहर के कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों के बाद ओडिशा सरकार इसे चक्रवात या बड़े स्तर की आपदा के रूप में देखती है।
- अप्रैल-जून के दौरान राज्य-स्तर और ज़िला-स्तर के आपदा केंद्रों द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा व्यक्त तापमान पूर्वानुमान की लगातार निगरानी की जाती है। इसके बाद स्थानीय स्तर पर ग्रीष्म लहर से निपटने की रणनीति बनाई जाती है।
- सरकार द्वारा ग्रीष्म लहर से बचने के लिये किये गए उपायों में - विद्यालयों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों का कार्य समय सुबह-सुबह का करना, सार्वजनिक वेतन कार्यक्रम, जैसे-मनरेगा पर रोक, दिन के विभिन्न घंटों में सार्वजनिक यातायात सुविधा को बंद करना इत्यादि शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ग्रीष्म लहर का सामना करने के लिये लोगों में जागरूकता लाने हेतु विज्ञापन लगाती है, ग्रीष्म लहरों से प्रभावित या लू के मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों में अतिरिक्त साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं और नागरिक समाज संगठन जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं।
आगे की राह
- जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीष्म लहर वैश्विक रूप से तीव्र हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप दैनिक उच्चतम तापमान अधिक एवं लंबी अवधि का होगा।
- ग्रीष्म लहर के प्रतिकूल प्रभावों और उनके कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने के लिये, दीर्घावधि उपायों के साथ-साथ अल्पावधि क्रियान्वयन योजनाओं को भी लागू करना होगा।
- जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारों की तत्परता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता एवं सहयोग ही मुख्य निर्धारक सिद्ध होंगे।
स्रोत: द हिंदू एवं टीम दृष्टि इनपुट
तेल तथा गैस के आयात पर निर्भरता कम करने की सिफारिश
संदर्भ
सार्वजनिक क्षेत्र के तेल और गैस उपक्रमों के बीच सामंजस्य पैदा करने के लिये कार्ययोजना तैयार करने से जुड़े मुद्दों की जाँच करने; कर मामलों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के तेल और गैस उपक्रमों द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (Goods And Services Tax-GST) से लाभ प्राप्त करने के तरीकों के संबंध में सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- इस उच्चस्तरीय समिति में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोदकर (अध्यक्ष) और वित्तीय और कर मामलों के विशेषज्ञ सिद्धार्थ प्रधान शामिल थे।
- समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के तेल और गैस उपक्रमों तथा संयुक्त उद्यमों के विलय, अधिग्रहण एवं एकीकरण; तेल सेवाएँ प्रदान करने वाली नई कंपनी के गठन; और दुनिया भर में तेल तथा गैस क्षेत्र के लिये सक्षम मानवशक्ति उपलब्ध कराने की आवश्यकता एवं संभावना का अध्ययन किया।
भारत के लिये ऊर्जा संरक्षण का महत्त्व
- भारत में ऊर्जा सुरक्षा एक प्रमुख रणनीतिक प्राथमिकता है। वर्ष 2018 के दौरान भारत ने 204.92 MMT(Million Metric Tons) पेट्रोलियम उत्पादों तथा 58.64 BCM (Billion Cubic Meters) प्राकृतिक गैस का उपभोग किया जबकि कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का घरेलू उत्पादन स्थिर रहा।
- इस दौरान कच्चे तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquified Natural Gas-LNG) के आयात पर निर्भरता क्रमशः 82.59 प्रतिशत और 45.89 प्रतिशत थी जिसमें आने वाले दिनों में वृद्धि की संभावना है।
तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquified Natural Gas-LNG)
- LNG प्राकृतिक गैस का तरल रुप है जिसे आमतौर पर जहाज़ों के माध्यम से बड़ी मात्रा में उन देशों को भेजा जाता है जहाँ पाइप लाइन का विस्तार संभव नहीं है।
- प्राकृतिक गैस को 160 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करके तरल अवस्था में लाया जाता है। प्राकृतिक गैस से तरलीकृत प्राकृतिक गैस बनाने की प्रक्रिया के दौरान बहुत सी अशुद्धियों को पृथक किया जाता है। इसलिये LNG को प्राकृतिक गैस का शुद्धतम रुप कहा जाता है।
- वर्ष 2018 के दौरान पेट्रोलियम का आयात (7028.37 अरब रुपए) देश के कुल सकल आयात (30010.2 अरब रुपए) का 23.42 प्रतिशत था।
- भारत की तेल की मांग में वर्ष 2016-2030 के दौरान चार प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate-CAGR) का अनुमान लगाया गया है जबकि विश्व का औसत केवल एक प्रतिशत है। हालाँकि भारत द्वारा तेल की अनुमानित मांग अमेरिका और चीन के मुकाबले काफी कम होगी।
- अतः भारत काफी संकटपूर्ण स्थिति में है। भारत को अपनी ऊर्जा आवश्कताओं की निरंतर पूर्ति के लिये लीक से हटकर समाधान निकालने की आवश्यकता है। अनुसंधान और विकास इस प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
समिति की सिफारिश
- उच्चस्तरीय दल ने तेल और गैस के विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अनुसंधान और विकास तथा प्रशिक्षण संस्थानों का दौरा किया और अंततः अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की जिन पर पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (Ministry of Petroleum & Natural Gas) द्वारा नीतियाँ तैयार करते समय विचार किया जाएगा। समिति की सिफारिशों के अनुसार तेल एवं गैस के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिये अल्पावधि, मध्यम अवधि और दीर्घ अवधि की रणनीतियाँ तैयार करने की आवश्यकता है।
स्रोत: पी.आई.बी
ट्रस्ट या संस्थान के लिये ऑडिट नियमों से संबंधित मसौदा अधिसूचना
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes-CBDT) ने किसी ट्रस्ट या संस्थान के लिये ऑडिट नियमों से संबंधित आयकर नियमों, 1962 के नियम 17B के संशोधन के लिये एक मसौदा अधिसूचना जारी की।
नोट:
- नियम 17B और फॉर्म संख्या 10B को आयकर नियम, 1962 (आयकर (द्वितीय संशोधन) नियम, 1973) में शामिल किया गया।
- नियम 17B में कहा गया है कि किसी भी ट्रस्ट अथवा संस्थान के लेखा के अंकेक्षण की रिपोर्ट (Report of Audit) फॉर्म संख्या 10B में होगी।
- फॉर्म संख्या 10B के अंतर्गत ऑडिट रिपोर्ट के अलावा अनुलग्नक के रूप में ‘ब्योरेवार रिपोर्टों का विवरण’ (Statement of particulars) भी उपलब्ध कराया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- चूँकि नियम और प्रपत्र को बहुत पहले अधिसूचित किया गया था, वर्तमान समय की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिये इन्हें और अधिक तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है।
- नया फॉर्म 10B कुछ इस तरह का है:
- प्राप्त विदेशी दान प्राप्त और दानकर्त्ताओं का विवरण भरना (जिन्हें आयकर अधिनियम के तहत कटौती का दावा करने के लिये प्रमाण-पत्र जारी किये जाते हैं);
- वह कानून जिसके तहत ट्रस्ट/संस्थान गठित की जाती है तथा आयकर अधिनियम के तहत पंजीकरण;
- ट्रस्ट/संस्थान का उद्देश्य;
- आय का विवरण और आय का आवेदन;
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, [Foreign Contribution (Regulation) Act-FCRA], 2010 के तहत पंजीकरण की स्थिति; तथा
- विभिन्न अन्य विवरणों के साथ लेखांकन नीति की विधि।
- ट्रस्ट/संस्थान के मामले में 'सामान्य जनोपयोगी किसी अन्य वस्तु की उन्नति' के रूप में वर्गीकृत वस्तु के साथ मसौदा अधिसूचना में इस बात की जानकारी मांगी गई है कि क्या इस तरह की गतिविधि व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय या सेवाओं के संबंध में उपकर, फीस आदि से संबद्ध है, इस तरह की किसी भी गतिविधि से प्राप्त रसीद के विवरण को फॉर्म में भरा जाएगा।
- संशोधित 'विवरणों का विवरण' में ट्रस्ट के संचालन का व्यापक विवरण देना होगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि ट्रस्ट उपयुक्त प्रक्रियाओं का अनुपालन कर रहा है।
- जहाँ किसी व्यावसायिक उपक्रम को 'ट्रस्ट के अधीन संपत्ति' के रूप में दर्शाया जाता है, वहाँ प्रस्तावित फॉर्म में उक्त ट्रस्ट के संबंध में व्यापक विवरण और ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने की आवश्यकता होगी।
- कर विशेषज्ञों के अनुसार, विभिन्न अतिरिक्त प्रकटीकरण आवश्यकताओं से लेखा परीक्षकों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाएगी क्योंकि अब उन्हें यह प्रमाणित करने की आवश्यकता होगी कि अनुलग्नक में दिये गए विवरण सही हैं या नहीं। इस प्रकार, निर्धारिती (Assessee) के साथ-साथ लेखा परीक्षक की ज़िम्मेदारी भी महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ जाएगी।
2 मीटर तक बढ़ सकता है समुद्र का जलस्तर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिकों के एक समूह ने महासागरों के बढ़ते जलस्तर की स्थिति के बारे में अपने अनुभवों और अवलोकनों के आधार पर अनुमान जारी किये हैं।
- इन नए अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2100 तक पूरी दुनिया के सागरों का जलस्तर (sea level) 2 मीटर (6.5 फीट) तक बढ़ सकता है जिसके कारण लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।
- जलस्तर में वृद्धि का यह अनुमान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) के अनुमानों से दोगुना है। उल्लेखनीय है कि IPCC ने अपनी पाँचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट (Fifth Assessment Report) में यह अनुमान व्यक्त किया था कि वर्ष 2100 तक समुद्रों के जल स्तर में 1 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है।
महासागरों के जलस्तर में वृद्धि का कारण
ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें इतनी विशाल हैं कि इनके पिघलने से वैश्विक रूप से महासागरों का जलस्तर कई मीटर तक ऊपर उठ सकता है। महासागरों के गर्म होने के कारण जल में होने वाला विस्तार भी जलस्तर को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- उष्मीय प्रसार (Thermal Expansion): जो बहुत अधिक मात्रा में होता है, वर्तमान समय में समुद्री जलस्तर में वृद्धि के लिये यह प्राथमिक योगदानकर्त्ता है और आने वाली सदी के दौरान भी इसके प्राथमिक योगदानकर्त्ता बने रहने की उम्मीद है।
- हिमनदों का योगदान (Glacial Contribution): समुद्र-स्तर में वृद्धि में हिमनदों का योगदान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इनके बारे में भविष्यवाणी करना और इनकी मात्रा निर्धारित करना अधिक कठिन है। आगामी सदी के दौरान समुद्री जलस्तर में वृद्धि के पूर्वानुमान के अनुसार हिमनदों के कारण जलस्तर में 480 मिमी. की औसतन वृद्धि के साथ 90 से 880 मिमी. की कुल वृद्धि होने की संभावना है।
प्रभाव
निश्चित रूप से महासागरों के जलस्तर में वृद्धि का मानव समाज पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
जलस्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप लगभग 1.79 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि जलमग्न हो सकती है और 187 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं।
सरकारों के प्रयास:
- वर्ष 2015 में राष्ट्रों के बीच हए पेरिस जलवायु समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान की सीमा को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 फ़ारेनहाइट) तक कम करना तथा वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिये देशों को प्रोत्साहित करना है।
- IPCC ने एक लैंडमार्क जलवायु रिपोर्ट जारी की जिसमें वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में तीव्र वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिये कोयले, तेल एवं गैस की खपत में भारी मात्रा में, और तत्काल कमी करने का आह्वान किया गया था।
आगे की राह
- चूँकि ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) का उत्सर्जन महासागरीय जलस्तर में वृद्धि हेतु एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिये ऊर्जा, भूमि, शहरी अवसंरचना (परिवहन और भवनों सहित) तथा औद्योगिक प्रणालियों में तीव्र एवं दूरगामी नज़रिये से बदलाव लाने की आवश्यकता है।
- विकासशील देशों को बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बचना चाहिये, जबकि विकसित देशों को अपने देश में ऐसी खपत पर रोक लगानी चाहिये, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ावा देती हो।
- महासागरीय तापमान वृद्धि के मद्देनज़र अब दुनिया भर के नीति निर्माताओं की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि मानव जाति और पृथ्वी का अस्तित्त्व लंबे समय तक बनाए रखने हेतु ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिये आवश्यक कार्रवाई करें।
स्रोत: physics.org
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (22 May)
- केंद्र सरकार ने बिल्डरों के प्रोजेक्ट्स, खान और नई औद्योगिक इकाई शुरू करने के लिये पर्यावरण छूट की सीमा बढ़ा दी है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक नई अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत अब 20 हज़ार से 50 हज़ार वर्गमीटर क्षेत्रफल में होने वाले निर्माण के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होगी। अभी तक यह छूट 20 हज़ार वर्गमीटर तक के प्रोजेक्ट्स के लिये थी। 50 हज़ार वर्ग मीटर से ज़्यादा के प्रोजेक्ट्स के लिये अभी भी पर्यावरण प्रभाव का आकलन कराना ज़रूरी होगा। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत बनाए गए नियमों में ज़िला स्तर, राज्य स्तर और केंद्र सरकार के स्तर पर पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण का गठन वर्ष 2006-07 में किया गया। इसके तहत हर बड़ी परियोजनाओं की मंज़ूरी से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का अध्ययन कराना होता है। साथ ही सामाजिक, आर्थिक प्रभाव को भी इसमें शामिल करना होता था। बहुत बड़े प्रोजेक्ट्स के मामले में लोगों की राय भी ली जाती थी। ऐसे ही कई स्तरों की जाँच से गुज़रने के बाद पर्यावरण अनुमति मिल पाती थी और इसमें होने वाले विलंब की वज़ह से उद्योग जगत में असंतोष व्याप्त था।
- डिजिटल भुगतान के संवर्द्धन पर परामर्श देने के लिये नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता में बनाई गई एक समिति ने 17 मई को अपनी रिपोर्ट रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास को सौंपी। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये पाँच सदस्यीय समिति ने विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श किया। केंद्रीय बैंक ने कहा कि वह समिति की सिफारिशों पर गौर करेगा और आवश्यकतानुसार क्रियान्वयन के लिये अपने भुगतान प्रणाली दृष्टिकोण 2021 में शामिल करेगा।। ज्ञातव्य है कि देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक ने इसी वर्ष जनवरी में नंदन निलेकणी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। इस समिति को गठित करने का उद्देश्य डिजिटल भुगतान की मज़बूती और सुरक्षा को लेकर सुझाव देना तथा डिजिटलीकरण के माध्यम से वित्तीय समावेशन और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना था।
- बांधों में पानी के चिंताजनक स्तर तक गिर जाने के बीच केंद्र ने 18 मई को महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना को परामर्श-पत्र जारी करते हुए पानी का समझदारी से इस्तेमाल करने को कहा है। एक दिन बाद यह परामर्श-पत्र तमिलनाडु को भी जारी किया गया। परामर्श-पत्र में कहा गया है कि ये राज्य पानी का प्रयोग तब तक केवल पीने के लिये ही करें, जब तक कि बांधों में पुनर्भरण नहीं होता। केंद्रीय जल आयोग द्वारा राज्यों को 'सूखा सलाह' तब जारी की जाती है जब जलाशयों में पानी का स्तर पिछले दस साल के जल भंडारण के औसत से 20 प्रतिशत कम हो जाता है। आयोग देश के 91 मुख्य जलाशयों में पानी के भंडारण की निगरानी करता है। इसके द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अभी पानी का उपलब्ध कुल भंडार 35.99 अरब घनमीटर है जो इन जलाशयों की क्षमता का 22 फीसदी है। सभी 91 जलाशयों की कुल क्षमता 161.993 अरब घनमीटर है।
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देश ईस्ट तिमोर जल्दी ही विश्व का पहला प्लास्टिक कचरा मुक्त देश बनने की राह पर अग्रसर है। ईस्ट तिमोर में ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्त्ताओं की मदद से प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करने की योजना पर काम चल रहा है, जिससे प्लास्टिक के नए उत्पाद बनाए जाएंगे। यह तकनीक देश के लिये इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ समुद्री तट काफी अधिक हैं और इन तटों पर प्लास्टिक का कचरा बिखरा रहता है। इस योजना पर काम वर्ष 2020 तक शुरू होने की संभावना है। फिलहाल ईस्ट तिमोर में प्लास्टिक वेस्ट को खुले में जला दिया जाता है। इस छोटे से देश की जनसंख्या केवल 13 लाख है और यहाँ प्रतिदिन लगभग 70 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। गौरतलब है कि विश्व में विभिन्न देश 80 लाख टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष समुद्र में फेंकते हैं, जो रिसाइकल नहीं होता है।
- ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन की कंज़र्वेटिव लिबरल्स पार्टी ने एक बार फिर आम चुनाव में जीत हासिल की है। उनकी पार्टी ने 151 में से 74 सीटें हासिल की हैं, जो कि बहुमत से केवल दो सीटें कम हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन की जीत के बाद विपक्षी लेबर पार्टी के नेता बिल शॉर्टन को इस्तीफा देना पड़ा। यह चुनाव मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लड़ा गया था, जिसके साथ रहन-सहन का स्तर और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे मुद्दे भी शामिल थे। लगभग 1.6 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई मतदाताओं ने देश का 31वाँ प्रधानमंत्री चुनने के लिये मतदान किया। गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया में हर तीन साल में होने वाले आम चुनावों में वर्ष 2007 के बाद से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। ऑस्ट्रेलिया में 1924 से ही मतदान अनिवार्य है और अगर कोई पंजीकृत योग्य मतदाता बिना किसी वैध कारण के अपना वोट नहीं डालता तो उस पर राष्ट्रमंडल निर्वाचन अधिनियम, 1918 (Commonwealth Electoral Act 1918) की धारा 245 के तहत आर्थिक दंड लगाया जाता है।